बाकी कम्पीटिटर रंडियां और उनके दल्ले.. एक नई रंडी को अपने क्षेत्र में देख कर .. चुप कैसे रह गए...मजे 'गुड्डी बाई के मोहल्ले' के
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रीनू की शरारतें वहां भी जारी थीं ,
टिकट के लिए भी उसने गुड्डी को ही भेजा ,
गुड्डी सचमुच में पक्की गुड्डी बाई लग रही थी, वही ठसका, वही ठुमके और वही अंदाज, कपडे मेकअप तो एकदम पांच रुपये छाप रीनू ने क्र ही दिया था।
और पिक्चर हाल भी उसी तरह का रंडियों के इलाके का एक्सटेंसन सा ही लग रहा था, कहीं पान की पीक, कहीं अधजली बीड़ी सिगरेट,कोई ज्यादा चहल पहल भी नहीं थी। दो चार रंडियां चक्कर काट रही थीं, एक कोई, पुराने पोस्टर के पास खड़ी सिगरेट सुलगा थी, पोस्टर भी आधा नुचा, नाम बस पढ़ने में आ रहा था, गरम जवानी, दो चार और ऐसे पुराने पोस्टर लगे थे इधर उधर, दीवाल के कोने में एक कुत्ता लेटा तिरछी आँखों से इधर उधर देख रहा था, फिर कुनमुना के लेट गया।
पिकचर शुरू होने में अभी टाइम था।
रीनू ने गुड्डी को ही टिकट लाने भेजा।
टिकट खिड़की वाली भी कान खुजाते हुए खिड़की के बाहर गुड्डी की ओर ही देख रहा था,
गुड्डी उसे देख के मुस्करायी, मैं भी उन दोनों की बात सुनने के लिए एकदम टिकट खिड़की की बगल में दीवाल के पास, गुड्डी के भैया भी गुड्डी के पीछे पीछे चल के लेकिन थोड़ी देर पे खड़े और उनके पीछे रीनू, अजय और कमल जीजू के साथ,
" हे छह टिकट बालकोनी के, सबसे पीछे वाले " गुड्डी बड़े अंदाज से बोली
और जिस अदा से उसने पहले धागे की तरह दोनों उभारों के बीच फंसे आँचल को सरकाया और चोली के ऊपर से दोनों उभारों की नुमाइश की फिर चोली में हाथ डाल के, गोलाइयाँ तो पहले ही झलक रही थीं, अब एकदम खुल के उस टिकट वाले के सामने,
गुड्डी को कोई जल्दी नहीं थी, धीरे धीरे हाथ डाल के , बुदबुदाते हुए,' स्साला कहाँ घुस गया, माँ का,... एक छोटा सा बटुआ निकाला
और जैसे ही खिड़की वाले की ओर देखा, टिकट वाला मुस्करा के बोला,
" लगता है पहली बार आयी हो, अरे इस हाल में बालकनी वाल्कनी नहीं हैं फिर तेरे मोहल्ले वाली सब तो एकदम आगे की सीट पे बैठती हैं , लकड़ी वाली, " तबतक उसकी निगाह गुड्डी से थोड़ी दूर खड़े इन पे पड़ी और वो बोला,
" लौंडा तो बढ़िया पाटा है, मोटा असामी लगता है, इसीलिए, यहाँ सबसे ऊँचा दर्जा, ड्रेस सर्किल हैं, चल उसी की दे देता हूँ, पीछे की दो लाइन, एकदम खाली रहती है। "
और टिकट लेके गुड्डी ने फिर उसे सम्हाल के, उस स्टाइल से पहले चोली के अंदर से वो बटुआ निकाला और फिर बटुए में टिकट और बटुआ चोली में
और उस दौरान गुड्डी के गोल गोल गदराये छोटे छोटे गोरे जुबना को टिकट वाला बिना टिकट देख रहा था, रस ले रहा था,
