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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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अपडेट पोस्टेड - एक मेगा अपडेट, जोरू का गुलाम - भाग २३९ -बंबई -बुधवार - वॉर -२ पृष्ठ १४५६

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Merry Xmas
 

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जोरू का गुलाम भाग ४५



बहन का खजाना



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"क्यों भैया मजा आया न छुटकी बहिनिया के साथ ,अभी तो बस ,... "


उनकी निगाहें गीता के पेटीकोट पे अटकी थीं , कमर के नीचे बंधा ,जांघ तक चढ़ा।

और उन्हें देखते देख वो मुस्करा पड़ी ,

" सच में भैया बहुत नाइंसाफी है मैंने तो तेरा सब कुछ देख लिया ,छू लिया ,इतना मस्त मोटा और अपना , खजाना छुपा के बैठी हूँ। "

कुछ देर तक तो वो उनका चेहरा देखती रही फिर उकसाया

"
अरे भैया देख क्या रहे हो खोल दो न अपने हाथ से बहन के पेटीकोट का नाड़ा "



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उनके आँखों के सामने एक बार फिर गुड्डी का चेहरा घूम गया।

गुड्डी का नाड़ा



वो भी तो उन्हें ऐसे भैया बोलती थी ,ऐसे ही खूब प्यार से ,..

और आज कल तो वो कुरता शलवार ही पहनती है ,


शलवार का नाडा।


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" शरमाते काहें हो ,भइय्या तुम सच में बहुत बुद्धू हो ,प्यारे वाले बुद्धू , अरे हर बहन यही चाहती है , इससे अच्छी बात क्या हो सकती है बहन के लिए की उसका भाई नाडा खोले , ,... खोलो न। "

और गीता ने खुद उसका हाथ पकड़ के अपने नाड़े पर रख दिया।

बस अपने आप उनके हाथ नाडा खोलने लगे , सरसरा के पेटीकोट नीचे ,

लेकिन मन उनका कहीं और , उस दिन जब वो मौका चूक गए थे।




शादी में ,


गुड्डी ने पहले उनसे केयरफ्री लाने को बोला था और जैसे ही वो निकले ,

ढेर सारी स्माइली के साथ गुड्डी का मेसेज आया

,"आल लाइन क्लीयर ,अब नहीं चहिये। आंटी जी चली गयीं। टाटा बाई बाई। मेरी छुट्टी खत्म "

और साथ में हग की साइन भी।

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और लौटते ही उसने सच में हग कर लिया था , उसके रूई के फाहे ऐसे उभार उनके सीने से रगड़ रहे थे ,कितने सिग्नल दिए थे गुड्डी ने।

शाम को लेडीज संगीत था , नो ब्वायज ,लेकिन बाकी लड़को के साथ वो भी छुप के ,

गुड्डी ने चनिया चोली पहन रखी थी और जैसे उन्हें दिखा दिखा के ,कूल्हे मटका के गा , नाच रही थी ,

" कुण्डी मत खड़काना राजा ,सीधे अंदर आना राजा। "

और जब वो बाहर निकली तो सीधे उन्ही से भिड़ गयी , चिढाते बोली ,

"बदमाश मुझे सब मालूम है तुम छिप छिप के देख रहे थे न , "


और उसकी नाक पकड़ के बोली

" बुद्दू ,कुण्डी मत खड़काना सीधे अंदर आना ,समझे। "


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और रात में भी , बोली ,.. भैया आज ऊपर आना , ...


लेकिन वो बुद्धू इत्ते इशारे भी नहीं समझे।


उस रात अगर वो नाड़ा खोल देते ,


और फिर वो वापस आ गए ,




गीता की आवाज ,





" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "
 

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बहन की बुरिया




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और फिर वो वापस आ गए ,गीता की आवाज ,


" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "


एकदम संतरे की रस भरी फांके , दोनों गुलाबी मखमली जाँघों के बीच चिपकी दबी।

लग रहा था बस रस अब छलका , तब छलका।

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बहुत छोटी सी दरार , दोनों ओर खूब मांसल गद्देदार वो प्रेम केद्वार और चारो और ,काली नहीं

