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जोरू का गुलाम भाग २४२, 'कीड़े' और 'कीड़े पकड़ने की मशीन, पृष्ठ १४९१
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Superb update...मेरी छुटकी ननदिया
और सबसे बढ़कर वो उनकी ममेरी बहन।
वो पास के मोहल्ले में थी लेकिन अक्सर आ जाती थी। गुड्डी नाम था।
अभी ग्यारहवीं में गयी है,और जैसे इस उमर की लड़कियों में होती है , एकदम चैटर बॉक्स.
और एकदम चिपकू , अपने भैय्या से , हर समय , मेरे भैया ये नहीं करते , मेरे भैया वो नहीं करते।
लेकिन लगती कैसी थी ?
मैं ये कह सकती थी जैसे ग्यारहवीं में पढने वाली लड़कियां लगती हैं , वाली जिनपे अभी अभी जवानी चढ़ी हो।
लेकिन ये बेईमानी होगी।
जब मेरी शादी में आई थी बारात में तो उसके कच्चे टिकोरे ही आग लगा रहे थे
और अब तो कुछ दिन पहले जवानी की राते मुरादों के दिन वाली उम्र हो गयी।
मैं और मेरी जिठानी उसे चिढ़ाते थे , अरे अब तो इंटर में आ गयी है इंटरकोर्स कर ले तो ऐसा बिदकती थी की
लम्बी ठीक ठाक , ५-४ होगी ,
गोरी ,हंसती है तो गाल में गहरे गड्ढे पड़ते हैं।
और उभार ,
एकदम जम के दिखते हैं , खूब कड़े कड़े कच्ची अमिया जैसे छोटे लेकिन मस्त, उसके क्लास की लड़कियों से कुछ ज्यादा ही बड़े ।
हिप्स भी कड़े और गोल।
जैसा की फिराक ने कहा था , वैसी ही बल्कि थोड़ी बढ़ चढ़ कर ,
लड़कपन की अदा है जानलेवा
गजब की छोकरी है हाथ भर की
और मुझे भी कई बार लगा की सिर्फ वही नहीं चिपकी रहती , इनके मन में भी उसके लिए कुछ 'सॉफ्ट ( या हार्ड !) कार्नर ' है।
शादी के कुछ दिन बाद गाने हो रहे थे और मुझे मेरी जेठानी ने उकसाया गारी गाने के लिए ,
और गारी का असली टारगेट तो ननद ही होती है , तो बस मैं चालू हो गयी उसके टिकोरों की खुल के तारीफ करने
मंदिर में घी के दिए जले मंदिर में
मैं तुमसे पूछूं हे ननदी रानी , हे गुड्डी रानी ,
तोहरे जोबना का कारोबार कैसे चले ,
और उसका सम्बन्ध पहले अपने भैया फिर सैयां से जोड़ने ,
बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए कहना ना माने रे ,
बार बार गुड्डी दरवाजे दौड़ी जाय कहना न माने रे ,
अरे हलवइया का लड़का तो गुड्डी जी का यार रे , अरे गुड्डी रानी का यार रे ,
लड्डू पे लड्डू खिलाये चला जाय , , अरे चमचम पे चमचम चुसाये चला जाय ,
कहना ना माने रे , अरे कहना ना माने रे ,
बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए कहना ना माने रे ,
बार बार गुड्डी दरवाजे दौड़ी जाय कहना न माने रे ,
अरे दरजी का लड़का तो गुड्डी जी का यार रे अरे ननदिया का यार रे ,
अरे चोलिया पे चोलिया सिलाये चला जाय , अरे जुबना उसका दबाये चला जाए
कहना ना माने रे , अरे कहना ना माने रे ,
बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए कहना ना माने रे ,
बार बार गुड्डी दरवाजे दौड़ी जाय कहना न माने रे ,
अरे मेरी सासु जी का लड़का , तो गुड्डी जी का यार रे गुड्डी जी का यार
अरे सेजों पर मौज उड़ाए चलाय जाय कहना ना माने रे।
अरे मेरी मम्मी का लड़का , अरे मेरा प्यारा भैया तो गुड्डी जी का यार रे , अरे ननदिया का यार रे ,..
