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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार -भाग २८

आतंकी हमला होने की आशंका

गुंजा
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स्वीट डिश में रबड़ी, गुलाब जामुन, लेकिन गुलाब जामुन के चारों ओर बूंदी लगी थी। मीठी बूंदी। हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा, लेकिन कोई नंबर नहीं। मैंने फिर ध्यान से देखा तो लिखा था- “प्राइवेट नम्बर…”

अचानक मुझे ध्यान आया, डी॰बी॰ का नंबर। उन्होंने मुझे एस॰एम॰एस॰ किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेंगे । मैंने फोन उठाया।


डी॰बी॰ बोले - “टीवी देख रहे हो?”

मैं- “हाँ…” टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला-


आई आम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन।

व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन

ऊ ऊ।




आवाज उनके फोन पे जा रही होगी।

डी॰बी॰ बोले - “अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज…”

उनकी आवाज में टेंशन साफ़ झलक रहा था। नॉर्मली वो कभी टेन्स नहीं होते, लेकिन कुछ तो गड़बड़ है, और फिर इस तरह से अनलिस्टेड प्राइवेट नंबर से फोन करके,


अभी सब ठीक चल रहा था, इतनी मस्ती का माहौल लेकिन, उनकी बात सुन के मैं भी टेन्स हो गया और मैंने तान्या को इशारा किया।

उसने चैनेल चेंज करके बी॰एन॰एन॰ (बनारस न्यूज नेटवर्क) लगाया।

एक स्कूल की धुंधली फोटो आ रही थी, नाम भी सही नहीं सुनाई दे रहा था।

एक न्यूज कास्टर सामने खड़ा बोल रहा था। नीचे ब्रेकिंग न्यूज भी चल रही थी।



चूड़ा देवी बालिका विद्यालय, मैं दो लोगों ने लड़कियों को बंधक बनाया,... आतंकी हमला होने की आशंका।

गुड्डी उठकर खड़ी हो गयी “ये तो मेरा स्कूल है…”

एक पल के लिए मेरे चेहरे पे मुस्कराहट छा गयी, गुंजा याद आ गयी, स्कूल से लौट के आयी थी,

भूत.,,,नहीं सारी, ...चुड़ैल लग रही थी।

सुबह कैसी चिकनी विकनी होकर गई थी। गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट, बालों में भी। एक इंच जगह नहीं बची थी, चेहरे पे, यहां तक की मोती ऐसे सफ़ेद दांत भी लाल, बैंगनी। कई कोट रंग लगे थे ,



गुंजा का स्कूल,



एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,


लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने हंस के बोला,

" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"
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लेकिन अगले पल मेरी हालत खराब हो गयी, गुंजा, उसकी दूध खील सी हंसी, वो मुस्कान, उसका तो एक्स्ट्रा क्लास था वो,….

कहीं स्कूल में तो नहीं,....



टीवी स्क्रीन पर अब फोटो साफ़ हो गयी थी, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,

गुड्डी ने फिर बोला, ये तो मेरा स्कूल है,

गुड्डी का स्कूल, गुंजा का स्कूल, गुंजा गुड्डी से दो साल ही तो छोटी थी, लेकिन छोटी बहन से भी बढ़कर और उससे भी बढ़कर सहेली और उसकी सारी शरारतों में बराबर की हिस्सेदार और मेरी, छोटी साली
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“तुम्हें कुछ मालूम है इस इलाके के बारे में? हमने रेड अलर्ट डिक्लेयर कर दिया है…” डी॰बी॰ की आवाज फोन पे आ रही थी।

मैंने पूछा- “मैं,.. हम आ सकते हैं?” अब मेरा दिल जोर जोर से धक धक कर रहा था , मन तेजी से घबड़ा रहा था, गुंजा भी तो स्कूल गयी थी, किसी एक्स्ट्रा क्लास में

- “आ जाओ मैं कंट्रोल रूम में हूँ कोतवाली में, स्कूल भी पास में ही है…” और फोन रख दिया।

न्यूज चैनेल ने अब ढेर सारी पोलिस की गाड़ी, अम्बुलेंस।

वो एरिया अब बैरिकेड कर दिया गया था। बाकी चैनेल ने भी न्यूज पिक अप कर ली थी। इंडिया टीवी चीख-चीखकर कह रहा था- “सबसे पहले इस चैनेल पे ब्रेकिंग न्यूज। एक नया आतंकी हमला। सरकार फेल…”

“उईई माँ…” गुड्डी अचानक चीखी-


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“गुंजा…”

मैंने पूछा- “क्या हुआ गुंजा को?”

गुड्डी- “अरे स्कूल की तो छुट्टी हो गई थी तो उसके क्लास की। बोला था ना उसने एक्स्ट्रा क्लास है। ये उसी के क्लास की लड़कियां होंगी…” गुड्डी की आवाज रुवांसी हो गई थी।

मैंने कस के गुड्डी का हाथ दबाया, उसे अश्योर किया, और उससे ज्यादा खुद को, और धीरे से बोला, " गुंजा को कुछ नहीं हो सकता, वो एकदम ठीक होगी :
बार बार आँखों के सामने गुंजा का वो भोला चेहरा, कैशोर्य की पायदान पर खड़ी, और बार बार मन में यही आता नहीं गुंजा को कुछ नहीं हो सकता


मैं- “अरे हम लोग चलते हैं ना चलो…” गुड्डी को बोला मैंने।



गुड्डी हाथ धोने बाथरूम चली गई।



एक और चैनेल अब बोल रहा था था-

“हालांकि पोलिस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया है, लेकिन हमारे सोर्सेज के अनुसार ये आतंकी हमला ही लगता है। क्योंकि बंधक बनाने वालों ने एक बाम्ब का प्रयोग किया है। डी॰जी॰ पोलिस ने लखनऊं से बताया है की स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। मुख्यमंत्री वापस आ रहे हैं। अभी अभी खबर आई है की कुल 22 लड़कियों में से 19 बंधकों के घुसने के समय निकल भागीं लेकिन 3 लड़कियां बंधक हैं। उनका नाम पुलिस ने बताने से इनकार किया है…”


मोबाईल, पुलिस की गाड़ी बाहर खड़ी थी।

हम लोग सीधे उसी में जाकर बैठ गए। अचानक मुझे याद आया- “चंदा भाभी कहीं वो टीवी तो नहीं देख रही होंगी और वो चैनेल देखकर घबड़ा तो नहीं रही होंगी?”