भूरी भूरी छोटी छोटी झांटे केसर क्यारी ऐसे जैसे किसी ने सजाने के लिए लगाई हो ,



जैसे उस प्रेम गली के बाहर वंदनवार हों ,

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और अब गीता ने झुक के उनके चेहरे के एकदम पास , वो सिर्फ देख ही नहीं पा रहे थे ,बल्कि सूंघ भी सकते थे , ज़रा सा चेहरा उठा के चख भी सकते थे।


और उन्होंने जैसे ही चेहरा उठाने की कोशिश की , गीता ने प्यार से झिड़क दिया अपने दोनों हाथों से उन्हें वापस उसी जगह ,


" नहीं नहीं भैया सिर्फ देखो न अपनी बहना का खजाना ,बोल न भैय्या कैसे है। "


और वो ,... उनके होंठ प्यासे होंठ तड़प रहे थे।



बस लार टपका रहे थे ,किसी तरह अपने को रोक पा रहे थे।


"बहुत मस्त कितना रस है , क्या खूश्बु ,"

और जोर से उन्होंने गहरी सांस लेकर उस महक का मजा लेने की कोशिश की।

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गीता की लंबी लंबी उंगलिया , उन मांसल भगोष्ठ को रगड़ रही थी मसल रही थी।


वो लम्बी गोरी पतली किशोर उँगलियाँ अपने बीच दबाकर अब कभी हलके तो कभी जोर से चूत की दोनों फांकों को,


रस की एक बूँद छलक आयी।



गीता ने उस खजाने को थोड़ा और उसके चेहरे के पास कर दिया , बस वो जीभ निकाल कर चाट सकते थे।




और और

और गीता ने उन्ही रस से गीली उँगलियों से अपने दोनों गुलाबी निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाया और अब,

अंदर की गुलाबी प्रेम गली , एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी।




गीता ने अपना अंगूठा अब उभरे मस्ताए साफ़ साफ़ दिख रहे कड़े क्लीट पर रखा


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और उन्हें दिखा के हलके हलके रगड़ने लगी ,

साथ में वो अब सिसक रही थी ,मस्त हो रही थी ,

ओह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह इहह्ह्ह्ह ओह्ह्ह

रस की ढेर सारी बूंदे उसकी सहेली के बाहर चुहचुहा आयी थीं।


बहुत मुश्किल हो रहा था उनको अपने को रोकना ,

उनकी निगाहें बस गीता की रसीली बुर से चिपकी थीं।


और गीता ने हलके हलके अपनी तर्जनी की टिप ,सिर्फ टिप अंदर घुसेड़ी और जोर की चीख भरी।

कुछ देर तक वो ऊँगली की टिप हलके हलके गोल गोल घुमाती रही और जब ऊँगली बाहर निकली तो उसकी टिप रस से चमक रही थी।


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उनके प्यासे दहकते होंठों पर वो ऊँगली आके टिक गयी और सब रस लथेड़ दिया।


उनकी जीभ ने बाहर निकल कर सब कुछ चाट लिया ,

" बहुत मन कर रहा है भैया लो चाट लो "

वो हंस के बोली

और खुद ही झुक के उसने अपनी बुर , उनके होंठों पर रगड़ दी।


और वो कौन होते थे अपनी प्यारी प्यारी बहना को मना करने वाले।

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हलके से पहले उनकी जीभ की नोक ने गीता की बुर पर चुहचुहाती रस की बूंदो को चाट लिया , फिर जोर से सपड़ सपड़ , ऊपर से नीचे तक

कुछ ही देर में वो संतरे की रसीली फांके उनके होंठों के बीच थी और वो कस कस के चूस चुभला रहे थे।




गीता की उत्तेजित क्लीट इनके नाक के पास थी लेकिन वो थोड़ा सा सरकी और सीधे होंठ पे ,


फिर क्या ,उनके होंठ ये दावत कैसे छोड़ देते। जोर जोर से कभी जीभ से उसकी भगनासा सहलाते तो कभी चूस लेते।

" हाँ भैया ,हाँ ... मजा आ रहा है न बहन की बुरिया चूसने में ,चूस और चूस। ओह्ह इहह्ह आहहहह उह्ह्ह "

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गीता सिसक रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।

लेकिन कुछ देर में बोली ,

" भैय्या तू अपनी बहन के बुर का मजा लो तो ज़रा हमहुँ अपने भैय्या के मस्त लन्ड का मजा ले लें , इतना मस्त गन्ना है ,बिना चूसे थोड़ी छोडूंगी। "
 

