" तू करवाएगी , संदीप के साथ "
" धत्त दी , मेरे भैया हैं " हटती हुयी मुंह फुला के वो बोली,..
" अरे यार भैया तो मेरे भी है लेकिन ये किसने कहा की भैया के संग चुदैया नहीं होती, औजार मस्त है उसका ,... "
आम बोल-चाल की कहावतों का क्या सही प्रयोग किया है...
इस कारण हीं कोई कहानी सरस हो जाती है...
और कोई नीरस लगने लगती है..
आपकी यही खूबी पाठकों को आपसे बांधे रखती है....
संदीप की चचेरी बहन भी ट्रेनिंग लेने को तैयार है...
और ममेरी बहन ट्रेनिंग दिलवाने को...
और उसके बाद लोटन कबूतर भी गुटर-गुं करने लगेगा...
विविधता आपकी खासियत है... और अलग-अलग पात्रों का समावेश (चाहे फ्लैशबैक में क्यों न हो) इन चीजों से बचाए रखती है...