• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
भाग ९०

वह रात
१९,२४, २५९

--



--
अबकी जो सास बोलीं तो मैं चिढ़ाते बोली " अरे अभी हमरे सास क पूत आ रहा है, नम्बरी बहनचोद, मादरचोद, झड़वा लीजियेगा न उससे जो मजा बेटे के साथ है वो बहू के साथ थोड़ी है , ... "

तबतक बाइक की आवाज सुनाई पड़ी, हल्की सी दूर से आती हुयी,



मेरी सास खिलखिलायीं, " आ गया तेरा खसम, अभी ठोकेगा मेरी समधन की बिटिया को "

"एकदम आपकी समधन ने दामाद किसलिए बनाया था उनको, इसीलिए तो लेकिन आज मेरी सास का पूत पहले मेरी सास को,... "

हँसते हुए सास की बिल में एक साथ दो ऊँगली ठेलते हुए मैंने उन्हें चिढ़ाया।



लेकिन बाइक की जैसी ही रुकने की आवाज आयी, मेरा मन कुछ आशंका से भर गया,... ये उनकी बाइक की आवाज तो नहीं थी, फिर मैंने मन को समझाया। क्या पता उनकी बाइक खराब हो गयी हो इसलिए किसी दोस्त की बाइक से या, कोई दोस्त छोड़ने आया हो,

जल्दी से मैंने और सासू जी ने अपनी साड़ी ठीक की,

सांकल की आवाज, साथ में जोर से दरवाजे को खड़काने की आवाज आयी, मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया,नौ साढ़े नौ हो गया था, पूरे गाँव में सोता पड़ा था, और सामने मेरे,

===

चिंटू इनका खास दोस्त, बगल के गांव का, एकदम बदहवास, बाल बिखरे, शर्ट की बटन भी जल्दी में उल्टी सीधी बंद,

मैं किसी अनहोनी की आशंका से घबड़ा उठी, मेरी सास के तो बोल नहीं फूट रहे थे,


" का हुआ चिंटू भैया, तोहार भैया,.... " बड़ी मुश्किल से मैं बोल पायी।

चिंटू मुझे पल भर देखता रहा, फिर बड़ी हिम्मत बटोर के रुक रुक के बोल पाया,

" भौजी,.... भैया,... अस्पताल,... पुलिस,"



मुझे तो जैसे काठ मार गया, कुछ सूझा नहीं थोड़ी देर को, लेकिन फिर हिम्मत कर के मैं बोली,

" चिंटू भैया अंदर आइये, बैठ के बात करिये, "

मेरी सास पर तो जैसे बज्र गिर गया था, मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे, बस पथराई आँखों से मुझे देख रही थीं। अब सब मुझे ही सम्हालना, अपने को भी सास को भी.


चिंटू बैठ गया था, मैं उसके लिए पानी ले आयी, और पानी पी के थोड़ी उसकी हालत ठीक हुयी। उसने बोलना शुरू किया,

" भैया,... "

" का हुआ भैया को " अब मेरी सास से रहा नहीं गया, वो बोल पड़ीं। मैंने इशारे से उन्हें चुप रहने को बोला और चिंटू के हाथ में दुबारा पानी की ग्लास पकड़ा दी।

पानी फिर पिया उसने, सांस ली और बोला,

" भैया कहलवाए हैं, ... "



और अब मेरी और मेरी सास की साँस फिर चलना शुरू हुयी। मुझे मालूम था की किसी को खाली पानी नहीं देते, झट से मैं एक प्लेट गुझिया ले आयी,



" भैया, गुझिया खा लो, अपने हाथ से बनायी हूँ, इतना दूर से आ रहे हो, पहले खा लो, फिर पानी पी के आराम से बताओ। " मैं बोली,

सास मेरी बगल रखी बसखटिया पर बैठ गयीं, मैं खड़ी ही रही और चिंटू ने बोलना शुरू किया,

कुल मिला जुला के बात यह थी की परेशानी इनकी नहीं नन्दोई जी की थी, बल्कि नन्दोई जी के एक दोस्त की, एकदम घर ऐसा दोस्त, सगे भाई से बढ़कर,
 

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
हादसा



शहर में नन्दोई जी को कुछ काम था तो सुबह ही वो और इनके दोस्त गए थे, शाम को दोनों लोग लौट रहे थे, अलग अलग बाइक पे, रास्ते में उनके दोस्त का ऐक्सिडेंट हो गया, इनके दोस्त की बाइक किसी को बचाने के चक्कर में किसी पेड़ से टकराई और दोस्त को काफी चोट आयी है। होश में नहीं है. उसे लेकर नन्दोई जी पास में ही एक ट्रामा सेंटर में,.. जो सड़क के बगल में ही था पहुंचे।

एडमिट तो उसने कर लिया, लेकिन एक्स रे और बाकी कुछ नहीं हो पा रहा है. लाइट नहीं है, जेनरेटर उसके पास है नहीं, और खाली एक कम्पाउंडर है , बोल रहा है डाक्टर सुबह आएंगे।

और एक चक्कर पुलिस का हो गया है,....एक कोई पुलिस वाला था वो नन्दोई जी के पीछे,

अब वो अपनी बाइक पे किसी तरह लाद के ले आये थे तो उनके भी सारे कपड़ो पे खून लगा था,

बस पुलिस वाला उनके पीछे की ये तो पुलिस केस है पहले थाने चलो, बयान होगा। उन्होंने सौ पचास दे के निबटना चाहा लेकिन पुलिस वाला लम्बा हाथ मारना चाहता था, उसने उस कम्पाउंडर को बोल के उनका भी खून निकलवाया लिया जांच के लिए , कि दारु पी के गाड़ी चला रहे थे . और थोड़ी बहुत तो उन्होंने पी रखी ही थी.

वो चाहते थे की अपने दोस्त को किसी ढंग के नर्सिंग होम में ले जाए लेकिन ट्रामा सेंटर वाला छोड़ने को नहीं तैयार, और फिर पुलिस केस एक बार हो गया तो और मुश्किल। वैसे भी बिना जान पहचान के रात में कौन नर्सिंग होम वाला सुनता है।



तो नन्दोई जी का फोन आया इनके पास, बस,

चिंटू कुछ रुक के बोला,

" भैया से ज्यादा किसकी ताकत होगी, पुलिस दरोगा, थाना तहसील, शहर में भी उनका तो नाम ले के कितने बार काम हो जाता है, तो इसलिए, ... "



कोई इनकी तारीफ़ करता है तो मेरा सीना ख़ुशी से फूल जाता है, इतना अच्छा लगता है की बस, मैंने प्लेट में से एक बड़ी सी फूली हुयी गुझिया निकाल के चिंटू को पकड़ाई,

" अरे भैया एक गुझिया और लो, अरे भौजी के हाथ से, अरे हमरे हाथ से नहीं खाये थे न "



माता जी की, मेरी सासू की चिंता दूर हो गयी थी वो भी अब अपने रंग में आ गयीं, चिंटू को चिढ़ाया, "अरे कैसे देवर हो, भौजी दे रही है और, ... "

चिंटू ने मुस्कराकर गुझिया गप कर ली, फिर आगे की बात बताई,, वो जो सुविधा नर्सिंग होम है न ,