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मस्त गन्ना



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" भैय्या तू अपनी बहन के बुर का मजा लो तो ज़रा हमहुँ अपने भैय्या के मस्त लन्ड का मजा ले लें , इतना मस्त गन्ना है ,बिना चूसे थोड़ी छोडूंगी। "


और अगले पल गीता के होंठ उनके तन्नाए ,खुले सुपाड़े पर , चाटते चूमते।


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कुछ देर वो जीभ से सुपाड़े को लिक करती रही ,


फिर जीभ की नोक पेशाब वाले छेद में डालकर वो शरारती सुरसुरी करने लगी।

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वो कमर उचका रहे थे और जवाब में एक झटके में गीता ने उनका ,

लीची ऐसा मोटा सुपाड़ा अपने रसीले होंठों के बीच गप्प कर लिया और लगी चूसने ,चुभलाने।

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एक पल के लिए उन्हें लगा की गुड्डी , उनकी ममेरी बहन


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अपने कोमल कोमल होंठों के बीच ,उनका रसीला सुपाड़ा ,

सोच सोच कर उनकी मस्ती सौ गुना हो रही थी।








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तभी ,


चररर चररर , आँगन से पीछे वाले दरवाजे के खुलने की आवाज आयी।





" अरे भाई बहन मिलकर अकेले अकेले खूब मस्ती कर रहे हो "



मंजू बाई थी ,




पीछे का दरवाजा उसने न सिर्फ बंद कर दिया था ,बल्कि ताला भी लगा दिया था।
 

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जोरू का गुलाम भाग ४६


मंजू बाई


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" अरे भाई बहन मिलकर अकेले अकेले खूब मस्ती कर रहे हो "

मंजू बाई थी ,


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पीछे का दरवाजा उसने न सिर्फ बंद कर दिया था ,बल्कि ताला भी लगा दिया था।

मैं और गीता दोनों उसे देख के खड़े हो गए ,लेकिन गीता के हाथ में अभी भी मेरा खूँटा था ,खड़ा ,एकदम खुला। और मंजू बाई की आँखे वहीँ अटकी पड़ी थीं।

" झंडा तो खूब मस्त खड़ा किया है "

मंजू बाई बोली।

"आया न पसंद मेरे भैया का ,देख कितना लंबा है कितना मोटा और कड़ा भी कैसा ,एकदम लोहे का खम्बा है। "


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गीता खिलखिलाती ,मेरे लन्ड को मुठियाती ,मंजू बाई को ललचाती बोली।



" नम्बरी बहनचोद लगता है , अपनी बहन से लन्ड ,... "



मंजू बाई ने बोलना शुरू किया था की गीता बीच में बोल पड़ी।

" लगता नहीं है , है नम्बरी बहनचोद। लेकिन मेरा इत्ता प्यारा भैया है , मक्खन सा चिकना , फिर भाई बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा। लेकिन तेरी काहे को सुलग रही है माँ , मेरा भइया नम्बरी मादरचोद भी है। अभी देखना तेरे भोंसडे को ऐसा कूटेगा न ,की बचपन की भी चुदाई तू भूल जायेगी , जो मेरे मामा के साथ ,... लेकिन ये बता तू इतनी देर गायब कहाँ थी। "

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तबतक आसमान में बदलियों ने चाँद को आजाद कर दिया और चाँद आसमान से टुकुर टुकुर देख रहा था , एकदम मेरी तरह ,

जैसे मैं मंजू बाई को देख रहा था।

बल्कि उसके स्तन ,खूब बड़े बड़े कड़े , अभी आँचल में थोड़ा छिपे ढके थे ,लेकिन न उनकी ऊंचाई छिप पा रही थी , न उनका कड़ापन।

शाम को इन्ही जोबनों ने कितना ललचाया तड़पाया था मुझे।




मंजू बाई जिस तरह से बोल रही थी ,लग रहा था कुछ है उसके मुंह में और उसके जवाब से उसकी बात साफ़ भी हो गयी।

" अरे अपने मुन्ने के लिए पलंग तोड़ पान लाने के लिए गयी थी। डबल जोड़ा ,दो घंटे से मुंह में रचा रही हूँ। "

