चौदहवाँ भाग
अगले दिन मैं और दीपा सुबह ठीक 9:00 बजे कॉलेज पहुंच गए । उस दिन कॉलेज में प्रत्येक दिन की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही हलचल थी । उस दिन हमारे कॉलेज मे छात्रसंघ चुनाव के लिए उम्मीदवारों का नॉमिनेशन शुरू होने वाला था I
वैसे मुझे इन सब में ज्यादा रुचि नहीं होने के कारण इस पर ध्यान ना देकर मैं और दीपा कॉलेज की लाइब्रेरी में जा कर बैठे गए। वैसे मुझे लाइब्रेरी में पढ़ने की ज्यादा कुछ खास आदत नहीं थी।
मैं अधिकांश समय लाइब्रेरी में बुक पढ़ने के लिए नहीं बल्कि दीपा के साथ समय बिताने के लिए जाता था। हमारी आंखें लाइब्रेरी की किताबों से ज्यादा दीपा के चेहरे पर टिकी रहती थी। मुझे हमेशा लगता था कि उसके गुलाबी होठों और मासूमियत भरे चेहरे पर ही मेरी आंखें जमी रहे।
मैं लाइब्रेरी में बैठा किसी सोच में गुम था। दीपा कोई किसी विषय से संबंधित किताब पढ़ रही था और बीच बीच में मुझसे बात कर रही थी, लेकिन मैं अपनी ही सोच में गुम था। तभी दीपा ने मुझसे कुछ पूछा, लेकिन मैंने उसका कोई जवाब नहीं दिया तो उसने मेरे कंधे को पकड़कर हिलाया जिससे मैं होश में आया।
क्या सोच रहे हो निशांत मैं तुम्हे कब से आवाज दे रही हूँ। दीपा ने मुझसे कहा।
कुछ नहीं दीपा बस ऐसे ही। मैंने कहा।
तुम कुछ छुपा रहे हो मुझसे। बताओ ना। दीपा ने मुझसे पूछा।
मैं जो कुछ सोच रहा हूँ उसे सुनकर कहीं तुम मुझे गलत न समझो और नाराज न हो जाओ। जो मैं नहीं चाहता। मैंने कहा।
क्या तुमको मेरे प्यार पर भरोसा नहीं रहा जो तुम ऐसी बात कर रहे हो। दीपा ने कहा।
देखो दीपा तुम मुझे गलत मत समझो, लेकिन में कल जब तुम्हारे घर गया तो मैंने देखा कि तुम्हारे घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं है। जबकि तुम्हारे भइया दूध का व्यापार करते हैं। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मेरी बातों को तुम बुरा मत मानना दीपा और अगर तुम्हें न बताना हो तो कोई बात नहीं। बस मेरे मन में कल से यही सब घूम रहा है। मैंने दीपा से कहा।
नहीं निशांत मैं तुम्हें गलत क्यों समझूँगी, जो सच्चाई है वो छुपाई थोड़ी ही जा सकती है। बात ये है कि पहले हमारी आर्थिक स्थिति बहुत बढ़िया थी, मेरे पापा बड़े बड़े सरकारी कॉन्ट्रेक्ट लेते थे। मेरे पापा मम्मी को बहुत प्यार करते थे। हम पहले मुरादाबाद में रहते थे। ये मेरा पैतृक निवास स्थान है। मैं उस समय 11 साल की थी जब मेरी मम्मी को कैंसर हुआ था। पापा ने मम्मी की बहुत इलाज कराया। मम्मी की बीमारी के कारण पापा अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे। जिससे उनका काम धीरे धीरे डूबता गया। सारा पैसा मम्मी के इलाज में खर्च हो गया।
मेरे पापा के भाई और चचेरे भाई आर्थिक स्थिति से इतने सुदृढ़ नहीं थे, फिर भी उन्होंने पापा की हर संभव मदद करने की कोशिश की, लेकिन कब तक करते। मम्मी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। पैसे भी लगभग पूरे खर्च हो गए थे, फिर पापा ने दोस्तों से कर्ज लिया। वो पैसा भी माँ के इलाज में लग गया। और एक दिन माँ हम सबको छोड़कर दुनिया से चली गई। उस दिन के बाद पापा एकदम टूट गए। दोस्तों ने कुछ वक्त तो पैसों को तकाजा नहीं किया, लेकिन कुछ समय बाद वो पापा से पैसों के लिए जोर डालने लगे। चूँकि पैसे पूरे खर्च हो गए थे तो मजबूरन पापा को मुरादाबाद वाला घर बेचकर उनके कर्ज चुकाना पड़ा। जो थोड़े बहुत पैसे बचे थे वो पापा ने भइया के खाते में जमा कर दिया। फिर हम लोग मुरादाबाद छोड़कर यहाँ आकर बस गए।