टाँगे दोनों उठाये चला जाय , अरे जाँघे उसकी फैलाये चला जाय
कहना ना माने रे
और उसी समय कहीं से वो आगये , फिर ऐसे घूरा उन्होंने की तुरंत गाना बजाना सब बंद।
और उस दिन तो मैं उस के चक्कर में इतना ,कह नहीं सकती कितना खराब लगा।
उनकी एक आदत और ख़राब ,
कोई भी सामान अपनी जगह नहीं रखते ,सब इधर उधर।
एकदिन तकिये के नीचे कंडोम रखे थे जो सरक कर बिस्तर पर आगये ,
कोई आया तो जल्दी से मैंने पास में पड़े हमारे वेडिंग अल्बम में उसे रख दिया।
रात में वो कमरे में आये , तो वेडिंग एल्बम उन्होंने खोल कर देखा।
कंडोम जिस पेज पर थे , वहां गुड्डी की फोटोग्राफ्स थे ,शादी में डांस करते।
मैंने उन्हें इतना गुस्सा और दुखी कभी नहीं देखा था। वो वैसे भी कैंसरियन थे , राशि के हिसाब से ,
और गुस्सा होने पे या अकसर वैसे भी अपने शेल में घुस जाते थे।
उन्होंने कंडोम उठाकर झटक कर फर्श पर फ़ेंक दिया जैसे मैंने कैसी गन्दी चीज गुड्डी की तस्वीर के साथ रख दी हो।
और फिर सम्हाल कर उस की फोटो को पोंछा और अपने हाथ से नीचे वाले ड्राअर में एलबम को रख के बंद किया।
और बिना मुझसे कुछ बोले , मेरी ओर पीठ कर के सो गए।
Awesome updateजोरू का गुलाम भाग दो
कच्चे टिकोरे और आम रस
जैसा मैंने पहले ही कहा था मेरे उनको फल एकदम पसंद नहीं है लेकिन आम से तो या ऐसी चिढ , बल्कि फोबिया।
एकदम तगड़ा फोबिया। और वो भी एकदम बचपन से ,उनके मायेकवाली किसी ने बताया था की ,क्लास में एक बार टीचर ने सिखाने की कोशिश की , एम फॉर मैंगो , लेकिन वो बोले नहीं। लाख टीचर ने कोशिश की ,मुरगा बना दिया , … लेकिन नहीं।
और जब वो खाना खा रहे हों तो ,अगर टेबल पर आम तो छोड़िये ,टिकोरे की चटनी भी आ जाय , तो एकदम अलप्फ ,मेज से उठ जाएंगे।
छूना तो छोड़िये नाम नहीं ले सकते।
और सब उनको चिढ़ाते थे।
मुझे बहुत बुरा लगता था , उनकी सब आदतों में से ये सबसे ज्यादा , आखिर आम खाने में क्या,...
मैंने तो एक दिन सोचा सबके सामने वो ग़ालिब वाला जोक सुनाऊँ ,
की एक जगह ग़ालिब के कोई दोस्त बैठे थे ग़ालिब आम खा रहे थे , एक गधा आया और सूंघ कर चला गया , उस आदमी ने ग़ालिब का मज़ाक बनाने की कोशिश की , देखिये ग़ालिब साहेब , गधे भी आम नहीं खाते , ग़ालिब ने एक आम चूसते हुए , हंस के जवाब दिया नहीं ज़नाब , गधे ही आम नहीं खाते , ..
पर मैं जानती थी , ये तो एक दम तनतना के उठ के चल देंगे , और वो रात फिर , ..
और उसके बाद मेरी ननद के ,
उस गदहे वाली गली वाली के , जी वो जिस मोहल्ले में रहती थी , जिस गली में उसका पहला घर किसी धोबी का था और गली के बाहर गदहे बंधे रहते थे तो सब लोग उसे गदहे वाली गली कह के कई बार चिढ़ाते भी थे ,
और साथ में जेठानी के ताने
मुझे तो बहुत पसंद थे , दसहरी की तो मलिहाबाद में हम लोगो की एक खूब बड़ी सी बाग़ भी थी , ...
लंगड़ा , चौसा , मलदहिया , सब , लेकिन ये न ,
चलिए न खाएं , न खाएं ,
लेकिन इनकी मायकेवालियों ने जो इसकी एक टेर बना रखी थी ,
भैया को तो एकदम पसंद नहीं है ,
देवर जी , नाम ले के देखो उठ जाएंगे , ...
मैं बस यही सोचती की इन्हे इन्ही सब के सामने एक दिन इन्हे खिलाऊँ यही , तो पता चलेगा ,
ये लड़का अब इनका भैया, देवर नहीं मेरी पति है ,
और ये भी तो और,... जैसे , जैसा इनकी वो ममेरी बहन , भौजाई कहेंगी बस उसी तरह से बिहैव करेंगे , और उसके बाद वो दोनों खासतौर से वो गुड्डी जिस तरह से मुझे देखकर मुस्कराती न , ... मेरी तो बस सुलग के रह जाती , ...
लेकिन नई नई बहू क्या बोलती ,
हाँ बुरा लगने से तो कोई रोक नहीं सकता न ,
इत्ते दिन में मैं समझ गयी थी ,
असली खेल जेठानी का था , वो गुड्डी के लिए इनका जो भी सॉफ्ट हार्ड कार्नर होगा अच्छी तरह समझती थीं , इस लिए उसी की कंधे पर रखकर बन्दूक चलाती थी ,
एक दिन ,अभी भी मुझे याद है ,१० अगस्त।
हम लोग दसहरी आम खा रहे थे मस्ती के साथ ( वो खाना खा के ऊपर चले गए थे )
और तभी मेरी छुटकी ननदिया आई। और मेरे पीछे पड़ गयी।
" भाभी ये आप क्या कर रही हैं ,आम खा रही हैं ?"
