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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

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andypndy

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चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -20

सब कुछ शांत हो चूका था, जैसे कोई तूफान आ के गया हो.
ठाकुर साहेब कि सवारी विषरूप चल पड़ी थी, रंगा गिरफ्तार था, कामवती के गहने और इज़्ज़त दोनों लूटने से बच गई थी परन्तु इस बीच नागेंद्र ना जाने कहाँ गायब था वो ना होता तो कामवती कि कुंवारी खूबसूरत चिकनी चुत सबके सामने उघाडी हो गई होती.
कामवती ठाकुर और असलम के साथ उनकी गाड़ी मे बैठी थी.
डॉ. असलम :- अल्लाह का शुक्र है ठाकुर साहेब आज लूटने से बच गये वरना कोई अनहोनी हो जाती.
ठाकुर :- हाँ असलम देवता गण हम पे मेहरबान है, कल दरोगा वीरप्रताप को बुलावा भेजिएगा आखिर उनकी चालाकी और सजकता से ही हमारी पत्नी बच पाई है.
ऐसा कह वो कामवती कि तरफ देख मुस्कुरा देते है.
वही कामवती लालजोड़े मे आंख झुकाये,घुंघट मे सुंदरता छुपाये सोच रही थी उसे कुछ कुछ धुंधला नजर आ रहा था, लगता था जैसे ये सब पहले भी हुआ हो?
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वो नाग कौन था? मुझे उस से डर क्यों नहीं लग रहा था, जबकि कितना भयानक था वो?
कई सवाल कामवती के जहन मे कोंध रहे थे.
जिसका जवाब या तो नागेंद्र जनता था या फिर वक़्त.
सब कुछ शांत चल रहा था...


शांति तो रूपवती कि हवेली मे भी थी.
गांव घुड़पुर जहाँ वीरा अभी अभी रूपवती कि चुत और गांड को अपनी खुर्दरी जीभ से सहला रहा था, रूपवती जबरदस्त स्सखलन को प्राप्त कर वीरा के नीचे लेटी सांसे भर रही थी उसकी नजरों के सामने काला भयानक वीरा का लंड झूल रहा था.
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रूपवती कि नजर उसी लंड पे जमीं हुई थी, उसकी आंखे आश्चरय से फटी जा रही थी,
ये इंसान का लंड है या किसी घोड़े का?
इतना बड़ा लंड देख उसकी चुत कि खुजली बढ़ने लगी थी अभी अभी उसकी चुत ने बेतहाशा पानी बहाया था, काली चुत फिर रोने लगी.... जैसे कोई बच्चा अपनी पसंदीदा मिठाई के लिए रोता है आँखों से पानी बहाता है.
धीरे धीरे रूपवती अपने धड को ऊपर उठाती है, उसके स्तन आज़ाद थे, उसके उठने से हिल रहे थे जिनका बोझ उठाना ही मुश्किल था, रूपवती इन पहाड़ो को उठाये वीरा के लंड तक पहुंच गई थी, उसे छू के देखना था कि असली ही है या फिर कोई खिलौना, वो धीरे से अपना हाथ वीरा के बड़े लटके लंड पे रख देती है
वीरा इस मादक और कोमल छुआन से सिहर उठता है, हज़ारो साल बाढ़ उसके लंड पे किसी स्त्री का हाथ लगा था... आअह्ह्ह... उम्म्म्म...
रूपवती समझ जाती है कि वीरा भी यही चाहता है वो अपनी हथेली मे लंड को पकड़ने कि कोशिश करती है परन्तु वीरा का लोड़ा इतना मोटा था कि मुट्ठी मे बंद करना मुश्किल था,

वो अपने हाथ से जितना पकड़ सकती थी उतना पकडे ही हाथ ऊपर ले जाने लगी, जब हाथ लंड के जड़ तक पहुंच गया तो उसके हथेली से दो बड़ी बड़ी गेंद कि आकृति कि कोई चीज टकराती है,
"ये क्या है?"
रूपवती जिज्ञासावंश आंखे ऊपर कर के देखती है तो उसके तो होश ही फाकता हो जाते है, आंखे अपने कटोरे से निकलने को होती है... इतने बड़े टट्टे? हे भगवान इस शख्स के टट्टो मे कितना वीर्य होगा.
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कोतुहल से भरी टट्टो पे अपने दोनों हाथ रख देती है जैसे जाँच रही हो कि कितना वीर्य है इनमे.
टट्टे सहलाये जाने से वीरा के पुरे बदन मे सनसनी मच जाती है, उसका लंड अति उत्तेजना मे सीधा खड़ा हो झटके मारने लगता है, रूपवती भी लंड को मचलता देख अपनी चुत सहला देती है

आह्हः.... कैसी तड़प है ये, प्यास बुझ क्यों नहीं रही मेरी.
जितना पानी निकलता है उतना ही सहलाने का मन करता है चुत को.
अब रूपवती एक हाथ से चुत सहला रही थी और दूसरे हाथ से वीरा के बड़े टट्टे.
चुत सहलाये जाने से उसकी मादक मोटी काली गांड हिल रही थी, वीरा मुँह नीचे झुकाये रूपवती के खेल को देख रह था उसकी उत्तेजना कि कोई सीमा नहीं थी.
रूपवती वीरा के दोनों पैरो के बीच अपनी मादक गांड को हिलाती बैठ जाती है, उसे लंड का स्वाद चाहिए था अब अपनी नाक को वीरा के लंड कि नोक पे रख देती है और जोर से सांस खिंचती है एक मादक खुशबु बदन मे भरती चली जाती है, इस मादक खुशबू का असर चुत के अंदरूनी हिस्सों पे हो रहा था.. गांड खुल के बाहर आ रही थी.
ये उत्तेजक मादक महक एक मजबूत लंड ही दे सकता था.
रूपवती जीभ से लंड के आगे के चोड़े हिस्से को छू लेती है.

