लेकिन अभी तो ऊपर से लेकर नीचे तज सब कंट्रोल में है...Ekdam vaise bhi aaj kal chhhtni ka jamana chal raha hai pink slip milte kitani der lagti hai
सही कहा... उत्प्रेरक तो प्रतिक्रिया को कई गुना बढ़ा देती है....एकदम इसलिए तो कैटलिस्ट या उत्प्रेरक की जरूरत पड़ी वो एक नहीं कई, जिसमे इनकी सास, गीता और मंजू भी थीं, तब जा के प्रतिक्रिया कुछ तेज हुयी, और उत्प्रेरक जस के तस अलग,... जैसे कुछ जानते ही न हों,... एकदम बी जमालो की तरह जो आग लगा के दूर खड़ी हो जाती थीं,... और लोगों से फायरब्रिगेड का नंबर भी पूछती थीं,... तो बस वही,
लेकिन एक बार केमिकल रिएक्शन शुरू हो गया फिर तो रुकने वाला नहीं है
Just fulfilling the wish of saas to have further plot of maa-beta episode...thanks and i feel in the entire context of story and main theme it was only a small sub-plot which generated more attention than it deserved based on the entire scheme of things. But every reader does have a world view and his look is coloured by that and nothing wrong with that. However, it does conflict with the stream and mood of story so i have learnt to avoid such pitfalls.
अभी कुछ हीं दिनों में आपकी सास आने वाली है. तो उसके गर्भाधान मुश्किल लगता है और आने पर गुड्डी भी आपके मायके..एकदम सही कहा आपने
लेकिन दूधो से तो अक्सर नहाएगी,
पर एक खास दिन जिस दिन मलाई का जामन पड़ने से चाँद चकोरी सी बिटिया पेट में आये, ... दिन घडी देख के गवाहों के सामने वो गर्भाधान संस्कार होगा और अब गीता ने १० महीने का समय दे दिया है तो मतलब एक महीने बाद, बल्कि एक महीने के अंदर,...
और तबतक प्रोटेक्शन भी जरूरी है क्योंकि दूध दही लस्सी तो बहुत उसे पिलायेंगे लेकिन पूतो फलो तो अपने भैया वाली रबड़ी से ही होना है
द्रोणाचार्य पुरस्कार गीता को तो ..गीता तो हर गुरु की तरह चाहती है उसकी शिष्या उससे भी आगे निकले और बहुत जल्द
अगर काम क्रीड़ा सिखाने का कोई द्रौणाचार्य पुरस्कार होता तो सबसे पहले गीता को मिलता
ap ki post sirf dekh ke hi itani khushi ho jaati hai, aap ki kalam se taarif ke do shabd bhi bahoot hain kisi bhi writer ke liye,... aapne in posts ko padha saaraha aur time nikal ke comments bhi post kiya , shabdatit anubhav hai i can only say![]()




ज्ञानपीठ...Komal ko milta
सुहागरात के बाद सुहागदिन... बहुत जबरदस्त...जोरू का गुलाम भाग १७२
सुहाग दिन या ननदिया चढ़ी अपने भैया के ऊपर
गीता ने पूछ लिया , "कल रात भर कौन चढ़ा था "
गुड्डी ने अपने भइया की ओर देखा और मुस्कराने लगी ,
पर गीता वो तो आज गुड्डी की सारी सरम लाज की ऐसी की तैसी करने में ,
"हे भाउज अइसन रंडी जस मुस्की जिन मारा। साफ़ साफ बोलो न की कल रात भर ऊपर कौन था , कौन चढ़ा था ,"
