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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जीजू संग होली

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" अरे जीजू फाड़ लेना तो न उसकी पीछे वाले भी , स्साली है ,होली है ,... और आयी ही है ये मेरी सहेली डलवाने। "

ज्योती ,जीजा की चमची ,दलबदलू।


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मैंने भी जीजा को पटाना शुरू कर दिया ,

" जीजू , वो स्साली कौन जो जीजू से होली में न डलवाये। लेकिन मेरी बात मानिये , आप ने इस ज्योती की आगे की फाड़ी थी न बस , आज इसके पिछवाड़े की भी फाड़ दीजिये , इसका पिछवाड़ा , मेरा अगवाड़ा दोनों का मजा। "


दो किशोर सालियों की गरम गरम बातें , और सबसे बढ़कर पिछवाड़े की मेरी ऊँगली ,पीठ पर मेरे जुबना का प्रेशर , ... जीजू का तम्बू तनने लगा था।

शेर जगने लगा था।

मेरा दांया हाथ तो जीजू के पिछवाड़े , .. पर उस शेर को पुचकारना मेरे बाएं हाथ का खेल था।

और अब कालिख पेण्ट और रंग का मिश्रण , मेरे बाएं हाथ से सीधे जीजू के चर्मदण्ड पर।

मेरा बायां हाथ जीजू के पजामे के अंदर , पहले तो बस जैसे गलती से छु गया हो ,

फिर रंग लगी उँगलियों ने हलके से सहलाया ,

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और शेर एकदम तनतना उठा।



जीजू के अगर 'वहां ' रंग न लगा तो जीजू से होली खेलने का मतलब क्या ,

पहले तो मेरी रंगी पुती उँगलियों ने , वहां रंग पोता फिर हलके हलके मुठियाने लगीं।
खूब मोटा ,कड़ा ,

संदीप से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं था।

और एक झटके में ,

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जीजू ने जोर की सिसकी ली ,



मैंने सुपाड़ा खोल दिया था और मेरा अंगूठा अब उसे सहलाने पुचकारने में लगा था।
दाएं हाथ की तर्जनी भी अब जीजू के पिछवाड़े सेंध लगाने की कोशिश कर थी

और जीजू के सीने पर ज्योति , जैसे मेरी भाभियाँ सुबह मेरी कच्ची अमियों को रगड़ मसल रही थीं , बस उसी तरह

रंग ,पेण्ट लगाती।

और फिर ब्रा के अंदर से अपने जुबना जीजू के सीने पर रगड़ती मसलती।

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मुझे लग रहा था की कहीं जीजू का पजामा में उनका खूंटा छेद न कर दे बस मैंने नाडा खोल दिया।

आज सुबह घर की होली में कितनी भौजाइयों के पेटीकोट का नाडा मैं खोल चुकी थी।
और सर्रर्ररर ,... वो नीचे

जीजू सिर्फ एक वी टाइप छोटी सी चड्ढी में ,और उसके अंदर आगे ,पीछे,..... मेरे बाएं दाएं हाथ रगड़ते मसलते।

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उनके सीने पर ज्योती छोटी सी ब्रा में ढंकी ,अपने जोबना को रगड़ती और पीछे पीठ पर मेरे उभार ,
लेकिन ज्योती कमीनी छिनार , उसके हाथ मैंने अपनी पीठ पर रेंगते मह्सूस किये
( मेरे दोनों हाथ तो जीजू की चड्ढी के अंदर बिजी थे ) और जब तक मैंने समझूँ ज्योती ने मेरी ३२ सी ब्रा के हुक खोल दिए

और मेरे एकदम खुले उभार जीजू की पीठ पर , ब्रा सरक कर नीचे फर्श पर।

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जीजू की तो हालत खराब थी ही मुझे भी मजा आ रहा था , अपने जोबन सीधे उनकी पीठ पर रगड़ रगड़ कर उन्हें तंग करने में।
हाथ तो उनके बंधे थे ,वो कुछ तो कर नहीं सकते था।

