“कोमल दीदी"
भाग – 8
“कहो ना रेशु.. जो कहना हे कहो”... दीदी की सांसो में भारीपन लग रहा था। “दीदी आप इस साडी में बहुत सेक्सी लग रही हो”.. मेरा दायां हाथ जो दीदी की पीठ पर था उससे दीदी के ब्लाउज़ को खींचकर उसमें एक उंगली डाल दी और उसे हलके से खींच कर दीदी के पूरे शोल्डर पर किस करने लगा। दीदी का ब्लाउज अब दीदी के शोल्डर के किनारे आ चुका था और में अब शोल्डर से हल्का हल्का नीचे दीदी के बूब्स की और आ रहा था तभी दीदी ने कहा..”रेशु..मुझे नहीं लगता तुम्हे अब और ठण्डी लगनी चहिये”.. . दीदी ने कहा। मै अब दीदी से हल्का सा अलग हुआ और दीदी को देखा, दीदी के बाल बिखरे हुए थे, कुछ लट उनके गाल पर भी आ रही थी। दीदी ने मेरी आंखों में देखा और मैंने भी दीदी की आँखों में देखा और मैंने सोचा कहीं दीदी यह सब बंद न करवा दे तो मैंने दीदी से कहा...“दीदी मुझे अब भी ठण्ड लग रही है”। दीदी मेरी और देखती रही और फिर हल्का सा मुस्कुरायी और कहा की अगर और ठण्डी लग रही है तो कुछ और ओढ़ लो”। तो मुझे ना चाहते हुए भी दीदी से अलग होना पडा, पर दीदी से मैंने एक बात पूछ ली,“दीदी एक रिक्वेस्ट करू”?”हा..बोलो ना”. .“दीदी..आप तीन दिन यही पर रुक जाइये ना। अब आपके साथ मज़ा आने लगा है”.. मैंने दीदी से स्माइल के साथ कहा और दीदी भी मना नहीं कर सकी।भाग – 8
मैं खुश तो हुआ पर दीदी से अलग नहीं होना चाहता था लेकिन मुझे अलग होना पडा। मेरा मुँह लटक चुका था, दीदी ने यह देखा और हंस पड़ी मैं फिर दीदी से साइड में हटा और अपने ऊपर से कम्बल हटा दिया..जान बूझ कर मैंने कम्बल हटाया और दीदी को मेरे शॉर्ट्स में बना हुआ टेंट दिखाया। उनकी नज़र मेरे तंबू पर ही थी, मैं उन्हें देख रहा था दीदी ने फिर अपना ध्यान हटाया और कहा “क्यूँ अब ठण्ड नहीं लग रही”...? “नही..अब ठण्ड नहीं लग रही”.. और मैंने मुँह दूसरी तरफ लेते हुए कहा। दीदी फ़टाक से मेरी और पलटी और मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपनी और खींचा और इस बार मैं ठीक उनके ऊपर आ गया और वो मेरे ठीक नीचे और उन्होंने मेरे दोनों गालों को दोनों हाथों से पकड़ा और कहा “रेशु.. अब मुझे ठण्ड लग रही है। क्या तुम थोड़ी देर ऐसे ही मुझसे चिपके रहोगे..प्लीज? लेकिन प्लीज चुमना मत, सिर्फ लेटे रहो”...
