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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

  • कामवती

  • रतिवती

  • रुखसाना

  • भूरी काकी

  • रूपवती

  • इस्पेक्टर काम्या

  • चोर मंगूस

  • ठाकुर ज़ालिम सिंह /जलन सिंह

  • नागेंद्र

  • वीरा

  • रंगा बिल्ला


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Nevil singh

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गांव विष रूप
ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी हवेली पहुंच चुके थे, जहाँ सब लोग काम मे व्यस्त थे.
रामु, बिल्लू कालू घोड़ा गाड़ी से सामान उतार रहे थे, वही नागेंद्र चुपचाप रेंगता अपने तहखाने मे पहुंच चूका था.
कामवती का बढ़े धूमधाम से स्वागत हुआ,
भूरी काकी स्वमः आरती कि थाली लिए खड़ी थी,
कामवती घोड़ा गाड़ी से उतरती है भूरी काकी उसकी सुंदरता देख चौक जाती है,
गांव वाले और ठाकुर के अन्य रिश्तेदार ठाकुर कि किस्मत से ईर्ष्या कर रहे थे, " कहाँ बुढ़ापे मे इतनी सुन्दर जवान लड़की मिली है ठाकुर को "
ठाकुर ज़ालिम सिंहभी मन ही मन ख़ुश दे आखिर वो दिन आज आ ही गया था जब ठाकुर को रूपवती जैसी काली कलूटी बेडोल स्त्री से निजात मिल गई थी इसे सुन्दर जवान स्त्री मिल गई थी
आज ठाकुर कि सुहागरात थी काफ़ी बरसो बाद ठाकुर किसी स्त्री को भोगने वाला था.
खेर विषरूप मे नाच गाना शोर शराबा शुरू हो गया था, शाम को होने वाले स्वागत भोज कि तैयारिया चल रही थी
वही भूरी काकी कामवती के साथ ठाकुर के कमरे मे बैठी थी.
भूरी :- कितनी सुन्दरहो बेटी तुम बिल्कुल स्वर्ग कि अप्सरा.
कामवती को देख उसे अपनी जवानी के दिन याद गये थे वो भी जवानी मे गजब ढाती थी,
कामवती घूंघट मे सर झुकाये बैठी थी, उसे कुछ पता नहीं था जैसे किसी ने उसका शादी से संबधित ज्ञान ही छीन लिया हो.
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भूरी :- बेटी आज तेरी सुहागरात है, शाम को नहा धो के तैयार हो जाना, जैसा ठाकुर साहेब कहे वैसा ही करना.
कामवती सिर्फ सुने जा रही थी, हाँ मे सर हिला रही थी.
परन्तु उसका दिमाग़ कही और व्यस्त था जब से हवेली मे प्रवेश किया था कुछ अजीब लग रहा था उसे, जैसे ये हवेली मे पहले भी आई हो, कुछ कुछ धुंधला सा दिख रहा था परन्तु क्या ये स्पष्ट नहीं था.
वो कुछ कुछ बेचैन थी....

गांव कामगंज मे भी रतिवती बहुत बेचैन थी
उसने कल रात हवस मे डूब के खूब गुलछर्रे उड़ाए, ऐसी गांड और चुत मरवाई कि होश ही नहीं रहा ये भी ना समझ सकी कि सामने वाला कोई चोर डाकू लुटेरा भी हो सकता है,
फॉस्वरूप अपने सारे गहने जेवरात लूटा बैठी.
रतिवती सुबह से ही अपने कमरे मे उदास बैठी थी वो रूआसी थी उसे अपनी हवस पे गुस्सा आ रहा था.काश उसका पति नामर्द नहीं होता तो ये सब नहीं होता, खुद कि हवस का जिम्मेदार वो रामनिवास को ठहरा रही थी इस चक्कर मे वो सुबह सुबह ही रामनिवास पे बरस पड़ी थी.रामनिवास सुबह से ही बेवड़े के अड्डे पे बैठा दारू खींच रहा था.
गांड मे उसके अभी भी दर्द था कल रात जोश जोश मे गांड मे हाथ घुसवा बैठी थी. दिल से ले के गांड टक दर्द ही दर्द रहा रतिवती के
तभी.... चाटक... छन्न.... कि आवाज़ के साथ खिड़की से कुछ टकराता है.
वो भाग के खिड़की के पास आती है तो देखती है उसके गहाने जमीन पे बिखरे पडे थे, उसकी बांन्छे खिलजाती है वो किसी वहशी पागलो कि तरह अपने गहने समेटने लगती है.
हाय रे मेरे गहने.. हाय मेरा हार जैसे उसे नया जीवन मिल गया हो
तभी उसके हॉट्ज कागज़ का टुकड़ा लगता है... उसे खोल के ददेखती है

