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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २३६ - मंगलवार, दिल्ली

अपडेट पोस्टड, पृष्ठ १४३३ फायनेंसियल थ्रिलर का नया मोड़,

कृपया पढ़ें, आंनद लें और कमेंट जरूर करें
 
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motaalund

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मुख सुख

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बस धुन के रख दिया उन्होंने उन छोटी छोटी चूँचियों को , क्या हचक के चुदाई की , ऐसी तो उन्होंने अपने उस बचपन की छिनार रंडी , भौजाई की भी चूँची चोदते समय नहीं की होगी।

और फिर सीधे मुंह में ,... और आज गुड्डी तो कम चूस रही थी ,
वो सीधे उसके मुंह में ,... क्या किसी भोंसड़ी वाली की चोदेगे , जिस तरह गुड्डी का मुंह वो ,... और इस बार तो मेरे उकसाने की भी जरूरत नहीं थी , हर धक्का उस टीनेजर के हलक तकऔर हचक के


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अपनी बहिनिया का मुंह चोदने का जो असर होना था वही हुआ ,

बस पांच दस मिनट में एक बार फिर ज्वालामुखी फूटा ,

और अबकी दूध दही की जो नदी बही ,.. लेकिन अब सब उस छोरी के मुंह में नहीं गया ,

मैंने कमान , मेरा मतलब उनकी तलवार अपने हाथ में ले ली , और पिचकारी का पहला निशाना उस गोरी के दोनों कड़े कड़े जुबना पर जिससे थोड़ी देर पहले वो अपने भइया का लंड चोद रही थी ,
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फिर बचा खुचा उस टीनेजर के गोरे गोरे मुखड़े पर ,...

अभी भी बहुत मलाई बची थी , उसके भइया के पिचकारी में ,

वो सारा सफ़ेद रंग ,...

अब अपनी बहन की मांग में ये चुटकी भर सिन्दूर तो डाल नहीं सकते थे , तो उस मांग में ,

जैसे रखैल की मांग भरी जानी चाहिए , सीधे उनके मूसल से , चुटकी भर नहीं , चम्मच भर , बल्कि कलछुल भर ,...
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गाढ़ा थक्केदार , सफ़ेद ,...
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और अब मैंने गुड्डी का ब्लाइंडफोल्ड भी खोल दिए , हाथ भी हैंडलकफ़ से खोल दिए , वो अपने भइया से चिपक गयी , और पीछे से मैं अपनी ननद से ,


घंटे भर उसके भइया , मैं दुलराते रहे , सहलाते रहे खूब प्यार से हलके हलके
और वो हम दोनों के बीच में चिपकी ,...

हाँ कम से कम तीन चार बार वो एकदम झड़ने के कगार पर पहुंची , बस लगता था एक सेकेण्ड और ,... और मेरी ननद ,... लेकिन कभी मेरे नाख़ून तो कभी मेरे दांत कस के उसके उभारों के ऊपरी हिस्से पर पूरी ताकत से कचकचा के और वो दर्द से चीख उठती

लेकिन थोड़ी देर बाद ही हम दोनों फिर उसे फुसलाना , मनाना सहलाना ,

हम तीनो में बोल कोई नहीं रहा था , सिर्फ हमारी उँगलियाँ , होंठ , जीभ बोल रहे थे ,



और बाहर रात झर रही थी , बादल बरस रहे थे ,...



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मैं नहीं चाहती थी की वो आज की रात झड़े , और ये भी चाहती थी की उसकी छोटी छोटी गोल गोल गोलाइयों पर रात के निशान बचे रहें ,

देखने वाला समझे की रात भर कोल्हू चला है।
ये सिंदूर भराई तो हर छेद में होगी....
 

motaalund

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हमारी तिकड़ी

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हम दोनों ननद भाभी मिल के उन्हें तंग कर रहे थे,

बारिश भी हम लोगों का साथ दे रही थी, गुड्डी ने खिड़कियां खोल दी थीं, बारिश की फुहार हवा जब भी तेज चलती थी, बिस्तर तक आ के हम लोगों को भिगो दे रही थी,

गुड्डी बड़ी शैतान, ... वो खिड़की के पास खड़ी हो गयी और अंजुली भर बारिश का पानी भर,