गुड्डी ने ऐस्योर किया-

“नहीं वो नार्मली सोती हैं। और ज्यादातर लड़कियां तो चैनेल बता रहा था की निकल गई थीं, तो गुंजा निकल ही गई होगी और अगर हम लोगों ने फोन किया तो पहले तो जवाब दो की हम लोग अब तक गये क्यों नहीं? फिर वो कहेंगी की घर आ जाओ और फिर ये की शहर में टेंशन है। तो आज मत जाओ। तो फिर तो…”


फिर मैंने भी सोचा की वो लोग बेकार में परेशान होंगे।
लेकिन आँखों के सामने बार बार गुंजा का चेहरा याद आ रहा था, सुबह नाश्ते के समय स्कूल की ड्रेस में, स्कूल से लौट के रंगा पुता, स्कूल की उसकी सहेलियों के किस्से, कैसे जबरदस्त होली उसने शाजिया और महक के साथ मिल के खेली,... एकदम रंग उसकी बातों से छलक रहा था
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और वो स्कूल, उसी स्कूल में ये हमला, तीन लड़कियों को होस्टेज बनाया है,

बस गुंजा न हो
 
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शहर में टेंशन, गुंजा के स्कूल पर हमला



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जगह-जगह पोलिस के बैरिकेड लगे थे। उस डायरेक्शन में जाने वाली गाड़ियों को रोका जा रहा था। टेंशन महसूस किया जा सकता था।

आफिस जल्दी बंद हो रहे थे। यहाँ तक की रिक्शे वाले भी बजाय सवारी लेने के अपने घरों को वापस जा रहे थे। जगह-जगह टीवी की दुकानों पे, जहाँ कहीं भी टीवी लगा था, भीड़ लगी थी।



जैसे-जैसे हम लोग कोतवाली की ओर जा रहे थे। सड़क खाली लग रही थी। रास्ते में जो भी मंदिर मस्जिद पड़ती गुड्डी आँखें बंद करके हाथ जोड़ लेती थी। बस हम यही मना रहे थे की वहां फँसी लड़कियों में गुंजा ना हो। ना हो। जब हम लोग कबीर चौरा हास्पिटल के सामने से निकले तो वहां से ऐम्बुलेंसेज कोतवाली की ओर जा रही थी।



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हम लोगों का डर और बढ़ गया। टाउन हाल के आगे तो एकदम सन्नाटा था। खाली पोलिस की गाड़ी दिख रही थी। फायर ब्रिगेड वाले भी आ गए थे।



चैनेल वालों की भी गाड़ियां थी। एक-दो जगह से न्यूज कास्टर खड़े होकर बता रहे थे की वो स्कूल बस यहाँ से 400 मीटर की दूरी पे है।


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चारों ओर टेंशन साफ झलक रहा था। सबके चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी।

स्कूल के बगल से हम गुजरे, वहां आसपास की बिल्डिंग्स खाली करायी जा रही थी। बाम्ब डिस्पोजल स्क्वाड के दो दस्ते खड़े थे। एक ट्रक से काली डूंगरी पहने कमांडो दस्ते उतर रहे थे।

गुड्डी का दिल धकधक कर रहा था, मेरा भी। सुबह हम लोग आज दिन भर इतनी मस्ती से,... लेकिन अचानक। कुछ समझ नहीं आ रहा था।

तब तक हम लोगों की गाड़ी सीधे कोतवाली में कंट्रोल रूम के सामने जाकर रुकी। ड्राइवर हम लोगों को सीधे अन्दर ले गया। अन्दर भी बहुत गहमागहमी थी।

पुलिस के अलावा अन्य डिपार्टमेंट के भी लोग थे, सिटी मजिसट्रेट, सिवल डिफेंस के लोग, डाक्टर्स। ड्राइवर ने सीधे हम लोगों को वहां पहुँचा दिया जहाँ डी॰बी॰ थे, एक बड़ी से मेज जिस पे ढेर सारे फोन रखे हुए थे। सामने एक बोर्ड पे उस एरिया का डिटेल्ड मैप बना हुआ था। चारों ओर पुलिस के अधिकारी, मजिस्ट्रेट।

जब हम लोग पहुँचे तो वो एस॰पी॰ ट्रैफिक को बोल रहे थे-

“ट्रैफिक डाइवर्ट कर दिया न,... एक किलोमीटर तक पूरा, यहाँ तक प्रेस को भी जिनके पास अक्रेडीशन हो,...उन को भी नहीं । दो किलोमीटर तक सिर्फ उस एरिया के लोगों को, ...नो वेहिकुलर ट्रेफिक…”



तब तक एक किसी आफिसर ने उन्हें फोन पकड़ाया।

बजाय फोन लेने के उन्होंने स्पीकर फोन आन कर दिया जिससे सब सुन सके। प्रिंसिपल सेक्रेटरी होम का फोन था। उन्होंने पूछा- “हाउ इस सिचुएशन?”

डी॰बी॰ ने जवाब दिया- “टोटली अंडर कंट्रोल सर। लेकिन अभी कुछ साफ पता नहीं चल पाया है की वो हैं कौन? उनका मोटिव क्या है? साइकोलोजिकल प्रोफाइलिंग भी करवाई है। बिहैवियर पाटर्न अनसर्टेन है, अन्दर का कोई प्लान भी नहीं है। लेकिन रेस्ट अश्योर्ड। डैमेज कन्टेन हम करेंगे…”


होम सेक्रेटरी की काल जारी थी-

“ओके। एस॰टी॰एफ॰ की टीम निकल गई है दो-तीन घंटे में वो पहुँच जायेंगे। मैंने सेंटर से भी बात कर ली है। मानेसर में एन॰एस॰जी॰ रेडीनेस में है…”



डी॰बी॰ ने बोला- “नहीं सर, होपफुली उनकी जरूरत नहीं पड़ेगी…”



होम सेक्रेटरी ने पूछा- “लेट अस होप। लेकिन लास्ट टाइम की तरह मैं फँसना नहीं चाहता ना। बी॰एस॰एफ॰ का प्लेन रेडी है। और चापर मानेसर में तैयार है। कोई मल्टीपल अटैक के चांस तो नहीं हैं?”