गुड्डी समझ गयी थी गीता को उसने ननद बना तो लिया था लेकिन इस ननद से पार पाना आसान नहीं थी। " भइया ,... " गुड्डी हलके से बोली।
" तो रात भर वो चढ़े थे , तो अब तुम्हारा नंबर , ... रात भर हचक हचक कर ,.. थोड़ा थक नहीं गए होंगे ,चलो चढ़ो ,.... " उसकी नयी बनी ननद ने हड़काया।
" अरे यार चढ़ जा न , बस एक बार सटा देना ,... फिर नहीं जाएगा तो बोल देना साफ़ साफ़ , मैं हूँ तेरी हेल्प करने के लिए "
अपनी ननद की पीठ सहलाते हुए मैं बड़े प्यार से समझाते मनाते बोली मैं बोली।
मैं और गीता , गुड कॉप बैड कॉप रूटीन कर रहे थे।
गीता भी अब थोड़ा मुलायम ढंग से , " अरे चलो मैं बताती हूँ , कैसे चढ़ते हैं ,मायके में कुछ सीख वीख के नहीं आयी , ... "
और मैंने और गीता ने मिल के उस टीनेजर को उठाया , और उस मोटे लम्बे बांस के ऊपर , गुड्डी दोनों पैर फैला के ,... कसी भी तो बहुत थी उसकी , अभी एक दिन भी नहीं हुए थे फटे ,... उस कच्ची कली के , और आज खुद ऊपर चढ़ के ,... गीता ने मेरी छुटकी ननद के निचले दोनों होंठ फैलाये और उनके सुपाड़े को सेट कर दिया , मुझसे ज्यादा बेहतर कौन जानता था की जब वो दुष्ट , गुलाबी पंखुड़ियों को छूता है तो बस यही मन करता है की , बस घुसेड़ दे , धकेल दे , ठेल दे ,... भले ही जान चली जाय। उनकी ममेरी बहन की भी यही हालत हो रही थी ,पर घुसाए कौन,
और गुड्डी अभी भी बोलने से लजा रही थी ,वो भी गीता के सामने ,...
गीता के हाथ गुड्डी के कच्ची अमिया पर टहल रहे थे ,हलके से दबा के गुड्डी के कान में बोली ,
" मान गयी तुम अभी ,.. भैय्या से बोल न ,... "
गुड्डी के चेहरे पर एकदम ,... दोनों जुबना मस्ती से पथराये थे , बोली वो ,...
" भैया ,... "
उन्होंने कोई रिस्पांस नहीं दिया ,...
" भैया करो न ,... "
कोई और होता तो वही हचक के उस टीनेजर को ,... लेकिन आज उन्हें भी तड़पाने में मजा आ रहा था। और बात सही भी थी इसी लौंडिया ने कितना तड़पाया था उनको , उसकी सारी सहेलियाँ रोज बिना नागा अपने भाइयों से , दिया तो अपने सगे भाई से ही,... और ये ,... अपनी दोनों जाँघों के बीच दबाये छुपाये बचाये,
उसको चिढ़ाते चढ़ाते , वो बोले ,
"क्या करूँ बोल न "
,पर गीता इतनी सॉफ्ट नहीं थी , पूरी ताकत से उसने गुड्डी के निपल मरोड़ दिए , और उसके कान में बोली ,
" क्या सिखाया था तुम्हे कैसे बोलना , स्साली छिनार रात भर चुदवाने में शरम नहीं और चोदवाना बोलने में जान जा रही है , अभी ऐसे जबरदस्ती पेलुंगी न की जान निकल जायेगी , वरना बोल ,... "
रुकते , लजाते , हिचकचाते बोली वो छुई मुई , " भइया ,... " फिर रुक गयी
गीता के नाख़ून गुड्डी के नए नए आये निपल्स में गड गए।
" भैया ,... चोदो न " वो शर्मीली बोली , लेकिन इतने धीमे से की उसने खुद भी नहीं सुना होगा ,
" जरा जोर से बोल न , ... साफ़ साफ बोल न ,.. " वो भी न आज ,...
