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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

vakharia

Supreme
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आपकी टिप्पणी पढ़कर बस यही लगता है की कोई व्यक्ति एक लब्धप्रतिष्ठित लेखक होने के साथ कुशल समीक्षक भी कैसे हो सकता है।

मैं मानती हूँ कहानी तभी कहनी चाहिए, जब कुछ कहने को हो। उस पर आवरण, इरोटिका का हो, थ्रिलर का हो या कोई और, लेकिन बात कुछ होनी चाहिए , लेकिन यह तो मानने की बात है, साथ में यह मनाती हूँ की कुछ ऐसे मित्र पाठक मिल जाएँ जो ऊपर के कलेवर को हटा के जो मैं कहना चाहती हूँ, उस तह तक पहुंचे और उस का न सिर्फ आनंद उठायें बल्कि कमेंट में भी कहें,

उपन्यास या लम्बी कहानी में इस बात की संभावना ज्यादा रहती है, इस कहानी के शुरू के प्रसंगो में लाइट फेम डॉम या उसका एक और रूप ' शी मेक्स द रूल ( SMTR ) की भी कुछ झलक है, इसी तरह से कोचिंग के बारे में भी,

और यह कारपोरेट रूप इस कहानी का अभी कुछ दिन तक चलेगा, जो मेरे लिए थोड़ा जटिल है और उसे कम्युनिकेट करना और जटिल लग रहा था , लेकिन आपके इन शब्दों ने मेरी हिम्मत बढ़ाई और मैं कोशिश करुँगी की यह पक्ष जो मेरे लिए तो नया है ही, इस फोरम में भी इस तरह के प्रयोग कम ही हैं, उस पर थोड़ा, लुढ़कते पुढ़कते ही सही आगे बढ़ सकूँ।

मुझे विश्वास है की अगर लड़खड़ाउंगी भी तो आप ऐसे स्नेही जन हाथ थाम के सहारा देने के लिए, हिम्मत बढ़ाने के लिए हैं

फागुन के दिन चार के भी लेटेस्ट अपडेट में इसी तरह का एक बदलाव है और तीसरी कहानी भी एक बदलाव की ओर मुड़ रही है

एक बार फिर आभार।


कोमल जी,

सच कहूँ तो मैं केवल अपने विचार रख रहा था.. आपके लेखन की समीक्षा करना मतलब सूरज को दिया दिखाने के बराबर होगा.. !! आपका लेखन कौशल अतुल्य है.. शब्द संरचना में जिस तरह की आपकी महारथ है.. उसे मैं हमेशा ही विस्मय से पढ़ता हूँ.. !!

उदाहरण रूप.. आपका यह वाक्य "कहानी तभी कहनी चाहिए, जब कुछ कहने को हो" चंद शब्दों में कितना कुछ कह गई आप.. !! निरुद्देश्य लेखन से परहेज लेखक/लेखिका के दृष्टिकोण को परिभाषित करता है.. कहानी का निर्माण और उसकी प्रस्तुति तभी करनी चाहिए, जब उसके पीछे एक ठोस वजह, विचार, या संदेश हो.. केवल मनोरंजन तो मदारी के बंदर को सायकिल चलाते देखकर भी मिल सकता है.. और वैसे भी मनोरंजन या समय बिताने के लिए कहानी लिखी जाए, तो उसका प्रभाव सीमित ही होगा..

आपने महिला यौन वर्चस्व और SMTR का उल्लेख किया..सच कहूँ तो मैंने इन विषयों का इतनी संजीदगी से विवरण नहीं देखा.. अमूमन इन विषयों के वर्णन मे जिस तरह की आक्रामकता का प्रयोग होता है, वो मुझे राज नहीं आता.. पर आपका अंदाज बेहद निराला था..!!!

कॉर्पोरेट जटिलताओ के ताने बाने, कहानी के इर्दगिर्द बुनते हुए जिस तरह की असाधारण पृष्ठभूमि को आपने कथा में पिरोया है.. शब्द कम पड़ेंगे सराहना करते हुए.. लेखन मे ऐसा साहस ज्यादातर देखने को नहीं मिलता.. लेखक उसी पृष्ठभू से खेलना पसंद करते है, जिनका उन्हें परिचय हो.. !!

अंत मे बस इतना ही कहूँगा.. अपनी लेखनी से ऐसे ही प्रेरित करते रहिए.. !!

सादर..

वखारिया
 
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