डी॰बी॰ ने बोला- “नहीं सर एकदम नहीं। एक घंटे से ऊपर हो गए हैं और अभी कहीं से…”

“ओके वी आर विथ यू…” और उधर से फोन कट गया।

एस॰टी॰एफ॰ यानी स्पेशल टास्क फोर्स, जो पिछली सरकार ने बनाया था, ओर्गनाईज्ड क्राइम और स्पेशल इवेंट से निपटने के लिए। उनके तरीके अलग थे और वो सीधे गृह राज्य मंत्री को रिपोर्ट करते थे।

तब तक ड्राइवर ने उनका ध्यान हम लोगों की ओर दिलाया।
 
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डी॰बी॰
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मेरा मन अभी भी गुंजा में लगा था, मन मना रहा था वो घर पहुँच गयी हो, लेकिन चंदा भाभी से फोन करके पूछने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। गुड्डी की हालत तो मुझसे भी ज्यादा, लेकिन वो हिम्मती थी ,

तीन साल बाद मैं डी॰बी॰ से मिल रहा था, क़द 5’11…” इंच, गेंहुआ रंग, हल्की मूंछे, छोटे-छोटे क्रू कट बाल, हाफ शर्ट, कुछ भी नहीं बदला था, वही कांफिडेंस, वही मुश्कान। तपाक से उसने हाथ मिलाया और पूछा- “हे तुम लोग इत्ते देर से आये हो बताया नहीं?

मैंने कहा- “बस अभी आये…”



तभी उसकी निगाह गुड्डी पे पड़ी, और वो झटके से उठकर खड़े हो गए । तुरंत उन्होंने नमस्ते किया।

उनकी देखा देखी बाकी आफिसर्स भी खड़े हो गए। हम ये जानने के लिए बेचैन थे की गुंजा उन तीन लड़कियों में है की नहीं। मैंने कुछ पूछना चाहा तो उन्होंने हाथ के इशारे से मना कर दिया और किसी से बोला- “जरा ए॰एम॰ को बुलाओ…”


एक लम्बा चौड़ा पोलिस आफिसर आकर खड़ा हो गया। यूनिफार्म में, तीन स्टार लगे थे। डी॰बी॰ ने परिचय कराया-

“ये हैं। ए॰एम॰, अरिमर्दन सिंह। यहाँ के सी॰ओ॰, सारी चीजें इनकी फिंगर टिप्स पे हैं। यही सब सम्हाल रहे हैं। और ये हैं। …”

मुझे परिचय कराने के पहले ए॰एम॰ ने मुझसे हाथ मिला लिया और बोले- “अरे सर, हमें मालूम है सब आपके बारे में। आज चलिए एक्शन का भी एक्सपोजर हो जाएगा…”
डी॰बी॰ ने किसी से गुड्डी के लिए एक कुर्सी लाने को बोला। लेकिन मैंने मना कर दिया- “कोई रूम हो तो। इतने दिनों बाद हम मिले हैं तो…”

डी॰बी॰ ने बोला- “एकदम…”



हम लोग एक कमरे की ओर चल दिए, शायद सी॰ओ॰ का ही कमरा था।

कमरे में चार-पाँच कुर्सियां, मेज और एक छोटा सोफा था। घुसने से पहले डी॰बी॰ ने कहा- “मेरा जो भी काल हो ना। यहीं डाइवर्ट करना और अगर सी॰एस॰ (चीफ सेक्रेटरी) या सी॰एम॰ का फोन हो तो मोबाइल पे पैच करवा देना…”

अन्दर घुसते ही मैंने पहला काम ये किया की सारी खिड़कियां बंद कर दी और पर्दे भी खींच दिए और बाहर का दरवाजा बस ऐसे खोलकर रखा की अगर कोई दरवाजे के आस पास खड़ा हो तो दिखाई पड़े।



हम लोग ठीक से बैठे भी नहीं थे की डी॰बी॰ चालू हो गए-

“यू नो तीन बातें हैं। जो क्लियर नहीं हो रही हैं,अगर हम टेरर अटैक मानते हैं तो

पहली- आई॰बी॰ ने कोई वार्निंग नहीं दी। ये बात नहीं है की वो कभी सही वार्निंग देते हैं स्पेस्फिक। लेकिन कुछ जनरल उनको आइडिया रहता है। अगर वो गौहाटी में कहेंगे तो गुजरात वाले नार्मली जग जाते हैं। वैसे वो कभी लोकेशन सेपेस्फिक वार्निंग नहीं देते। लेकिन उन्हें जनरल हवा रहती है और ना हुआ तो कम से कम घटना के बाद वो मैदान में आ जाते हैं, कम से कम ये दिखाने के लिए की स्टेट पोलिस वाले कितने बेवकूफ हैं, खास तौर से अगर सरकार दूसरी पार्टी की हो और यहाँ सरकार दूसरी पार्टी की है। लेकिन अभी तक वो सिर खुजला रहे हैं। तुमको याद होगा समीर सिन्हा की?”


मैं- “हाँ जो हम लोगों से चार साल सीनियर थे, बिहार कैडर के। हास्टल में नाटक वाटक करवाते थे। जिन्होंने आई॰ए॰एस॰ लड़की से शादी की थी…” मुझे भी याद आया।



डी॰बी॰- “हाँ वही। वो लखनऊ में जवाइंट डायरेक्टर हैं आई॰बी॰ में, उनसे भी मैंने बात की थी, ना कोई ह्यूमन आई॰टी॰ (ह्युमन इंटेलिजेंस) ना कोई टेक्नीकल…” डी॰बी॰ ने बात आगे बढ़ाई।

“और?” मैंने हुंकारी भरने का योगदान दिया।

गुड्डी बेचैन हो रही थी।

ये सब ठीक है लेकिन गुंजा। उसकी आँखों में डर झलक रहा था।


सने मेरा हाथ कस के दबाया, और मैंने भी कस के दबा के अश्योर किया, बिन बोले, ; नहीं गुंजा नहीं हो सकती है। गुंजा कैसे सकती है, इतनी लड़कियां बच के निकल गयीं तो वो भी निकल गयी होगी। वो तो इत्ती प्यारी सी स्मार्ट, नहीं उसे कुछ नहीं हो सकता, मैं बस सोच रहा था और आँखे के आगे उस दर्जा नौ वाली शरीर लड़की की तस्वीर आ रही थी।

