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अपडेट पोस्टेड - एक मेगा अपडेट, जोरू का गुलाम - भाग २३९ -बंबई -बुधवार - वॉर -२ पृष्ठ १४५६
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ये दोनों मिल कर इसलिए तडपा रही है कि जोश में आकर दोनों की जबरदस्त कुटाई करे...Bhut shandaar update..... kya Julm ho rahe hai land par.....
Par apna time aayega... jab aayega to chut ki ache se kutayi hogi.....
Lajawab![]()
आग लगाने और बुझाने दोनों में माहिर....Wow komal bhabhi...
Kya aag lgaye huyi h... dono m bich..... ki agar chutt mile to kha jaye 1 dusre ko....
आज तो सिर्फ तड़पने की रात है...Kya kohram Macha rakha hai.. Raat Ho gyi aur abhi tk jawan nahi ho payi.... bas tadpaya ja rha hai dono bichde huye premiyo ko.......![]()
मिथुन चक्रवर्ती की तरह ... "कोई शक.."bahot hi garanmmmmm aur rasilaaaaa
![]()
जब कम अपडेट्स का उलाहना बनता है...Last Update is on Last page
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बाइक्स में थर्ड गियर तक होती है...प्रोस्ट्रेट मसाज
यही तो मैं चाहती थी कब से ,....
और आज तो वो शुरू से थर्ड गियर में थे , चूस रहे थे ,चोद रहे थे , उनकी जीभ ,उनके होंठ
और साथ में उंगलिया भी कभी क्लिट तो कभी सीधे बुर के अंदर
जब होंठ क्लिट चूसती तो उंगलीया अंदर बाहर
और उनको थोड़ा टाइम लगता पर
मेरी छिनार ननदिया
वो कोमल कुँवारी किशोरी ,....
वो भी मैदान में आ गयी बुर चूसने ,
नौसिखिये का मज़ा अपना अलग है
(हालांकि गीता ने मुझसे पहले से ही कसम खिलवा रखी थी ,बल्कि तीन तिरबाचा भरवा लिया था की मेरी ननदिया के आते ही वो उसे अपनी छत्र छाया में लेलेगी और उसे ट्रेन करके ,चाहे सीधे से चाहे जबरदस्ती , वो उसे चूसने चाटने में तो अपने से भी बड़ी एक्सपर्ट बना देगी ,बाकी सारी चीजे भी सिखा पढ़ा के पक्का ,... )
जिस तरह से वो मेरी बुर पर अपनी जीभ हिला रही थी ,बुर का छेद जीभ से ढूंढ रही थी ,मजा आ गया मुझे
गरम तो मुझे मेरे सैंया ने कर दिया था ,किनारे तक वो ले भी आये
पर पार मेरी ननदिया ने ही कराया , झड़ी मैं उसी की चाटने से ,
वो भी एक दो बार नहीं ,...जब तक गिनना नहीं भूल गयी
एक बार वो झाड़ती ,दूसरी बार उसके भैय्या
मैं लथरपथर , वैसे ही सो गयी
एक ओर मेरी ननद , मेरे सैंया की रखैल और दूसरे ओर मेरे सैंया।
उनका खूंटा सोते में भी खड़ा था , गुड्डी और वो दोनों मेरी ओर करवट कर के सोये थे ,मेरे एक जोबन पर गुड्डी का हाथ था और दूसरे पर
उसका ,जिसका रोज रहता था।
और गुड्डी का दूसरा हाथ अपने भइया के मोटे खूंटे को पकडे ,
साढ़े चार बज गया था ,
और बस थोड़ी देर बाद ही ,बाहर मुर्गे ने बांग दी और साथ ही घंटी बजी।
मुर्गे की बांग के साथ घंटी बजी...प्रोस्ट्रेट मसाज
उनका खूंटा सोते में भी खड़ा था , गुड्डी और वो दोनों मेरी ओर करवट कर के सोये थे ,मेरे एक जोबन पर गुड्डी का हाथ था और दूसरे पर
उसका ,जिसका रोज रहता था।
और गुड्डी का दूसरा हाथ अपने भइया के मोटे खूंटे को पकडे ,
साढ़े चार बज गया था ,
और बस थोड़ी देर बाद ही ,बाहर मुर्गे ने बांग दी और साथ ही घंटी बजी।
जाल में फंसी मछली तडप तो सकती है.. मचल भी सकती है...इंटरवल के बाद
गुड्डी बार बार कह रही थी अपने भइया के हाथ खोलने के लिए , आखिर कब तक मैं उसकी बात टालती।
खोल दिया मैंने ,उनके हाथ और फिर मैंने और मेरे उन्होंने मिल के गुड्डी को बाँट लिया।
रात का तीसरा पहर ,कच्ची जवानी वाली कली , हमारा कमरा , हम और वो ,हमारा बिस्तर ,
हुआ वही जो होना था। गाल और होंठ गुड्डी के इन्तजार करते रह गए।
मेरे और उनके ,दोनों के होंठ सीधे गुड्डी के कच्चे टिकोरों पर ,
वो तो चूमने चाटने में लगे रहे ,
मैंने सीधे से कचकचा कर काट लिया।
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उफ़्फ़ ,क्या स्वाद था ,एकदम खटमिठवा , बता नहीं सकती उस कच्ची अमिया का स्वाद
खूब कड़े कड़े , टटके , कच्चे ,... मैंने फिर जहाँ काटा था वहीँ चूस लिया , हलके हलके ,जीभ की टिप से कुरेद कुरेद कर उसके बाला जोबन को रस ले लिया।
फिर एक बार और कचकचा कर काट लिया ,और वो भी ,गुड्डी की कच्ची नयी आयी ,..
