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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
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Are bhai new kahani pe aaja
Already there . Diljale ke saath saath Dil Apna Prit Parai padh raha hu to bohot resemblence bhi mil rahe he dono me aur 2no jagah review de raha hu.
 

rajpoot01

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great great
 

Savita143

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Lajawab story 🔥
 
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Abhishek Kumar98

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Bahut jabardast start hai
 

Abhishek Kumar98

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#3

“हाय रे , तोड़ दी मेरी कमरिया आज तो ऊपर से देखो नालायक कैसे खड़ा है , मुझे तो उठा जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा तो मेरा ध्यान गया की मैं चाची से टकरा गया था . चाची का लहंगा घुटनों तक उठ गया था जिस से सुबह की रौशनी में उनकी दुधिया जांघे चमक उठी थी . पांवो में पिंडियो पर मोटे चांदी के कड़े क्या खूब सज रहे थे . मैंने देखा की चाची के सीने से शाल हट गया था तंग चोली में से बाहर निकलने को बेताब चाची की चुचियो पर मेरी नजर पड़ी तो उठ नहीं पायी.

“रे हरामखोर मैं इधर पड़ी हूँ और तुझे परवाह ही नहीं है एक बार मुझे खड़ी कर जरा हाय रे मेरी कमर . हाथ दे जरा ” चाची ने फिर से कहा तो मैं होश में आया .

मैंने सहारा देकर चाची को खड़ी किया चाची ने एक धौल मेरी पीठ पर मारी .

चाची- जब देखो अफरा तफरी में रहता है , किसी दिन एक आधे की जान जरुर लेगा तू

मैं- चाची तुम को तो देख लेना चाहिए था न

चाची- हाँ गलती तो मेरी ही हैं न .

मैं- मेरी प्यारी चाची , तुम्हारी गलती कैसे हो सकती है . मैं आगे से ध्यान रखूँगा अभी गुस्सा न करो. इतने खूबसूरत चेहरे पर गुस्से की लाली अच्छी नहीं लगती .

मैंने चाची को मस्का मारा तो चाची हंस पड़ी .

चाची- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे . दो दिन से कहा गायब था तू .

मैं- बस यूँ ही

चाची- कोई न बच्चू ये दिन है तेरे

मैं- चाची मैं बाद में मिलता हूँ आपसे

मैं सीधा मंगू के घर गया और दरवाजे पर ही उसकी बहन चंपा मिल गयी .

मैं- मंगू कहा है

चंपा- जब देखो मंगू, मंगू करते रहते हो इस घर में और कोई भी रहता है

मैं- तुझसे कितनी बार कहा है की मेरे साथ ये बाते मत किया कर .

चंपा- तो कैसी बाते करू तुम ही बताओ फिर.

मैं- चंपा. मंगू कहा है

चंपा- अन्दर है मिल लो

मैं सीधा मंगू के कमरे में गया पर वो वहां नहीं था मैं पलट ही रहा था की तभी चंपा आकर मुझसे लिपट गयी. तो ये इसकी चाल थी मंगू घर पर था ही नहीं . मैंने झटके से उसे दूर किया

मैं- चंपा हम दोनों को अपनी अपनी हदों में रहना चाहिए. आखिर तू समझती क्यों नहीं .

चंपा- आधा गाँव मेरी जवानी पर फ़िदा है पर मैं तुझ पर फ़िदा हूँ और तू है की मेरी तरफ देखता भी नहीं . ये मेरे रसीले होंठ तड़प रहे है की कब तू इनका रस निचोड़ ले. ये मेरा हुस्न बेताब है तेरे आगोश में पिघलने को .

मैं- खुद पर काबू रख , थोड़े दिन में तेरा ब्याह हो ही जायेगा फिर अपने पति को जी भर कर इस जवानी का रस पिलाना

चंपा- तू बस एक बार कह अभी तुझे अपना पति मान कर सब कुछ अर्पण कर दूंगी.

चंपा मेरे पास आई और मेरे गालो को चूम लिया .

मैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .

चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .

मैं-दिल तो पागल ही होता है .तू तो पागल मत बन . जल्दी ही तेरा ब्याह होगा , हंसी-खुशी तेरी डोली उठेगी. एक बार तेरा घर बस जायेगा तो फिर ये सब बेमानी तेरा पति तुझे इतना सुख देगा की तू सुख की बारिश में भीग जाएगी. मैं जानता हूँ की तेरे मन में ये हवस नहीं है वर्ना गाँव में और भी लड़के है . इसलिए ही तेरा इतना मान है मुझे .

मैंने चंपा के माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया.

मैं- अब तो बता दे कहा है मंगू

चंपा- खेत में गया है माँ बाबा संग.

खेत में जाने से पहले मैं वैध जी के घर गया हरिया को देखने . उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था , बदन पीला पड़ा था जिससे की खून की कमी हो गई हो उसे. बार बार गर्दन को झटक रहा था , हाथो से अजीब अजीब इशारे कर रहा था .मैंने हरिया के परिवार वालो को देखा जो बस रोये जा रहे थे उसकी हालत को देख कर.

मैं- वैध जी क्या लगता है आपको

वैध- शहर में बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहिए , खून की कमी लगातार हो रही है , आँखे तक पीली पड़ गयी है.

मैं- तो देर किस बात की ले चलते है इसे शहर

वैध- इसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं है

मैं- तो क्या पैसो के पीछे इसे मरने देंगे. आप इसे लेकर अभी के अभी शहर पहुँचिये . मैं पैसे लेकर आता हूँ .

मैंने घर जाकर भाभी को बताया की हरिया को एडमिट करवाना है और पैसे चाहिए . भाभी ने तुरंत मेरी मदद की. शाम तक मैं और मंगू शहर के हॉस्पिटल में पहुँच गए. मालूम हुआ की हरिया को खून चढ़ाया गया है . बुखार भी थोडा काबू में है . पर बड़े डॉक्टर भी बता नहीं पा रहे थे की उसे हुआ क्या है .

चाय की टापरी पर बैठे हुए मैं गहरी सोच में डूबा था .

मैं- यार मंगू, जंगल में क्या हुआ इसके साथ . अगर किसी ने लूट खसूट की होती तो घोड़े भी ले जाता . बहनचोद मामला समझ नहीं आ रहा .

मंगू- भूत-प्रेत देख लिया हो हरिया ने शायद

मैं मंगू की बात को झुठला नहीं सकता था बचपन से हम सुनते आये थे की जंगल में ये है वो है एक तय समय के बाद गाँव वाले जंगल की तरफ रुख करते भी नहीं थे.

मंगू- देख भाई, अपन इसके लिए जितना कर रहे है कोई नहीं करता. ये तो इसकी किस्मत थी की हम को मिला ये वर्ना क्या मालूम इसकी लाश ही मिलती

मैं- यही तो बात है की ये हम को मिला मंगू. अब इसको बचाने की जिम्मेदारी अपनी है

तभी मुझे जिम्मेदारी से याद आया की आज रात चाची के साथ खेतो पर जाना है

मैं- मंगू साइकिल उठा , अभी वापिस चलना होगा हमें

मैं हरिया की पत्नी से मिलकर आया उसे आश्वश्त किया की हम आते रहेंगे उसे कुछ पैसे दिए और फिर सांझ ढलते गाँव के लिए चल पड़े. गाँव हमारा कोई बारह कोस पड़ता है शहर से. और सर्दी के मौसम में अँधेरा तो पूछो ही मत कब हो जाता है फिर भी हम दोनों चल दिए.