मैंने उसे इग्नोर कर दिया फिर वो बोली
"मेरे भैय्या , आम छू भी नहीं सकते ,…"
" अरे तूने कभी अपनी ये कच्ची अमिया उन्हें खिलाने की कोशिश की , कि नहीं , शर्तिया खा लेते "
चिढ़ाते हुए मैं बोली।
जैसे न समझ रही हो वैसे भोली बन के उसने देखा मुझे।
" अरे ये , "
और मैंने हाथ बढ़ा के उसके फ्राक से झांकते , कच्चे टिकोरों को हलके से चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए इशारा किया और वो बिदक गयी।
ये देख रही हो , अब ये चाहिए तो पास आना पड़ेगा न "
मुस्करा के मैंने अपने गुलाबी रसीले भरे भरे होंठों की ओर इशारा करके बताया।
और एक और दसहरी आम उठा के सीधे मुंह में , …"
और एक पीस उसको भी दे दिया , वो भी खाने लगी , मजे से।
मम्मी ने भेजे थे खास अपनी बाग़ के मलिहाबाद से , एक्सपोर्ट क्वालिटी वाले
थे भी बहुत रसीले वो।
लेकिन वो फिर चालू हो गयी ,
"पास भी नहीं आएंगे आपके , मैं समझा रही हूँ आपको , मैं अपने भैया को आपसे अच्छी तरह समझतीं हूँ, आपको तो आये अभी तीन चार महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं . अच्छी तरह से टूथपेस्ट कर के , माउथ फ्रेशनर , … वरना,… "
उस छिपकली ने गुरु ज्ञान दिया।
मैं एड़ी से चोटी तक तक सुलग गयी ,ये ननद है की सौत और मैंने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।
" अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "
मैंने दांव फ़ेंक दिया।
Nice updateलग गयी बाजी
"अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "
मैंने दांव फ़ेंक दिया।
लेकिन वो भी , एकदम श्योर।
" अरे भाभी आप हार जाएंगी फालतू में , उन्हें मैं इत्ते दिनों से जानती हूँ। खाना तो दूर वो छू भी लें न तो मैं बाजी हार जाउंगी। "
वो बोली।
लेकिन मैं पीछे हटने वाली नहीं थी ,
" ये मेरे गले का हार देख रही हो पूरे सवा लाख का है। असली कुंदन , अगर तुम जीत गयी तो तुम्हारा ,वरना बोलो क्या लगाती हो बाजी तुम ,"
तब तक मेरी जेठानी भी आगयी और उसे चिढ़ाती बोलीं ,
" अरे इसके पास तो एक ही चीज है देने के लिए। "
पर मेरी छुटकी ननद , एकदम पक्की श्योर बोली।
" आप हार जाइयेगा। "
जेठानी फिर बोलीं , मेरी ननद से
" अरे अगर इतना श्योर है तो लगा ले न बाजी क्यों फट रही है तेरी। "
और ऑफर मैंने पेश किया ,
"ठीक है तू जीत गयी तो हार तेरा और मैं जीत गयी तो बस सिर्फ चार घंटे तक जो मैं कहूँगी ,मानना पडेगा। "
पहली बार वो थोड़ा डाउट में थी।
" अरे मेरे सीधे साधे भैया को जबरन पकड़ के उसके मुंह में डाल दीजियेगा आप लोग , फिर कहियेगा ,जीत गयीं "
बोली गुड्डी।
" एकदम नहीं वो अपने हाथ से खाएंगे , बल्कि तुझसे कहेंगे ,तेरे हाथ से खुद खाएंगे अब तो मंजूर।
और तुझे भी अपने हाथ से खिलायंगे। एक साल के अंदर। अब मंजूर। "
मैंने शर्त साफ की और वो मान गयी।
मेरी जेठानी ने मेरे कान में कहा ,
"सुन तेरा हार तो अब गया।"
और कुछ ही दिन में उनका ट्रांसफर हो गया , घर से काफी दूर।
और मैं भी उनकी जॉब वाली जगह पे आ गयी।
Shart laga ke phas gaya bechara.ab to gulami karni padegiजोरू का गुलाम भाग ३
अब मेरी बारी
और कुछ ही दिन में उनका ट्रांसफर हो गया , घर से काफी दूर।
और मैं भी उनकी जॉब वाली जगह पे आ गयी।
और एक दिन मैं सोच रही थी उनके बारे में।
ढेर सारी अच्छाइयां है उनमें , बहुत ही पोलाइट ,केयरिंग ,इंटेलिजेंट ,वेल रेड ,
लेकिन, जैसे मन में गांठे ही गांठे हों। फिर उनके मायकेवालों के बारें में
और,....
