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Incest "टोना टोटका..!"

Enjoywuth

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Jangali107

Jangali
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रात को खाना खाने के बाद अब लीला और रुपा एक ही कमरे मे सो रही थी मगर दोनो मे से ना तो किसी को नीँद नही आ रही थी और ना ही कोई बात कर रही थी। रुपा जहाँ ये सोच सोचकर परेशान थी की, उसका पति अगर दुसरी शादी कर लेगा तो उसका क्या होगा..?, वही लीला भी ये सोच रही थी की अपनी बेटी के घर को उजङने से कैसे बचाये..?

लीला अच्छे से जान रही थी की अगर जल्दी ही रुपा पेट से नही हुई तो उसका घर उजङने से कोई नही बचा सकता, क्योकि चार साल होने को आये थे रुपा की शादी को, मगर बच्चा तो दुर, अभी तक उसे कभी उम्मीद तक नही बँधी थी। शादी के एक डेढ साल तो किसी ने भी इतना ध्यान नही दिया, मगर अब तो हर कोई पुछता रहता है की रुपा को बच्चा क्यो नही हो रहा.? पहले तो ये बात कभी कभी ही आती थी जिससे रुपा रुठकर अपने मायके मे आ जाती थी मगर अब तो रुपा की सास जैसे रट ही‌ लगाकर बैठ गयी थी।

पिछले तीन महिने मे ये दुसरी बार था जब रुपा इस तरह रुठकर मायके मे आई थी। ऐसा नही था की लीला ने अपनी बेटी को बच्चा होने की कोई दवा नही दिलवाई..! आस पङोस के लगभग सभी गाँवो के नीम हकीमो व झाङफुक वालो से उसने रुपा को दवा से लेकर पुजा पाठ के सभी काम करवा लिये थे मगर अभी तक रुपा को उम्मीद नही बँधी थी।

गुस्से गुस्से मे रुपा ने जो कुछ भी अपने पति के बारे मे बताया था उससे ये तो मालुम पङ रहा था की रुपा मे कोई कमी नही, कमी उसके पति मे ही है इसलिये रुपा को दवा दिलवाने से कुछ नही होने वाला। उसके पति का ही कुछ करना होगा... पर उसका भी वो करे.. तो क्या करे..? क्योंकि वो तो कभी ये मानने को तैयार नही होगा की उसमे कोई कमी है। बात उसकी मर्दानगी पर नही आ जायेगी..?

रुपा ने जो कही थी उसमे ये बात तो सही थी की जब जमीन मे बीज ही अच्छा नही डालोगे तो फिर जमीन चाहे कितनी भी उपजाऊ हो..उसमे फसल कहाँ से होगी..? लीला ये सोच ही रही थी की तभी.. "अगर बीज ही कोई दुसरा डाल दे तो..?" एक बार तो लीला के दिल मे आया मगर फिर... "नही नही ये कैसे हो सकता है, वो कैसे अपनी बेटी को किसी दुसरे के साथ सोने के लिये कह सकती है..! और अगर कहे भी तो क्या वो मानेगी...? उल्टा उसे ही शर्मीँदा नही होना पङ जायेगा..!"

लीला के दिमाग मे एक साथ अब काफी सारी बाते चल रही थी‌, क्योंकि कैसे भी करके लीला को अपनी बेटी का घर बाचाना था, पर उसे कुछ समझ नही आ रहा था की वो अब करे तो क्या करे..? रुपा ने जो‌ कहा था उससे अब ये तो तय था की अगर रुपा को अपना घर बचाना है तो उसे किसी दुसरे के साथ सोना होगा, पर ये बात वो अब रुपा कैसे बताये, और ये सब करे भी तो किसके साथ करे जिससे उसका घर भी बस जाये और किसी को कुछ पता भी ना चले...! उसे कुछ समझ नही आ रहा था, तभी...

