Update 50. मन्दिर के चमत्कारी पत्थर का रहस्य
प्रथम भाग
नरेश मन्दिर के पूजा में आज बहुत ही बैचैन हो रहा था ,हर साल जिस तरह से वो मन्दिर में मन लगाकर सेवा करता था इस बार वो बात नही थी ,नरेश के मन में कल की उसकी जब कल शाम को शक्ति के दादा से मुलाकात हूवी थी तब की बाते याद आ रही थी ,
नरेश अपने तीनो भाइयो या बेटो के साथ बैठा था ,भवानीगढ़ में देसाई खानदान से सब आ गये थे बस निता और सुनीता नही आये थे ,निता की तबियत कुछ खराब थी 10 दिनोसे और उसकी का खयाल रखने सुनीता भी उसके साथ मुम्बई में ही रुक गयी थी ,लेकिन आज शाम वो दोनो हवाईजहाज से भवानीगढ़ पहुँच गयी थी ,उनको आकर कुछ देर ही हुवी थी तब शक्ति उसके दादा और दादी को लेकर उनके घर आ गया था ,शक्ति के दादा दादी को देखकर सब हैरान थे ,वो दोनों तो उसके दादा दादी नही बल्कि भैया भाभी लग रहे थे ,शक्ति ने उनका परिचय कराया पृथ्वी सिंग और ज्वाला सिंग , ज्वाला को नरेश ने अंदर महिलाओं में भेज दिया ,कुछ देर तक सब बातें करते रहे पृथ्वी ने नरेश के साथ कुछ देर अकेले में बात करनी चाही ,नरेश ने भी वो बात मान ली थी,
दोनो एक कमरे में आकर बैठ गये ,दोनो एक दूसरे के सामने खुर्सी पर बैठ गए, नरेश और बाकी सब पृथ्वी को देखकर ही बहुत प्रभावित हो गये थे 7 फिट 2इंच की लंबाई के साथ उसके ही मुकाबले की शरीर के बाकी अंगों की मजबूती देखकर ही पता चल जाता था कि यह बहुत ही ताक़दवर और बहादुर इंसान है ,
नरेश ,बोलिये पृथ्विजी आप को क्या कहना है
पृथ्वी ,जी मे आपसे नरेश कहके बात करूं या विजय यह आप पहले बता दीजिये ,
नरेश के चेहरे पे एक मुस्कान आ गयी थी यह सुनकर ,उसको पृथ्वी को देखकर ही यह समझ आ गया था इसमे कुछ तो खास बात जरूर होगी ,
नरेश ,आप को जो कहना है कह सकते है ,मुझे किसी भी नाम से आप पुकार सकते है ,दोनो तो मेरे ही नाम है , फिर क्या नरेश और क्या विजय ,
पृथ्वी को पता था नरेश एक खुले दिल का इंसान है , पृथ्वी ने भी जो सोच कर आया था वो बात कहनी शुरू की,
नरेश पहली मेरी सब बात सुन लो ,फिर तुमको जो पूछना हो में बता दूँगा ,जिस चमकारी पानी को तुमने और तुम्हारी बीबी ने पिया है ,वैसा ही मेने अपनी पत्नी के साथ 400 साल पहले पीया था ,वो चमत्कारी पानी उसी पत्थर से निकलता है जिसको हम दोनों ने पिया है ,हमारी दोनो के कितने ही पीढयों से हम इस चमत्कारी पत्थर की रक्षा करते आ रहे है ,
हर 350 साल में एक बार उस पत्थर से वो चमत्कारी पानी निकलता है जो हम दोनों के परिवार में बराबर बाट दिया जाता है ,और यह काम विशाखा ही करती है ,तुमने जो पानी पिया था वो 400 साल पहले मेरे साथ ही निकला था ,जस पानी मे बहुत सी चमत्कारी ताकद हम को मिलती है ,हमें सिर्फ सदा जवान और शारिरिक बल,कामशक्ति में बढ़ोतरी ही नही ,असीमित बाहुबल ,मन की बाते सुनने, हवा से तेज दौड़ना ,कभी न थकना,कोई भी जख्म हो तो पल में ठीक होना ,पानी मे सास लेकर उसमे जमीन की तरह रहना, प्राणियों की बाते समझना उनसे बात कर सकना ,जैसी ताकद हमे मिलती है ,बस हमको ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करके हमारी ताकत को जानना होता है ,
