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Incest डॉक्टर का फुल पारिवारिक धमाका

Avi Naik

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“कोमल दीदी"

भाग – 8


“कहो ना रेशु.. जो कहना हे कहो”... दीदी की सांसो में भारीपन लग रहा था। “दीदी आप इस साडी में बहुत सेक्सी लग रही हो”.. मेरा दायां हाथ जो दीदी की पीठ पर था उससे दीदी के ब्लाउज़ को खींचकर उसमें एक उंगली डाल दी और उसे हलके से खींच कर दीदी के पूरे शोल्डर पर किस करने लगा। दीदी का ब्लाउज अब दीदी के शोल्डर के किनारे आ चुका था और में अब शोल्डर से हल्का हल्का नीचे दीदी के बूब्स की और आ रहा था तभी दीदी ने कहा..”रेशु..मुझे नहीं लगता तुम्हे अब और ठण्डी लगनी चहिये”.. . दीदी ने कहा। मै अब दीदी से हल्का सा अलग हुआ और दीदी को देखा, दीदी के बाल बिखरे हुए थे, कुछ लट उनके गाल पर भी आ रही थी। दीदी ने मेरी आंखों में देखा और मैंने भी दीदी की आँखों में देखा और मैंने सोचा कहीं दीदी यह सब बंद न करवा दे तो मैंने दीदी से कहा...“दीदी मुझे अब भी ठण्ड लग रही है”। दीदी मेरी और देखती रही और फिर हल्का सा मुस्कुरायी और कहा की अगर और ठण्डी लग रही है तो कुछ और ओढ़ लो”। तो मुझे ना चाहते हुए भी दीदी से अलग होना पडा, पर दीदी से मैंने एक बात पूछ ली,“दीदी एक रिक्वेस्ट करू”?”हा..बोलो ना”. .“दीदी..आप तीन दिन यही पर रुक जाइये ना। अब आपके साथ मज़ा आने लगा है”.. मैंने दीदी से स्माइल के साथ कहा और दीदी भी मना नहीं कर सकी।

मैं खुश तो हुआ पर दीदी से अलग नहीं होना चाहता था लेकिन मुझे अलग होना पडा। मेरा मुँह लटक चुका था, दीदी ने यह देखा और हंस पड़ी मैं फिर दीदी से साइड में हटा और अपने ऊपर से कम्बल हटा दिया..जान बूझ कर मैंने कम्बल हटाया और दीदी को मेरे शॉर्ट्स में बना हुआ टेंट दिखाया। उनकी नज़र मेरे तंबू पर ही थी, मैं उन्हें देख रहा था दीदी ने फिर अपना ध्यान हटाया और कहा “क्यूँ अब ठण्ड नहीं लग रही”...? “नही..अब ठण्ड नहीं लग रही”.. और मैंने मुँह दूसरी तरफ लेते हुए कहा। दीदी फ़टाक से मेरी और पलटी और मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपनी और खींचा और इस बार मैं ठीक उनके ऊपर आ गया और वो मेरे ठीक नीचे और उन्होंने मेरे दोनों गालों को दोनों हाथों से पकड़ा और कहा “रेशु.. अब मुझे ठण्ड लग रही है। क्या तुम थोड़ी देर ऐसे ही मुझसे चिपके रहोगे..प्लीज? लेकिन प्लीज चुमना मत, सिर्फ लेटे रहो”...

ओह माय गॉड मैं तो सरप्राइज के मारे मानो सातवे आसमान में था और इसे एक ख्वाब मानते हुए में दीदी के ऊपर ही लेट गया। हालाँकि मन तो बहुत किया की दीदी को बस दबोच लू पर फिर मैंने अपने आप पर काबू किया और बस लेटा रहा। मै दीदी के ऊपर ही लेटा था लेकिन इस ख़ूबसूरत शॉक के मारे एक ग़लती हो गयी, जैसे ही मैं दीदी के ऊपर लेटा था वैसे ही मैंने दीदी के बारे में मन में खयाल बनाने शुरू कर दिए, और हमारे बीच बातें बंद हो गयी। दीदी समझी की मैं सो गया हू। उन्होंने एक दो बार मेरे गाल पर अपना हाथ फेर कर देख, लेकिन में कुछ नहीं कर सकता था, मैं चुपचाप लेटा रहा और दीदी ने थोड़ी देर बाद मुझे अपने साथ में लिटाया और मेरे पास में बैठ कर के मुझे देखती रही। मैं दीदी को देख रहा था, दीदी ने मुझे देखने के बाद मेरे शॉर्ट्स के पास मेरी जांघ पर हाथ रखा और मेरी और देखा की कहीं मैं जाग तो नहीं रहा, फिर उन्होंने मेरा कोई रिस्पांस न पाकर उन्होंने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और उस पर हाथ भी फेरा, पर फिर उसे तुरंत वापस ले लिया और बेड से उठकर खड़ी हो गयी। शायद उनके अंदर फिर से यह सब पाप हे ऐसा ख्याल आ गया होगा। इसीलिए वो उठी और फिर बाथरूम में चली गयी। मैं कुछ देर तक राह देखता रहा पर वो लौटी नही, तो पता नहीं कैसे लेकिन देर रात होने से मुझे भी नींद आ गयी और दीदी की राह देखते देखते में सो गया।

लेकिन अगले दिन में दीदी से पहले उठ गया, पता नहीं कैसे क्यूँकि हमेशा दीदी ही पहले उठ जाती थी। मैं बाथरूम में गया और फ्रेश हो कर बाहर आया और कॉलेज जाने के लिए रेडी हो गया, ऑफ़ कोर्स जाने का मन नहीं था पर जाना भी जरूरी था लेकिन मैंने किचन में जा कर फ़टाफ़ट चाय और ब्रेड सैंडविच बना डाली। बस दीदी को हसीन सरप्राइज देने के लिये, और फिर बेड रूम में गया, दीदी अब भी सो रही थी, फिर मैं दीदी के पास गया, दीदी सीधी लेटी हुई थी, मैं उनके कंधे के पास बैठा और दीदी का क्लीवेज देखने लगा, हर सांस के साथ बूब्स ऊपर नीचे हो रहे थे, फिर मैंने एक आईडिया सोचा और मैंने दीदी के ब्लाउज़ पर हाथ रखा और दीदी के ब्लाउज़ के ऊपर के दो हुक्स आराम से खोल दिए और कॉलेज चला गया।

रास्ते में यही सोच रहा था की हालाँकि दीदी को ब्लाउज वाले इंसिडेंट पर गुस्सा नहीं आना चाहिए पर अगर आ भी जाता हे तो चाय नाश्ता डाइनिंग टेबल पर देखकर शायद उतर जाएगा। मैं कॉलेज में पहुंचा पर कॉलेज में मन नहीं लग रहा था उधर घर पे दीदी क्या कर रही होगी, उसी मे मेरा सारा वक़्त बीतने लगा, लेकिन अब दोपहर के तीन बज रहे थे और बस दो ही घंटे बाकि थे पर मेरे से रहा नहीं जा रहा था, इसीलिए में क्लास बंक करके भागा और सीधा घर पहुंचा। मैंने घर जा कर डोरबेल बजाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला.. 10 मिनट बाद दीदी ने पीछे से कहा, “हट..चाबी मेरे पास है”.. दीदी ने मुझे हटाते हुए, दरवाजा खोला।

दीदी कुछ अपसेट लग रही थी, कहीं ब्लाउज वाले इंसिडेंट से तो नही, मैं पूछ्ने से डर रहा था पर मैंने दीदी से पूछ लिया, “क्या बात है दीदी, कुछ अपसेट लग रही हो?”.. मैंने थोड़ा डरते – डरते पूछा...“कुछ नही”। दीदी ने मेरे से ख़फ़ा होने की एक्टिंग कर रही थी, एक्टिंग ही तो थी क्यूँकि मुझे उतना तो पता था की अगर दीदी ख़फ़ा होती तो बात नहीं करती. इसीलिए मैं जोश में आ गया और अपने साइड वाले सोफ़े पर जहाँ दीदी बैठी थी वहा पर कूद कर बैठ गया और अपना लेफ्ट हैंड दीदी के कंधे के पास से ले जा कर दूसरी तरफ घुमा लिया और उस तरफ से प्रेशर दे कर दीदी को अपनी और खींचा और दीदी के कान में पूछा, “क्या हुआ दीदी”? तो वो खुल कर बोली..“रेशु तू आज कॉलेज नहीं जाता तो नहीं चलता क्या..एक तो मुझे यहाँ रोक लिया और खुद कॉलेज चले जाते हो। मैं कितना बोर हो रही थी, वो तो अभी – अभी में सामने वाली आंटी के वहां बातें करने के लिए बैठी की तुम आ गए”। “अच्छा तो ठीक है, मैं अभी फ्रेश हो जाता हूँ और हम अभी घूमने चलेंगे”। मैंने अपनी बात ख़त्म की और दीदी खुश हो गयी और मेरे गाल पर एक मस्त पप्पी दी और मैंने फ़ौरन अपना दूसरा गाल भी दे दिया, तो उन्होंने मेरे दूसरे गाल को भी चूमा।

बाद में वो तुरंत खड़ी हो गयी, क्यूँकि वो जानती थी की मैं अब उन्हें मेरे लिप्स ऑफर करने वाला था इसीलिए मेरे इरादों को समझते हुए वो जल्दी से खड़ी हो गयी और मैं भी उठकर मेरे रूम में चला गया। तभी दीदी ने कहा की पहले खाना खा लो बाद में तैयार होना। तो में रसोई में आया और दीदी के पास खड़ा रहा और दीदी को देख रहा था दीदी समझ गयी थी की मैं क्या देख रहा था इसीलिए मेरी खिंचाई करने के लिए उन्होंने पूँछा.. “रेशु क्या देख रहे हो”..? मै तो हडबडा गया लेकिन मैंने भी दीदी को अपने जाल में फ़ासते हुए कहा..“कुछ नहीं दीदी..म्म्म्म.मम,,,,मै तो यह पसीना.. ओफ्फो आपको कितना पसीना आ रहा है.. लाओ मैं यह पसीना पोछ देता हूं।”.. अब मुझे मेरे शातिर दिमाग पे अभिमान हुआ और मैंने अपना रूमाल निकाला और दीदी की बैक पे ब्लाउज़ के ऊपर से पसीना पोंछने लगा और बड़े आराम से दीदी की पीठ सहलाने लगा। फिर मैंने धीरे धीरे अपना हाथ ऊपर ले जाते हुए दीदी के कंधे पर रूमाल घुमाया और फिर दीदी की गर्दन को भी पोछा और फिर मैंने दीदी के दोनों आम की और अपना रूमाल घुमाया और धीरे धीरे नीचे उतर रहा था की दीदी ने मेरी और देखा और मेरा हाथ रूक गया।

रुमाल वहीं छूट गया और मेरा हाथ स्लीप हो कर दीदी के ब्लाउज से हट गया। फिर दीदी ने अपने ब्लाउज में फंसे मेरे रूमाल को देखा और मेरी और भी देखा और फिर कहा की “रेशु..देख क्या रहे हो? इसे निकलो यहाँ से”.. और मैं अपने रूमाल को हाथ में ले कर खींचने लगा पर जैसे भगवान को भी इस सीन में मज़ा आ रहा हो वैसे मेरा रुमाल दीदी के हुक में फ़ांस गया और दीदी मेरी और फिर से थोड़े से ग़ुस्से में देखने लगी और मैंने कहा की “दीदी अब यह नहीं निकल रहा, एक हुक खोलना पडेगा”... वो मेरी और हैरत भरी नज़र से देख रही थी और मैं उन्हें स्माइल दे रहा था। वो सोचने लगी और फिर अपनी आँखें बंद कर ली और मुझसे कहा...“रेशु..जो चाहे वो करो पर इसे निकालो”.. दीदी ने कहा, मैने भी सोचा की रेशु यही टाइम हे तो मैंने भी आराम से रूमाल निकालने की सोचा। मैं नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया। यह प्लानिंग में नहीं था पर भगवान ने जैसे मेरे पर मेहरबानी की हो, मैं नीचे बैठा, अब दीदी मेरे सामने थी और मैंने दीदी के कंधे से उनका पल्लू हटाया और दीदी का पल्लू नीचे गिरा दिया, और दीदी के ब्लाउज में कैद 36 के बूब्स मेरे सामने थे, मन तो बहुत किया की यही पर निचोड़ लू लेकिन कर नहीं पाया और शायद किया होता और दीदी को गुस्सा आता तो दीदी को मना भी लेता पर ऐसा मैंने किया नही।

मैंने रूमाल का एक सिरा जो खुला था वो हाथ में लिया और उसे दीदी को अपने मुँह में दबाने को कहा, लेकिन मैंने ही दीदी के होठो में अपनी ऊँगली दे कर उसे दबा दिया। फिर मैंने दीदी के ब्लाउज पे अपने दोनों हाथ रखे और हुक खोलने की मशक़्क़त में कई बार बूब्स मेरे हाथ में आ गये। लेकिन मेरी किस्मत इतनी भी अच्छी नहीं थी और हुक एक ही मिनट में खुल गया और सारे सीन का नाश हो गया। फिर दीदी ने बनावटी गुस्सा दिखाया और कहा की अब पसीना –पसीना मत कर और जा के बैठ और खाना खा ले। दीदी ने मेरे लिए खाना लगाया और कहा की वो रेडी हो कर आती हैं, इन सब बातों में चार बज चुके थे और मैंने खाना निपटाया और बाथरूम में गया और फ्रेश हो गया, बाद में अपने रूम में गया और अपने सारे कपडे निकाल दीए, बस मैं अब अंडरवीयर में था और अपनी अलमारी में से कपडे ढूंढ रहा था और अचानक दीदी मेरे रूम में आई और कहने लगी की.. “रेशु रेडी हो गया क्या”...?

