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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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क्या क्या कांड कर दिये सरकार आपने, साला हर कोई कवीर की गाँड मार रहा था, ये तक साबित हो ही गया, हर एक संभावना निरर्थक साबित हुयी, मेरी भी, बाकी रीडर्स की भी और तो और कवीर की भी, सवाल के जबाब तो मिले, लेकिन ऐसा जबाब.... जिसकी उम्मीद कोई नही कर सकता था ।
सुनैना की आत्मा का अंश कवीर खुद ही था....
रमा और दयाल साहब मिल कर अपनी खिचड़ी बना रहे थे, उनकी अपनी अलग लालच थी । स्वर्ण की लालच...
निधी, अभिमानु... सब अंधेरे मे थे... जो कहीं न कहीं खुद को ज़िन्मेदार मान रहे थे. आदमखोर का, और अपने मित्र के मृत्यु का.
चंपा... ये एक पहेली ही रह गयी... क्योंकी इसके कहे शब्दों से कभी भी ये नही लगा की ये स्वयं दयाल की रखैल बनी होगी... और अंत मे इसका किस्सा यूँ ही खत्म... ये अज़ीब लगा मुझे.
कहानी मे एक ऐसा भी किरदार है जो सबके सामने हो कर भी सामने नही है.... चाची... जब पूरा परिवार सडयंत्र का हिस्सा है तो उसमे चाची का भी कहीं न कहीं महत्वपूर्ण रोल होगा ।
बात करे इस काली रात की...
रमा, दयाल और कवीर का द्वंद देखकर , पढ़कर बहुत सारी बेहतरीन कहानियों के द्वंद युद्ध का दृश्य याद आगया...
रमा, और दयाल... अपने लालच के वजह से कवीर के आदमखोर रूप का शिकार बने । सोने का श्राप आखिर उन्हे भी ले डूबा ।

इन्ही दोनों के पदानुशार अंजू भी थी..... ......... लेकिन क्यों.... अंजू के पास तो किसी चीज की कमी नही थी....
अभिमानु उसे अपनी बहन मानता था, निधी अपनी नंद मानती थी... फिर भी इसने अभिमानु और निधी दोनों को मारने मे संकोच तक नही की । हद है... अंजू के ऐसा करने की वजह क्या है.... आखिर इसकी तो रमा और दयाल से अलग अपनी कहानी होगी...

हह्ह्.... सब के सब झूठे थे इस कहानी मे... किसी ने भी कवीर से सच नही कहा...

अब जब अंत मे कवीर, अंजू को मारने ही जा रहा था तो... किसी ने उसके पीठ पीछे भाला भोंक दिया....

वैसे ये कोई अचंभित होने बाली बात नही है की कवीर को किसी ने पीठ पीछे भाला भोंका... आखिर अब तक तो सब पीठ पीछे ही हुआ है उसका....

लेकिन सवाल ये है की वो कौन हो सकती है...

बचे भी तो कुछ ही है इस कहानी के अंत लिखने को,

1 . निशा...
2 . चाची...
3 . सरला...

या कोई ऐसा, जो कहानी मे तत्काल मरा है...

HalfbludPrince जी, आपकी ये रचना , हमे एक नये अनुभव की ओर ले गया... ऐसी कहानी शायद ही पढ़ी होगी हमने कभी, और शायद ही कभी पढ़ पाऊंगा, हाँ मानता हूँ, कुछ सवाल अभी भी दिमाग मे गूँज रहे है, पर फिर भी आपने जिस हिसाब से इस कहानी का अंत पिरोया है वो काबिले तारीफ़ है , आपके अलावा शायद ही कोई इसका अंत लिख पाता... फोरम पर ऐसी बहोत सारी अधूरी कहानी पड़ी है, जिसके लेखक ने आज तक उसका अंत नही दिया ।