हम दोनों के परिवार कभी आपस मे अच्छे दोस्त हुवा करते थे, पर मेरे पिता की पीढ़ी से आपस मे हम दोनों में दुश्मनी हो गई ,जाने कितनी ही सदियों की दोस्ती, हमारे पिताजी और उस वक्त की तुम्हारी पीढ़ी के झगड़े से टूट गई थी ,जो जिम्मेदारी हम दोनों के परिवारों पर मिलकर दी गई थी उसको हम भूलकर एक दूसरे से दूर हो गये, मेरे पिताजी के मरने के बाद मेने कभी कोई दुश्मनी नही रखी ,पर कभी दोस्ती भी नही की ,तुम्हारे पिता भी सब जानते थे पर तुमको वो कुछ बताने से पहले ही नही रहे, ऊनको मेरे और मेरे परिवार के बारे में सब पता था ,मन्दिर को वो सब राज भी जानते थे ,जो में तुम्हे आज बता देता हूं ,
जब स्वर्ग में धन खत्म हो गया तब समुद्र मंथन किया गया था जिससे 14 रत्न मीले जिन्हें हर किसीने बांट दिया पर उसमे से निकले अमृत पर देवता और राक्षसों में लड़ाई हो गयी जो भगवान के सूझबूझ से किसी पापी को अमृत पीकर अमर नही बन सका ,जो चोरी से अमृत पी गया उसके सर को सुदर्शन चक्र से काट दिया गया जिसे हम राहु केतु के नाम से जानते है , लेकिन इस समुद्र मंथन में एक और बात हुवीं थी मेरु पर्वत का जो भाग समुद्र में मंथन के समय घूम रहा था उसमें हर रत्न के समुद्र से बाहर आने के बाद थोड़ी उस रत्न की ताकद रह जाती ,इसी तरह 14 रत्नों के निकलते वक्त उनसे निकली उनकी ताकद,या ऊर्जा वहा जमा होतीं रही ,मेरु पर्वत के उस भाग में एक जगह वो सब 14 रत्नों की ऊर्जा एक होकर एक पत्थर में समा गई ,यह बात किसी को पता नही थी सिवाय त्रिशक्तियो के ,उन्होंने मेरु पर्वत के उस पूरे भाग को ही जो समुद्र में मंथन के समय उसके अंदर था उसे अलग जंगल मे एक मन्दिर में स्थापित कर दिया , जो चमत्कारी पत्थर था वो इसी मंदिर के अंदर कहि पे है ,जिसका पता सिर्फ त्रिशक्तियो को था ,उनको पता था अमृत के वजह से देवता और राक्षसों के साथ अब सदा के लिए दुश्मनी हो गयी है ,अगर किसी और को इस ताकद का पता चलता तो फिर घोर युद्ध होता इसे पाने के लिये ,इसकी ताकद का अंदाजा सिर्फ त्रिशक्तियों को ही था ,अगर किसी गलत हाथो में यह ताकद गयी तो अनर्थ होगा यह ऊन्हे पता था ,इसलियें यह बात उन्होंने किसी को नही पता चलने दी , जहा पर यह मंदिर बना था वहाँ के दो पुण्यवान राजो ओ को इस मंदिर की रक्षा का भार दिया गया उन्हें सिर्फ मन्दिर के रक्षा के बारे में ही बताया ,मन्दिर के अंदर दो बहुत ही विशाल और चमत्कारी शक्तियो के मालिक ,पति और पत्नी सर्पो को रखा गया ,और साथ मे मन्दिर के आसपास के इलाकों की पहाड़ी में महाबली भेड़िये मानवों को इस मन्दिर के राज को बताकर इसकी रक्षा का जिम्मेदारी दी गई ,उस चमत्कारी पत्थर से 350 साल में जो पानी निकलता था वो त्रिशक्तियों ने ही उन दो राजाओ को देने को बोला था ,ताकि उनमे भी कुछ चमत्कारी ताकते हो ,क्योकि इस मंदिर के ताकत को पाने कोई मामूली लोग नही बल्कि जिनके पास अनोखी ताकते हो वही आ सकते है ,तब ये पानी की मिली शक्तिया उनके काम मे ही आएगी, उस मंदिर की रक्षा के लिए जैसे उन दो सर्पो की जोड़ी के साथ नर भेड़िये रखे थे ,वैसेही कितने ही योद्धा और थे जो समय आने पर सामने आने वाले थे ,