वीरा के लिए ये अहसास अद्भुत था, बरसो से सुखी बंजर भूमि पे पानी कि पहली बून्द थी.
ऊपर से रूपवती इस कदर हवस और मदकता मे खोई थी कि उसे सिर्फ लंड दिख रहा था बड़ा लंड.
अब इस लंड का मालिक कोई भी हो फर्क नहीं पड़ता, प्यासा कुवा, नदी, झरना नहीं सिर्फ पानी देखता है.
रूपवती जितना हो सकता था उतना मुँह खोल लेती है और वीरा के लंड को एक हाथ से पकड़ मुँह पे टिका लेती है लंड धीरे धीरे मुँह मे सरकाने लगती है.
रूपवती पहली बार कोई लंड ले रही थी, अब उसमे ये सब कला तांत्रिक का वीर्य पीने के बाद खुद ही विकसित हो गई थी वैसे भी हवस मे डूबा इंसान अपने आप नये नये तरीके कि खोज कर ही लेता है.
रूपवती धीरे धीरे मुँह को आगे पीछे करने लगती है, उसका एक हाथ अभी भी वीरा के टट्टे सहला रहा था. जीभ हलक से निकाल के टट्टो को गिला कर रही थी.
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ये वीरा कि उतीजना को बड़ा रहे थे,वीरा को अपना लंड किसी गरम गीले लावे मे धस्ता महसूस हो रहा था,. वो आंनद मे सिसकारिया भरे जा रहा था, नीचे रूपवती बेसुध लंड चूसने मे व्यस्त थी, कभी लंड चूसते चूसते जबान वीरा कि गांड टक भी पहुंच जाती
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उसके होंठो से रह रह के थूक लार कि शक्ल मे टपक रहा था, रूपवती थोड़ी हिम्मत दिखाती अपना मुँह लंड पे मार रही थी जैसे गन्ना बरसो बाद चूसने को मिला हो, मुँह मे लंड डाले जीभ से अगले हिस्से को कुरेद भी रही थी.... वीरा तो इतने सालो मे सम्भोग का सुख ही भूल गया था, उसकी सम्भोग कला को एक मादक काली हवस मे डूबी स्त्री जगा रही थी.
चूसते चूसते एक समय आया जब वीरा के लंड बिना किसी रोक टोक के गले तक उतर जा रहा था, जब गले से बाहर निकलता तो ढेर सारा थूक साथ ले आता वो थूक होंठो से गिरता स्तन को पूरी तरह भीगा चूका था, स्तन से होता चुत तक पहुंच रहा था.
जैसे कोई झरना स्तन रूपी पहाड़ से गिर के चुत, गांड रूपी खाई मे गिर रहा हो. रूपवती लगातार थूक और कामरस से भीगी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी अब भला ऊँगली लावा रोक सकती है, रूपवती उत्तेजना मे पागल हो गई थी उसे लंड चाहिए था अपनी चुत मे,
वो तुरंत खड़ी होती है और वीरा के के आगे दिवार पे हाथ रखे अपनी गांड वीरा के सामने खोल के खड़ी हो जाती है.
वीरा बरसो बाद किसी कामुक स्त्री से मिल रहा है वो समझ गया था कि दोनों कि प्यास सिर्फ इस गुफा मे घुसने से ही मिटेगी.

वीरा का लंड अब गांड पे इधर उधर छटपटा रहा था, रूपवती एक हाथ पीछे ले जा के वीरा के लंड को पकड़ गांड के बीच स्थित काली गहरी खाई मे रख देती है,
वीरा के लंड का टोपा इतना बड़ा था कि उसके घेराव मे चुत और गांड का छेद एक साथ आ रहे थे.
रूपवती तो लंड को अपने दोनों छेदो पे एक साथ महसूस कर रही थी उसके आनंद कि कोई सीमा नहीं थी वो अपनी बड़ी गांड थोड़ा सा हिलाती है जैसे वीरा को बोल रही हो कि मै तैयार हूँ तुम आगे बढ़ो.
वीरा भी समझ जाता है और थोड़ा आगे बढ़ता है परन्तु छेद छोटे लंड बड़ा कैसे घुसता... वीरा का लंड फिसलता हुआ गांड के छेद को रगड़ता कमर पे जा लगता है,
अब मजा तो इस रगड़ाई मे भी था, लेकिन चुत रगड़ाई के लिए नहीं सम्भोग के लिए बनी होती है, मादक हवस से भरी स्त्री अपनी चुत मे कुछ भी समा सकती है.
वीरा वापस पीछे को आ के अपना लंड दरार मे डालता है, फिर आगे होने लगता है लंड वापस फिसलने ही वाला था कि रूपवती तुरंत हाथ पीछे ले जा के गांड के दोनों हिस्सों को को जोर लगा के खिंचती है.
आअह्ह्ह..... एक भयानक चींख गूंज जाती है वातावरण मे. आअह्ह्ह..... वीरा
वीरा के लंड का टोपा फचक से चुत फाड़ता समा गया था अंदर, चुत अत्यंत गीली थी उसके बावजूद रूपवती को लगा कि जैसे वो कुंवारी है आज उसकी चुत फटी है
देखा जाये तो बात सही भी थी, ठाकुर ज़ालिम का 3इंच का लंड क्या खाक खोल पाया होगा रूपवती कि चुत को.
दर्द बर्दाश्त के बाहर था परन्तु आज दर्द पे हवस भारी थी, मदकता सवार थी.
रूपवती दिवार का सहारा लिए सांसे दुरुस्त कर ही रही थी कि... एक जबरदस्त झटका और लगा.
आअह्ह्ह.... मेरी बच्चेदानी आह्हः....
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वीरा को आज हज़ारो साल बाद चुत मिली थी वो सहन नहीं कर पाया था और बिना सोचे ही दूसरा झटका भी दे मारा... वीरा का लंड बच्चेदानी को चीर के सीधा अंदर ही प्रवेश कर गया था.
रूपवती कि चुत से खून छलछला उठा था.
आअह्ह्ह.... नहीं रुक जाओ
उत्तेजना उतरने लगी थी रूपवती कि.
लेकिन आज वीरा नहीं मानने का था और ना ही माना.
धक्के मारने लगा एक के बाद एक... धका धक धका धक रूपवती बेहोशी कि हालत मे आंखे बंद किये दर्द से चीखे जा रही थी ...

पीछे टप टप टप... करते वीरा के टट्टे रूपवती कि गांड पे पड़ रहे थे गांड थल थला रही थी, रूपवती कि हवस का केंद्र उसकी गांड ही थी,
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गांड ले पड़ते टट्टो कि मार से वो होश मे आने लगी उसने नीचे झुक के देखा तो पाया कि लंड जड़ तक उसकी चुत मे जा रहा था, जब वीरा का लंड अंदर जाता तो नाभी तक महसूस होता, और जब वीरा लंड बाहर खिंचता तो लगता जैसे बच्चेदानी भी चुत के रास्ते बाहर आ जाएगी.

ये सब एक अलग ही अहसास पैदा कर रहे थे रूपवती के बदन मे, उसका शरीर जल उठा, उत्तेजना उठने लगी
उसे इस सम्भोग मे आंनद आ रहा था सही मायनो मे आज उसका कोमर्या भंग हुआ था.
ऊपर से दो बॉल के आकर के टट्टे गांड पे किसी थप्पड़ कि तरह चटा चट पड़ रहे थे.