उस समय मैं 13 साल की थी और भइया 20 साल के थे। मम्मी को मौत के बाद पापा ने काम धाम छोड़ दिया और मम्मी का गम भुलाने के लिए शराब का सहारा ले लिया। वो जो भी थोड़ा बहुत कमाते थे अपनी शराब खर्च कर देते थे। घर की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई। पापा का ध्यान हम दोनो बहनों भाइयों से हट गया था। भइया ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर छोटे-मोटे काम करके अपनी और मेरी परवरिश की। फिर भइया ने घर को बेचने पर बचे हुए पैसों से 10 भैंस और गाय खरीद ली और दूर का व्यापार करने लगे। जब मैं 17 साल की हुई तो अधिक शराब पीने के कारण पापा का लीवर खराब हो गया। जिसके इलाज में दूध बेचकर भइया ने जो पैसे जमा किया था वो भी खर्च हो गए।
अब पापा के इलाज के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे तो भइया ने यहाँ का खेत गिरवी रखकर साहूकार से पैसे उधार लिए। और पापा का इलाज कराया, परंतु फिर भी भइया पापा को नहीं बचा सके। माँ के मरने के बाद भइया ने मुझे माँ, बाप और भाई का प्यार दिया है। पापा के मरने के बाद भइया एक-एक पैसा जोड़ रहे हैं ताकि वो अपना घर और खेत वापस पा सकें। और मेरी अच्छे से परवरिस कर सकें। मेरी हर फरमाइश भइया पूरी करते हैं। अब मेरे लिए वही मेरी माँ, मेरे पापा और मेरे भइया हैं। मैं अपने भइया से बहुत प्यार करती हूँ। और कल जो तुमने घर की स्थिति देखी है। उसके लिए भइया बोलते हैं कि घर की मरम्मत तो हम बाद में करवा लेंगे, लेकिन पहले साहूकार से अपने खेत वापस पाना है। जिसके लिए भइया दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। दीपा अपनी कहानी बताते बताते सिसकने लगी।
मैंने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और उसके बालों पर उँगली फेरते लगा।
मुझे माँफ कर दो दीपा। मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था। मैंने तो बस अपने मन में जो बात थी बस वही कहा था, मुझे नहीं पता था कि मेरी बात से तुम्हारे पुराने जख्म हरे हो जाएँगे। मैंने दीपा से कहा।
ये तुम कैसी बातें कर रहे हो मैंने तुमसे प्यार किया है और तुम्हें सब जानने का कह है। दीपा ने कहा।
अब दीपा सामान्य हो चुकी थी और मेरी तरफ देख रही थी।
अच्छा दीपा एक बात बताओ मान लो कि अगर तुम्हाने भाई ने हम दोनो को प्यार स्वीकार नहीं किया और मेरी शादी तुमसे नहीं होने दी तो तुम क्या करोगी। मैंने दीपा की आँखों में देखते हुए कहा।
अगर मेरे भाई ने हमारे प्यार को मंजूरी नहीं दी और शादी से मना कर दिया तो मैं तुमसे शादी नहीं करूँगी। फिर भइया जिससे भी मेरी शादी करवाएँगे मैं उसी से शादी करूँगी। दीपा ने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया।
लेकिन प्यार तो तुम मुझसे करती हो तो शादी किसी और से क्यों करोगी। हम दोनों भागकर भी शादी कर सकते हैं। मैंने दीपा को देखते हुए कहा।
मैं तुम्हारे कुछ दिन के प्यार के लिए अपने माँ बाप समान भाई के प्यार और परवरिश पर कालिख नहीं पोत सकती। मेरे भाई और उसका प्यार मेरे लिए इस जहान में सबसे अजीज है तुमसे भी अजीज निशांत और मैं तुम्हारे साथ घर से भागकर अपने भाई के प्यार और स्नेह का अपमान नहीं करूँगी। तुम्हें भूलना मंजूर है मुझे, लेकिन मेरे भाई की परवरिश पर कोई उँगली उठाए ये मुझे बिलकुल भी मंजूर नहीं। दीपा ने एकदम सटीक लहजे में जवाब दिया।