पर मैंने ध्यान नहीं दिया की जीजू ,ज्योती के कान में कुछ फुसफुसा रहे हैं ,

कुछ देर तक तो ज्योति ना ना करती रही ,फिर उस के हाथों ने जीजू की पीठ की ओर


जीजू के बंधे हाथ खुल गए।


और मेरी शामत शुरू।
 
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komaalrani

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जीजू के खुले हाथ और मेरी शामत


Girl-anuja-06ece40521a07d74aefc77bed18fb630.jpg


पर मैंने ध्यान नहीं दिया की जीजू ,ज्योती के कान में कुछ फुसफुसा रहे हैं ,

कुछ देर तक तो ज्योति ना ना करती रही ,फिर उस के हाथों ने जीजू की पीठ की ओर
जीजू के बंधे हाथ खुल गए।
और मेरी शामत शुरू।

सामत तो आनी ही थी,



एक नए नए आते जोबन से मदमाती हाईस्कूल की लड़की, गोरी चिकनी , जिसकी कच्ची अमियों ने पूरे गाूँव जवार में आग लगा रखी हो । रिश्ते में स्साली, और खुद चलकर अपने जीजू से होली खेलने आये,


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और जीजू जैसे, कोई ऐसे वैसे नहीं ,

जिन्होंने अपनी शादी के चार दिन के अंदर ही अपनी सगी छोटी साली को चोद दिया हो दिन दहाड़े ।
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और एक बार नहीं हफ्ते दस दिन लगातार, बिना नागा, आसन बदल बदल कर कभी , कभी निहुराकर तो कभी जबरन अपने मोटे लंड पे कच्ची उम्र वाली साली को बैठा के,...

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जैसे भौजी ननद की उमर नहीं देखती वैसे जीजा साली की , आखिर रसीला रिश्ते का रस ज्यादा इम्पॉर्टेंट है या , कहते भी हैं , एज इज जस्ट अ नंबर

और वो भी चोरी छुपे नहीं , बल्की अपनी बीबी को बताकर,

बल्की उकसाती भी वही रहती थी। और जो साली उनकी सगी चुद रही थी सिर्फ उसके लिए ही नहीं, बल्कि मेरे लिए भी ये कह के , अभी छोटी साली तो बची है , गाँव पहुँच के उसकी भी जरूर लीजियेगा , वो भी सूद समेत वरना बुरा मान जायेगी, की जीजू दोनों सालियों में भेद करते हैं

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और इस साली के जोबन कोहबर में घुसते ही न सिर्फ पकड़ा था बल्की कसकर दरेर भी दिया था। बल्की चैलेंज भी दे दिया था, आने दे पहली होली में तेरी क्या गत बनायेगें म तेरीऔर उस स्साली ने जवाब भी और बढ़ चढ़ के दिया था

“जीजू, अरे मैं बुरा मान जाऊूँगी, अगर आपने अपनी पिचकारी का गाढ़ा सफ़ेद रंग हर बार की तरह इस बार फिर अपनों बहनों के साथ पिचकाया । मेरी कसम है , होली में आने की भी और सारी पिचकारी का रंग मेरे और मेरी सहेली के हिस्से में आना चाहिए , अरे अगर पिचका के न रख दिया आपकी पिचकारी को तो ये स्साली , आपकी साली नहीं। "

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क्या क्या गालियां मंडप में मैंने उनको और उनके दोस्त नीरज को न सुनाई थीं,



