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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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:claps: Pichle updates me jo kahani kholi hai, maja hi aa gya, har update me kuch naya mod, kuch naya rahashya aur thrilll aisi thrilling kahani maine aaj tak nahi padhi. Is kahani ko dekhu to mujhe ek hit tv series dikhai padti hai.
इसके बाद दिल अपना प्रीत पराई पढ़ना भाई
 

lpncc7m5

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#136

जीप से सूरजभान और उसके साथी उतरे. मैं जानता था की ये दिन जरुर आएगा .

सूरजभान- बहुत बड़ी गलती की है कबीर , दुनिया में सब कुछ करना था ये नहीं करना था ये तो सोच लिया होता की सूरजभान किस आग का नाम है

मैं- इश्क किया है कोई चोरी नहीं की जो सच कर करूँगा. अज का दिन बहुत खास है रस्ते से हट जा सूरजभान , आज फेरे लेने है मुझे निशा संग मत रोक मेरा रास्ता .

सूरज- जुबान को लगाम दे हरामजादे , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की . और तुम, तुमने जरा भी नहीं सोचा, ये पाप करने से पहले . क्या तुम्हारे पैर एक बार भी नहीं कांपे उस चोखट को पार करते हुए .

मैं-निशा को कुछ भी कहा न तो मैं भूल जाऊंगा की तू कौन है , और आज अगर मैं बिगड़ा न सूरजभान तो फिर ये होली खून से खेली जाएगी .

सूरजभान- तूने तो मेरे दिल की बात कह दी कबीर. जो गुस्ताखी तूने की है न तेरे टुकड़े टुकड़े भी बिखेर दू तो ताज्जुब नहीं रहेगा मुझे . आज दुनिया देखेगी की हमारी तरफ नजर उठा कर देखने वालो का क्या हाल होता है . और तुम , तुमसे ये उम्मीद नहीं थी . अरे इतनी ही आग लगी थी तो घर में ही घाघरा खोल लेती , मेरे ही दुश्मन के साथ रंगरेली करनी थी तुमको.

निशा- अपनी हद में रहो सूरज, तुम्हारी जुबान क्यों नहीं कट गयी ये कहते हुए . काश तुम समझ पाते.

सूरज- समझ तो मैं गया हूँ, गलती बस ये हुई की मैं पहले नहीं समझा, काश पहले समझ जाता तो आज ये बेइज्जती नहीं होती.

मैं- निशा से एक और बार बदतमीजी की न सूरजभान तो दुबारा तेरी जुबान कुछ नहीं कह पाएगी.

सूरज- जुबान तो तेरी माफ़ी मांगेगी मुझसे , देख क्या रहे हो मारो साले को .

मैंने निशा को पीछे की तरफ किया और जो भी लड़का सबसे पहले मेरी तरफ आया था उसके सर पर खींच कर मुक्का मारा. कहते है की होली ऐसा त्यौहार है जहाँ दुश्मन भी गले मिलकर गिले शिकवे भुला देते है पर आज ये फाग का दिन न जाने क्या करवाने वाला था . मारापीटी शुरू हो गयी .

मैं एक वो अनेक पर वो नहीं जानते थे की मेरे अन्दर एक आदमखोर पनप रहा था . दो लडको ने पीछे से मुझे पकड़ लिया सूरजभान ने मेरे मुह पर घूँसा मारा . एक पल को लगा की जबड़ा ही हिल गया मेरा . अगला वार मेरे सीने पर पड़ा.

“कबीर,” निशा चीख पड़ी .

मैंने लात मार कर सूरजभान को पीछे धकेला . निशा ने एक लड़के से डंडा छीन लिया और झगडे में कूद गयी . मामला गंभीर हो गया था .मैंने निशा को पीछे किया लोहे की चेन का वार मेरी पीठ पर पड़ा निशा ने उस चेन को अपने हाथ से पकड़ लिया

निशा- मेरे गुरुर को मत ललकारो तुम लोग . मत मजबूर करो मुझे . मैं जाना चाहती हूँ जाने दो मुझे.

सूरज- कही नहीं जाओगी तुम . अपने आशिक को यही मरते देखोगी तुम. पहले इसे मारूंगा फिर तुम्हारा फैसला होगा. ऐसी सजा दूंगा तुम्हे की जमाना याद रखेगा. ऐसी गुस्ताखी करने से पहले फिर कोई सौ बार सोचेगा.