दीदी मेरे कमरे में आ चुकी थी। मैं तैयार नहीं था और ऊपर से सिर्फ अंडरवीयर में था और वो भी वी – शेप में था मैंने फ़टाक से कपबोर्ड का दरवाजा बंद किया और बाहर आया की दीदी की आँखें मुझे देखकर फट सी गयी। वो मुझे नहीं मेरे अंडरवीयर को ही देख रही थी और मैं इस बात से खुश था की वो अंडरवीयर में क्या ढूंढ रही थी। लेकिन उन्हें दो मिनट में ही होश आया की वो क्या देख रही हे, लेकिन बाद में वो शरमाने के बजाय, मुझसे पूछ्ने लगी की क्या हुआ। तो मैंने कहा की, “दीदी ढंग के कपडे नहीं मिल रहे"। तो दीदी ने कहा की “लाओ में ढूंढ देती हू”। वो मेरे पास आ कर कपडे अलमारी में ढूंढने लगी। वो अब मेरे सामने थी और में उनके पीछे, दीदी को देखते ही मेरा लंड पता नहीं क्यों उठ जाता है। मैं दीदी के पीछे खड़ा रह कर कपडे पसंद करने के बजाय दीदी के बारे में फैंटसाइज कर रहा था।

मैं अपने ख़यालों में था की दीदी ने कहा कि, “रेशु पास आओ और इस कॉम्बिनेशन को देखो”.. मेरा ध्यान टूटा और मैं आगे गया और जानबूझ कर दीदी की गांड को छू रहा था, मेरा लंड दीदी की गांड को बड़े प्यार से टच कर रहा था और मैंने देखा और कहा की दीदी यह पसंद नहीं और दीदी दूसरे कपडे देखने लगी, फिर मैंने दीदी के गांड पर जोर दिया और अब जा के उन्हें एहसास हुआ की उनकी गांड पर मेरा लंड था और दीदी मेरी और पलटी और निचे अपनी गांड की और देखा और निचे मेरे अंडरवीयर में बने टेंट को देखने लगी और फिर मेरी और देखा और हंसी।

लेकिन मुझे नजरंदाज कर के फिर से मेरे कपडे ढूंढ ने लगी और मैं फिर से अपना लंड दीदी की गांड पर हल्का हल्का प्रेशर दे कर घुमने लगा। लेकिन मेरी दीदी तो दीदी ही है, उन्होंने मेरे कपडे खुद ही पसंद किये और पीछे मूड कर मेरे हाथ में थमाते हुए कहा की “ले यह पहन ले और जल्दी रेडी हो जा”। मैने अपने कपडे हाथ में लिये और जानबूझ कर पहले शर्ट पहनने लगा और दीदी कह रही थी की “रेशु तुम भी ना..अपनी चीज़ ठीक से रखते नहीं और बाद में परेशान होते हो”। वो मेरा कप बोर्ड ठीक करने लगी, एक –एक करके मेरे कपडे ठीक से मोड़ कर के अच्छे से रखने लगी और बाद में मेरी किताबें भी अच्छे से अरेंज किये और बाद में मेरे अलमारी का नीचे का शेल्फ अच्छे से ठीक करने के लिए नीचे बैठी तो मेरे दिमाग की बत्ती जली की दीदी को रोक देना चाहिए पर बाद में तुरंत ख्याल आया की जाने दो, देखने दो, दीदी को पटाने का एक और टॉपिक मिल जाएगा।

दीदी ने नीचे के शेल्फ में मेरे कॉलेज का सामान जैसे ही बाहर निकाला की उसमे से पोर्न डीवीडी बाहर निकल आई और मैं जैसे मानो पकड़ा न गया हो ऐसे दीदी के पीछे मूड कर अपने शर्ट के बटन बंद कर रहा था और किस्मत से सामने शीशे में दीदी का हाल दिखाई दे रहा था। उन्होंने अपने हाथ में वो डीवीडी ली और सब के ऊपर के नंगी लड़कियों के पोस्टर देखे और बाद में मेरी और देखा और उनकी नज़र मेरे शर्ट के अंदर मेरी गांड पर थी। फिर उन्होंने अपने दाँत से अपने होठ को पीसा और लिप्स को अंदर बाहर करने लगी। मैंने भी अपने पैंट को उठाया लेकिन आईडिया आया और मैंने अपने अंडरवीयर में हाथ डाला और अपने उठे हुए लंड को ठीक करने के बहाने से मैंने अपने अंडरवीयर को हल्का सा निचे किया और दीदी को दिखाई दे इस तरह से मैंने अपने लंड को पकड़ा और उसे एडजस्ट करने लगा।

लेकिन इस तरह दीदी को एक झलक लंड की दिखाने में ग़लती हो गयी और मेरा अंडरवीयर मेरे जांघों में से पता नहीं कैसे नीचे गिर गया और दीदी ने मेरा पूरा लंड देख लिया। मैं फ़टाक से नीचे झुका और अपना अंडरवीयर उठाया और उसे पहन लिया और फिर सामने शीशे में देखा तो दीदी की आँखें फट सी गयी थी और वो अब भी मेरे लंड की और देख रही थी। मैंने फिर आराम से दीदी की और देखा तो उन्होंने भी मुझे चिड़ाने के लिए अपनी आँखों पर अपने दोनों हाथ रख लिए और मुझे अपनी और देखता पा कर मुझे चिड़ाने के सुर में कहा...“रेशु,दीदी ने कुछ नहीं देखा..हा”। दीदी मुस्कुरा पड़ी और मैं भी नहले पर दहला मारते हुए, मौके को ठीक समझते हुए दीदी के सामने घूम गया और दीदी के सामने अपना अंडरवीयर झटके में उतार दिया और अपना उठा हुआ लंड दीदी के सामने खुला कर दिया और कहा “देख भी लिया तो क्या उखाड लिया”...?

दीदी ने शायद इस तरह की कुछ कल्पना भी नहीं की थी और मेरे इस तरह अंडरवीयर उतारने से उनकी समझ में नहीं आया की वो क्या करे इसीलिए वो उठ कर बाहर ड्राइंग रूम में भाग गयी और में भी जैसे बड़ा शेर मारा हो ऐसे दीदी के ख़यालों में अपने कपडे पहनने लगा और फिर बाथरूम में गया और एक बार मूठ मारी और फिर से अपने कपडे एडजस्ट कर रहा था की इतने में दीदी ने कार का हॉर्न बजाना शुरू कर दिया और मैं फ़टाफ़ट सारे कपडे पहन के बाहर आया और डोर लॉक कर के बाहर जा कर दीदी के पास बैठ गया और कहा “दीदी लेट में ड्राइव”...“चुप चाप बैठो..मैं ड्राइव करूंग़ी, तुम बहुत तेज़ चलाते हो और फिर किसी से टकरा के गालियां बकते हो”..दीदी ने फिर से ताना मारा, “ओह माय गॉड, मुझे तो ऐसा लगता है, जैसे मैंने इतना बड़ा गुनाह किया हो की मुझे इस तरह बहाने ढूंढ ढूंढ कर के ताने मारे जाते हैं”... मैंने ताने का जवाब दिया।

दीदी भी हंस पड़ी और मैं भी, इतने में दीदी ने कार ड्राइव की और हम कंकरिआ पहुंचे, तब तक 5 बज चुके थे। उस दिन कोई रेगुलर डे था इसीलिए बहुत कम फॅमिली वाले लोग आये थे, कुछ कॉलेज कपल्स और कुछ न्यूली मैरिड कपल्स आये थे। दीदी ने कहा की उन्हें एम्यूजमेंट पार्क में जाना है तो हम उस और चले और उधर हमने बहुत एन्जॉय किया और खूब धमाल मस्ती की। दीदी अब जा के सच में खुश लग रही थी। फिर मैंने एक राइड की टिकट्स ली जो थोड़ी डरावनी थी, और उस राइड के दौरान में जान बूझ कर ऐसे बैठा की राइड के दौरन दीदी मुझ पर आ गिरे, और जैसे ही वो तूफ़ानी राइड शुरू हुई और दीदी मेरी और खिसकने लगी तो मैंने दीदी से कहा..“दीदी.बीहेवे योर सेल्फ, प्लीज..ऐसे पब्लिक प्लेस में क्या कर रही हो”.. दीदी तो सन्न हो गयी और वो जितना मुझसे दूर जाने की कोशिश करती, वो मेरे पास ही आ जाती थी, लेकिन मुझसे दूर बैठने के चक्कर में उन्हें रॉन्ग साइड पे बैठने से चक्कर जैसा लगने लगा।

इसीलिए जैसे ही राइड ख़त्म हुई की वो ठीक से उतर भी न पाई और एक वॉचमन ने उन्हें गिरने से बचा लिया, फिर मैंने दीदी को दोनों हाथों से सहारा दिया और एक साइड बेंच पर बिठा दिया और फिर उन्हें बिठा के पूछा..“दीदी..दीदी आप ठीक तो हैं..चक्कर जैसा लग रहा है क्या..”? मैं बहुत ही घबरा गया था और टेंशन में मेरी हार्टबीट भी बढ गयी थी। दीदी ने भी कहा की हाँ उन्हें चक्कर आ रहे हैं तो मैंने कहा की “आप यही बैठिए में अभी कहीं से नीम्बू पानी ले कर आता हू”.. और मैं उठकर बाहर गेट की तरफ भागा और इतने में दीदी ने कहा की,“रेशुउऊउ...रुको”!!
 

Avi Naik

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“कोमल दीदी"

भाग – 9


मैं दीदी के चिल्लाने से रुक गया। मैं और भी टेंशन में आ गया की कहीं दीदी को कुछ और तो नहीं हो रहा पर मैंने देखा तो वो हंस रही थी और उनकी हँसी रूक नहीं रही थी, मैं एक दम से शॉक हो गया, मेरा रंग ही उड़ गया, और मैं दीदी के पास गया तो दीदी ने हँसते हुए कहा की “अपना चेहरा तो देख, कितना रंग उड़ गया है, कैसे पीला पड़ गया है, कुछ नहीं हुआ है मुझे”। अब मेरी जान में जान आई और मैं दीदी के सताने पर हलके से मारने लगा और फिर अपने पर ही हंस पड़ा और दीदी के पास में ही बैठ गया। अभी भी दीदी की हँसी रूक नहीं रही थी और फिर हँसते हुए कहा की “क्यूँ बेटे, तुम अपना अंडरवीयर उतार के नहले पर दहला मार सकते हो तो हम भी आपके नहले पर दहला मारके आपका रंग उड़ा सकते है”.. और वो फिर से हंसने लगीं, तो मैंने फिर से उन्हें मस्ती में मारना शुरू किया, लेकिन इतने में पार्क का वॉचमन कहीं से आया और बोला.. “हे..क्या कर रहे हो आप लोग? शर्म नहीं आती, चलो हटो यहाँ से”...