आह्हः.... ऐसे ही जोर से मार और जोर से.
वीरा हैरान था स्त्री कि ताकत पे कि जब चुत मे लेने पे आ जाये तो दुनिया के सम्पूर्ण लंड अपनी चुत मे डाल ले लेकिन उफ़ तक ना करे...
आअह्ह्ह...... वीरा कुछ कुछ घोड़े कि तरह आवाज़ निकाल रहा था.... वीरा और दम लगा के पेलने लगा पच पच पच कि आवाज़ से हवेली गूंज रही थी...
और जोर से.. रूपवती इस कदर हवस मे पागल थी कि 15 इंच लंड पूरा उसकी चुत मे था फिर भी उसे और चाहिए था.
वीरा भी उत्तेजना जोश से पागल हो चूका था उसे रोकना खुद कि मौत को दावत देने के बराबर था.
वीरा जोर दार तरीके से गच से पूरा लंड रूपवती कि चुत मे डाल के रुक जाता है, रूपवती बहुत ही आश्चर्य के साथ पीछे देखती है कि रुक क्यों गया वीरा, परन्तु जैसे ही वो ये जानने कि कोशिश करती है पीछे से एक जोड़ी हाथ उसके जांघो के निचली तरफ लिपट जाते है ओर एक ही झटके मे ऊपर उठा के उसकी पीठ को अपने सीने से चिपका लेता है, रूपवती दर्द से चीखती हवस मे डूबी नीचे को देखती है उसकी चुत मे 15 इंच का खुटा गड़ा हुआ था वो उसके लंड के सहारे टिकी हुई वीरा के बालदार सीने से लगी हुई थी.
अब आलम ये था कि वीरा रूपवती को अपने लंड पे बिठाये सीधा खड़ा था,
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रूपवती तो इस तरह के आसन से दोहरी हो गई लंड जितना हो सकता था उतना अंदर तक चला गया, उसकी सांसे टंग गई.
सांस भरती ही कि वीरा ने एक धक्का मार दिया नीचे से.... फिर क्या एक के बाद एक धका धक धका धक... रूपवती को अपने लंड पे उछाले जा रहा था.
ऐसा आंनद ऐसी कामुकता रूपवती पे भारी पड़ रही थी.
उसकी चुत से खून और पानी का मिला जुला रस टपक टपक के जमीन पे गिर रहा था.
वीरा मोटी काली काया को अपने लंड पे उछाल रहा था ऐसा कारनामा और कोई कर ही नहीं सकता था.

रूपवती के मजे का ठिकाना नहीं था... आह्हः... आह्हः.... करती अपने मोटे बड़े स्तनो को नोच रही थी, निप्पल मरोड़ रही थी. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इंसान उस जैसे भारी भरकम महिला को ऐसे उठा के चोद सकता है.
नीचे धचा धच लंड चोट मारे जा रहा था,1घंटे तक घिसने के बाद वीरा का धैर्य जवाब देने लगा वो बेचैन होने लगा लगातार सिसकारी मार रहा था.... रूपवती भी पसीने पसीने हो चुकी थी स्तन रगड़ रगड़ के लाल कर दिए थे.
उसे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी.... वो फट पड़ी
उसकी गांड से तेज़ हवा निकली फॉररर..... और चुत ने गर्म लावा उगलना शुरू कर लिया.
आह्हः.... मै गई... सफ़ेद रंग का गाड़ा पानी लंड को भिगोने लगा.
कामरस इतना गरम था कि वीरा भी सहन नहीं कर पाया.
और जोर से गुरराते हुए..जिसमे थोड़ी हिनहिनाहत जैसी आवाज़ थी .. बरसो पुराने वीर्य को निकालने लगा..
आअह्ह्ह....... ये क्या घोड़े जैसी आवाज़ कहाँ से आई ?
मोटे चिपचिपे गाढ़े वीर्य कि बौछार रूपवती कि चुत मे होने लगी, वीरा का वीर्य सीधा रूपवती कि बच्चेदानी मे ही भरने लगा आअह्ह्ह...।.... कितना गर्म है तेरा वीर्य लग रहा है जैसे किसी ने मेरे पेट मे लावा भर दिया है.
वीर्य निकले ही जा रहा था, फच फच फच..... करता वीरा चिल्ला पड़ा आअह्ह्हह्ह्ह्ह.........कामवती
ये क्या कामवती का नाम?
रूपवती कि बच्चेदानी पूरी तरह से वीर्य से भर चुकी थी... अपने उन्माद मे डूबी रूपवती ने उस शख्स के गले से निकली कामवती शब्द को सुन लिया था..
वीरा अभी भी इन सब से अनजान अपने स्सखालन को महसूस कर रहा था, एक आखरी बार वीर्य कि धार वो रूपवती कि चुत मे छोड़ता है..
आअह्ह्ह.... मेरी कामवती आह्हः...
और रूपवती को साथ लिए जमीन पे धाराशयी हो जाता है उसका लंड अभी भी रूपवती कि बच्चेदानी मे ही फसा हुआ था.
आह्हः..... करता सांसे भर रहा था रूपवती का भी यही हाल था परन्तु वो उस शख्स
के मुँह से कामवती का नाम सुन के हैरान भी थी.
उसका पेट फूल के बाहर निकल आया उसमे वीरा का वीर्य भरा पड़ा था बाहर आने कि कोई जगह नहीं थी चुत ने लंड को बुरी तरह जकड़ा हुआ था..

वीरा धीरे से आंखे खोलता है तो सामने रूपवती को देख उसकी चुत मे समाया लंड देख उसके होश उड़ जाते है
उन्माद ओर कामवासना मे आज वो अपने इंसानी रूप. मे आ गया था ओर रूपवती के साथ सहवास कर बैठा, इतने सालो से जो राज छुपा के रखा था वो खुल गया था.
रूपवती :- तुम कौन हो? और ये कामवती कौन है? तुम्हारे मुँह से सम्भोग करते वक़्त घोड़े जैसे आवाज़ क्यों आ रही थी?
मेरा घोड़ा वीरा कहाँ गया?
वीरा :- चुप चाप पड़ा रहता है.
रूपवती :- बोलो मेरी बात का जवाब दो, तुम मुझसे झूठ नहीं बोल सकते अभी भी तुम्हारा लंड मेरी चुत मे फसा हुआ है,कौन हो तुम?
वीरा :-मालकिन...... आखिर वीरा बोल ही देता है.
मालिकिन मै वीरा ही हूँ, मै इच्छाधारी घोड़ा हूँ ओर ये मेरा इंसानी रूप है.
मै कभी कभी रात को अपने इंसानी रूप मे ही विचरता हूँ.आपने मेरा जीवन बचाया उसके लिये मे जिंदगी भर आपका कर्ज़ादार, वफादार रहूंगा.मुझे माफ़ कर दीजिये मैंने आपके साथ सम्भोग किया.
रूपवती :- वीरा इसमें कर्जदार जैसी कोई बात नहीं है, और तुमने सम्भोग नहीं किया मैंने किया मै हवस मे पागल हो गई थी कई सालो से तड़प रही थी इस आग मे.
तुमने तो मेरी सेवा कि. तुम मुझे मालकिन बोलते हो तो मेरी सेवा करना तो तुम्हारा फर्ज़ है. ऐसा कह रूपवती मुस्कुरा देती है.
अभी तक वीरा का लंड, चुत मे ही फसा पड़ा था.
वीरा लंड को निकालने के लिए बाहर खिंचता है रूपवती को लगता है जैसे बच्चेदानी भी बाहर ही चली आएगी.
रूपवती :- कोई बात नहीं वीरा इसे अंदर ही रहने दो हमें अच्छा लग रहा है तुम्हारा लंड.
लेकिन जल्द ही मेरी जिज्ञासा शांत करो वीरा, तुम इंसानी रूप मै कैसे हो?और ये कामवती कौन है? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?
अब वीरा सुनाने जा रहा है कहानी नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी कि..
बने रहिये कथा जारी है 👍
 