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के शरारत से बूँद बूँद उनके आधे सोये आधे जागे खूंटे पे, धीरे धीरे टपका रही थी जैसे बाहर पेड़ों की पत्तियों से बूंदे धीरे धीरे चू रही थीं, बारिश ने उस टीनेजर के खुश खुश चेहरे को भी गीला कर दिया, बस अपने गोरे गुलाबी गालों से अपने भैया के तन्नाते खूंटे पे हलके हलके रगड़ना शुरू कर दिया, कौन होता जिसका नहीं फनफनाता, और उनका तो रात भर खड़ा रहने वाला,

वो सोच रहे थे उनके बचपन का माल अब मुंह खोल के ले लेगा, लेकिन मैंने आँख के इशारे से मना कर दिया, मेरी ननद अब एकदम भौजाई की हर बात हर इशारे पे चलने वाली, वो भी आज तड़पाने के मूड में थी, मुंह उसने कस के बंद कर लिया और बंद होंठों को तगड़े तने अब एकदम खड़े खूंटे पर हलके हलके रगड़ना शुरू कर दिया और एकदम बेस पर,... मैंने उनके दोनों रसगुल्लों की ओर इशारा किया और इनकी छिनार बहिनिया ने गप्प से घोंट लिया और लगी चूसने, ...
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मैं भी अब मैदान में आगयी, रसगुल्ले मेरे ननद के हवाले और गन्ना मेरे हिस्से में हम ननद भाभी मिल के चूस चाट रही थीं,


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मैंने होंठ के जोर से उनका सुपाड़ा खोल दिया था, एकदम फूला बौराया, मैंने इशारे से उनकी बहिनिया को बुलाया और अब हम दोनों जीभ निकाल के सिर्फ जीभ से सुपाड़ा चाट रहे थे, दायां उसके हिस्से में बायां मेरे हिस्से में , सपड़ सपड़, जब बिजली चमकती तो वो हम दोनों का चेहरा देखते और उनकी हालत और खराब,

अब बेचारे बार बार कभी अपनी बहन से कभी मुझसे कहते, कुछ कर न , कुछ कर न ,
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मैं और गुड्डी दोनों समझ रहे थे उनका मन क्या कर रहा है, बहन का मुंह चोद चुके थे, चूँची चोद चुके थे पर चूत में ताला लगा था, असुविधा के लिए खेद है , सर्विस टेम्परेरली डाउन का,...

और मन उनका चुनमुनिया का ही कर रहा था, गुड्डी मुझे बारे बार इशारे कर रहे थी की मैं ही चढ़ जाऊं , कल रात भी तो हम दोनों ने मिल के उन्हें चोदा था,... और अब उनकी आँख भी मुझसे यही कह रहा था, बिन बोले मैंने गुड्डी से दर्जनों शर्ते मनवा ली,... और धीरे धीरे कर के मैं उनके बित्ते भर के पागल बांस के ऊपर चढ़ गयी,...

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बाहर बारिश बहुत तेज हो गयी थी गीली हवा के साथ अब भीगी भीगी बूंदे भी हम तीनो की देह पर,...

मैंने लेकिन पूरा नहीं घोंटा, सिर्फ आधा और उन्हें आँख के इशारे से बरज दिया की वो नीचे से धक्के न मारे,... आधा खूंटा मेरे अंदर धंसा, आधा बाहर, चूत सिकोड कर मैं उसे निचोड़ रही थी, कभी ढीली कभी एकदम टाइट,... गुड्डी चुपचाप मेरी बदमाशी देख रही थी, सीख रही थी, उसे खींच के मैं बगल में ले आयी,


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लड़की समझदार थी, इनके मायके वालियां सभी इस मामले में तेज हैं,... बस जीभ निकाल के वो इनके खूंटे के बेस से जितना हिस्सा बाहर था, उसे चाट रही थी,... और फिर चाटते चाटते उसकी जीभ की टिप मेरी फांको तक, फिर बिंदी की तरह योनि के ऊपर लगी क्लिट पर, जैसे जैसे बाहर पड़ रही बूंदो की रफ़्तार बढ़ रही थी उसी तरह नन्द की जीभ भी, थोड़ी देर में ही उनकी हालत एकदम खराब, ...