ओह माय गॉड मैं तो सरप्राइज के मारे मानो सातवे आसमान में था और इसे एक ख्वाब मानते हुए में दीदी के ऊपर ही लेट गया। हालाँकि मन तो बहुत किया की दीदी को बस दबोच लू पर फिर मैंने अपने आप पर काबू किया और बस लेटा रहा। मै दीदी के ऊपर ही लेटा था लेकिन इस ख़ूबसूरत शॉक के मारे एक ग़लती हो गयी, जैसे ही मैं दीदी के ऊपर लेटा था वैसे ही मैंने दीदी के बारे में मन में खयाल बनाने शुरू कर दिए, और हमारे बीच बातें बंद हो गयी। दीदी समझी की मैं सो गया हू। उन्होंने एक दो बार मेरे गाल पर अपना हाथ फेर कर देख, लेकिन में कुछ नहीं कर सकता था, मैं चुपचाप लेटा रहा और दीदी ने थोड़ी देर बाद मुझे अपने साथ में लिटाया और मेरे पास में बैठ कर के मुझे देखती रही। मैं दीदी को देख रहा था, दीदी ने मुझे देखने के बाद मेरे शॉर्ट्स के पास मेरी जांघ पर हाथ रखा और मेरी और देखा की कहीं मैं जाग तो नहीं रहा, फिर उन्होंने मेरा कोई रिस्पांस न पाकर उन्होंने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और उस पर हाथ भी फेरा, पर फिर उसे तुरंत वापस ले लिया और बेड से उठकर खड़ी हो गयी। शायद उनके अंदर फिर से यह सब पाप हे ऐसा ख्याल आ गया होगा। इसीलिए वो उठी और फिर बाथरूम में चली गयी। मैं कुछ देर तक राह देखता रहा पर वो लौटी नही, तो पता नहीं कैसे लेकिन देर रात होने से मुझे भी नींद आ गयी और दीदी की राह देखते देखते में सो गया।
लेकिन अगले दिन में दीदी से पहले उठ गया, पता नहीं कैसे क्यूँकि हमेशा दीदी ही पहले उठ जाती थी। मैं बाथरूम में गया और फ्रेश हो कर बाहर आया और कॉलेज जाने के लिए रेडी हो गया, ऑफ़ कोर्स जाने का मन नहीं था पर जाना भी जरूरी था लेकिन मैंने किचन में जा कर फ़टाफ़ट चाय और ब्रेड सैंडविच बना डाली। बस दीदी को हसीन सरप्राइज देने के लिये, और फिर बेड रूम में गया, दीदी अब भी सो रही थी, फिर मैं दीदी के पास गया, दीदी सीधी लेटी हुई थी, मैं उनके कंधे के पास बैठा और दीदी का क्लीवेज देखने लगा, हर सांस के साथ बूब्स ऊपर नीचे हो रहे थे, फिर मैंने एक आईडिया सोचा और मैंने दीदी के ब्लाउज़ पर हाथ रखा और दीदी के ब्लाउज़ के ऊपर के दो हुक्स आराम से खोल दिए और कॉलेज चला गया।
रास्ते में यही सोच रहा था की हालाँकि दीदी को ब्लाउज वाले इंसिडेंट पर गुस्सा नहीं आना चाहिए पर अगर आ भी जाता हे तो चाय नाश्ता डाइनिंग टेबल पर देखकर शायद उतर जाएगा। मैं कॉलेज में पहुंचा पर कॉलेज में मन नहीं लग रहा था उधर घर पे दीदी क्या कर रही होगी, उसी मे मेरा सारा वक़्त बीतने लगा, लेकिन अब दोपहर के तीन बज रहे थे और बस दो ही घंटे बाकि थे पर मेरे से रहा नहीं जा रहा था, इसीलिए में क्लास बंक करके भागा और सीधा घर पहुंचा। मैंने घर जा कर डोरबेल बजाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला.. 10 मिनट बाद दीदी ने पीछे से कहा, “हट..चाबी मेरे पास है”.. दीदी ने मुझे हटाते हुए, दरवाजा खोला।