"बुवा..! मै खेत पर जा रहा हुँ...!" बाहर से राजु की आवाज सुनाई दी।

"हाँ..हाँ..! ठीक है सुबह जल्दी आ जाना...!" लीला ने राजु को जवाब देते हुवे कहा, मगर तभी उसके दिमाग मे तुरन्त अब राजु का ख्याल उभर आया।

वैसे तो वो राजु को अभी बच्चा ही समझती थी मगर वो जिस तरह रशोई से रुपा को पिशाब करते हुवे देख रहा था तब से ही लीला के दिमाग मे कही ना कही ये बात खटक सी रही थी इसलिये...

"अरे..अरे...! मै भी ये क्या सोच रही हुँ, कभी भाई बहन मे भी ऐसा होता है...?" लीला ने एक बार तो खुद‌ का माथा ही पिट लिया मगर फिर...

"पर ये कौन सा दोनो सगे भाई बहन है...? बस मामा का ही तो लङका है..." लीला ने मन मे ही सोचा।

"हाँ... हाँ... ये सही रहेगा..!, रुपा का घर भी बच जायेगा और किसी को कोई शक भी नही होगा..!"

"पर ये सब होगा कैसे...? इसके लिये वो रुपा को कैसे बतायेगी..? और ये बात वो रुपा को कहेगी भी तो कैसे..?


"कोई और हो तो भी ठीक है, पर राजु से वो सगे भाई से भी ज्यादा प्यार करती है....! फिर रुपा को ये बात वो कैसे समझायेगी...?" लीला ये बात काफी देर तक सोचती रही.. फिर मन ही मन मे कुछ सोचकर उसने कस कर अपने हाथो की मुट्ठी भीँच ली और करवट बदलककर दुसरी ओर मुँह करके लेट गयी...
Jabardast
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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अभी तक आपने पढा की रुपा ने अपने पति के बारे मे जो कुछ बताया था उससे उसे लीला को ये तो पता चल गया था की उसका पति उसे उम्मीद से कर सकता‌ था अब रुपा को कैसे और किससे उम्मीद से करवाना था उसके‌ लिये लीला ने रात मे ही एक योजना सी बना ली थी अब उसके आगे...

सुबह लीला पशुओ को चारा डालने व दुध निकालने के लिये जल्दी उठ जाती थी मगर उस रात वो सोई ही‌ कहा थी। उसकी पुरी रात आँखो ही आँखो मे निकल गयी थी इसलिये पशुओ का दुध निकालकर सबसे पहले तो वो नित्यकर्म से निवर्त हुई, फिर चाय बनाने के बाद रुपा को भी जगा दिया। रुपा भी रात मे ठीक से सोई नही थी। रोने के कारण उसकी आँखे अभी भी भारी भारी लग रही थी इसलिये...

"तु चिँता मत कर सब ठीक‌ हो‌ जायेगा, ले चाय पी ले..!" लीला ने रुपा को चाय का कप देते हुवे कहा और खुद भी चाय लेकर उसके‌ पास ही बैठ गयी।

"सुबह जब मै शौच के लिये गयी थी तो पङोस वाली बसन्ती वो बता रही थी की शहर के पास वाले गाँव मे एक फकीर बाबा है, उनका जादु टोने मे बहुत नाम है, मै उन्ही के पास जाकर आऊँगी आज, तु चिन्ता मत कर देखना वो‌ कोई ना कोई तो हल जरुर बतायेँगे ..." लीला ने चाय पीते पीते ही कहा।

"अच्छा तु ये बता तेरा महिना(पीरियड) कब आया था...?" लीला ने पुछा जिससे रुपा उसे सवालिया निगाहो से देखने लगी...

