Part 2
क्या पंकज जी गुड्डी की तरह मेरे यौवन से खेलेंगे
अपने लौड़े पे मुझे बिठाकर क्या सारी रात वो पेलेंगे
इतना मोटा लौड़ा उनका मैं चूत में क्या ले पाऊँगी
गुड्डी को जब पता चला तो उसको क्या बतलाऊंगी
जो बातें नहीं हो मुमकिन क्यों उनका करु ख्याल
ऐसा ही सब से होता है मैं क्यों दिल में रखू मलाल
ये सब मैं क्या सोच रही हूं ये सब है बेकार
ननदोई जी कैसे जुड़ जायेंगे मेरे दिल के तार
दिल के तार जोडू काहे बस तन का मिलन ही काफी है
दिल की मानू और तन की न मानू ये भी तो नाइंसाफी है
फ़िर रात को पतिदेव ने बिस्तर पे मुझे अधूरा छोड़ दिया
पांच मिनट में निकाल के पानी अपना मुखड़ा मोड़ लिया
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देख के ऐसा रुख पति का गुस्सा बहुत था आया
सोच लिया था अब अपने लिए ढूंढूंगी मर्द पराया
ठान लिया था मैंने उतार दूंगी ये शराफत का चोला
बाथरूम में बैठी रगड़ रही थी जब मैं चूत का छोला
ख्यालो में खोयी मैं पंकज का ले रही थी लन
अब उनसे ही चुदने का मैं बना चुकी थी मन
एक नई सुबह हुई और मिट गई रात की स्याही
अपने घर को लौट आया रात का भटका राही
सोचा था जो रात को मैंने निकाल दिया अब मन से
ऐसा कैसे मुमकिन है मैं चुद जाऊ पंकज के लन से
ऐसा कौन इंसान यहाँ है जिसने जो मांगा वो पाया
सोच का पंछी मार उड्डारी वापस धरती पर आया