दीदी कुछ अपसेट लग रही थी, कहीं ब्लाउज वाले इंसिडेंट से तो नही, मैं पूछ्ने से डर रहा था पर मैंने दीदी से पूछ लिया, “क्या बात है दीदी, कुछ अपसेट लग रही हो?”.. मैंने थोड़ा डरते – डरते पूछा...“कुछ नही”। दीदी ने मेरे से ख़फ़ा होने की एक्टिंग कर रही थी, एक्टिंग ही तो थी क्यूँकि मुझे उतना तो पता था की अगर दीदी ख़फ़ा होती तो बात नहीं करती. इसीलिए मैं जोश में आ गया और अपने साइड वाले सोफ़े पर जहाँ दीदी बैठी थी वहा पर कूद कर बैठ गया और अपना लेफ्ट हैंड दीदी के कंधे के पास से ले जा कर दूसरी तरफ घुमा लिया और उस तरफ से प्रेशर दे कर दीदी को अपनी और खींचा और दीदी के कान में पूछा, “क्या हुआ दीदी”? तो वो खुल कर बोली..“रेशु तू आज कॉलेज नहीं जाता तो नहीं चलता क्या..एक तो मुझे यहाँ रोक लिया और खुद कॉलेज चले जाते हो। मैं कितना बोर हो रही थी, वो तो अभी – अभी में सामने वाली आंटी के वहां बातें करने के लिए बैठी की तुम आ गए”। “अच्छा तो ठीक है, मैं अभी फ्रेश हो जाता हूँ और हम अभी घूमने चलेंगे”। मैंने अपनी बात ख़त्म की और दीदी खुश हो गयी और मेरे गाल पर एक मस्त पप्पी दी और मैंने फ़ौरन अपना दूसरा गाल भी दे दिया, तो उन्होंने मेरे दूसरे गाल को भी चूमा।
बाद में वो तुरंत खड़ी हो गयी, क्यूँकि वो जानती थी की मैं अब उन्हें मेरे लिप्स ऑफर करने वाला था इसीलिए मेरे इरादों को समझते हुए वो जल्दी से खड़ी हो गयी और मैं भी उठकर मेरे रूम में चला गया। तभी दीदी ने कहा की पहले खाना खा लो बाद में तैयार होना। तो में रसोई में आया और दीदी के पास खड़ा रहा और दीदी को देख रहा था दीदी समझ गयी थी की मैं क्या देख रहा था इसीलिए मेरी खिंचाई करने के लिए उन्होंने पूँछा.. “रेशु क्या देख रहे हो”..? मै तो हडबडा गया लेकिन मैंने भी दीदी को अपने जाल में फ़ासते हुए कहा..“कुछ नहीं दीदी..म्म्म्म.मम,,,,मै तो यह पसीना.. ओफ्फो आपको कितना पसीना आ रहा है.. लाओ मैं यह पसीना पोछ देता हूं।”.. अब मुझे मेरे शातिर दिमाग पे अभिमान हुआ और मैंने अपना रूमाल निकाला और दीदी की बैक पे ब्लाउज़ के ऊपर से पसीना पोंछने लगा और बड़े आराम से दीदी की पीठ सहलाने लगा। फिर मैंने धीरे धीरे अपना हाथ ऊपर ले जाते हुए दीदी के कंधे पर रूमाल घुमाया और फिर दीदी की गर्दन को भी पोछा और फिर मैंने दीदी के दोनों आम की और अपना रूमाल घुमाया और धीरे धीरे नीचे उतर रहा था की दीदी ने मेरी और देखा और मेरा हाथ रूक गया।
रुमाल वहीं छूट गया और मेरा हाथ स्लीप हो कर दीदी के ब्लाउज से हट गया। फिर दीदी ने अपने ब्लाउज में फंसे मेरे रूमाल को देखा और मेरी और भी देखा और फिर कहा की “रेशु..देख क्या रहे हो? इसे निकलो यहाँ से”.. और मैं अपने रूमाल को हाथ में ले कर खींचने लगा पर जैसे भगवान को भी इस सीन में मज़ा आ रहा हो वैसे मेरा रुमाल दीदी के हुक में फ़ांस गया और दीदी मेरी और फिर से थोड़े से ग़ुस्से में देखने लगी और मैंने कहा की “दीदी अब यह नहीं निकल रहा, एक हुक खोलना पडेगा”... वो मेरी और हैरत भरी नज़र से देख रही थी और मैं उन्हें स्माइल दे रहा था। वो सोचने लगी और फिर अपनी आँखें बंद कर ली और मुझसे कहा...