तब जा के दीदी सीरियस हुई और हम बाहर निकल गये। बाहर निकलते ही सामने चिड़ियाघर था तो दीदी ने कहा “चलो न रेशु, हम ज़ू में चलते हैं”। मैंने मना किया तो उसने कहा की “चलो ना.. मुझे साँप देखना है"। तो मैंने उसी टाइम डबल मीनिंग लाइन कह दी की..“दीदी साँप देखना है तो वो तो मेरे पास भी है”.. और बोलने के बाद मुझे पता चला की मैं क्या कह गया। दीदी ने सही सुना, मेरी और पलट के देखा और वो भी समझ गयी की मैंने क्या कहा पर कुछ बोली नहीं और हम दोनों ज़ू में गये, वहां कुछ देखने को था नहीं में तो बोर हो गया, पर दीदी डिस्कवरी की फैन होने से मज़ा ले रही थी, मैं तो बस दीदी को ही देख रहा था मुझे अफ्रीकन लायंस और ऑस्ट्रलियन कबूतरों में कोई इंटरेस्ट नहीं था। लेकिन दीदी सबके बारे में मानो सब जानती हो ऐसे सबके बारे में कुछ न कुछ क्वालिटी बताने लगी। मैं पक रहा था पर में सुन रहा था और ऐसे जता रहा था की मुझे भी मज़ा आ रहा है।

तब जा के मुझे लगा की इन औरतों के साथ रहना कितना मुश्क़िल हो जाता है, फिर मैंने अचानक एक साइड में एक कोने पर देखा की एक कच्छ का फेमस जंगली गधा (घोड़े और गधे के बीच की जाती) वो अपनी साथी गधी के साथ सेक्स कर रहा है। अब ज़ू के बंद होने का टाइम हो रहा था और मानसून का सीजन था इसलिए अँधेरा भी हो रहा था तो ज़ू में काफी काम लोग थे और दीदी एक और रींछ को देख रही थी तो में अपने आप उस गधे के पिंजरे की और जा कर खड़ा हो गया और उनकी चुदाई देखने लगा। वो गधे के पास कितना बड़ा लंड था और अमूमन फीमेल जानवर, चुदवाने पर आवाज़ नहीं करते, पर उस गधी के मुँह से दर्द की हलकी – हलकी सी आवाज़ें आ रही थी। गधा तो मानो जंगलीपन पे उतर आया था और उसकी चुदाई एक दम तेज़ होते जा रही थी। मैं दीदी को भूल गया था और इतने में मेरे पास एक कौवा आ कर बैठा और वो भी गधे – गधी की चुदाई देखने लगा।

उसके आ के बैठने से मैंने अपने राईट साइड पर आँखें फेर कर के कौवे को देखा तो मुझे आँखों के किनारे से दीदी भी दिखाई दी और वो एक दम अदब से मेरी और देख रही थी की मैं उन्हें भूल गया हूं। दीदी को देख कर में अनदेखा नहीं कर सकता था चाहे कुछ भी हो तो मैंने दीदी की और देखा और उनकी और मुड़ा। मैं उनकी और चल पडा, दीदी भी बाहर की और चल पडी। सब ज़ू से बाहर ही जा रहे थे। हम दोनों में से कोई बात नहीं कर रहा था ज़ू बहुत बड़ा था इसीलिए, हमें अभी 15 मिनट तक ऐसे चुप चाप चलना था और यकीन मानिए दोस्तोँ ऐसे चलना सच में मुश्क़िल हो जाता है, जब आपके साथ कोई अपना हो और उससे कोई बात न हो रही हो। तो मैंने चलते चलते दीदी से कहा की “दीदी सॉरी”... दीदी ने तुरंत कहा की.. “ऐसे काम ही क्यों करते हो की तुम्हे सॉरी हर बार कहना पडता है”।

दीदी का गुस्सा थोड़ी ही देर का था यह पता था पर उन्हें मनाने में मज़ा आ रहा था थोड़ी देर सॉरी बोलने के बाद वो मान गयी और फिर से नार्मल हो गयी। अब तक 7 बज चुके थे और अब हम वहा से निकल कर कार में बैठे और मैंने दीदी से कहा की अब हम कहाँ जा रहे हे तो उन्होंने कहा की बस तुम सिट बेल्ट बांध लो, गाड़ी अब उड़ने वाली है और उन्होंने सट से झटके दे कर एक्सेलरेटर दिया और एक दम रफ़ कार चलाने लगी। मैं पहले झटके में जान ही नहीं पाया की हो क्या रहा है, पर दीदी मानो कार उड़ा रही हो वैसे तेज़ चला रही थी। दूसरी गाड़ियां मानो उसके सामने कुछ नहीं थी। दाएं बाएं कर के वो तो बस कार चलाये जा रही थी, फिर दीदी ने नम्बर 8 पकड़ा और उधर तो मेरी मां चुद गयी। वो हैवी लोडेड ट्रक्स के बीच मे से क्या कार निकाल रही थी, मैं डर भी रहा था और बहुत हैरान भी, लेकिन दीदी को मेरी और देखने का टाइम नहीं था और केवल 15 मिनट में हम सिटी के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुच गए जहाँ पर हमारा घर था। फिर दीदी ने एक दम से रोड के साइड में ब्रेक्स लगायी और कार को स्लीप कराइ और एक पेड़ के पास रोक दी। जैसे ही कार रुकी दीदी के हाथ में स्टेयरिंग था और उन्होंने मेरी और देखा और कार रुकते ही मैंने दीदी की और देखा। दीदी मेरी और देख कर मुस्कुरायी और मैं भी...

मैं- बस अब कुछ मत बोलना, मैं मान गया की तुम भी तेज़ कार चलाती हो।

फिर उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा, “जो तुम कर सकते हो, उसे तुम्हारी दीदी तुमसे बेटर कर सकती है”।

फिर वो आराम से कार चलाने लगी और हम घर के नजदीक ही एक मॉल में गए और वहाँ दीदी ने घर के लिए कुछ सामान लिया और फिर हम बाहर खाना खाने गये और बाहर एक होटल में डिनर निपटा के घर पहुंचे तो उस वक़्त 9:30 हो रहे थे। हम दोनों घर में आते ही दोनों एक एक सोफ़े पर लेट गए और मैंने फैन ऑन कर दिया। फिर मैंने दीदी से कहा, “दीदी, सुबह तो बिगडी आप की पर शाम को मज़ा आया की नही”.. .“ओह माय गॉड, रेशु, बहुत मज़ा आया, सच में इतना में कभी थकी नही,लेकिन मज़ा बहुत आया। एक तो घुमने का मज़ा और ऊपर से तुम्हारे नाटक, दोनों ने सच में आज का दिन बना दिया".. दीदी की आवाज़ में एक किस्म की शांति थी. .“नाटक? मेरे कौन से नाटक.. नाटक तो आपने किया था बीमार पड़ने का.. बाय गॉड मैं कितना डर गया था"। मैंने बात आगे बढ़ाई..“अच्छा किया, तुम इसी लायक हो। तुम जैसे लोग, वो बेचारा गधा, अपनी गधी के साथ कुछ कर रहा था तो तुमसे सहा नहीं गया और उसे देखने लगे? शर्म नहीं आती". .

हमारी कमैंट्स का दौर जारी रहा। अब मेरे पास कोई जवाब नहीं था में सोफ़े पर से खड़ा हुआ, एक अंगडाई ली और दीदी से कहा, “दीदी में नहाने जा रहा हू। आज बहुत मज़ा करने में भागा-दौड़ी भी बहुत हुई है।" ...“हाँ रेशु वैसे भी तुम बहुत बदबू मारते हो".. दीदी एक भी मौका नहीं चूक रही थी मुझे परेशान करने का.. पर मैंने भी कहा, “अच्छा! तो तुम ही नहला दो.. मैं भी तो देखु अच्छे से कैसे नहाया जाता है"... अब दीदी की बारी थी, एक झटका खाने की, पर उन्होंने मना कर दिया, “नही..नही अपने आप ही नहाओ.. अपने बहन से ऐसे कहते शर्म नहीं आती"...दीदी ने मना किया.. “क्यूं अब बड़ी शर्म आ रही हे, तेज़ गाड़ियां दौड़ाते हुए, लड़की होने का पता नहीं चलता"। मैंने भी और एक तीर जैसी बात कही। अब दीदी की बारी थी चुप होने की, वो कुछ बोली नही, पर उठी और मेरे जैसे अंगडाई लेने लगी तभी मैंने दीदी से कहा, “दीदी याद है.. हम छोटी चाची के गाँव में कुए में नहाने जाते थे और एक बार तो साँप भी देखा था"..

मैंने पास्ट में से एक बात निकाली..“हा, और तुम उस टाइम अंडरवीयर में भागे थे घर के लिये"... “हाँ तुम भी तो टॉवल में भागी थी".. फिर से हमारे बीच नोक – झोक होने लगी। “हा..पर तब हम छोटे थे".. दीदी ने कहा और किचन में जाने लगी, तो मैंने दीदी को पीछे से पकड़ लिया और दीदी के कान में कहा..“छोटे थे तो मज़ा आता था तो अब तो और भी मज़ा आएगा”.. और दीदी को बाथरूम की तरफ धकेलने लगा। दीदी ने थोड़ी सी कोशिश जरूर की छूटने की पर छूट नहीं पायी। इतने में तो मैं उन्हें बाथरूम तक ले आया और इससे पहले की दीदी कुछ कहे, मैं दीदी को लेकर बाथरूम में घुस गया। मै बाथरूम में तो गया पर हा, अंदर जाने के बाद पता नहीं पर मैं थोड़ा सा शर्मा गया या कुछ सोच रहा था यह भी याद नही, पर फिर दीदी ने कहा, “रेशु..क्या तुम सही में चाहते हो कि मैं तुम्हे नहलाऊं या फिर कुछ और सोच रहे हो"? दीदी एक दम नार्मल लग रही थी और मैंने भी कह दिया, “ऑफ़ कोर्स दीदी..आई ऍम श्योर”।

“तो फिर कपडे पहन के नहाना चाहते हो क्या"...? वो अपने मुँह पर हाथ रख के मुस्कुरा पडी। मैने भी अब अपने कपडे उतारना शुरू किया और एक के बाद एक अपने शर्ट के सारे बटन खोल डाले और शर्ट उतार के साइड में रख दिया। तब दीदी ने भी बड़े सिडक्टिव अंदाज़ में मेरे सीने पर हाथ रखा और कहा,“ओह! रेशु, अब समझी तुमने आज वेस्ट नहीं पहनी थी, इसीलिए कब से पसीने से बदबू मार रहे थे"। दीदी ने मुझे चिड़ाने के लिए कहा और यह सुनकर मैंने भी वो किया जो वो चाहती थी, मैंने भी उन्हें खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया और उनसे सट के लिपट गया। मैंने फिर दीदी से कहा, “क्यों दीदी पसीना कैसा लग रहा है? आई होप की मज़ा आ रहा होगा।" मैंने भी फिर से नहले पे दहला मारते हुए कहा। फिर दीदी भी मेरे सीने से अपने चेहरे को उठाया और मेरी तरफ देखा कर कहा, “सच कहूं रेशु मज़ा आ रहा है”।

वो फिर से वो हंस पड़ी और में भी थोड़ा सा शॉक हो गया और वो मेरे पकड़ से आज़ाद हो गयी। फिर उन्होंने कहा की “चलो मेरा टाइम वेस्ट मत करो और अपना पैंट भी उतारो।" तो मैंने दीदी से कहा की, “ठीक है"। मैं घूम कर दीवार की और मुँह कर के अपने पैंट का हुक खोलने लगा, तो दीदी ने वही पूछ लिया जो कई चाहता था, “अरे पीछे क्यों घूम गया"? तो मैंने कहा की,“दीदी तुम्हे तो कोई शर्म नहीं पर मुझे तो शर्म आयेगी ना”। “अच्छा इतना शर्माना था तो नहाने के लिए उतावला क्यों हो रहा था और वैसे भी इतना शरमायेगा तो पता नहीं आगे क्या करेगा"? दीदी ने भी अपने साडी का पीछे रहने वाला खुला सिरा घुमा कर अपने नैवेल के पास साडी में फसा दिया और मैंने पैंट उतरना शुरू किया और जानबूझ कर पैंट को कमर से नीचे उतारते वक़्त एक साइड से अपना अंडरवीयर भी नीचे कर दिया और अपने गांड चिक की एक झलक दीदी को दे दी और फिर से अंडरवीयर को अच्छे से पहन लिया। फिर मैंने पैंट को नीचे ही रहने दिया और दीवार की तरफ मुँह कर के शावर ऑन कर दिया और खुद को भिगो लिया।