अभी जो मन्दिर में विशाखा नाम की सर्पिणी है वो उसी पति पत्नी की बेटी है जिनको त्रिदेवो ने रखा था ,मुझे यह सब बातें उसने ही बताई थी ,मेरे हातो से एक बार एक नरभेड़िये को बचाते हुवे उसने मुझे यह राज 200 साल पहले बताया ,मुझे उसके बातो पर शंका थी ,मेने उस नरभेडिये को छोड़ दिया ,पर विशाखा पर नजर रखने लगा ,एक दिन मेने विशाखा का पीछा किया तब देखा कि मन्दिर में एक बहुत बड़ी गुफा है जो मन्दिर के नीचे से शुरू होती है ,वहां विशाखा उससे भी आकार में विशाल 100फिट से भी बड़ी एक और सर्प का कुछ इलाज कर रही थी ,वो सर्प भी एक विशाखा की तरह एक नागकन्या थी,लेकिन विशाखा ने मुझे देख लिया ,उसको मेरी इस हरकत से बहुत गुस्सा आया ,अगर में मन्दिर का रक्षक नही होता ,तो उसने मुझे एक पल में मार दिया होता , उसने मुझे बताया कि वह दूसरी नागकन्या उसकी बड़ी बहन है जो मन्दिर के पास एक बार किसी दृष्ट विषारी राक्षस को मारते हुवे जख्मी हो गई थी ,इस बात को 250 साल हो गए थे ,उसकी बहन को होश नही आया था ,ना उसके जख्म भरे थे ,उसकी बहन का नाम सर्पिणी था ,मैंने अपने किये की उससे माफी मांगी पर उसने कह दिया कि आज के बाद यहां आना नही ,और उसने तब से मुझसे बात नही की है ,
और आज तुमसे इतने सालों में मिलने इस लिये आया हु के मंदिर के इस चमत्कारी पत्थर का राज सबको पता चल गया है ,कैसे यह ना मुझे पता है ना विशाखा को ,वह मन्दिर का चमत्कारी पत्थर भी मन्दिर से गायब हो गया है ,उसके होने का अहसास विशाखा को हमेशा होता है लेकिन पिछले 6 महीने से उसको वह अहसास नही हों रहा था ,उसने पूरी दुनिया में उसे ढूंढने की कोशिश की लेकिन वह नही मिला,
मन्दिर का एक रक्षक मानव भेड़िया है, जिसकी सूंघने की शक्ति इतनी तेज है की वो किसी छोटे से सूक्ष्मजीव को भी हजारो मील दूर से सूंघ सकता है ,उसने ही विशाखा को बताया कि वह शक्ति मन्दिर में ही है और छुप गई है ,विशाखा उसकी के कहने मन्दिर में वापस आ गई है ,उस भेड़िये ने ही मन्दिर के पास बहुत दृष्ट शक्तिशाली जीवो को सूंघ के हम सबको तैयार रहने को कहा है ,
उस पत्थर से जो पानी निकलता है वो विजयदशमी के ही दिन निकलता है ,इस पत्थर से 350 साल में एक बार चमत्कारी पानी निकलता है ,पिछला पानी निकले कर 400 साल हो गए ,इससे पत्थर का वो पानी 50 साल पहले ही निकलना चाहिए था ,पर निकला नही ,ये पानी एक बार पीने का ही फायदा है किसीने इसे दुबारा पिया तो उसकी मौत हो जायेगी ,अगर पानी उस पत्थर से निकलता तो विशाखा हम दोनों परिवारों को जरूर उसके दो भाग लाकर देती ,विशाखा कभी हमे धोका नही देगी , वो वचनबद्ध है अपने कर्म से ,