एक बात कहूँ दीपा। आज तुम्हारी बातें सुनकर मेरे दिल में तुम्हारे लिए इज्जत और भी बढ़ गई है। मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ कि तुमने मुझसे प्यार किया है। तुम्हारी सोच, तुम्हारी अपने भाई के प्रति समर्पण और परिवार के प्रति प्यार देखकर तुम्हारी इज्जत मेरी नजरो में बहुत बढ़ गई है। यहाँ आजकल की लड़ाकियाँ घरवालों की परवाह न करते हुए अपने प्रेमी के साथ भाग जाती हैं। अपने माँ बाप की परवरिस का अपमान करती हैं। और कहाँ तुम हो। तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है दीपा। मैने दीपा की आँखों मे देखते हुए प्यार से कहा।
और एक बात दीपा। अब मेरी शादी होगी तो सिर्फ तुमसे होगी और मैं तुम्हारे भइया को किसी भी तरह मना ही लूँगा। मैंने दीपा से शरारत के कहा।
मेरी बात सुनकर दीपा शरमाने लगी और अपना सिर फिर से किताबों में घुसा लिया। थोड़ी देर शांत बैठने के बाद दीपा ने इस शांति को भंग किया।
अच्छा ये सब छोड़ो निशांत। ये बताओ तुम छात्रसंघ के चुनाव में किसे वोट देने वाले हो?
" दीपा किताबों को पढ़ते हुए तिरछी नजर से मुझे बोली।
"अरे अभी किसी का नॉमिनेशन तक नहीं हुआ है और तुम अभी से ही वोट देने की बात पूछ रही हो । अच्छा! तुम ही बताओ । तुम किसे वोट दोगी?" मैंने बोला।
" मैं तो दिवांशु को वोट दूंगी । वह आज नॉमिनेशन फार्म भरेगा " दीपा किताब से नजर हटाती हुई बोली।
"कौन देवांशु? " मैं थोड़ा हैरान होकर पूछा था।
"अरे वो मेरे क्लासमेंट हैं।" दीपा बोली।
" अच्छा कहीं वो अमिताभ बच्चन दाढ़ी स्टाइल वाला तो नहीं ? " मैं हिंट देते हुए उसे बोला।
" हां .... हां ! तुम सही कह रहे हो, इस बार छात्रसंघ चुनाव में वह चुनाव लड़ेगा '' दीपा ने जवाब दिया ।
" मगर वह तो प्रथमवर्ष का छात्र है I भला उसे कौन वोट देगा ? और वैसे भी कोई उसको क्यों जिताना चाहेगा ? अगर गलती से वह चुनाव जीत जाएगा तो कॉलेज में क्या कर लेगा ? उसे अभी कॉलेज के कमियों खूबियों के बारे में कुछ जानकारी नहीं होगी।इसकी जगह पर अगर कोई सीनियर छात्र छात्रसंघ चुनाव जीतता है तो वह कॉलेज में कुछ बदलाव भी ला सकता है मगर यह तो .....खैर इसकी बात छोड़ो I" मैंने कहा।
आधे घंटे बाद लाइब्रेरी से हम दोनों अपने-अपने क्लास रूम में चले गए उधर दीपा अपने क्लास रूम में थी मगर दीपा द्वारा देवांशु के पक्ष में बोलना और उसका सपोर्ट करने वाली बातें मेरे दिल में चुभ रही थी।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था आखिर दीपा हमेशा देवांशु को लेकर इतना सकारात्मक क्यों रहती है जबकि वह दिखने में एक नंबर का ऐय्यास और बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद लगता है।
" कहीं ऐसा तो नहीं दीपा देवांशु को पसंद करती है ..... नहीं.... नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता है। दीपा कभी भी ऐसा नहीं कर सकती है।" मैंने खुद से बुदबुदा कर बोला।
कॉलेज के ब्रेक के समय मैं कैंटीन में बैठकर पिछले 20 मिनट से दीपा की इंतजार कर रहा था। वैसे आज ऐसा पहली बार हो रहा था कि मुझे कैंटीन में बैठकर दीपा का इंतजार करना पड़ रहा है, वरना ऐसा कभी नहीं हुआ कि कॉलेज के मध्यांतर के समय दीपा अपने क्लास रूम से बाहर कैंटीन में आकर मेरे साथ ना बैठी हो।
मैंने दीपा के नंबर पर कॉल किया,"हेलो दीपा यार तुम अपने क्लास रूम से बाहर नहीं आओगी क्या? मैं पिछले आधे घंटे से तुम्हारी इंतजार कर रहा हूँ।"
"सॉरी निशांत आज मैं कैंटीन में नहीं आ पाऊंगी मुझे कुछ काम है ।" बोलकर दीपा कॉल कट कर दी।
मैं दीपा कि इस बर्ताव से काफी दुखी हो गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दीपा अचानक से ऐसा बर्ताव क्यों कर रही है?