डबल जोड़ा ,मतलब चार पान ,और पलँग तोड़ पान एक ही काफी होता है झुमा देने के लिए।

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सुना मैंने भी बहुत था इसके बारे में की ननदें सुहाग रात के दिन अपनी भाभी को ये पान खिला देती हैं और एक पान में ही इतनी मस्ती छाती है की वो खुद टाँगे फैला देती है।

और मरद के ऊपर भी ऐसा असर होता है की , एक पान में ही रात भर सांड बन जाता है वो ,

लेकिन पान मैं खाता नहीं था , शादी में

कोहबर में भी मैंने पान खाने से साफ़ मना कर दिया था। और अभी भी , आज तक कभी भी नहीं ...

लेकिन न मुझे ज्यादा बोलने का मौक़ा मिला न सोचने का ,

गीता ने मुझे छोड़ दिया और मंजू बाई ने दबोच लिया जैसे कोई अजगर ,खरगोश को दबोच ले , बिना किसी कोशिश के , और सीधे मंजू बाई के पान के रंग से रंगे ,रचे बसे होंठ सीधे मेरे होंठों पर।


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बिना किसी संकोच के वो अपने होंठ मेरे होंठों पे रगड़ रही थी और साथ में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे खुले नंगे सीने पर।

इस रगड़ा रगड़ी में उसका आँचल खुल कर नीचे ढलक गया और वो वही ब्लाउज पहने थी जो शाम को , एकदम देह से चिपका , पारभासी ,खूब लो कट।

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गोलाइयाँ गहराइयाँ सब कुछ चटक चांदनी में साफ दिख रही थीं।


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जानबूझ कर अब वो अपनी छाती मेरे खुले सीने से जोर जोर से रगड़ रही थी।

मंजू बाई को मालूम था उसके जोबन का जादू , और मेरे ऊपर उस जादू का असर।

लेकिन उस रगड़घिस में दो चुटपुटिया बटन चट चट कर खुल गयी और उसकी गोलाइयों का ऊपरी भाग पूरी तरह अनावृत्त हो गया।




मैं उस जादूगरनी की जादू भरी गोलाइयों में खो गया था और मौके का फायदा उठा के उसने मेरे होंठो को नहीं नहीं चूमा नहीं ,सीधे कचकचा के काट लिया।

मेरा होंठ अब मंजू बाई के दोनों होंठों के बीच कैद कभी वो चूसती चुभलाती तो कभी कस के अपने दांत गड़ा देती।

दर्द का भी अपना एक मजा होता है।

और एक ही एक बार जब उसने कस के कचकचा के काटा , तो मेरा मुंह दर्द से खुल गया, बस मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर , और साथ में पान के अधखाये ,कुचले ,चूसे थूक में लिपटे लिथड़े टुकड़े मेरे मुंह में।

मैं बिना कुछ सोचे समझे , मंजू बाई की रसीली जीभ को पागल की तरह चूस रहा था , और मंजू अब खुल के अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ रही थी। उसका एक हाथ मेरे सर पे था ,कुछ देर बाद मंजू बाई ने मुझे थोड़ा पीछे की ओर झुका दिया , दूसरे हाथ से मेरे गाल दबा के मेरा मुंह पूरी तरह खोल दिया और


मेरे खुले मुंह के ठीक ऊपर , आधा इंच ऊपर उसके होंठ और उसने होंठ खोल दिए ,


मंजू बाई के मुंह में दो घंटे से रस रच रहे पान की ,


एक तार की तरह लाल ,धीरे धीरे उसके मुंह से मेरे खुले मुंह में।

मैं हिल डुल भी नहीं सकता था ,न हिलना डुलना चाहता था।

धीमे धीमे मंजू बाई के मुंह से पान का सारा रस , उसकेथूक में लिथड़ा ,लिपटा सीधे मेरे मुंह में

और अब मंजू बाई ने अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका कर एकदम सील कर दिया।




मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर उन खाये हुए पान के टुकड़ों को ठेल रही थी ,धकेल रही थी अंदर। जब तक पलंग तोड़ पान का रस मेरे मुंह के अंदर , मेरे पेट के भीतर नहीं घुस गया , मंजू के होंठ मेरे होंठों को सील किये हुए थे।