निशा- ये गलती मत करो सूरज, कहीं ऐसा न हो की पछताने के लिए न तुम्हारे पास कुछ बचे न मेरे पास.

सूरज- बचा तो वैसे भी कुछ नहीं है फिर.

निशा- ठीक है , अगर तुम्हारी यही मर्जी है तो फिर आज मैं जी भर के फाग खेलूंगी, कभी रंगों से तो नहीं खेल पायी और आज रक्त से खेलूंगी मैं.

निशा का ये रूप देख कर मैं भी एक पल के लिए घबरा गया . निशा ने वो चेन अपने हाथ में ले ली और पहला वार किया , एक बार फिर से मारा मारी शुरू हो गयी .



निशा- तुझे कसम है मेरी कबीर जो आज तू रुका. अगर आज हमने कदम रोक लिए तो फिर कोई हिम्मत नहीं कर पायेगा मोहब्बत करने की .

मैं- मेरी सरकार, तुझे लेने आया हूँ लेकर जाऊंगा. ये तो दस-पांच लोग है सारी दुनिया भी जोर लागले तो भी लेकर जाऊंगा ही .

मैंने एक लड़के को उठा कर पटका की वो गाड़ी के बोनट पर जाकर गिरा. अगले ही पल मेरा घुटना उसकी छाती पर जा लगा. उसके मुह से खून की उलटी निकली और वो साइड में गिर गया . मैंने देखा की निशा ने एक लड़के की आँखों में अपनी उंगलिया घुसा दी थी वो लड़का चीख रहा था . तडप रहा था पर निशा का गुस्सा उसके सर पर चढ़ा था .

मैंने सूरजभान का वार बचाया और अपना कन्धा निचे ले जाते हुए उसे उठा लिया. गाडी का शीशा तोड़ते हुए वो जीप के अन्दर जाकर गिरा. शीशे के टुकड़े कई जगह घुस गए उसके शरीर में . मैंने उसे खींचा और चेहरे पर वार किया. खून से सन गया उसका चेहरा . आसपास काफी लोग इकठ्ठा हो गए थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की बीच में पड़ जाये. मैं चाहता तो सूरजभान का किस्सा ख़त्म कर सकता था पर मुझे भैया की कही बात याद आ गयी



मैंने उसके सीने पर पैर रखा और बोला- काश तू समझ सकता. काश तू जान पाता इस बात को . निशा का साथ मैंने इसलिए नहीं किया था की तुझसे दुश्मनी निभा सकू. ये दुनिया बड़ी खूबसूरत हो सकती है अगर कुछ लोग अपनी सोच बदलदे तो . सबको सम्मान से जीने का हक़ है , खुली हवा में साँस लेने का हक़ है . देख मैं तेरी आँखों के सामने से निशा को लेकर जा रहा हूँ, तेरा फर्ज बनता था की तू इसके मन को समझता , इसे ख़ुशी से विदा करता पर तेरे अन्दर भी वही कीड़ा कुलबुला रहा है, औरत किसी की गुलाम नहीं है . उसे अपनी मर्जी से जीने का हक़ है . आज मैंने ये कदम उठाया है . समय सदा एक सा नहीं रहता , कल कोई ये काम करेगा. आज नहीं तो कल नहीं तो कुछ साल बाद , जैसे जैसे शिक्षा प्राप्त होगी जनता को गुलामी की जंजीरे टूटेगी. हर आदमी बराबरी का हक़ मांगेगा . तब क्या रहेगी तेरी मेरी सामन्ती, क्या रहेगी ये जमींदारी. मैं अपनी सरकार को लेकर जा रहा हूँ ,किसी और को रोकने की कोशिश करनी है तो कर लो . प्रीत की डोर बाँधी है निशा से मैंने ज़माने की बेडिया तोड़ कर जा रहा हूँ.


मैंने निशा का हाथ पकड़ा और उसे ले चला. नयी जिन्दगी सामने खड़ी हमें पुकार रही थी .
Ye kya hua to nisha kya dayan nahi thi iska matlab
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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जीप से सूरजभान और उसके साथी उतरे. मैं जानता था की ये दिन जरुर आएगा .