सुबह ब्रेड रोल में ढेर सारी मिर्चे भर के खिलाते,

जब कोई कपडे नहीं दे रहा था, गुंजा ने अपना बारमूडा और टॉप दिया,

जिस तरह से आँख नचा के वो गुड्डी को चिढ़ाते बोली थी, " दी को मैंने बोल दिया, पटाइये आप लेकिन मजे मैं लूंगी, और फुल टाइम, साली का हक पहले होता है "
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और अब मन मानने को नहीं कर रहा था की ऐसी मुसीबत में गुंजा फंस सकती है, लेकिन पुलिसिया दिमाग कह रहा था, कुछ भी हो सकता है , कुछ भी और हर हालत के लिए तैयार रहना चाहिए।

डी॰बी॰ कहीं बात कर रहे थे, उस फोन को रख के फिर हम अपनी बात बढ़ाई-

“दूसरी- पैंटर्न। ये एकदम गड़बड़ है। टेररिस्ट पागल नहीं होता। वो भी रिसोर्स इश्तेमाल करता है, जो बहुत मुश्किल से उसे मिलते हैं। इसलिए वो मैक्सिमम इम्पैक्ट के लिए ट्राई करेगा, जहाँ बहुत भीड़ भाड़ हो और नार्मली वो बाम्ब का इश्तेमाल करेगा, होस्टेज का नहीं। और होस्टेज का होगा तो डिमांड क्या होगी? अब तक सिर्फ कश्मीर में हिजबुल के लोग इस तरह की हरकत करते हैं। लेकिन वहां हालात एकदम अलग हैं। यूपी में जितने भी हमले हुए, वो सिर्फ बाम्ब से हुए। और ज्यादातर में कोई पकड़ा भी नहीं गया तो ये बात कुछ हजम नहीं होती…”
और मेरे दिमाग में भी अब वही बात गूँज रही थी, अगर टेरर अटैक नहीं है तो क्या है ? और मिडिया वाले तो सिर्फ टेरर चिल्ला रहे हैं।

सामने टीवी ऑन था और उस पर दिखा रहा था, इस के पहले भी बनारस में बॉम्ब के धमाके हो चुके हैं , मंदिर में, घाट पर, ट्रेन में और एक बार फिर, क्या वहां बम्ब है, क्या बम्ब फूटेगा, अगर फूटेगा तो क्या होगा उन लड़कियों का, पुलिस ने चुप्पी साध रखी है।

किसी ने चैनल चेंज कर दिया,

और वहां कोई और जोर से चीख रखा था,


कौन है जो आपकी होली को खून की होली में बदलना चाहता है
कौन है जिसे यह संस्कृति नहीं पसंद है

कोई है जो आपके पड़ोस में भी हो सकता है, आपके गली मोहल्ले में भी हो सकता है , बने रहिये सबसे तेज ख़बरों के लिए

तब तक डी॰बी॰ का फोन बजा, दशाश्वमेध थाने से रिपोर्ट थी- “बोट पुलिस ने सब घाट नदी की ओर से भी चेक कर लिए हैं। आल ओके…”

डी॰बी॰ ने घंटी बजायी।
 
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समोसा


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चपरासी को उन्होंने 3 चाय के लिए बोला और मुझसे पूछा- “समोसा चलेगा। जलजोग का…”



मैंने बोला- “एकदम दौड़ेगा…”

गुड्डी ने मुझे आँख दिखाई- “कितना खाओगे?” लेकिन जलजोग का समोसा मैं नहीं मना कर सकता था।

डी॰बी॰- “हाँ तो। मैं क्या कह रहा था? हाँ तीसरी बात- उसका मोबाइल फोन। कोई टेररिस्ट मोबाइल पे बात नहीं करता। अगर करेगा तो अपने आका से करेगा, पोलिस से नहीं। एक बार उसने थाने पे यहीं रिंग किया और दूसरी बार अरिमर्दन से बात हुई, तब तक मैं भी यहाँ आ गया था। मोबाइल मतलब अपना सब अता पता बता देता है, तो इसलिए मुश्किल है ये सोचना की …”

मैंने बात बीच में रोक कर पूछा- “वो सिम कहाँ का है?”

डी॰बी॰- “यार क्या बच्चों जैसे। आज कल सिम का क्या? और वो तो पहली चीज इंस्पेक्टर भी देख लेता है। बक्सर के पास किसी जगह से ली गई थी, आधे घंटे में उसकी कुंडली भी आ जायेगी। लेकिन वो सब फर्जी मिलेगी। इतनी बात तो वो सोनी पे कौन सा सीरियल आता है?” डी॰बी॰ बोले।

अबकी बात काटने का काम गुड्डी ने किया। बड़े उत्साह से उसने अपने ज्ञान का परिचय दिया- “सी॰आई॰डी॰ मैं भी देखती हूँ…” वो चहक कर बोली।

डी॰बी॰ बोले- “वही तो मैं कह रहा था, बच्चों को भी ये सब चीजें मालूम होती हैं। सिम विम से क्या होगा?”

मैंने थोड़ी रिलीफ की सांस ली- “तो इसका मतलब की टेरर वेरर की बात…”

डी॰बी॰- “नहीं ऐसा कुछ नहीं है। कुछ कह नहीं सकते, मान लो निकल जाय कोई तो? प्रिकाशन तो लेनी पड़ेगी…” वो बोले- “और ये भी नहीं कह सकते की कोई गुंडा बदमाश है…”

मैं- “क्यों?” मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

डी॰बी॰- “तीन बातें हैं…”

ये तीन बातों का चक्कर उनका पुराना हास्टल के दिनों का था।

डी॰बी॰ ने फिर समझाना शुरू किया-

“देखो पहली बात आज कल नई-नई सरकार आई है अभी सेट होने में टाइम लगेगा सब कुछ, तो उस समय नार्मली ये सब एक्टिविटी स्लो रहती हैं। फिर आज कल बनारस में वैसे ही हम लोगों ने झाड़ू लगा रखी है। एक मोटा असामी था उसका पत्ता तुमने साफ करा दिया। फिर क्रिमिनल भी रिटर्न देखता है- ठेका हो, माइनिंग हो, प्रोटेक्शन हो। अब किडनैपिंग तक तो होती नहीं फिर ये होस्टेज वोस्टेज का चक्कर क्रिमिनल्स के बस का नहीं, ना उनका कोई फायदा है इसमें। आधी चीज तो मोटिव है, वो क्या होगी? फिर तुम जानते हो। ज्यादातर बड़े क्रिमिनल अब नहीं चाहते की फालतू का लफड़ा हो। उनकी असली कमाई तो अब सेमी-लीगल धंधों से होती है। कई ने तो थानों पे फोन करके बोला जैसे ही चैनेल पे खबर आई की उनका कोई लेना देना नहीं है इस इंसिडेंट से…”

तब तक चपरासी समोसा और चाय लेकर आ गया। गरम-गरम ताजा समोसे। डी॰बी॰ ने इन्सिस्ट किया की गुड्डी पहले समोसा ले।

गुड्डी ने समोसा तो ले लिया लेकिन जो सवाल उसे और मुझे तब से परेशान किये हुए था, पूछ लिया-

“वो तीन। तीन लड़कियां जो। नाम क्या है पता चला?”