" हाँ हाँ नाम तो हम भी सुने है बहुत बड़ा है जिला अस्पताल तो बच्चा लगता है, उसके आगे, पूरे शहर में नाम है लेकिन महंगा भी " मैंने जोड़ा,

" हां उहे लल्लू सिंह क है, लेकिन जो जो भर्ती हुआ तो दो चार बिगहा खेत तो गिरवी रखाया समझ लीजिये, लेकिन चलाते तो उनके बेटे अक्षय परताप हैं , वो भैया के जिगरी, भैया बरसते पानी में रात को कह दें तो रात भर खड़े रहें, लल्लू सिंह तो खाली, आपन राजनीति,... अबकी जिला पंचायत लड़ेंगे, "

गुझिया खाते हुए चिंटू बोला, फिर जोड़ा,


" भैया अक्षय बाबू के फोन घुमाये, स्पीकरवा ऑन था, बाबू साहेब पे तो अइसन असर हुआ, बोले, भैया आपके बहनोई हमारे बहनोई। मेहमान जी की बात है, हम अभी शहर से बाहर है नहीं तो खुदे आते, मैनेजरवा क भेजते हैं सब इंतजाम कर देगा, आप को तो जानता है अच्छी तरह से, बस फोन रखिये,

और ओकरे बाद भैया कउनो सी ओ है उनको फोन लगाए, वो तो अइसा गरियाये दरोगवा को, बोले कुल ट्रामा सेंटर से महीना बंधा है तब भी स्साले चवन्नी अठन्नी के लिए , पता करता हूँ कौन है अभी छह महीने लाइन हाजिर होगा, साहेब लोगन क मेहरारू क पेटीकोट धोय धोय के,… कुल हफ्ता वसूली भूल जाएगा, "



मैं ख़ुशी से चिंटू का मुंह देख रही थी, हलके से बोली , 'फिर,'




और एक गुझिया पकड़ा दी,



गुझिया खाते खाते चिंटू बोला,

" हम तो भैया से बोले की, भैया कुल काम तो हो गया अब आपके जाने की कौन जरूरत, तो वो बोले की नहीं जीजा बहुत परेशान है हमार जाब जरुरी है, हम समुआ के साथ जा रहे हैं तू घर जाय के अपनी भौजी और माई को बता देना नहीं तो रात भर दोनों जनी थारी लिहे अगोरीहें, न खइहें न सोइहें, यह लिए, और हम से बोले हैं की तू दो चार लौंडन के साथ एकदम भिन्सारे आ जाना, का पता खून वून देवे के पड़े, जीजा उंहा कहाँ इंतजाम करीहें और ओनके निकरे के पहले मैनेजर क फोन आ गया था की भैया,… एम्बुलेंस निकल गयी है। "



" वो जो मार बोल रहा था ट्रामा वाला की जाय न देब, एकबार हमरे यहाँ भर्ती हो गए हैं तो,… "

सासू माँ ने पूछा,





और चिंटू ने हँसते हुए गुझिया ख़त्म करते हुए, कहा, अरे लल्लू सिंह क एमबुलेंस आय रही है सुन क ससुरे क मूत सरक गया, हिम्मत पड़ती उसकी, "



लेकिन मेरे दिमाग में अब दूसरी परेशानी घूम रही थी, चिंटू से मैंने साफ़ साफ़ पूछ लिया, " भैया, तोहार भैया खाना वाना, ... "

वो हँसते हुए बोला,

" भौजी, वो हमार बात सुनते ? लेकिन माई आके खड़ी होगयी सामने, थाली लेके, खाना खाई के ही निकरे हैं उनके जाने के बाद हम चले हैं। हाँ और बोले हैं की अपनी भौजी से बोल देना परेशान एकदम मत होंगी, हस्पताल में फोनवा लगता नहीं है, वो दोपहर तक पक्का आ जाएंगे "



मैंने चैन की साँस ली।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
सास बहू



थोड़ी देर में मैं मेरी सास और मैं हम दोनों पलंग पर थे लेकिन नींद कोसो दूर थी। मेरे मन में इन्ही को लेकर चिंता थी। मुझे पूरा मालूम था की ये एक बार पहुँच गए हैं तो सब कुछ सम्हाल लेंगे। पुलिस, हस्पताल सब. लेकिन मन का क्या करें, मन का काम परेशान होना है, वो हो रहा था. मैं अपने मरद के लिए सासू माँ अपने बेटे और दामाद दोनों के लिए.

मैंने खुद को समझाने के लिए सासू माँ को समझाना शुरू किया,

" माता जी परेशान न होइए, वो पहुंच गए होंगे कभी के, उन्होंने तो पहले ही कहलवा दिया था की वहां से फोन नहीं हो पायेगा, सब ठीक होगा, नन्दोई जी को भी कुछ नहीं होगा, "

" मालूम है मुझे लेकिन क्या करूँ मन का,... बार बार यही सोचती हूँ जब चिंटू आया था कैसी घबड़ाहट हुयी लेकिन तुमने कैसे सम्हाला, बहुत हिम्मत है तुममे "

मुझे बाँहों में भींच के बोलीं वो।



'असल में मेरी एक सास हैं इस घर में और उनके रहते मुझे मालूम है इस घर में कोई अलाय बलाय नहीं आएँगी आने के पहले वो उसकी माँ चोद देंगी, बस उन्ही सासू माँ के चलते मेरे में हिम्मत आ गयी है अब मैं किसी से भी नहीं डरती, न घबड़ाती, मेरी सासू माँ हैं न मेरे साथ "

उन्हें और कस के भींचते हुए मैंने बोला।

" तू पागल है"

ये कह के उन्होंने अपना फैसला सुना दिया, और दुलार से मेरा सर सहलाने लगीं। लेकिन फिर अपनी परेशनी सुना दी,


" पता नहीं क्यों अभी भी एक तो दिल धड़क रहा है, नींद नहीं आ रही "

मैं समझ रही थी उनका टेंशन और मेरी हालत कौन सी अच्छी थी।

" रुकिए माता जी " कह कर मैं इनकी अलमारी के पास गयी और खोला।

पीने के मामले में ये कभी कभार वाले थे लेकिन नन्दोई जी तो पीते ही थे और वो आते तो रोज बोतल खुलती भी ख़तम भी होती। और ये साथ देते ही, इसलिए इनकी अलमारी में दो चार बोतल नयी हरदम ही रहती, और मर्द तो हर घर में लेकिन औरतें भी, होली में,




मेरी इन्ही ननद ने चार पाउच, देसी वाले सीधे, होली का परसाद है कहकर, फिर इतनी चढ़ी मुझे की रंगे पुते अपने सगे समान ममेरे भाई को पटक के जबरदस्ती, देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ के चोद दिया, वो चिंचियाता रहा और तो और फिर जब वो मेरे ऊपर चढ़ा था, तो ननदोई जी ने पीछे से उसकी गाँड़ भी मार ली, और मैं समझ रही थी, मेरा देवर है तो उनका साला लगा

अलमारी से बोतल निकाल के मैं ग्लास लेने जा रही थी तो मेरी सास ने टोका,

"कहाँ आधी रात में ग्लास लेने जा रही है , ला सीधे बोतल से ही"




और बिस्तर पर सास के बगल में बैठ के मैंने एकदम छोटी सी घूँट, हल्की सी कड़वी लगी लेकिन मैं घोंट गयी और मेरे मन में आइड्या आ गया की सासू माँ को कैसे पिलाया जाय.