"माल तो तेरा जबरदस्त है स्साली तू आग लगा देगी, चल अभी तो, लेकिन अगली बार आएगी न तो तेरा महीने का पास बना दूंगा। ये देख रही दोनों जो खड़ी हैं उनका महीने का पास है "
" मतलब, "
गुड्डी को भी बात करने में मजा आ रहा था, पलकें झपकते हुए मुस्करा के उसने टिकट बाबू की ओर देखा और हलके से अपनी जीभ लाल लाल गाढ़ी लिपस्टिक लगे होंठों पे फेरा बस टिकट बाबू गुलाम, और सब बातें बता दी,
" चल तू नयी नयी है, तेरा पहला महीना फ्री, ये सब जो देख रही हैं, अभी कोई स्साला दिखेगा तो उसे पटा के अंदर, असली फिल्ल्म तो दस मिनट में शुरू होगी और फिर ये सब जब तक परदे पे वो वाली चल रही है, ग्राहक का, बस खोल के आगे पीछे, और क्या ज्यादा पैसे देने वाला हुआ तो ऊपर वाला भी खोल के पकड़ा देंगी, वो स्साला कब तक चलेगा, दो मिनट,चार मिनट, और एक बार वो झड़ गया तो खेल ख़तम पैसा हजम, फिर बाहर निकल के दूसरा मुर्गा, तो एक शो में चार पांच तो मिल ही जाते हैं, बस जो कल्लू है न वो गेटकीपर बस वो दस टका
" अरे ये दस रूपया तो बहुत ज्यादा " गुड्डी बनावटी घबड़ा के बोली
" अरे दस रूपया नहीं, मतलब कुल कमाई का दस फीसदी, लेकिन कौन हिसाब रखता है जो मिल जाए और कभी कभी वो कलुआ भी, किसी दिन धंधा किसी का ठंडा हुआ, ग्राहक नहीं मिल रहा है तो वही जाके, और हाँ कुछ तो मुंह में भी लेकिन एक तो कंडोम लगा के और उसका चौगुना, दस गुना जैसा ग्राहक हो " बुकिंग बाबू ने समझाया, नयी नवेली को।
" और किसी ग्राहक का घपाघप का मन हो तो, " पीछे मुड़ के अपने भैया की ओर देख के वो मुस्करा के बोली
" तो करवा ले न, लेकिन इतनी जगह नहीं होती और असली कमाई तो टर्न ओवर की है, जैसे गुजराती थाली होती है, जितनी जल्दी ग्राहक को निपटाया, दूसरा आएगा, हाँ कभी कभार एकाध कोई पुलिस वाला या ऐसे ही कोई आया तो किनारे निहुरा के काम चला लेता है , वैसे नाम क्या है तेरा, "
टिकट बाबू धीरे धीरे यारी बढ़ा रहे थे और अब एक दो और रंडियां भी आस पास मंडरा रही थीं।
" गुड्डी, गुड्डी बाई, हाँ एक बात और बता दे कोई पान की बढ़िया दुकान आस पास " गुड्डी खिड़की से हटते हुए पूछ बैठी,
" जब अंदर सड़क पे जायेगी न थोड़ी दूर पे ठेका है, बस उसी के बाद दो गली छोड़ के तीसरी गली के मोड़ पे, पेसल बोलेगी तो समझ ले पलंग तोड़ पान झूठ दो तीन पानी तो मरद फेंकेगा ही, मेरा नाम बता देना राजू नाम है मेरा और हाँ पिक्चर अभी आधे घंटे में शुरू होगी । "
गली में घुसते ही एक तेज भभका सा उठा।
नाली में जगह जगह इस्तेमाल किये कंडोम फेंके हुए थे, कोने में एक जगह कचड़ा पड़ा था, और दोनों ओर मकानों के बाहर भंडुए मंडरा रहे थे। लेकिन असली खेल गलियों में था जहाँ हर घर के बाहर छह सात लड़कियां, कुछ साड़ी चोली में तो कुछ टॉप जींस में भी, खूब गहरे मेकअप किये, कुछ मकानों में छत पर से भी,