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Nevil singh

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, चैप्टर -2 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -19

नागेंद्र कामवती कि जांघो पे लिपटा फूंकार रहा था भयानक रूप धारण किये हुआ था, इस से ज़्यदा वो कर भी क्या सकता था जहर तो बचा नहीं थी...
रंगा बिल्ला अचानक हमले से चौक जाते है और छीटक के कामवती को छोड़ देते है.
तभी एज़ आवाज़ गूंजती है घायययय...
एक गोली कही से चलती हुई बिल्ला कि बाहाँ को चीर देती है, सभी लोग अचानक होती घटना से अचंभित थे,
रंगा कुछ समझने लायक नहीं था, बिल्ला गोली के झटके से संतुलन खो कमरे कि खिड़की के पास जा गिरता है,
गोली दरोगा वीरप्रताप कि राइफल से निकली थी जो कि अपनी प्रतिज्ञा के चलते समय पे पहुंच चुके थे,
पीछे से दरोगा के आदमी भी भागते हुए वहाँ पहुंचते है.
हवलदार :- साहब रंगा बिल्ला के सभी आदमी मारे गये है.
दरोगा :- शाबास लखन शबास वो देखो इनके सरदार एक भीगी बिल्ली बना पड़ा है दूसरा गोली खा के मरने के कगार पे है.
हाहाहाहाहा... हाहाहाहा..
जोरदार ठहका लगा देता है उसे अपने सफलता पे अतिआत्मविश्वास हो चला था अपितु उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी आसानी से रंगा बिल्ला हाथ आ जायेंगे.
दरोगा :- देख लखन देख... जिन डाकुओ से सारा इलाका काँपता है, जिनका खौफ फैला हुआ है उन्हें हमने पकड़ लिया.
कब्जे मे लो सालो को....
लखन और उसके आदमी जैसे ही आगे बढ़ने को होते है
तभी अचानक खिड़की के पास एक साया प्रकट होता है निपट अँधेरी रात मे सिर्फ एक परछाई दिखती है.
परछाई बिल्ला को पकड़ती है और रस्सी के सहारे खिड़की से नीचे कुदा देता है साथ ही खुद भी गायब.
दरोगा के आदमी जब तक पहुंचते बिल्ला और परछाई गायब... बचता है सिर्फ रंगा.
लखन :- साहेब यहाँ तो कोई नहीं है लगता है बिल्ला भाग गया.
दरोगा :- कोई बात नहीं रंगा तो हाथ आया बिल्ला को तो वैसे ही गोली लगी है ज्यादा दिन नहीं जी पायेगा. हाहाहाहाा.....
दरोगा वीरप्रताप बहुत ख़ुश था उसनेअपने जीवन का मुकाम हाशिल कर लिया था बिल्ला घायल मारने को था रंगा उसकी गिरफ्त मे था.
वीर प्रताप कामयाब हो चूका था....

यहाँ रामनिवास के घर पे मंगूस को भी कामयाब होना था लेकिन कैसे हो रतीवती तो काम कि देवी थी हार कहाँ मानती थी, जितना चोदो सब कम है....
मंगूस :- मुझे कामयाब होना है तो इस स्त्री को काबू करना ही होगा, ये सोच के मंगूस रतीवती को उल्टा पटक देता है और उसके ऊपर सवार हो जाता है.
उसका लंड अभी भी रतीवती कि गांड मे घुसा हुआ था पूरा जड़ तक टपा टप मारे जा था, रतीवती कामुक आहे भर रही थी वो तो कब से इसी अग्नि मे जल रही थी, वो भी अपनी गांड मंगूस के लंड पे पटक रही थी.
रतीवती :- जो भी है ये शख्स कमाल का है गांड कि खुजली मिट रही है.
मंगूस :- हे भगवान क्या स्त्री है स्सखालित होने का नाम ही नहीं लेती.... फच फच पच कि आवाज़ करता चुत से पानी का सागर छलके जा रहा था जिसे रतीवती अपना हाथ डाले रोकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी.चुत के दाने को घिसी जा रही थी, इसे अपनी चुत रुपी नदी पे बाँध बनाना था, परन्तु भला कभी कोई हवस को रोक पाया है जो आज रतीवती रोकती