नरेश सब सुनकर एक अलग ही अवस्था मे था ,पृथ्वी ने उसके मन मे उठने वाले हर सवाल का जवाब भी दे दिये थे ,
नरेश बोला ,आप मुझसे बड़े है, में आप को आज से दादा ही बोलूंगा ,आप मेरे दादाजी से भी बड़े हो ,आपने आज मुझे सब कुछ बता दिया इसका में आभारी हूं ,सबसे पहली बात हम दोनों के परिवार में दुश्मनी क्यो थी मुझे पता नही ,और ना यह पता है गलती किसकी थी ,लेकिन आप से में माफी माँगता हु अगर मेरे किसी पुरखो ने आपका कुछ नुकसान किया हो ,या कुछ अहित किया हो , आज से आप जो भी कहंगे या बोलेंगे वो कोई भी बात में नही टालूँगा ,मेरा बस एक सवाल है ,मेरे पिता कहा करते थे उस चमत्कारी पत्थर का कोई वारिस आने वाला है ,इसका क्या मतलब था
पृथ्वी ,तुम एक नेकदिल और सच्चे इसान हो ,इसलिये में तुमको बेहद पसन्द करता हु ,आज से तुम भी मेरे बेटे जैसे हो नरेश ,तुम्हारे पिता की बात भी सही थी इसका वारिस जरूर कोई ना कोई होगा जो आएगा, हमारी दोनो पीढियों ने इसकी रक्षा की है ,जिसकी वजह से यह चमत्कारी पथर किसी एक को चुन लें हमारी दोनो पीढयों में ,या किसी और को चुन लें जो इसे पसन्द हो ,तुम को पता होगा जो समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले उन्हें अपनी मर्जी से स्थान मिला था या ये किसी उचित हाथो में गये थे ,शायद ये भी किसको चुने,या कोई इसे अपने पास रख ले ,
उस दिन पृथ्वी को नरेश ने अपने घर ही रोक दिया ,दोनो को एक दूसरे का साथ बहुत पसंद आ गया था ,पृथ्वी ने नरेश को मन्दिर का राज जगत को बताने को कह दिया था , ,क्योकि उसके पिता को भी यह राज पता था ,उसकी कितनी पीढयों ने मन्दिर की सेवा की थी ,उसका तो हक था यह राज जानना ,जगत को बुलाकर नरेश ने उसे सब बातें बता दी ,जगत भी पृथ्वि से मिलके खुश हो गया ,उसने एक दो बार पृथ्वी को मंदिर में देखा भी था ,
रात को खाने के बाद पृथ्वी ने सबको बुलाया था नरेश के घर ,सबके आने के बाद जिनमे नरेश ,नरेश के 3 भाई (बेटे),शक्ति, जगत ,सुल्तान ,भीमा ,रोही कबीले का सरदार सोमा और उसके खास आदमी, पृथ्वी ने उन सबको बता दिया कि कुछ भी हों जाए मन्दिर में कल विजयदशमी के पूजा के बाद अंदर नही जाना चाहिए, जगत को भी पूजा करके सबको बाहर निकालकर मन्दिर के दरवाजे अंदर से बन्द करने को कह दिया था ,पृथ्वि ने कहा,आप सब बहादुर है ,किसी भी चीज से टकराने से आप डरेंगे नही,लेकिन आप सबको मेरी एक बात माननी होगी ,कल मुकाबले में कोई भी लड़ने के लिये ललकार सकता है ,आप मे से ,या हमारा कोई भी आदमी, या आसपास का कोई भी गाव वाला ,किसी अजनबी हो या पहचाना वाला चुनौती नही लेगा ,कोई कितनी गाली दे ,बुरा कहे ,पर कोई भी कल नही लड़ेगा ,
सिर्फ कल चुनोती में दूँगा ललकारने वालो को ,अगर उसने मुझे हरा दिया तो आप मे से कोई भी उसे ललकारेंगे नही ,
सबको यह बात पसन्द नहीं थी ,खुद नरेश भी यह बात नही मान रहा था ,पर पृथ्वि के जोर देने पर वह माना ,फिर सबको यह बात माननी पड़ी ,
