सैंतीसवाँ भाग
कुछ ही देर में देवांशु के दोस्त बुरी तरह पीटे जाने लगे। कुछ चोटें मेरे साथ आए हुए लोगों को भी लगी।
थोड़ी देर में देवांशु के दोस्त जमीन पर लेटे हुए मार खा रहे थे। इधर मैं भी देवांशु की धुनाई कर रहा था। फिर राहुल भैया ने भी आकर देवांशु को धोना शुरू कर दिया। दो तरफा मार से देवांशु ज्यादा देर टिक नहीं पाया और जमीन पर गिर गया। उसके बाद तो उसपर कितनी लातें पड़ी वो तो मुझे भी याद नहीं।
तभी वहां इंस्पेक्टर सर आ गए और हम लोगों को अलग किया, लेकिन तब तक देवांशु लहूलुहान हो गया था। उसका शरीर जगह जगह फट गया था। इंस्पेक्टर सर फ़ोन करके एम्बुलेंस मंगवाई और उसे और उसके दोस्तों को लेकर अस्पताल चले गए।
दीपा दौड़कर मेरे पास आई और मेरे गले लगकर सिसकने लगी।
अगर आज तुम वक्त पर नहीं आते तो पता नहीं क्या होता। दीपा ने कहा।
अरे आता कैसे नहीं मैने प्यार किया है तुमसे तो तुम्हें मुसीबत में कैसे छोड़ सकता हूँ। मुझे तो आना ही था। मैंने कहा।
अरे ओ लैला मजनू। अगर तुम लोगों का मिलाप हो गया हो तो अस्पताल चलें कुछ मरहन पट्टी हम भी करा लेते हैं। विक्रम भैया ने कहा।
उसके बाद हम सब अस्पताल चले गए और अपनी मरहम पट्टी करवाई उसके बाद मैंने विक्रम भैया, राहुल भैया और उनके दोस्तों का आभार प्रकट किया और सभी अपने अपने गंतव्य की तरफ निकल गए। घर पहुँच कर मैंने माँ को सब कुछ बता दिया।
ये लड़का तो हाथ धोकर मेरे बच्चों के पीछे पड़ा हुआ है। अच्छा हुआ कि कोई अनहोनी होने से पहले तुम सब वहां पहुँच गए और दीपा को सुरक्षित बचा लिया नहीं तो आज अनर्थ हो जाता। माँ ने कहा।
उसके बाद माँ ने आशीष भैया को फ़ोन करके सबकुछ बता दिया और अर्जुन भैया को फ़ोन करके जल्दी घर आने के लिए कहा। आशीष भैया और अर्जुन भैया जल्दी घर आ गए। सभी लोगों ने निर्णय लिया कि देवांशु को सख्त से सख्त सजा मिले। इसके लिए वो इंस्पेक्टर से मिले और देवांशु के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा।
देवांशु को हमने बहुत मारा था, इसलिए वो कमसे कम हफ्ते 10 दिन अस्पताल में ही रहने वाला था। दीपा और मैं 3 दिन कॉलेज नहीं गए। चौथे दिन मैं मां भैया और भाभी के साथ बैठा हुआ था तभी मुझे कुलपति महोदय का फ़ोन आया।
नमस्कार सर। मैंने कहा।
जीते रहो निशान्त। कैसे हो तुम अभी और कहां पर हो। कुलपति महोदय ने कहा।
मैं ठीक हूँ सर और अभी घर पर हूँ। मैंने कहा।
क्या तुम और दीपा अभी कॉलेज आ सकते हो। कुलपति महोदय ने कहा।
क्या हुआ सर कोई जरूरी काम है क्या। मैंने कहा।
हाँ जरूरी न होता तो मैं तुम्हें बुलाता ही क्यों। कुलपति महोदय ने कहा।
ठीक है सर मैं पहुँच रहा हूँ कुछ समय में। मैंने कहा।
क्या हुआ निशान्त। किसका फ़ोन था। अर्जुन भैया ने पूछा।
कॉलेज से फ़ोन था कुलपति महोदय का। उन्होंने किसी आवश्यक कार्य के लिए दीपा और मुझे तुरंत बुलाया है। मैंने कहा।
लेकिन ऐसा क्या काम है जो उन्होंने तुरंत बुलाया है। माँ ने कहा।
अब ये तो वहां जाने के बाद ही पता चलेगा। मैंने कहा।
ठीक है बेटा पर संभल कर जाना। मां ने कहा।
उसके बाद मैंने दीपा को फ़ोन करके बात दिया और तैयार होने के लिए बोल कर अपने कमरे में चला गया। मैं तैयार होकर दीपा के यहां गया और उसे लेकर कॉलेज पहुँच गया वहां मैं राहुल भैया और विक्रम भैया से मिलकर सारी बात बताई और उनको लेकर सीधे कुलपति महोदय के कार्यालय में चल गया। जब मैं वहां पहुंचा तो मैंने देखा कि देवांशु के पापा और एक महिला वहां बैठे हुए हैं। मैंने अंदाज़ा लगा लिया कि ये देवांशु की माँ हो सकती हैं। मैंने उनको नजरअंदाज कर कुलपति महोदय से मुखातिब होते हुए बोला।