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मंगूस अब देर नहीं कर सकता था,
वो कामअग्नि मे जलती रतीवती को बिस्तर से नीचे पलट देता है उसका सर नीचे और गांड बिस्तर के सहारे ऊपर को थी.
इस कला ऐसे आसन से रतीवती घन घना गई और उत्तेजना मे एक पानी का फव्वारा मार दिया जो ऊपर उछल वापस नीचे आ के सीधा रतीवती के मुँह मे गिरा, खुद कि चुत का पानी पी के रतीवती तृप्त होने लगी आंखे बंद किये स्वाद ही ले रही थी कि गरम पानी छोड़ती चुत मे मोटा सा कुछ सरकने लगा, और धीरे धीरे जा बच्चेदानी से जा लगा ये वही खूबसूरत बच्चेदानी है जहाँ से कामवती जैसी अप्सरा निकली है..
रतीवती सिसकारी मारती आंखे खोलती है मनहूस पूरी तरह उसकी चुत ने लंड फ़साये खड़ा रहा
रतीवती नीचे से मंगूस का गोरा लंड अपनी चुत मे धसा देख पा रही थी...
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आअह्ह्ह..... चोदो मुझे रहा नहीं जा रहा कस के चोदो फाड़ दो चुत
मंगूस गचा गच चुत मे लंड पिरोये जा रहा था, ऐसी उत्तेजक और गरम चिकनी पानी से भरी चुत रोज़ नहीं मिला करती.
नीचे रतीवती सर पटक रही थी, अपने स्तन नोच रही थी मांग मे सिदुर लगाए माथे पे बिंदी सजाये एक कामुक औरत को और क्या चाहिए.
मंगूस अब तेज़ हो चूका था पूरी रफ़्तार से चुत मारे जा रहा था टप थप थप.... कि आवाज़ गूंज रही थी.
गांड का छेद खुल बंद हो रहा था,मंगूस गांड पे ढेर सारा थूक देता है और उस थूक को ऊँगली से गांड के छेद के चारो तरफ फैलाने लगता है..
आअह्ह्ह...... इस अहसास ने तो जान ही ले ली रतीवतीं कि. भयंकर सिसकारी कि गरजना उठीं थी रतीवती के मुँह से.
मंगूस :- लगता है यही है इसका कमजोर बिंदु.
ऐसा सोच वो पक से एक ऊँगली गांड मे डाल देता है और गांड को अंदर से कुरेदने लगता है. चुत मे पड़ते लंड और गांड मे घुसी ऊँगली एक अलग ही गुदगुदी मचा रही थी,चुत से निकलता करंट नाभी को भेद रहा था.
रतीवती उत्तेजना के उन्माद मे गांड ऊपर कि और धकेल रही थी चाहती थी कि गांड कि जड़ तक कुछ पहुंच जाये.
तड़प रही थी, बेचैन थी उसे वो चरम सुख चाहिए था जिसका परिचय डॉ. असलम से मिला था लेकिन ये कुछ अलग था कुछ नया था.
जहाँ डॉ. असलम पे रतीवती हावी रहती थी वही आज मंगूस भारी था काम कला का अलग सबक सिख़ रही थी रतीवती.
चुत से निकलते पानी को मंगूस अच्छे से हाथ मे लपेट लेता है और एक तीखी आवाज़ धक फच केसाथ गांड का छेद बड़ा होता चला जाता है मंगूस कलाई तक हाथ पूरा गांड मे उतार चूका था.
आअह्ह्हम...... ये क्या किया आहहहह मरी मै रतीवती सिहर उठी उन्माद मे जोर से चीख पड़ी परन्तु ये चीख किसी के कान तक ना पहुंच सकी सब थके हारे गहरी नींद मे थे ....
गहरी तो रतीवती कि गांड भी थी, मंगूस लंड का धक्का रोक चूका था लंड सिर्फ अंदर बच्चेदानी के साथ चुम्बन कि अवस्था मे था परन्तु मंगूस का हाथ कहर ढा रहा था आज इस मादक स्त्री पे.
मंगूस अपना हाथ गांड ने घुसाए अंदर मुठी ने गांड के मांस को टटोल रहा था, भींच रहा रहा नोच रहा था.
पांचो उंगलियां गांड से खेल रही थी वो भी अंदर... लगता था जैसे मंगूस किसी संकरे खड्डे मे हाथ डाले मछली पकड़ रहा हो, कभी पकड़ाई अति तो कभी हाथ से छूटजाती..
रतीवती बेसुध हो गई थी, पसीने से लाल सिदूर चेहरे पे फ़ैल गया था, स्तन तेज़ी से ऊपर नीचे हो रहे थे. ऐसा सुख वो भी गांड के रास्ते ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं.
रतीवती मंगूस का हाथ पकड़ लेती है, उसपे दबाव बनाने लगती है जैसे कह रही हो और अंदर डालों भींच लो पकड़ के.... आअह्ह्ह.... सिसकारी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी.
मंगूस गांड के मांस को अंदर से पकड़ के थोड़ा बाहर खिंचता फिर छोड़ देता... रतीवती तो दोहरी ही होती जा रही थी, अब लंड भी चल पड़ा था इसी रास्ते पे...
चुत और गांड के बीच सिर्फ एक पतली से चमड़ी ही थी... चुत मे जाते लंड को मंगूस का हाथ गांड से ही महसूस कर रहा था. वो गांड मे हाथ डाले ही खुद के लंड को पकडडने कि कोशिश करने लगता है.... ऐसा मजा ऐसा सुख रतीवती सहन ही ना कर सकी.... भरभरा के फछाक से सफ़ेद पानी के फव्वारा चुत से निकल पड़ता है, फव्वारा इतना प्रेशर से निकलता है कि अंदर घुसे लंड को बाहर फेंक देता है.... रतीवती कि चुत काँपे जा रही थी... गांड को इतनी जोर से भींच लिया था कि मंगूस का हाथ अंदर ही फस गया थ.... गांड मे हाथ फ़साये मंगूस रतीवती के बदन मे होते झटको को महसूस कर रहा था.
चुत से पानी निकल निकल के सीधा रतीवती के मुँह मे गिर रहा था क्युकी उसका मुँह नीचे और गांड ऊपर थी..
बेसुध अपनी चरम अवस्था को महसूस करती रतीवती मुँह खोले पड़ी थी उसकी आंखे बंद हो चुकी थी लगता था अब नहीं उठेगी.
मंगूस धीरे से पुक कि आवाज़ के साथ गांड से अपना हाथ बाहर निकलता है अब वहाँ बड़ा से द्वार खुल चूका था.
बेहोशी कि हालत मे पड़ी रतीवती को कोई सुध नहीं थी कि उसके जिस्म से सोने के गहने खुलते चले जा रहे है....
सोने के कंगन, मंगलसूत्र, कान कि बलिया... सब उतरने लगे.
मंगूस को अपना खजाना मिल चूका था और रतीवती भी चरमसुःख का खजाना प्राप्त कर चुकी थी...
धीरे से दरवाज़ा खुलता है और जैसे अँधेरे से पैदा हुआ था वैसे ही अँधेरे मे गायब....
मंगूस अपने घर जा रहा था!
कही और भी घोर अँधेरे मे एक साया बिल्ला को थामे लड़खड़ाते लिए चले जा रहा था. बाह मे गोली धसी हुई थी, लगातार खून बहे जा रहा था, लगता था बिल्ला अब मरा कि तब मरा.
मालिक कुछ नहीं होगा आपको? मै हूँ ना?
आप मर नहीं सकते.
तो क्या बिल्ला मर जायेगा?
और मंगूस कहाँ चल दिया? कहाँ रहता है मंगूस?
कथा जारी है... बने रहिये
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Nevil singh

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चैप्टर -2 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -20

