Part 4
पर शायद मेरी किस्मत का था मुझ से कोई बैर
और शादी से दो दिन पहले गुड्डी तुड़वा बैठी पैर
पंकज को रहना था घर जो गुड्डी का रखे ख्याल
शादी पे जाने का अब कोई बनता नहीं सवाल
भाभी मैं तो चली जाउ लेकिन जख्म अभी है कच्चा
अगर कोई नहीं गया तो तायाजी नहीं लगेगा अच्छा
पंकज संग चली जाओ तुम नहीं होगी कोई मुश्किल
बाहर निकली दो दिन तो बहल जाएगा तुम्हारा दिल
गुड्डी की जिद्द के आगे मैंने मान ली अपनी हार
पंकज संग शादी पे जाने को हो गई मैं त्यार
अगले दिन जब आया पंकज लेके अपनी कार
सुंदर से एक मेकअप करके मैं बैठी थी त्यार
चोरी से वो देख रहा था जब चला रहा था गाड़ी
मैंने भी हल्के से सीने से सरका दी अपनी साड़ी
देख मेरे चूचो की घाटी उसका बहक रहा था मन
मेरी नज़र बच्चा के वो अपना मसल रहा था लन
देख के उसकी हालत को मैं मन ही मन मुस्काई
उसका बस चले अगर तो मेरी करदे वहीं चुदाई
चुदना मैं भी पंकज से चाहती थी सारे रिश्ते भूल
लेकिन चुदने के लिए ये मौका नहीं था अनुकूल
क्या ताया जी को बतला कर हम गुड्डी वाली बात
करेंगे उनसे हम विनती की नहीं रुक पाएंगे रात
हाँ सही कहा पंकज जी तुमने अच्छा है विचार
शाम को जल्दी निकल पड़ेंगे लेके अपनी कार
अच्छा लगेगा गुड्डी को जब हम पहुँच जायेंगे घर
गुड्डी के अकेले रहने का भी ख़तम हो जाएगा डर
मान सुझाव पंकज का मैंने ताया जी से कर ले बात
निकल पड़े वापस जल्दी से ज्यादा ना हो जाये रात
मेहरबान थी किस्मत शायद मुझ पे आज की रात
जैसे हम निकले वापस जोर से घिर आई बरसात
आगे नहीं जा पाएंगे भाभी जी है बहुत तेज बरसात
यहीं कहीं पे रुकना होगा हम दोनों को आज की रात
बढ़ने लगी थी ठंडी और रात का छाया घना अँधेरा
देख के ऐसा सुंदर मौसम दिल धड़क रहा था मेरा
एक ही कमरे में क्या हम दोनों रुकेंगे आज की रात
क्या मेरे दिल की ख़्वाहिश पूरी करने आई है बरसात