अरे जीजू की बहनी बड़ी हरजाई, अरे हेमा छिनार बड़ी हरजाई हमरे भइआ से अंखिया लड़ाई,

अरे पंकज भैय्या से, अरे संजय भईया, से अरे हमरे भैय्या से अंखिया लड़ाई।

अंखिया लड़ाई अरे अंखिया लड़ाई, अरे पंकज भैय्या से खूब चोदवायी।

अरे संजय भइया से, अरे नानू भैय्या से खूब चोदवायी।

दोनों जुबना पकड़कर, दोनों चूची पकड़कर चोदे ,

अरे हेमा छिनार लौंड़ा घोंटे , ।




और उसके बाद मैंने वो जीजू के दोस्त नीरज की रगड़ाई शुरू की, नाम ले लेकर

अरे नीरज जीजू क बहिनी खोजें भतार, अरे वो तो खोजेली यार,

अरे गीता छिनार को चाही सात सात भतार, अरे चाही दर्जन भर यार

अरे नीरज भंडुए की बहना को , अरे नीरज गंडुए की बहना को चाही दर्जन भर यार

अरे पंकज भइया हमारे कई द उपकार, अरे संजय भैया तनी कई द उपकार।


एक जाय आगे दूसर पछवाड़े, बचा नहीं कउनो नउआ कहार

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तो सामत तो आनी ही थी।



जीजू के हाथों ने आजाद ने होके बाद भी मेरी कच्ची अमियो की ओर रुख नहीं किया । दोनों हाथ मेरी पतली कटीली कमरिया पर, और जब तक मैं कुछ सोचूूँ समझूूँ, मेरी शलवार का नाड़ा खुल चुका था, और सरररर शलवार नीचे, जहाँ कुछ देर पहले मैंने जीजू के पाजामें का नाड़ा खोलकर फेंका था।

बस जीजू के पाजामे के ऊपर मेरी शलवार.


ब्रा तो पहले मेरी उस कमीनी दगाबाज सहेली ने उतरवा दी थी और अब मैं सिर्फ दो इंच की पट्टी वाली लेसी पैंटी में।

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और ब्रा, एक बार फिर से वो जीजू के हांथ में और मेरी नरम पतली कलाइयां मेरी ब्रा में कसकर बिंधी, छुड़ाने को कौन कहे , मैं कलाई हिला डुला भी नहीं सकती थी, जैसे मैंने जीजू के हाथ बांधे थे अपनी चुन्नी से एकदम वैसे ही टाइट।

एक बार फिर जीजू ने अपने तगड़े मरदाने हाथों में मुझे दिखाते मुश्कुराते आराम से गाढ़ा गीला गीला पेण्ट ऐसा रंग लगाया, और मेरे छोटे छोटे जोबन की शामत आ गई। पहले तो उसके बेस पर हल्के ह ल्के सहला लाते हुए उन्होंने हरा रंग , फिर रगड़कर, और उसके बाद गाढ़े बैंगनी रंग के हाथ के निशान मेरी छोटी छोटी कोरी चूँचियों पर,

पर निपल उन्होने बिन रंगे ही छोड़ दिए।



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रंग तो एक बहाना था, मीजने रगड़ने का, और भिजवाने में बहुत मजा मुझे भी आ रहा था। मीजी मसली मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ जा रही थी, लेकिन गीली मेरी सहेली हो रही थी पैंटी के अंदर।
 
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komaalrani

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आज रंग है,... रंग है, रंग है , ...



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रंग तो एक बहाना था, मीजने रगड़ने का, और भिजवाने में बहुत मजा मुझे भी आ रहा था। मीजी मसली मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ जा रही थी, लेकिन गीली मेरी सहेली हो रही थी पैंटी के अंदर।



लेकिन ज्योति जयचंद , वो जीजू के पीछे पड़ी थी

“जीजू अरे अभी ये जगह बची है वो जगह बची है । "

holi-girl-wallpaper-1.jpg


यहाँ तक की बंधे हाथों के अंदर काँखो में भी।

Armpit-19718215.jpg


लेकिन उसके पहले मेरे गाल, मेरी पीठ, और जहाँ मैं डरती थी, जीजू ने मुझे दिखाकर बैंगनी रंग अपने हाथों में लगाया, दिखया और मेरी पैंटी के अंदर पीछे से, कसकर मेरे दोनों चूतड़ पकड़कर मसलते बोले

