चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -31
शाम हो चली थी, सूरज अस्त होने को था.
थाने मे मौजूद दरोगा वीरप्रताप सिंह के सामने डाकू रंगा बैठा था,
वीरप्रताप :- बता साले अभी तक कितनी लूट कि है कहाँ छुपा रखा है अभी तक का माल?
रंगा :- हसते हुए हाहाहाहा.... दरोगा तेरे जैसे कितने आ के चले गये तू भी जायेगा
परन्तु तेरा जो हाल होगा उसका तू खुद जिम्मेदार है.
चटाक... से एक थप्पड़ पड़ता है रंगा के मुँह पे "मादरजात अकड़ नहीं गई तेरी हरामखोर " चटाक..
रंगा थप्पड़ से बिलबिला जाता है होंठ से खून कि पतली लकीर छलक जाती है.
जिंदगी मे पहली बार रंगा ने थप्पड़ खाया था उसके आँखों मे खून उतार आया था
रंगा :- साले दरोगा ये थप्पड़ तुझे बहुत भारी पड़ेगा जिस दिन मे यहाँ से बाहर निकला ये थप्पड़ तेरी बीवी कि गांड पे पड़ेगा. हाहाहाहा....
वीरप्रताप :- मदरचोद तेरी ये मजाल तेरा भाई बिल्ला मेरीगोली का शिकार हो चूका है तेरी मौत भी नजदीक है रंगा.
हाहाहाहा....रंगा कि धुनाई चालू होजाती है.
रंगा के मुँह से एक उफ़ तक नहीं निकलती उसके मन मे कुछ चल रहा था.
"रंगा जिन्दा है तो बिल्ला भी जिन्दा है "
बस बाहर निकलने कि देर है दरोगा तू खून के आँसू रोयेगा.
सूरज पूरी तरह डूब चूका था,
चोर मंगूस किसी छालावे कि तरह आगे बढ़ता चला जा रहा था. विष रूप दूर नहीं था
रुखसाना भी जल्दी जल्दी चली जा रही थी, परन्तु खुद को दिए जख्म मे रह रह के टिस उठ रही थी.
"मुझे थोड़ा आराम कर लेना चाहिए " ऐसा सोच वो एक चट्टान पे बैठ जाती है उसकी चुत और गांड के बीच जख्म से दो बून्द रक्त रिसता हुआ चट्टान पे गिर जाता है,
रक्त कि गंध एक सुनसान काली अँधेरी गुफा तक पहुँचती है,
आअह्ह्ह..... वही रक्त कि गंध इतने सालो बाद ऐसा कैसे संभव है?
वो तो मर चुकी है,मेरे लंड से ही मरी थी, फिर फिर.... ये वैसी ही गंध कहाँ से आ रही है.
रुखसाना के खून कि गंध तेज़ थी या फिर सूंघने वाले कि शक्ति तेज़ थी कह नहीं सकते.
वो भीमकाय जीव अँधेरे मे सरसरा जाता है गंध का पीछा करने लगता है.
चाटन के करीब पहुंच के उसे चट्टान पे गिरी रक्त कि दो बून्द दिखती है... वो अपनी नाक पास ला के सूंघता है
शनिफ्फफ्फ्फ़.... आह्हः... वही खुशबू वही स्वाद
पक्का ये वही है घुड़वती तू जिन्दा है परन्तु कैसे?
तेरी चुत से निकला है ये खून आज भी इसकी खसबू और स्वाद नहीं भुला है सर्पटा....
भयानक अठाहस गूंज जाता है सुनसान जंगल मे.
तुझे ढूढ़ ही लूंगा....
रुखसाना भी विष रूप का प्रवेश द्वारा मे प्रवेश कर रही थी.
ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली पे खाना पीना हो रहा था
कामवती कमरे मे तैयार बैठी थी उसे ठाकुर का इंतज़ार था
वही ठाकुर भी जल्द से जल्द कमरे मे पहुंच लेना चाहता था,
भूरी काकी भी इस रूहानी मौसम का आनन्द लेने लगी थी उसकी चुत भी सुबह से पनिया रही थी उसे कामवती कि सुहागरात मे अपनी चुदाई याद आ रही थी जो उसने कालू बिल्लू और रामु के साथ कि थी.
कालू बिल्लू रामु भी रह रह के भूरी को हसरत भरी निगाहो से ताड़ रहे थे, वो तीनो मौका ही ढूंढ़ रहे थे आग दोनों तरफ बराबर थी परन्तु मेहमानों से हवेली भरी पड़ी थी.
चोर मंगूस भी जश्न मे शामिल हो चूका था ठाकुर रूप मे ज़ालिम. सिंह का दूर का रिश्तेदार मासूम सुन्दर सब उसकी बातो से प्रभावित नजर आ रहे थे.