"नमस्कार वासना से भरी स्त्री रतिवती
कल रात ओके साथ सम्भोग का बहुत आनन्द उठाया, आपके जैसी कामुक गद्दाराई स्त्री मैंने कभी जीवन मे नहीं देखि.
आपकी गांड के कहने ही क्या, आपकी चुत का पानी किसी अमृत सामान हैआपके पास स्तन के रूप मे दो अनमोल खजाने है, उस खजाने के सामने आपके ये गहाने कि कोई औकात नहीं, इसलिए मै इन्हे वापस कर रहा हूँ.
, ये सब पढ़ के कल रात का दृश्य उसके सामने घूमने लगता है.
लेकिन गहने के बदले मै जब चाहु आपके इस कामुक बदन का रस चखना चाहता हूँ.
आपका चोर मंगूस "

रतीवतीं ये सब पढ़ के घन घना जाती है, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कुख्यात चोर मंगूस के साथ सम्भोग किया.
ये जानने के बाद उसके बदन मे एक उमंग जागने लगी, तरग हिलोरे लेने लगी, चुत से रस टपकने लगा.
फिर क्या था.... रतिवती कि दो ऊँगली रस छोड़ती गुफा मे घुस चुकी थी घपा घप.... धपा धाप...
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पानी पानी चुत फच फचाने लगी उसके आँखों के सामने कल रात का दृश्य दौड़ रहा था,
चोर मंगूस ये नजारा देख रहा था.....
साली ऐसी स्त्री तो कभी देखि ही नहीं, हमेशा तैयार रहती है, खेर इसे तो बाद मे भी देख लूंगा.
अभी विष रूप जाना होगा.
चोर मंगूस रतिवती कि चुत को याद करता मुस्कुराता चल पड़ता है अपने जीवन कि सबसे बड़ी चोरी करने.

इसी गांव मे रुखसाना भी विष रूप जाने कि तैयारी मे थी.इसे डॉ. असलम को दवाई देने के लिए मजबूर करना था परन्तु कैसे?
"मुझे भी घाव चाहिए होगा?"
रुखसानाअपनी सलवार उतार फेंकती है, उसकी सुनहरी बिना बालो कि चुत चमक उठती है.
कितना चुदवाती थी फिर भी चुत गांड वैसी ही कसी हुई थी.
वो पास पड़ा चाकू उठा लेती है और शीशे के सामने अपनी दोनों टांग फैला के बैठ जाती है.
ना जाने उसके मन मे क्या चल रहा था, तभी फचक से चाकू चल जाता है उसकी नौक चुत और गांड के बीच कि जगह पे दंस गया था एक दर्द के साथ रुखसाना सिहर उठती है.
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अजीब स्त्री थी रुखसाना सिर्फ रंगा बिल्ला के लिए इतना दर्द क्यों सहन कर रही थी?
"या अल्लाह मुझे अपने मकसद मे कामयाब करना "
चाकू बाहर निकल गया था चुत और गांड के बीच का हिस्सा लहूलुहान हो गया था, फिर भी वो हिम्मत कर खड़ी हो जाती है अपनी जांघो के बीच वो एक कपड़ा फसा लेती है.
सलवार वापस बाँध कुछ जरुरी सामान ले के विष रूप कि तरफ कूच कर जाती है

रुखसाना का क्या मकसद है?
ठाकुर अपनी सुहागरात
Bemishaal update dost
 

Nevil singh

Well-Known Member
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शाम हो चली थी, सूरज अस्त होने को था.
थाने मे मौजूद दरोगा वीरप्रताप सिंह के सामने डाकू रंगा बैठा था,
वीरप्रताप :- बता साले अभी तक कितनी लूट कि है कहाँ छुपा रखा है अभी तक का माल?
रंगा :- हसते हुए हाहाहाहा.... दरोगा तेरे जैसे कितने आ के चले गये तू भी जायेगा
परन्तु तेरा जो हाल होगा उसका तू खुद जिम्मेदार है.
चटाक... से एक थप्पड़ पड़ता है रंगा के मुँह पे "मादरजात अकड़ नहीं गई तेरी हरामखोर " चटाक..
रंगा थप्पड़ से बिलबिला जाता है होंठ से खून कि पतली लकीर छलक जाती है.
जिंदगी मे पहली बार रंगा ने थप्पड़ खाया था उसके आँखों मे खून उतार आया था
रंगा :- साले दरोगा ये थप्पड़ तुझे बहुत भारी पड़ेगा जिस दिन मे यहाँ से बाहर निकला ये थप्पड़ तेरी बीवी कि गांड पे पड़ेगा. हाहाहाहा....
वीरप्रताप :- मदरचोद तेरी ये मजाल तेरा भाई बिल्ला मेरीगोली का शिकार हो चूका है तेरी मौत भी नजदीक है रंगा.
हाहाहाहा....रंगा कि धुनाई चालू होजाती है.
रंगा के मुँह से एक उफ़ तक नहीं निकलती उसके मन मे कुछ चल रहा था.
"रंगा जिन्दा है तो बिल्ला भी जिन्दा है "
बस बाहर निकलने कि देर है दरोगा तू खून के आँसू रोयेगा.
सूरज पूरी तरह डूब चूका था,
चोर मंगूस किसी छालावे कि तरह आगे बढ़ता चला जा रहा था. विष रूप दूर नहीं था