मुझे थोड़ा बहुत अंदाज़ा तो हो गया है कि आपने इनके कहने पर मुझे कॉलेज बुलाया है। फिर भी मैं आपसे जानना चाहता हूँ सर।
तुम सही समझ रहे हो निशान्त। ये तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं। कुलपति महोदय ने कहा।
उस दिन इन्होंने जिस तरीके से बात की थी। उसके बाद मैं इनसे कोई बात नहीं करना चाहता सर। मैंने कुलपति महोदय से कहा।
एक मिनट सर। ये महाशय और ये महिला कौन हैं जिसके लिए आपने निशान्त को घर से बुलवा लिया। विक्रम भैया ने कहा।
ये देवांशु के मम्मी पापा हैं और निशान्त से कुछ बात करना चाहते हैं। कुलपति महोदय ने कहा।
ये सुनकर राहुल भैया और विक्रम भैया उनकी तरफ देखने लगे।
चलो यहां से निशान्त कोई बात नहीं करनी है इनसे। राहुल भैया ने कहा।
इतना कहकर राहुल भैया और विक्रम भैया मुझे और दीपा को बाहर लेकर जाने लगे तभी कुलपति महोदय ने कहा।
मैंने बड़ी उम्मीद के साथ तुमको बुलाया था निशान्त और मुझे विश्वास था कि तुम मेरी बात जरूर मानोगे। कुलपति महोदय ने कहा।
उनकी बात सुनकर मैं रुक गया और वापस आकर उनके पास खड़ा हो गया।
ठीक है सर जी। आपके कहने पर ही मैं इनकी बात सुन रहा हूँ। कहिए क्या कहना है आपको मुझसे। मैंने कुलपति महोदय के बाद देवांशु के पापा से मुखातिब होते हुए कहा।
बेटा तुम अपनी शिकायत वापस ले लो। देवांशु के पापा ने हाथ जोड़कर मुझसे कहा।
अच्छा। और आपको ऐसा लगता है कि मैं अपनी शिकायत वापस लूंगा। मैं बिल्कुल भी ऐसा नहीं करूंगा। मैंने गुस्से से कहा।
ऐसा मत कहो बेटा। देवांशु मेरा इकलौता बेटा है। उसकी मां का रो रो कर बुरा हाल हो गया है। अगर उसे जेल हो गई तो हम दोनों किसके सहारे जिएंगे। उसकी मां तो रोते रोते मर जाएगी। कृपा करो मुझपर। अपनी शिकायत वापस ले लो देवांशु के पापा गिड़गिड़ाते हुए बोले।
आज आपको उसकी बड़ी फिक्र हो रही है। उस दिन तो बड़े शान से कह रहे थे कि जवान खून है। जवानी में मौज मस्ती नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा। तो ये उसी मौज मस्ती का फल है। आपके बेटे ने मुझे जान से मारने की कोशिश की। मुझे लॉरी से मारना चाहा। दीपा के साथ जबरदस्ती करनी चाही और उसका अपहरण कर लिया। इतना सब करने के बाद भी आप कह रहे हैं कि मैं उसके खिलाफ अपनी शिकायत वापस ले लूँ। मैंने उनसे कहा।
मानती हूं मैं कि हमारे ज्यादा लाड प्यार की वजह से देवांशु बिगड़ गया है। और उसकी गलत हरकतों को भी हमने नजरअंदाज किया है। जिसकी वजह से वो इतना बिगड़ गया है। लेकिन हमारी स्थिति को समझो उसे माफ कर दो। मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूँ।
इतना कहकर देवांशु के मम्मी पापा मेरे पैरों में गिर पड़े, लेकिन उस समय मेरा दिल पत्थर का हो चुका था। इसलिए मैं पिघला नहीं। मैंने देवांशु के मम्मी पापा को अपने पैरों से उठाकर कुर्सी पर बैठाया और उनसे कहा।
आप दोनों बड़े हैं मुझसे। इसलिए मेरे पांव पकड़कर मुझे आप लोग शर्मिंदा मत करिए। और माफ करना आप मुझे, लेकिन मैं अपनी शिकायत वापस नहीं लूंगा। मैंने कहा।
इतना कहकर मैं बाहर जाने लगा। अभी मैं दरवाज़े तक ही पहुंचा था कि दीपा की आवाज़ सुनाई पड़ी