मंगूस कि खास बात ही यही थी कि वो अपने व्यक्तित्व से सभी को प्रभावित कर लेता था
उसने बातो ही बातों मे जान लिया था कि भूरी काकी सबसे पुरानी नौकर है और कालू बिल्लू रामु तीनो वफादार नौकर है परन्तु थोड़े मुर्ख है
उसकी योजना बनने लगी थी... भूरी काकी मेरा काम कर सकती है.
रात गहराने लगी थी सभी मेहमान जा चुके थे एक्का दुक्का लोग ही बचे थे
डॉ. असलम :- अच्छा ठाकुर साहेब मुझे भी इज़ाज़त दे मै चलाता हूँ अपने घर थक गया हूँ.
और एक पुड़िया ठाकुर के हाथ मे थमा देता है, "रात मे दूध के साथ ले लीजियेगा अच्छा रहेगा "
बोल के एक गहरी मुस्कान दे देते है
ठाकुर साहेब झेप जाते है.
ठाकुर साहेब कमरे कि और बढ़ चलते है.
कमरे के अंदर पहुंच के अंदर से कुण्डी लगा देते है, कामवती बिस्तर पे डरी सहमी सी बैठी थी उसके मन मे सुहागरात को ले के बेचैनी थी कि ठाकुर साहेब क्या करेंगे.
ठाकुर साहेब बिस्तर के पास आ कामवती के सामने बैठ जाते है.
ठाकुर :- अतिसुन्दर... जितना सोचा था उस से कही ज्यादा सुन्दर है आप कामवती.
आपको शादी मुबारक हो.
कामवती के चेहरे पे एक मुस्कान आ जाती है "आपको भीशादी मुबारक हो ठाकुर साहेब "
मेरी खुशकिस्मती है कि मै इस हवेली कि ठकुराइन बनी.
कामवती कर्ताग्यता प्रकट करती है.
ठाकुर साहेब हाथ आगे बढ़ाते है और धीरे धीरे घूँघटउठा देते है.
हाय क्या रूप है कितनी गोरी है, घूँघट हटते ही कमरे मे एक अलग ही जगमग हो गई, जैसे कामवती का चेहरा रौनक पैदा कर रहा हो कमरे मे.
घूंघट पीछे कि और सरकता हुआ नीचे गिर जाता है.
घूँघट गिरने से आगे से ब्लाउज पूरा दिखने लगता है लाल ब्लाउज मे कैद दो बड़े बड़े गोरे स्तन समा ही नहीं रहे थे,आधे से ज्यादा हिस्सा बाहर निकला हुआ था,
ठाकुर कि नजर जैसे ही कामवती के अर्धखुले स्तन पे पड़ी उसकी तो हवा ही टाइट हो गई, ऐसा यौवन ऐसा रूप इसी के लिए तो तरसा था ठाकुर,
चूड़ी से भरे हाँथ, माथे पे बिंदी कामवती के यौवन को और ज्यादा निखार रहे थे.
इतने भर से ठाकुर कि 3इंच कि लुल्ली पाजामे मे फनफनाने लगी.
वो थोड़ा आगे बढ़ कामवती कि ठोड़ी को ऊपर उठा के उसकी आँखों मे देखता है.
मदहोश कर देने वाली सुन्दर आंखे थी कामवती कि.
ठाकुर तो बस देखे ही जा रहा था, कही इस सुंदरता को देख के ही उसका लंड पानी ना फेंक दे.
नीचे तहखाने मे मौजूद नागेंद्र बेचैनी से इधर उधर पलट रहा था,
उसके दिमाग़ मे बार बार एक ही आवाज़ गूंज रही थी
तांत्रिक उलजुलूल कि आवाज़
"हे साँपो के राजा नागेंद्र मै तुझे श्राप देता हूँ तू अपनी सभी शक्ति खो देगा तेरी प्रेमिका कामवती सारा काम ज्ञान भूल जाएगी"
नाहीई...... ईईईई.... करता नागेंद्र उठ खड़ा होता है उसका दिलधाड़ धाड़ कर बज रहा था.
"नहीं नहीं ऐसा नहीं होने दूंगा उस श्राप को काटने का वक़्त आ गया है, अपनी शक्ति वापस पाने का वक़्त आ गया है "
ऐसा बोल वो ठाकुर के कमरे कि और बढ़ चलता है
क्या करेगा नागेंद्र?
ठाकुर सुहाग रात मना पायेगा?
ये सर्पटा कहाँ से आ धमका? रुखसाना से घुड़वती कि गंध क्यों आ रही है?
सवाल कई है जवाब मिलेगा
बने रहिये कथा जारी है.....