रुखसाना भी जल्दी जल्दी चली जा रही थी, परन्तु खुद को दिए जख्म मे रह रह के टिस उठ रही थी.
"मुझे थोड़ा आराम कर लेना चाहिए " ऐसा सोच वो एक चट्टान पे बैठ जाती है उसकी चुत और गांड के बीच जख्म से दो बून्द रक्त रिसता हुआ चट्टान पे गिर जाता है,
रक्त कि गंध एक सुनसान काली अँधेरी गुफा तक पहुँचती है,
आअह्ह्ह..... वही रक्त कि गंध इतने सालो बाद ऐसा कैसे संभव है?
वो तो मर चुकी है,मेरे लंड से ही मरी थी, फिर फिर.... ये वैसी ही गंध कहाँ से आ रही है.
रुखसाना के खून कि गंध तेज़ थी या फिर सूंघने वाले कि शक्ति तेज़ थी कह नहीं सकते.
वो भीमकाय जीव अँधेरे मे सरसरा जाता है गंध का पीछा करने लगता है.
चाटन के करीब पहुंच के उसे चट्टान पे गिरी रक्त कि दो बून्द दिखती है... वो अपनी नाक पास ला के सूंघता है
शनिफ्फफ्फ्फ़.... आह्हः... वही खुशबू वही स्वाद
पक्का ये वही है घुड़वती तू जिन्दा है परन्तु कैसे?
तेरी चुत से निकला है ये खून आज भी इसकी खसबू और स्वाद नहीं भुला है सर्पटा....
भयानक अठाहस गूंज जाता है सुनसान जंगल मे.
तुझे ढूढ़ ही लूंगा....

रुखसाना भी विष रूप का प्रवेश द्वारा मे प्रवेश कर रही थी.

ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली पे खाना पीना हो रहा था
कामवती कमरे मे तैयार बैठी थी उसे ठाकुर का इंतज़ार था
वही ठाकुर भी जल्द से जल्द कमरे मे पहुंच लेना चाहता था,
भूरी काकी भी इस रूहानी मौसम का आनन्द लेने लगी थी उसकी चुत भी सुबह से पनिया रही थी उसे कामवती कि सुहागरात मे अपनी चुदाई याद आ रही थी जो उसने कालू बिल्लू और रामु के साथ कि थी.
कालू बिल्लू रामु भी रह रह के भूरी को हसरत भरी निगाहो से ताड़ रहे थे, वो तीनो मौका ही ढूंढ़ रहे थे आग दोनों तरफ बराबर थी परन्तु मेहमानों से हवेली भरी पड़ी थी.
चोर मंगूस भी जश्न मे शामिल हो चूका था ठाकुर रूप मे ज़ालिम. सिंह का दूर का रिश्तेदार मासूम सुन्दर सब उसकी बातो से प्रभावित नजर आ रहे थे.
मंगूस कि खास बात ही यही थी कि वो अपने व्यक्तित्व से सभी को प्रभावित कर लेता था
उसने बातो ही बातों मे जान लिया था कि भूरी काकी सबसे पुरानी नौकर है और कालू बिल्लू रामु तीनो वफादार नौकर है परन्तु थोड़े मुर्ख है