मुझे लगा ,
बात ये ही की ये बहुत ही इंट्रोवर्ट हैं।
वहां तक तब भी गनीमत थी , लेकिन एक इमेज ,' अच्छे बच्चे ' की इनके मन में बचपन से बैठा दिया गया है , और बस वो उसी के हिसाब से,
जबकि अब वो बच्चे नहीं रहे, फिर भी।
और अब अपनी उसी इमेज में वो ट्रैप हो चुके हैं। इसी लिए कभी भी , वो खुल कर , यहाँ तक की 'उस समय ' भी ,… अच्छे बच्चे की तरह , इसलिए वो न मस्ती कर पाते थे न , ....एकसेन्स आफ गिल्ट सा ,…
लेकिन अब उस कैद से उन्हें छुड़ाने का काम मेरा ही था।
जैसा परी कथाओ में होता है न किसी शापित राजकुमार को तिलस्म तोड़कर कोई राजकुमारी आजादकराती है ,
तो बस इस घुटन भरे तहखाने से उन्हें बाहर निकालने का काम , मुझे ही करना था।
कैसे ,
ये सोचना मेरा काम था
लेकिन मम्मी की सलाह के बिना तो , इतना बड़ा आपरेशन हाथ में लेना , … उन्होंने न सिर्फ सुना बल्कि सलाह भी दी।
फिर मम्मी को मैंने अपनी छुटकी ननदसे लगी बाजी के बारे में भी बत्ताया और हंसकर कहा ,
अगले मौसम में मैं सोचती हूँ
उस गुड्डी के रसीले गदराये आमों की ही उन्हें दावत करा दूँ।
" एकदम "
मम्मी ने हंस के कहा ,और जोड़ा
"और उसके बाद उस छिनाल ननद को मेरे पास भेज देना न , जरा गन्ने खेत का , अरहर का मजा ले ले , पाटे की तरह खेत में रगड़ी जायेगी न , सब भरौटी , अहिरौटी ,चमरौटी वाले ,... पूरे गाँव की पंगत जिमा दूंगी। "
बस मैंने तय कर लिया था ,अब क्या करना है।
एक बात और मैंने नोटिस की 'उनके ' बारे में , लेकिन वो राज बाद में खोलूंगी.
............
एक छोटे शहर के बड़े से होटल में हम दोनों थे।
वो आफिस के काम से आये और साथ में मैं भी लग ली।
देर सुबह ,
हम दोनों अलसाये और उनका 'वो' अंगड़ाई लेने लगा.
मैं मान गयी लेकिन बस एक छोटी सी शर्त पर ,
' जिसका पहले होगा , वो दूसरे की जिंदगी भर गुलामी करेगा ,सब कुछ मानना पड़ेगा। '
और वो मान गए।
मानते कैसे नहीं ,उनकी हिम्मत थी।
झुक के मैंने अपने गीले गुलाबी रसीले होंठ सीधे उनके होंठो पे लगा दिए और मेरी जीभ उनके मुंह के अंदर गोल गोल घूम रही थी।
मेरे कड़े कड़े गोल उरोज हलके हलके उनके खुले सीने पेरगड़ रहे थे।
हलके से उनके कानो को काटते .
मैंने एक शर्त और फुसफुसा दी ,
" एक दम नो होल्ड्सबार्ड होगा , वो कुछ भी कर सकते हैं , कुछ भी बोल सकते हैं और मैं भी। "
वो मान गए।
मानते कैसे नहीं ,पाजामे में तम्बू पूरी तरह तना हुआ था और मेरी उँगलियाँ हलके हलके नाड़ा खोल रही थीं।
वह पूरी तरह कड़ा खड़ा था और मैं अच्छी तरह गीली।
मैंने तय कर लिया था इस बार 'विमेन आन टॉप ' ,… आखिर आज के बाद से तो मुझे इसी हालत में रहना था।
आलवेज आन टॉप।
Erotic updateवोमन आन टॉप
आलवेज आन टॉप।
पल भर में मैं उनके ऊपर थी।
मेरे गुलाबी होंठ हलके हलके उनके होंठों को छू रहे थे , उनके दोनों हाथों को मोड़ के उनके सर के नीचे मैने दबा दिया। दोनों कलाइयां मेरी कसी पकड़ में थी ,
और मैं उनके ऊपर।
मेरे कड़े उरोज बस हलके से उनके होंठों को रगड़ कर दूर हट गए ,
और नीचे मेरी 'गीली गुलाबी सहेली' उनके खड़े खूंटे के बस ठीक उपर।
अपने कंचे ऐसे कड़े कड़े निपल उनके प्यासे पागल होंठों पे छुला के , तड़पा के , उनकी आँख में अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे डालते मैंने पूछा,
" क्यों , मुन्ना , … चाहिए। "
" हाँ हाँ ,… दो न , हाँ ,"
उन्होंने उचकने की कोशिश की , लेकिन उनकी दोनों कलाइयां मेरी कसी पकड़ में थी और शरारत से ,
ललचाते मेरे जोबन उनकी पहुँच के बाहर हो गए।
"ऐसे थोड़ी , … अरे जरा ठीक से मांगों , विनती करो तब , .... "
मैंने भी अदा दिखाई /
" मुझे ये , तुम्हारे बूब्स , चाहिए। "
वो बेताबी से बोले , लेकिन मैं ऐसे थोड़े पटने वाली थी।
" ऐसे थोड़ी , तू भी न , खुल के बोलो न , जरा इसकी तारीफ करो , कैसे हैं ये तो बताओ न। "