सूरजभान- बहुत बड़ी गलती की है कबीर , दुनिया में सब कुछ करना था ये नहीं करना था ये तो सोच लिया होता की सूरजभान किस आग का नाम है

मैं- इश्क किया है कोई चोरी नहीं की जो सच कर करूँगा. अज का दिन बहुत खास है रस्ते से हट जा सूरजभान , आज फेरे लेने है मुझे निशा संग मत रोक मेरा रास्ता .

सूरज- जुबान को लगाम दे हरामजादे , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की . और तुम, तुमने जरा भी नहीं सोचा, ये पाप करने से पहले . क्या तुम्हारे पैर एक बार भी नहीं कांपे उस चोखट को पार करते हुए .

मैं-निशा को कुछ भी कहा न तो मैं भूल जाऊंगा की तू कौन है , और आज अगर मैं बिगड़ा न सूरजभान तो फिर ये होली खून से खेली जाएगी .

सूरजभान- तूने तो मेरे दिल की बात कह दी कबीर. जो गुस्ताखी तूने की है न तेरे टुकड़े टुकड़े भी बिखेर दू तो ताज्जुब नहीं रहेगा मुझे . आज दुनिया देखेगी की हमारी तरफ नजर उठा कर देखने वालो का क्या हाल होता है . और तुम , तुमसे ये उम्मीद नहीं थी . अरे इतनी ही आग लगी थी तो घर में ही घाघरा खोल लेती , मेरे ही दुश्मन के साथ रंगरेली करनी थी तुमको.

निशा- अपनी हद में रहो सूरज, तुम्हारी जुबान क्यों नहीं कट गयी ये कहते हुए . काश तुम समझ पाते.

सूरज- समझ तो मैं गया हूँ, गलती बस ये हुई की मैं पहले नहीं समझा, काश पहले समझ जाता तो आज ये बेइज्जती नहीं होती.

मैं- निशा से एक और बार बदतमीजी की न सूरजभान तो दुबारा तेरी जुबान कुछ नहीं कह पाएगी.

सूरज- जुबान तो तेरी माफ़ी मांगेगी मुझसे , देख क्या रहे हो मारो साले को .

मैंने निशा को पीछे की तरफ किया और जो भी लड़का सबसे पहले मेरी तरफ आया था उसके सर पर खींच कर मुक्का मारा. कहते है की होली ऐसा त्यौहार है जहाँ दुश्मन भी गले मिलकर गिले शिकवे भुला देते है पर आज ये फाग का दिन न जाने क्या करवाने वाला था . मारापीटी शुरू हो गयी .

मैं एक वो अनेक पर वो नहीं जानते थे की मेरे अन्दर एक आदमखोर पनप रहा था . दो लडको ने पीछे से मुझे पकड़ लिया सूरजभान ने मेरे मुह पर घूँसा मारा . एक पल को लगा की जबड़ा ही हिल गया मेरा . अगला वार मेरे सीने पर पड़ा.

“कबीर,” निशा चीख पड़ी .

मैंने लात मार कर सूरजभान को पीछे धकेला . निशा ने एक लड़के से डंडा छीन लिया और झगडे में कूद गयी . मामला गंभीर हो गया था .मैंने निशा को पीछे किया लोहे की चेन का वार मेरी पीठ पर पड़ा निशा ने उस चेन को अपने हाथ से पकड़ लिया

निशा- मेरे गुरुर को मत ललकारो तुम लोग . मत मजबूर करो मुझे . मैं जाना चाहती हूँ जाने दो मुझे.

सूरज- कही नहीं जाओगी तुम . अपने आशिक को यही मरते देखोगी तुम. पहले इसे मारूंगा फिर तुम्हारा फैसला होगा. ऐसी सजा दूंगा तुम्हे की जमाना याद रखेगा. ऐसी गुस्ताखी करने से पहले फिर कोई सौ बार सोचेगा.

निशा- ये गलती मत करो सूरज, कहीं ऐसा न हो की पछताने के लिए न तुम्हारे पास कुछ बचे न मेरे पास.

सूरज- बचा तो वैसे भी कुछ नहीं है फिर.

निशा- ठीक है , अगर तुम्हारी यही मर्जी है तो फिर आज मैं जी भर के फाग खेलूंगी, कभी रंगों से तो नहीं खेल पायी और आज रक्त से खेलूंगी मैं.

निशा का ये रूप देख कर मैं भी एक पल के लिए घबरा गया . निशा ने वो चेन अपने हाथ में ले ली और पहला वार किया , एक बार फिर से मारा मारी शुरू हो गयी .