उसकी योजना बनने लगी थी... भूरी काकी मेरा काम कर सकती है.
रात गहराने लगी थी सभी मेहमान जा चुके थे एक्का दुक्का लोग ही बचे थे
डॉ. असलम :- अच्छा ठाकुर साहेब मुझे भी इज़ाज़त दे मै चलाता हूँ अपने घर थक गया हूँ.
और एक पुड़िया ठाकुर के हाथ मे थमा देता है, "रात मे दूध के साथ ले लीजियेगा अच्छा रहेगा "
बोल के एक गहरी मुस्कान दे देते है
ठाकुर साहेब झेप जाते है.
ठाकुर साहेब कमरे कि और बढ़ चलते है.
कमरे के अंदर पहुंच के अंदर से कुण्डी लगा देते है, कामवती बिस्तर पे डरी सहमी सी बैठी थी उसके मन मे सुहागरात को ले के बेचैनी थी कि ठाकुर साहेब क्या करेंगे.
ठाकुर साहेब बिस्तर के पास आ कामवती के सामने बैठ जाते है.
ठाकुर :- अतिसुन्दर... जितना सोचा था उस से कही ज्यादा सुन्दर है आप कामवती.
आपको शादी मुबारक हो.
कामवती के चेहरे पे एक मुस्कान आ जाती है "आपको भीशादी मुबारक हो ठाकुर साहेब "
मेरी खुशकिस्मती है कि मै इस हवेली कि ठकुराइन बनी.
कामवती कर्ताग्यता प्रकट करती है.
ठाकुर साहेब हाथ आगे बढ़ाते है और धीरे धीरे घूँघटउठा देते है.
हाय क्या रूप है कितनी गोरी है, घूँघट हटते ही कमरे मे एक अलग ही जगमग हो गई, जैसे कामवती का चेहरा रौनक पैदा कर रहा हो कमरे मे.
घूंघट पीछे कि और सरकता हुआ नीचे गिर जाता है.
घूँघट गिरने से आगे से ब्लाउज पूरा दिखने लगता है लाल ब्लाउज मे कैद दो बड़े बड़े गोरे स्तन समा ही नहीं रहे थे,आधे से ज्यादा हिस्सा बाहर निकला हुआ था,
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ठाकुर कि नजर जैसे ही कामवती के अर्धखुले स्तन पे पड़ी उसकी तो हवा ही टाइट हो गई, ऐसा यौवन ऐसा रूप इसी के लिए तो तरसा था ठाकुर,
चूड़ी से भरे हाँथ, माथे पे बिंदी कामवती के यौवन को और ज्यादा निखार रहे थे.
इतने भर से ठाकुर कि 3इंच कि लुल्ली पाजामे मे फनफनाने लगी.
वो थोड़ा आगे बढ़ कामवती कि ठोड़ी को ऊपर उठा के उसकी आँखों मे देखता है.
मदहोश कर देने वाली सुन्दर आंखे थी कामवती कि.
ठाकुर तो बस देखे ही जा रहा था, कही इस सुंदरता को देख के ही उसका लंड पानी ना फेंक दे.
नीचे तहखाने मे मौजूद नागेंद्र बेचैनी से इधर उधर पलट रहा था,
उसके दिमाग़ मे बार बार एक ही आवाज़ गूंज रही थी
तांत्रिक उलजुलूल कि आवाज़
"हे साँपो के राजा नागेंद्र मै तुझे श्राप देता हूँ तू अपनी सभी शक्ति खो देगा तेरी प्रेमिका कामवती सारा काम ज्ञान भूल जाएगी"
नाहीई...... ईईईई.... करता नागेंद्र उठ खड़ा होता है उसका दिलधाड़ धाड़ कर बज रहा था.
"नहीं नहीं ऐसा नहीं होने दूंगा उस श्राप को काटने का वक़्त आ गया है, अपनी शक्ति वापस पाने का वक़्त आ गया है "
ऐसा बोल वो ठाकुर के कमरे कि और बढ़ चलता है

क्या करेगा नागेंद्र?
ठाकुर सुहाग रात मना पायेगा?
ये सर्पटा कहाँ से आ धमका? रुखसाना से घुड़वती कि गंध क्यों आ रही है?
सवाल कई है जवाब मिलेगा
बने रहिये कथा जारी है.....
Hasheen update bandhu
 

andypndy

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ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली मे एक और जिस्म हवस कि आग मे जल रहा था, भूरी काकी का आज कामवती कि सुहागरात सोच सोच के उसके कलेजे पे भी छुरिया चल रही थी,
वो अपने बिस्तर पे सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे लेटी चुत को रगड़ रही थी उसे कालू बिल्लू रामु के साथ हुई चुदाई याद आ रही थी कैसे तीनो ने रगड के रख दिया था
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बाहर चौकीदार कक्ष मे
बिल्लू :- यारो ठाकुर कि तो आज चांदी है मजा कर रहा होगा कुंवारी स्त्री मिल गई बुड्ढे को.
रामु :- हाँ यार ऐसा सोच सोच के तो मेरा लंड कब से खड़ा है बैठने का नाम ही नाहि ले रहा.
कालू :- भूरी काकी भी डर गई लगता है उस दिन से वरना उसे ही चोद लेते वो भी क्या नई ठकुराइन से कम है पुरानी शराब है, जितना चोदो कम है, उस दिन भरपूर मजा दिया था.
आज ही मौका है वरना कल से तो ठाकुर काम पे लगा देगा
बिल्लू :- अरे उदास क्यों होता है भगवान ने चाहा तो चुत मिल ही जाएगी, ले दारू पी
ऐसा बोल के तीनो भूरी का नशीला बदन याद करते हुए लंड पकड़े एक घूंट मे शराब पी जाते है
रामु :- चलो एक चक्कर मार लिया जाये हवेली का कही कोई चोर तो नहीं घुस आया होगा?
चोर तो घुस ही आया था कबका.... वो भी चोर मंगूस
तीनो पे बराबर नजर बनाये हुए था, काम करने का मया तरीका है? सोते कब है? करते क्या है?
मंगूस को कमजोरिया ही नजर आ रही थी.
"हवेली मे आना जाना बड़ी बात नहीं है बस मुझे नागमणि का पता लगाना होगा "