मैं अपनी सास के ऊपर लेटी,

उन्होंने धीरे धीरे खींच के मेरी साड़ी उतार के नीचे और मैं क्यों छोड़ती। थोड़ी देर में सास बहु की साड़ियां एक साथ पलंग के नीचे और सास बहू पलंग पर,

और अबकी बोतल से ढेर सारा मेरे मुंह में, थोड़ी देर मुंह में गोल गोल घुमाती रही, फिर दोनों हाथों से कस के सास के गुलाबी मांसल गाल दबाया, उन्होंने खुद मुंह खोल दिया और मेरे मुंह से शुद्ध दारु, मेरी सासू के मुंह में।

और उसके बाद मेरी जीभ, सासू लंड चूसने में जरूर पक्की होंगी जिस तरह से वो मेरी जीभ चूस रही थी, क्या मस्त।


उसी समय मैंने तय कर लिया जल्द बहुत जल्द अपने सामने सासू के मुंह मोटा लौंड़ा जरूर घुसवाऊँगी, और किसका सासू के पूत का,… मस्त चूसेंगी ये।



और जब तक वो मेरी जीभ, मेरे हाथ, उनके जोबन का रस ले रहे थे, मेरी गुलाबो उनकी चमेली पर घिस्से मार रही थी,




और सिसकते हुए जब उन्होंने मेरे होंठों को छोड़ा, एक बार फिर बोतल मेरे मुंह में और दो पेग के बराबर थोड़ी देर में मेरे मुंह से होते हुए सास के मुंह में, और अबकी मैंने उनके दोनों होंठों को अपने होंठों से दबोच लिया, कस कस के चूसंती रही, जब तक एक एक बूँद दारु की सासू जी के पेट में नहीं उतर गयी।



लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थी,


एक बार मेरी ट्रिक और चली पर चौथी बार,

पहले तो जब बोतल मेरे मुंह में लगी, मैंने पहली की तरह दारू मुंह में डाली, बस सासू जी ने मेरी कलाई पकड़ ली। उनकी पकड़ और सँड़सी मात, और गटर गटर मुंह से मेरे पेट में जाने लगा, कबतक मैं मुंह में रोक के रखती। और जो थोड़ा बहुत बचा था, मेरी सास ने अब अपने होंठ, मेरे होंठों पर चिपका दिए और मेरे मुंह से वो भी मेरे पेट में चला गया.

अब बोतल उनके हाथ और उन्होंने जो किया में सोच भी नहीं सकती थी.


जिन बड़ी बड़ी चूँचियों का दूध पीके मेरा मरद इतना तगड़ा हो गया की उसका खूंटा हाथ बाहर मोटी दीवाल में भी छेद कर दे.


बस वही मस्त चूँची बड़ी बड़ी भी कड़ी कड़ी भी, मेरे खुले होंठों के ऊपर, कभी निपल रगड़ देती कभी उठा लेती,





फिर बूँद बूँद बोतल से मदिरा और जोबन दोनों का नशा मेरे होठों से मुंह में सरकता हुआ और मेरी धमनियों शिराओं से सीधे मेरे तन मन को पागल करता,

लेकिन थोड़ी देर में मैंने बोतल सासू की माँ के हाथ से छीन ली, जवानी की ताकत, और बोली,

" आपके बेटे को ऐसे पिलाती हूँ,..."

मेरी गुलाबो सासू जी के मुंह से सटी हुयी और बोतल से बूँद बूँद पहले मेरी क्लिट को भिगोता, फिर दोनों गुलाबी फूली फूली फांको को गीली करता सासू माँ के खुले मुंह, उन्होंने खुद मुंह खोल रखा था और चुसूर चुसूर पी रही थीं, लेकिन थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, पहले तो जीभ निकाल के उन्होंने उन दारू से भीगी गुलाबी रसीली फांको को छूने की कोशिश की, फिर गरदन उठा के मेरी दोनों फांको को अपने होंठों के बीच में,



मन तो मेरा भी कर रहा था, मैंने भी अपनी रसीली चुनमुनिया रगड़नी शुरू कर दी और सासू जी ने चूसना शुरू किया,




कई बार तो मुझे लगता था की ये जो जबरदस्त चूत चटोरे हैं ये उन्होंने अपनी महतारी से खून में पाया है,

बोतल मैंने नीचे रख दी थी, आधी से ज्यादा खाली कर दी थी हम दोनों ने और हम दोनों पर अब उसका असर चढ़ गया था,

कुछ देर तक तो मैं अपनी बुर सासू जी के मुंह पे रगड़ती रही लेकिन मुझे वो सुरंग दिखी जिसमें से मेरे बालम निकले थे और रोज मेरी सुरंग में बिना नागा घुसते हैं। देख के मेरा मन ललचा गया, और मैं सासू से बोली,


" सासू माँ बहू का काम है सास की सेवा करने और मैं आप से करवा रही हूँ, पहले मैं "
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
सास की सेवा


और मैं सास की दोनों टांगों के बीच,


जैसे अगर आज नन्दोई जी वाला झंझट नहीं हुआ होता तो सासु का बेटा आज करता,

एकदम उसी तरह पहले उनकी टाँगे फैलायीं, फिर दोनों खूब मांसल जाँघे, दोनों हथेलिया मेरी सरसराती जाँघों को सहलाती रहीं, फिर मैंने दोनों हाथों की उँगलियों सास के भोंसडे को कस के फैलाया, चार बच्चे निकल चुके थे लेकिन अभी भी बहुत कसी थी,


मुझे एक शरारत सूझी, सास के उन खुली फांको के बीच, दारू की बोतल खोल के टप टप,

जैसे ही वो शराब की बूंदे, सासू माँ के खुले फैले भोंसडे की फांको को भिगोती रगड़ती अंदर घुसती, दरार को दरेरती, सास मेरी सिहर जातीं कांपने लगती। फिर मैंने अपनी उँगलियों से दोनों फांको को पकड़ के बंद कर दिया,

दो चार ढक्क्न भर के दारू अंदर, घुलती छनती,


जैसे मेरी सासू माँ के छोटे बेटे के पास,... सांड़ ऐसे लम्बे मोटे मूसल के अलावा भी औरत को पागल करने वाले दर्जन भर हथियार थे, उनकी जीभ, उनके होंठ, उँगलियाँ और सबसे खतरनाक तो आँखे, गौने में बिदाई करा के लौटते हुए, उन्होंने बस तिरछी निगाह से एक बार देख भर लिया और मेरी मेंहदी लगी ऊँगली से उनकी ऊँगली छू भर गयी, बस सीना मेरा ऊपर नीचे होने लगा, चोली फाड़ने लगा, कैसे जल्दी ससुराल पहुंची कब गौने की रात आये और साजन की बांहों में लिपट जाँऊ ,...