" भैया चोदो न ,... " अबकी वो थोड़ी तेज और फिर तो ,.... गीता ने पूरे जोर लगा के , ... गीता के दोनों हाथ गुड्डी के कंधे पर थे , पूरी तरह से उसने दबाया , मैं भी हलके से अपनी सुकुमार ननद की पतली कटीली कमर पकड़ के और सबसे बड़ी बात , इन्होने पूरी तेजी से ,पूरी ताकत से ,... गुड्डी ने सिसकी ली , और फिर बड़ी जोर से चीखी ,... लेकिन गीता ने पुश करना नहीं छोड़ा और नीचे से उन्होंने दुबारा , पहले से भी तगड़ा धक्का ,
चीख भी पहले से ज्यादा तेज , ... आधे से ज्यादा सुपाड़ा मेरी ननद की बुरिया ने घोंट लिया था।
मैं समझ रही थी ,दर्द के मारे उस कच्ची कली की जान निकल रही होगी। इतना मोटा सुपाड़ा और मेरी ननद की छोटी सी बिल ,
लेकिन मुझसे ज्यादा गीता मेरी ननद की असलियत समझ रही थी ,वो समझ गयी थी की , इस बारी उमर में भी , भले ही इसकी अबतक फटी नहीं थी , लेकिन मोटे मोटे चींटे इसकी बुरिया में काटते थे। और अब गीता ने ऊपर से प्रेस करना रोक दिया था और उसके भइया ने नीचे से पुश करना।
दो तिहाई सुपाड़ा अंदर , ... मन तो कर रहा था ननद रानी का पूरा अंदर लेने का , एक बार स्वाद ले लेने के बाद कौन लड़की मना कर सकती है घोंटने से ,
गुड्डी कभी गीता को देखती कभी अपने भइया को ,
"करो न भइया ,रुक काहें गए ,डालो न ,... "हिम्मत करके धीरे से वो टीनेजर बोली
" कहाँ डालू ,बोल न ,... " चिढ़ाते हुए वो बोले , और साथ में गीता भी , "तू भी तो धक्का मार ऊपर से "
गुड्डी उन्हें देख कर मुस्करायी और शरारत से बोली ,
" जहाँ डालना चाहते थे , मेरी चूत में , ... " और साथ में उस किशोरी ने दोनों हाथों को बिस्तर पर रख खुद भी प्रेस किया ,
यही तो गीता भी चाहती थी , यही तो मैं भी चाहती थी , ये लड़की खूब खुल के बोले ,खुल के मजे ले
और मैंने और गीता ने साथ साथ , गीता ने उसके कंधे पकड़ के नीचे की ओर ,मैंने उसकी पतली कमर पकड़ के , और उसके बचपन के आशिक ने भी नीचे से जम के धक्का मारा,
पूरा सुपाड़ा अंदर , धंसा , घुसा ,फंसा , अब तो मेरी ननद चाहती भी तो कुछ नहीं कर सकती थी। असल में उसकी तो उसी दिन लिख गयी थी , जिस दिन वो बाजी हर गयी थी ,उस के भैया ने न सिर्फ उसके सामने आम खाया बल्कि उसे भी खिलाया , ... ४ घंटे की गुलामी , गुड्डी रानी की जिंदगी भर की ,...
इत्ता मोटा सुपाड़ा , कच्ची चूत ,.... गुड्डी दर्द से नहा उठी ,पर अबकी चीखने के बजाय ,जोर से उसने अपने होंठ दांतों से काट लिए ,दोनों हाथों से बिस्तर की चद्दर भींच ली ,
अब तक दोनों शरमा रहे हैं..भैया बहिनी -दिन दहाड़े
पूरा सुपाड़ा अंदर , धंसा , घुसा ,फंसा , अब तो मेरी ननद चाहती भी तो कुछ नहीं कर सकती थी। असल में उसकी तो उसी दिन लिख गयी थी , जिस दिन वो बाजी हर गयी थी ,उस के भैया ने न सिर्फ उसके सामने आम खाया बल्कि उसे भी खिलाया , ... ४ घंटे की गुलामी , गुड्डी रानी की जिंदगी भर की ,...