वो तड़प रही थी ,सिसक रही थी जैसे कोई मछली जाल में फंस गयी हो ,
और उसकी यही तड़पन ,सिसकियाँ , छटपटाना ,छूटने की कोशिश करना ,... तो मुझे और मजा दे रहा था।
अबकी गुड्डी के उरोजों के सबसे ऊपरी हिस्से में मैंने खूब कचकचा के काटा,
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" उईईई नाहीइ ,उफ्फ्फ्फ़ , ओहहहह उईईईईईई ,... " जोर से चीखी वो।
और मेरा मजा दूना हो गया।
और मैंने फिर दूने जोर से कचकचा के काट लिया ,
" उईईई उईईई उईईईईई ,नहीं भाभीइइइइइइ ,उह्ह्ह्हह्ह ,उईईईईईई ,.. "
अबकी उसकी चीख जरूर घर के बाहर भी सुनाई दी होगी।
ननद की चीख और ,...सारे मोहल्ले में न सुनाई दे तो क्या मजा ,
उभारों के ऊपर मेरे दांत के निशान अच्छी तरह उभर आये थे।
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मैं जब नयी नयी ब्याह के इसके घर आयी थी तो मेरी कोई ननद ने चिढ़ाया था ,
" भाभी ये सब तो ब्याहता के सिंगार है पता चलता है दुलहा कैसे कचकचा के प्यार करता है "
और मैंने एक बार फिर उस कच्ची अमिया पर अपने दांत गड़ा दिए ,
अबकी थोड़ा और ऊपर ,..
चीखना तो उसे था ही ,और अभी तो चीख पुकार शुरू हुयी थी ,कल रात जब उसके भइया उसकी फाड़ेंगे तो ,..
एक जोबन का रस मैं ले रही थी ,दूसरे का उसके भैय्या।
गुड्डी के निप्स उनके मुंह में थे वो कस कस के चूस रहे थे और दूसरा निप्स मेरी उँगलियों के बीच में रगड़ा मसला जा रहा था।
कुछ देर में उन्होंने खजाने में सेंध लगा दी ,उनकी जीभ ने , ... दोनों जाँघों को फैला के ,टांगों को उठा के ,
चूमना चाटना चूसना ,
और अब आजाद हुए गुड्डी के जोबन मेरे हाथ ने दबोच लिए।
जिन कबूतरों को देख देख के उसके शहर के सारे लौंडे पागल थे
आज मेरे हाथों और होंठों के हवाले थे।
और नीचे वो उसकी कच्ची गुलाबो को चूस रहे थे ,
अब वो सिर्फ तड़पाना नहीं चाहते थे अपनी बहन को झाड़ना चाहते थे।
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जुबना पर भौजी और बुरिया पर भैय्या ,
पांच सात मिनट में ही गुड्डी की बुरिया ने पानी फेंक दिया।
लेकिन तब भी उस कच्ची कली को उन्होंने नहीं छोड़ा ,अब मैं बगल में बैठी देख रही थी।
वो जीभ से गचगच गचगच उसकी कच्ची चूत चोद रहे थे , बीच बीच में अपनी जीभ की टिप से उसकी क्लिट भी
और गुड्डी बस काँप रही थी मचल रही थी ,दुबारा
तिबारा ,
दस मिनट में उसकी चूत लथपथ थी , मैंने गिनना छोड़ दिया मेरी ननद कितनी झड़ी।
बंधे हाथ तो सास की शर्त थी...खूंटा
बात ही ऐसी थी , उनका बालिश्त भर का खूंटा एकदम तना ,कड़ा, और मेरी बिल के रस से एकदम चिकना चमकता ,..
मोटा इतना की गुड्डी की मुट्ठी में तो नहीं ही समा पाता।ऐसा नहीं की गुड्डी ने उसे पहले नहीं देखा था ,... लेकिन अभी तो उसने उसका जादू , उसके खेल तमाशे ,...
कैसे उसके भइया के मोटे खूंटे पर चढ़ कर मैं ऊपर नीचे,
वो नदीदी , अपने भइया का लंड देखकर ,
" चाहिए ,... " मैंने मुस्कराकर अपनी छोटी ननद से पूछा।
बिना बोले उसने जोर जोर से हामी में सर ऊपर नीचे हिलाया।
" रोज रोज लेना पडेगा ,... " मैंने उसे छेड़ा।
" एकदम भाभी ,... " अब उसके बोल खुले।
मुझे एक ट्रिक सूझी।
मैंने उसका लेसी बेबी डाल उसके भैय्या के ऊपर डाल दिया , और खड़े खूंटे को भी थोड़ा झुका के उसके अंदर ,...