“स्साली आज तेरी गाण्ड बचेगी नहीं।"


nude-back-holiwow-bhabhi-256x384.jpg


ऊपर से ज्योति मेरे पीछे पड़ी, जीजू को उकसाती बोली,

"जीजू ये स्साली तो आयी ही है मरवाने , अब आपके ऊपर है क्या क्या मारते हैं "

pitars-holi-celebrations-hyderabad18.jpg


और जैसे मैं जीजू के साथ कर रही थी, जीजू ने अपनी एक ऊँगली मेरी चूतड़ की दरार के बीच में रगड़ना शुरू कर दिया

“अरे सब मारेंगे इसकी, इत्ती सेक्सी साली मेरी, और होली में कुछ भी कोरी छोड़ देना, बहुत नाइंसाफ़ी है …”

बोलते हुए जीजू ने कचकचा के मेरे गाल काट लिए और उनकी उँगलियाँ पैंटी में आगे की ओर मेरी सहेली को रंगने लगीं।



जीजू को मैंने सिर्फ छोटी सी चड्ढी में छोड़ा था लेकिन हाथ डालकर उनके मूसलचचंद को खूब रगड़ा था, कम से कम 6 7 कोट रंग पेण्ट

सबसे बाद में जीजू ने मेरे चिकने गालों को लाल किया , कुछ चूम चाट कर , कुछ चूस काट कर , तो कुछ रंग लगाकर, और उसके भी बाद में निप्स पर एक ऊँगली से बाकायदा पेण्ट किया , खूब गाढ़ा पक्का लाल रंग , चूँचियाँ हरी हरी , निप्स लाल लाल ।

choli-ke-andar.jpg

और दुष्ट ज्योति ने सरसरा के मेरी पैंटी भी अपने दोनों हाथों से सरका के कहा

“ हूँ सब हो गया है , लगता तो है लेकिन एक जगह बची है जरा चेक करती हूँ ”


कुछ भी नहीं बचा था, जीजू ने चेहरे से भी ज्यादा रंग नीचे लगाया था मेरी चुनमुनिया पे, और चूतड़ पे।

सब रंग, पेंट्स खतम हो गए थे।



ज्योति अंदर गई और पेण्ट रंग लाने और मुझे मौका मिल गया जीजू को फुसलाकर अपनी ओर करने का।



उमरिया मेरी भले बारी थी लेकिन इस कच्ची जवानी में भी मैं लौंडे फ़साने के सारे गुर सीख गई थी,

और जीजू तो वैसे कोहबर से ही मेरी कच्ची अमिया के दीवाने थे। हाथ मेरे बिंधे थे पर कच्चे टिकोरे तो खुले थे। दीवार के सहारे मैंने जीजू को दबा दिया और अपने टेनिस बाल साइज की कड़ी कड़ी चूँचियाँ उनके सीने पे रगड़ते हुए , बिना कुछ बोले मैंने अपने होंठों से ह ल्के से जीजू के ईयर लोब्स को दबा दिया , और जीभ की टिप से जीजू के कान में हल्के से घुमाते हुए मैंने उन्हें उकसाया,

" जीजू, जहाँ दो का मजा मिल रहा है वहां सिर्फ एक,.. ”

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वो समझकर नासमझ बन रहे थे।
मैं फिर बोली

“अरे स्साली दो और मजा आप सिर्फ एक से ले रहे हैं …”

और अब वो मुश्कुरा रहे थे। अपने खूंटे को मेरी गुलाबो पे रगड़ते बोले,..." मुझे तो यही चाहिए "