भूरी काकी भी अपने कमरे मे वासना मे तड़प रही थी "ऐसे कैसे चलेगा भूरी, ठाकुर के रहते चुदाई संभव भी नहीं है हवेली पे,कब तक चुत रगड़ेगी पीछे मूत के आती हूँ थोड़ी वासना कम हो तो सुकून कि नींद आये "
भूरी ब्लाउज पेटीकोट मे अपने कमरे के पिछवाड़े चल देती है, चारो तरफ अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था.
वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर उठा देती है, अँधेरी रात मे गोरी बड़ी गद्दाराई गांड चमक उठती है, मंगूस पास ही झाड़ी मे छुपा हुआ था उसकी नजर जैसे ही साये पे पड़ती है वो दुबक जाता है.
फिर अचानक उसकी आंखे चोघीया जाती है... भूरी काकी कि गांड ठीक उसके सामने थी दो हिस्सों मे बटी बड़ी गोरी दूध से उजली गांड... तभी पिस्स्स.... कि तेज़ मधुर आवाज़ के साथ चुत एक धार छोड़ देती है, पीछे से मंगूस को यव नजारा ऐसा दीखता है जैसे दो बड़ी गोल चट्टान के बीच से पानी का झरना छूट पड़ा हो,मंगूस इस मनमोहक नज़ारे को देख घन घना जाता है.
जैसे ही चुत से मूत कि धार निकलती है भूरी को थोड़ी राहत मिलती है
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उसके मुँह से आनंदमय सिसकरी फुट पड़ती है.
जैसे ही वो खड़ी होती है पीछे से एक जोड़ी हाथ ब्लाउज पे कसते चले जाते है और पीछे से कोई सख्त लोहे कि रोड नुमा चीज भूरी कि गांड कि दरार मे सामाति चली जाती है
पेटीकोट पूरी तरह नीचे भी नहीं हुआ था कि ये हमला हो गया... स्तन बुरी तरह दो हाथो मे दब गये थे,
ना चाहते हुए भी भूरी सिसकारी छोड़ देती है वो पहले से ही गरम थी इस गर्मी को उन दो हाथो ने बड़ा दियाथा.
अंधेरा पसरा हुआ था... तभी एक जोड़ी हाथ भूरी कि जाँघ सहलाने लगता है.
"क्यों काकी मूतने आई थी?"
भूरी आवाज़ पहचान गई "बिल्लू तुम? ये क्या तरीका है "
बिल्लू :- काकी हम तीनो कब से तड़प रहे है और आप तरीका पूछ रही हो?
पीछे से स्तन मर्दन करता रामु भूरी कि गर्दन पे जीभ रख देता है और एक लम्बा चटकारा भर लेता है "आह काकी क्या स्वाद है आपका मजा आ गया "
भूरी सिर्फ सिसक के रह जाती है
अचानक उसकी दोनों जांघो के बीच कुछ गिला गिला सा महसूस होता है वो नीचे देखती है तो पाती है कि कालू अपनी जबान निकाले चुत से निकलती मूत कि गरम बूंदो को चाट रहा था
भूरी तो इस अहसास से मरी ही जा रही थी कहाँ वो अपनी वासना कम करने आई थी कहाँ ये तीनो पील पडे उस पे.
भूरी वासना मे इतना जल रही थी कि वो किसी प्रकार का विरोध ना कर सकी करती भी क्यों उसे भी तो प्यास लगी थी हवस कि प्यास.

अंदर हवेली मे नागेंद्र भी कामवती के कमरे मे पहुंच चूका था और चुपचाप एक कोने मे सिमट के बैठ गया था उसकी नजर कामवती के कामुक बदन पे टिकी हुई थी.
आह्हः.... अभी भी वैसे ही है बिल्कुल मादक कामवासना से भरी, लेकिन जैसे भी हो मुझे श्राप तोड़ने कि क्रिया करनी ही होंगी.