तो बस उसी तरह,... मेरी सास की बहू के तरकश में अब बहुत तीर थे ,

सास की बुर की कुप्पी में दारू भरी थी और मैंने हथेली से मसलना शुरू कर दिया और बीच बीच में अंगूठे से क्लिट को रगड़ देती,



बस सासू माँ के मोटे मोटे बड़े बड़े चूतड़ उछल पड़ते।

थोड़ी देर पहले तक तो मैं उन्हें गरम कर रही थी, लेकिन झाड़ नहीं रही थी,

ये सोच के सास का बेटा आएगा तो झाड़ेगा, मादरचोद अपनी माँ को चोद चोद के,

लेकिन वो तो टल गया,

चुदवाउंगी तो जरूर इनको अपने मरद से वो भी अपने सामने आज नहीं तो किसी और दिन.

लेकिन अब बेटा नहीं तो बहु है न, जब तक इन्हे झाड़ूंगी नहीं अच्छी नीद नहीं आएगी इन्हे, और फिर मैंने चूसना शुरू कर दिया,




शुरू से ही कस कस के और बीच बीच में कभी दो ऊँगली कभी तीन ऊँगली,... पूरी ताकत से और साथ में क्लिट भी चूसती, पांच छह मिनट में वो झड़ने के कगार पर आगयीं। लेकिन मैं रुकी नहीं

वह झड़ती रहीं, मैं चूसती रही,


वो लाख कहती रही अपनी समधन को गालियां देती रही, तोरी महतारी क भोंसडे में बाइस पुरवा क कुल मरद समाय, गदहा चोदी,

लेकिन मेरे ऊपर कुछ असर नहीं पड़ा उनकी समधन वो जो चाहे कहें उनका गरियाने का रिश्ता,... एक बार झड़ के जब वो रुकी तो मैं भी रुकी लेकिन फिर जीभ की जगह उँगलियाँ और थोड़ी देर में उसी हालत में वो।

तीन बार झाड़ के मैंने उन्हें थेथर कर दिया लेकिन वो भी

थोड़ी देर में हम दोनों 69 वाली पोजीशन में थे,


वो मेरा चूस रही थीं और मैं उनके भोसड़े से तीन बार के झड़ने के बाद बह रही चाशनी चाट रही थी और सोच रही थी यही चासनी अपने मर्द को चटाउँगी जरूर।

लेकिन जबरदस्त चटोरी थी मेरी सास,

पांच मिनट में मैं भी झड़ रही थी, दो बार झड़ने के बाद मैं भी अलग हुयी।

रात बहुत हो चुकी थी,

हम दोनों सास बहू अच्छी तरह झड़ गयी थीं,

मैंने कल रात भी इनके साथ रतजगा किया, भाई अपनी सगी बहन को गपागप चोद रहा हो, वैसा मजेदार सीन छोड़ के किस भौजाई की आँख लगेगी और आज दिन भर भी देवरों के साथ कुश्ती, अपनी सास के लिए गाँव के आठ लौंडो की मलाई अपनी कुप्पी में भर के लायी थी, लेकिन एक बात मन में फांस की तरह चुभ रही थी,



आज इनकी महतारी बच गयी बेटवा क लंड घोंटने से, बहू के सामने।



मैंने सास को कस के अपनी बाहों में भर के दबाते हुए गाल पे चुम्मा ले के कहा,

" आज तो आप बच गयी, लेकिन एक बार मेरी ननद को जाने दीजिये, मेरी सास की कसम,...इसी बिस्तर पे आपके बेटे से न चुदवाया आपको तो,... वो भी अपने सामने"





मेरी सास मुझे बीस नहीं पच्चीस थीं, मजाक और मस्ती दोनों मामले में, कस के मेरे जुबना मीजते हंस के बोली,

" अरे रंडी महतारी क जनि, तू क्या चुदवायेगी, और वो तेरी छिनार महतारी क दामाद वो क्या चोदेगा, ...मैं खुद उसे चोद दूंगी।




हाँ बात तेरी एकदम सही है एक बार अपनी ननद को ससुराल जाने दे, आज तो वो नहीं थी, कोई बात नहीं लेकिन कल से तो, … लेकिन पांच छह दिन की बात और ये बात तोहार एकदम सही है, कुछ भी है, है तो ससुरैतिन, कहीं ससुरारी में केहू के सामने मुंह खुल जाए, या यही पे हमरे तोहरे सामने, तो घबड़ा जिन।

एहमे न तोहार दोस न केहू और का, जो आज क मामला गड़बड़ाय गया,.... हमहुँ तो सब ओकरे पसंद क खाना बनाय के बैठे थे,...हमरो मन एकदम गरमाया था"


मैंने ख़ुशी से सास का मुंह फिर से चूम लिया. जो मैं सोचती थी वही मेरी सास चाहती थीं, दुनिया में ऐसी सास कहाँ मिलेगीं।

अपने बेटे की तरह मेरी सास भी मेरे जुबना की दीवानी थीं। उसे सहलाते हलके हलके दबाते बोली,

"गेंदवा तोहार एकदम तोहरी महतारी पे पड़ा है, बड़ा बड़ा कड़ा, तबे गांव क कुल लौंडा नयकी भौजी, नयकी भौजी करते रहते हैं। "





ये बात सास की मेरी एकदम सही थी और गौने आने के कुछ ही दिन बाद अपनी सास की देखादेखी मैंने ढक्क्न लगाना बंद कर दिया, चोली भी सब एकदम टाइट और लो कट वाली, और फिर इत्ते बड़े बड़े जोबन पे आँचल कहाँ टिकता है, तो सब लौंडे बस एक झलक पाने के लिए और मैं भी, भाई उनका रोज इमरती खाता था, तो देवर कम से कम मिठाई क झलक तो देख लें।



और निप पे एक चुम्मा ले के सास ने एक और बात कही,

" तोहार महतारी चाहे मायके क, बचपन क छिनार हों, खानदानी रंडी हो , जबरदस्त लंड खोर, लेकिन बिटीया तीनो मस्त पैदा कीं, सब एक से एक,... माल।"
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
बूआ जी


सास की ये बात भी एकदम सही थी, मेरा मतलब उनकी समधन की बिटियों वाली बात। लेकिन सास ने जो अगली बात कही इनके बारे में तो में चौंक गयी,

" जउन अपनी दादी क बिटिया को नहीं छोड़ा, वो नानी क बिटिया को काहें छोड़ेगा "

दादी की बिटिया मतलब इनकी बूआ, मैं सकते में, क्या सच में मेरे मुंह मुंह से निकल गया और मेरी सास खिलखिलाने लगीं।

" क्यों क्या मेरा बेटा अपनी बूआ नहीं चोद सकता, अरे खाली तोहार ननद छिनार थोड़े ही हैं, हमार ननद कउनो तोहरे ननद से कम थोड़े हैं, सावन से भादों दूबर"
जोर से ठहाका लगाते वो बोलीं।


और मेरी आँख के सामने इनकी बूआ की शक्ल घूम गयी, दुबली पतली, छरहरी, लेकिन असली जगहों पर जरूरत से ज्यादा गदरायी, एकदम टनाटन, और अपनी सास और उनके बीच जो मजाक और खुलापन पहले दिन ही मैंने देखा, मेरा और मेरी ननद के बीच तो कुछ भी नहीं, ....और वो दोनों लोग बोलने से ज्यादा सीधे हाथ पे उतर आती थीं,