"अरे..! बाबा को बताना पङेगा ना तभी तो वो कुछ बतायेँगे...!" लीला ने‌ उसका शक दुर करते हुवे कहा।

"वो अभी चार पाँच दिन पहले ही आया था..!" रुपा ने सकुचाते हुवे से कहा।

"दामाद जी को पता है..?" लीला ने‌ फिर से पुछा।

"क्या..?" रुपा को कुछ समझ नही आया इसलिये उसने लीला‌ की‌ ओर देखते हुवे‌ पुछा।

"अरे..! यही की तेरा महिना कब आया है..?" लीला ने पुछा तो...

"वो रहता ही कितना‌ है मेरे पास उसे जो पता हो..!" रुपा ने अपने पति के लिये ताना सा मारते हुवे‌ कहा।

"और तेरी सास‌ को..?" लीला ने‌ फिर से पुछा।

"पुछती तो रहती है पर मै उसे कुछ बताती नही, तभी तो झगङा करती है मेरे साथ..!" रुपा ने मायुस होते हुवे कहा, मगर ये सुनकर लीला की आँखो मे अब एक चमक सी‌ आ गयी और..

"तु चिँता मत कर सब ठीक हो जायेगा, बसन्ती बता रही थी की जादु टोने मे बहुत नाम है उस बाबा का, देखना अबकी बार तेरी‌ गोद जरुर भर जायेगी...!" लीला ने रुपा की‌ ओर देखते हुवे कहा और अपनी चाय खत्म करके घर के काम‌ निपटाने मे लग गयी...
 

Chutphar

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दस ग्यारह बजे तक घर के सब निपटाकर वो अब नहा धोकर तैयार हो गयी और रुपा को फकीर बाबा के पास जाने का बोलकर बस अड्ढे पर आ गयी। बस अड्डे से बस पकङकर वो अब किसी फकीर बाबा के पास नही गयी, बल्कि शहर आकर उसने ऐसे ही घर की जरुरत के लिये छोटा मोटा सामान खरीदा और वापस घर आ गयी। घर पर रुपा उसका बेसब्री से इन्तजार कर रही थी इसलिये...

"आ गयी माँ तुम.. क्या बताया फकीर बाबा ने...?" रुपा ने लीला को देखते ही पुछा जिससे...

"अरे..मुझे भीतर तो आने दे...चल भीतर चल.., फिर बैठकर बात करते है..!" ये कहते हुवे लीला कमरे मे घुस गयी और पलँग पर जाकर बैठ गयी।

रुपा भी अपनी माँ के पीछे पीछे ही थी इसलिये वो भी कमरे मे आ गयी और...

"अब तो बता..! क्या बताया बाबा ने...?" ये कहते हुवे रुपा भी उसके पास ही पलँग पर उसकी बगल मे बैठ गयी..

लीला: तुम पर दोष बताया है, तुने शादी से पहले कभी गलती‌ से किसी कब्र‌ पर पिशाब कर‌ दिया था उसका दोष तेरी कोख डस रहा है। वो अब जीन्न बनकर तेरे पीछे पङा हुवा है जो तेरी गोद भी नही भरने‌ दे रहा, और तो और, वो तेरा अब घर भी तोङना‌ चाह रहा है इसलिये उसने दामाद जी को भी अपने वश मे कर लिया है।

लीला ये सब झूठ बोल रही थी, वो किसी भी फकीर बाबा के पास नही गयी थी मगर फिर भी उसने ये इतने विश्वास और इस अन्दाज के साथ कहा की रुपा को बिल्कुल भी इसमे कुछ गलत नही लगा और..

रुपा: हाँ सही कहा..! ये बात तो सही है माँ, पहले वो कभी कुछ नही कहते थे, पर अब तो वो भी अपनी माँ की ओर बोलने लगे है, अब क्या होगा माँ..?

लीला: कुछ नही होगा, सब ठीक हो जायेगा। बस कुछ टोने टोटके है जो तुझे करने होँगे, पहले तुझ पर जो कब्र पर पिशाब करने का जो दोष है चौराहे पर जाकर कुछ टोटके करके उसे उतारना होगा, उससे वो जिन्न तेरा पीछा छोङ देता है तो ठीक..! नही तो तुझे पहाङी वाले लिँगा बाबा पर भी दीया जलाकर कर आना पङेगा..!