ठीक है हम अपनी शिकायत थाने से वापस ले लेंगे और उसे माफ़ भी कर देंगे, लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं जिन्हें आपको पूरी करनी होंगी उसके बाद ही हम शिकायत वापस लेंगे। दीपा ने कहा।
ये क्या बात कर रही ही दीपा। उसने तुम्हारे साथ इतना गलत व्यवहार किया है। तुम्हारी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहा। उसके बाद भी तुम उसे माफ करना चाहती हो। मैंने दीपा से कहा।
मैं सही कह रही हूँ निशान्त। हमें देवांशु को माफ कर देना चाहिए। मैं जानती हूँ कि उसने मेरे साथ बहुत बुरा किया है, लेकिन इंसानियत नाम की भी कोई चीज़ होती है। हमें उसे माफ कर देना चाहिए निशान्त। दीपा ने कहा।
तुम इंसानियत की बात कर रही हो दीपा। देवांशु ने कब इंसानियत दिखाई तुम्हारे साथ। हमेशा तुमसे अभद्रता की। यहां तक कि तुम्हारा अपहरण करके तुमसे जबरन शादी भी करनी चाही। जब उसने इंसानियत नहीं दिखाई तो हम क्यों इंसानियत दिखाएँ। उसने अपना बदला लेने के लिए मुझे मारना चाहा और तुम कह रही हो कि उसे माफ कर दूं। मैंने दीपा से कहा।
मेरी बात समझने की कोशिश करो निशान्त। वह बदले की आग में इतना नीचे गिर गया तो क्या हम भी उसी की तरह करें उसके मम्मी पापा के साथ। फिर देवांशु में और हममें क्या फर्क रह जाएगा। किसी से बदला लेना इंसानियत नहीं होती छोटे। किसी को माफ़ करके सारे गिले शिकवे भुला देना ही सच्ची इंसानियत है। क्या तुम्हें मुझपर भरोसा नहीं है। कि मैं जो कुछ कर रही हूँ वो सही नहीं है। दीपा ने कहा।
दीपा बिल्कुल सही कह रही है निशान्त। इंसानियत बदला लेने में नहीं माफ करने में है। इस बार कुलपति महोदय ने कहा।
हां निशान्त दीपा की बात मान लो। एक बार और दिल बड़ा करके माफ कर दो देवांशु को। इस बार राहुल भैया ने कहा।
ठीक है दीपा। तुम सही कह रही हो। मैं देवांशु को माफ कर रहा हूँ। मैंने कहा।
हमने आपके बेटे को माफ कर दिया, और अपनी शिकायत भी वापस ले लेंगे। लेकिन उसके लिए मेरी कुछ शर्तें हैं। दीपा ने देवांशु के मम्मी पापा से कहा।
मुझे तुम्हारी सारी शर्तें मंजूर हैं। बस तुम अपनी शिकायत वापस ले लो। देवांशु की मम्मी ने एक उम्मीद के साथ कहा।
मेरी पहली शर्त ये है कि आप देवांशु को इस कॉलेज से निकलवाकर किसी और कॉलेज में पढ़ाएंगे। दूसरी शर्त ये है कि अगर भविष्य में कभी देवांशु हम लोगों से टकरा गया तो बिना कोई तमाशा किये अपने रास्ते चला जाएगा। और तीसरी शर्त ये है कि आप अपने बेटे को एक अच्छा बेटा बनाने की कोशिश करें। उसे दूसरों का सम्मान करना और लड़कियों की इज़्ज़त करना सिखाएँ। दीपा ने कहा।
इतना बोलकर दीपा कुछ देर शांत रही फिर उसने बोलना शुरू किया।
मैंने अपने माँ को बचपन में ही खो दिया था। मां के जाने के बाद पापा शराब के नशे में डूब गए। मुझे माँ बाप का प्यार बहुत कम नसीब हुआ। ऐसा नहीं है कि मेरे भैया ने मेरी परवरिश और मुझे प्यार देने में कोई कमी रखी हो, लेकिन माँ और पापा की कमीं मुझे हमेशा महसूस हुई। तो इस दर्द को मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। और मैं नहीं चाहती कि मेरे बदले की वजह से किसी बेटे को अपने माँ बाप से और किसी माँ बाप को अपने बेटे से दूर रहना पड़े। दीपा ने भावुक स्वर में कहा।
उसकी बात सुनकर सभी की आंखें नम हो गई थी।