पास ही में वो दारू का ठेका भी था, बगल में एक चाय पकौड़ी की दूकान, जहाँ बेंच पर कुछ लोग बैठे थे, बायीं ओर की एक गली में सड़क पर ताज़ी मछली बिक रही थी
दो भंडुए पीछे गुड्डी के पड़ गए ,
" हे नयी आयी है क्या , ...चल मेरे साथ " एक बोला
" चल न , वरना यहां , आठ दस तो अभी बैठने वाले मिल जाएंगे , जाँघों में ताकत तो तेरे बहुत है ,.... चार टका तेरा , बाकी हमारा। आखिर पुलिस को भी खिलाना पड़ता है , दादा लोगों को ,... "दूसरा बोला
" चल हट , आठ दस से मेरा क्या होगा ,...और ये चार टके पे नहीं सौदा होगा। " गुड्डी ने एक रंडी वाले अंदाज से उसे झिड़का , और आगे बढ़ गयी।
तब तक रीनू ने किसी से पान की दूकान के बारे में , पूछा तो टिकट वाले ने बताया था ठेके के बाद की दूसरी गली में और उसने भी वही बताया की सबसे अच्छी तो एक है जो पेसल डबल जोड़ा बेचता है , लेकिन , वो उस गली ,...
वो गली सच में ‘सड़क छाप’ थी , सड़क के दोनों ओर रंडिया बन ठन के , कोई इशारे से बुलाता तो कोई हाथ पकड़ कर ही ,... चारों ओर शोहदे , सड़क छाप। कोई आँख बचा के झट से घुस जाता तो कोई सिर्फ मोल भाव में ही मजे ले रहा था।
गुड्डी जैसे ही गली में घुसी ,सब की आंख वही टिकी ,
और पान वाले से उसने छह जोड़े डबल पेसल पान बंधवाये , दो जोड़े उसने और बाँध दिए , बोला ,
" एक भी किसी मर्द को खिला देगी न तो बकरा सांड हो जाएगा , लेकिन तेरी जांघ में ताकत है , तू झेल लेगी। नयी आयी लगती है , ... चल तुझे चंदा बाई के कोठे पर रखवा देता हूँ , ... "
पान का उसने पैसा भी नहीं लिया ,गुड्डी ने सिर्फ एक बार झुक कर अपने जोबन की झलक दिखला दी और वादा कर दिया कल पक्का , आज किसी के साथ है
उसी पान के दूकान पे एक औरत सिगरेट सुलगा के खड़ी थी, थोड़ी भरी देह की, पान खाये लाल लाल होंठ, और उस की तेज निगाहों ने पहले तो गुड्डी को ऊपर से नीचे तक देखा और गली के मोड पे खड़े गुड्डी के भैया पे निगाह पड़ गयी, और मुस्करा के बोली,
" वो स्साला भंडुआ,... तेरे साथ है क्या " और गुड्डी ने गली के मोड़ पे देखा तो ये, बस झट से गुड्डी ने कहानी बताई,
वैसे तो रीनू ने गुड्डी को ये टास्क दिया था, रंडियों के मोहल्ले के अंदर पंद्रह बीस मिनट रह के और पान की दूकान से पान लाना,
लेकिन उसके भैया, उनके अंदर हजार गुण हों लेकिन एक खराबी थी, केयर करने वाली और ये खराबी बड़ी तगड़ी थी। तो गुड्डी के साथ तो नहीं लेकिन काफी पीछे पीछे, और इधर उधर की रंडियों को देखते जैसे कोई समझे ये भी ग्राहक है कोई नया माल देख रहा है,
लेकिन उस औरत की तेज और अनुभवी आँखों ने समझ लिया थी को वो कोई ग्राहक नहीं है इस नयी चिड़िया के साथ है,