मैं हंस के बोली
“अरे जिज्जू किस स्साली की हिम्मत मेरे इस हैंडसम जीजू को मना करे…”

holi-f90a0284b697c3168c664f8323c4227b.jpg


उनसे भी जोर से मैंने अपने निचले होंठों को उनके खूंटे पे रगड़ते बोला। और उसी तेजी से मेरे रंगे पुते जोबन जीजू की छाती पे रगड़ रहे थे।

और मैंने जीजू को ज्योति के खिलाफ और चढ़ाया

“अरे जरा मेरी सहेली के कबूतरों को भी तो आजाद करिये न? दो से चार अच्छे, ये स्साली तो आपकी हर बात मानने को तैयार है तो आप मेरी थोड़ी सी बात…”
 
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आज रंग है,... रंग है, रंग है , ...



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रंग तो एक बहाना था, मीजने रगड़ने का, और भिजवाने में बहुत मजा मुझे भी आ रहा था। मीजी मसली मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ जा रही थी, लेकिन गीली मेरी सहेली हो रही थी पैंटी के अंदर।



लेकिन ज्योति जयचंद , वो जीजू के पीछे पड़ी थी

“जीजू अरे अभी ये जगह बची है वो जगह बची है । "

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यहाँ तक की बंधे हाथों के अंदर काँखो में भी।

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लेकिन उसके पहले मेरे गाल, मेरी पीठ, और जहाँ मैं डरती थी, जीजू ने मुझे दिखाकर बैंगनी रंग अपने हाथों में लगाया, दिखया और मेरी पैंटी के अंदर पीछे से, कसकर मेरे दोनों चूतड़ पकड़कर मसलते बोले

“स्साली आज तेरी गाण्ड बचेगी नहीं।"


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ऊपर से ज्योति मेरे पीछे पड़ी, जीजू को उकसाती बोली,

"जीजू ये स्साली तो आयी ही है मरवाने , अब आपके ऊपर है क्या क्या मारते हैं "

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और जैसे मैं जीजू के साथ कर रही थी, जीजू ने अपनी एक ऊँगली मेरी चूतड़ की दरार के बीच में रगड़ना शुरू कर दिया

“अरे सब मारेंगे इसकी, इत्ती सेक्सी साली मेरी, और होली में कुछ भी कोरी छोड़ देना, बहुत नाइंसाफ़ी है …”

बोलते हुए जीजू ने कचकचा के मेरे गाल काट लिए और उनकी उँगलियाँ पैंटी में आगे की ओर मेरी सहेली को रंगने लगीं।



जीजू को मैंने सिर्फ छोटी सी चड्ढी में छोड़ा था लेकिन हाथ डालकर उनके मूसलचचंद को खूब रगड़ा था, कम से कम 6 7 कोट रंग पेण्ट

सबसे बाद में जीजू ने मेरे चिकने गालों को लाल किया , कुछ चूम चाट कर , कुछ चूस काट कर , तो कुछ रंग लगाकर, और उसके भी बाद में निप्स पर एक ऊँगली से बाकायदा पेण्ट किया , खूब गाढ़ा पक्का लाल रंग , चूँचियाँ हरी हरी , निप्स लाल लाल ।

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और दुष्ट ज्योति ने सरसरा के मेरी पैंटी भी अपने दोनों हाथों से सरका के कहा

“ हूँ सब हो गया है , लगता तो है लेकिन एक जगह बची है जरा चेक करती हूँ ”


कुछ भी नहीं बचा था, जीजू ने चेहरे से भी ज्यादा रंग नीचे लगाया था मेरी चुनमुनिया पे, और चूतड़ पे।

सब रंग, पेंट्स खतम हो गए थे।



ज्योति अंदर गई और पेण्ट रंग लाने और मुझे मौका मिल गया जीजू को फुसलाकर अपनी ओर करने का।



उमरिया मेरी भले बारी थी लेकिन इस कच्ची जवानी में भी मैं लौंडे फ़साने के सारे गुर सीख गई थी,