फिर दीदी से कहा की “अब सोप लगाओ दीदी"। फ्रेंड्स, मैं इतना शर्मा तो नहीं रहा था पर एक बात थी की जब तक दीदी अपने मुँह से नहीं कहती तब तक उनके साथ सेक्स तो नहीं करुँगा और तब तक सिड्यूस करना है जब तक वो अपने आप कहने पर मजबूर ना हों जाए। फिर दीदी ने कहा की, “अरे उधर मुँह कर के क्यों खड़ा है? इधर मेरी ओर घुम।" दीदी ऑफ़ कोर्स मेरे तने हुए लंड को देखने चाहती थी। “नही.. दीदी पहले आप मेरी बैक पर साबुन लगा दो"। मैंने भी दीदी को अपनी बैक थमा दी। वो भी ठीक है बोल कर मेरी और साबुन ले कर आई और मैंने शावर बंद कर दिया ताकि वो भीग न जाए। उन्होंने आकर पहले मेरी पीठ पर साबुन लगया और जोर जोर से घिसा भी, फिर मेरी गर्दन के पीछे और मेरी गर्दन पे भी साबुन लगाया और फिर खुद ही अपने आप मेरे पास आ कर मेरे पीछे से ही मेरे सीने पर साबुन मलने लगी और एक दो बार तो मेरे नीप्लेस पर जोर भी दी, फिर वो मेरे सीने से निचे उतर के मेरे पेट पे साबुन लगाई और पीछे कमर पे भी अपने हाथ रगड़ने लगी और फिर से अपने हाथ आगे ले कर मेरे नेवल के साथ भी कुछ देर खेला और बाद में अपने हाथ मेरे नेवल से नीचे लाने लगी।

मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था मैंने अपनी आँखें बंद कर ली पर दीदी ने अपने हाथ फिर से कमर पर ले लिए और कहा, “अच्छा रेशु अब इसे भी खोल दो, साबुन लगाना है".. ऑफ़ कोर्स दीदी का इशारा मेरी अंडरवीयर की ओर था लेकिन मैंने कहा की, “दीदी वहा रहने दो मैं खुद लगा लूँगा आप बस पैर पर साबुन लगा दो"। फिर दो सेकंड तक उन्होंने कुछ बोला नहीं और मेरे पाँव पर साबुन लगाने लगी, मुझे अपने पर गुस्सा आया की मैं तो सोच रहा था की दीदी खुद ही मज़ाक़ में मेरा अंडरवीयर उतार देगी पर मैं गलत निकला और दीदी मेरी जाँघ पे साबुन लगाने के बाद नीचे तक साबुन लगा दिया और फिर अचानक से मेरा अंडरवीयर नीचे खींच लिया और मैं कुछ सोच भी नहीं पाया। फिर मैंने दीदी की और देखा, कुछ कहा नहीं कहता भी क्या? कुछ कहने को अब था नही। फिर वो भी मेरी और देखने लगी और मेरी गांड पर उन्होंने अपना हाथ रखा और साबुन लगाने लगी और बहुत ध्यान से देख भी रही थी। फिर दीदी के हाथ धीरे धीरे मेरे गांड क्रैक में घुसने लगे और उन्होंने एक दो बार मेरे गांड क्रैक को खोलने की कोशिश भी की पर ज्यादा हिम्मत नहीं कर पाई तो मैंने अपने आप ही अपने दोनों पाँव फैला दिए और दीदी के अक्शन का इंतज़ार करने लगा।
फिर दीदी ने भी अपने हाथ मेरे गांड होल से चिपका कर वहां खूब मसाज किया और बाद में मेरे दोनों लटकते बॉल्स को अपने हाथ में पकड़ लिया। अब मेरे से रहा नहीं गया, दीदी ने बहुत सिड्यूस कर लिया अब मेरी बारी थी। मैंने ऊपर एक मॉनिंग साउंड करते हुए दीदी से कहा, “आआ..हहह... दीदी प्लीज यहाँ कुछ मत करो"... मैं दीदी की और नहीं देख रहा था, “क्यों..क्या हुआ रेशु"? . दीदी ने मेरे मन की सिचुएशन जानते हुए भी मुझसे पूछा।

“ओह्ह... कुछ हो रहा है, स्ट्रेंज सा, पता नहीं क्या हो रहा है पर अच्छा लग रहा है"। दीदी के हाथ मेरी बातें सुनते वक़्त रुक गए पर फिर से उसे सहलाने लगे और ऑफ़ कोर्स मेरा लंड अब खड़ा हो चुका था। “अच्छा लग रहा है तो फिर रोकता क्यों है?"... और दीदी मस्ती में मेरे बॉल्स को सहलाने लगी। वो भी बहुत चाहती थी की उसे मुँह में लेकर चूसे पर शर्म नाम की भी कोई चीज़ होती है।

फिर दीदी ने आगे बढ़ते हुए मेरे लंड पर अपनी ऊंगलियां फेरी और फिर कहा, “रेशु.. अब आगे घूम जाओ चलो".. दीदी अपनी नीज के बल पर बैठी थी और मेरे तने हुए लंड को देखने के लिए बेक़रार हो रही थी। पर मैंने कहा की, “दीदी नहीं शर्म आ रही है"। तो दीदी ने कहा, “अरे अब तक तू शर्म की पूँछ पकड़ के बैठा है"... और दीदी ने मेरी गांड को पकड़ते हुए घुमा दिया और मेरी गांड को नजदीक से देखने के चक्कर में वो मेरे नजदीक बैठी थी तो मेरा ताना हुआ लंड दीदी के सामने तो आ गया पर दीदी के ठीक राईट गाल को प्यार से टच भी किया और अब दीदी सब भूल गयी और मेरे लंड को ही देखने लगी और में भी दीदी को डिस्टर्ब किये बिना उन्हें देख रहा था फिर कुछ देर बाद दीदी को होश आया और वो होश में आते हुए मेरी और देखी और मैं तो उन्हें ही देख रहा था। जैसे ही दीदी ने मेरी और देखा तो मैंने दीदी को नॉटी सी स्माइल दी और दीदी भी अपने आप हँसते हुए फिर से मेरे लंड को देखने लगी और साबुन ले कर उसे भी अपने हाथ में ले लिया और में फिर से मोन कर पडा, इस बार दीदी से आँख चुराने का सवाल नहीं था और दीदी ने मेरी और देखा पर मैंने नज़रें फेर ली और दीदी अब मेरे लंड को साबुन लगाने के चक्कर में आगे पीछे करने लगी।

मैं भी यही चाहता था। फिर दीदी जब रुक गयी तो मैंने दीदी से कहा, “प्लीज दीदी थोड़ा टाइम और करो ना".. और दीदी भी मेरे कहने के इंतज़ार में ही थी और में भी अपने वीर्य के झटकने का इंतज़ार करने लगा और दीदी भी जोश में ही हैंडजॉब कर रही थी। फिर दीदी ने और जोर लगा के आगे पीछे करना शुरू किया और में भी फकिंग के फैंटेसी में था। फिर दीदी ने स्ट्रेंज सा किया, हलाकि स्ट्रेंज नहीं था बस वो अपने आप को रोक नहीं पाई होगी, उन्होंने मेरे लंड के आगे वाले टिप के पार्ट को एक किस दी और में झड पडा। मेरे लंड से वीर्य की धार निकलने लगी और शुक्र की बात यह थी की सब धार दीदी के लिप्स, चिन और दीदी के क्लीवेज पर पड़ रही थी। दीदी यह सब देख रही थी पर कुछ बोली नही, और मैंने भी आखरी बूँदे जानबूझ कर दीदी के ब्लाउज पर ही गिरा दी और जब झड़ना बंद हो गया तो दीदी ने बनावटी गुस्सा बनाते हुए मुझसे कहा, “उफ्फ्फ्.. रेशु, यह क्या किया तुमने.. शर्म नहीं आती? अपनी बहन के साथ ऐसा करते हो।"... और वो खड़ी हो गयी, और फिर से कहा, “ऊफ. अब यह साफ़ भी नहीं होगा"।

दीदी के असली ग़ुस्से और नकली में बिलकुल पता चल रहा था। मैंने भी दीदी के लेफ्ट हैंड को पकड़ा और दीदी को टोटली टर्न करते हुए अपनी बाँहों में भर लिया, अब दीदी मेरे आगे और में दीदी के पीछे था मेरे हाथ दीदी के पेट पर थे, मैंने दीदी को पेट से पकड़ा था इसीलिए। फिर दीदी ने पूछा, “रेशु.. अब तुम क्या कर रहे हो? छोडो मुझे”...

मैंने भी दीदी के कान में फुसफुसा कर कहा, “बस.. दीदी, मैं अभी इसे साफ़ कर देता हू, प्लीज"। और ऐसा कह कर मैंने दीदी का राईट हैंड अपने राईट हैंड से पकड़ा और दीदी के राईट हैंड को पेट से उठाते हुए मैंने दीदी के लिप्स पर रखा और फिर दीदी की मिडिल फिंगर से दीदी के लिप्स पर गिरे अपने वीर्य ड्रॉप्स को साफ़ करने लगा और फिर जबरदस्ती दीदी की मिडिल फिंगर को दीदी के मुँह में डाल दिया और दीदी के मुँह के अंदर बाहर करने लगा। दीदी भी बाय गॉड फुल सपोर्ट में थी, वो भी आँखें बंद कर के अपने ही मुँह में अपनी ऊँगली लेने का मज़ा ले रही थी। मेरा मानना था की शायद यह पहली बार कर रही थी वो या शायद उन्हें पहली बार इतना मज़ा आ रहा था इसीलिए वो अपनी ऊँगली को मुँह से बाहर नहीं निकालना चाहती थी।

फिर मैंने दीदी के न चाहने के बावजूद दीदी के मुँह से ऊँगली निकाली और फिर से दीदी के राईट हैंड को पकड़ के दीदी के चिन से ड्रॉप्स साफ़ की और इस बार दीदी ने खुद ही अपने पूरे हाथ को उठाया और अपने मुँह में भी डाल दिया। अब वो पूरी तरह मेरे कण्ट्रोल में थी, मैंने फिर दीदी के हाथ को उनके मुँह से बाहर निकाला और अपने हाथ से उनके हाथ को पकड़ के दीदी के सीने पर रखा और अपने हाथ से उनका हाथ घुमाने लगा, फिर मैंने दीदी का पल्लू अपने लेफ्ट हैंड से जो की नैवल के पास था उसे छोड़ दिया और दीदी के कान में कहा, “दीदी..यह पल्लू बीच में आ रहा है, हटा दू क्या"..? जवाब पता था पर पूछ्ना जरूरी था,“हटा दो".. दीदी ने कह दिया और मैंने लेफ्ट हैंड से दीदी का पल्लू हटाया और राईट हैंड से दीदी के पूरे सीने पर दीदी का हाथ घुमाने लगा या मनो दीदी के पूरे सीने पर में अपना वीर्य फैला रहा था फिर मैंने दीदी का हाथ दीदी के ब्लाउज के अंदर दाल दिया और साथ में अपना हाथ भी और फिर मैंने अपने हाथ को दीदी के हाथ पर रखा और धीरे – धीरे दबाने लगा।

आह, कितना मज़ा आ रहा था। मैंने कुछ देर दीदी के बूब्स दबाने का मज़ा उठाया और दीदी ने भी, अब वो पूरी तरह ढीली हो चुकी थी। दीदी का सारा बदन मुझ पर पड़ रहा था।फिर मैंने दीदी के निप्पल को पकड़ा और उसे दबाया और दीदी के मुँह से मॉनिंग की स्लो आवाज़ें आने लगी फिर मैंने पीछे से स्लोली नल खोल कर के शावर चालू कर दिया था। अब हम दोनों भीगने लगे, मैं तो भीगा था ही पर मैं दीदी को भिगाना चाहता था। दीदी को पता चला की वो भीग रही हैं, पर मैंने दीदी को उठने नहीं दिया और दीदी के बूब्स पर जोर दे कर फिर से अपने सीने से चिपका दिया और इससे पहले की दीदी कुछ कहे, मैंने कहा की, “दीदी..कुछ नही, बस शावर ऑन है, दाग धोने के लिए, आई होप यु डोंट माइंड।"

और दीदी ने भी कहा, “आई एम ओके, रेशु चाहो तो शावर बढा दो".. दीदी के ऐसा कहने का ही मानो इंतज़ार था और मैंने शावर बढा दिया और दीदी के बूब्स से फिर खेलने लगा और मैंने फिर लेफ्ट हैंड से साड़ी जो नैवेल के पास लगयी होती ने वाहन हाथ दाल कर उसे धीरे धीरे खिंच कर बाहर निकाल दिया और अब दीदी की पूरी साडी खुल गयी, ऊपर से पल्लू तो पहले ही हटा दिया था और फिर इससे पूरी साडी नीचे गिर गयी। अब मैंने दीदी के ब्लाउज के बटन पे अपना हाथ डाला और दोनों हाथो से पहला बटन खोलने लगा, मैंने अपना हाथ दीदी के ब्लाउज से बाहर निकाला पर अभी तक दीदी ने अपना हाथ अंदर ही रखा और खुद ही अपने बूब्स को दबाये जा रही थी। मैंने धीरे से दीदी के सारे हुक खोल दिए और अब मैंने दीदी को आराम से हटाया और घुमा के अपने सीने से दीदी को चिपका दिया और फिर पीछे से दीदी के ब्लाउज को खींच लिया, अब दीदी मेरे सामने ब्रा और पेन्टी में ही थी. फिर आराम से मैंने दीदी की ब्रा का भी हुक खोला और दीदी से कहा, “दीदी प्लीज ब्रा भी उतार दीजिए ना"...“नहीं रेशु..तुम पागल तो नहीं हो रहे"... दीदी के मुँह से यह जवाब सुनकर में हैरान रह गया क्यों की मुझे लग रहा था की दीदी उस सिचुएशन में थी की वो मेरी हर बात मान जाती पर दीदी ने मना कर दिया।

