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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २३६ - मंगलवार, दिल्ली

अपडेट पोस्टड, पृष्ठ १४३३ फायनेंसियल थ्रिलर का नया मोड़,

कृपया पढ़ें, आंनद लें और कमेंट जरूर करें
 
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एकदम भाभी , और वैसे भी आप आज ये नहीं बोल सकतीं की ऊपर वाले मुंह से नहीं खाओगी तो नीचे वाले मुंह से ,... वहां अभी भी कमल जीजू की मलाई बुचौबूच भरी है , "

खिलखिलाते हुए वो टीनेजर बोली।
कमल तो साली के साथ साली की ननद को भी अपना गुलम बना लया इस पर रहते हैं नहला पर दहला जहां रोज लल्ली से खेलती थी कमल का उतना मोटा और लंबा नंनद भाभी तो मिस तो करेंगे ही अगर गुड्डी के भाई शेर हैं तो शेर के मुंह से शिकार छीन के करना कमल बब्बर शेर कहलाता है इसे कहते हैं मर्द जो कमल का किरदार है कहानी पढ़ने के बाद ऐसा लगता है असली हीरो यही है
 
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भाभी , रीनू भाभी का मेसेज आया था , आधे घंटे पहले। उन लोगो की फ्लाइट एकदम राइट टाइम पहुँच गयी। कमल जीजू अपने अड्डे के लिए निकल गए और रीनू भाभी अपने घर , ग्यारह बजे तक पहुँच भी जाएंगी , मैंने तो उन्हें बोल भी दिया , जाइये अब अजय जीजू को पूरा टाइम मिलेगा , कम से कम एक राउंड , वहां न मैं हूँ न आपकी छुटकी बहिनिया , ... अजय जीजू की सारी ताकत ,... मीटिंग तो उनकी तीन बजे से है। मुझे याद था। "
रीनू ने अपने सजना को खुश कर दिया पहली बहन का पिछवाड़ा बुकिंग दूसरा बहन का नंनद का पिछवाड़ा बुकिंग रीनू गई तीसरा बुकिंग करा कर नहीं गई यह तो सोचने वाली बात हो गई अभी तो रीनू की बहन की सास बची थी इस कहानी में रीनू की जो कजिन दो ननंद थी जो फोटो दिखाई थी उनका रोल प्ले नहीं आया रीनू इतनी दूर की बुकिंग करवा सकती है तो अपने दोनों ननंद कजिन पर बुकिंग क्यों नहीं करवाई यह तो सोने की बात हो गई आपका बहुत धन्यवाद कोमल मैं नाराज मत हना अच्छा लगे तो गौर करना नहीं तो कोई बात ही नहीं है
 

komaalrani

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वाह कोमल मैम


आप लाईक की बात कर रहीं हैं ?? इस अपडेट पर तो अश: अश: करने का मन कर रहा है।

कॉरपोरेट परिदृश्य पर क्या शानदार पकड़ है आपकी ! बस मन मंत्रमुग्ध हो गया, कुछ कहते ही नहीं बन पा रहा है।

कंपनी एक्वायर पर स्वराज पाल का प्रकरण स्मृत हो आया।

मैने तो पहले भी कहा है और फिर कह रहा हूं कि आपका इरॉटिक लेखन तो कलेवर मात्र है। असली लेखन तो पृष्ठभूमि में हर विषय पर आपकी गहरी पकड़ है जो समय - समय पर आपकी कहानियों के अपडेट में दिखता है।

सादर
इस तेज चेंज पर मुझे लगा रहा था की पता नहीं कोई पढ़ेगा भी की नहीं और फिर कमेंट,

लेकिन आपने न सिर्फ कहानी का यह मोड़ पढ़ा, उसे लाइक किया और बदले परिदृश्य को सराहा भी और आपके साथ अनेक मित्रों ने भी, और मुझे आत्मविश्वास मिला की अब कहानी जिधर मुड़ पड़ी है वह दिशा भी मित्र पाठक पसंद करेंगे सराहेंगे

बाकी दो कहानियो में भी थोड़ा बदलाव आप देखंगे

और कोशिश करुँगी की फागुन के दिन चार, जिसमे भी जबरदस्त बदलाव आएगा आज कल में पोस्ट कर दूँ

वहां भी आपके कमेंट का इन्तजार रहेगा।
 

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २३४ क्राइसिस पृष्ठ 1410


please read, enjoy, like and comment.
 

komaalrani

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Sala aajtak itna to kabhi जाना ही नहीं है शेयर बाजार या किसी कंपनी के बारे में
अभी तो कहानी शुरू हुयी है मेरा मतलब ये वाला हिस्सा

बस साथ बनाये रखियेगा, और इसी तरह से कमेंट तो देखिएगा इस कहानी में और क्या क्या आएगा
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २५ पृष्ठ ३०८

एक मेगा अपडेट पोस्टेड

कृपया, पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २५ रंग पृष्ठ ३०८
एक मेगा अपडेट पोस्टेड
कृपया, पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें


अपडेट की कुछ बानगी

पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली। ये आर्डिनरी चेन नहीं थी, चेन का एक फेस बहुत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था। गिटार के तार की तरह,.... ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी। दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगाकर। गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहुत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे।

प्रैक्टिस, सही जगह तार का लगना और बहुत फास्ट रिएक्शन तीनों जरूरी थे।


पनद्रह बीस सेकंड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था

और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली, माडल 640।

मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहुत एक्युरेट।

इसमें 5 शाट्स थे। लेकिन एक ही काफी था। उसने पहले मुझे सामने खोजा, फिर गुड्डी की ओर।

तब तक तार उसके गले पे।

पहले ही लूप बनाकर मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में, तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे।

छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया। वो इस पेशे में इतना पुराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और,...

लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था।

मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से, और घुटना मुड़ गया। और दूसरी किक दूसरे घुटने पे। वो घुटनों के बल हो गया। लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी, और तार गले में फँसा हुआ था।

मैंने उसके कान में बोला- “मैं पांच तक गिनूंगा गिनती और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…”

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धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ-

“कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…”

गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।

और पीछे से थानेदार साहब।

पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।

“साल्ला मच्छर…”

बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-

“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को,... लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।

“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”

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तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।



क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।

सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।

खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।



एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।


सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-

“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।



Please do read latest action filled update of Phagun ke din chaar
 
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komaalrani

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कोमल जी,

आपकी लिखाई पर दिल से प्रशंसा व्यक्त करना चाहता हूँ.. आपने जिस प्रकार से एक एरोटिक कहानी में कॉर्पोरेट वित्तीय जमेले, शेयरों के दरों की उठापटक, अधिग्रहण से जुड़ी संजीदगियाँ, और कॉर्पोरेट सरवेलन्स जैसे जटिल विषयों को मिश्रित किया है, वह अत्यंत प्रभावशाली भी है.. आपने इन कठिन और तकनीकी विषयों को इस सटीकता से प्रस्तुत किया है कि पाठक को न केवल कहानी के रोमांचक मोड़ से जुड़ाव महसूस होता है, बल्कि वे इन कॉर्पोरेट मुद्दों को भी समझ पाते हैं.. एरोटिक तत्वों के बीच भी आपने इन मुद्दों को ऐसे रूप में समाहित किया है कि वे कहानी के मर्म को न केवल बढ़ाते हैं बल्कि उसे और भी अर्थपूर्ण बना देते हैं.. जाहीर होता है की इन सारे विषयों का ज्ञान केवल पढ़कर नहीं आ सकता.. आपने जरूर ऐसे मामलों को प्रवृत्त होकर संभाला भी होगा..

यह कहानी सिर्फ एक सामान्य एरोटिक कथा नहीं है, बल्कि यह आपकी लिखने के कौशल्य का प्रतीतिकरण है, जिसने वित्तीय और कॉर्पोरेट संस्कृति के संसार को बड़े ही सटीकता और सामंजस्य के साथ एक रोमांचक कथा में ढाल दिया है.. आपकी लेखनी ने यह साबित कर दिया है कि लेखन का कोई भी विषय हो, उसे कुशलता से प्रस्तुत किया जा सकता है, अगर उसमें समर्पण और विद्वता हो...
आपकी टिप्पणी पढ़कर बस यही लगता है की कोई व्यक्ति एक लब्धप्रतिष्ठित लेखक होने के साथ कुशल समीक्षक भी कैसे हो सकता है।

मैं मानती हूँ कहानी तभी कहनी चाहिए, जब कुछ कहने को हो। उस पर आवरण, इरोटिका का हो, थ्रिलर का हो या कोई और, लेकिन बात कुछ होनी चाहिए , लेकिन यह तो मानने की बात है, साथ में यह मनाती हूँ की कुछ ऐसे मित्र पाठक मिल जाएँ जो ऊपर के कलेवर को हटा के जो मैं कहना चाहती हूँ, उस तह तक पहुंचे और उस का न सिर्फ आनंद उठायें बल्कि कमेंट में भी कहें,

उपन्यास या लम्बी कहानी में इस बात की संभावना ज्यादा रहती है, इस कहानी के शुरू के प्रसंगो में लाइट फेम डॉम या उसका एक और रूप ' शी मेक्स द रूल ( SMTR ) की भी कुछ झलक है, इसी तरह से कोचिंग के बारे में भी,

और यह कारपोरेट रूप इस कहानी का अभी कुछ दिन तक चलेगा, जो मेरे लिए थोड़ा जटिल है और उसे कम्युनिकेट करना और जटिल लग रहा था , लेकिन आपके इन शब्दों ने मेरी हिम्मत बढ़ाई और मैं कोशिश करुँगी की यह पक्ष जो मेरे लिए तो नया है ही, इस फोरम में भी इस तरह के प्रयोग कम ही हैं, उस पर थोड़ा, लुढ़कते पुढ़कते ही सही आगे बढ़ सकूँ।

मुझे विश्वास है की अगर लड़खड़ाउंगी भी तो आप ऐसे स्नेही जन हाथ थाम के सहारा देने के लिए, हिम्मत बढ़ाने के लिए हैं

फागुन के दिन चार के भी लेटेस्ट अपडेट में इसी तरह का एक बदलाव है और तीसरी कहानी भी एक बदलाव की ओर मुड़ रही है

एक बार फिर आभार।
 
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