रुपा: पर माँ उनके साथ पहले गयी तो थी मै दीया जलाने पहाङी वाले बाबा पर..?

लीला: हाँ..! पर बाबा बोल रहे थे की चौराहे वाले टोटके से उस जिन्न ने तेरा पीछा नही छोङा तो तुझे फिर से वहाँ दीया जलकार आना होगा..!, मगर इस बार दामाद जी के साथ नही जाना किसी और के साथ जाना होगा..!

"दामाद जी तो अब उसी जिन्न के वश मे है उनके साथ तो तु ये टोने टोटके कर नही सकती इसलिये किसी दुसरे मर्द के साथ तुझे ये टोटके करने होँगे..!

रुपा: पर माँ.., उनके साथ नही, तो फिर किसके साथ करुँगी ..? और पहाङी वाले बाबा पर किसके साथ जाऊँगी

लीला: और किसके साथ जयेगी...? राजु को साथ मे ले जाना..!

राजु के साथ पहाङी वाले बाबा पर दीया जलाकर आने की बात रुपा को अब अजीब लगी, क्योंकि लिँगा बाबा पर औरते अपने पति के साथ ही दीया जलाने जाती है इसलिये...

रुपा: पर माँ राजु तो मेरा भाई है, उसके साथ मै कैसे..?
रुपा ने दुखी सी होते हुवे पुछा।

लीला: अरे.. मैने पुछा था बाबा से..., बोल रहे थे ये टोटके है जो किसी मर्द के साथ ही करने है, और राजु है तो मर्द ही ना..!

"वो तु बाद मे देखना, पहले तो तुझ पर जो कब्र पर पिशाब करने का दोष है उसे तो उतारना है। बाबा जी बोल रहे थे की अगर ये दोष उतरने से वो जीन्न तेरा पीछा छोङ देता है तो बाकी के टोटके करने की जरुरत नही पङेगी..!

रुपा: अ.हा्. हाँ.. फिर तो ठीक है..पर इसके लिये क्या करना है..?

रुपा ने अब थोङा खुश होते हुवे उत्सुकता से पुछा जिससे...

लीली: शनिवार की रात बारह बजे तुझे चौराहे पर जाकर अपने सारे कपङे उतारकर वही छोङकर आने है और तुझे अपने यहाँ किसी मर्द से इस पर (चुत पर) पिशाब करवाकर उसके हाथ से इसे धुलवाना होगा...

लीला ने सीधे सीधे चुत का नाम तो नही‌ लिया मगर उसने नीचे रुपा की चुत की ओर इशारा करते हुवे कहा जिससे रुपा भी समझ गयी और..

रुपा: क्या्आ्आ्.....?

लीला: हाँआ्आ्..! तभी तेरा ये कब्र पर पिशाब करने का दोष मिटेगा..!

रुपा: पर माँ, ये सब तो मै बस उनके साथ ही कर सकती हुँ..!

रुपा अब आगे कुछ बोलती तब तक...

लीला: नही..!, दामाद जी तो अब उस जीन्न के ही वश मे है, उनके साथ तो चाहे तु सो, या कुछ भी कर, उससे कुछ फर्क नही पङने वाला, ये सब टोटके तुझे किसी दुसरे मर्द के साथ करने होँगे तब जा के तेरा ये दोष दुर होगा..!

रुपा: पर माँ..! किसी दुसरे मर्द के साथ मै ये सब कैसे कर सकती हुँ..?

लीला: अब फकीर बाबा ने तो यही बताय है की तुझे ये किसी दुसरे मर्द के साथ‌ ही करना होगा..?