सब कुछ शांत हो चूका था, जैसे कोई तूफान आ के गया हो.
ठाकुर साहेब कि सवारी विषरूप चल पड़ी थी, रंगा गिरफ्तार था, कामवती के गहने और इज़्ज़त दोनों लूटने से बच गई थी परन्तु इस बीच नागेंद्र ना जाने कहाँ गायब था वो ना होता तो कामवती कि कुंवारी खूबसूरत चिकनी चुत सबके सामने उघाडी हो गई होती.
कामवती ठाकुर और असलम के साथ उनकी गाड़ी मे बैठी थी.
डॉ. असलम :- अल्लाह का शुक्र है ठाकुर साहेब आज लूटने से बच गये वरना कोई अनहोनी हो जाती.
ठाकुर :- हाँ असलम देवता गण हम पे मेहरबान है, कल दरोगा वीरप्रताप को बुलावा भेजिएगा आखिर उनकी चालाकी और सजकता से ही हमारी पत्नी बच पाई है.
ऐसा कह वो कामवती कि तरफ देख मुस्कुरा देते है.
वही कामवती लालजोड़े मे आंख झुकाये,घुंघट मे सुंदरता छुपाये सोच रही थी उसे कुछ कुछ धुंधला नजर आ रहा था, लगता था जैसे ये सब पहले भी हुआ हो?
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वो नाग कौन था? मुझे उस से डर क्यों नहीं लग रहा था, जबकि कितना भयानक था वो?
कई सवाल कामवती के जहन मे कोंध रहे थे.
जिसका जवाब या तो नागेंद्र जनता था या फिर वक़्त.
सब कुछ शांत चल रहा था...


शांति तो रूपवती कि हवेली मे भी थी.
गांव घुड़पुर जहाँ वीरा अभी अभी रूपवती कि चुत और गांड को अपनी खुर्दरी जीभ से सहला रहा था, रूपवती जबरदस्त स्सखलन को प्राप्त कर वीरा के नीचे लेटी सांसे भर रही थी उसकी नजरों के सामने काला भयानक वीरा का लंड झूल रहा था.
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रूपवती कि नजर उसी लंड पे जमीं हुई थी इतना बड़ा लंड देख उसकी चुत कि खुजली बढ़ने लगी थी अभी अभी उसकी चुत ने बेतहाशा पानी बहाया था, काली चुत फिर रोने लगी.... जैसे कोई बच्चा अपनी पसंदीदा मिठाई के लिए रोता है आँखों से पानी बहाता है.
धीरे धीरे रूपवती अपने धड को ऊपर उठाती है, उसके स्तन आज़ाद थे, उसके उठने से हिल रहे थे जिनका बोझ उठाना ही मुश्किल था, रूपवती इन पहाड़ो को उठाये वीरा के लंड तक पहुंच गई थी, उसे छू के देखना था कि असली ही है या फिर कोई खिलौना, वो धीरे से अपना हाथ वीरा के बड़े लटके लंड पे रख देती है
वीरा इस मादक और कोमल छुआन से हिनहिना उठता है, हज़ारो साल बाढ़ उसके लंड पे किसी स्त्री का हाथ लगा था... हीहीननननननन....
रूपवती समझ जाती है कि वीरा भी यही चाहता है वो अपनी हथेली मे लंड को पकड़ने कि कोशिश करती है परन्तु घोड़े का लोड़ा इतना मोटा था कि मुट्ठी मे बंद करना मुश्किल था,
वो अपने हाथ से जितना पकड़ सकती थी उतना पकडे ही हाथ ऊपर ले जाने लगी, जब हाथ लंड के जड़ तक पहुंच गया तो उसके हथेली से दो बड़ी बड़ी गेंद कि आकृति कि कोई चीज टकराती है,
"ये क्या है?"
रूपवती जिज्ञासावंश सर नीचे कर के देखती है तो उसके तो होश ही फाकता हो जाते है, आंखे अपने कटोरे से निकलने को होती है... इतने बड़े टट्टे? हे भगवान वीरा के टट्टो मे कितना वीर्य होगा.
कोतुहल से भरी टट्टो पे अपने दोनों हाथ रख देती है जैसे जाँच रही हो कि कितना वीर्य है इनमे.
टट्टे सहलाये जाने से वीरा के पुरे बदन मे सनसनी मच जाती है, उसका लंड अति उत्तेजना मे सीधा खड़ा हो झटके मारने लगता है, रूपवती भी लंड को मचलता देख अपनी चुत सहला देती है आह्हः.... कैसी तड़प है ये, प्यास बुझ क्यों नहीं रही मेरी.
जितना पानी निकलता है उतना ही सहलाने का मन करता है चुत को.
अब रूपवती एक हाथ से चुत सहला रही थी और दूसरे हाथ से वीरा के बड़े टट्टे.
चुत सहलाये जाने से उसकी मादक मोटी काली गांड हिल रही थी, वीरा गर्दन पीछे किये रूपवती के खेल को देख रह था उसकी उत्तेजना कि कोई सीमा नहीं थी.
रूपवती वीरा के चारो पैरो के बीच अपनी मादक गांड को हिलाती बैठ जाती है, उसे लंड का स्वाद चाहिए था अब अपनी नाक को वीरा के लंड कि नोक पे रख देती है और जोर से सांस खिंचती है एक मादक खुशबु बदन मे भरती चली जाती है, इस मादक खुशबू का असर चुत के अंदरूनी हिस्सों पे हो रहा था.. गांड खुल के बाहर आ रही थी.
ये उत्तेजक मादक महक एक मजबूत लंड ही दे सकता था.
रूपवती जीभ से लंड के आगे के चोड़े हिस्से को छू लेती है.
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वीरा के लिए ये अहसास अद्भुत था, बरसो से सुखी बंजर भूमि पे पानी कि पहली बून्द थी.
ऊपर से रूपवती इस कदर हवस और मदकता मे खोई थी कि उसे सिर्फ लंड दिख रहा था बड़ा लंड.
अब इस लंड का मालिक इंसान है या कोई घोड़ा कोई फर्क नहीं पड़ता, प्यासा कुवा, नदी, झरना नहीं सिर्फ पानी देखता है.
रूपवती जितना हो सकता था उतना मुँह खोल लेती है और वीरा के लंड को एक हाथ से पकड़ मुँह पे टिका लेती है लंड धीरे धीरे मुँह मे सरकने लगता है.
रूपवाती पहली बार कोई लंड ले रही थी, अब उसमे ये सब कला तांत्रिक का वीर्य पीने के बाद खुद ही विकसित हो गई थी वैसे भी हवस मे डूबा इंसान अपने आप नये नये तरीके कि खोज कर ही लेता है.
रूपवती धीरे धीरे मुँह को आगे पीछे करने लगती है, उसका एक हाथ अभी भी वीरा के टट्टे सहला रहा था.
ये वीरा कि उतीजना को बड़ा रहे थे,वीरा को अपना लंड किसी गरम गीले लावे मे धस्ता महसूस हो रहा था,. वो आंनद मे हीनहिनाये जा रहा था, नीचे रूपवती बेसुध लंड चूसने मे व्यस्त थी उसके होंठो से रह रह के थूक लार कि शक्ल मे टपक रहा था, रूपवती थोड़ी हिम्मत दिखाती अपना मुँह लंड पे मार रही थी जैसे गन्ना बरसो बाद चूसने को मिला हो, मुँह मे लंड डाले जीभ से अगले हिस्से को कुरेद भी रही थी.... वीरा तो इतने सालो मे सम्भोग का सुख ही भूल गया था, उसकी सम्भोग कला को एक मादक काली हवस मे डूबी स्त्री जगा रही थी.
चूसते चूसते एक समय आया जब वीरा के लंड बिना किसी रोक टोक के गले तक उतर जा रहा था, जब गले से बाहर निकलता तो ढेर सारा थूक साथ ले आता वो थूक होंठो से गिरता स्तन को पूरी तरह भीगा चूका था, स्तन से होता चुत तक पहुंच रहा था.
जैसे कोई झरना स्तन रूपी पहाड़ से गिर के चुत, गांड रूपी खाई मे गिर रहा हो. रूपवती लगातार थूक और कामरस से भीगी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी अब भला ऊँगली लावा रोक सकती है, रूपवती उत्तेजना मे पागल हो गई थी उसे लंड चाहिए था अपनी चुत मे,
वो तुरंत खड़ी होती है और वीरा के मुँह के आगे दिवार पे हाथ रखे अपनी गांड वीरा के सामने खोल के खड़ी हो जाती है.
वीरा बरसो बाद किसी कामुक स्त्री से मिल रहा है वो समझ गया था कि दोनों कि प्यास सिर्फ इस गुफा मे घुसने से ही मिटेगी.
वीरा हिनहिनाता पीछे के दो पैरो पे खड़ा हो आगे के दो पैर सामने दिवार पे रूपवती के ऊपर टिका देता है.
उसका लंड अब गांड पे इधर उधर छटपटा रहा था, रूपवती एक हाथ पीछे ले जा के वीरा के लंड को पकड़ गांड के बीच स्थित काली गहरी खाई मे रख देती है,
वीरा के लंड का टोपा इतना बड़ा था कि उसके घेराव मे चुत और गांड का छेद एक साथ आ रहे थे.
रूपवती तो लंड को अपने दोनों छेदो पे एक साथ महसूस कर रही थी उसके आनंद कि कोई सीमा नहीं थी वो अपनी बड़ी गांड थोड़ा सा हिलाती है जैसे वीरा को बोल रही हो कि मै तैयार हूँ तुम आगे बढ़ो.
वीरा भी समझ जाता है और थोड़ा आगे बढ़ता है परन्तु छेद छोटे लंड बड़ा कैसे घुसता... वीरा का लंड फिसलता हुआ गांड के छेद को रगड़ता कमर पे जा लगता है,
अब मजा तो इस रगड़ाई मे भी था, लेकिन चुत रगड़ाई के लिए नहीं सम्भोग के लिए बनी होती है, मादक हवस से भरी स्त्री अपनी चुत मे कुछ भी समा सकती है.
वीरा वापस पीछे को आ के अपना लंड दरार मे डालता है, फिर आगे होने लगता है लंड वापस फिसलने ही वाला था कि रूपवती तुरंत हाथ पीछे ले जा के गांड के दोनों हिस्सों को को जोर लगा के खिंचती है.
आअह्ह्ह..... एक भयानक चींख गूंज जाती है वातावरण मे. आअह्ह्ह..... वीरा
वीरा के लंड का टोपा फचक से चुत फाड़ता समा गया था अंदर, चुत अत्यंत गीली थी उसके बावजूद रूपवती को लगा कि जैसे वो कुंवारी है आज उसकी चुत फटी है
देखा जाये तो बात सही भी थी, ठाकुर ज़ालिम का 3इंच का लंड क्या खाक खोल पाया होगा रूपवती कि चुत को.
दर्द बर्दाश्त के बाहर था परन्तु आज दर्द पे हवस भारी थी, मदकता सवार थी.
रूपवती दिवार का सहारा लिए सांसे दुरुस्त कर ही रही थी कि... एक जबरदस्त झटका और लगा.
आअह्ह्ह.... मेरी बच्चेदानी आह्हः.... वीरा,