“शीट! दिस इस नोट फेयर, आप मुझे न्यूड कर सकती हैं और अपने आप होने से क्यों हिचकिचा रही हैं"? और ऐसा कहते ही मैंने दीदी के कंधे से ब्रा के स्ट्रैप खींच डाले और दीदी के बूब्स मेरे सामने नंगे हो गए। मैं हल्का सा घबराया की कहीं इस हलकी सी जबरदस्ती से दीदी गुस्सा नहीं हो जाये पर और कुछ न सोचते हुए मैंने दीदी को फिर से अपने पास खींच लिया और बाँहों में भर के दीदी को किस करने लगा, शोल्डर पर, गालों पर, कान पर... पूरे मुँह पर किस कर दिए और इस तरह चूमने के बाद मैंने दीदी को अपने से अलग किया, अब वो शायद भूल चुकी थी की मैंने उनकी इजाज़त के बगैर उनकी ब्रा उतार दी है। फिर मैंने दीदी को अलग करके कहा, “क्यों दीदी, इस नहले का कोई जवाब हैं क्या"? और नॉटी सा मुस्कराया। दीदी भी मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और मुझे कस के जोर से पकड़ा और अपनी बाँहों में भर लिया और फिर वो मेरे लिप्स तक नहीं पहुंची तो वो मेरे ऊपर चढ़ गयी और अपने पाँव मेरे गांड के पास लपेट के मेरे ठीक सामने आ गयी और अपने हाथ मेरे नैक के पास ले लिये।

फिर मैंने भी इस मौके को न छोड़ते हुए दीदी की बैक को पकड़ा और फिर दीदी ने रिलैक्स होते हुए मेरे गालो पे अपने हाथ रक्खे और मेरे लिप्स को अपने लिप्स से जकड लिया और चूसने लगी, यह मेरे लिए कोई शॉक नहीं था यह एक्सपेक्टेड था पर कभी कभी जो एक्सपेक्ट किया होता है वो भी इतना हसीन होता हे की मज़ा आ जाए। अब तो कोई रुकना ही नहीं था मैंने भी दीदी के सर को पीछे से पकड़ा और अपने लिप्स से चिपका के रखा और मस्त चूसने लगा। फिर मैंने अपना थूक दीदी के मुँह में छोड़ दिया और दीदी ने आँखें खोल के मेरी और देखा, अब उन्हें पता था की हम दोनों के बीच में क्या हो रहा है, इसीलिए उन्होंने अपने लिप्स को अलग किया और मुझे देखकर सोचने लगी, शायद यही सोच रही थी की जो भी हो रहा है, सही है या नही। इधर मेरा लंड फिर से खड़ा हो रहा था और दीदी की चुत को टच कर रहा था लेकिन दीदी ने मुझे छोड़ दिया और बाहर जाने लगी, तो में भी उनके पीछे दौड़ा और बाहर निकलते ही दीदी का रूम था मैंने दीदी के हाथ को पकड़ा और फिर से अपनी और घुमा के अपने से सटा लिया और फिर से किस करने लगा, दीदी ने भी रेस्पॉन्स किया पर अभी भी वो उलझन में थी, फिर मैं उनके रूम में ही दाखिल हो गया और दीदी को बेड पर गिरा दिया और फिर से उन्हें किस करने लगा, और दोनों हाथों से उनके बूब्स दबाने लगा, उनके निप्पल्स कड़क हो चुके थे, लेकिन वो अभी भी मेरी जीभ को अपने मुँह में नहीं ले रही थी, मतलब अभी थोड़ी सी हिचकिचाहट बाकि थी, तो मैंने भी दीदी को छोड़ा और दीदी की और देख कर बड़े प्यार से “प्लीज" कहा....
 
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Avi Naik

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“कोमल दीदी"

भाग – 10


दीदी ..“प्लीज"... वो फिर से सोच रही थी। मैं भी सोच में पड़ गया पर दीदी ने इस बार मुझे पकड़ा और अपने से लगा लिया और मुझे पलटा के मेरे ऊपर आ गयी और मेरे कान में कहा, “जस्ट किडिंग.. कितने परेशान हो रहे हो? कोई बात नहीं लेट्स स्टार्ट अगेन"... और मुझे अब वो प्यासी औरत की तरह किस करने लगी और में भी खुश होते हुए रेस्पोंड करने लगा। अब मैंने भी दीदी को पलटा दिया और उनके बूब्स दबाने लगा। फिर मैंने दीदी के बूब्स चूसे और मस्त दबाने लगा, गुलाबी कड़क निप्पल और क्रीमी बूब्स, बाय गॉड मेरा लंड अब और भी तन रहा था। फिर दीदी ने अपना एक हाथ मेरे नीचे ले जाते हुए मेरे लंड को पकड़ लिया और मैं समझ गया की उनसे अब रहा नहीं जाता तो मैं भी उठ गया और दीदी के पास बैठ गया। दीदी मेरे लंड को सहलाने लगी। थोड़ी देर तक सहलाने के बाद मैंने उनके मुँह में ही लंड डाल दिया और वो भी इसी बात का इंतज़ार में थी। उन्होंने भी मस्त चूसना शुरु कर दिया और मैं भी फिर से इस नशे में खो रहा था। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था कभी इन्सेस्ट रिलेशन्स न मान ने वाला, आज अपनी ही चाची और बहन के साथ सेक्स कर रहा था पर एक बात तो सही है की आप किसी को पटा के उसके साथ सेक्स करें और अपने रिलेटिव जो आपको नजदीक से जानते हैं, उसके साथ सेक्स करे उसमे बड़ा फर्क है।

दीदी अब कुछ सोचने के सिचुएशन में नहीं थी, और मैं अब कुछ सोचना नहीं चाहता था। दीदी अब मस्ती से मेरे लंड को चूसे जा रही थी, और उन्हें मेरे दोनों लटकते बॉल्स को चूसने में भी बड़ा मज़ा आ रहा था। मैं अपने घुटनों पर बैठा था और दीदी के बालों को सहला रहा था फिर मैंने दीदी के मुँह पर प्रेशर देना शुरू किया और दीदी के मुँह को दोनों हाथों से पकड़ा और उसे चोदने लगा, और धीरे – धीरे अपना लंड उनके गले के अंदर बाहर करने लगा। वाह्ह्, कितना मज़ा आ रहा था, दीदी की हालत से यह लग रहा था की वो पहली बार माउथ फकिंग कर रही हे, और मैंने भी पहली बार में शांति से काम लेना चाहा। मस्ती से,आराम से मैं दीदी के गले में अपना लंड जाने देता था और बाहर ला रहा था।फिर मैंने धीरे धीरे अपनी स्पीड बधाई और दीदी के मुँह को स्पीड में चोदने लगा, दीदी के मुँह में से आवाज़ें आ तो रही थी, पर वो मज़े की लग रही थी, दर्द की नही। फिर मैंने दीदी के मुँह को पकड़ के अपना लंड दीदी के गले में फसा दिया, और सर को ठीक अपने बॉल्स तक चिपका दिया।

अब जा के दीदी को तकलीफ होने लगी और वो अपने हाथ से दर्द बयान कर रही थी। दोस्तों आप को लग रहा होगा, की इसमें क्या पर एक बार 9 इंच गले में चिपक जाये तो सांस भी नहीं ले पाओगे। वैसा ही हाल दीदी का था फिर मैंने दीदी को ज्यादा परेशान न करते हुए, दीदी के सर को आज़ाद किया लेकिन लंड पूरा बाहर निकाल दिया। दीदी जो की अब तक डॉगी स्टाइल में मेरा लंड चूस रही थी, वो अब सीधी बेड पर गिर पड़ी और मेरी और देखने लगी, और कहा, “ओह माय गॉड रेशु, तुम तो मेरी जान ही ले लेते।पता है, मैं सांस नहीं ले पा रही थी".. फिर उन्होंने अपने सीने पर हाथ रखा और तीन – चार बार गहरी साँसे ली और फिर मेरी और मुस्कुरा के कहा, “लेकिन रेशु..एक बात है, मज़ा बड़ा आया”.. और वो मुस्कुरा पडी और उनकी मुस्कराहट से उनकी अंदरूनी ख़ुशी और संतुष्टि साफ़ झलक रही थी।

फिर मैं भी उन्हें स्माइल दे कर बेड से नीचे अपने घुटनों पर बैठ गया और दीदी की दोनों टांगे पकड़ के दीदी को अपने पास खिंच लिया और फिर मैंने अपने दोनों हाथों से दीदी की कमर पकड़ी और दीदी को और भी अपने पास खिंचा और दीदी की पेन्टी में हाथ डाल कर दीदी की पेन्टी को उतार दिया और दीदी की चुत को देखने लगा। देखने के बाद मैंने अपने लिप्स उसके पास ले जा का उसे एक प्यार से किस दिया और फिर अपने हाथ से उसे सहलाने लगा, अपना हाथ चूत के ऊपर नीचे फेरने लगा, और फिर से एक किस दी। क्या मस्त चुत थी, अभी भी गुलाबी थी, और टाइट भी. मैं बार बार उसे पहले तो किस करने लगा और दीदी भी गर्मी महसूस कर रही थी। फिर मैंने अपनी जीभ से दीदी की चूत को नीचे से ऊपर चाटा और अपनी जीभ फिरायी और फिर अपनी दो उँगलियों से दीदी की चूत को फ़ैलाया और खुलने के बाद मैं अपनी जीभ से दीदी की चूत को चूसने लगा और अभी तो उनके चूत से हटने का मन नहीं हो रहा था, क्या मज़ा आ रहा था क्या खुशबू थी। अब दीदी की चूत से पानी बहना शुरू हो गया था, वो भी अब मदहोश हो रही थी और मेरे सर को अपनी चुत में और घुसा रही थी।

फिर मैंने अपना मुँह चुत से निकाला, मेरा लंड तो कब का टाइट कर दिया था दीदी ने और फिर मैंने अपनी दीदी की चूत पे अपना लंड घिसा और दीदी के चूत के निचले हिस्से पर अपना सुपाडा वाला पार्ट रखा और उसे ऊपर करने लगा, वहा तक जहाँ तक मेरे दोनों बॉल्स भी दीदी की चुत को महसूस हो, दीदी अब मेरा लंड अंदर लेने के लिया तड़प उठी थी, मेरा ऐसे तीन चार बार तडपाने से वो बोल उठी, “रेशु..प्लीज ऐसे मत करो, प्लीज अंदर डालो ना, बहुत सही कर रहे हो”... दीदी की आवाज़ में तड़प थी।

मैने भी दीदी से कहा की, “दीदी आपके ऐसा बोलने का ही इंतज़ार था"... और मैंने अपना सुपाड़ा दीदी की चूत के ऊपर रखा और बाएं हाथ से दीदी की चूत को फैला के चूत में लंड दाल दिया। पहले तो चूत में पूरा लंड गया नहीं और फिर मैंने दूसरी बार जोर लगा के पूरा लंड अंदर डाल दिया तो दीदी मेरा पूरा लंड अंदर पा के इतना मचल उठी की बेड पे कमर मोड़ के उठने और तडपने लगी। बाद में मैंने दीदी को पकड़ लिया और दीदी को बेड पर ठीक से लिटा दिया और दीदी के लिप्स को फिर से अपने लिप्स में कैद कर लिया और चूसने लगा। मैं नीचे आराम से लंड अंदर बाहर करने लगा, अभी ऑफ़ कोर्स दीदी को मज़ा आने वाला था, उन्हें दर्द नहीं हो रहा था। मैं भी आराम से लिप किस कर रहा था और आराम से दीदी को चोद रहा था। दीदी भी मज़े ले रही थी, फिर मैं दीदी के लिप्स को आज़ाद करते हुए उनके बूब्स को चूसने और दबाने लगा। क्या मस्त बूब्स थे और मैंने फिर चोदने की स्पीड थोड़ी बढ़ाई और बूब्स को चूसने की स्पीड भी।