रुपा: पर माँ, ये सब तो औरत बस अपने पति के साथ ही कर सकती है, जब उनके साथ नही कर सकती तो फिर किसके साथ करुँगी..?

लीला: तुझे बताया तो, राजु के साथ, और किसके साथ करेगी..?

रुपा: पर माँ राजु के साथ ये सब करते शरम नही आयेगी, और उसके साथ ये सब करते मै अच्छी लगुँगी क्या, वो क्या सोचेगा मेरे बारे मे..?

लीला: इसमे क्या सोचेगा, उसे इतनी समझ भी है जो कुछ सोचेगा..? और ये सब टोने टोटके है जो ऐसे ही करने पङते है..! पहले तुम दोनो नँगे होकर साथ मे नहाते भी तो थे, अब कुछ देर उसके साथ नँगी होकर ये सब कर लेगी तो क्या हो जायेगा..?

रुपा: पर माँ तब की बात और थी, वो छोटा था, पर अब ये सब उसके साथ कैसे कर सकती हुँ..?

लीला: अभी वो कौन सा इतना बङा हो गया..? ठीक से अभी दाढी मुँछ भी निकले नही उसके..!

रुपा: पर माँ...!

लीला: देख ले बेटी..! अब बाबा जी ने तो यही बताया है की तुझे ये टोटके किसी दुसरे मर्द के साथ ही करने है, अगर तु किसी और के साथ मे करना चाहती है तो वो देख ले..? पर तुझे जल्दी करना होगा, नही तो बाबा ने बताया है की तुझ पर दोष का असर बढता जा रहा है जिससे दामाद जी भी अब उसके वश मे आ गये है..!

रुपा: मै अब क्या कहुँ.. ये सब किसी और के साथ कैसे..?

लीला: वैसे राजु नही तो, तु कहे तो पङोस वाले गप्पु से कहुँ..., पर किसी दुसरे का क्या भरोसा..? वैसे ही वो‌ लफँगा है, पता नही बाद मे गाँव मे क्या क्या कहता फिरेगा..! और दुसरे को कोई भरोसा भी तो नही... राजु तो फिर भी घर का है...! देख ले, तु कहे तो मै गप्पु से बात कर लेती हुँ..?

रुपा: नही.. उससे अच्छा तो मै राजु के साथ ही ना कर लुँगी..!

लीला: यही तो मै भी बोल रही हुँ, तु राजु के साथ ही कर ले..! और मै तो बोल रही हुँ तु ये आज रात ही कर ले, आज शनिवार भी है, जब राजु के साथ ही करने है तो फिर किस लिये देर करना..!

रुपा: मै अब क्या कहुँ, मुझे कुछ समझ नही आ रहा..?

लीला ने दोष का असर बढने की बात कही तो रुपा का भी अब मन बदलने लगा था।

लीला: इसमे क्या समझ नही आ रहा..! वैसे भी बस कुछ देर की तो बात है..!

लीला ने रुपा पर दबाव बनाते हुवे कहा जिससे अब...

रुपा: ठीक है क्या करना होगा..?

रुपा ने अब बेमन से कहा, जिससे...

लीला: कुछ नही करना..?, बस रात मे बारह बजे तुम दोनो‌ को चौराहे पर जाकर तुम्हे अपने सारे कपङे उतारकर वही रख देने है, फिर राजु के नीचे उस पर (लण्ड पर) पिशाब करके पहले तो तुझे हाथ से उसके उसे (लण्ड को) अच्छे से धो देना है। ऐसे ही फिर राजु भी तेरे नीचे यहाँ इस पर (चुत पर) पिशाब करके इसे (चुत को) हाथ से अच्छे से धो देगा ताकी तुझ पर जो कब्र पर पिशाब करने का दोष है वो उतर सके..!

