जीजू एक
सालियाँ दो -डबल मस्ती होली की
जीजू सुबह की होली के रंगों से सराबोर कुर्ता पैजामा पहने थे ,
आगे से ज्योति पीछे से मैं बीच में जीजू ,होली में दो किशोर कुँवारी सालियों के बीच सैंडविच बने ,
मेरे जोबन की बरछी मेरी ,ब्रा और उनका कुरता फाड़ के जीजू की पीठ में छेद कर रही थी।
ज्योति ने जीजू का कुरता उतारने की कोशिश की ,पर मैंने आँख से बरज दिया।
सुबह भौजाइयों की हुयी रगड़ाई से मैंने सीख लिया था ,
होली में किसी के कपडे उतारना एकदम गलत है ,
कपडे सिर्फ फाड़ देने चाहिए ,अरे उतरे हुए कपडे कोई दुबारा पहन ले तो !
और रंगों में में भीगे कपडे तो झट से फटते हैं।
बस कुर्ते के अंदर हाथ डाल के पीछे से , चररर
और बस ज्योती भी सीख गयी , आगे से भी चरररर , थोड़ी देर में उनका फटा रंगा कुर्ता हम लोगों के कुत्ते और कुर्ती के बगल में।
" हे जीजू की ब्रा भी तो उतार , ... इनकी माँ बहने तो ब्रा पहनती नहीं ,गाँव जवार में अपना जुबना उभार के दिखाते ललचाते चलती हैं ,है न जीजू , "
पीछे से उनकी बनयान में हाथ डालते मैं बोली।
" अरे तू भी न बेकार में मेरी दीदी की सास ननद को ब्लेम कर रही है ,सही तो करती हैं वो जो दिखता है वो बिकता है। क्यों जीजू। "
" तो फिर हमारे जीजू ही क्यों ब्रा पहन के ,...कुछ छिपाने की चीज है क्या इसके अंदर ,... " पीछे से मैंने छेड़ा पर ज्योति ने मुझे हड़का लिया।
"तो खोल के देख क्यों नहीं लेती मेरी नानी। "
सुबह की होली में मेरी भौजाइयों ने सिखा दिया था और अब मैं खोलने में नहीं फाड़ने में यकीन रखती थी ,
मैं और ज्योती एक साथ ,
चरररर ,
जीजू की फटी रंगी पुती बनयान उनके कुर्ते के ऊपर और बस अब मेरी ब्रा और उनकी पीठ।
और मेरे रगे पुते हाथ ने जीजू के मर्दाने टिट्स को , ( ये ट्रिक भी गुलबिया की सिखाई थी )
पहले तो मेरे लम्बे नाखूनों ने उसे फ्लिक किया , फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच जीजू के निप्स को रोल करते मैंने छेड़ा ,
" जीजू आपने तो हम सालियों को आधा तीहा ही टॉपलेस किया था , हमने आपको पूरा कर दिया। "
" और क्या आधे तिहे में क्या मजा " ज्योति जीजू के गालों का आराम से मजा लेते, रंग लगाते बोली।
" स्सालियों ,जब मैं पूरा डालूंगा न तो पता चलेगा फट के , ... " कुछ चिढ़ते ,कुछ चिढ़ाते जीजू बोले।
"अरे जीजू डालियेगा न ,ये स्साली तो डलवाने ही आयी है। लेकिन अभी मैं डाल रही हूँ ,आप डलवाने का मजा लो , ... "
ऊपर की मन्जिल पर तो मेरी सहेली ने कब्जा कर लिया था ,मैंने नीचे का रुख किया ,सीधे जीजू के पिछवाड़े , पाजामे के अंदर।
मैं हाथ में कड़ाही की कालिख , पक्के पेण्ट और गाढ़े लाल रंग की जो कातिल कॉकटेल बना के लायी थी , घर में घुसने से पहले ,वो सारा का सारा
जीजू के पिछवाड़े ,
पहले तो दोनों चूतड़ रंगे गए ,और उसके बाद एक रंगी पुती ऊँगली , दोनों चूतड़ के बीच की दरार पर , हलके हलके सहलाती।
और साथ मेरी लेसी टीन ब्रा के अंदर से मेरे जुबना जीजू की पीठ को रगड़ते ,
हलके से मैंने अपनी जीभ से बस जीजू के कान के लोब्स को छू भर लिया और पिछवाड़े मेरी ऊँगली का उनकी दरार पर दबाव भी बढ़ गया ,
" बड़ी कसी है जीजू आपकी , लगता है बहुत दिनों से आपका पिछवाड़ा कोरा है , लेकिन आज नहीं बचेगा "
और मेरी ऊँगली की टिप का , पूरा प्रेशर , घुसी नहीं लेकिन ,...
" अपनी बचाना तू ,आज बिना फाडे नहीं छोडूंगा , " जीजा खलबलाते बोले।
" अरे जीजू फाड़ लेना तो न उसकी पीछे वाले भी , स्साली है ,होली है ,... और आयी ही है ये मेरी सहेली डलवाने। "
ज्योती ,जीजा की चमची ,दलबदलू।
मैंने भी जीजा को पटाना शुरू कर दिया ,
" जीजू , वो स्साली कौन जो जीजू से होली में न डलवाये। लेकिन मेरी बात मानिये , आप ने इस ज्योती की आगे की फाड़ी थी न बस , आज इसके पिछवाड़े की भी फाड़ दीजिये , इसका पिछवाड़ा , मेरा अगवाड़ा दोनों का मजा। "
दो किशोर सालियों की गरम गरम बातें , और सबसे बढ़कर पिछवाड़े की मेरी ऊँगली ,पीठ पर मेरे जुबना का प्रेशर , ... जीजू का तम्बू तनने लगा था।