इत्ता मोटा सुपाड़ा , कच्ची चूत ,.... गुड्डी दर्द से नहा उठी ,पर अबकी चीखने के बजाय ,जोर से उसने अपने होंठ दांतों से काट लिए ,दोनों हाथों से बिस्तर की चद्दर भींच ली ,
उसका चेहरा दर्द से डूबा था , पर वो बूँद बूँद कर दर्द पी रही थी , और हम सब रुके थे , उसके भइया ने ही फिर छेड़ा अपनी बहना को ,
"बोल क्या डालूँ ,... "
और उनकी ममेरी बहन के चेहरे पर जैसे मुस्कान खिल उठी ,दर्द के बावजूद एक बार फिर से ऊपर से धक्के मारते बोली ,
" अपना लंड ,.. डालो न भइया , तुम बहुत तड़पाते हो ,... बदमाश। "
कौन भाई रुक सकता था , पूरी ताकत से उन्होंने अपने चूतड़ को उचकाया , गुड्डी ने भी ऊपर से और एक इंच एक बार में ही
गप्प।
उसकी कल रात की ही फटी चूत में दरेरता फाड़ता , रगड़ता उसके भैया का मोटा लंड अंदर घुस रहा था।
मैंने अपनी ननद की कमर से हाथ हटा लिया था , और अब वो भाई बहन ही , धक्कम धुक्का
धीरे धीरे ऊपर चढ़ी मेरी ननद ने करीब ६ इंच घोंट लिया था और अब उन्होंने भी धक्के लगाने बंद कर दिया था , सिर्फ गुड्डी ही पूरी ताकत लगाकर ऊपर से पुश कर रही थी ,प्रेस कर रही थी।
लेकिन अब मुश्किल था , दो ढाई इंच अभी भी बचा था , और उस चालाक शोख ने एक रास्ता निकाल लिया,
जैसे किशोरियां सावन में झूला झूलती हैं , वैसे ही उस मोटे बांस पर आगे पीछे , और साथ में अब उस की बारी थी उन्हें छेड़ने की ,
अपने छोटे छोटे जुबना उनके होंठों के पास ले जाकर वो हटा लेती थी कभी उनके होंठों पर रगड़ देती थी।
" दे न ,... " अब उनकी बारी थी बिनती करने की ,
"उन्ह ,... नहीं भइया खुल के मांगो न , क्या दूँ ,.. " अब मेरी ननद भी ,... एकदम उन्ही की तरह ,
" अपने टिकोरे , कच्ची अमिया ,... "
" ना , नहीं मिलेगा ,... बदमाश हो तुम ,... साफ़ साफ़ बोल ,.. "
"अपने जोबन ,... उफ़ दो न ,.. "
और गुड्डी उनके होंठ पर रगड़ के हटा लेती।
" अरे अपनी चूँची दे , ... "
" लो न मेरे भैया मैं तो कब से ,... जब से ये टिकोरे आये तब से तुझे देने के लिए ,.. लेकिन एक हाथ ले दूसरे हाथ दे ,.. "
और जैसे कोई शाख खुद झुक जाए , वो झुक के अपने कच्चे टिकोरे अपने बचपन के यार के होंठों पर , और उन्होंने कचकचा के काट लिया
और साथ ही वो समझ गए उनकी बहना क्या मांग रही थी , दोनों हाथों से अपनी बहन की पतली कमर पकड़ के नीचे से करारा धक्का ,मोटा लंड और अंदर
मैं किचेन में चली गयी थोड़ी देर लेके , आखिर गाडी में डीजल भी तो डालना था। हाँ गीता को मैंने वहीँ छोड़ दिया था गीता के सामने मेरी ननद खुल के चुदवाये , खुद बोल बोल के ,... चोदाई के बारे में बात करे , और गीता से उसकी सारी शरम ,.. और उन दोनों में इंटिमेसी भी
जब मैं लौटी थोड़ी देर में तो गुड्डी पसीने पसीने ,लंड आलमोस्ट उसकी चूत में धंसा और अब वो खुद इन्हे ललकार के ,
"भोंसड़ी के मादरचोद , तो बहन चोद तो तू हो ही गया और वो भी हम लोगों के सामने , ... चल मादरचोद भी हो जाएगा ,... "और हचक के गरियाया।गुड्डी, मेरी ननदिया की मस्ती
मैं किचेन में चली गयी थोड़ी देर लेके , आखिर गाडी में डीजल भी तो डालना था। हाँ गीता को मैंने वहीँ छोड़ दिया था
गीता के सामने मेरी ननद खुल के चुदवाये , खुद बोल बोल के ,... चोदाई के बारे में बात करे , और गीता से उसकी सारी शरम ,.. और उन दोनों में इंटिमेसी भी
जब मैं लौटी थोड़ी देर में तो गुड्डी पसीने पसीने ,लंड आलमोस्ट उसकी चूत में धंसा और अब वो खुद इन्हे ललकार के , " अरे बहन चोद ज़रा कस के धक्का मार न ,.... "
" अरे भाई चोद फाड़ के रख दूंगा तेरी ,... " ये भी अब खुल के अपनी बहिनिया से मस्ता के बोल रहे थे।
"तो फाड़ न ,... डरती हूँ क्या तेरे से ,... "मेरी ननद भी अब सब सरम लिहाज भुला गयी थी, अपने भैया को ललकार रही थी।
और उन्होंने नीचे से क्या जोरदार धक्का मारा , की सीधे जड़ तक ,गुड्डी की बच्चेदानी में , वही हुआ जो होना था गुड्डी पहले तो दर्द से चीख पड़ी ,फिर सिसकने लगी और मिनट भर के अंदर वो झड़ रही थी ,
एक बार ,दो बार ,बारबार ,झड़ती थी ,रुकती थी ,फिर दुबारा ,... उन्होंने धक्के मारने नीचे से रोक दिए थे , और गुड्डी ऊपर बार बार , थोड़ी देर में मेरी ननद थेथर हो गयी थी , एकदम लथपथ , अब उसके बस का नहीं था कुछ भी करना ,
पर वो तो नहीं झड़े थे ,बस अब गाडी नाव पर
वो ऊपर और उनकी बहना नीचे।
उसकी दोनों टाँगे हवा में उठी , खूब फैली , और वो हचक हचक के धक्के मार रहे थे , तूफ़ान मेल फेल , सटाक सटाक
गुड्डी बेचारी झड़ झड़ कर अभी थेथर हुयी थी , हिल भी नहीं सकती थीं , लेकिन उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था , क्या कोई धुनिया रुई धुनेगा जिस तरह से वो उस किशोरी की बुर,..