शायद अब कहानी का कुछ ही भाग मे अंत हो जाए, किंतु ये कहानी हमारे ज़ेहन मे सदैव समायी रहेगी । आपको आगे भी ऐसे ही रोमांचक और बेहतरीन रचनाओ के लिखने के लिए शुभकामनाएं , और आपकी इस रचना " तेरे प्यार मे " के लिए....
धन्यवाद
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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कबीर एक आम इंसान है जी परिवार को टूटते हुए देख रहा है. परिवार एक ऐसी संस्था है जो व्यक्ती को बना भी दे और बिगाड़ भी दे. कबीर लाली के लिए लड़ गया क्योंकि वो जानता था कि एक दिन उसके जीवन मे भी ऐसा आएगा ऐसा हुआ भी उसने वो रीत ही तोड़ दी.
अब बात राय सहाब की मौत की, किसी के लिए भी आसान नहीं होता अपने बाप को मारना चाहे हालात जो भी हो. कबीर समाज के लिए क्यों सोचे समाज खुद नपुंसक है. मैंने शुरू से कहा कि नायक एक आम आदमी है जो अपने परिवार के विघटन से जूझ रहा है जब कन्धे झुके हो ना तो शेर दिली नहीं होती. जनता कबीर को चूतिया समझे तो ये ही सही. लार्जर देन लाइफ नहीं है कबीर ना होगा
कवीर... चुतिया... कुछ हद तक जनता भी सही है, साला था तो वो चुतिया ही, तभी तो सब के सब उसकी मार रहे थे जमकर... चाहे वो घरवाले हो (दयाल, चाची, चंपा, अंजू, अभिमानु, निधी) ... या फ़िर बाहर बाले (रमा, सरला, प्रकाश, कवीता) चाहे वो परममित्र ही क्यों न हो, सब के सब उसकी मार रहे थे, वो भी अच्छे से । लेकिन.... यही तो कहानी थी, यही तो था वो निशा का कथन... "जो कुछ भी है वो तुम्हारे घर मे ही है "
कहानी का सारा केंद्र... कवीर और उसका उसके घरवालो के साथ संबंध ही रहा... जैसे उसके भाभी के साथ मातृत्व का संबंध, जान से भी प्यारा भाई... हद से ज्यादा कमीना बाप.... विधवा की जिंदगी जीती चाची, चुतिया दोस्त, चंपा से एक जुड़ाव.... सब कुछ तो उसके परिवार से ही सुरु हुआ...
और अब परिवार पर ही खत्म हो रहा है । फर्क शिर्फ इतना है की... परिवार के साथ सारी झंझट तो खत्म हो ही रही है, किंतु साथ मे परिवार को भी खत्म कर रही है...
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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HalfbludPrince फौजी भाई............. ये है आपकी रीडर्स पर दोष मढ़ने की कोशिश का परिणाम..........

भाई रीडर्स को कोई जल्दी नहीं थी......... ना अब है........... राज खुलने की
लेकिन चूतियापे को चूतियापा ना लिखें तो क्या लिखें.............कबीर को हीरो की जगह चूतिया बनाकर दिखाओगे तो उसे चूतिया ही कहेंगे रीडर्स

लेकिन अब नही, अब कुछ बोलेंगे नही बस nice story, nice update बोल कर निकल जायेंगे :D
ये भी सही है, हमने तो ये तक कह दिया था की ज़नाब कहानी को अगले फ़ाग तक ले जा सकते है.... आखिर एकाध फ़ाग तो खुशनुमा गुजरता कवीर का... पर अब क्या... उसकी भाभी तो स्वर्ग सिधार गयी....

फगुआ हो गईल बेकार.... 🤣🤣
🤣
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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Pics gif k bina story bina namak k khanw jesi h

यहाँ आपको नमक स्वाद अनुसार मिलेगी देवी, जाकर चख लें ।

 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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कबीर एक आम इंसान है जी परिवार को टूटते हुए देख रहा है. परिवार एक ऐसी संस्था है जो व्यक्ती को बना भी दे और बिगाड़ भी दे. कबीर लाली के लिए लड़ गया क्योंकि वो जानता था कि एक दिन उसके जीवन मे भी ऐसा आएगा ऐसा हुआ भी उसने वो रीत ही तोड़ दी.
अब बात राय सहाब की मौत की, किसी के लिए भी आसान नहीं होता अपने बाप को मारना चाहे हालात जो भी हो. कबीर समाज के लिए क्यों सोचे समाज खुद नपुंसक है. मैंने शुरू से कहा कि नायक एक आम आदमी है जो अपने परिवार के विघटन से जूझ रहा है जब कन्धे झुके हो ना तो शेर दिली नहीं होती. जनता कबीर को चूतिया समझे तो ये ही सही. लार्जर देन लाइफ नहीं है कबीर ना होगा
आपकी बात से सहमत हूं

परिवार ऐसी संस्था है जो बिगाड़ भी सकती है और बना भी सकती है, लेकिन यहां कबीर का परिवार, मतलब अभिमानु नंदिनी हमेशा उसका साथ दिया, फिर सच बताने में क्यों हिचकते रहे, और जब कबीर ने उनका सच परख ही लिया था, मतलब बनी का आदमखोर होना, फिर कबीर ने इनको साथ क्यों नही लिया??