फिर मैंने अपनी दाएं ओर से एक तकिया उठाया और उसे दीदी की कमर के नीचे रख दिया। दीदी फिर से अपनी वही पोजीशन में आ गई और उन्होंने अपने दोनों पाँव फैला लिये, दीदी समझ गयी थी की अब रियल पिक्चर स्टार्ट होने वाली है। मैंने दीदी को चोदने की स्पीड और भी तेज़ कर दी और दीदी के मुँह में से अब “आह, ओह, यस, यस, फ़क मि हार्डर”... की आवाज़ें भी तेज़ हो गयी। मैं उन्हें बिना रुके चोदता रहा, फिर मैंने दीदी के बाएं पाँव को अपने हाथ में उठा लिया और अपने कंधे पर रखा और चुदाई तो जारी ही थी। दीदी के आँखों में अब दर्द साफ़ हो रहा था और वो कह रही थी, “ओह..रेशु..प्लीज धीरे – धीरे" और उनसे अब बोला नहीं जा रहा था और लब्ज़ अब उनके होंठों में टूटने लगे थे। फिर मैंने दीदी को ऊपर थोड़ा सरका दिया और मैं भी उनके साइड में होकर चोदने लगा। उस पोज में मुझे मज़ा नहीं आया तो मैंने दीदी को डॉगी स्टाइल में बिठा दिया और झटके मारने लगा।

बड़ा अच्छा लग रहा था और मेरे हर झटके पे दीदी आगे जाती और चिल्लाती थी, फिर मैंने दीदी को फिर से मिशनरी पोजीशन में ला दिया और अपने दोनों हाथ दीदी के कंधे पर रखे और दीदी को चोदना शुरू किया। तक़रीबन एक घंटे से मैं चोद रहा था और दीदी भी इतनी लम्बी चुदाई से थोड़ी सी हैरान थी। उनके सारे बाल भीग चुके थे, और उनके सारे बदन पर बिखर चुके थे। इतनी लम्बी चुदाई उन्होंने शायद कभी सही नहीं थी और अब तो उनके चिल्लाने में आवाज़ भी कम हो चुकी थी। फिर मैंने एक बार सट से झटका दिया की दीदी झड गयी और मुझसे उठ कर लिपट गयी।

दीदी पूरी पसीने से भीग चुकी थी, हम जब बाथरूम से आये थे तभी वो पानी से भीगी हुई थी और मैंने भी उन्हें अपने बाहों में भर लिया। पर अभी मेरा झड़ना बाकी था इसीलिए मैंने तो चुदाई जारी रखी और फिर से उन्हें लेटा दिया और अपनी स्पीड और भी बढा दी। अब तो मेरी और दीदी की जांघे टकराने से जो आवाज़ होती थी वो अब एक आवाज़ हुई नहीं की दूसरी बार में दीदी को झटके से टकरा जाता था। अब दीदी थक कर बेहाल थी और वो अब रियेक्ट करना छोड़ चुकी थी, जब औरत संतुष्ट हो जाती हे तो वो अपना शरीर एक दम ढीला छोड़ देती हे और वैसे ही दीदी का शरीर अब ढीला हो चुक्का था उनका हाथ अब रिस्पांस नहीं दे रहा था न ही अब आवाज़ आ रही थी, बस मुँह पर दर्द के भाव आ रहे थे। मैं भी अब थक गया था और मुझे लगा की अब मैं भी झड़ने वाला हूँ तो मैंने और स्पीड बड़ाई और दीदी से कहा...

मैं : “दीदी लगता है अब में भी फिनिश करने वाला हू”...

दीदी : “अंदर ही कर दो.. रेशु.. बहुत अच्छा लग रहा है”...

दीदी ने थकान के मारे आँखें बंद से ही जवाब दिया,“पर दीदी प्रेगनेंसी"... “सोचो मत, चिंता मत करो".. और मैंने दीदी के अंदर ही अपना सारा वीर्य छोड़ दिया और दीदी के ऊपर गिर पडा। मैं भी बहुत थक गया था और पसीने से तरबतर था और दीदी भी। हम दोनों में से कोई भी अब कुछ बात करने के हालत में नहीं था और मुझे बाद में पता ही नहीं चला की कब आँखें बंद हो गयी और कब सुबह के 10 बज गये।
 

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“कोमल दीदी"

भाग – 11


सुबह उठा और बीती हसीन रात के बारे में सोचने लगा। अब दीदी क्या महसूस कर रही होगी, कहीं वो भी अपनी माँ की तरह मुझ पर गुस्सा तो नहीं करेंगी। सब सोच रहा था और सोचते – सोचते में फ्रेश भी हो गया और रूम से बाहर आया और दीदी को ढूँढ़ने लगा पर दीदी घर में कहीं मिली नही। एक पल के लिए बुरा ख्याल आया, पर इतने में मैंने दीदी को बाहर से अंदर आते देखा। हम दोनों एक दूसरे के सामने खड़े थे पर कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या बात करू? कल रात को इतने नजदीक थे और अभी पता नहीं इतनी दूरी क्यों लग रही थी। दीदी भी शायद इसी सिचुएशन में थी, इसीलिए वो भी कुछ नहीं बोली,
और चुपचाप किचन में चलि गयी।

मैं भी वहीँ ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी देखने लगा। बस 10 मिनट में दीदी चाय बनाकर बाहर आई और मेरे पास आ कर मुझे एक कप दिया और मेरे सामने बैठकर चाय पीने लगी। अभी भी हमारे बीच एकदम चुप्पी थी। ऐसा तो पहले कभी सोचा नहीं था। मै चाय अपने हाथ में पकड़ के कल रात की सोच में खो गया था। तभी मुझे पता नहीं चला कब दीदी सामने से उठकर मेरे पास में आ कर बैठ गयी और मेरे कंधे पर अपने हाथ रखा और कहा... “क्या सोच रहे हो रेशु"?.. दीदी ने कहा तब जा के मानो में नींद से जगा और दीदी को सामने देखा। वो मेरे सामने देख रही थी और समझ भी रही थी। मैंने दीदी की और से ध्यान हटा कर अपने कप की और देखा और कहा, “दीदी.. शायद आप समझ रही हैं की मैं क्या सोच रहा हूं".. मैंने कहा, उस वक़्त में बहुत टेंस लग रहा था और मैं भी नहीं जानता, मैं उस वक़्त नाटक कर रहा था की सही मायनो में चिंतित था पर दीदी ने मेरे गाल पर किस किया और कहा, “समझ भी रही हूँ और उसके बारे में कुछ कहना भी नहीं चाहती। तुम भी एक काम करो, उसके बारे में मत सोचो और हाँ अगर तुम मेरे बारे में सोच रहे हो तो एक बात सुनो.. मैं कल रात के बारे में किसी से कोई जिक्र नहीं करूंग़ी और हाँ तुमसे भी यह उम्मीद रहेगी की तुम भी किसी से कुछ नहीं कहोगे"।

दीदी ऐसा बोल के किचन में चली गयी और लंच बनाने लगी। मै अब भी पता नहीं इतना क्यों सोच रहा था, कल जिसके इतना करीब था की उसकी साँसे में महसूस कर रहा था उससे इतना क्यों अलग लग रहा था। लेकिन मैं फिर वहां से अपनी चाय ख़त्म कर के उठा और चाय का कप रखने किचन में गया और दीदी की बैक को देखा। दीदी ने मस्त ऑरेंज कलर की साडी पहनी थी और मैचिंग ब्लाउज था और वो बर्तन साफ़ कर रही थी। मेरे अंदर आने की आहट उन्हें हो गयी थी और वो यह भी जान रही थी की में कल के बारे में सोच कर अपसेट सा हू। वो मेरी और मूड़ी और मेरी और देखा, “बाय गॉड वो किसी हसीना से कम नहीं लग रही थी"।

दीदी ने अपने बाल अपनी बैक से आगे की साइड किये और मेरी और देखा, मैं अभी भी किचन के दरवाजे पर खड़ा रहकर उन्हें ही देख रहा था। उन्होंने मुझे देखा और कहा, “रेशु.. वहा क्या देख रहे हो? इधर आओ"... दीदी के कहते ही मेरे कदम उनकी और उठने लगे और में दीदी के पास आ कर खड़ा हो गया। मैं ठीक दीदी के पीछे खड़ा था में दीदी की बस खूबसूरती को देख रहा था। दीदी जानती थी पर वो भी बस अपने बर्तन धोने में लगी थी और में उन्हें देख रहा था फिर एक आईडिया आया और मैंने अपना कप साइड में रखा और दीदी को पीछे से गले लगा लिया और अपनी और खींच लिया और अपने से सटा लिया। मेरे हाथियार में हरकत तो होने लगी थी पर में उसके बारे में सोच नहीं रहा था में बस दीदी के बारे में सोच रहा था।

दीदी भी पूरी मुझ से एक दम चिपक गयी थी और वो कुछ कहे इससे पहले मैंने ही दीदी को कहना शुरू कर दिया, “थैंक यु.. दीदी, मैं यही सोच रहा था की कहीं आप मुझसे कल रात के बारे में नाराज़ तो नहीं हैं, पर आपने कह कर मेरा सारा डर निकाल दिया"...और ऐसा कहते हुए मैंने दीदी के कान के निचे गाल के करीब एक मीठा किस किया और दीदी के रिएक्शन का इंतजार करने लगा..“रेशु. मुझे पता था की तुम इसी बात से परेशान थे इसीलिए मैंने तुम्हे पहले से ही कह दिया, अब तो तुम ठीक हो ना”... दीदी ने पूछा, और मैंने फिर से दीदी के गाल पर किस की और कहा, “मैं बिलकुल ठीक हूँ दीदी" और अपने एक हाथ से दीदी के पेट पर प्रेशर दिया। मैं बात यही ख़त्म नहीं करना चाहता था इसीलिए मैंने दीदी से कहा, “दीदी, एक बात पूछूं?"

“यह कोई पुछने वाली बात है.. जो पूछना हे वो पूछो”.. दीदी को इतना शांत और नार्मल देख कर मैंने भी पूछ लिया,“दीदी.. कल रात की एक – एक बात अभी भी मेरे जहन में है और सच कहूं तो मुझे कल रात आपके साथ बड़ा मज़ा आया और"... मैं बोलते बोलते रुक गया। “मैं और"??दीदी भी नहीं चाहती थी, की इन बातों का सिलसिला रुक जाए। “और, आप बहुत ख़ूबसूरत हैं दीदी..सच में आप बहुत ख़ूबसूरत हैं। आप को कल रात छुआ तो समझ में आया की सही खुबसुरती किसे कहते हैं"... और मैंने दीदी की नाभी में एक ऊँगली डाल कर उसे घुमाया और दीदी को पीछे से अपने लंड से भी दबाव डाला। दीदी अब तक प्लेट साफ़ कर रही थी पर अब उनके हाथ रुक गए थे और ऐसा लगता था की वो और भी सुनना चाहती थी।

इसीलिए उन्होंने कहा “अच्छा..दीदी इतनी पसंद आ गयी है क्या"? दीदी ने भी इस बात को कंटिन्यू किया। “सच्ची में बहुत"... मैंने रिप्लाई किया और तुरंत ही दीदी ने पूछ लिया, “अच्छा, क्या पसंद आ गया, दीदी में जो इतना पसंद करने लगे हो"? दीदी का यह सवाल तो क़ातिलाना था और अब मौका छोडना सही नहीं था इसीलिए मैंने अपना एक हाथ दीदी के नैवेल से ऊपर उठाया और दीदी के लिप्स पे रखा और कहा की, “दीदी ये लिप्स हैं ना,सच में बड़े अच्छे हैं”। हालाँकि दीदी भी यह जानती थी की में किस चीज़ पर मर मिटा हूँ पर मैंने लिप्स से ही शुरू किया और अपनी एक ऊँगली दीदी के दोनों लिप्स के बीच में फिराई और दीदी के नीचे के होठ को ऊँगली से प्रेस भी किया और दीदी ने मुँह खोल दिया। फिर मैंने अपनी ऊँगली दीदी के होठो से हटा के दीदी के चिन पे से गुजारते हुए दीदी के गले पर गोल गोल घुमायी और दीदी के गले पर से उसे दीदी के सीने पर रखा और वहा घूमाते हुए मैंने दीदी के ब्लाउज के क्लीवेज में अपनी ऊँगली डाली।

जैसे ही मैंने अपनी ऊँगली दीदी के ब्लाउज में डाली की दीदी ने मेरी ऊँगली को अपने हाथ से थाम लिया और मैं रूक गया। दीदी पूरी तरह सिड्यूस हो चुकी थी पर वो अभी शायद सेक्स करना नहीं चाहती थी। इसीलिए वो न तो ऊँगली बाहर निकल रही थी की न ही मुझे अंदर हाथ डालने दे रही थी। फिर इससे पहले की मैं कुछ करू, दरवाज़े की घण्टी बजने लगी और हम दोनों होश में आए। दीदी ने मेरी ऊँगली छोड़ी और अपनी साड़ी ठीक की और छूटने लगी पर मैंने छोड़ा नही। तो उन्होंने मेरी और देखा और मैंने फट से दीदी के लिप्स पर अपने लिप्स रख के उन्हें चूम लिया और लिप्स मस्त चूसने लगा।