वीरा को आज हज़ारो साल बाद चुत मिली थी वो सहन नहीं कर पाया था और बिना सोचे ही दूसरा झटका भी दे मारा... वीरा का लंड बच्चेदानी को चीर के सीधा अंदर ही प्रवेश कर गया था.
रूपवती कि चुत से खून छलछला उठा था.
आअह्ह्ह.... नहीं वीरा नहीं रुक जा....
उत्तेजना उतरने लगी थी रूपवती कि.
लेकिन आज वीरा नहीं मानने का था और ना ही माना.
धक्के मारने लगा एक के बाद एक... धका धक धका धक रूपवती बेहोशी कि हालत मे आंखे बंद किये दर्द से चीखे जा रही थी ...
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पीछे टप टप टप... करते वीरा के टट्टे रूपवती कि गांड पे पड़ रहे थे गांड थल थला रही थी, रूपवती कि हवस का केंद्र उसकी गांड ही थी,
गांड ले पड़ते टट्टो कि मार से वो होश मे आने लगी उसने नीचे झुक के देखा तो पाया कि लंड जड़ तक उसकी चुत मे जा रहा था, जब वीरा का लंड अंदर जाता तो नाभी तक महसूस होता, और जब वीरा लंड बाहर खिंचता तो लगता जैसे बच्चेदानी भी चुत के रास्ते बाहर आ जाएगी.
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ये सब एक अलग ही अहसास पैदा कर रहे थे रूपवती के बदन मे, उसका शरीर जल उठा, उत्तेजना उठने लगी
उसे इस सम्भोग मे आंनद आ रहा था सही मायनो मे आज उसका कोमर्या भंग हुआ था.
ऊपर से दो बॉल के आकर के टट्टे गांड पे किसी थप्पड़ कि तरह चटा चट पड़ रहे थे.