लेकिन गीता की निगाह से कुछ नहीं बच सकता था , उस की एक ऊँगली उनके पिछवाड़े सहला रही थी ,
"स्साले बहनचोद , भोंसड़ी के ,हरामी के जने रंडी के , बेईमानी ,... " वो गरज के बोली और तब मेरी समझ में आया डेढ़ दो इंच अभी भी बाहर था मूसल का। गीता ने गचाक से एक बार में दो ऊँगली उनके पिछवाड़े पेल दी , और हड़काया ,
" भोंसड़ी के ये बाकी का लौंडा अपनी किस मायकेवाली के लिए छोड़ रखा है ,कोई और बहन बची है क्या , छिनार की जनी,.. "
"अरे यार , इनकी बहनों की बुर पर तो हमारे भाइयों का नाम लिखा है , ये तो इन्होने मेरी सास के लिए , अपनी मां के लिए ,... "मैं गरियाने में क्यों पीछे रहती
बस गीता ने ऊँगली दोनों थोड़ी बाहर खींची और अबकी जड़ तक पेल दी।
"भोंसड़ी के मादरचोद , तो बहन चोद तो तू हो ही गया और वो भी हम लोगों के सामने , ... चल मादरचोद भी हो जाएगा ,... "और हचक के गरियाया।
और उस ऊँगली के धक्के का असर ये हुआ की बाकी का बचा हुआ ,पूरा नौ इंच अंदर , मोटा सुपाड़ा सीधे उनकी ममेरी बहन की बच्चेदानी पर ,
गुड्डी एक बार फिर से झड़ने लगी ,
कुछ गुड्डी के झड़ने का असर और कुछ गीता की उँगलियों का , सच में गीता एकदम एक्सपर्ट थी , वो उँगलियाँ सीधे उनके प्रोस्ट्रेट पर हलके हलके , प्रोस्ट्रेट मसाज मैंने सुना था लेकिन आज देख रही थी , और कुछ देर में वो भी अपनी बहन की बिल में , ... खूब ढेर सारी गाढ़ी थक्केदार मलाई , बार बार , गुड्डी की दोनों जाँघों के बीच ,
किचेन से में ब्रेकफास्ट ले आयी थी ,
ये दोनों भाई बहन एक दूसरे की बाँहों में और गीता ने इनके पिछवाड़े से अपनी दोनों उँगलियाँ निकाली और उसी से आमलेट का एक बड़ा सा टुकड़ा , तोड़ के सीधे मेरी ननद के मुंह में और मेरी ननद ने गपक कर लिया। गीता ने बड़ी जोर से मुझे आँख मारी।
गुड्डी अपने भैया की बाहों में , और उन्होंने सम्हाल के उसे अपनी गोद में बिठा लिया , खूंटा अभी भी अंदर तक धंसा था , पूरा। दोनों एक दूसरे को पकडे जकड़े ,
' चल भौजी हम तोंहे खियाय देंगी , आखिर ननद की बात मानी आपने ,.. " और गीता ने आमलेट का एक बड़ा सा टुकड़ा , गुड्डी को दिखाय के अपने मुंह में और फिर गीता के मुंह से गुड्डी के मुंह में ,