उधर घण्टी बज रही थी, दीदी ने उन्हें छोड़ने के लिए मुझे धक्का दिया और मैंने भी उन्हें छोड़ दिया और दरवाज़ा खोलने के लिए भागा। मैने जा कर देखा तो चाचा के नाम का कोई कूरियर था और मैंने उसे 5 मिनट में चलता कर दिया और फिर से किचन में गया। तो दीदी को फिर से पता चल गया की में आया हूँ तो उन्होंने सामने से कहा की,“अभी डिस्टर्ब मत करो,बाद में बता देना क्या तुम्हे अच्छा लगा”। मैं भी मन में खुश होते हुए, बाहर आ गया। उनके इंटेंशन से साफ़ पता चल रहा था की वो अब पूरी तरह से मेरी थी। फिर मैं लंच के बाद दीदी को उठा के बैडरूम में ले गया। बेडरूम में पहुंचते ही मैंने दीदी को अपनी बाहों में लिया और उसे चूमना चाटना शुरु किया दीदी भी अब पूरा मजा ले रही थी। कुछ देर किस करने के बाद हम रुक गये, मैने दीदी को कहा “दीदी मैं आपको ऐसे सेक्स करना चाहता हु, कि जैसे हमारे बीच पहली बार सेक्स हो रहा हो। जैसे रात को कुछ हुआ ही नही, मैं आपको नये तरीके से मजा देना चाहता हु, क्या आप इसके लिये तैयार है? बहुत मजा आयेगा थोड़ा अलग सेक्स करेंगें, बिल्कुल पहली बार जैसे करते है वैसे ही”.। दीदी बोली “वॉव मुझे क्या करना है,यह बता”। मैंने कहा “हम सेक्स के साथ साथ गंदी गंदी बाते करेंगे एक दूसरे को गलियां देंगे”। दीदी बोली, “नही गालिया नही”। मैंने कहा “कुछ नही होता मैंने सेक्सी मूवीज में देखा है बहुत मजा आता है। इससे सेक्स मे नयापन आता है और मैं आपको बहुत मजा देना चाहता हु। आई लव यू दीदी”।

“मेरा भाई मुझे इतना पसंद करता है ये तो मुझे पता ही नहीं था”... दीदी ने कहते हुए आगे बढ़ कर मेरे होंठो पर एक जोरदार चुम्मा लिया और फिर दुबारा अपने होंठो को मेरे होंठो से सटा कर मेरे होंठो को अपने होंठो से दबोच कर अपनी जीभ मेरे मुंह में धकेलते हुए चूसने लगी। उसके होंठ चूसने के अंदाज से लगा जैसे मेरे होंठो का पूरा रस दीदी चूस लेना चाहती हो। होंठ चूसते चूसते वो मेरे लण्ड को अपनी हथेली के बीच दबोच कर मसल रही थी। कुछ देर तक ऐसा करने के बाद जब दीदी ने अपने होंठ अलग किये तो हम दोनों की सांसे फुल गई थी।

मैं अपनी तेज बहकी हुई सांसो को काबू करता हुआ बोला, “हाय दीदी आप बहुत अच्छी हो"। “अच्छा…बेटा मक्खन लगा रहा है।" “नहीं दीदी…आप सच में बहुत अच्छी हो….और बहुत सुन्दर हो….”। इस पर दीदी हंसते हुए बोली “मैं सब मक्खन बाजी समझती हूँ, बड़ी बहन को पटाकर नीचे लिटाने के चक्कर में…..है तू"। मैं इस पर थोड़ा शर्माता हुआ बोला “हाय... नहीं दीदी…. आप….” दीदी ने गाल पर एक प्यार भरा चपाट लगाते हुए कहा, “हाँ…हाँ…बोल…..”

मैं इस पर झिझकते हुए बोला, “वो दीदी दीदी…आप बोल रही थी की मैं….दि…दि…दिखा दूंगी"। दीदी मुस्कुराते हुए बोली “दिखा दूंगी? क्या मतलब हुआ.. क्या दिखा दूंगी….”। मैं हकलाता हुआ बोला “वो….वो…दीदी आपने खुद बोला था”... “खुलके बता ना रेशु….मैं तुझे कोई डांट रही हूँ जो ऐसे घबरा रहा है…. क्या देखना है”?“दीदी..वो..वो मुझे..चु….चु…”। “अच्छा तुझे चूची देखनी है….वो तो मैं तुझे दिखा दिया ना...यही तो है..…ले देख..।"

कहते हुए अपनी ब्रा में कसी दोनों चुचियों के निचे हाथ लगा उनको उठा कर उभारते हुए दिखाया। छोटी सी नीले रंग की ब्रा में कसी दोनों गोरी गदराई बूब्स और ज्यादा उभर कर नजरो के सामने आई तो लण्ड ने एक उछाल मारी मगर दिल में करार नहीं आया। एक तो बूब्स ब्रा में कसी थी, नंगी नहीं थी दूसरा मैं चुत दिखाने की बात कर रहा था और दीदी यहाँ चूची उभार कर दिखा रही थी। होंठो पर जीभ फेरते हुए बोला “हाय…नहीं…दीदी आप समझ नहीं रही….वो वो दू…सरी वाली चीज़ चु…चु…चूत दिखाने….के लिए…”। “ओहहो...तो ये चक्कर है! अपनी बड़ी बहन को बुर दिखाने को बोल रहा है….हाय कैसा बहन चोद भाई है मेरा…. मेरी चुत देखने के चक्कर में है...उफ्फ्फ। ठीक है मतलब तुझे चुत देखनी है….अभी बाथरूम से आती हूँ तो तुझे अपनी बुर दिखाती हूँ”।

कहती हुई बेड से निचे उतर ब्लाउज के बटन बंद करने लगी। मेरी कुछ समझ में नहीं आया की दीदी अपना ब्लाउज क्यों बंद कर रही है। मैं दीदी के चेहरे की तरफ देखने लगा तो दीदी आँख नचाते हुए बोली “चुत ही तो देखनी है। वो तो मैं पेटिकोट उठाकर दिखा दूंगी"। फिर तेजी से बाहर निकल बाथरूम चली गई। मैं सोच में पड़ गया दीदी यह क्या कर रही है फिर सोचा देखते है दीदी करना क्या चाहती है। मैं दीदी को पूरा नंगा देखना चाहता था। मैं उनकी चूची और चूत दोनों देखना चाहता था और साथ में उनको चोदना भी चाहता था। दीदी जब वापस रूम में आकर अपने पेटिकोट को घुटनों के ऊपर तक चढा कर बिस्तर पर बैठने लगी तो मैं बोला, “दीदी….दीदी…मैं….चू…चू…चूची भी देखना चाहता हूँ”।

दीदी इस पर चौंकने का नाटक करती बोली “क्या मतलब…चूची भी देखनी है….चुत भी देखनी है….मतलब तू तो मुझे पूरा नंगा देखना चाहता है….हाय….बड़ा बेशर्म है….अपनी बड़ी बहन को नंगा देखना चाहता है….क्यों मैं ठीक समझी ना.. तू अपनी दीदी को नंगा देखना चाहता है। बोल, ठीक है ना….”। मैं भी शर्माकर दिखाते बोला “हां दीदी….मुझे आप बहुत अच्छी लगती हो….मैं….मैं आपको पूरा.…नंगा देखना….चाहता…हु”।

“बड़ा अच्छा हिसाब है तेरा….अच्छी लगती हो…..अच्छी लगने का मतलब तुझे नंगी होकर दिखाऊ..कपड़ो में अच्छी नहीं लगती हूँ क्या….?" “हाय दीदी मेरा वो मतलब नहीं था ….वो तो आपने कहा था….फिर मैंने सोचा….सोचा….”।

“हाय भाई..तुने जो भी सोचा सही सोचा….मैं अपने भाई को दुखी नहीं देख सकती….मुझे ख़ुशी है की मेरा भाई अपनी बड़ी बहन को इतना पसंद करता है की वो नंगा देखना चाहता है….हाय….रेशु मैं तुझे पूरा नंगा होकर दिखाउंगी…..फिर तुम मुझे बताना की तुम अपनी दीदी के साथ क्या-क्या करना चाहते हो….”।

मेरे चेहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक वापस आ गई। दीदी बिस्तर से उतर कर नीचे खड़ी हो गई और हंसते हुए बोली,“पहले पेटिको़ट ऊपर उठाऊ या ब्लाउज खोलू…” मैंने मुस्कुराते हुए कहा “हाय दीदी दोनों….खोलो….पेटिको़ट भी और ब्लाउज भी….”।

“इश…स……स…बेशर्म पूरा नंगा करेगा….चल तेरे लिए मैं कुछ भी कर दूंगी….अपने भाई के लिए कुछ भी। पहले ब्लाउज खोल लेती हूँ, फिर पेटिको़ट खोलूंगी….चलेगा ना"? गर्दन हिला कर दीदी ने पूछा तो मैंने भी सहमती में गर्दन हिलाते हुए अपने गालो को शर्म से लाल कर दीदी को देखा। दीदी ने चटाक-चटाक ब्लाउज के बटन खोले और फिर अपने ब्लाउज को खोल कर पीछे की तरफ घूम गई और मुझे अपनी ब्रा का हूक खोलने के लिए बोला। मैंने अपने हाथो से उनके ब्रा का हूक खोल दिया। दीदी फिर सामने की तरफ घूम गई। दीदी के घूमते ही मेरी आँखों के सामने दीदी की मदमस्त, गदराई हुई मस्तानी कठोर चूचियां आ गई।

मैं दूसरी बार अपनी दीदी के इन गोरे गुब्बारों को पूरा नंगा देख रहा था। इतने पास से देखने पर गोरी चूचियां और उनकी ऊपर की नीली नसे.. भूरापन लिए हुए गाढे गुलाबी रंग की उसकी निप्पले और उनके चारो तरफ का गुलाबी घेरा जिन पर छोटे-छोटे दाने जैसा उगा हुआ था सब नज़र आ रहा था। मैं एक दम कूद कर हाय करते हुए उछला तो दीदी मुस्कुराती हुई बोली, “अरे, रे इतना उतावला मत बन अब तो नंगा कर दिया है आराम से देखना….ले…देख"। कहती हुई मेरे पास आई।

मैं बिस्तर पर बैठा हुआ था और वो नीचे खड़ी थी इसलिए मेरा चेहरा उनके चुचियों के पास आराम से पहुँच रहा था। मैं चुचियों को ध्यान से से देखते हुए बोला “हाय…दीदी पकडू?”...“हाँ…हाँ….पकड़ले जकड़ले.. अब जब नंगा करके दिखा रही हूँ तो छूने क्यों नहीं दूंगी….ले आराम से पकड़कर मजा कर……अपनी बड़ी बहन की नंगी चुचियों से खेल….”। दोस्तो दीदी के साथ आज बहुत मजा आ रहा था दीदी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी।
 

Avi Naik

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“कोमल दीदी"

भाग – 12


मैंने अपने दोनों हाथ बढा कर दोनों बूब्स को आराम से दोनों हाथो में थाम लिया। नंगे बूब्स के स्पर्श ने ही मेरे होश उड़ दिए। उफ्फ्फ दीदी की बूब्स कितनी गठीली और गुदाज थी, इसका अंदाजा मुझे इन मस्तानी बूब्स को हाथ में पकड़ कर ही हुआ। मेरा लण्ड फडफडाने लगा। दोनों बूब्स को दोनों हथेलीयो में कसकर हलके दबाव के साथ मसलते हुए चुटकी में निप्पल को पकड़के हलके से दबाया जैसे किशमिश के दाने को दबाते है। दीदी के मुंह से एक हलकी सी आह निकल गई। मैंने घबरा कर बॉब्स छोड़ी तो दीदी ने मेरा हाथ पकड़ फिर से अपनी बूब्स पर रखते हुए दबाया। तो मैं समझ गया की दीदी को मेरा दबाना अच्छा लग रहा है और मैं जैसे चाहू इनकी चूचियों के साथ खेल सकता हूँ। मैने गर्दन उचका कर बूब्स के पास मुंह लगा कर एक हाथ से एक चूचे को पकड़ दबाते हुए दूसरी चूची को जैसे ही अपने होंठो से छुआ मुझे लगा जैसे दीदी गनगना गई उनका बदन सिहर गया।

उन्होंने मेरे सर के पीछे हाथ लगा बालों में हाथ फेरते हुए मेरे सर को अपनी चुचियों पर जोर से दबाया। मैंने भी अपने होंठो को खोलते हुए उसकी चूची के निप्पल सहित जितना हो सकता था उतना उसे अपने मुंह में भर लिया और चूसते हुए अपनी जीभ को निप्पल के चारो तरफ घुमाते हुए चुम लीया। तो दीदी सिसयाते हुए बोली,“आह….आ…हा….सी…सी….ये क्या कर रहा है…उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़…..मार डाला।"