मैंने कहा और अब मेरे ३४ सी उरोज बस इंच भर उनके होंठों से दूररहे होंगे।
" ओह्ह ओह्ह ये तुम्हारे बूब्स , सेक्सी ,बहुत रसीले हैं " कुछ खुले वो लेकिन ,…
" अरे ऐसे थोड़ी अंग्रेजी में नहीं , और जरा खुल के , तुम भी न " मैंने मुंह बनाया।
थोड़ा हिचक के फिर वो बोले ,
" तुम्हारे उरोज , रसीले कुच , बहुत मन कर रहा है , दो न "
वो एक दम बेताब थे। पर मैंने अपनें उभारों को एकदम दूर कर लिया, और मुंह बना के बोली ,
" लगता है तेरा एकदम मन नहीं कर रहां है , अगर ये चहिये तो एक दम साफ साफ , देसी देसी भाषा में खुल के , अब ये मत कहना की अपने मायके में तूने ऐसे बोलना सीखा नहीं। एकदमदेसी ,समझ लो , पूरा खुल कर लास्ट चांस। "
" नहीं नहीं प्लीज , सच्ची मेरा बहुत मन कर रहा है दो न। अपने ये गदराये जोबन , ये ये ,… ये रसीली चूंचियां ,.... दो न "
" हाँ हाँ हाँ बोलते रहो , बहुत अच्छा लग रहा ओह और बोलो , "
और ये कहते मेरे इंच भर कड़े खड़े निपल अब खुल के ऊनके होंठो पे रगड़ रहे थे "
और मैने अपनी एडवांटेज थोड़ा और प्रेस किया ,
" बेबी माई लवली बेबी , बस एक छोटी सी बात और बोल दो तो ये निप्स अब तुम्हारे , बोलो। "
"पूछो न। "
उचकते हुए उन्होंने अपने होंठो के बीच मेरे उरोजों को दबोचने की कोशिश की ,
लेकिन मेरी कलाई की पकड़ तगड़ी थी और मेरे कबूतर उनकी पहुँच से दूर उड़ गए लेकिन बस थोड़ी दूर।
" हाँ ये बताओ "
मैं रुकी और झुक के एक छोटा सा किस उनके होंठों पे जड़ा और हटा लिया , और पूछा ,
Lazwaabगुड्डी
उचकते हुए उन्होंने अपने होंठो के बीच मेरे उरोजों को दबोचने की कोशिश की , लेकिन मेरी कलाई की पकड़ तगड़ी थी और मेरे कबूतर उनकी पहुँच से दूर उड़ गए लेकिन बस थोड़ी दूर।
" हाँ ये बताओ " मैं रुकी और झुक के एक छोटा सा किस उनके होंठों पे जड़ा और हटा लिया , और पूछा ,
" बोल ,तेरे उस माल कम बहन , गुड्डी की चूंचियां , … ,मेरी चूंची से बड़ी हैं या छोटी। "
वह प्यासी ललचाई निगाहों से मेरे गदराये मस्त जोबन को देख रहे थे ,.... लेकिन चुप।
" ठीक है तुझे मेरे , …अच्छे नहीं लगते न ,.... मैं चलती हूँ "
और मैंने उठने का नाटक किया।
" नहीं नहीं , ऐसा नहीं है , उसकी , .... उसकी छोटी हैं , अभी उमर में भी तो वो इतनी छोटी ,.... "
उनकी बात बीच में काट के मैंने पहले तो उनका इनाम दिया ,
मेरे जोबन का रस उनके प्यासे होंठों पे , खूब जोर से मैंने अपने निपल उनके होंठों पे रगड़े
और हटा लिए।
मुस्कराते , उन छेड़ते मैं बोलीं ,हलके से लेकिन इत्ती जोर से की वो साफ साफ सुन लें ,
" तो तुम , उस की चूंचियां बड़े ध्यान से देखते हो। छोटी हैं न अभी लेकिन घबड़ाते काहें हों , तुझी से दबवा दबवा के ,मसलवा मसलवा के बड़ी करवा दूंगी। "
और उन के बेताब होंठो के बीच अपना एक निपल घुसा दिया।
आखिर इनाम मिलना चाहिए था न।
" चूस ले , … चूस ले ,.... दूध पियेगा मुन्ना। "
उनके घुंघराले बाल सहलाते , उनमें उँगलियाँ फिराते प्यार से मैंने पूछा।
उन्होंने हामी में सर हिलाया और दोनों हाथों से उनका सर कस के पकड़ के , अपने निपल को पूरा उनके मुंह में ठूंस दिया और , चिढ़ाते हुए कहा ,
" ले ले पी। पी जोर से। क्यों अपनी अम्मा की याद आ रही है , जैसे उनके जोर जोर से चूसते थे , .... वैसे ही , …चूस कस के , पी। "
उनके दोनों हाथ अब छूट गए थे और मस्ती से उनकी हालत ख़राब हो रही थी।
जोर जोर से उनके हाथ मेरे जोबन मसल रगड़ रहे थे।
" क्यों अपने उस माल की याद आ रही है क्या जो इतनी जोर जोर से रगड़ रहे हो ",
और उन्हें छेड़ते मेरा हाथ नीचे उनके खूंटे की ओर गया ,
एकदम ,लोहे का खम्भा।
Bohot hi kamuk updateजोरू का गुलाम भाग ४
वोमेन आन टॉप
मैंने सीधे उसे अपनी 'प्रेम गली ' से सटाया ,और हलके से दबाया।
धीरे धीरे , उस कड़ियल नाग का फन मेरी गली के अंदर फुफकार मार रहा था।