कामवती के सामने बैठा ठाकुर का लिंग अपने चरम पे था उसने ऐसा रूप सौंदर्य कभी देखा ही नहीं था
उसकी लुल्ली खड़ी हो के सलामी दे रही थी.अब सहननहीं कर सकता था वो
ठाकुर :- कामवती आप लेट जाइये सुहागरात मे देर नहीं करनी चाहिए.
कामवती को काम कला को कोई ज्ञान नहीं था
"ज़ी ठाकुर साहेब "बोल के सिरहाने पे टिक के लेट जाती है.
ठाकुर उसके पैरो के पास बैठ उसके लहंगे को ऊपर उठाना शुरू कर देता है ज़ालिम सिंह जैसे जैसे लहंगा उठा रहा था वैसे वैसे कामवति कि गोरी काया निकलती जा रही थी
ठाकुर ये सब देख मदहोश हुए जा रहा था.
ये नजारा नागेंद्र के सामने भी प्रस्तुत था परन्तु "हाय री मेरी किस्मत मेरी प्रेमिका मेरे सामने ही किसी और से सम्भोग करने जा रही है और उसे कोई ज्ञान ही नहीं है "
हे नागदेव काश मेरी शक्तियांमेरे पास होती तो मै ये नहीं होने देता, मुझे मौके का इंतज़ार करना होगा. "
ठाकुर अब तक कामवती का लहंगा पूरा कमर तक उठा चूका था जो नजारा उसके सामने था वो किसीभी मर्द कि दिल कि धड़कन जाम कर सकता था दोनों जांघो के बीच छुपी पतली सी लकीर हलके हलके सुनहरे बाल, एक दम गोरी चुत कोई दाग़ नहीं सुंदरता मे
ये दृश्य देख ठाकुर का कलेजा मुँह को आ गया, वो तुरंत अपना पजामा खोल के कामवती के ऊपर लेट गया उस से अब रहा नहीं जा रहा था
कामवती के ऊपर लेट के अपनी छोटी सी लुल्ली कोचुत कि लकीर पे रगड़ने लगा,कामवती को अपने निचले भाग मे कुछ कड़क सा महसूस हुआ उसे थोड़ा अजीब लगा कुछ अलग था जो जीवन मे पहली बार महुसूस कर रही थी वो..
उसने सर ऊपर उठा के देखना चाहा परन्तु ठाकुर का भाटी शरीर उसके ऊपर था कामवती ऐसा ना कर सकी
ठाकुर इस कदर मदहोश था ऐसा पागल हुआ किउसे कुछ ध्यान ही नहीं रहा ना कोई प्यार ना कोई मोहब्बत सिर्फ चुत मारनी थी अपना वंश आगे बढ़ाना था.
उसकी लुल्ली कड़क हो के कामवती कि चुत रुपी लकीर पे घिस रही थी आगे पीछे मात्र 4-5 धक्को मे ही ठाकुर जोरदात हंफने लगा जैसे उसके प्राण निकल गये हो, उसकी लुल्ली से 2-3 पानी कि बून्द निकल के चुत कि लकीर से होती गांड तक बह गई ठाकुर सख्तलित हो गया था ठाकुर कामवती के उभार और चुत देख के इतना गरम हो चूका था कि डॉ. असलम दवारा दी गई पुड़िया ही लेना भूल गया नतीजा मात्र 1मिनट मे सामने आ गया.
यही औकात थी ठाकुर ज़ालिम सिंह कि
वो कामवती के ऊपर से बगल मे लुढ़क गया और जी भर के हंफने लगा जैसे तो कोई पहाड़ तोड़ के आया हो, कामवती ने एक बार उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा कि ये अभी क्या हुआ?
मुझे अर्ध नंगा कर के ठाकुर साहेब लुढ़क क्यों गयेऔर ये मेरी जांघो के बीच गिला सा क्या है,
शायद यही होती होंगी सुहागरात ऐसा सोच कामवती ने लहंगा नीचे कर लिया और करवट ले के सोने लगी.
वही नागेंद्र जो ये सब कुछ देख रहा था वो मन ही मन जसने लगा "साला हिजड़ा निकला ये भी अपने परदादा जलन सिंह कि तरह"
कामवती लुल्ली से संतुष्ट होने वाली स्त्री है ही कहाँ हाहाहाहाहा..... नागेंद्र तहखाने कि और चल देता है उसे ठाकुर से कोई खतरा नहीं था.
हिजड़ा साला... आक थू.
ठाकुर कि सुहागरात तो शुरू होते ही ख़त्म हो गई थी,
लेकिन भूरी कि रात अभी बाकि है
बने रहिये
कथा जारी है....
 
Last edited:

Nevil singh

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चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -33

ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली मे एक और जिस्म हवस कि आग मे जल रहा था, भूरी काकी का आज कामवती कि सुहागरात सोच सोच के उसके कलेजे पे भी छुरिया चल रही थी,
वो अपने बिस्तर पे सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे लेटी चुत को रगड़ रही थी उसे कालू बिल्लू रामु के साथ हुई चुदाई याद आ रही थी कैसे तीनो ने रगड के रख दिया था
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बाहर चौकीदार कक्ष मे
बिल्लू :- यारो ठाकुर कि तो आज चांदी है मजा कर रहा होगा कुंवारी स्त्री मिल गई बुड्ढे को.
रामु :- हाँ यार ऐसा सोच सोच के तो मेरा लंड कब से खड़ा है बैठने का नाम ही नाहि ले रहा.
कालू :- भूरी काकी भी डर गई लगता है उस दिन से वरना उसे ही चोद लेते वो भी क्या नई ठकुराइन से कम है पुरानी शराब है, जितना चोदो कम है, उस दिन भरपूर मजा दिया था.
आज ही मौका है वरना कल से तो ठाकुर काम पे लगा देगा
बिल्लू :- अरे उदास क्यों होता है भगवान ने चाहा तो चुत मिल ही जाएगी, ले दारू पी
ऐसा बोल के तीनो भूरी का नशीला बदन याद करते हुए लंड पकड़े एक घूंट मे शराब पी जाते है
रामु :- चलो एक चक्कर मार लिया जाये हवेली का कही कोई चोर तो नहीं घुस आया होगा?
चोर तो घुस ही आया था कबका.... वो भी चोर मंगूस
तीनो पे बराबर नजर बनाये हुए था, काम करने का मया तरीका है? सोते कब है? करते क्या है?
मंगूस को कमजोरिया ही नजर आ रही थी.
"हवेली मे आना जाना बड़ी बात नहीं है बस मुझे नागमणि का पता लगाना होगा "

भूरी काकी भी अपने कमरे मे वासना मे तड़प रही थी "ऐसे कैसे चलेगा भूरी, ठाकुर के रहते चुदाई संभव भी नहीं है हवेली पे,कब तक चुत रगड़ेगी पीछे मूत के आती हूँ थोड़ी वासना कम हो तो सुकून कि नींद आये "
भूरी ब्लाउज पेटीकोट मे अपने कमरे के पिछवाड़े चल देती है, चारो तरफ अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था.
वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर उठा देती है, अँधेरी रात मे गोरी बड़ी गद्दाराई गांड चमक उठती है, मंगूस पास ही झाड़ी मे छुपा हुआ था उसकी नजर जैसे ही साये पे पड़ती है वो दुबक जाता है.
फिर अचानक उसकी आंखे चोघीया जाती है... भूरी काकी कि गांड ठीक उसके सामने थी दो हिस्सों मे बटी बड़ी गोरी दूध से उजली गांड... तभी पिस्स्स.... कि तेज़ मधुर आवाज़ के साथ चुत एक धार छोड़ देती है, पीछे से मंगूस को यव नजारा ऐसा दीखता है जैसे दो बड़ी गोल चट्टान के बीच से पानी का झरना छूट पड़ा हो,मंगूस इस मनमोहक नज़ारे को देख घन घना जाता है.
जैसे ही चुत से मूत कि धार निकलती है भूरी को थोड़ी राहत मिलती है
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उसके मुँह से आनंदमय सिसकरी फुट पड़ती है.
जैसे ही वो खड़ी होती है पीछे से एक जोड़ी हाथ ब्लाउज पे कसते चले जाते है और पीछे से कोई सख्त लोहे कि रोड नुमा चीज भूरी कि गांड कि दरार मे सामाति चली जाती है
पेटीकोट पूरी तरह नीचे भी नहीं हुआ था कि ये हमला हो गया... स्तन बुरी तरह दो हाथो मे दब गये थे,
ना चाहते हुए भी भूरी सिसकारी छोड़ देती है वो पहले से ही गरम थी इस गर्मी को उन दो हाथो ने बड़ा दियाथा.
अंधेरा पसरा हुआ था... तभी एक जोड़ी हाथ भूरी कि जाँघ सहलाने लगता है.
"क्यों काकी मूतने आई थी?"
भूरी आवाज़ पहचान गई "बिल्लू तुम? ये क्या तरीका है "
बिल्लू :- काकी हम तीनो कब से तड़प रहे है और आप तरीका पूछ रही हो?
पीछे से स्तन मर्दन करता रामु भूरी कि गर्दन पे जीभ रख देता है और एक लम्बा चटकारा भर लेता है "आह काकी क्या स्वाद है आपका मजा आ गया "
भूरी सिर्फ सिसक के रह जाती है
अचानक उसकी दोनों जांघो के बीच कुछ गिला गिला सा महसूस होता है वो नीचे देखती है तो पाती है कि कालू अपनी जबान निकाले चुत से निकलती मूत कि गरम बूंदो को चाट रहा था
भूरी तो इस अहसास से मरी ही जा रही थी कहाँ वो अपनी वासना कम करने आई थी कहाँ ये तीनो पील पडे उस पे.
भूरी वासना मे इतना जल रही थी कि वो किसी प्रकार का विरोध ना कर सकी करती भी क्यों उसे भी तो प्यास लगी थी हवस कि प्यास.

अंदर हवेली मे नागेंद्र भी कामवती के कमरे मे पहुंच चूका था और चुपचाप एक कोने मे सिमट के बैठ गया था उसकी नजर कामवती के कामुक बदन पे टिकी हुई थी.
आह्हः.... अभी भी वैसे ही है बिल्कुल मादक कामवासना से भरी, लेकिन जैसे भी हो मुझे श्राप तोड़ने कि क्रिया करनी ही होंगी.