पृथ्वी की यही सोच थी अगर मुकाबले में कोई आसुरी ताकद रूप बदलकर आ गयी तो उनसे लड़कर अपने आदमी क्या गवाने ,गाव के यह पहलवान किसी आसुरी ,मायावी ताकद के सामने क्या करेगा ,इसलिये वह खुद लडने वाला था ,
इस मुकाबले में जो अंतिम विजेता होता है उसको मन्दिर में विजयादशमी के दिन पहला मान दिया जाता है पूजा करने का ,यही वजह थी उसके लडने की ,उसको हराने वाला कोई मामूली इंसान होगा ही नही ,उसको सब मिलकर मारने को कह दिया था पृथ्वी ,कल किसी भी हाल में कोई भी मन्दिर में ना घुसे ,इसके लिये कितनी भी लाशें गिरानी पड़े या खुद की लाश गिरे सिर्फ लड़ना था सबको ,
नरेश को होश में उसकी पत्नी ने ही लाया जो उसको प्रसाद देने आयी थी ,मन्दिर के अंदर पूजा खत्म हो गई थी सब मन्दिर के बाहर निकल गए ,जगतजी ने मन्दिर के मजबूत दरवाजे अंदर से लगा दिये ,
नरेश और पृथ्वी के साथ सब लोग अब मुकाबले की जगह पर आ गये ,मनोज औऱ निता के हाथ से नारियल फोड़ कर ,पूजा करके शुरुआत की गई ,वहा पर ज्यादा नही बस 80 या 90 पहलवान आये थे मुकाबले के लिए ,
मुकाबला शुरू करने से पहले नरेश जी ने अपनी जगह से उठकर लाउड स्पीकर में लगे माइक पर कहा, मुकाबला शुरू करने से पहले में आप सबको कुछ कहना चाहता हु , इस साल अंतिम विजेता कोई भी हो ,उसे मन्दिर में प्रवेश नही मिलेगा ,बाकी इनाम वही मिलेगा जो हर साल मिलता है ,
काल अपनी जगह से बैठा सब देख रहा था ,नरेश को अपने सामने देखकर उसे बहुत खुशी हो गई थी ,नरेश की वजह से ही वो आज इस मुकाम पर था ,अपने जीवन मे नरेश को वह भगवान से ज्यादा मान देता था ,नरेश नही आता उसके जिंदगी में तो हमेशा डरकर जीनेवाला एक कमजोर ही रहता,उसके जीवन मे जो यह ताकद उसको मिली थी उसकी नीव नरेश की सीख और सोच ही थी ,
मुकाबले शुरू ही होने थे कि एक आवाज ने सबका ध्यान अपनी और खींच लिया, इस जगह पर यह फैसला लेने का हक तुझे किसने दिया है कौन अंदर जायेगा और कौन नही ,तू होता कौन है यहा के फैसले लेने वाला ,
इस आवाज का मालिक 7 फिट ऊंचा एक तगड़ा नौजवान था , उसकी आवाज भी उसके जैसी ही थी ,उसके साथ 8 से 10 लोग थे जो उसके जैसे ही उंचे तगडे थे ,
वो फिर बोला ,मेने तो सुना था यहाँ वीर लोगों का मान रखा जाता है ,लेकिन जितने वाले को मन्दिर में पूजा का मान न देना यह कौनसी वीर लोगो को मान देनी की बात हुवीं ,सिर्फ पैसे के लिये लड़ना गलत बात होगी ,तुम एक काम करो विजेता को अपनी पत्नी के साथ एक दिन गुजारने दो ,या अभी नारियल फोड़ कर गयी है उसे एक दिन हमारी सेवा में भेज दो , हम तुमको चुनोती देते है या अपनी मन्दिर में दर्शन की बात से पीछे हटो या अपनी बीबी या उस औरत को दांव पर लगा दो , हमको हराना या लड़ना तुम सबके औकात के बाहर की बात है ,तुम मेरे एक आदमी को नही हर सकोगे,जाओ शिबू दिखा दो इन नामर्दो को अंगारा के आदमियों में कितना दम है ,