और जीजू तो वैसे कोहबर से ही मेरी कच्ची अमिया के दीवाने थे। हाथ मेरे बिंधे थे पर कच्चे टिकोरे तो खुले थे। दीवार के सहारे मैंने जीजू को दबा दिया और अपने टेनिस बाल साइज की कड़ी कड़ी चूँचियाँ उनके सीने पे रगड़ते हुए , बिना कुछ बोले मैंने अपने होंठों से ह ल्के से जीजू के ईयर लोब्स को दबा दिया , और जीभ की टिप से जीजू के कान में हल्के से घुमाते हुए मैंने उन्हें उकसाया,

" जीजू, जहाँ दो का मजा मिल रहा है वहां सिर्फ एक,.. ”

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वो समझकर नासमझ बन रहे थे।
मैं फिर बोली

“अरे स्साली दो और मजा आप सिर्फ एक से ले रहे हैं …”

और अब वो मुश्कुरा रहे थे। अपने खूंटे को मेरी गुलाबो पे रगड़ते बोले,..." मुझे तो यही चाहिए "


मैं हंस के बोली
“अरे जिज्जू किस स्साली की हिम्मत मेरे इस हैंडसम जीजू को मना करे…”

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उनसे भी जोर से मैंने अपने निचले होंठों को उनके खूंटे पे रगड़ते बोला। और उसी तेजी से मेरे रंगे पुते जोबन जीजू की छाती पे रगड़ रहे थे।

और मैंने जीजू को ज्योति के खिलाफ और चढ़ाया

“अरे जरा मेरी सहेली के कबूतरों को भी तो आजाद करिये न? दो से चार अच्छे, ये स्साली तो आपकी हर बात मानने को तैयार है तो आप मेरी थोड़ी सी बात…”
Jethani ji ki holi bhi bahut jaan dar rahi thi
 
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komaalrani

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Jethani ji ki holi bhi bahut jaan dar rahi thi
Ekdam sahi kaha aapne Jethani bachapn ki RANGIN hain
 
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Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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आज रंग है,... रंग है, रंग है , ...



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रंग तो एक बहाना था, मीजने रगड़ने का, और भिजवाने में बहुत मजा मुझे भी आ रहा था। मीजी मसली मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ जा रही थी, लेकिन गीली मेरी सहेली हो रही थी पैंटी के अंदर।



लेकिन ज्योति जयचंद , वो जीजू के पीछे पड़ी थी

“जीजू अरे अभी ये जगह बची है वो जगह बची है । "

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यहाँ तक की बंधे हाथों के अंदर काँखो में भी।

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लेकिन उसके पहले मेरे गाल, मेरी पीठ, और जहाँ मैं डरती थी, जीजू ने मुझे दिखाकर बैंगनी रंग अपने हाथों में लगाया, दिखया और मेरी पैंटी के अंदर पीछे से, कसकर मेरे दोनों चूतड़ पकड़कर मसलते बोले

“स्साली आज तेरी गाण्ड बचेगी नहीं।"


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ऊपर से ज्योति मेरे पीछे पड़ी, जीजू को उकसाती बोली,

"जीजू ये स्साली तो आयी ही है मरवाने , अब आपके ऊपर है क्या क्या मारते हैं "

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और जैसे मैं जीजू के साथ कर रही थी, जीजू ने अपनी एक ऊँगली मेरी चूतड़ की दरार के बीच में रगड़ना शुरू कर दिया

“अरे सब मारेंगे इसकी, इत्ती सेक्सी साली मेरी, और होली में कुछ भी कोरी छोड़ देना, बहुत नाइंसाफ़ी है …”

बोलते हुए जीजू ने कचकचा के मेरे गाल काट लिए और उनकी उँगलियाँ पैंटी में आगे की ओर मेरी सहेली को रंगने लगीं।



जीजू को मैंने सिर्फ छोटी सी चड्ढी में छोड़ा था लेकिन हाथ डालकर उनके मूसलचचंद को खूब रगड़ा था, कम से कम 6 7 कोट रंग पेण्ट