मेरी 'प्रेम गली ' की दीवारें उसे दबा रही थीं , निचोड़ रही थीं पूरी ताकत से ,
मेरा निपल अभी भी उनके मुंह में धंसा था।
" मजा आ रहा है न , मुन्ना। "
उनके कान में अपने जीभ की नोक घुमाते अपनी सेक्सी आवाज में मैंने फुस्फसा के पूछा।
सर हिला के उन्होंने हामी भरी।
"हाँ न और वो तेरी , .... तेरी उस बहन , उस तेरे माल की , उस कच्चे टिकोरे की भी तो कसी ,कसी ,एकदम टाइट ,.... बहुत मजा आएगा न जब रगड़ता ,दरेरता ,तेरा ,उसकी ,.... "
और मैंने बात जान बूझ कर बीच में छोड़ दी। साथ में एक जोरदार धक्के के साथ ,
मेरा आधा जोबन उनके मुंह में गया और उनका आधा लिंग मेरी कसी संकरी योनि के अंदर ,
" यार तुझे तो मैं बहनचोद बना के , … "
मैं हलके से बड़बड़ा रही थी लेकिन इस तरह की वो साफ साफ सुन रहे थे।
और वो 'बहुत कड़े ' थे।
पता नहीं मेरी बातों का असर था या ये उन्हें वो सब सुनना अच्छा लग रहा था। लेकिन कुछ भी हो असर बहुत साफ लग रहा था।
और मैंने अपना हमला जारी रखा।
मेरे लम्बे शार्प, रेड नेलपालिश लगे नाखून उनके निपल को जोर जोर से स्क्रैच कर रहे थे और फिर उसके बाद मेरी चपल जीभ ने उनके निप्स को फ्लिक करना शुरू कर दिया , और फिर ,
" छोटे छोटे , उस तेरी बहना के भी ऐसे होंगे न छोटे छोटे ,कच्चे टिकोरे , मस्त "
और फिर झपट कर मेरे होंठों ने उनके निप्स को कैद कर लिया , पहले चूसा और दांत से हलके हलके बाइट ,
उईईईईईई , वो चीखे कुछ दर्द से , कुछ मजे से।
" उसके भी निपल ऐसे ही हैं , मटर के दाने जैसे , सच्ची ,होली में हाथ अंदर डाल के रगड़ा था। कच्चे लेकिन कड़े कड़े ,
उसकी चड्ढी में भी हाथ डाला था , झांटे आ गयीं हैं , छोटी छोटी। "
मैं उनके कान में फुसफुसाती रही।
उनका औजार इतना सख्त , आजतक इतना कड़ा मैंने कभी महसूस नहीं किया था।
मैंने गाडी का गियर चेंज किया और मेरे दोनों हाथ उनके कंधे पे , मेरी शेरनी ऐसी पतली कमर के जोर से , पूरे ताकत के साथ धक्का मारा।
वो पूरा अंदर था ,
एकदम जड़ तक था मेरी गहराई में धंसा।
Bohot hi kamuk updateजोरू का गुलाम भाग ४
वोमेन आन टॉप
मैंने सीधे उसे अपनी 'प्रेम गली ' से सटाया ,और हलके से दबाया।
धीरे धीरे , उस कड़ियल नाग का फन मेरी गली के अंदर फुफकार मार रहा था।
मेरी 'प्रेम गली ' की दीवारें उसे दबा रही थीं , निचोड़ रही थीं पूरी ताकत से ,
मेरा निपल अभी भी उनके मुंह में धंसा था।
" मजा आ रहा है न , मुन्ना। "
उनके कान में अपने जीभ की नोक घुमाते अपनी सेक्सी आवाज में मैंने फुस्फसा के पूछा।
सर हिला के उन्होंने हामी भरी।
"हाँ न और वो तेरी , .... तेरी उस बहन , उस तेरे माल की , उस कच्चे टिकोरे की भी तो कसी ,कसी ,एकदम टाइट ,.... बहुत मजा आएगा न जब रगड़ता ,दरेरता ,तेरा ,उसकी ,.... "
और मैंने बात जान बूझ कर बीच में छोड़ दी। साथ में एक जोरदार धक्के के साथ ,
मेरा आधा जोबन उनके मुंह में गया और उनका आधा लिंग मेरी कसी संकरी योनि के अंदर ,
" यार तुझे तो मैं बहनचोद बना के , … "
मैं हलके से बड़बड़ा रही थी लेकिन इस तरह की वो साफ साफ सुन रहे थे।
और वो 'बहुत कड़े ' थे।
पता नहीं मेरी बातों का असर था या ये उन्हें वो सब सुनना अच्छा लग रहा था। लेकिन कुछ भी हो असर बहुत साफ लग रहा था।
और मैंने अपना हमला जारी रखा।
मेरे लम्बे शार्प, रेड नेलपालिश लगे नाखून उनके निपल को जोर जोर से स्क्रैच कर रहे थे और फिर उसके बाद मेरी चपल जीभ ने उनके निप्स को फ्लिक करना शुरू कर दिया , और फिर ,
" छोटे छोटे , उस तेरी बहना के भी ऐसे होंगे न छोटे छोटे ,कच्चे टिकोरे , मस्त "
और फिर झपट कर मेरे होंठों ने उनके निप्स को कैद कर लिया , पहले चूसा और दांत से हलके हलके बाइट ,
उईईईईईई , वो चीखे कुछ दर्द से , कुछ मजे से।
" उसके भी निपल ऐसे ही हैं , मटर के दाने जैसे , सच्ची ,होली में हाथ अंदर डाल के रगड़ा था। कच्चे लेकिन कड़े कड़े ,