सीटी बजाते हुए, गाने गाते हुए हम अपनी मस्ती में चले जा रहे थे पर हमें कहाँ मालूम था की मंजिल कितनी दूर है ............
Chalo pehli lover toh mil gali Champa dekhte hai aage kya hota hai
 

Abhishek Kumar98

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धम्म से मैं बेंच से निचे गिर पड़ा था . खुमारी आँखों में चढ़ी थी जेहन में वो ही सपना था . उठ कर कपड़ो को झाड़ते हुए मैंने आस पास देखा . चाय की दुकान पर अकेला चाय वाला बैठा था , इक्का-दुक्की कुली थे और मैं. जैकेट की जेब में हाथ घुसाए मैं स्टेशन की उस बड़ी सी घडी में समय देखने गया मालूम हुआ की रेल आने में थोडा समय और था . मैंने थोडा पानी पिया और सर्दी में ऊपर से पानी पीते ही निचे से मूत का जोर हो गया .

पेशाबघर में मूतते हुए मैंने अपने लिंग को देखा जो उसी तरह सुजा हुआ था . ये एक और अजीब समस्या हो गयी थी जिसे किसी को बता न सके और छुपा भी न सके. वो मादरचोद क्या जानवर था जिसने अपना जहर इधर ही उतार दिया था .पूरा शरीर एकदम सही था पर एक ये अंग ही साला परेशां किये हुए था .

मैं वापिस से उसी बेंच पर जाकर बैठ गया और रेल का इंतजार करने लगा. सर्दी की रात भी साली इतनी लम्बी हो जाती है की क्या ही कहे. खैर जब रेल आई तो मैं डिब्बो की तरफ भागा और जल्दी ही मैंने पिताजी को उतरते देखा.

आँखों पर सुनहरी ऐनक लगाये. चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछे . लम्बा शरीर . गले तक का बंद कोट पहने राय बहादुर विशम्बर दयाल जंच रहे थे . मैं दौड़ कर उनके पास गया और चरणों को हाथ लगाया. संदूक उठा लिया मैंने .

जल्दी ही हम लोग गाँव के रस्ते में थे , पिताजी हमेशा की तरह खामोश थे . बस बीच बीच में हाँ-हूँ कर देते थे मेरी बातो पर . एक बार फिर हम उसी रस्ते से गुजरे जहाँ पर हमें हरिया मिला था . न जाने क्यों मेरे बदन में सिरहन सी दौड़ गयी और मैंने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी. वापिस आते आते रात आधी बीत गयी थी . पिताजी ने सबसे दुआ सलाम की और अपने कमरे में चले गए.

भाभी- खाना खाकर तुम भी आराम करो

मैं- बाकि सब लोग का खाना हुआ .

भाभी- तुम्हारे भैया अभी तक लौटे नहीं है और चाची खेतो पर गयी है .

मैं- क्या , किसके साथ

भाभी- अकेली.

मैं- पर क्यों . मजदूरो को भेज देती खुद अकेली वहां जाने की क्या जरुरत थी

भाभी- अरे इतनी फ़िक्र मत करो. तुम्हे क्या लगता है की मैं उन्हें अकेले जाने देती , चंपा साथ गयी है उनके . मैं तो बस देख रही थी की तुम्हे परिवार की चिंता है भी या बस यूँ ही करते फिरते हो .

मैं- भाभी, आज के बाद ऐसा मत कहना परिवार है तो मैं हूँ .

भाभी- अच्छा बाबा. अब कहो तो खाना परोस दू या फिर सोने ही जाना है

मैं- नहीं, मैं खेतो पर जा रहा हूँ . वहां उनको मेरी जरूरत पड़ेगी. सुबह अगर पिताजी को मालूम हुआ की वो दोनों अकेली थी तो सबसे पहले मेरी खाल ही उधेद्नी है उनको.

मैंने तुरंत साइकिल उठाई और अपना रास्ता पकड़ लिया. गुनगुनाते हुए मैं तेजी से खेतो की तरफ जा रहा था . लगता था की मुझे छोड़ कर पूरा जहाँ ही सोया हुआ था और होता भी क्यों न रात आधी से ज्यादा जो बीत गयी थी . कुछ दूर बाद बस्ती पीछे रह गयी , पथरीली कच्ची सड़क ही मेरी साथी थी पर इस घने अँधेरे में मुझसे एक गलती हो गयी थी मैं बैटरी लाना भूल गया था . वैसे तो कोई खास बात नहीं थी बस अचानक से कोई नीलगाय या जंगली सूअर सामने आ गया तो चोट लगने का खतरा था .