वो तो गीता ने टोका ,

" अरी माँ सब रस क्या अपने बेटे को ही खिला दोगी ,बेटे के आगे बिटिया को भूल गयी क्या। "

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मंजू बाई ने मुझे छोड़ दिया और गीता को उसी की तरह जवाब दिया।


" अरी छिनार, अभी तो भैया भैया कर रही थी ,ले लो न अपने भैया से।"


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komaalrani

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डबल मस्ती

माँ भी बहन भी

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गीता ने टोका ,


" अरी माँ सब रस क्या अपने बेटे को ही खिला दोगी ,बेटे के आगे बिटिया को भूल गयी क्या। "

मंजू बाई ने मुझे छोड़ दिया और गीता को उसी की तरह जवाब दिया।

" अरी छिनार, अभी तो भैया भैया कर रही थी ,ले लो न अपने भैया से। "

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मंजू के छोड़ने के बाद मैं गीता के बगल में ही बैठ गया था।

गीता बड़े ठसके से मेरी गोद में आके बैठ गयी और अपने दोनों कोमल कोमल हाथों से मेरा सर पकड़ के अपने रसीले होंठों से मेरे होंठ दबोच लिए और अब मेरे होंठो से रिसता हुआ पान का रस गीता के मुंह में।

हम दोनों के कपडे देह से अलग हो चुके थे।

गीता अपने किशोर भारी भारी नितम्ब मेरे खड़े लन्ड पे रगड़ रही थी ,कान में बोली ,


" भैया हम दोनों के कपडे तो कब के , और माँ अभी भी वैसे ही ,चल हम दोनों मिल के उसे भी अपनी तरह से ,... "

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मंजू बाई को कुछ कुछ हमारी शरारतों का अन्द्दाज लग गया था ,वो बोली ,

" भाई बहन मिल के क्या बातें कर रही हो। "

तब तक उठ के हम दोनों मंजू बाई के आगे पीछे खड़े हो गए थे।

गीता ने उसकी साडी पेटीकोट से अलग किया और लगी खीचने ,मैंने सीधे ब्लाउज की बची खुची बटनों पर घात लगायी।
वो दोनों पहाड़ जिनका मैं दीवाना था , पल भर में ब्लाउज से बाहर।

लेकिन गीता ने उनका मजा लेने का मौका ही नहीं दिया।

वो जवान छोकरी ,ताकत से भरपूर , उसने पीछे से मंजू बाई के दोनों हाथ दबोच लिए थे , मुझसे बोली ,

" भैय्या, माँ का नाड़ा , ... "

और मेरा हाथ पेटीकोट के नाड़े पर पहुंचता उसके पहले ही मंजू बाई बोल पड़ी ,मुझे चिढाते ,

" क्यों खोला है कभी माँ का नाड़ा ? "

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और जवाब मेरी ओर से गीता ने दिया ,

" अरे बहुत बार , समझती क्या है मेरे भैया को। पक्का मादरचोद है ,माँ के भोसड़े का दीवाना। नाड़ा खोलने की प्रैक्टिस ही वहीँ की है। "

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और मैंने नाडा खोल दिया , सरसराता हुआ मंजू बाई का पेटीकोट उसके टांगों के नीचे ,गीता ने झटके से उसे दूर फेंक दिया और अब मंजू बाई भी हम दोनों की तरह हो गयी।


अंदर और बाहर के दरवाजे में ताला बंद ,

आंगन में मैं ,मंजू बाई और गीता , रात अभी शुरू हुयी थी।


चांदी की हजार घंटिया फिर घनघनाई , गीता की हंसी।

" अब हुए न हम तीनो बराबर , माँ , मैं तुम और भैया। "

" एकदम " हंसी में शामिल होकर उन्होंने भी सहमति जताई।

" एकदम नहीं ," मंजू बाई को मंजूर नहीं था ,वो बोली ,

" अरे तुमने अकेले मेरे मुन्ने का मजा लिया ,उसे चुसाया ,उसका चूसा ,... "

लेकिन उनकी बात गीता ने बीच में काट दी ,

" अरी माँ तेरी क्यों झांटे सुलग रही हैं , तू भी अपना भोंसड़ा चुसवा ले न ,तब तक मैं भैया का मोटा रसीला गन्ना चूसती हूँ। "