निशा- तुझे कसम है मेरी कबीर जो आज तू रुका. अगर आज हमने कदम रोक लिए तो फिर कोई हिम्मत नहीं कर पायेगा मोहब्बत करने की .

मैं- मेरी सरकार, तुझे लेने आया हूँ लेकर जाऊंगा. ये तो दस-पांच लोग है सारी दुनिया भी जोर लागले तो भी लेकर जाऊंगा ही .

मैंने एक लड़के को उठा कर पटका की वो गाड़ी के बोनट पर जाकर गिरा. अगले ही पल मेरा घुटना उसकी छाती पर जा लगा. उसके मुह से खून की उलटी निकली और वो साइड में गिर गया . मैंने देखा की निशा ने एक लड़के की आँखों में अपनी उंगलिया घुसा दी थी वो लड़का चीख रहा था . तडप रहा था पर निशा का गुस्सा उसके सर पर चढ़ा था .

मैंने सूरजभान का वार बचाया और अपना कन्धा निचे ले जाते हुए उसे उठा लिया. गाडी का शीशा तोड़ते हुए वो जीप के अन्दर जाकर गिरा. शीशे के टुकड़े कई जगह घुस गए उसके शरीर में . मैंने उसे खींचा और चेहरे पर वार किया. खून से सन गया उसका चेहरा . आसपास काफी लोग इकठ्ठा हो गए थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की बीच में पड़ जाये. मैं चाहता तो सूरजभान का किस्सा ख़त्म कर सकता था पर मुझे भैया की कही बात याद आ गयी



मैंने उसके सीने पर पैर रखा और बोला- काश तू समझ सकता. काश तू जान पाता इस बात को . निशा का साथ मैंने इसलिए नहीं किया था की तुझसे दुश्मनी निभा सकू. ये दुनिया बड़ी खूबसूरत हो सकती है अगर कुछ लोग अपनी सोच बदलदे तो . सबको सम्मान से जीने का हक़ है , खुली हवा में साँस लेने का हक़ है . देख मैं तेरी आँखों के सामने से निशा को लेकर जा रहा हूँ, तेरा फर्ज बनता था की तू इसके मन को समझता , इसे ख़ुशी से विदा करता पर तेरे अन्दर भी वही कीड़ा कुलबुला रहा है, औरत किसी की गुलाम नहीं है . उसे अपनी मर्जी से जीने का हक़ है . आज मैंने ये कदम उठाया है . समय सदा एक सा नहीं रहता , कल कोई ये काम करेगा. आज नहीं तो कल नहीं तो कुछ साल बाद , जैसे जैसे शिक्षा प्राप्त होगी जनता को गुलामी की जंजीरे टूटेगी. हर आदमी बराबरी का हक़ मांगेगा . तब क्या रहेगी तेरी मेरी सामन्ती, क्या रहेगी ये जमींदारी. मैं अपनी सरकार को लेकर जा रहा हूँ ,किसी और को रोकने की कोशिश करनी है तो कर लो . प्रीत की डोर बाँधी है निशा से मैंने ज़माने की बेडिया तोड़ कर जा रहा हूँ.


मैंने निशा का हाथ पकड़ा और उसे ले चला. नयी जिन्दगी सामने खड़ी हमें पुकार रही थी .
Awesome Update Foji bhai,
Surajbhan ki laga di bhai,
 

Froog

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निशा ने ऐसा क्या किया/हुआ कि निशा को डाकन की उपाधि मिली
फाग के दिन रंगों की होली के बीच खून की होली खेलते हुए कबीर ने निशा की मांग में सिंदूर भर कर ब्याह लिया
अंजू ने निशा को गले लगाया और भाभी पूजा की थाली के साथ द्वार पर खड़ी है
आगे क्या
हर अपडेट की अन्तिम लाइन सस्पेंस रहित रही हो ऐसा अपडेट आपने कोई नहीं दिया
इंतजार रहेगा एक और सस्पेंस के जबाब अगले अपडेट का
अगले अपडेट में रायता और ज्यादा फैलाया जायेगा या नहीं
शानदार अपडेट फौजी भाई
 

Froog

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मैं क्या बताऊ मेरे हालात, मजबूरियों के हाथ बिक गए मेरे ज़ज्बात
फौजी भाई जज़्बात हालत और मजबूरियों के कारण बिकते नहीं उन्हें दफ़न करना पड़ता है
 