समाज नपुंसक होता है, इसीलिए उसे एक मर्द की जरूरत होती है, कबीर लाली के लिए वो मर्द बनने को तैयार था, तो फिर एकदम से उसको ऐसा कमजोर बना देना, जबकि उसका अपने बाप से कबका मोहभंग हो चुका था।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#160

इस रात से मुझे नफ़रत ही हो गयी थी . बहन की लौड़ी अभी और ना जाने क्या दिखाने वाली थी .वो चीख मुझे बहुत कुछ बता रही थी . उस चीख ने मेरे कानो में जैसे पिघला हुआ शीशा ही घोल दिया हो . निशा को छोड़ कर मैं हाँफते हुए उस तरफ दौड़ा जहाँ से चीख आ रही थी . ये चीख , ये चीख मेरे भाई की थी .

यहाँ पर एक बार फिर सम्भावना ने मुझे धोखा दे दिया था . भाभी ने जब अपना मंगलसूत्र उतार कर मुझे दिया तो मैंने समझा था की भैया ने ही मार दिया उनको पर सच्चाई अब मेरी आँखों के सामने थी. ऐसा सच जिस पर मुझे यकीन नहीं हो रहा था , जब मैं दोराहे पर पहुंचा तो मैंने देखा की अंजू ने भैया का गला रेत दिया है , भैया अपने गले को पकडे हुए तडप रहे थे .

“अंजू हरामजादी तूने ये क्या किया ” मैं चीखते हुए उसकी तरफ दौड़ा .

अंजू- बड़ी देर कर दी मेहरबान आते आते . हम तो तरस गए थे दीदार को तुम्हारे.



“भैया को छोड़ दे अंजू वर्ना तू सोच भी नहीं सकती क्या होता तेरे साथ ” मैंने कहा

अंजू- मैं क्या छोडू ये खुद ही दुनिया छोड़ देगा थोड़ी देर में .

मैं- मेरे भाई को कुछ भी हुआ न तो मैं आग लगा दूंगा

अंजू- आग तो मैंने लगाइ देख सब कुछ जल तो रहा है .

मैं भैया को छुड़ाने के लिए अंजू तक पहुचता उस से पहले ही अंजू ने भैया की गर्दन को काट दिया . मुझे तो जैसे दौरा ही पड़ गया . मेरी आँखों के सामने मेरे भाई को मार दिया गया था .

“क्यों , क्यों किया तूने ऐसा अंजू,” मैंने आंसू भरी आँखों से पूछा

अंजू- सोच रही हूँ कहाँ से शुरू करू कहाँ खत्म करू

मैं- खत्म तो तुझे मैं करूँगा यही इसी जगह पर

अंजू- कोशिश करके देख ले . पर चल तू भी क्या याद करेगा पर पहले मुझे तुझसे जानना है की ऐसा क्या था जो तू जान गया और मैं अनजान रही .

मैं- सच . वो सच जो कभी तू समझ ही नहीं पायी . तू सुनैना की बेटी होकर भी अपनी माँ को समझ नहीं पायी. तूने अपनी माँ की इमानदारी को नहीं चुना तूने रुडा, राय साहब की मक्कारी को चुना. मेरी कोई बहन नहीं थी मैंने तुझे वो दर्जा दिया पर तू नागिन निकली जिस भाई ने तुझे स्नेह दिया तूने उसको डस लिया . नंदिनी भाभी ने क्या बिगाड़ा था तेरा . एक झटके में तूने मुझसे वो आंचल छीन लिया जिसकी छाँव में मैं पला था .

अंजू- बंद कर ये ड्रामे, ये रोने धोने का नाटक. मैं सिर्फ तुझसे एक सवाल का जवाब चाहती हूँ .जो काम मेरी माँ नहीं कर पायी वो मैं पूरा करुँगी.