सुहाग रात के लिए मेरी ननदे मुझे ले जा रही थीं, कमरे में और पहले मैं सास का पैर छूने के लिए झुकी तो उनके बगल में मेरी मेरा बूआ सास, मुझसे बोलीं,

" अरे बहुत पैर नहीं पैर के बीच में छुओ जहां से तोहार मरद निकला है, उठाय लो लहंगा "

और मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी, हाथ भर का घूंघट काढ़े




लेकिन दिख सब रहा था, और खुद बूआ ने अपनी भौजी का मेरी सास का लहंगा एकदम ऊपर तक,

और मैं समझ गयी की इस घर में फ़ालतू में चड्ढी पहनने का रिवाज नहीं है,... सब दिख गया।


लेकिन मेरी सास कौन कम, उन्होंने अपनी ननद का, लहंगा और ऊपर तक और मुझसे बोलीं

" देख लो, एही कुंए में तोहार ससुर गोता लगाते थे "
मेरी सास की कोई गाँव की जेठानी लगती थीं शायद हिना की माँ, वो अपने देवर की ओर से बोलीं,

" काहें हमरे देवर को दोष धरती हो, यह गाँव क का, पूरे बाईसपुरवा क कुल मरद साले बहनचोद होते हैं और लड़कियां भाइचॉद तो इहो गाँव क रिवाज, "

और जब मैं चलने लगी तो बूआ बोलीं,

" अरे दुल्हन खूब लम्बा मोटा कड़ा मिलेगा, ....रात भर रगड़ के रख देगा, सबेरे दो दो ननदे जाएंगी टांग के लाने के लिए "





फिर मेरी जेठानी से पूछा ,

" तेल पानी कर दिया है न अच्छी तरह से "



बूआ जी की बात पूरी तरह सही हुयी, सुबह सच में दो ननदें टांग के ही ले आयीं, जमीन पे पैर रखते ही वो जोर की चिलख उठती थी। लेकिन अगर पहला दिन नहीं होता तो मैं शायद बूआ जी से पूछ ही लेती

" क्यों बूआ जी, अपने देखा परखा है, ....खाली पकड़ा है की घोंटा भी है।"


बुआ जी से उसी दिन से मेरी खूब अच्छी वाली दोस्ती हो गयी,



पर मैंने सोचा, मामला साफ़ कर लेना चाहिए और मैंने सास से साफ़ पूछ लिया "तो क्या बूआ जी सच में,..."



मेरी सास खिलखिलाने लगी,

" तू भी न पागल, अब ये सब चीज कोई देखता है, अगर तू कहे की मैंने तेरे मरद को उसकी बूआ की टांग उठाते,... घुसाते, पेलते देखा है.... तो नहीं, लेकिन ये सब अंदाज लग जाता है, और उसकी बूआ बचपन की लटपटिया, मुन्ना को ( मेरी सास इन्हे मुन्ना ही कहती थीं ) देख देख के, ....और ५-६ साल का ही तो फरक होगा,"

और सास मेरी घडी की सूई पीछे घुमा के इनके बचपन में पहुँच गयीं,


" जब मैं इसकी नूनी खोल के तेल लगाती थी,"


और मैं सोचने लगी ये कौन बड़ी बात है हर माँ करती हैं, जिससे सुपाड़े की चमड़ी चिपके नहीं

लेकिन जो मेरी सास ने बात बताई तो मैं समझ गयी बूआ जी को, वो बोली

तो उसी समय कहीं भी हों वो, उछल के आ जाती थीं, , और उछलता भी था बहुत वो उस समय, लेकिन थोड़ा बड़ा भी हो गया था, और मैं खूब चिढ़ाती थी,
"अरे बूआ भतीजे में तो चलता है, देख लो बड़े होने पे,..."

और वो मुन्ना को छेड़ती भी खूब थीं और वो चिढ़ता भी बहुत था, वो नौवे या दसवे में था, बूआ उसकी स्कूल से आयीं, मुन्ना नेकर पहनता था बस ऊपर से पकड़ के, चिढ़ाते हुए बोलीं,



" क्यों फड़फड़ाता है बहुत जोर से, ....सफ़ेद सफ़ेद निकलता है की नहीं "





उस समय, अरे वही गुलबिया की सास, बड़की नउनिया, मुन्ना की बूआ की तो भौजी ही लगी, ....जबरदस्त मुंहफट, बिना ननदो को गरियाये , तो वो बोली तोहरे मरद से,

" अरे भैया छोड़ा मत, बहुत तोहार बूआ छौंछियान हई, सफेदा उनके अंदर निकाला, ....अरे जेकर भाई तोहरे महतारी पे चढ़त है, ओकरी बहिन को तो जरूर पेलना चाहिए "


और ओहि साल, बूआ क बियाह हो गया। दो साल बाद, मुन्ना इंटर में था, गरमी क छुट्टी, तो यही बूआ का फोन आया की फूफा कहीं महीने भर के लिए जा रहे हैं वो अकेले रहेंगी, तो मुन्ना को भेज दूँ ।


मैंने चिढ़ाया भी उन्हें की, "ननदोई जी वाला काम करवाना है का" तो वो नंबरी छिनार बोलीं,

" हमार भतीजा,... चाहे जो करवाई। "

और गरमी क छुट्टी में कौन लड़का घर रहना चाहता है तो मैंने भेज दिया। जब वो लौट के आया तो मैंने भी चिढ़ा के पूछा, बूआ के साथ मजा आया, ख्याल रखा बूआ ने, ....तो जो शरमाया वो, "

सास की बात काट के मैं बोली,

"जैसे बिल्ली ने छींके का दही खा लिया हो."




सास मेरी मुस्करायीं बोलीं " एकदम " तो बस मैं समझ गयी।

"अच्छा चलो बहुत रात हो गयी है सो जाओ।" वो बोलीं और दुबका के मुझे कस के सो गयी और थोड़ी देर में मैं भी, ...

उसके पहले मैं सोच रही थी,

मन तो मेरा बहुत था आज ये अपनी महतारी पे, लेकिन चलिए आज नहीं तो पांच छह दिन बाद, और मेरी सास भी खुदे गर्मायी हैं हमरे भतार का लंड खाने के लिए तो इनको तो मैं मादरचोद बना के रहूंगी आज नहीं तो पांच छह दिन बाद,

असल में एक बात और थी।

होलिका माई बोलीं थीं, ... ननद हमर पांच दिन के अंदर गाभिन होंगी और हमको तो लग रहा था कल उनके भैया जस हचक के पेले हैं छह बार आपन बीज अपनी बहन की बुरिया में, ...लेकिन बात तो पांच दिन की थी, तो क्या पता कौन दिन ? अब दो दिन तो निकल गया। पहले दिन तो ननद हमर अपने सगे भैया की सेज पे और और आज तो चलिए सहेलियों के साथ तो कउनो खतरा नहीं है। लेकिन बाकी के तीन दिन भी मैं यही सोचती हूँ , कुछ भी कर के,... एक चीज तो ये जरूरी है मेरी ननद रोज अपने भैया क बीज घोंटे, तो जिस दिन भी गाभिन होने का संयोग हो, हमरे मरद के बीज से गाभिन हों,

