विभावरी बाहर अपनी एड़ी में लाली लगा के, रात की काली चादर उठा के बस हलके हलके झाँक रही थी, ...
प्रत्युषा के क़दमों की बस हलकी हलकी आहट मिल रही थी,... छह बजने वाले थे,... हलके हलके बादल थे , हवा भी भीगी भीगी सी , कहीं पानी बरसा था,... लेकिन पूरब में आसमान में लाली छा गयी थी,... बस थोड़ी देर थी,... थोड़ी देर में सड़क पे साइकिल की घण्टियाँ टनटनाने लगेगी,... बगल के गाँव से दूधिये , साइकिल पे दूध के टीन लादे,... अखबार वाले, सड़क पे टाउनशिप की झाड़ू लगाने वालियां,...
इन पैराग्राफ को पढ़ कर लगता है कि उच्च कोटि का सहित्य पढ़ रहे हों...
सुबह के वातावरण का भी बहुत सही चित्रण किया है...
ऐसा हीं शमां देखने को मिलता है.... किसी शहर या गाँव में...