और ये कह के उस शोख ने मुझे ऐसे धक्का दिया की , बस मैं चटाई के ऊपर। गीता मुझसे बोली ,

" भैया, माँ के भोंसडे में बहुत रस है , ज़रा जम के चूसना।“


और मंजू बाई की मोटी तगड़ी मांसल चिकनी जाँघे सँड़सी की तरह मेरे सर के दोनों ओर एकदम कस के दबोचे ,सूत बराबर भी नहीं हिल सकता था मैं।

और फिर अपने दोनों हाथों से भी मंजू बाई ने मेरा सर कस के पकड़ रखा था , मंजू बाई के दोनों घुटने मेरे दोनों हाथों पर ,

और अपना भोंसड़ा मेरे मुंह पे रगड़ती वो बोली ,

" ले चूस कस कस के अपनी बहन के यार , "



गीता एकदम मुझसे सटी ,चिपकी ,मेरे पैरों के बगल में मेरे 'मूसलराज ' को छेड़ रही थी ,

अपने लाल परांदे से कभी उनके खड़े तन्नाए मूसल को सहला देती तो कभी रगड़ देती ,

फिर उसने अपनी लंबी काली मोटी चोटी उनके मोटे खड़े लन्ड के चारो ओर ,नागपाश ऐसे बांध कर एकदम कस के ,

झुक के खुले सुपाड़े को अपनी लंबी जीभ से लप्प से चाट लिया।



मंजू बाई की बात सुन के तपाक से वो बोली

" अरी माँ तुझे क्यों मिर्च लग रही है , अगर मेरा प्यारा प्यारा भैय्या अपनी बहन का यार है तो तू भी भी इसे बना ले न माँ का खसम , अरे ये पैदायशी मादरचोद है। अभी देखना कैसे माँ ,तेरा भोंसड़ा कूटेगा। "

और फिर गप्प से गीता ने सुपाड़ा अपने रसीले मुंह में लीची की तरह भर लिया और लगी चूसने ,कस कस के।




उन्हें गीता नहीं दिख रही थी ,सिर्फ मंजू बाई की कड़ी कड़ी बड़ी बड़ी चूंचियां नजर आ रही थीं।


मंजू बाई का चिकना पेट , गहरी नाभी और खूब घनी काल काली झांटे , ... और मंजू बाई अपना भोंसड़ा उसके मुंह पे ऐसे रगड़ रही थी ,जैसे उसका मुंह चोद रही हो।




लेकिन वो भी नम्बरी चूत चटोरे , उन्होंने अपने दोनों हाथो से उसकी बुर की बड़ी बड़ी फांकों को दबोच लिया और लगे पूरी ताकत से चूसने।
पुराने चूत चटोरे , कुछ ही देर में जीभ कभी ऊपर से नीचे तक तो कभी आगे से पीछे ,


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और गीता की आवाज सुनाई पड़ी ,

" क्यों मजा आ रहा है न माँ के भोसड़े में मुंह मारने में , माँ के खसम , मादरचोद। "

गीता दिख नहीं रही थी लेकिन उसकी हरकतें उन्हें पागल कर दे रही थीं।

गीता के किशोर रसीले होंठ पूरी ताकत से सुपाड़ा चूस रहे थे , साथ में गीता की मांसल जीभ नीचे से लपड़ लपड़ सुपाड़े को चाट रही थी।

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और गीता के दोनों शोख शरारती हाथ ,एक तो उसके बॉल्स के पीछे ही पड़ गया था। कभी उसे सहलाता ,कभी हलके हलके दबाता तो कभी गीता की दुष्ट उंगलिया , बॉल्स और पिछवाड़े के छेद के बीच रगड़ घिस करता। दूसरे हाथ की उंगलियां कभी खूंटे के बेस पर दबाती तो कभी उसके लंबे नाख़ून कड़े खूंटे को रगड़ देतीं ,स्क्रैच कर लेतीं।




मस्ती के मारे वो बार बार चूतड़ उचका रहे थे।

और ऊपर से गीता के कमेंट ,

" बड़ा मजा आता होगा न माँ के भोंसडे को न जो इत्ता मोटा लन्ड जम के कूटता होगा उसे। "