उसकी बात सुनकर एक उसके जैसा ही तगड़ा आदमी उस आखाड़े में अपने कपड़े उतारकर कर उतर गया ,शिबू नाम का वो पहलवान उतरकर नरेश और निता को गन्दे इशारे करने लगा ,यहा पर उस लड़के की बाते सुनकर सबके दिमाग पहले से ही घूम गये थे ,सबको ऐसा लग रहा था अभी आखडे में उतरकर उसके बात का जवाब दे पर पृथ्वी के वजह से सब चुप थे ,पृथ्वी लगातार उन सबके मन की बाते पढ़ने की कोशिश कर रहा था ,पर वो ऐसा कर नही पा रहा था ,जब उसने उस अंगारा नाम के आदमी की तरफ वापिस देखकर उसके मन मे झाँकना चाहा तो उसके मन मे उस अंगारा की आवाज आयीं ,तुम अभी बच्चे हो पृथ्वी ,ये जो शिबू है ना यह तुम जैसे 100 को अकेला मार सकता है ,और इस शिबू के जैसे 1000 को में अकेला मार सकता हु,मेरे सामने सिर्फ तुम एक कीड़े हो जो आज पैर के नीचे कुचले जायेगा,
पृथ्वी के माथे से पसीना बह रहा था ,वो लडने से डरता नही था ,पर इंसानों के भेष में ये राक्षस आज यहाँ कितनो को मारँगे ,यह बताना मुश्किल था ,पृथ्वी चुनौती के लिये उठकर आखाड़े में जा ही रहा था कि उसके कानों में एक भयानक चीख सुनाई दी ,इतनी जोरदार चीख के साथ सबका ध्यान उस और गया जहाँ से चीख आयी थी
शिबू आखाड़े में गिरकर नीचे पड़ा था और उसे गिरने वाले ने उसके हाथ को पीठ में लगाकर उसके नीचे मुह के बल गिरा दिया था ,और उसके चेहरे को मिट्टी में दबाकर रखे थे,शिबू अपनी जान लगाकर अपने सर को मिट्टी मै से निकालने की नाकाम कोशिश कर रहा था ,वो एक 20 से 21 साल का लड़का शिबू को मिट्टी में दबाता अंगारा की आंखों में एकटक देख रहा था ,जहा 1 सेकंड पहले अंगारा पृथ्वी को उसकी औकात दिखा रहा था ,और यह लड़के ने शिबू को उसके सामने किसी कागज के तरह आसानी जमीन में पटक कर उसे माटी खिला रहा था ,पृथ्वी के साथ सभी लोग यह देख कर हैरान थे कि यह कौन आ गया बीच मे ,बाकी सब को तो नही ,पर पृथ्वी को पता था, जिस तरह से इस लड़के ने एक झटके में शिबू को पटक है ,यह कुछ खास है ,उसकी आंखों में उस लड़के के लिये एक इज्जत और अपनापन था ,और यही सबकी नजरों में था इस अनजान लड़के के लिए ,
शिबू उस आखडे मे अपनी जान बचाने के लिये हाथ पैर मार रहा था ,उसके मुह में पूरी मिट्टी चली गयी थी ,उसकी साँसे अब उखड़ रही थी उस लड़के ने शिबू छोड़ दिया ,शिबू अपनी साँसे दुरुस्त कर रहा था पीठ के बल लेटकर की उस लड़के न वापिस शिबू की गर्दन पकड़कर उसे उठाया और उसकी आँखों मे देखते हुवे बोला ,कुत्ते,कभी अपनी औकात नही भूलनी चाहिए, जा अपने मालिक के पास ,
शिबू उस लड़के के फेके जाने से 20 फिट दूर अंगारा के पाव के पास आकर गिरा ,उस लड़के ने उसकी गर्दन तोड़कर उसको अंगारा के कदमो में फेंका था
अंगारा तेरे जैसे को में थूक कर बुझा सकता हु , मेरा नाम आज के बाद तू कभी नही भूलेगा ,मेरा नाम है काल ,
अंगारा अपनी आँखें बड़ी करके उस काल के चेहरे को देख रहा था ,जिसकी वजह थी उस लड़के की बात,,अंगारा तुझे में मारूंगा नही, बल्कि तेरे दोनो हाथ पांव उखाड़ के तेरे बाप कोहिम के पास भेजूंगा ,,,,
अंगारा यही सोच रहा था उसके मन मे यह बात करने वाला कौन है जो उसकी सच्चाई को और उसके बाप को जानता है ,।