मैंने इशारे से उसे हटा दिया और अब खुद तेज रफ़्तार से उन्हें चोदने लगी, पर गुड्डी अभी भी, उनके सीने पर अपने दोनों जोबन रगड़ रही थी,... हाँ उसके भाई को कुछ करने की इजाजत नहीं थी और क्या चाहिए उन्हें एक टीनेजर इंटर वाली एक तरुणी, एक साथ

पर उनसे नहीं रहा गया, और अब मैं नीचे वो ऊपर, मेरी दोनों टाँगे फैली उनकी कंधे पे और एकदम तूफानी धक्के, बाहर चल रहा तूफ़ान अब मेरी प्रेम गली में घुस गया था और उसको और तेज हवा दे रही थी मेरी ननद उनकी बहन, उनके पीछे खड़ी हो के अपनी कच्ची अमिया उनकी पीठ में रगड़ती अपने नाख़ून से उनके मेल टिट्स को खरोंचती , कान में कभी जीभ कभी दांत से हलके से निबल करती

आज रोज से भी तेज वो बिना रुके धक्के लगा रहे थे और मैं भी साथ दे रही थी,...


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कुछ देर में जब वो झड़ने लगे तो मैंने उन्हें कस के भींच लिया , और सब कुछ अपनी बिलिया में, एक हाथ से उन्होंने गुड्डी को भी भींच लिया था, थोड़ी देर तक हम तीनो ऐसे ही पड़े रहे,... और जब वो हटे


तो मैंने अपनी खुली जांघों के बीच अपनी ननद को खींच लिया, उसके भैया की ही तो मलाई थी,... बड़ी चालाक वो,... पहले जो जांघ पर बह रही मलाई उसने चाटी, कुप्पी वाले कहाँ भागी जा रही थी,... फिर फांको पर लगी,...

हम सब चुप थे पर इनका फोन घनघनाया ,

मैं पहचान गयी इनके अलार्म की आवाज

……………………………………



और उसके तुरंत बाद इनके आफिस का फोन ,... इनके आफिस से इनकी ऑफिसियल कार चल दी थी , बस पन्दरह बीस मिनट में पहुँचने वाली थी। मैं भूल ही गयी थी इनकी कांफ्रेंस काल , साढ़े पांच बजे तीन चार देशों के बीच वाली ,

घंटे पौन घंटे पहिले इन्हे आफिस पंहुचना होता था , थोड़ी बहुत तैयारी , पेपर्स , और साढ़े चार बज रहे थे।


थोड़ी देर में तैयार होकर ये आफिस चले गए और मैं और मेरी ननद ,



न मेरी देह की प्यास बुझी थी न उसकी।
सजनी से साजन का प्रेम मिलन...
 

motaalund

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मस्त लेखन,
शरीर का कोई भी अंग लंड की रगड से बचना नही चाहिए।
लंड, मुख और हस्त .. इन तीनों से गुड्डी का कोई कोना बचना नहीं चाहिए...
 

motaalund

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इंडेक्स कहानी के शुरू में होना ही चाहिए . इससे नये पाठकों को कहानी तक पहुँच और ज्यादा आसान हो जाती हे और पढने में समय कम लगता हे , कमेन्ट भी कुछ ही काम के होते हें , वेसे कोमल जी ने मेरी सलाह भी मानी हे . कहानी के बीच की लाइनों का स्पेस कम करने के लिये , एक बात और कहना चाहता हूँ की फोटो या इमेज कहानी पढने में बाधा नही बनना चाहिए आपकी कहानी खुद ही पढ़ते समय पाठको के दिमाग में एक इमेज बनाते हुए चलती हे . उसे विदेशियों के फोटो या gif की जरूरत नही लगती , पर राजी जी ध्यान दें आपकी कहानी की लाइनों के बीच में इमेज खटकती हें इमेज अगर आप डालना ही चाहते हें तो वाक्य या पेराग्राफ कहने के बाद ही हो
अंत भला तो भला..
आपके आग्रह करने पर कोमल जी ने इंडेक्स बना कर सबको आशातीत खुशी दी है...
मेरे विचार से कहानी पहले पोस्ट से हीं शुरू हो चुकी थी.. इसलिए शायद वहाँ पर... सिर्फ पेज नंबर दे कर पाठक जंप कर सकते हैं..
 
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