देखिए मान्यवर। इसे कहते हैं संस्कार। आपके बेटे की इतनी घटिया हरकत को इस बच्ची ने इसलिए माफ़ कर दिया क्योंकि ये आपके बेटे को आपसे दूर नहीं करना चाहती है। तो हो सके तो आप खुद सुधर जाइये और अपने बेटे को भी एक अच्छा इंसान बनाइये। जिससे आपका भी सिर ऊंचा हो सके। और हां। आपके बेटे की इस वाहियात हरकत के लिए मैं उसे अपने कॉलेज से बर्खास्त करता हूँ। अगर दीपा बिटिया ये शर्त आपके सामने न भी रखती तो भी मैं उसे बर्खास्त करता। अब आप जा सकते हैं। कुछ देर बाद ये लोग अपनी शिकायत वापस ले लेंगे। कुलपति महोदय ने देवांशु के पापा से ये बात कही।
उसके बाद देवांशु के पापा और मम्मी दीपा को आशीर्वाद देते हुए आभार भारी नजरों से देखते हुए चले गए। उनके जाने के बाद कुलपति महोदय ने दीपा से कहा।
तुमने बहुत अच्छा काम किया है दीपा। किसी को माफ़ करना वो भी तब जब उसने आपकी इज़्ज़त पर हाथ डाला हो। सबके बस की बात नहीं। तुम्हारे भाई ने सचमुच तुम्हें बहुत अच्छे और महान संस्कार दिए है। ईश्वर तुम जैसी औलाद हर मां बाप को दे। अब तुम दोनों जाओ। देवांशु के मम्मी पापा थाने में तुम्हारा इंतज़ार कर रहे होंगे।
उसके बाद हम कुलपति महोदय के कार्यालय से बाहर निकल गए। मैं, दीपा, राहुल भैया और विक्रम भैया थाने पहुँचे। वहां इंस्पेक्टर से मिलकर हमने अपनी शिकायत वापस लेने के लिए बात की।
वैसे पुलिस होने के नाते मैं इसके लिए सहमत नहीं हूँ, लेकिन एक आम नागरिक और पिता होने के नाते मैं तुम्हारे इस निर्णय का समर्थन करता हूँ। मैं ये नहीं कहूंगा कि तुम लोग अपनी शिकायत वापस लेकर ठीक कर रहे हो, लेकिन मेरे हिसाब से सबको सुधरने का एक मौका देना चाहिए, हो सकता है तुम्हारे इस फैसले से देवांशु को अपने किये का पछतावा हो और वो सुधर जाए। इंस्पेक्टर सर ने कहा।
उसके बाद हमने अपनी शिकायत वापस ले ली देवांशु के माता पिता हम दोनों का आभार व्यक्त करते हुए वहां से चले गए। हम दोनों ने भी इंस्पेक्टर से इजाजत लेकर अपने घर की तरफ निकल पड़े। कुछ देर में हम घर पहुंच गए।
क्या बात थी निशान्त। कुलपति ने तुम्हें क्यों बुलाया था। माँ ने कहा।
मैंने माँ को सारी बात बता दी और दीपा के फैसले के बारे में सुनकर पहले तो माँ हैरान हुई, लेकिन जब माँ ने इस फैसले के पीछे छुपा कारण जाना तो उन्होंने दीपा के माथे को प्यार से चूमते हुए कहा।
सच में हम कितने भाग्यशाली हैं जो भगवान ने तुम जैसी बेटी को बहू के रूप में हमको दिया।
मां की बात सुनकर दीपा शरमाने लगी। धीरे धीरे दिन बीतने लगे। हम लोगों की परीक्षा भी शुरू हो गई। परीक्षा के परिणाम भी बहुत अच्छे आए थे हम दोनों के। मैं अपने छात्रनेता का दायित्व भी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभा रहा था जिसमे राहुल भैया और उनके दोस्त मेरी मदद करते थे। दिवांशु के पापा ने दीपा द्वारा रखी गई शर्त को पूरा किया और दिवांशु को दूसरे शहर पढ़ने को भेज दिया
इसी तरह हम दोनों की पढ़ाई पूरी हो गई और वादे के मुताबिक मेरी और दीपा की शादी भी हो गई। दीपा को अपनी पत्नी के रूप में पाकर मैं बहुत खुश था तो मेरी माँ दीपा को बेटी के रूप में पाकर खुश थी।
तो मित्रों और पाठकों। मैं इस प्रेम कहानी को यहीं समाप्त करती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि आप सबको ये कहानी पसंद आई होगी। हर रचनाकार की कहानी में कहीं न कहीं गलतियां और कमी रहती है। मेरी इस कहानी में भी होगी। तो आप सब पाठक मुझे उससे अवगत कराएं और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से इस कहानी को सुशोभित करें।
धन्यवाद पाठकों और मित्रों।
समाप्त/पूर्ण/खत्म