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जिठानी
मूसल चंद ठोकर पर ठोकर मार रहे थे ,गुस्से में ,सीधे गले तक रगड़ रगड़ कर ,
गलती मूसलचंद की भी नहीं थी , कौन नहीं गुस्सा होता। उसकी सोनचिरैया पर बचपन के माल पर जिसे वो इतने दिनों से पटाने की ,फंसाने की कोशिश कर रहे थी और जब उसकी झिल्ली फाड़ने का मौका आया तो यही जेठानी , सब कुछ भरभंग करने में जुटी थीं , पूरी प्लानिंग बना के।
कुछ देर तक मैं भी देखती रही , पर मैं अपने काम में लग गयी , बुर चूसने के।
और अबकी जब वो झड़ने के कगार पर पहुंची तो मैंने कनखियों से देखा , उन्होंने अपनी भौजाई के मुंह से लंड निकाल लिया है।
मूसलचंद क़ुतुब मीनार की तरह खड़े हैं , तन्नाए।
झड़ने तो मैंने उनकी अभी भी नहीं दिया , मैं रुक गयी और जोर से अपने नाखूनों से क्लिट को नोच लिया।
दर्द से जेठानी बिलबिला उठीं।
गुस्सा मुझे कौन सा कम था , मेरे साथ जो किया ,किया , इत्ते मुश्किल से अपने सैंया के लिए उनकी बहन को पटाया था और उसी में वो ,...दर्द कम होने से पहले मैंने फिर चूसना शुरू कर दिया और अबकी दो मिनट में ही ,... मैं फिर रुक गयी।
तीन बार चार बार , बुर लथपथ हो रही थी।
" हे झाड़ दे न ,एक बार झाड़ दे काहें तड़पा रही ही। " जिठानी बिनती कर रही थीं।
लेकिन जैसे मैंने सुना नहीं ,और एक बार फिर ,...
छह बार , सात बार झड़ने के कगार पे ले जाके ,
अब वो कुछ भी करने को तैयार थीं
" अरे प्लीज एक बार झाड़ दो न , उफ़ उफ्फ्फ्फ़ , क्या करती हो ,झाड़ दो न प्लीज , ओह्ह ओह्ह हाँ , ... "
" अरे इतना मस्त खड़ा है , तैयार उनसे बोलिये न अपने देवर से। जो मजा लंड से चुदवा के झड़ने से आएगा वो ,.. "
और मैं अपनी जेठानी की ओर देखा ,वो याचना की दृष्टि से अपने देवर की ओर देख रही थीं।
पर उन्होंने ना ना में सर हिला दिया।
रास्ता मैंने निकाला ,आखिर कुछ भी हो मेरी जेठानी थीं ,
" अरे दीदी ऐसे नहीं ,खुल के बोलिए अपना लंड मुझे दो न ,चोदो मुझे और हो सकता है थके हों ,दिन भर तो खाना बनाया उन्होंने ,तो आप ही न उनके ऊपर चढ़ के चोद दीजिये। आखिर आप के छोटे देवर है आप का हक है ,और फिर लंड भी कितना मस्त खड़ा है। "
मूसल चंद ठोकर पर ठोकर मार रहे थे ,गुस्से में ,सीधे गले तक रगड़ रगड़ कर ,
गलती मूसलचंद की भी नहीं थी , कौन नहीं गुस्सा होता। उसकी सोनचिरैया पर बचपन के माल पर जिसे वो इतने दिनों से पटाने की ,फंसाने की कोशिश कर रहे थी और जब उसकी झिल्ली फाड़ने का मौका आया तो यही जेठानी , सब कुछ भरभंग करने में जुटी थीं , पूरी प्लानिंग बना के।
कुछ देर तक मैं भी देखती रही , पर मैं अपने काम में लग गयी , बुर चूसने के।
और अबकी जब वो झड़ने के कगार पर पहुंची तो मैंने कनखियों से देखा , उन्होंने अपनी भौजाई के मुंह से लंड निकाल लिया है।
मूसलचंद क़ुतुब मीनार की तरह खड़े हैं , तन्नाए।
झड़ने तो मैंने उनकी अभी भी नहीं दिया , मैं रुक गयी और जोर से अपने नाखूनों से क्लिट को नोच लिया।
दर्द से जेठानी बिलबिला उठीं।
गुस्सा मुझे कौन सा कम था , मेरे साथ जो किया ,किया , इत्ते मुश्किल से अपने सैंया के लिए उनकी बहन को पटाया था और उसी में वो ,...दर्द कम होने से पहले मैंने फिर चूसना शुरू कर दिया और अबकी दो मिनट में ही ,... मैं फिर रुक गयी।
तीन बार चार बार , बुर लथपथ हो रही थी।
" हे झाड़ दे न ,एक बार झाड़ दे काहें तड़पा रही ही। " जिठानी बिनती कर रही थीं।
लेकिन जैसे मैंने सुना नहीं ,और एक बार फिर ,...
छह बार , सात बार झड़ने के कगार पे ले जाके ,
अब वो कुछ भी करने को तैयार थीं
" अरे प्लीज एक बार झाड़ दो न , उफ़ उफ्फ्फ्फ़ , क्या करती हो ,झाड़ दो न प्लीज , ओह्ह ओह्ह हाँ , ... "
" अरे इतना मस्त खड़ा है , तैयार उनसे बोलिये न अपने देवर से। जो मजा लंड से चुदवा के झड़ने से आएगा वो ,.. "
और मैं अपनी जेठानी की ओर देखा ,वो याचना की दृष्टि से अपने देवर की ओर देख रही थीं।
पर उन्होंने ना ना में सर हिला दिया।
रास्ता मैंने निकाला ,आखिर कुछ भी हो मेरी जेठानी थीं ,
" अरे दीदी ऐसे नहीं ,खुल के बोलिए अपना लंड मुझे दो न ,चोदो मुझे और हो सकता है थके हों ,दिन भर तो खाना बनाया उन्होंने ,तो आप ही न उनके ऊपर चढ़ के चोद दीजिये। आखिर आप के छोटे देवर है आप का हक है ,और फिर लंड भी कितना मस्त खड़ा है। "