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समोसा खाते हुए डी॰बी॰ ने बोला- “हूँ हूँ कुछ। बताता हूँ। हाँ लेकिन मैं क्या कह रहा था?”

मैंने याद दिलाया- “तीन। तीन बातें क्यों वो गुंडे बदमाश नहीं हो सकते? एक आप बता चुके हैं की बड़े गुंडों के लिए इस तरह की हरकत प्रोफिटेबल नहीं है…”



चाय पीते हुए डी॰बी॰ ने बात जारी रखी-

“हाँ। दूसरी बात- बाम्ब। ये कन्फर्म है की उनके पास बाम्ब है और उसमें ट्रिगर डिवाइस भी है। नार्मली छोटे मोटे गुंडों के पास इम्पैक्ट बाम्ब, यानी जो फोड़ने या फेंकने पे फूटते हैं वही होते हैं। ये साफीस्टीकेटेड बाम्ब हैं।

जो लड़कियां बचकर आई हैं उन्होंने जो बताया है। उसके हमने स्केच बनवाये हैं और उसके अलावा जहाँ-जहाँ यहाँ बाम्ब बनाते हैं, सोनारपुरा में, लंका में आस पास के गाँवों में गंगा पार रामनगर। हर जगह से हम लोगों ने चेक कर लिया की ये उनकी हरकत नहीं। और जो लोकल माफिया हैं या तो गायब हो चुके हैं या उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए हैं…”

जब तक वो तीसरी बात पे आते मैंने बचा हुआ समोसा भी उठा लिया।

गुड्डी ने मुझे बड़ी तेजी से घूरा लेकिन मैंने पूरा ध्यान समोसे की ओर और डी॰बी॰ की ओर दिया।

डी॰बी॰ ने तीसरा कारण शुरू कर दिया- “तीसरी बात- बहुत सिंपल। हमारे किसी खबरी को लोकल बन्दों की हवा नहीं है। तो। …”

अबकी मैंने सवाल दाग दिया- “तो ये हैं कौन?”

डी॰बी॰- “यही तो? अगर साफ हो जाय कोई टेररिस्ट ग्रुप है तो हमें मोटा-मोटा उनकी मोडस आप्रेंडी, काम करने का तरीका मालूम है। क्रिमिनल को तो हम लोग आसानी से टैकल कर लेते हैं। पर अभी तक पिक्चर। …” तब तक उनका फोन बजा।

“सी॰एस॰ का फोन है…” किसी दरोगा ने बताया।

अब तक मैं भी इन शब्दों से परिचित हो चुका था की सी॰एस॰ का मतलब चीफ सेक्रेटरी। और वो स्टेट गवर्नमेंट में सबसे ऊपर होते हैं।

डी॰बी॰ ने पूछा- “साहब खुद लाइन पे हैं या?”

“नहीं पी॰एस॰ हैं…” उधर से आवाज आई।

डी॰बी॰- “उनको बोल दो की मैं मोबाइल पे सीधे रिंग कर लूँगा…” वो बोले और उठकर कमरे के दूसरे कोने की ओर चले गए।

यहाँ मुझ पर डांट पड़ना शुरू हो गई- “तुम यहाँ समोसा खाने आये हो की,... कितना खाते हो, वहां अभी होटल में,... फिर समोसा। हम यहाँ समोसा खाने आये हैं की गुंजा का पता लगाने आये हैं?”

गुड्डी ने घुड़का।

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मैंने बात बदलने की कोशिश की- “नहीं वो बात नहीं है। “देखो ये लोग बीजी हैं। अभी चीफ सेक्रेटरी से बात हो रही है…”



गुड्डी बोली- “तुम लोग ना। तुम भी इन्हीं की तरह हो। सिर्फ बातें करते हो काम वाम नहीं…”

मैं- “अरे करेंगे। काम वाम भी करेंगे। प्रामिस घर पहुँचने दो तुम्हारी सारी शिकायत दूर…” कहकर मैंने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की।

गुड्डी शर्मा गई- “धत्त। तुम भी न कहीं भी कुछ भी…”

तब तक बात करते-करते डी॰बी॰ नजदीक आ गए थे और हम लोग चुप हो गए।

डी॰बी॰-

“थैंक्स सर। दो बटालियन आर॰ए॰एफ॰ और एक प्लाटून सी॰आर॰पी॰एफ॰। नहीं सर। दैट विल बी ग्रेट हेल्प। जी मैं भी यही सोच रहा हूँ। आज जो भी होगा उसके रियक्शन का रिस्पोंस प्लान तो करना पड़ेगा, कुछ अमंगल हो जाए तो और कम्युनल टेंशन तो यहाँ। नहीं इतना काफी होगा।

एस॰टी॰एफ॰ की कोई जरूरत तो नहीं है। आप जानते हैं सर, पिछली सरकार में तो वो एक तरह से सरकार ही बन गये थे।

काम सब लोकल पुलिस का होता है। इंटेलिजेंस सब कुछ। उनके आने में तो चार-पांच घंटे लगेंगे तब तब तो मैं इसे। मैं समझ रहा हूँ। सर। वो अपने राज्य मंत्री जी। एस॰टी॰एफ॰ के हेड उनके जिले में एस॰एस॰पी॰ रह चुके हैं और पुराना परिचय है। स्पेशल प्लेन से आ रहे हैं। कोई बात नहीं। मैं आपको इन्फार्म करूँगा। कोई प्राब्लम होगा तो बताऊंगा…”



एस॰टी॰एफ॰ मतलब स्पेशल टास्क फोर्स। इतना तो मैं समझ गया था। लेकिन अब डी॰बी॰ के चेहरे पे थोड़ी एस॰टी॰एफ॰ मतलब स्पेशल टास्क फोर्स। इतना तो मैं समझ गया था। लेकिन अब डी॰बी॰ के चेहरे पे थोड़ी परेशानी साफ दिख रही थी।
 
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komaalrani

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गुड्डी का प्लान

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जब वो फिर आकर बैठे तो उन्होंने पूछा- “हाँ तो मैं क्या बोल रहा था?”