अब तो मैं जैसे भूखा शेर बन गया और दीदी के बूब्स को मुंह में भर ऐसे चूसने लगा जैसे सही में मैं उसमे से रस निकाल कर खा जाऊंगा। कभी बाई चूची को कभी दाहिनी को मुंह में भर भर कर लेते हुए निप्पलों को अपने होंठो के बीच दबा दबा कर चूसते हुए रबर की तरह खींच रहा था। निप्पल के चारो तरफ के घेरे में जीभ चलाते हुए जब दुसरे हाथ से दीदी के दूसरे चूचे को पकड़ कर दबाते हुए निप्पल को चुटकी में पकड़ कर खींचा तो मस्ती में लहराते हुए दीदी लड़खड़ाती आवाज़ में बोली, “हाय रेशु….सीईईई…. उफ्फ्फ्फ्फ्फ…. चूसले…..पूरा रस चूस…..मजा आ रहा है….तेरी दीदी को बहुत मजा आरहा है रेशु…..हाय तू तो बूब्स को क्रिकेट की गेंद समझकर दबा रहा है….मेरे निप्पल मुंह में ले चूस….तू बहुत अच्छा चूसता है…. हाय मजा आ गया रेशु….पर क्या तू बूब्स ही चूसता रहेगा….. चूत नहीं देखेगा अपनी दीदी की चूत नही देखनी है तुझे…..हाय उस समय से मरा जा रहा था और अभी….जब बूब्स मिल गए तो उसी में खो गया है….हाय चल बहुत दूध पीलिया…..अब बाद में पीना।”

मेरा मन अभी भरा नहीं था इसलिए मैं अभी भी चूचियों पर मुंह मारे जा रहा था। दीदी पूरी तरह डुब गई थी और कुछ भी बोल रही थी जो अमूमन नॉर्मली नही बोलती पर कहते है ना सेक्स में हम अपना कैरेक्टर पूरी तरह भूल जाते है। कुछ याद नही रहता सिर्फ अपनी संतुष्टि किस तरह हो यही याद रहता है। मेरी दीदी जो वैसे तो पूरी शालीन है पर इस वक्त कोई उसे देखे जो अपने स्वभाव के एकदम विपरीत हरकते कर रही है, पूरी तरह सेक्स में डूबी हुई लग रही है।मैंने सारी सोच को दिमाग से हटा कर दीदी के बूब्स पर ध्यान दिया। इस पर दीदी ने मेरे सर के बालों को पकड़ कर पीछे की तरफ खींचते हुए अपनी चुचियों से मेरा मुंह अलग किया और बोली “हाई रेशु….बूब्स…छोड़….कितना दूध पिएगा….हाय.." दीदी लगता था अब गरम हो चुकी थी और चुदवाना चाहती थी।

मैं पीछे हट गया और दीदी के पेट पर किस ले कर बोला,“दीदी अब बचे हुए कपड़े तो निकालो।" दीदी बोली, “तू खुद ही निकाल ले"। तब मैंने पेटीकोट का नाडा खींच दिया। पेटिको़ट सरसराते हुए नीचे गिरता चला गया। पैंटी तो पहनी नहीं थी इसलिए पेटिको़ट के नीचे गिरते ही दीदी पूरी नंगी हो गई। मेरी नजर उनके दोनों जांघों के बीच चूत पर गई। दोनों चिकनी एकदम सफेद गुलाबी टांगो के बीच में दीदी की चूत नज़र आ रहा थी। दीदी की गोरी गुलाबी चुत बहुत प्यारी लग रही थी। दोनों जांघ थोडी अलग थी चुत के लिप्स अंदर की और थे दीदी की कमर को पकड़कर सर को झुकाते हुए चुत के पास ले जाकर देखने की कोशिश की तो दीदी अपने आप को छुड़ाते हुए बोली, “हाय…रेशु ऐसे नहीं….ऐसे ठीक से नहीं देख पाओगे….दोनों पैर फैला कर अभी दिखाती हूँ। फिर आराम से बैठकर मेरी चूत को देखना.. घबरा मत रेशु, मैं तुझे अपनी चूत पूरी खोल कर दिखाउंगी।"

पीछे मुड़ते ही दीदी की एप्पल शेप गांड मेरी आँखों के सामने नज़र आ गई। दीदी चल रही थी और उसकी गांड थिरकते हुए हिल रही थी और आपस में चिपके हुये दोनों पार्ट हिलते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे आपस मे बात कर रहे हो और मेरे लंड को पुकार रहे हो। लंड दुबारा अपनी पूरी औकात पर आ चुका था और फनफना रहा था। दीदी ड्रेसिंग टेबल के पास रखे गद्देदार सोफे वाली कुर्सी पर बैठ गई और हाथो के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और बोली,“हाय…रेशु..आजा तुझे मजे करवाती हूँ….देख रेशु मैं इस कुर्सी के दोनों हत्थों पर अपनी दोनों टांगो को रखकर जांघ टिकाकर फैलाऊंगी ना तो मेरी चुत पूरी उभरकर सामने आ जायेगी और फिर तुम उसके दोनों लिप्स को अपने हाथ से फैलाकर अन्दर चाटना….इस तरह से तुम्हारी जीभ पूरी चूत के अन्दर घुस जायेगी….ठीक है रेशु..आजा….जल्दी कर। यह मेरी फैंटसी थी पर तुम्हारे जीजाजी को चूत चाटना पसंद नही।"

मैं जल्दी से बिस्तर छोड़ दीदी की कुर्सी के पास गया और जमीन पर बैठ गया। दीदी ने अपने दोनों पैरो को कुर्सी के हत्थों के ऊपर चढा कर अपनी दोनों जांघो को फैला दिया। टांगो के फैलाते ही दीदी की चुत उभर कर मेरी आँखों के सामने आ गई। उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़….क्या खूबसूरत चूत थी। गोरी गुलाबी….बिना बालो वाली एकदम सफाचट.. एक दम पावरोटी के जैसी फूली हुई चूत थी। दोनों पैर कुर्सी के हत्थों के ऊपर चढा कर फैला देने के बाद भी चुत के दोनों होंठ अलग नहीं हुए थे। मैं जमीन पर बैठ कर दीदी के दोनों टांगो पर दोनों हाथ रख कर गर्दन झुका कर एक दम ध्यान से दीदी की चुत को देखने लगा। चूत की दोनों फांको पर अपना हाथ लगा कर दोनों फांको को हल्का सा फैलाती हुई दीदी बोली “रेशु….ध्यान से देखले….अच्छी तरह से अपनी दीदी की चूत को देख।”

दीदी की चूत के दोनों होंठ फ़ैल और सिकुड रहे थे। मैंने अपनी गर्दन को झुका दिया और जीभ निकाल कर सबसे पहले चूत के आस पास वाले भागो को चाटने लगा। टांगों के जोड और जांघो को भी चाटा। जांघो को हल्का हल्का काटा भी फिर जल्दी से दीदी की चूत पर अपने होंठो को रख कर एक किस लिया और जीभ निकाल कर पूरी दरार पर एक बार चलाया। जीभ चलाते ही दीदी सिसया उठी और बोली,“सीईई….बहुत अच्छा रेशु…. ऐसे ही….रेशु तूने शुरुआत बहुत अच्छी की है….अब पूरी चूत पर अपनी जीभ फिराते हुए चाट।" मुझे बताने की जरुरत तो नहीं थी पर दीदी ने ये अच्छा किया था की मुझे बता दिया था की कहाँ से शुरुआत करनी है। मैंने अपने होंठो को खोलते हुए क्लिटोरिस को मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

चूत के दाने को होंठो के बीच दबा कर अपनी दांतों से हलके हलके काटते हुए मैं उस पर अपने होंठ रगड रहा था। दाने और उसके आस पास ढेर सारा थूक लग गया था और एक पल के लिए जब मैंने वहा से अपना मुंह हटाया तो देखा की मेरी चुसाई के कारण वो हिस्सा चमकने लगा है। एक बार और जोर से दाने को पूरा मुंह में भर कर किस लेने के बाद मैंने अपनी जीभ को कडा करके पूरी चुत की दरार में ऊपर से नीचे तक चलाया और फिर चूत के एक फांक को अपने दाहिने हाथ की उँगलियों से पकड कर हल्का सा फैलाया।

चूत का गुलाबी छेद मेरी आँखों के सामने था। मैं जीभ को टेढा कर चूत के एक होंठ को अपने होंठो के बीच दबा कर चूसने लगा। फिर दूसरे को अपने मुंह में भर कर चूसा उसके बाद दोनों होंठों को आपस में सटा कर पूरी चूत को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा।

चूत से रिस रिस कर पानी निकल रहा था और मेरे मुंह में आ रहा था। वो नमकीन पानी शुरू में तो उतना अच्छा नहीं लगा पर कुछ देर के बाद मुझे कोई फर्क नहीं पड रहा था और मैं दोगुने जोश के साथ पूरी चुत को मुंह में भर कर चाट रहा था। दीदी को भी मजा आ रहा था और वही कुर्सी पर बैठे-बैठे अपने गांड को ऊपर उछालते हुए वो जोश में आ कर मेरे सर को अपने दोनों हाथो से अपनी चुत पर दबाते हुए बोली, “हाय रेशु….बहुत अच्छा कर रहा है….राजा…..हाय……सीईई….बड़ा मजा आर हा है….हाय मेरी चूत ….मेरे भैया…..ऊऊऊउ…सीईईइ…..खाली ऊपर-ऊपर से चूस रहा है….….जीभ अन्दर घुसाकर चाटना…..चुत में जीभ पेल दे और अन्दर बाहर कर के जीभ से मेरी चूत चोदते हुए अच्छी तरह से चाट….अपनी बहन की चूत अच्छी तरह से चाट मेरे राजा…. ….ले…..ऊऊऊऊ……इस्स्स्स्स्स…घुसा चूत में जीभ….चाट….दे।"

कोमल दीदी बहुत जोश में आ चुकी थी और लग रहा था की उनको काफी मजा आ रहा है। उनके इतना बोलने पर मैंने दोनों हाथो की उँगलियों से दोनों लिप्स को अलग कर के अपनी जीभ को कड़ा करके चूत में पेल दिया। जीभ को चूत के अन्दर बाहर करते हुए लिबलिबाने लगा और बीच बीच में चूत से चूत के रस को जीभ टेढा करके चूसने लगा। दीदी की दोनों जांघे हिल रही थी और मैं दोनों जांघो को कस कर हाथ से पकड कर चूत में जीभ डाल रहा था। जांघो को मसलते हुए बीच बीच में जीभ को आराम देने के लिए मैं जीभ निकाल कर जांघो और उसके आस-पास किस लेने लगता था। मेरे ऐसा करने पर दीदी जोर से गुर्राती और फिर से मेरे बालों को पकर कर अपनी चूत के ऊपर मेरा मुंह लगा देती थी।

दीदी मेरी चुसने से बहुत खुश थी और चिल्लाती हुई बोल रही थी “हाय…. रेशु.. जीभ बाहर मत निकालो….हाय बहुत मजा आ रहा है…ऐसे ही…..अपनी जीभ से अपनी दीदी की चूत चोद दे….हाय भैया….बहुत मजा आया है…...तेरा लंड अपनी चूत में लुंगी….….अपनी चूत तेरे से मरवाऊगीं….मेरे रेशु…..मेरे सोना….मन लगा कर दीदी की चूत चाट….मेरा पानी निकलेगा….तेरे मुंह में….हाय जल्दी जल्दी चाट पुरी जीभ अन्दर डाल कर सीईई।”

दीदी को क्या पता मैं उसको ही नही उसकी माँ को भी चोद चुका हूँ पर जो मजा नादान बनने में है वह समझदार बनने में कहां? दीदी पानी छोडने वाली है ये जान कर मैंने अपनी पूरी जीभ चुत के अन्दर पेल दी और अंगूठे को दाने के उ़पर रख कर रगडते हुए जोर जोर से जीभ अन्दर बाहर करने लगा। दीदी अब और तेजी के साथ गांड उछल रही थी और मैं लप लप करते हुए जीभ को अन्दर बाहर कर रहा था। कुत्ते की तरह से दीदी की चुत चाटते हुए दाने को रगडते हुए कभी कभी दीदी की चुत पर दांत भी गडा देता था। मगर इन सब चीजों का दीदी के ऊपर कोई असर नहीं पड रहा था और वो मस्ती में अब गांड को हवा में लहराते हुए सिसीया रही थी।
 
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