आह्हः.... वीरा शाबास वीरा ऐसे ही जोर से मार और जोर से.
वीरा हैरान था स्त्री कि ताकत पे कि जब चुत मे लेने पे आ जाये तो दुनिया के सम्पूर्ण लंड अपनी चुत मे डाल ले लेकिन उफ़ तक ना करे...
हिमनन.... हिनननन.... करता वीरा और दम लगा के पेलने लगा पच पच पच कि आवाज़ से हवेली गूंज रही थी...
वीरा और जोर से.. रूपवती इस कदर हवस मे पागल थी कि 15 इंच लंड पूरा उसकी चुत मे था फिर भी उसे और चाहिए था.
वीरा भी उत्तेजना जोश से पागल हो चूका था उसे रोकना खुद कि मौत को दावत देने के बराबर था.
वीरा जोर दार तरीके से गच से पूरा लंड रूपवती कि चुत मे डाल के रुक जाता है, रूपवती बहुत ही आश्चर्य के साथ पीछे देखती है कि रुक क्यों गया वीरा, परन्तु जैसे ही वो पीछे देखती है वीरा पिछली टांगो पे पूरा खड़ा होने लगता है, रूपवती जिसकी चुत मे 15 इंच का खुटा गड़ा हुआ था वो उसके लंड के साथ ही ऊपर उठती चली जाती है.
अब आलम ये था कि वीरा रूपवती को अपने लंड पे बिठाये सीधा खड़ा था,
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रूपवती तो इस तरह के आसन से दोहरी हो गई लंड जितना हो सकता था उतना अंदर तक चला गया, उसकी सांसे टंग गई.
सांस भरती ही कि वीरा ने एक धक्का मार दिया नीचे से.... फिर क्या एक के बाद एक धका धक धका धक... रूपवती को अपने लंड पे उछाले जा रहा था.
ऐसा आंनद ऐसी कामुकता रूपवती पे भारी पड़ रही थी.
उसकी चुत से खून और पानी का मिला जुला रस टपक टपक के जमीन पे गिर रहा था.
वीरा मोटी काली काया को अपने लंड पे उछाल रहा था ऐसा कारनामा और कोई कर ही नहीं सकता था.
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रूपवती के मजे का ठिकाना नहीं था... आह्हः... आह्हः.... वीरा करती अपने मोटे बड़े स्तनो को नोच रही थी, निप्पल मरोड़ रही थी.
नीचे धचा धच लंड चोट मारे जा रहा था,1घंटे तक घिसने के बाद वीरा का धैर्य जवाब देने लगा वो बेचैन होने लगा लगातार हिनहिना रहा था.... रूपवती भी पसीने पसीने हो चुकी थी स्तन रगड़ रगड़ के लाल कर दिए थे.
उसे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी.... वो फट पड़ी
उसकी गांड से तेज़ हवा निकली फॉररर..... और चुत ने गर्म लावा उगलना शुरू कर लिया.
आह्हः.... वीरा वीरा मै गई... सफ़ेद रंग का गाड़ा पानी लंड को भिगोने लगा.
कामरस इतना गरम था कि वीरा भी सहन नहीं कर पाया.
और जोर से हिनहिनाते हुए.... बरसो पुराने वीर्य को निकालने लगा..
आअह्ह्ह....... ये क्या इस बार हिनहिनाया नहीं?
मोटे चिपचिपे गाढ़े वीर्य कि बौछार रूपवती कि चुत मे होने लगी, वीरा का वीर्य सीधा रूपवती कि बच्चेदानी मे ही भरने लगा आअह्ह्ह...।.... वीरा कितना गर्म है तेरा लग रहा है जैसे किसी ने मेरे पेट मे लावा भर दिया है.
वीर्य निकले ही जा रहा था, फच फच फच..... करता वीरा चिल्ला पड़ा आअह्ह्हह्ह्ह्ह..... काआममममवती.
ये क्या इंसानी आवाज़ मे कामवती नाम?
रूपवती कि बच्चेदानी पूरी तरह से वीर्य से भर चुकी थी... अपने उन्माद मे डूबी रूपवती ने वीरा के गले से निकली इंसानी आवाज़ को सुन लिया था..
वीरा अभी भी इन सब से अनजान अपने स्सखालन को महसूस कर रहा था, एक आखरी बार वीर्य कि धार वो रूपवती कि चुत मे छोड़ता है..
आअह्ह्ह.... मेरी कामवती आह्हः...
और नीचे जमीन मे धाराशयी हो जाता है उसका लंड अभी भी रूपवती कि बच्चेदानी मे ही फसा हुआ था.
आह्हः..... करता सांसे भर रहा था रूपवती का भी यही हाल था परन्तु वो वीरा के मुँह से इंसानी आवाज़ सुन के हैरान भी थी.
उसका पेट फूल के बाहर निकल आया उसमे वीरा का वीर्य भरा पड़ा था बाहर आने कि कोई जगह नहीं थी चुत ने लंड को बुरी तरह जकड़ा हुआ था..

वीरा धीरे से आंखे खोलता है तो सामने रूपवती को देख उसकी चुत मे समाया लंड देख उसके होश उड़ जाते है
उन्माद मे वो क्या बोल गया था, इतने सालो से जो राज छुपा के रखा था वो खुल गया था.
रूपवती :- वीरा ये तुम ही हो ना? और ये कामवती कौन है?
वीरा :- चुप चाप पड़ा रहता है.
रूपवती :- बोलो वीरा अब छुपाने का कोई फायदा नहीं मुझे पता है तुम इंसानी भाषा बोल सकते हो, लेकिन कैसे? कौन हो तुम? तुम तो मुझे मरणासन अवस्था मे जंगल मे मिले थे.
वीरा :-मालकिन...... आखिर वीरा बोल ही देता है.
मालिकिन मै वीरा ही हूँ आपने मेरा जीवन बचाया उसके लिये मे जिंदगी भर आपका कर्ज़ादार, वफादार रहूंगा.मुझे माफ़ कर दीजिये मैंने आपके साथ सम्भोग किया.
रूपवती :- वीरा इसमें कर्जदार जैसी कोई बात नहीं है, और तुमने सम्भोग नहीं किया मैंने किया मै हवस मे पागल हो गई थी कई सालो से तड़प रही थी इस आग मे.
तुमने तो मेरी सेवा कि. तुम मुझे मालकिन बोलते हो तो मेरी सेवा करना तो तुम्हारा फर्ज़ है. ऐसा कह रूपवती मुस्कुरा देती है.
अभी तक वीरा का लंड, चुत मे ही फसा पड़ा था.
वीरा लंड को निकालने के लिए बाहर खिंचता है रूपवती को लगता है जैसे बच्चेदानी भी बाहर ही चली आएगी.
रूपवती :- कोई बात नहीं वीरा इसे अंदर ही रहने दो हमें अच्छा लग रहा है तुम्हारा लंड.
लेकिन जल्द ही मेरी जिज्ञासा शांत करो वीरा, तुम बोल कैसे सकते हो? और ये कामवती कौन है? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?
अब वीरा सुनाने जा रहा है कहानी कामवती कि..
बने रहिये कथा जारी है 👍
Jakash update mitr
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Jabarjust or dhasu Update bhai.
Ye dil mange more
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Bhai bohot hi majedar Or kmuk update tha ghode wala to. Maja aagaya. Waiting for more update Agale update Ki pratiksha me .
 
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जबरदस्त अपडेट है । रूपवती की जबरदस्त चुदाई की बीरा ने । अब बीरा रूपवती को जो कहानी सुनाने जा रहा है । उस को सुनने की उत्सुकता सभी पाठकों को है
 
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