“तीन…” मैं असल में तीन लड़कियों के नाम के बारे में जानना चाहता था।



लेकिन डी॰बी॰ तो। वो चालू हो गए-

“हाँ तीन बड़ी परेशानिया हैं। कमांडो हमारे तैयार हैं, शाम जहाँ हुई,... लेकिन अब जल्दी करनी पड़ेगी। वैसे शाम तो होने ही वाली है। उस स्पेशल टास्क फोर्स के पहुँचने के पहले।

तो पहली बात। हमें स्कूल के अन्दर का नक्शा एकदम पता नहीं है। हमने स्कूल के मैनेजर, प्रिंसिपल और नगर निगम से प्लान की कापी मंगवाई है। लेकिन बहुत से अनअथराइज्ड काम हो गए हैं और वो नक्शा एकदम बेकार है।

फिर पता नहीं किस कमरे में लड़कियां होंगी? कई फ्लोर हैं कुल 28 कमरे हैं, और अगर जरा भी पता चला उन्हें तो। एलिमेंट आफ सरप्राइज गायब हो जाएगा…”

गुड्डी के लिए इन टेक्नीकल बातों का कोई मतलब नहीं था, वो फिर से बोली- “जी वो तीन लड़कियां…”


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डी॰बी॰ ने विनम्रता पूर्वक बात आगे बढ़ाई-

“जी हाँ। मैं भी वही कह रहा था। उन तीन लड़कियों से बात और उलझ गई है।

एक तो वो लोग कहीं बाम्ब न छोड़ दें, फिर अगर कमांडो कायर्वाही में, कई बार स्मोक बाम्ब से ही घबड़ाकर, कुछ अनहोनी हो जाय, कैसा भी कमांडो आपरेशन हो, कुछ तो गड़बड़ होने का चांस रहता है। फिर मिडिया हम लोगों की,ऐसी की तैसी कर देगी, और अब तो नेशनल चैनल वाले भी मैदान में आ गए हैं। और टीवी देख देख के पब्लिक परसेप्शन, और होली सर पे है ।

सी॰एम॰ ने खुद बोला है की टाइम चाहे जितना लगे, लड़कियों को सेफ निकालना है…”



जब तक वो तीसरी बात बताते गुड्डी मैदान में कूद गई-

“मैं प्लान बना सकती हूँ। और रास्ता भी। एक कागज मंगाइए…”
 
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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २८ - आतंकी हमले की आशंका पृष्ठ ३३५

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Shetan

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फागुन के दिन चार -भाग २८

आतंकी हमला होने की आशंका

गुंजा
3,73,380
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स्वीट डिश में रबड़ी, गुलाब जामुन, लेकिन गुलाब जामुन के चारों ओर बूंदी लगी थी। मीठी बूंदी। हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा, लेकिन कोई नंबर नहीं। मैंने फिर ध्यान से देखा तो लिखा था- “प्राइवेट नम्बर…”

अचानक मुझे ध्यान आया, डी॰बी॰ का नंबर। उन्होंने मुझे एस॰एम॰एस॰ किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेंगे । मैंने फोन उठाया।


डी॰बी॰ बोले - “टीवी देख रहे हो?”

मैं- “हाँ…” टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला-


आई आम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन।

व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन

ऊ ऊ।




आवाज उनके फोन पे जा रही होगी।

डी॰बी॰ बोले - “अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज…”

उनकी आवाज में टेंशन साफ़ झलक रहा था। नॉर्मली वो कभी टेन्स नहीं होते, लेकिन कुछ तो गड़बड़ है, और फिर इस तरह से अनलिस्टेड प्राइवेट नंबर से फोन करके,


अभी सब ठीक चल रहा था, इतनी मस्ती का माहौल लेकिन, उनकी बात सुन के मैं भी टेन्स हो गया और मैंने तान्या को इशारा किया।

उसने चैनेल चेंज करके बी॰एन॰एन॰ (बनारस न्यूज नेटवर्क) लगाया।


एक स्कूल की धुंधली फोटो आ रही थी, नाम भी सही नहीं सुनाई दे रहा था।

एक न्यूज कास्टर सामने खड़ा बोल रहा था। नीचे ब्रेकिंग न्यूज भी चल रही थी।



चूड़ा देवी बालिका विद्यालय, मैं दो लोगों ने लड़कियों को बंधक बनाया,... आतंकी हमला होने की आशंका।

गुड्डी उठकर खड़ी हो गयी “ये तो मेरा स्कूल है…”

एक पल के लिए मेरे चेहरे पे मुस्कराहट छा गयी, गुंजा याद आ गयी, स्कूल से लौट के आयी थी,

भूत.,,,नहीं सारी, ...चुड़ैल लग रही थी।

सुबह कैसी चिकनी विकनी होकर गई थी। गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट, बालों में भी। एक इंच जगह नहीं बची थी, चेहरे पे, यहां तक की मोती ऐसे सफ़ेद दांत भी लाल, बैंगनी। कई कोट रंग लगे थे ,



गुंजा का स्कूल,



एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,


लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने हंस के बोला,

" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"
00
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लेकिन अगले पल मेरी हालत खराब हो गयी, गुंजा, उसकी दूध खील सी हंसी, वो मुस्कान, उसका तो एक्स्ट्रा क्लास था वो,….

कहीं स्कूल में तो नहीं,....



टीवी स्क्रीन पर अब फोटो साफ़ हो गयी थी, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,

गुड्डी ने फिर बोला, ये तो मेरा स्कूल है,

गुड्डी का स्कूल, गुंजा का स्कूल, गुंजा गुड्डी से दो साल ही तो छोटी थी, लेकिन छोटी बहन से भी बढ़कर और उससे भी बढ़कर सहेली और उसकी सारी शरारतों में बराबर की हिस्सेदार और मेरी, छोटी साली
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“तुम्हें कुछ मालूम है इस इलाके के बारे में? हमने रेड अलर्ट डिक्लेयर कर दिया है…” डी॰बी॰ की आवाज फोन पे आ रही थी।

मैंने पूछा- “मैं,.. हम आ सकते हैं?” अब मेरा दिल जोर जोर से धक धक कर रहा था , मन तेजी से घबड़ा रहा था, गुंजा भी तो स्कूल गयी थी, किसी एक्स्ट्रा क्लास में

- “आ जाओ मैं कंट्रोल रूम में हूँ कोतवाली में, स्कूल भी पास में ही है…” और फोन रख दिया।

न्यूज चैनेल ने अब ढेर सारी पोलिस की गाड़ी, अम्बुलेंस।

वो एरिया अब बैरिकेड कर दिया गया था। बाकी चैनेल ने भी न्यूज पिक अप कर ली थी। इंडिया टीवी चीख-चीखकर कह रहा था- “सबसे पहले इस चैनेल पे ब्रेकिंग न्यूज। एक नया आतंकी हमला। सरकार फेल…”

“उईई माँ…” गुड्डी अचानक चीखी-


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“गुंजा…”

मैंने पूछा- “क्या हुआ गुंजा को?”