“रेशु..जो चाहे वो करो पर इसे निकालो”.. दीदी ने कहा, मैने भी सोचा की रेशु यही टाइम हे तो मैंने भी आराम से रूमाल निकालने की सोचा। मैं नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया। यह प्लानिंग में नहीं था पर भगवान ने जैसे मेरे पर मेहरबानी की हो, मैं नीचे बैठा, अब दीदी मेरे सामने थी और मैंने दीदी के कंधे से उनका पल्लू हटाया और दीदी का पल्लू नीचे गिरा दिया, और दीदी के ब्लाउज में कैद 36 के बूब्स मेरे सामने थे, मन तो बहुत किया की यही पर निचोड़ लू लेकिन कर नहीं पाया और शायद किया होता और दीदी को गुस्सा आता तो दीदी को मना भी लेता पर ऐसा मैंने किया नही।
मैंने रूमाल का एक सिरा जो खुला था वो हाथ में लिया और उसे दीदी को अपने मुँह में दबाने को कहा, लेकिन मैंने ही दीदी के होठो में अपनी ऊँगली दे कर उसे दबा दिया। फिर मैंने दीदी के ब्लाउज पे अपने दोनों हाथ रखे और हुक खोलने की मशक़्क़त में कई बार बूब्स मेरे हाथ में आ गये। लेकिन मेरी किस्मत इतनी भी अच्छी नहीं थी और हुक एक ही मिनट में खुल गया और सारे सीन का नाश हो गया। फिर दीदी ने बनावटी गुस्सा दिखाया और कहा की अब पसीना –पसीना मत कर और जा के बैठ और खाना खा ले। दीदी ने मेरे लिए खाना लगाया और कहा की वो रेडी हो कर आती हैं, इन सब बातों में चार बज चुके थे और मैंने खाना निपटाया और बाथरूम में गया और फ्रेश हो गया, बाद में अपने रूम में गया और अपने सारे कपडे निकाल दीए, बस मैं अब अंडरवीयर में था और अपनी अलमारी में से कपडे ढूंढ रहा था और अचानक दीदी मेरे रूम में आई और कहने लगी की.. “रेशु रेडी हो गया क्या”...?
दीदी मेरे कमरे में आ चुकी थी। मैं तैयार नहीं था और ऊपर से सिर्फ अंडरवीयर में था और वो भी वी – शेप में था मैंने फ़टाक से कपबोर्ड का दरवाजा बंद किया और बाहर आया की दीदी की आँखें मुझे देखकर फट सी गयी। वो मुझे नहीं मेरे अंडरवीयर को ही देख रही थी और मैं इस बात से खुश था की वो अंडरवीयर में क्या ढूंढ रही थी। लेकिन उन्हें दो मिनट में ही होश आया की वो क्या देख रही हे, लेकिन बाद में वो शरमाने के बजाय, मुझसे पूछ्ने लगी की क्या हुआ। तो मैंने कहा की, “दीदी ढंग के कपडे नहीं मिल रहे"। तो दीदी ने कहा की “लाओ में ढूंढ देती हू”। वो मेरे पास आ कर कपडे अलमारी में ढूंढने लगी। वो अब मेरे सामने थी और में उनके पीछे, दीदी को देखते ही मेरा लंड पता नहीं क्यों उठ जाता है। मैं दीदी के पीछे खड़ा रह कर कपडे पसंद करने के बजाय दीदी के बारे में फैंटसाइज कर रहा था।
मैं अपने ख़यालों में था की दीदी ने कहा कि, “रेशु पास आओ और इस कॉम्बिनेशन को देखो”.. मेरा ध्यान टूटा और मैं आगे गया और जानबूझ कर दीदी की गांड को छू रहा था, मेरा लंड दीदी की गांड को बड़े प्यार से टच कर रहा था और मैंने देखा और कहा की दीदी यह पसंद नहीं और दीदी दूसरे कपडे देखने लगी, फिर मैंने दीदी के गांड पर जोर दिया और अब जा के उन्हें एहसास हुआ की उनकी गांड पर मेरा लंड था और दीदी मेरी और पलटी और निचे अपनी गांड की और देखा और निचे मेरे अंडरवीयर में बने टेंट को देखने लगी और फिर मेरी और देखा और हंसी।