दूसरे ये तीन दिन उन्हें ननदोई की परछाई से भी दूर रखना होगा। बस तीन दिन और खाली हमार मरद और उनकी बहिनिया, और कुल बीज बच्चेदानी में ,



जेठानी तो जिस तरह से गयीं है छुटकी ननद को लेकर ये पक्का है अब वो बम्बई वाली हो गयीं, साल दो साल में कभी दिवाली, कभी होली और ये ननद भी गाभिन हो गयी तो इनका आना जाना भी तो,... बस मैं, मेरा मरद और मेरी सास, और एक बार मेरी सास को मेरे मरद के खूंटे क स्वाद लग गया न तो,

बस पांच छह दिन और,...उसजे बाद तो फिर न य बच सकते हैं अपनी महतारी पे चढ़े बिना और इनकी महतारी तो खुदे गर्मायी हैं ।



और सास को पकड़ के मैं भी सो गयी


एक दूसरे को पकड़ के क्या माँ बेटी सोती होंगी, जिस तरह हम दोनों सोये।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
भोर का सपना



मैं और सास रसोई में बैठी मस्ती कर रहे थे, मैं कभी सासू के गोरे गुलाबी भरे भरे गाल मींज देती तो कभी चोली फाड़ते जोबन दबा देती, और छेड़ती



" आ रहा होगा अभी मेरा भतार, बायीं आँख फड़क रही है, आपके भोंसडे को ताल पोखर बना देगा, तैयार रहिये "


" डरती हूँ क्या मैं, " हँसते, मुझे दुलराते वो बोलीं। फिर मुझे छेड़ा,

" तू अपने मायके से चल के,... स्साली चुदवाने के लिए आयी, एकदम कच्ची कोरी, इंटर भी नहीं पास किया था, और धड़ धड़ कर के सेज पे चढ़ गयी, पूरा लम्बा मोटा घोंटने के लिए, जड़ तक, ... और मैं, जिसके भोंसडे से वो निकला है ,... जिसकी नूनी पे तेल लगा लगा के मोटा खम्भा बनाया है, वो मैं डरूंगी।
आने दे तोहरी महतारी के भतार को, वो क्या चढ़ेगा मेरे ऊपर, मैं चढूँगी उसके ऊपर और देखना तेरे सामने पूरा घोंट लूंगी, "


मेरी और मेरी सास में पक्की दोस्ती हो गयी थी, एकदम सच्ची मुच्ची वाली सहेलियों की तरह, माँ को लेकर तो वो बिना गाली के बात नहीं करती थी लेकिन अब मैं भी,...





थोड़ी देर में ये आने वाले थे, छुटकी को छोड़ने गए थे, मेरे मायके ही नहीं सीधे लखनऊ।



मेरी ननद जिस दिन अपने भैया से गाभिन हो के खुश खुश अपने ससुराल गयीं, उसी दिन शाम को छुटकी आ गयी। आ क्या गयी, उसे मैंने बुलवा भेजा, घर से माँ का फोन था, मारे ख़ुशी के उनसे बोला नहीं जा रहा था।



छुटकी का कबड्डी की स्टेट टीम में सेलेक्शन हो गया था।

अभी थोड़ी देर पहले स्कूल से खबर आयी थी, फिर लखनऊ से भी और उसके बाद तो फोन पे फ़ोन। लेकिन चक्कर ये था की दो दिन के अंदर उसे लखनऊ पहुंचना था, वहां पंद्रह दिन का कैम्प था, के डी सिंह बाबू स्टेडियम में और स्पोर्ट्स हॉस्टल में ही रहना,... खाना। और उसके बाद टीम को बंगलौर जाना था इंटर स्टेट कैम्प के लिए।




और वहां फिर इंटर स्टेट के बाद एक और सेलेक्शन होना। नहीं नहीं, नेशनल टीम का नहीं। वो लोग यंग टैलेंट्स, मतलब जिनकी एज कम हों, कभी नेशनल में न रही हों , फर्स्ट या सेकेण्ड टाईम इंटरस्टेट खेल रही हों वैसी २४ लड़कियां चुनते, और उनको ग्रूम करते। अभी नहीं, लेकिन दो चार महीने बाद पटियाला में एक दो तीन महीने की ट्रेनिंग, फिर कई मैच, मतलब वो स्पोर्ट आथारिटी की ही जिम्मेदारी में,


ये सब बात मुझे छुटकी ने बताई, वो जैसे ही आयी उसके पास भी फोन पे फोन ।

लखनऊ में एक कोई जूनियर कोच थीं, रीजनल में छुटकी से मिली थी बहुत इम्प्रेस थीं, उनका फोन था। और ये भी की इंटर स्टेट में प्रो कबड्डी लीग वालों के स्काउट भी आते हैं चुनने के लिए , और अभी लड़कियों की भी एक प्रो कबड्डी लीग चालू होने वाली है तो वो लोग भी यंग लड़कियों के चक्कर में रहेंगे, एक बार उनकी निगाह में जो चढ़ गयी तो उसे भी कॉन्ट्रेट मिल सकता है।

वो तो जोश में थी, लेकिन माँ घबड़ायी थी,

पहली बात लखनऊ अकेले कैसे जायेगी,

चलिए लखनऊ से तो सब टीम वाले, लेकिन यहाँ से लखनऊ,.... मंझली को अकेले छोड़ के माँ भी नहीं जा सकती थी। दूसरे हर माँ की तरह,.... अभी छोटी है, और मोर्चा सम्हाला छुटकी के जीजा ने ने , इन्होने।

वो बोले की देखिये, सचिन तेंदुलकर कितने साल के थे जब इण्डिया की ओर से खेले, तो अपनी छुटकी भी कब्बड्डी की सचिन बनेगी, जल्द नेशनल टीम में आएगी और जहाँ तक लखनऊ जाने का सवाल है , आप क्यों परेशान हैं, मैं हूँ न। मैं ले जाऊँगा साथ।



तो अगले दिन सुबह ये छुटकी को ले के मेरे घर और एक दिन बाद लखनऊ और अब लखनऊ से आ रहे थे , थोड़ी ही देर में पहुँचने वाले थे

सपनों में सब कुछ क्रम से तो होता नहीं,



ये पलंग पर बंधे छने, आंख पे मोटी पट्टी बंधी, काली।






मैंने इन्हे समझा रखा था, ' कच्ची कलियों की तो बहुत फाड़ा तूने, जवान फूलों का भी रस लिया, आज तुझे एक खूब रसीले भोसड़े का रस दिलवाऊंगी, है मेरी एक खास, लेकिन दो शर्त है, एक तो तुझे आँख पे पट्टी बंधवानी होगी, और दूसरे तो तुझे पहले ऊपर चढ़ के चोदेगी, पूरे दस मिनट अगर तुम झड़ गए तो समझ लेना, और अगर नहीं झड़े तो पलट के उन्हें पेल देना, लेकिन झड़ने के पहले उन्हें झाड़ना होगा। "



उनके ऐसे गब्बर मर्द के लिए तो ये कौन बड़ी बात थी, लेकिन सुन के वो छनक गए, बोले

" ले आओ भौंसड़ी वाली को,... फाड़ के चीथड़े चीथड़े न कर दिया, ...पता चलेगा किसी मरद का लौंड़ा घोंट रही है। "