सबसे बाद में जीजू ने मेरे चिकने गालों को लाल किया , कुछ चूम चाट कर , कुछ चूस काट कर , तो कुछ रंग लगाकर, और उसके भी बाद में निप्स पर एक ऊँगली से बाकायदा पेण्ट किया , खूब गाढ़ा पक्का लाल रंग , चूँचियाँ हरी हरी , निप्स लाल लाल ।

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और दुष्ट ज्योति ने सरसरा के मेरी पैंटी भी अपने दोनों हाथों से सरका के कहा

“ हूँ सब हो गया है , लगता तो है लेकिन एक जगह बची है जरा चेक करती हूँ ”


कुछ भी नहीं बचा था, जीजू ने चेहरे से भी ज्यादा रंग नीचे लगाया था मेरी चुनमुनिया पे, और चूतड़ पे।

सब रंग, पेंट्स खतम हो गए थे।



ज्योति अंदर गई और पेण्ट रंग लाने और मुझे मौका मिल गया जीजू को फुसलाकर अपनी ओर करने का।



उमरिया मेरी भले बारी थी लेकिन इस कच्ची जवानी में भी मैं लौंडे फ़साने के सारे गुर सीख गई थी,

और जीजू तो वैसे कोहबर से ही मेरी कच्ची अमिया के दीवाने थे। हाथ मेरे बिंधे थे पर कच्चे टिकोरे तो खुले थे। दीवार के सहारे मैंने जीजू को दबा दिया और अपने टेनिस बाल साइज की कड़ी कड़ी चूँचियाँ उनके सीने पे रगड़ते हुए , बिना कुछ बोले मैंने अपने होंठों से ह ल्के से जीजू के ईयर लोब्स को दबा दिया , और जीभ की टिप से जीजू के कान में हल्के से घुमाते हुए मैंने उन्हें उकसाया,

" जीजू, जहाँ दो का मजा मिल रहा है वहां सिर्फ एक,.. ”

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वो समझकर नासमझ बन रहे थे।
मैं फिर बोली

“अरे स्साली दो और मजा आप सिर्फ एक से ले रहे हैं …”

और अब वो मुश्कुरा रहे थे। अपने खूंटे को मेरी गुलाबो पे रगड़ते बोले,..." मुझे तो यही चाहिए "


मैं हंस के बोली
“अरे जिज्जू किस स्साली की हिम्मत मेरे इस हैंडसम जीजू को मना करे…”

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उनसे भी जोर से मैंने अपने निचले होंठों को उनके खूंटे पे रगड़ते बोला। और उसी तेजी से मेरे रंगे पुते जोबन जीजू की छाती पे रगड़ रहे थे।

और मैंने जीजू को ज्योति के खिलाफ और चढ़ाया

“अरे जरा मेरी सहेली के कबूतरों को भी तो आजाद करिये न? दो से चार अच्छे, ये स्साली तो आपकी हर बात मानने को तैयार है तो आप मेरी थोड़ी सी बात…”
Kya baat hai, ek sali dusri ko fasane ke chakkar me, andar se donon andar lena chahati hai.Marvelous update 👌👌👌 dear knowledgeable lovely Komal sis, 💞 tum to festival ki master ho, adbhut gyan ka bhandar ho tyohar ke mamle me tum.Raji salutes Komal
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Kya baat hai, ek sali dusri ko fasane ke chakkar me, andar se donon andar lena chahati hai.Marvelous update 👌👌👌 dear knowledgeable lovely Komal sis, 💞 tum to festival ki master ho, adbhut gyan ka bhandar ho tyohar ke mamle me tum.Raji salutes Komal
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Thanks so much aap to taarif itti jayda kar deti hain and coming from such a brilliant and most popular writer of this forum,... u r a great help sis
 
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komaalrani

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