"पर माँ राजु के साथ मै इतना सब कैसे करूँगी..? शरम नही आयेगी उसके साथ ये सब करते, नही..नही..! राजु के साथ मै ये सब नही कर सकती..? वो क्या सोचेगा..?" लीला आगे कुछ बताती रुपा दुखी सा होते हुवे बीच मे ही बोल‌ पङी जिससे....

लीला: इसमे क्या सोचेगा.. ? और सोचता है तो सोचने दे, रात के अन्धेरे मे सब हो जायेगा..! उसके बाद दोनो ऐसे ही नँगे आकर रात मे जोङे के साथ सो जाना..!

रुपा : क्या..? यहाँ आकर रातभर उसके साथ बिना कपङो के रहना भी है..?

रुपा ने अब घबराते हुवे कहा जिससे...

लीला: अरे.. तो मै तुझे कौन सा उसके साथ कुछ करने को बता रही हुँ, बस सुबह तक उसके साथ बिना कपङो के ऐसे ही रहना है..!

रुपा: पर इससे क्या होगा माँ..?

लीला: अरे..! तभी तो तेरा कब्र पर पिशाब करने का दोष दुर होगा और वो जीन्न तेरा पीछा छोङेगा...!

"कोई भी मर्द अपनी औरत को किसी दुसरे के साथ सोने देता है क्या..? कोई भी मर्द चाहेगा की उसकी औरत किसी दुसरे मर्द के समाने‌ नँगी हो और ये सब करे...?"

रुपा एकदम चुपचाप टकटकी लगाये लीला की ओर देखे जा रही थी इसलिये...

"अरे बोल ना... " लीला ने रुपा की‌ ओर देखते हुवे कहा जिससे..

रुपा: नही...

लीला: यही बताया है फकीर बाबा ने, अब तेरा पति तो उस जीन्न के वश मे है उसके साथ तु चाहे जो‌ कर, उससे उस जीन्न पर कोई असर नही होगा, मगर जब तुम किसी दुसरे मर्द के सामने ऐसे नँगी रहेगी तभी तो वो जिन्न चीढकर तेरा पीछा छोङकर जायेगा..!

रुपा अब गर्दन झुकाकर बैठ गयी और..

रुपा: पर माँ ये सब मै राजु को करने के लिये मै कैसे कहुँगी...?

रुपा ने दुखी सी होते हुवे कहा जिससे

लीला: उसकी चिँता तु छोङ दे, रात मे जाने से पहले मै उसे अपने आप समझा दुँगी, जैसा तु कहेगी वो चुपचाप बिना कुछ पुछे कर लेगा...

"देखना इसी से तेरे सारे दोष मिट जायेँगे..! अगर ये टोटका ही अच्छे से हो गया तो तुझे पहाङी वाले बाबा पर भी जाने की जरूरत नही पङेगी..!

"जा तु अब चाय बना ले तब तक मै थोङा आराम कर लेती हुँ, फिर दुध भी निकालना है..!" ये कहते हुवे लीला अब पलँग पर लेट गयी और रुपा चाय बनाने के लिये रशोई मे चली गयी।

जिस अन्दाज मे लीला ने रुपा को कब्र पर पिशाब करने का दोष व उस दोष को दुर करने के टोने टोटके के बारे मे बताया, उस पर रुपा को पुरा विश्वास आ गया था मगर राजु के साथ ये सब करने मे उसे बहुत ही अजीब लग रहा था इसलिये वो अब रशोई मे आकर चुपचाप चाय बनाने लग गयी।

दोनो माँ बेटी ने अब साथ मे ही बैठकर चाय पी, फिर लीला तो पशुओं को चारा डालने व उनका दुध निकालने मे लग गयी और रुपा घर के छोटे मोटे काम जैसे झाङु आदि निकालकर रात के खाने की तैयारी मे लग गयी। इस दौरान लीला उसे ये टोटके राजु के साथ करने के लिये समझाती भी रही जिससे रुपा भी अब राजु के साथ टोटके करने के लिये मान गयी...
 
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