और छनकने के बात ही थी, कच्ची से कच्ची कलियों को भी तीन बार झाड़ने के बाद ही झड़ते थे वो।

लेकिन मान गयी मैं अपनी सास को,

बातचीत में तो बहुत सीखा था मैंने सब मर्दों के साथ वाले दांव पेंच, और मुझे भी घमंड था ऊपर चढ़ के चोदने में मेरा मुकाबला नहीं, इनको और नन्दोई जी के तो ऊपर कितनी बार, फिर नए नए देवरों के साथ भी, लेकिन जब मैंने सास को देखा तब मैं समझी घुड़सवारी के असली गुर। कैसे घोड़े को सहला के, फुसला के कब्जे में किया जाता है, फिर चैलेन्ज, और सास की कलाई में भी अपने बेटे से कम ताकत नहीं थी।

पहले तो ललचाया, सास ने मेरी इनकी कलाई पकड़ी दोनों और बस अपने दोनों निचले होंठों से इनके फनफनाये सुपाड़े को देर तक छुअति रहीं, सहलाती रहीं,




जैसे बदमाश मरद होते हैं, सुपाड़े को रसीली भीगी फुद्दी की फांको पे रगड़ते रहते हैं, औरत को पागल करते रहे हैं पिघलाते रहते हैं लेकिन पेलते नहीं, जब तक औरत खुद चूतड़ न उचकाने लगे, सिसक के पागल न हो जाए, एकदम उसी तरह लेकिन औरतों के पास तो मर्दों से दस गुना ज्यादा हथियार होते हैं। सावन के झूले की तरह वो झोंटा मारती थीं, मजाल है की कमर जरा भी हिले लेकिन उनके बड़े बड़े कड़े जोबना मेरे मर्द की चौड़ी छाती से रगड़ जा रहे थे।



बस थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, नीचे से उन्होंने चूतड़ उछाल के धक्का मारा, मेरी सास से तो वो नहीं पार पा सकते थे लेकिन मैंने भी उन्हें कस के गरियाया,

" स्साले, तेरी माँ बहन का भोंसड़ा मारुं, क्या बोला था चुपचाप दस मिनट चुदवाने को, स्साले तेरी माँ का भोंसड़ा है क्या जो ऐसे नीचे से धक्का मार के घुस जाओगे" "




वो बेचारे, जस के तस, लेकिन माँ का दिल, मेरी सास को दया आ गयी,

जरा सी चीज के लिए बच्चे का मन, कहने को तो उनका चार चार बच्चो का निकाल चुका भोंसड़ा था, लेकिन मैं जानती थी उस गुफा की हालत, गुफा नहीं बिल थी, वो भी सांप और चूहे की नहीं, चींटी की। एकदम बढ़िया रखरखाव, कसरत के साथ बरसों से एक दो ऊँगली से ज्यादा उसमे घुसी नहीं थी, हाँ बेचारी कन्या रस से काम चलाती थीं , न जाने कितने देने बाद प्रेमगली को आहार मिला था,

तो मेरी सास ने अपने भोसड़े की दोनों फांको को ऊँगली से फैला के दुलरुवा बेटे के मोठे सुपाड़े को फंसा लिया और बस हलके हलके दबाने लगीं।






बेचारे नीचे से मचल रहे थे तड़प रहे थे और उनके ऊपर चढ़ी महतारी कभी कस के भींच के कभी ढील दे के , लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा गया, आखिर मरद तो मेरा ही न। मैंने अपनी सास से धीरे से कान में सिफारिश लगायी, " दे दीजिये न बेचारे को , तड़प रहे हैं "

और क्या धक्का मारा मेरी सास ने ऊपर से, अगर वो मरद होतीं तो पहली रात में नहीं पहले धक्के में ही कुँवारी कोरी कन्या की झिल्ली तोड़ के खून खच्चर कर देतीं और तब भी न रुकती।

गप्प, सुपाड़ा पूरा अंदर,

उनके ऊपर चढ़ के मैं भी विहार करती थी लेकिन कभी दो तीन धक्के से कम में अपने उनका एक बार में सुपाड़ा नहीं ले पायी , और यहाँ तो मेरी सास ने एक धक्के में गप्प कर लिए कभी वो उस सुपाड़े का रस लेती अपने भोसड़े में उसे दबा के, भींच के, कभी उस मोटू की ताकत का अंदाज लगातीं,

और नीचे से सासू का बेटा सिसक रहा था, बेटे की तो आँखे बंद थी लेकिन माँ खूब मस्ती से देख रही थी, कभी उनको तो कभी मुझको .

जैसे सास मुझे अपनी बात याद दिला रही थीं, " देख तू बेकार में घबड़ा रही थी, मैं कह रही थी चढ़ के चोदूगी इसे, अरे तूने कह दिया बस अब हम दोनों मिल के इसे स्साले को पक्का मादरचोद बना देंगी "

लेकिन अब सास से भी नहीं रहा गया और उनके धक्के की रफ़्तार तेज हो गयी, और पांच छह धक्को के अंदर वो बेटे का भाला माँ की बिल के अंदर एकदम जड़ तक,




सास के चेहरे पे मैं जो सुख इस समय देख रही थी वो मैंने आज तक नहीं देखा था, जबसे गौने उतरी थी में तबसे आज तक, जैसे कोई सूखी खेती लहलहा गयी हो, और वो एकदम रुक के बेटे के मोटे लम्बे मूसल को अंदर तक महसूस कर रही थी,


और उनसे ज्यादा किसी को मजा मिला रहा था तो वो मेरे मरद को, हर तरह के छेद का सुख वो ले रहे थे जो इस तरह का सुख होता है वो पहली बार


और सास और उनके बेटे से भी ज्यादा सुख हो रहा था, मुझे।

मेरा मरद खुश रहे, मेरी सास खुश रहे, उससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए।



लेकिन अब टक्कर बराबर की होगयी थी, वो भी जोश में उनकी माँ भी।

भले ही मेरे मरद की आँख पे पट्टी बंधी थी लेकिन न उनके चूतड़ के जोर में कमी न न कमर के जोर में और मेरी सास भी कभी कस कस के धक्के मारतीं , तो कभी बस गोल गोल चक्की की तरह कमर घुमाती तो कभी बस दबोच के खूंटे को निचोड़तीं,
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
सास और सास का पूत


और जैसे दस मिनट हुए मैंने इशारा किया, उन्होंने पलटी मारी और सास ने भी साथ दिया ,

सास नीचे सास का बेटा ऊपर।

और फिर तो उनको चौसठों कला आती थी। कोका पंडित ने जितने आसान बनाये थे उससे भी दो चार ज्यादा, पूरा बित्ते भर का मोटा खूंटा अपनी महतारी के बिल में घुसेड़ के जड़ तक, उन्होंने मूसल के बेस से मेरी सास के क्लिट को रगड़ना शुरू किया और अब छटपाने की सिसकने की बारी मेरी सास की थी, लेकिन वो बोल तो सकती नहीं थी, इसलिए मैं उनकी ओर से जले कटे पे नमक छिड़क रही थी।

सास के बेटे के पीछे खड़े हो के उनके पीठ पे कभी अपने जोबन रगड़ती, कभी मेरी उंगलिया जड़ तक धंसे खूंटे के बेस पे जा के बॉल्स को सहलाती और उनसे कहती