खैर अब मध्यांतर खत्म हो चुका था। मैं फिर से अपने क्लास रूम में चला गया।
उस दिन जब कॉलेज खत्म हुआ तो मैं कॉलेज में दीपा के इंतजार करने के बजाय सीधा अपने घर चला आया था। कॉलेज से छुट्टी होने के बाद दीपा ने मुझे कई बार कॉल किया मगर मैंने उसके किसी भी कॉल का कोई जवाब नहीं दिया ।
मैं उस वक्त काफी बुरा महसूस कर रहा था । मध्यांतर समय में इस तरह से दीपा द्वारा मुझे नजरअंदाज करने वाली बात सहजता से मेरे गले के नीचे नहीं उतर रही थी। कभी-कभी तो ऐसा लग रहा था जैसे वह मेरे घर पर हुई चोरी के घटना वाली बात को लेकर अभी तक मेरे घर वालों और मुझ से रूठी हुई है।
मगर फिर दूसरे पल ही ख्याल आता कहीं ऐसा तो नही अब वह देवांशु के करीब जा रही हैं। और जैसे ही ये ख्याल मेरे दिमाग में आता मैं परेशान हो उठता।
जब मैंने व्हाट्सएप खोला तो देखा दीपा की 100 से अधिक मैसेज आ चुके थे और सब मैसेज में वह सिर्फ यही पूछ रही थी , "निशांत तुम्हें हुआ क्या है? तुम इतने नाराज क्यों हो ? .....कोई दिक्कत है तो बताओ ।" और इसी तरह के कई सारे मैसेज भरे पड़े थे।
मैंने लगभग 9 बजे रात में उसकी कॉल का जबाब दिया।
" हेल्लो " मैंने बहुत धीमे स्वर मे बोला।
"यार! तुम मेरे काँल का जबाब क्यो नही दे रहे थे? मैं तुम्हे कॉल कर - कर के परेशान हुई जा रही थी और तुम मुझे जबाब देना भी जरूरी नही समझ रहे थे।" दीपा कॉल उठाते ही ये सारी बातें एक ही साँस में बोल दीं।
" नही ऐसी कोई बात नही है । बस थोड़ा व्यस्त था जिसके कारण कॉल या मेसेज का जबाब नही दे पा रहा था।" मैं उदासीन आवाज में बोला।
'' यार मैं तो डर ही गयी थी कि कहीं तुम मुझसे नाराज ना हो गये हो।" दीपा नार्मल हो कर बोली जैसे अब सब कुछ सही हो गया हो।
" भला मैं तुमसे कैसे नाराज हो सकता हूं ? तुम तो जानती हो , तुमसे एक पल की दूरी भी मेरे लिए जन्मों की लगती है" मैंने बोला।
जब आप किसी से प्यार करते हो, तो उससे आप चाहे लाख नाराजगी जता लो , उससे दूर जाने के कई हथकंडे आजमा लो। मगर आप जैसे ही कभी उसके सामने जाओगे या उससे एक पल के लिए भी बात कर लोगे, तो पहले से चली आ रही नाराजगी या वर्षों की दूरी पल भर में ही दूर हो जाती है । मेरे साथ भी कुछ उस वक्त ऐसा ही हुआ।
मैं दीपा से उस दिन नाराज था उसकी सैकडों काँल मैसेज का मैंने कोई जवाब नहीं दिया था। लेकिन जैसे ही उससे थोड़ी सी बात कर लिया सारी नाराजगी खत्म सी हो गई।
साथ बने रहिए।