उसकी चड्ढी में भी हाथ डाला था , झांटे आ गयीं हैं , छोटी छोटी। "
मैं उनके कान में फुसफुसाती रही।
उनका औजार इतना सख्त , आजतक इतना कड़ा मैंने कभी महसूस नहीं किया था।
मैंने गाडी का गियर चेंज किया और मेरे दोनों हाथ उनके कंधे पे , मेरी शेरनी ऐसी पतली कमर के जोर से , पूरे ताकत के साथ धक्का मारा।
वो पूरा अंदर था ,
एकदम जड़ तक था मेरी गहराई में धंसा।
Shandaar updateधक्के पे धक्का
मैंने गाडी का गियर चेंज किया और मेरे दोनों हाथ उनके कंधे पे , मेरी शेरनी ऐसी पतली कमर के जोर से , पूरे ताकत के साथ धक्का मारा।
वो पूरा अंदर था , एकदम जड़ था मेरी गहराई में धंसा।
और अब में कभी जोर जोर से धक्के लगाती , तो कभी बस उसे अपने अंदर लिए निचोड़ती , अपनी योनि को हलके से एकदम पूरी ताकत से सिकोड़ने की कला और ताकत दोनों मेरे पास थी।
जो 'नट क्रैकर 'कहते हैं न वही.जैसे रैटल स्नेक किसी जानवर को पकड़ कर सिर्फ दबा दबा कर कड़कड़ा कर उसके अस्थि पंजर तोड़ के चूर चूर कर देता है , बिलकुल वैसे ही। मेरे 'गुलाबी सहेली ' उनके ' खूंटे ' के साथ वैसा ही कर रही थी।
मेरे दोनों हाथ उनके कंधे पर जमे थे और होंठ कभी हलके से उन्हें चूम लेते तो कभी कचकचा के , उनके निप्स , उनके गाल काट लेते।
और वो भी अब नीचे से मेरे सुर ताल पे साथ साथ धक्का लगा रहे थे। कभी मैं बहुत 'सॉफ्ट ' हो जाती तो कभी बहुत' ब्रूट' .
लेकिन आज उनमें भी एक नयी ताकत आगयी थी एक नया जोश ,
जैसे घुड़दौड़ में मचल रहे घोड़े को दौड़ने के लिए खुला छोड़ दिया जाय ,
जैसे कोई तूफान कहीं किसी डिब्बे में कैद पड़ा हो
कोई जिन्न किसी बोतल में सदियों से बंद पड़ा हो , और उसे आके कोई आजाद कर दे।
यही तो मैं चाहती थी ,खुल कर मस्ती , बिना किसी रोक टोक के एकदम वाइल्ड ,
ऐसी ताकत आज तक उन के धक्कों में मैंने कभी नहीं महसूस की थी।
और साथ में उनके हाथ जोर जोर से मेरे जोबन मसल रहे थे , रगड़ रहे थे। उनके होंठ मेरे निपल काट रहे थे।
और आज वो कोशिश कर रहे थे की मेरी जांघों के बीच जादुई बटन को , मेरे क्लिट को हाथ लगाएं ,
लेकिन वो उनके लिए मुश्किल हो रहा था क्योंकि धक्के मैं ही कंट्रोल कर रही थी .
कुछ देर बाद वो आलमोस्ट कगार पर पहुँच गए , और मैं भी बस वहां पहुँचने वाले थी।
बाजी किसी के भी हाथ लग सकती थी , लेकिन उन्होंने बेईमानी शुरू कर दी।
भेड़ गिनने वाली , यानी सेक्स से ध्यान हटा कर किसी और चीज के बारे में सोचना ,गिनती गिनना , या कुछ भी।
लेकिन उनकी कोई चीज मुझसे छुपती कैसे और इसका जवाब मेरे पास था। हथियारों का पूरा खजाना था मेरे पास , मेरे होंठ ,मेरे रसीले जोबन , मेरी उंगलिया।
That was me quoting Kafka, Dostoevsky, Tolstoy nd all that.You are absolutely true, but alas,...
when i kept this story at pause, for some time i was fighting an impulse to stop writing, because when you write you want to communicate something and if situation becomes like that, when ever you say something somebody jumps up who is omniscient, knows about the characters more than the writer, and in a story which is actually a novel, in pdf it will run more than 1000 pages and if printed size of book will be about 500 pages, so there are going to be umpteen incidences , many characters, sometimes multi-layered , complexities, but somebody just does cherry picking, pick up a character an incidence and starts looking the entire story, from that angle only, ... and at every turn will stand up and pronounce the judgment no heroine is vamp and vamp is heroine, ... throwing the whole flow of story, entire fabric, carefully woven warp and weft torn,...