" तुझे फंसा के लाया है न " उस औरत ने गुड्डी की ओर सिगरेट बढ़ाते हुए कहा ,
" हाँ "गुड्डीने सुट्टा मारते हुए कहा,
और फिर जोड़ा की हम दोनों एक होटल में हैं पांच दिन से, पैसे वैसे सब कब के खलास, तो दो दिन पहले स्साला भंडुआ बोला की मान जा तो एक ग्राहक कोई ले आता हूँ , मोटा असामी होगा तो दे जाएगा तगड़ा। लेकिन,
" कोई नहीं आया न,"
मुस्करा के वो औरत बोली, फिर जोड़ा " मेरा नाम मेरा नाम गुलाब बाई है,सब मौसी बोलते हैं, बीस साल से यही काम कर रही हूँ नया पंछी देखने का,... जिसको जिसको कोठे पे बैठाया, उसका उसका डंका बज गया, ...तेरा नाम क्या है "
" गुड्डी, गुड्डी बाई " गुड्डी के मुंह से निकल गया फिर उसने जोड़ा,
" नहीं, आया था एक आया था लेकिन तीन दिन में एक से क्या,... तो मैं खुद बोली यार बेचना है कोई चीज तो बाजार में बेचो न, यहाँ कहाँ कहाँ से ग्राहक ढूंढोगे और होटल का किराया अलग "
" एकदम सही कहा तूने, बाजार की चीज बाजार में ही बिकती है, किसी को कोई चीज लेनी हो तो मालूम होगा जहाँ मिलती है वहीँ जाएगा न और जब से गली गली में स्पा, पार्लर खुल गए हैं और होटल वाले कस्टरमर सब वही, हजार पांच सौ में सर्विस के नाम पे सब मिल जाता है। लेकिन तूने सही किया, देख चीज तेरी है तो बेचने का हक़ तेरा, और वो स्साला तेरा भंडुआ, लौंडा टाइप उसके बस का कुछ नहीं है , कोई भंडुआ उसको पुलिस का डर दिखा के तुझे गड़प कर देगा या वो तुझे खुद ही औने पौने किसी कोठे पे बेच देगा। और मान लो तेरे होटल में रोज कोई पकड़ के ले भी आया तो वो स्साला बहनचोद कितना देगा, पांच सौ, हजार, दो हजार और यहाँ तो चार पांच घंटे में तू कमा लेगी इस रूप और जोबन पे। " गुलाब बाई बोली,
असली खेल था मेरी बहिनिया और गुड्डी बाई की भौजी रीनू का, जो उसने तीन तीन मर्दों की मलाई गुड्डी के ऊपर क्रीम के साथ लपेटी थी, चेहरे पे, गले पे जुबना पे, और मरद की मलाई, पसीने और सस्ते परफ्यूम की महक का जो जबरस्त महक वाला कॉकटेल बना था व्ही सब ग्राहकों की नजर, भंडुओं की निगाह गुड्डी बाई की ओर खींच रहा था, मर्द की महक जिस लड़की के देह में रची बसी हो, जैसे गौने की रात के बाद बार बार मर्द के नीचे आके जब नयी दुल्हन नीचे उतरती है तो एक अलग ही महक उसकी देह से निकलती है, जैसे पद्मिनी नारियों की देह से कमल की महक निकलती है एकदम उसी तरह अलग सी महक
और गुलाब बाई ने उस महक को पहचान लिया था, और समझ गयी थी, रुप रंग, जोबन बारी उमरिया के साथ ये महक, ग्राहक तो दस गली छोड़ के सूंघते सूंघते इस के पास आएंगे. गुड्डी की भी गुलाब बाई से जम गयी थी तो उसने पूछ ही लिया
" कैसे मौसी " गुड्डी की आँखे चमक गयीं, चेहरा ख़ुशी से दमक गया।