लेकिन मुझे नजरंदाज कर के फिर से मेरे कपडे ढूंढ ने लगी और मैं फिर से अपना लंड दीदी की गांड पर हल्का हल्का प्रेशर दे कर घुमने लगा। लेकिन मेरी दीदी तो दीदी ही है, उन्होंने मेरे कपडे खुद ही पसंद किये और पीछे मूड कर मेरे हाथ में थमाते हुए कहा की “ले यह पहन ले और जल्दी रेडी हो जा”। मैने अपने कपडे हाथ में लिये और जानबूझ कर पहले शर्ट पहनने लगा और दीदी कह रही थी की “रेशु तुम भी ना..अपनी चीज़ ठीक से रखते नहीं और बाद में परेशान होते हो”। वो मेरा कप बोर्ड ठीक करने लगी, एक –एक करके मेरे कपडे ठीक से मोड़ कर के अच्छे से रखने लगी और बाद में मेरी किताबें भी अच्छे से अरेंज किये और बाद में मेरे अलमारी का नीचे का शेल्फ अच्छे से ठीक करने के लिए नीचे बैठी तो मेरे दिमाग की बत्ती जली की दीदी को रोक देना चाहिए पर बाद में तुरंत ख्याल आया की जाने दो, देखने दो, दीदी को पटाने का एक और टॉपिक मिल जाएगा।
दीदी ने नीचे के शेल्फ में मेरे कॉलेज का सामान जैसे ही बाहर निकाला की उसमे से पोर्न डीवीडी बाहर निकल आई और मैं जैसे मानो पकड़ा न गया हो ऐसे दीदी के पीछे मूड कर अपने शर्ट के बटन बंद कर रहा था और किस्मत से सामने शीशे में दीदी का हाल दिखाई दे रहा था। उन्होंने अपने हाथ में वो डीवीडी ली और सब के ऊपर के नंगी लड़कियों के पोस्टर देखे और बाद में मेरी और देखा और उनकी नज़र मेरे शर्ट के अंदर मेरी गांड पर थी। फिर उन्होंने अपने दाँत से अपने होठ को पीसा और लिप्स को अंदर बाहर करने लगी। मैंने भी अपने पैंट को उठाया लेकिन आईडिया आया और मैंने अपने अंडरवीयर में हाथ डाला और अपने उठे हुए लंड को ठीक करने के बहाने से मैंने अपने अंडरवीयर को हल्का सा निचे किया और दीदी को दिखाई दे इस तरह से मैंने अपने लंड को पकड़ा और उसे एडजस्ट करने लगा।
लेकिन इस तरह दीदी को एक झलक लंड की दिखाने में ग़लती हो गयी और मेरा अंडरवीयर मेरे जांघों में से पता नहीं कैसे नीचे गिर गया और दीदी ने मेरा पूरा लंड देख लिया। मैं फ़टाक से नीचे झुका और अपना अंडरवीयर उठाया और उसे पहन लिया और फिर सामने शीशे में देखा तो दीदी की आँखें फट सी गयी थी और वो अब भी मेरे लंड की और देख रही थी। मैंने फिर आराम से दीदी की और देखा तो उन्होंने भी मुझे चिड़ाने के लिए अपनी आँखों पर अपने दोनों हाथ रख लिए और मुझे अपनी और देखता पा कर मुझे चिड़ाने के सुर में कहा...“रेशु,दीदी ने कुछ नहीं देखा..हा”। दीदी मुस्कुरा पड़ी और मैं भी नहले पर दहला मारते हुए, मौके को ठीक समझते हुए दीदी के सामने घूम गया और दीदी के सामने अपना अंडरवीयर झटके में उतार दिया और अपना उठा हुआ लंड दीदी के सामने खुला कर दिया और कहा “देख भी लिया तो क्या उखाड लिया”...?