गुड्डी- “अरे स्कूल की तो छुट्टी हो गई थी तो उसके क्लास की। बोला था ना उसने एक्स्ट्रा क्लास है। ये उसी के क्लास की लड़कियां होंगी…” गुड्डी की आवाज रुवांसी हो गई थी।

मैंने कस के गुड्डी का हाथ दबाया, उसे अश्योर किया, और उससे ज्यादा खुद को, और धीरे से बोला, " गुंजा को कुछ नहीं हो सकता, वो एकदम ठीक होगी :
बार बार आँखों के सामने गुंजा का वो भोला चेहरा, कैशोर्य की पायदान पर खड़ी, और बार बार मन में यही आता नहीं गुंजा को कुछ नहीं हो सकता

मैं- “अरे हम लोग चलते हैं ना चलो…” गुड्डी को बोला मैंने।



गुड्डी हाथ धोने बाथरूम चली गई।



एक और चैनेल अब बोल रहा था था-

“हालांकि पोलिस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया है, लेकिन हमारे सोर्सेज के अनुसार ये आतंकी हमला ही लगता है। क्योंकि बंधक बनाने वालों ने एक बाम्ब का प्रयोग किया है। डी॰जी॰ पोलिस ने लखनऊं से बताया है की स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। मुख्यमंत्री वापस आ रहे हैं। अभी अभी खबर आई है की कुल 22 लड़कियों में से 19 बंधकों के घुसने के समय निकल भागीं लेकिन 3 लड़कियां बंधक हैं। उनका नाम पुलिस ने बताने से इनकार किया है…”


मोबाईल, पुलिस की गाड़ी बाहर खड़ी थी।

हम लोग सीधे उसी में जाकर बैठ गए। अचानक मुझे याद आया- “चंदा भाभी कहीं वो टीवी तो नहीं देख रही होंगी और वो चैनेल देखकर घबड़ा तो नहीं रही होंगी?”


गुड्डी ने ऐस्योर किया-

“नहीं वो नार्मली सोती हैं। और ज्यादातर लड़कियां तो चैनेल बता रहा था की निकल गई थीं, तो गुंजा निकल ही गई होगी और अगर हम लोगों ने फोन किया तो पहले तो जवाब दो की हम लोग अब तक गये क्यों नहीं? फिर वो कहेंगी की घर आ जाओ और फिर ये की शहर में टेंशन है। तो आज मत जाओ। तो फिर तो…”


फिर मैंने भी सोचा की वो लोग बेकार में परेशान होंगे।
लेकिन आँखों के सामने बार बार गुंजा का चेहरा याद आ रहा था, सुबह नाश्ते के समय स्कूल की ड्रेस में, स्कूल से लौट के रंगा पुता, स्कूल की उसकी सहेलियों के किस्से, कैसे जबरदस्त होली उसने शाजिया और महक के साथ मिल के खेली,... एकदम रंग उसकी बातों से छलक रहा था
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और वो स्कूल, उसी स्कूल में ये हमला, तीन लड़कियों को होस्टेज बनाया है,

बस गुंजा न हो
Wow DB ka private number se phone aaya. Aur tv dekhne ko kaha. Tv on karte hi khatrnak news. Ek atankwadi hamla hone ki ashanka. Dar anand babu ki sali. Guddi ne tv dekhte hi kahe diya ki ye to meri hi school hai. Ab tension gunja ghar aai ya nahi. Vese bhi chudai vali school dono baheno ki ek hi hai.

DB ne red alert jari kar diya hai. Chalo ye achha hai ki DB ne anand babu ko vaha aane ki permission de di. Ghatna sthal ko police ne ghera huaa hai. Sath me media news channel chikh chikh ke ye khabar dila rahe hai.

Guddi ko yaad aaya ki gunja extra class ke lie rukne vali thi. Anand babu guddi ko dilasha to de rahe hai. Par dar unhe bhi lag raha hai.

Bap re bandhak banane valo ne bomb ka upyog kiya hai. Par ye achha hai ki 22 ne se 19 bhag gai. Par 3 ladkiya ab bhi bandhak hai. Aur police vale name nahi bata rahe hai.

Ek ye bhi tension hai ki ghar par kahi chada bhabhi kahi news na dekh rahi ho. Vo bhi pareshan honge. Is sab me anand babu ko us pyari si kishori ki chanchalta yaad aa rahi hai. Jo kisse gunja suna rahi thi. Ghatna usi school ki hai.

Amezing update Komalji. Kahani ka rukh badla aapne to hawao ka rukh badla. Maza aa gaya.

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Premkumar65

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फागुन के दिन चार -भाग २८

आतंकी हमला होने की आशंका

गुंजा
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स्वीट डिश में रबड़ी, गुलाब जामुन, लेकिन गुलाब जामुन के चारों ओर बूंदी लगी थी। मीठी बूंदी। हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा, लेकिन कोई नंबर नहीं। मैंने फिर ध्यान से देखा तो लिखा था- “प्राइवेट नम्बर…”

अचानक मुझे ध्यान आया, डी॰बी॰ का नंबर। उन्होंने मुझे एस॰एम॰एस॰ किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेंगे । मैंने फोन उठाया।


डी॰बी॰ बोले - “टीवी देख रहे हो?”