कामवती के सामने बैठा ठाकुर का लिंग अपने चरम पे था उसने ऐसा रूप सौंदर्य कभी देखा ही नहीं था
उसकी लुल्ली खड़ी हो के सलामी दे रही थी.अब सहननहीं कर सकता था वो
ठाकुर :- कामवती आप लेट जाइये सुहागरात मे देर नहीं करनी चाहिए.
कामवती को काम कला को कोई ज्ञान नहीं था
"ज़ी ठाकुर साहेब "बोल के सिरहाने पे टिक के लेट जाती है.
ठाकुर उसके पैरो के पास बैठ उसके लहंगे को ऊपर उठाना शुरू कर देता है ज़ालिम सिंह जैसे जैसे लहंगा उठा रहा था वैसे वैसे कामवति कि गोरी काया निकलती जा रही थी
ठाकुर ये सब देख मदहोश हुए जा रहा था.
ये नजारा नागेंद्र के सामने भी प्रस्तुत था परन्तु "हाय री मेरी किस्मत मेरी प्रेमिका मेरे सामने ही किसी और से सम्भोग करने जा रही है और उसे कोई ज्ञान ही नहीं है "
हे नागदेव काश मेरी शक्तियांमेरे पास होती तो मै ये नहीं होने देता, मुझे मौके का इंतज़ार करना होगा. "
ठाकुर अब तक कामवती का लहंगा पूरा कमर तक उठा चूका था जो नजारा उसके सामने था वो किसीभी मर्द कि दिल कि धड़कन जाम कर सकता था दोनों जांघो के बीच छुपी पतली सी लकीर हलके हलके सुनहरे बाल, एक दम गोरी चुत कोई दाग़ नहीं सुंदरता मे
ये दृश्य देख ठाकुर का कलेजा मुँह को आ गया, वो तुरंत अपना पजामा खोल के कामवती के ऊपर लेट गया उस से अब रहा नहीं जा रहा था
कामवती के ऊपर लेट के अपनी छोटी सी लुल्ली कोचुत कि लकीर पे रगड़ने लगा,कामवती को अपने निचले भाग मे कुछ कड़क सा महसूस हुआ उसे थोड़ा अजीब लगा कुछ अलग था जो जीवन मे पहली बार महुसूस कर रही थी वो..
उसने सर ऊपर उठा के देखना चाहा परन्तु ठाकुर का भाटी शरीर उसके ऊपर था कामवती ऐसा ना कर सकी
ठाकुर इस कदर मदहोश था ऐसा पागल हुआ किउसे कुछ ध्यान ही नहीं रहा ना कोई प्यार ना कोई मोहब्बत सिर्फ चुत मारनी थी अपना वंश आगे बढ़ाना था.
उसकी लुल्ली कड़क हो के कामवती कि चुत रुपी लकीर पे घिस रही थी आगे पीछे मात्र 4-5 धक्को मे ही ठाकुर जोरदात हंफने लगा जैसे उसके प्राण निकल गये हो, उसकी लुल्ली से 2-3 पानी कि बून्द निकल के चुत कि लकीर से होती गांड तक बह गई ठाकुर सख्तलित हो गया था ठाकुर कामवती के उभार और चुत देख के इतना गरम हो चूका था कि डॉ. असलम दवारा दी गई पुड़िया ही लेना भूल गया नतीजा मात्र 1मिनट मे सामने आ गया.
यही औकात थी ठाकुर ज़ालिम सिंह कि
वो कामवती के ऊपर से बगल मे लुढ़क गया और जी भर के हंफने लगा जैसे तो कोई पहाड़ तोड़ के आया हो, कामवती ने एक बार उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा कि ये अभी क्या हुआ?
मुझे अर्ध नंगा कर के ठाकुर साहेब लुढ़क क्यों गयेऔर ये मेरी जांघो के बीच गिला सा क्या है,
शायद यही होती होंगी सुहागरात ऐसा सोच कामवती ने लहंगा नीचे कर लिया और करवट ले के सोने लगी.
वही नागेंद्र जो ये सब कुछ देख रहा था वो मन ही मन जसने लगा "साला हिजड़ा निकला ये भी अपने परदादा जलन सिंह कि तरह"
कामवती लुल्ली से संतुष्ट होने वाली स्त्री है ही कहाँ हाहाहाहाहा..... नागेंद्र तहखाने कि और चल देता है उसे ठाकुर से कोई खतरा नहीं था.
हिजड़ा साला... आक थू.
ठाकुर कि सुहागरात तो शुरू होते ही ख़त्म हो गई थी,
लेकिन भूरी कि रात अभी बाकि है
बने रहिये
कथा जारी है....
Mast update bhai
 
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