मैं- चुतिया की बच्ची है तू, सब कुछ तेरे पास ही तो था वो लाकेट जो तूने मुझे दिया था उसे कभी तू पहचान ही नहीं पायी . वो लाकेट एक ऐसी व्यवस्था थी , वो लाकेट उसे राह दिखाता जिसका मन सच्चा होता. जिसे स्वर्ण का लालच नहीं होता. तूने अपनी गांड खूब घिसी , जंगल का कोना कोना छान मारा पर तुझे घंटा भी नहीं मिला . क्योंकि तू लायक ही नहीं थी .

मैंने पास पड़ा एक लकड़ी का टुकड़ा उठाया और अंजू की तरफ लपका पर वो शातिर थी , मेरे वार को बचा गयी . अंजू ने पिस्तौल की गोली चलाई मेरी तरफ पर उसका निशाना चूका, जंगल में आवाज दूर तक गूँज उठी . मैने तुरंत एक पत्थर उठा कर अंजू पर निशाना लगे पिस्तौल हाथ से गिरते ही मैंने उसे धर लिया . दो चार रह्पते लगाये उसे और धरती पर पटक दिया.

मैं- इतना तो सोच लेती , कोई तो है जो तेरी खाल खींच लेगा. कोई तो होगा जिसके आगे तेरी एक न चलेगी. मैंने खीच कर लात मारी अंजू के पेट में . खांसते हुए वो आगे को सरकी .

मैं- चिंता मत कर तुझे ऐसे नहीं मारूंगा. तूने मुझसे वो छीन लिया जो मेरे लिए बहुत अजीज था . तुझे वो मौत दूंगा की पुश्ते तक कांप जाएगी . आज के बाद दगा करने से पहले सौ बार सोचा जायेगा.

मैं आगे बढ़ा और अंजू के पैर को पकड़ते हुए उसकी चिटली ऊँगली को तोड़ दिया .

“आईईईईईइ ” जंगल में अंजू की चीख गूँज उठी .

मैं- जानना चाहती है न तू मैंने क्या जाना , सुन मैंने मोहब्बत को जाना . मोहब्बत था वो राज . इश्क था वो सच जो मैंने जाना जो मैंने समझा. वो लाकेट तेरी माँ की अंतिम निशानी तुझे चुन लेता उसने महावीर को भी चुना था पर तू समझ ही नहीं पायी . चाबी हमेशा तेरे साथ थी और बदकिस्मती भी .सोना एक लालच था जिसे कभी पाया ही नहीं जा सकता था . जो भी इसे पाने की कोशिश करता वो कैद हो कर रह जाता ऐसी कैद जो थी भी और नहीं भी . इस सोने को इस्तेमाल जरुर किया जा सकता था पर उसके लिए वो बनना पड़ता जो कोई नहीं चाहेगा . आदमखोर बन कर लाशो से सींचना पड़ेगा जितना सोना तुम लोगे उतने बराबर का रक्त रखो . इस सोने का कभी कोई मालिक नहीं हुआ ये सदा से शापित था , जिसे सुनैना ने मालिक समझा वो भी कोई कैदी ही था जिसने न जाने कब जाने अनजाने सोने की चाहत में सौदा किया होगा . अपनी आजादी का मतलब ये ही था की उसकी सजा कोई और काट ले मतलब समझी तू .

मैंने अंजू की अगली ऊँगली तोड़ी.

मैं- जितना मर्जी चीख ले . इस दर्द से तुझे आजादी नहीं मिलेगी . मौत इतनी सस्ती नहीं होगी तेरे लिए.



“कौन था वो ” अंजू ने कहा


इस से पहले की मैं कुछ भी कह पाता , बदन को एक जोर का झटका लगा और चांदी का एक भाला मेरी पीठ से होते हुए सीने के दाई तरफ पार हो गया. मैं ही क्या मेरे अन्दर का जानवर तक दहक उठा बदन में आग सी लग गयी. मांग जैसे जलने लगा . बड़ी मुश्किल से मैंने पलट कर देखा और जिसे देखा फिर कुछ देखने की इच्छा ही नहीं रही .
वैसे इस अपडेट में फौजी भाई ने एक एडवांटेज लिया है जो कबीर के जिंदा रहना या ना रहना बताएगा की उसे किसने भाला मारा है।

अगर जो वो निशा है, तब तो सब मारे जायेंगे आखिरी में, शायद चाची बचे बस।

अगर जो वो चाची है तब तो कबीर के पास निशा जैसी वजह है जिंदा रहने के लिए।

बाकी तो नियति जाने की फौजी भाई क्या चाहते हैं।
 
Last edited:

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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क्या क्या कांड कर दिये सरकार आपने, साला हर कोई कवीर की गाँड मार रहा था, ये तक साबित हो ही गया, हर एक संभावना निरर्थक साबित हुयी, मेरी भी, बाकी रीडर्स की भी और तो और कवीर की भी, सवाल के जबाब तो मिले, लेकिन ऐसा जबाब.... जिसकी उम्मीद कोई नही कर सकता था ।
सुनैना की आत्मा का अंश कवीर खुद ही था....
रमा और दयाल साहब मिल कर अपनी खिचड़ी बना रहे थे, उनकी अपनी अलग लालच थी । स्वर्ण की लालच...
निधी, अभिमानु... सब अंधेरे मे थे... जो कहीं न कहीं खुद को ज़िन्मेदार मान रहे थे. आदमखोर का, और अपने मित्र के मृत्यु का.
चंपा... ये एक पहेली ही रह गयी... क्योंकी इसके कहे शब्दों से कभी भी ये नही लगा की ये स्वयं दयाल की रखैल बनी होगी... और अंत मे इसका किस्सा यूँ ही खत्म... ये अज़ीब लगा मुझे.
कहानी मे एक ऐसा भी किरदार है जो सबके सामने हो कर भी सामने नही है.... चाची... जब पूरा परिवार सडयंत्र का हिस्सा है तो उसमे चाची का भी कहीं न कहीं महत्वपूर्ण रोल होगा ।
बात करे इस काली रात की...
रमा, दयाल और कवीर का द्वंद देखकर , पढ़कर बहुत सारी बेहतरीन कहानियों के द्वंद युद्ध का दृश्य याद आगया...
रमा, और दयाल... अपने लालच के वजह से कवीर के आदमखोर रूप का शिकार बने । सोने का श्राप आखिर उन्हे भी ले डूबा ।

इन्ही दोनों के पदानुशार अंजू भी थी..... ......... लेकिन क्यों.... अंजू के पास तो किसी चीज की कमी नही थी....
अभिमानु उसे अपनी बहन मानता था, निधी अपनी नंद मानती थी... फिर भी इसने अभिमानु और निधी दोनों को मारने मे संकोच तक नही की । हद है... अंजू के ऐसा करने की वजह क्या है.... आखिर इसकी तो रमा और दयाल से अलग अपनी कहानी होगी...

हह्ह्.... सब के सब झूठे थे इस कहानी मे... किसी ने भी कवीर से सच नही कहा...

अब जब अंत मे कवीर, अंजू को मारने ही जा रहा था तो... किसी ने उसके पीठ पीछे भाला भोंक दिया....

वैसे ये कोई अचंभित होने बाली बात नही है की कवीर को किसी ने पीठ पीछे भाला भोंका... आखिर अब तक तो सब पीठ पीछे ही हुआ है उसका....

लेकिन सवाल ये है की वो कौन हो सकती है...

बचे भी तो कुछ ही है इस कहानी के अंत लिखने को,

1 . निशा...
2 . चाची...
3 . सरला...

या कोई ऐसा, जो कहानी मे तत्काल मरा है...

HalfbludPrince जी, आपकी ये रचना , हमे एक नये अनुभव की ओर ले गया... ऐसी कहानी शायद ही पढ़ी होगी हमने कभी, और शायद ही कभी पढ़ पाऊंगा, हाँ मानता हूँ, कुछ सवाल अभी भी दिमाग मे गूँज रहे है, पर फिर भी आपने जिस हिसाब से इस कहानी का अंत पिरोया है वो काबिले तारीफ़ है , आपके अलावा शायद ही कोई इसका अंत लिख पाता... फोरम पर ऐसी बहोत सारी अधूरी कहानी पड़ी है, जिसके लेखक ने आज तक उसका अंत नही दिया ।

शायद अब कहानी का कुछ ही भाग मे अंत हो जाए, किंतु ये कहानी हमारे ज़ेहन मे सदैव समायी रहेगी । आपको आगे भी ऐसे ही रोमांचक और बेहतरीन रचनाओ के लिखने के लिए शुभकामनाएं , और आपकी इस रचना " तेरे प्यार मे " के लिए....
धन्यवाद
जी सच कहा ये रचना अद्भुत है 😍 व आपकी प्रतिक्रिया बिल्कुल स्टीक है 😍
 
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