Raj_sharma

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#137

दिलो में जज्बात लिए, हाथो में हाथ लिए हम दोनों जंगल में चले जा रहे थे . ये जंगल , ये जंगल बस जंगल नहीं था ये गवाह था उस दास्ताँ का जिसे इसने जवान होते हुए थे. ये गवाह था उन रातो का जब मैंने निशा के साथ जी थी . ये जंगल आज गवाह था अंधियारों की रानी को उजालो में लाने का. पानी की खेली पर निशा रुकी और अपने होंठो को पानी से लगा दिया. . होंठो से टपकती पानी की बूंदे, इस से खूबसूरत दोपहर मैंने नहीं देखि थी . उसकी साँस बड़ी तेज चल रही थी . एक नजर उसने मुझे देखा और फिर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गयी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- तुझे और मुझे सोच रही हूँ. डाकन से बगावत करवा दी तूने .

मैं- मैंने बस प्यार किया है इस डाकन से . इजहार किया है अपनी जान से . तूने कभी कहा था की अंधियारों से वास्ता है तेरा देख मेरी जान तेरे उजाले ले आया हूँ मैं .तुझे ले आया हु मैं

निशा- कैसी ये तेरी बारात सजना , न घोड़ी कोई भी संग न

मैं- क्या करते घोड़े हाथी, तू मेरी मैं तेरा साथी.

निशा- प्रेम समंदर दिल के अन्दर ओ मेरे साजन मुझ को ले चल मंदिर .

मैं- जब मन से मैंने तुझे , तूने मुझे अपना मान लिया तो क्या मंदिर जाना , रातो को इस जंगल में तुझे देखा था इसी जंगल में उजालो में तुझे अपनी बनाऊंगा

निशा- चल छोड़ बहाना, तू कैसा दीवाना सुन मेरी सुन, मुझे ले चल मंदिर.

मैं- जहाँ मेरी मोहब्बत वो ही मेरा मंदिर फिर उस मंदिर क्यों जाना

निशा- ये रीत पुराणी, ये प्रीत पुराणी

मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.



मैं निशा को कुवे पर ले आया.

निशा- यहाँ क्यों लाया

मैं उसे कमरे में ले गया और उसे वो दिया जिसके लिए मैं कबसे बेक़रार था .

निशा की आँखों में आंसू भर आये .

मैं- कबसे तम्मना थी मेरी जान तुझे इस पहनावे में देखने की , कितनी राते ये सोच कर बीत गयी की जब तुझे इस रूप में देखूंगा तो तू कैसी लगेगी . अब और इंतज़ार नहीं करना मुझे.

निशा - दिल धडकने की क्या बात करू मेरे साजन , ये सपना ही लग रहा है मुझे .

मैं- प्रीत की रीत सदा चली आई , मेरे सपने भी अब हो गए तेरे.

निशा- दिन लगते थे काली रैना जैसे, सोच राते कैसे बीती होंगी

मैं- अंधियारों में तेरा मन था जोगन और मेरा दिल था रमता जोगी. मन में तेरे प्यार के दीप जलाकर अब कर दे दूर अँधेरे.

जोड़ा पहनने के बाद उसने लाल चुडिया पहनी .

मैं- अब चल मंदिर.

दिल में हजारो अरमान लिए मैं निशा को थामे गाँव मे ले आया था . धड़कने कुछ बढ़ी सी थी पर किसे परवाह थी गाँव के लोग कोतुहल से हमें ही देख रहे थे. उनकी नजरो का उपहास उड़ाते हुए मैंने निशा के हाथ को कस कर थाम लिया. मंदिर के रस्ते में हम चौपाल के चबूतरे के पास से गुजरे , वो पेड़ ख़ामोशी से हमें ही देख रहा था .



“अब कोई लाली नहीं लटकेगी इस पेड़ पर मैं रीत बदल दूंगा.” मैंने खुद से कहा . निशा का हाथ थामे मैं मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था .

“पुजारी, कहाँ हु पुजारी . देखो मैं अपनी दुल्हन ले आया हूँ , आकर हमारे फेरे करवाओ ” मैंने कहा

मैंने देखा पुजारी हमारी तरफ आया उसकी आँखों में मैंने क्रोध देखा,असमंस देखा.