दीदी ने शायद इस तरह की कुछ कल्पना भी नहीं की थी और मेरे इस तरह अंडरवीयर उतारने से उनकी समझ में नहीं आया की वो क्या करे इसीलिए वो उठ कर बाहर ड्राइंग रूम में भाग गयी और में भी जैसे बड़ा शेर मारा हो ऐसे दीदी के ख़यालों में अपने कपडे पहनने लगा और फिर बाथरूम में गया और एक बार मूठ मारी और फिर से अपने कपडे एडजस्ट कर रहा था की इतने में दीदी ने कार का हॉर्न बजाना शुरू कर दिया और मैं फ़टाफ़ट सारे कपडे पहन के बाहर आया और डोर लॉक कर के बाहर जा कर दीदी के पास बैठ गया और कहा “दीदी लेट में ड्राइव”...“चुप चाप बैठो..मैं ड्राइव करूंग़ी, तुम बहुत तेज़ चलाते हो और फिर किसी से टकरा के गालियां बकते हो”..दीदी ने फिर से ताना मारा, “ओह माय गॉड, मुझे तो ऐसा लगता है, जैसे मैंने इतना बड़ा गुनाह किया हो की मुझे इस तरह बहाने ढूंढ ढूंढ कर के ताने मारे जाते हैं”... मैंने ताने का जवाब दिया।
दीदी भी हंस पड़ी और मैं भी, इतने में दीदी ने कार ड्राइव की और हम कंकरिआ पहुंचे, तब तक 5 बज चुके थे। उस दिन कोई रेगुलर डे था इसीलिए बहुत कम फॅमिली वाले लोग आये थे, कुछ कॉलेज कपल्स और कुछ न्यूली मैरिड कपल्स आये थे। दीदी ने कहा की उन्हें एम्यूजमेंट पार्क में जाना है तो हम उस और चले और उधर हमने बहुत एन्जॉय किया और खूब धमाल मस्ती की। दीदी अब जा के सच में खुश लग रही थी। फिर मैंने एक राइड की टिकट्स ली जो थोड़ी डरावनी थी, और उस राइड के दौरान में जान बूझ कर ऐसे बैठा की राइड के दौरन दीदी मुझ पर आ गिरे, और जैसे ही वो तूफ़ानी राइड शुरू हुई और दीदी मेरी और खिसकने लगी तो मैंने दीदी से कहा..“दीदी.बीहेवे योर सेल्फ, प्लीज..ऐसे पब्लिक प्लेस में क्या कर रही हो”.. दीदी तो सन्न हो गयी और वो जितना मुझसे दूर जाने की कोशिश करती, वो मेरे पास ही आ जाती थी, लेकिन मुझसे दूर बैठने के चक्कर में उन्हें रॉन्ग साइड पे बैठने से चक्कर जैसा लगने लगा।
इसीलिए जैसे ही राइड ख़त्म हुई की वो ठीक से उतर भी न पाई और एक वॉचमन ने उन्हें गिरने से बचा लिया, फिर मैंने दीदी को दोनों हाथों से सहारा दिया और एक साइड बेंच पर बिठा दिया और फिर उन्हें बिठा के पूछा..“दीदी..दीदी आप ठीक तो हैं..चक्कर जैसा लग रहा है क्या..”? मैं बहुत ही घबरा गया था और टेंशन में मेरी हार्टबीट भी बढ गयी थी। दीदी ने भी कहा की हाँ उन्हें चक्कर आ रहे हैं तो मैंने कहा की “आप यही बैठिए में अभी कहीं से नीम्बू पानी ले कर आता हू”.. और मैं उठकर बाहर गेट की तरफ भागा और इतने में दीदी ने कहा की,“रेशुउऊउ...रुको”!!