" अरे देख, अगल बगल देख साले जितने चक्कर काट रहे हैं मरद,... सब की निगाह तेरे पे ही है, और हजारो यहाँ हर गली में रोज चक्कर काटते हैं और सैकड़ों रोज बैठते हैं,... बस जोड़ ले। तुझे कभी ग्राहक की कमी तो होगी नहीं, एक को निपटा के बाहर निकलेगी तो दूसरा तुरंत,... तो ये साले पांच दस मिनट से ज्यादा कोई टिकते नहीं, तो एक घंटे में कितने, " मौसी ने पूछा
गुड्डी की मैथ्स अच्छी थी, झट से बोली, मौसी छह,।
" चल पांच मान ले, अरे अपनी मशीन धोएगी, साले का कंडोम फेंकेगी, दल्ले सब कंडोम गिन के ही हिसाब करते हैं, उस का पचास रूपया अलग से, और एक बात, सौदा नीचे वाले का है, जब वो पेंट खोले उसके साथ ही बोल देना की ऊपर वाला छूना है तो उसका पैसा अलग और चोली खोलने का तो दो गुना, टाइम भी तो एक्स्ट्रा खाटी होता है, तो पांच और पांच घंटे में पच्चीस, नहीं तो बीस, १०० रूपये भी जोड़ तो २००० हो जाएगा और तेरा तो इसका तिगुना चौगुना, चलेगी क्या,... लेकिन अभी तो तेरे साथ वो, "
मौसी ने हिसाब समझाया,
" हाँ आज वो दो तीन को और ले आया है पिक्चर हाल में कुछ तो स्साले देंगे " गुड्डी मुंह बना के बोली,
" सही कह रही है, लेकिन मेरी बात याद रखना और तेरा नंबर नहीं मांग रही हूँ लेकिन ये कार्ड रख ले काम आएगा, मर्जी तेरी, लेकिन जब तू चाहे " और कार्ड उसने गुड्डी को पकड़ा दिया लेकिन गुड्डी कार्ड देख के चौक गयी, प्रेम चाय शाप।
" लेकिन मौसी ये तो, " कार्ड देख के गुड्डी बोली,
और वो हंस पड़ी,
" यहाँ मैं नहीं मिलूंगी, बस इस गली के अंत में चाय की ये दूकान है। दूकान के अंत में एक पर्दा है बस बिना कुछ बोले वो पर्दा हटा के अंदर आ जाना, वहां एक बंदा हरदम चौबीस घंटे रहता है उसे कार्ड दिखा देना या खाली बोल देना, गुलाब मौसी से मिलना है वो ले आएगा, या फोन भी करना, तो बस मिस्ड काल मार देना, मेरा कोई बंदा आधे घंटे में वापस फोन करेगा, चल मैं भी चलती हूँ तू भी चल वो स्साला कैसे घूर रहा है, लेकिन एक बात बताऊँ, ....तेरा ख्याल करता है वो "
और एक बगल की गली से वो अंदर और गुड्डी भी पान बाँध के वापस,
हाँ गली से बाहर निकलते समय एकदम एक लड़का सा , उसके पीछे ,...
" हे देती है क्या ,... "
" क्या लेगा , " कमर मटका के गुड्डी बोली , और उसके पाजामे का नाडा पकड़ के खींच दिया ,
" अरे अभी खड़ा वडा होता भी है कि नहीं , ... चल जा अपनी आपा से ६१ -६२ करवा ले , देख कुछ सफ़ेद सफ़ेद निकलता है की नहीं , अगर एकाध बूँद भी निकला न तो तेरे लिए चाइल्ड कंसेशन "
अगल बगल खड़े सब हंसने लगे ,
बिना चंदा दिए.. धंधा... उन्हें कबूल कैसे होता...
टिकट बाबू तो अपना हीं जुगाड़ लगा रहा है...
हाथ में सिगरेट मुँह में धुआँ .. लगे पचासी झटके....