" हाँ, ऐसे ही, और जोर से रगड़ो, झाड़ दो साली को "

और जब वो कमर उचका रही थीं, उन्होंने क्या जोरदार आलमोस्ट पूरा बाहर निकाल के तीन चार धक्के ऐसे जोर से मारे की मेरी सास झड़ने लगीं, वो हिचकियाँ भर रही थी, सिसकियाँ ले रही थी , लेकिन उस समय कोई मरद सुनता है क्या ? वो तो और जोर से,




लेकिन मेरी सास भी कम नहीं थी, थोड़ी देर में फिर गरमा गयी,

इत्ते दिनों के बाद मोटे मूसल का स्वाद मिला था, अब मामला दोनों ओर से था, लेकिन दस मिनट हो रहा था ब्लाइंड फोल्ड खोलने का टाइम, मैंने सास को इशारा किया, उन्होंने हाँ भर दिया पर साथ साथ आपै दोनों टांगो से कस के मेरे मरद को भींच के पकड़ लियाऔर बुर भी एकदम टाइट, और एक बार वो टाइट कर लें तो कोई ऊँगली न निकाल पाए अंदर से यहाँ तो मोटा लंड था। मैंने भी उन्हें पीछे से दबोच रखा था, और ब्लाइंडफोल्ड खोल दिया,

वो अपने नीचे दबी अपनी माँ को देख कर एक बार सकपकाए,

लेकिन हम सास बहू की मिली पकड़,... चाह के भी नहीं निकाल सकते थे और मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन सास बड़ी थीं, मोर्चा उन्होंने अपने हाथ में ले लिया और इन्हे हड़काते हुए बोली

" अरे पूरी दुनिया में, ससुराल में , यहाँ , लौंडो को, लौंडियों को , कल की कच्ची कलियों को चोदते रहते हो और मेरी बुर में क्या कांटे लगे हैं। पेल कस के आज देखूंगी तेरी ताकत, अगर निकालने की सोचा भी न "


और सास की बात सुन के मुझे भी जोश आ गया और मैं भी इन्हे हड़काने में जुट गयी,

" निकालने की तो सोचना भी मत बाहर,.... अगर मेरी सास को नहीं चोदोगे तो मेरी भी नहीं मिलेगी, ...स्साले तेरी साली और बहन दोनों नहीं है बस अपना हिलाते रहना। अच्छा चल मेरी सास नहीं अपनी सास समझ के पेल पूरी ताकत से "

और मेरे तरकश में भी अनेक तीर थे,

बस मैंने तर्जनी सास के बेटे की पिछवाड़े की दरार पे रगड़नी शुरू कर दी

और नतीजा तुरंत सामने आया, क्या जबरदस्त धक्का सास के बेटे ने सास की बुरिया में मारा, कोई और होता तो चीड़ता फाड़ता, अंदर तक,




लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थीं, उन्होंने तुरंत प्रेम गली को ढीला किया और उसे अँकवार में भर लिया, साथ ही खिंच के बेटे के दोनों हाथ जोबन पे



बस उसके बाद तो न कहने लायक, न लिखने लायक

दस पन्दरह मिनट बाद जब उन्होंने मलाई फेंकी तो उसी समय सास में भी किनारे लग चुकी थीं।

और उसके बाद तो अगली बार निहुरा के





लेकिन सपने में कोई नियम कायदा तो होता नहीं,



सपने में सास मेरी रसोई में झुकी हुयी चावल धो रही थी

और मेरी नींद हलकी सी खुल गयी लेकिन मैंने कस के आँख मींच ली और सपना फिर गतांक से आगे चालू हो गया


ये आये और मैंने मुस्करा के एक बार देखा और बदमाशी से सास का साडी साया ऊपर उठा दिया, बस खेल चालू



मजा तो सास को भी बहुत आ रहा था लेकिन बनावटी गुस्से से बोलीं, " अरे बहू कम से कम रसोई में तो "

" और जब आप का बेटा मुझे रसोई में दिन दहाड़े गौने के तीसरे ही दिन, और आप ने देखा भी लेकिन उलटे पैर चली गयीं " मैंने भी उसी तरह छेड़ते हुए बोला




लेकिन कोई माँ बेटे को दोष देती है क्या और वो भी बहू के सामने, तो मेरी सास ने भी सब दोष मेरे ऊपर धर दिया,

" अरे मेरी बहू है ही इतनी सुन्दर, गर्मागर्म माल, रस की कड़ाही से निकली जलेबी, ....उसे देख के मेरे बेटे का मन डोल जाता था , उस की क्या गलती "

वो मुस्कराते बोलीं और तबतक उनके बेटे ने गली के अंदर दाखिला ले लिया था , दोनों जोबन उसकी मुट्ठी में कस के

मैं कहीं और देख रही थी, इधर उधर और मुझे देसी घी वाला ही डिब्बा दिखा और हथेली पे उसे लुढ़काते हुए मैं बोली

" मेरी सास किसी से कम हैं क्या, जब चूतड़ मटकाते चलती हैं तो आदमी क्या गदहों का खड़ा हो जाता है और जित्ते लौंडो की नेकर सराक एक मारी होगी न, मेरी सास का पिछवाड़ा उससे भी टाइट है "




और सारा का सार हाथ का घी सास के गाँड़ के छेद पे, और जो थोड़ा बहुत निकल रहा था उसे भी अपनी ऊँगली में लपेट के अंदर तक, पहले एक ऊँगली और फिर उसपे चढ़ा के दूसरी ऊँगली और दो ऊँगली भी घी लगी होने पर भी मुश्किल से जा रही थी। लेकिन मेरा वाला तो गाँड़ मारने में एकदम उस्ताद, अपनी कच्ची कोरी दस में पढ़ने वाली साली की खाली थूक लगा के गाँड़ मार दी थी, तो मेरी सास तो

और जब प्रेम गली से खूंटा बाहर निकला तो बस हाथ में लगा सब घी लगा के मैंने कस कस के मुठियाया और उनके सुपाड़े को मेरी सास के पिछवाड़े, गोल छेद को चियार के सटा दिया, और बोली

" मार धक्का "

उधर सास के पिछवाड़े मेरे मरद का जोरदार धक्का पड़ा और मेरी नींद टूट गयी,



बाहर अच्छी खासी धुप निकल आयी थी, मैं बिस्तर पे एकदम उघारे, बस नीचे गिरी साड़ी लपेट ली और बाहर, जहाँ मेरी सास बैठी थीं ।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,829
259
Updates have been posted, please read, enjoy, like and comment.
 
Last edited:

motaalund

Well-Known Member
8,892
20,307
173
बहुत बहुत आभार, धन्यवाद

आपने एकदम सही कहा सास बहू की समझ, दोनों का एक दूसरे के लिए ख्याल, इसलिए ये रिश्ता देह से बढ़कर मन का भी और और मष्तिष्क का भी, बस साथ बनाये रखिये और अगली दो पोस्टों में इन रिश्तों के और रंग दिखेंगे, आप के कमेंट्स का इन्तजार रहेगा।
आखिर दोनों किसी दूसरे घर से आईं हैं...
तो आपसी पीड़ा की समझ ज्यादा होती है....
 
Top