ये इश्क़ नही आशां , मुश्किल इसे पाना है ।
इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है ।।
पिछले कुछ भाग, कहानी को उसके अंत के तरफ बड़ी ही रोचकता से ले जा रही है, चंपा का व्याह, उसमे आदमखोर का कहर, फिर निशा पर आदमखोर का हमला...
अंत मे हमे सरला की सच्चाई भी पता चली, जो रमा जैसी ही एक छिनाल निकली, वैसे ये खेल चल क्या रहा है ये तो अभी भी रहष्य ही है, किन्तु कुछ ऐसे राज़ जो की हमेशा हृदय की संपीड़न बढ़ा दिया करती थी... उस राज़ पर से पर्दा कवीर ने हटा लिया है,
जैसे की आदमखोर की वाशतविकता, जो और कोई नही बल्की स्वयं कवीर की भाभी ही निकली, जो सुरुआत मे खुद ही कवीर पर आदमखोर होने का इल्ज़ाम लगाई थी, हालाँकि उस न ऐसा क्यो किया, इसका ज़बाब भी हमे मिल ही चुका है।
कहानी मे त्रिदेव की गुत्थी भी हमारा भेजा खाये हुये थी, पर उस राज़ पर से भी पर्दा उठा, और पता चला त्रिदेव ही वो वजह थी जिसके कारण गांव को आदमखोर का सामना करना पड़ा ।
कवीर के लिए क्या ही कहूँ, इसने जिस जिस पर भरोशा किया सबने इसकी गांड मारी है, क्या रमा.... क्या चाची.... क्या सरला..... क्या चंपा......और क्या मन्गू......
मन्गू... जो की कवीर का एक तरह से लंगोटिया यार था, उसने कवीर को मारना चाहा....
आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जो उसकी मानशिक्ता ऐसे अचानक बदल गयी....
यहाँ हम पाठको से शायद कुछ छूट रहा है.... हो ना हो... इन सब के सोच और दिमाग का ब्रेन वास करने बाला...
दयाल साहब ही होगा... या फिर कोई और...
उफ़.... लेकिन अंत ये हुआ की कवीर को अपने बचपन के साथी की अपने उसी हाथों से हत्या करनी पड़ी, जिस हाथ मे उस साथी का हाथ जोड़ कर कभी अठखेलियाँ किया करते होंगे....
क्या क्या दिन दिखाता है इंशान को उसे बनाने वाला....
मोहब्बत की इंतेहाँ था जिन दिलों मे, आज वही कब्र खोदने चले हैं....
कवीर पर क्या बीत रही होगी ये शिवाय उसके कोई नही समझ सकता ।
खैर, चाहे कुछ भी हो, आखिर ये है तो एक कथा ही...
आज का अंश.... निशा के नाम...
इसे पढ़ने के बाद ये बात तो पक्की हो गयी है की निशा किसी न किसी प्रकार से रूडा और सुरजभान से संबंधित है, वॉक असल मे किस प्रकार संबंधित है इसकी जानकारी तो हमे फौजी भाई ने नहीं दी, किंतु ऐसा संभव है की वो सुराजभान की बहन, रूडा की बेटी होगी... लेकिन कोई और भी हो सकती है, हमे ये नही भूलना चाहिए की जब निशा नंदनी से मिली थी, तब... नंदनी, निशा के चरण छूकर सुहाग सलामत का आशिर्वाद ली थी, निशा का किरदार कोई और भी हो सकता है..
अब बात करते है उस अग्नि परीक्षा की जिस से आज कवीर और निशा गुजर कर, अपना पड़ाव पार करने निकले है...
गजब का एकसन देखने को मिला, निशा का क्रोध, कवीर का वो सुरजभान को उठा कर गाड़ियों पर यूँ पटकना जैसे वो चारा की बोरी हो, मज़ा आ गया पढ़ कर ।
अद्भुत, क्या लिखा है आपने, कहानी सीधे सीने मे बुनती जा रही है । एक एक खंड, एक एक छंद... सब उसी तरह ज़ेहन मे समाये जा रही है जैसा वर्सो पहले दिल अपना प्रीत पराई के समय हुआ था । आपको धन्यवाद करता हूँ जो आप ने हम पाठको के लिए इतनी बेहतरीन रचना रची है ।
आशा है इसके अंत के बाद, हमे किसी और कवीर जैसे गुणी और निशा जैसी निश्छल प्रेमी की प्रेम कहानी पढ़ने को मिले ।
बाकी इसके आगे बाले भाग के लिए आपको शुभकामनाएँ ।