मैं- “हाँ…” टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला-


आई आम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन।

व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन

ऊ ऊ।




आवाज उनके फोन पे जा रही होगी।

डी॰बी॰ बोले - “अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज…”

उनकी आवाज में टेंशन साफ़ झलक रहा था। नॉर्मली वो कभी टेन्स नहीं होते, लेकिन कुछ तो गड़बड़ है, और फिर इस तरह से अनलिस्टेड प्राइवेट नंबर से फोन करके,


अभी सब ठीक चल रहा था, इतनी मस्ती का माहौल लेकिन, उनकी बात सुन के मैं भी टेन्स हो गया और मैंने तान्या को इशारा किया।

उसने चैनेल चेंज करके बी॰एन॰एन॰ (बनारस न्यूज नेटवर्क) लगाया।


एक स्कूल की धुंधली फोटो आ रही थी, नाम भी सही नहीं सुनाई दे रहा था।

एक न्यूज कास्टर सामने खड़ा बोल रहा था। नीचे ब्रेकिंग न्यूज भी चल रही थी।



चूड़ा देवी बालिका विद्यालय, मैं दो लोगों ने लड़कियों को बंधक बनाया,... आतंकी हमला होने की आशंका।

गुड्डी उठकर खड़ी हो गयी “ये तो मेरा स्कूल है…”

एक पल के लिए मेरे चेहरे पे मुस्कराहट छा गयी, गुंजा याद आ गयी, स्कूल से लौट के आयी थी,

भूत.,,,नहीं सारी, ...चुड़ैल लग रही थी।

सुबह कैसी चिकनी विकनी होकर गई थी। गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट, बालों में भी। एक इंच जगह नहीं बची थी, चेहरे पे, यहां तक की मोती ऐसे सफ़ेद दांत भी लाल, बैंगनी। कई कोट रंग लगे थे ,



गुंजा का स्कूल,



एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,


लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने हंस के बोला,

" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"
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लेकिन अगले पल मेरी हालत खराब हो गयी, गुंजा, उसकी दूध खील सी हंसी, वो मुस्कान, उसका तो एक्स्ट्रा क्लास था वो,….

कहीं स्कूल में तो नहीं,....



टीवी स्क्रीन पर अब फोटो साफ़ हो गयी थी, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,

गुड्डी ने फिर बोला, ये तो मेरा स्कूल है,

गुड्डी का स्कूल, गुंजा का स्कूल, गुंजा गुड्डी से दो साल ही तो छोटी थी, लेकिन छोटी बहन से भी बढ़कर और उससे भी बढ़कर सहेली और उसकी सारी शरारतों में बराबर की हिस्सेदार और मेरी, छोटी साली
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“तुम्हें कुछ मालूम है इस इलाके के बारे में? हमने रेड अलर्ट डिक्लेयर कर दिया है…” डी॰बी॰ की आवाज फोन पे आ रही थी।

मैंने पूछा- “मैं,.. हम आ सकते हैं?” अब मेरा दिल जोर जोर से धक धक कर रहा था , मन तेजी से घबड़ा रहा था, गुंजा भी तो स्कूल गयी थी, किसी एक्स्ट्रा क्लास में

- “आ जाओ मैं कंट्रोल रूम में हूँ कोतवाली में, स्कूल भी पास में ही है…” और फोन रख दिया।

न्यूज चैनेल ने अब ढेर सारी पोलिस की गाड़ी, अम्बुलेंस।

वो एरिया अब बैरिकेड कर दिया गया था। बाकी चैनेल ने भी न्यूज पिक अप कर ली थी। इंडिया टीवी चीख-चीखकर कह रहा था- “सबसे पहले इस चैनेल पे ब्रेकिंग न्यूज। एक नया आतंकी हमला। सरकार फेल…”

“उईई माँ…” गुड्डी अचानक चीखी-


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“गुंजा…”

मैंने पूछा- “क्या हुआ गुंजा को?”

गुड्डी- “अरे स्कूल की तो छुट्टी हो गई थी तो उसके क्लास की। बोला था ना उसने एक्स्ट्रा क्लास है। ये उसी के क्लास की लड़कियां होंगी…” गुड्डी की आवाज रुवांसी हो गई थी।

मैंने कस के गुड्डी का हाथ दबाया, उसे अश्योर किया, और उससे ज्यादा खुद को, और धीरे से बोला, " गुंजा को कुछ नहीं हो सकता, वो एकदम ठीक होगी :
बार बार आँखों के सामने गुंजा का वो भोला चेहरा, कैशोर्य की पायदान पर खड़ी, और बार बार मन में यही आता नहीं गुंजा को कुछ नहीं हो सकता

मैं- “अरे हम लोग चलते हैं ना चलो…” गुड्डी को बोला मैंने।



गुड्डी हाथ धोने बाथरूम चली गई।



एक और चैनेल अब बोल रहा था था-

“हालांकि पोलिस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया है, लेकिन हमारे सोर्सेज के अनुसार ये आतंकी हमला ही लगता है। क्योंकि बंधक बनाने वालों ने एक बाम्ब का प्रयोग किया है। डी॰जी॰ पोलिस ने लखनऊं से बताया है की स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। मुख्यमंत्री वापस आ रहे हैं। अभी अभी खबर आई है की कुल 22 लड़कियों में से 19 बंधकों के घुसने के समय निकल भागीं लेकिन 3 लड़कियां बंधक हैं। उनका नाम पुलिस ने बताने से इनकार किया है…”


मोबाईल, पुलिस की गाड़ी बाहर खड़ी थी।

हम लोग सीधे उसी में जाकर बैठ गए। अचानक मुझे याद आया- “चंदा भाभी कहीं वो टीवी तो नहीं देख रही होंगी और वो चैनेल देखकर घबड़ा तो नहीं रही होंगी?”


गुड्डी ने ऐस्योर किया-

“नहीं वो नार्मली सोती हैं। और ज्यादातर लड़कियां तो चैनेल बता रहा था की निकल गई थीं, तो गुंजा निकल ही गई होगी और अगर हम लोगों ने फोन किया तो पहले तो जवाब दो की हम लोग अब तक गये क्यों नहीं? फिर वो कहेंगी की घर आ जाओ और फिर ये की शहर में टेंशन है। तो आज मत जाओ। तो फिर तो…”


फिर मैंने भी सोचा की वो लोग बेकार में परेशान होंगे।
लेकिन आँखों के सामने बार बार गुंजा का चेहरा याद आ रहा था, सुबह नाश्ते के समय स्कूल की ड्रेस में, स्कूल से लौट के रंगा पुता, स्कूल की उसकी सहेलियों के किस्से, कैसे जबरदस्त होली उसने शाजिया और महक के साथ मिल के खेली,... एकदम रंग उसकी बातों से छलक रहा था
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और वो स्कूल, उसी स्कूल में ये हमला, तीन लड़कियों को होस्टेज बनाया है,

बस गुंजा न हो
Sahi hai aisi mast sali ko kaun khan chahega.
 
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