पुजारी- कुंवर, बहुत गलत कर रहे हो तुम इसे प्रांगन में ले आये सब अपवित्र कर दिया.

मैं- जुबान पर लगाम रखो पुजारी . मैंने तुझसे कहा था न की मेरे फेरे तू ही करवाएगा

पुजारी- ये पाप है एक डाकन से ब्याह कहाँ जगह मिलेगी तुमको कुंवर.

मैं- मैं तुझसे पूछता हूँ पुजारी इसे डाकन किसने बनाया, उस माँ ने तो नहीं बनाया न जो सामने बैठी तुझे भी और मुझे भी देख रही है . उसने तो इसे तेरे मेरे जैसा ही बनाया था न . नियति ने दुःख दिया तो इसमें इसका क्या दोष, इसको भी हक़ है ख़ुशी से जीने का . कब तक ये दकियानूसी चलेगी, कोई न कोई तो इस रीत को बदलेगा न . इस गाँव में ये बदलाव मैं लाऊंगा. तू फेरो की तयारी कर

पुजारी- हरगिज नहीं , ये पाप मैं तो जीते जी नहीं करूँगा. मेरा इश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा.

मैं- किस इश्वर की बात करता है पुजारी , ये तो माँ हैं न ये मेरी माँ है तो निशा की भी माँ हुई न. और माँ अपने बच्चो में कब से भेदभाव करने लगी. और अगर बात माँ और उसकी औलादों की है तो तेरी फिर क्या जरूरत हुई भला.

मैं निशा को लेकर माता की मूर्त के सामने आया . मैंने थाली में रखा सिंदूर उठाया और निशा की मांग में भर दिया.निशा ने अपनी आँखे बंद कर ली. मैंने अपने गले से वो लाकेट उतारा और निशा के गले में पहना दिया . निशा मेरे गले से लग गयी मैंने उसके माथे को चूमा और बोला- देख पुजारी , माँ ने तो कोई ऐतराज नहीं किया. वो भी जानती है की उसके बच्चो की ख़ुशी किस्मे है . और हाँ अब ये मेरी पत्नी है , अब तेरा मंदिर पवित्र हो गया न . मोहब्बत ने पुराणी परम्परा की नींव हिला दी है पुजारी. आने वाले वक्त में तू जिया तो न जाने क्या क्या देखेगा. चल मेरी जान घर चल. अपने घर चल.

गाँव का सीना चीरते हुए मैं अपनी सरकार को अपने घर ले आया. मैंने देखा दरवाजे पर भाभी खड़ी थी ,हमें देख कर उसकी आँखों में चमक होंठो पर मुस्कान आ गयी थी . शायद हमारे आने की खबर हवाए हमसे पहले घर ले आई थी .

“तो ” भाभी ने बस इतना कहा और निशा को अपनी बाँहों में भर लिया.


“स्वागत है “ भाभी ने कहा और निशा को घर में ले लिया पीछे पीछे मैं भी आया. मैंने देखा अंजू दौड़ कर आई और निशा के गले लग गयी . अंजू की आँखों में आंसू थे. मैंने चाची को आरती की थाली लेकर आते हुए देखा. .................ये ख़ुशी , ये ख़ुशी जो मैं महसूस कर रहा था इसके पीछे आते तूफान को मैं महसूस नहीं कर पा रहा था .
Great Update with Awesome writing Skills Bro, nisha ki mang bhar di kabir ne, dekho aage kya hota hai, surajbhan or rai, sono chup nahi baithenge. Kuch to gadbad pakki h.
 

Love Sword

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अदभुत लेख कल्पना का एक नया शहर लिख दिया है आपने फौजी भाई

सलाम है एक सैनिक को सलाम है एक लेख को

1000 अपडेट हुआ ही साथ मैं एक अदभुत कहानी भी मिली है हम को
 

HalfbludPrince

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निशा- तुझे कसम है मेरी कबीर जो आज तू रुका. अगर आज हमने कदम रोक लिए तो फिर कोई हिम्मत नहीं कर पायेगा मोहब्बत करने की .



मैं- मेरी सरकार, तुझे लेने आया हूँ लेकर जाऊंगा. ये तो दस-पांच लोग है सारी दुनिया भी जोर लागले तो भी लेकर जाऊंगा ही .


प्यार जो न कराए सरकार :loveeyed2:
प्यार अपना रास्ता खुद चुन लेता है
 
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