और इधर मंजू बाई भी ,

उसकी बुर की फांके दसहरी आम की फांको से कम रसीले नहीं थे।

वो खुद धक्के मार के उनके मुंह पे ,उन्हें चटवा रही थी।


क्या कोई मर्द धक्के मारेगा , उन्होंने एक कभी गे फिल्म देखी थी जिसमें एक लौंडा ,एक मर्द का मोटा लन्ड चूस रहा था ,और वो उसके मुंह में जोर जोर से धक्के मार मार के लन्ड पेल रहा था।

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एकदम उसी तरह ,

मंजू बाई उस मर्द को भी मात कर रही थीं ,दोनों हाथ से उनके सर को पकड़ के जबरदस्त उनके होंठों पे अपना मखमली रसीला भोंसड़ा रगड़ ऐसे ही जबरदस्त रगड़ रही थीं ,उनके खुले मुंह के अंदर ठेल रही थीं। पूरी ताकत से ,पूरे जोश से,...



और उनको भी उस जोर जबरदस्ती में मजा आ रहा था, जिस ब्रूट तरीके से मंजू बाई उनके बाल पकड़ के खींच रही थी,


अपने बड़े बड़े मोटे चूतड़ उठा उठा के धक्के मार रही थी, जिस जोर से मंजू बाई की तगड़ी मांसल जाँघों ने उन्हें दबोच रखा था ,


और साथ में एक से एक गन्दी गालियां ,

" अपनी माँ के खसम ,माँ के यार ले चूस माँ का भोंसड़ा , चूस मादरचोद ,


अरे बचपन से तुझे भोंसड़ा का रस पिला के इत्ता बड़ा किया है , पेल दे जीभ अंदर मादरचोद ,
अरे देख अभी तुझसे क्या क्या चटवाती हूँ ,खिलाती हूँ ,

पहले भोंसड़ा का मजा ले ,फिर गांड का मजा दूंगी ,


गांड के अंदर का भी चटवाउंगी ,चल चूस कस कस के , .... "



इधर मंजू बाई जितना जबरदस्ती हार्ड हाट थी उधर नीचे गीता उतनी ही साफ्ट और उतनी ही हाट ,


गीता के होंठ सुपाड़ा चूस चुभला रहे थे।

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मन कर रहा था किसी तरह ,बस किसी तरह ,... उसके होंठ सरकते हुए पूरे लन्ड को गड़प कर लें और जोर जोर से वो चूसे ,झाड़ दे चूस चूस के।


लेकिन गीता ने अपने होंठ भी सुपाड़े पर से हटा लिया

पर थूक की एक लड़ गीता के होंठों से निकल सरकती हुयी सीधे खूंटे पर ऊपर से नीचे तक ,

और उसी के पीछे गीता के रसीले किशोर होंठ , खूंटे पे रगड़ते , सीधे लन्ड के बेस तक बहुत धीमे धीमे और फिर जीभ की टिप गोल गोल चक्कर लन्ड के बेस पे चक्कर काटते,

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वो तड़प रहे थे सिसक रहे थे।

गीता ने अचानक अपने होंठों के बीच उनके पेल्हड़ की एक गोली ( बॉल्स ) दबा ली और लगी चुभलाने ,और उसके बाद दोनों बॉल्स ,




ये नहीं की उनका लन्ड आजाद हो गया था ,



गीता की शरारते कम नहीं थी , एक हाथ से कभी वो अपनी लम्बी चोटी उसपे रगड़ती ,सहलाती तो कभी कस के बाँध के रगड़ती , लन्ड की रगड़ाई और बॉल्स की चुसाई दोनों साथ साथ चल रहे थे।

साथ में बीच बीच में गीता के कमेंट्स कभी मंजू बाई से ,कभी उनसे






" क्यों माँ मजा आ रहा है न मेरे भैया से ,अपने खसम से भोंसड़ा चुसवा के,

अरे माँ मैंने बोला था न ये तेरा यार बचपन का मादरचोद है ,

माँ के भोसड़े का रसिया।


बोल न बहन का चूसने में ज्यादा मजा आ रहा था ,या माँ का चूसने में। "
 
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बहुत ही गरम अपडेट था । एकदम बढ़िया ।कोमल रानी जी की लेखनी का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है
 
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Black horse

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Just erotic, waiting for more
 
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