I was totally nonplussed.
you craft a scene, describe it with carefully selected words to create a picturesque atmosphere, but somebody, just says something which disrupts readers who are listening in the rapt attention,...
a friend quoted ( comment is no longer here and i am only quoting essence not exact words) that its not kafka or premchand why are you interrupting , ...
but my point of view suppose it is Kaffka and his famous story, metamorphosis,... where a man turns into a worm and it is being serialized , and after every post somebody stands up and says, he how its possible, and after a few pages again, raises hue and cry, hey writer has lost sense, and if somebody tells him, that its allegorical, he in turn is called names and again, ... in the beginning he is a man how it can be,...
or Premchand writing kafan,...and somebody raises a firm and strong voice against characterisation of Ghisu and Madho,
In this forum itself , somebody had called Nirmala a story based on incest.
so i was on cross roads,...
and this is not that i feel those who comment should always adore, i too had raised my voice and it is inbuilt in the genre that readers will raise their views, objections, ... Strand was the magazine where Sherlock Holmes appeared in 1891. But when Sir Arthur Connon Doyle wanted to close this by killing him, there was a hue and cry and ultimately Holmes came back. so readers will have a say, they can criticize the art and craft, any particular scene but if they become persistent, using the language, i dont feel like responding, ...
but comes the adversity,
धीरज धरम मित्र अरु नारी आपत्ति काल परखिये चारी
i kept my patience, decided not to stoop and my friends, ( they are much more than readers ) came up in the support,... and no words of gratitude will be ever enough for them.
we cant revert back to the ambience of past days, past forums, ... and as i have committed to myself to my story, and to my friends story will continue.
Bana hi gaya joru ja gulamबन गए ' वो ' ....
लेकिन उनकी कोई चीज मुझसे छुपती कैसे और इसका जवाब मेरे पास था। हथियारों का पूरा खजाना था मेरे पास , मेरे होंठ ,मेरे रसीले जोबन , मेरी उंगलिया।
मेरे उरोज जोर जोर से उनके होंठ को कभी रगड़ते और कभी उनका मुंह खोल के मैं अपने निपल मुंह के में डालती,
तो कभी मेरे होंठ उनके इयर लोब्स को हलके से काट लेते। और मेरी योनि जोर जोर से अब लिंग को भींच रही थी सिकोड़ रही थी ,
और उनके पास कोई रास्ता नहीं था इस कामक्रीड़ा से बच कर भागने का।
मैंने कचकचा के उनके निप्स काट लिए और ,
और वो पूरी तेजी से , जैसे कोई बाँध टूट गया हो ,
सदियों से सोया ज्वालामुखी फूट पड़ा हो।
आधा मिनट और देर होती तो शायद मैं पहले ,…
लेकिन जैसे रस की दरिया बह निकली हो , गाढ़ा सफेद थक्केदार , मेरी योनि पूरी तरह भर गई और फिर मेरी जांघो पर बहकर ,
" आप , … तुम हार गए। "
मैंने उनकी आँखों में आँखे डालकर कहा।
" हूँ "
मुस्कराते हुए उन्होंने हामी भरी और जोर से मुझे अपनी बाहों में भींच लिया। जैसे वो चाहते ही हों हारना।
" और अब ,… तुम , मेरे ,.... गुलाम ,जोरू के गुलाम।"
हाँ , …हाँ ,… " और अपने आप उनकी कमर उछली और एक बार फिर झटके से ढेर सारा वीर्य ,
और इसी के साथ मैं भी , उनके चौड़े सीने पर ढेर हो गयी।
मेरी योनि जोर जोर से सिकुड़ रही थी , मेरी देह तूफान में पत्ते की तरह काँप रही थी।
बहुत देर तक हम दोनों होश में नहीं थे ,सिर्फ एक दूसरे की बाँहों में बंधे , भींचे.
छत पर पंखा अपनी रफ्तार से घर्र घर्र चल रहा था।
खिड़की का पर्दा धीरे धीरे हिल रहा था।
परदे से छन छन कर हलकी हलकी फर्श पर पसरी हलकी पीली धूप ,अब मेज पर चढ़ने की कोशिश कर रही थी
लेकिन हम दोनों एक दूसरे से चिपके , एक दूसरे के अंदर धंसे ,घुसे ,अलमस्त उसी तरह लेटे थे , अलसाये।
सफेद गाढ़े वीर्य की धार मेरी योनि से बहती गोरी जाँघों पे लसलसी ,चिपकी लगी थी और वहां से चददर पर भी , .... एक बड़ा सा थक्का ,…
और अबकी उन्होंने हलके से ही आँखे खोली और उनके होंठों ने जोर से कचकचाकर मेरे होंठों को चूम लिया ,
यही तो मैं चाहती थी।
मेरी मुस्कराती आँखों ने उन्हें देखा और होंठों ने पुछा कम , बताया ज्यादा
" जोरु के गुलाम , .... "
और एक बार फिर उनकी छाती के ऊपर मैं लेटी थी।
और उनके मुस्कराती नाचती आँखों ने हामी भरी