उसके भइया का हाथ तो उसने खुद अपनी लेसी ब्रा से कस के बांध रखा था ,फिर गुड्डी प्रेजिडेंट गाइड थी , उसकी बाँधी नॉट खोलना अंसम्भव था।
इसलिए वो एकदम सेफ थी ,वो अपने भइया को चाहे जितना ललचाये ,तड़पाये ,उनके साथ मजे ले ,.. वो बिस्तर पर लेटे ,कुछ नहीं कर सकते थे।
" चल यार तू भी क्या याद करेगी किस भाभी से पाला पड़ा था , इन्होने तुझे साढ़े तीन मिनट तंग किया था न , तो तू भी पूरे पांच मिनट इनके ऊपर लेट जा ,...अब उनके हाथ बंधे है तो ये फेयर नहीं न की तू ,... तो तू अपने हाथ इस्तेमाल नहीं कर सकती ,... और ये लेटे हैं तो तू भी ,... इनके ऊपर लेट के ,... "
और उस नदीदी को तो जैसे मनपसंद मिठाई मिल गयी।
झट से गुड्डी अपने भइया के ऊपर लेट कर,
कुछ देर तक तो उसके टेनिस बाल साइज के बूब्स और उसके भैय्या की के सीने के बीच में बहुत पतली सी लेसी ,शीयर ड्रेस ,
कितनी देर वो ड्रेस टिकती , बस छल्ले की तरह दोनों लोगों की कमर के बीच ,
गुड्डी बहुत ही शरीर ,शैतान ,बदमाश,
और उससे ज्यादा उसके होंठ ,
पहले तो हलके से ,फिर जोर जोर से अपने भइया के होंठों पर उसने किस पर किस किया ,
फिर हलकी सी , भैय्या के गालों पर
और साथ साथ गुड्डी की उसके होंठों से भी शैतान ,पूरे शहर में आग लगाते गोल गोल जुबना
और गुड्डी उसे कस कस के अपने भैय्या की छाती पर रगड़ रही थी।जिन कच्चे टिकोरों को एक समय वो सिर्फ छूने के लिए तड़प रहे थे अब वो खुद उनके सीने पर वो कच्ची अमिया ,...
और ड्रेस सरक कर ,... खूंटा एक बार फिर सरक कर आजाद हो गया ,सर उठाये ,मोटा कड़क ,बालिश्त भर का ,...
और गुड्डी की चुनमुनिया वैसे गीली रसीली हो रही थी ,
बस गुड्डी की चुनमुनिया , उसके भैय्या के उसके ऊपर रगड़ घिस्स कर रही थी ,
वो सिसक रहे थे ,चूतड़ पटक रहे थे
और गुड्डी मजे ले रही थी।
वो न हाथ इस्तेमाल कर रही थी न उनके ऊपर से उठ रही थी ,सिर्फ लेटे लेटे ग्राइंडिंग
रगड़ घिस्स, रगड़ घिस्स
सिर्फ अब गुड्डी के छोटे छोटे जोबना और कमर के जोर से अपनी चुनमुनिया ,...
पांच मिनट पूरे होने तक उनकी हालत खराब हो गयी थी ,
और मैंने अपनी ननद की चुनमुनिया की हाल चाल चेक की , उस बिचारी की हाल भी कौन कम ख़राब थी ,
एकदम गीली।
कुछ तो करना ही था , आखिर मेरी छुटकी ननद थी , मैं उसे अपने साथ ले आयी थी।
हलके से मेरी ऊँगली गुड्डी की जाँघों के बीच शरारत करती रही ,
फिर मैंने वो सवाल पूछ लिया जिसका जवाब मुझे मालुम था।
" हे तेरे भइया का हाथ खोल दूँ ,... "
मैंने मुस्करा कर उस छपन छुरी से पूछा ,
" एकदम भाभी , ,,,, प्लीज भाभी , ... जरूर भाभी ,इत्ती देर हो गए। "
भैय्या की बहिनी , उसकी चूत चुगली कर रही थी की वो क्यों अपने भैय्या का हाथ खुलवाना चाहती थी।
मैंने उसकी बात मान ली।
उसके भइया का ,बचपन के आशिक का हाथ खोल दिया।
लेकिन मैंने हाथ पलंग के हेड बोर्ड से ही खोला , जो गाँठ गुड्डी ने बाँधी थी ,वो मैंने बंधी रहने दी ,यानी अब वो पलंग से उठ सकते थे ,बैठ सकते थे लेकिन दोनों हाथ उनके आपस में बंधे , यानी वो अपने आप कुछ नहीं कर सकते थे।
पर मैं थी न उनकी पत्नी ,उनकी बहन की भौजाई ,
और मैंने उनके भूखे मुस्टंडे को उनकी ममेरी बहन की प्यासी सोनचिरैया के पास
सोनचिरैया ने बिना कहे चोंच खोल दी। और मैं उस के यार के मूसल के सुपाड़े को हलके हलके उन गीले होंठों पर रगड़ने लगी ,