खैर मैं कुवे पर पहुंचा तो देखा पानी अपनी लाइन से खेत की प्यासबुझा रहा था पर चंपा और चाची दोनों नहीं थी .

“शायद कमर सीढ़ी कर रही होंगी, एक बार बता देता हूँ की मैं आ गया हूँ अगर सोयी भी होंगी तो सोने दूंगा .मैं ही लगा दूंगा पानी ” अपने आप से कहते हुए मैं कमरे के पास पंहुचा ही था की अन्दर से आती हंसी सुन कर मेरे कान चोकन्ना हो गए. इतनी रात को क्या हंसी-ठिठोली हो रही है . मैंने दरवाजा खडकाने की जगह पल्ले की झिर्री से अन्दर देखा और देखता ही रह गया .

कमरे में जलते लट्टू की पीली रौशनी में क्या गजब नजारा था चाची अपनी गदराई जांघो को खोले पड़ी थी और पूर्ण रूप से नग्न चंपा ने अपना मुह चाची की जांघो के बीच दिया हुआ था . चाची के चेहरे को मैं देख नहीं पा रहा था क्योंकि चंपा का बदन उसके ऊपर था .

पर जो चीज मैं देख पा रहा था वो भी बड़ी गजब थी . चंपा ने चुतड ऊपर को उठे हुए थे जिस से की काले बालो के बीच घिरी उसकी हलकी गुलाबी चूत मुझे अपना जलवा दिखा रही थी वो भी पूरी उत्तेजित थी क्योंकि चंपा की चूत के बाल लिस्लिसे द्रव में सने हुए थे.

“आह , धीरे कुतिया . इतना जोर से क्यों काटती है ” चाची ने चंपा को गाली दी .

चंपा- इसी में तो मजा है मेरी प्यारी .

सामने चंपा की खूबसूरत चूत होने के बावजूद मेरे मन का चोर चाची की चूत भी देखना चाहता था पर अभी उसे देखना किस्मत में नहीं था शायद.

“चंपा कहती तो सही ही है की एक बार लेकर तो देखूं उसकी ” मैंने उसके हुस्न से प्रभावित होकर मन ही मन कहा .

मेरा हाथ मेर लिंग पर चला गया जो की की फूल कर कुप्पा हो गया था . मैंने पेंट खोल कर उसे ताजी हवा का अहसास करवाया . अन्दर का बेहंद गर्म नजारा देख कर मैं बाहर की ठण्ड भूल गया था तभी चाची ने अपने पैरो में चंपा की गर्दन जकड ली और अपने कुल्हे ऊपर उठा लिए. कुछ पल बाद वो धम्म से निचे गिरी और लम्बी- लम्बी सांसे भरने लगी.

चंपा भी उठ पर चाची के पास बैठ गयी . मैंने चंपा के उन्नत उभारो को देखा जो पर्वतो की चोटियों जैसे तने हुए थे.

“”मजा आया मेरी प्यारी चंपा ने चाची से कहा

चाची- एक तू ही तो मेरा सहारा है चंपा.

चंपा- चाची तू इतनी मस्त औरत है तेरी प्यास मेरी उंगलिया और जीभ नहीं बुझा सकती तुझे तगड़े लंड की जरुरत है जो दिन रात तेरी भोसड़ी में घुसा रहे.

चाची- तुझे तो सब पता ही है चंपा. जो चल रहा है ये भी ठीक ही है,मेरी छोड़ तू बता कुंवर संग तेरा प्यार आगे बढ़ा क्या .

चंपा- कहाँ प्यारी, उसके सामने तो घाघरा खोल दू तब भी वो मेरी नहीं लेगा. कितनी ही कोशिश की है मैंने पर क्या मजाल जो वो मेरी तरफ देखे. कहता है मंगू की बहन है इसलिए नहीं करेगा.तू ही बता मंगू की बहन हूँ तो क्या चुदु नहीं . गाँव के लोंडे आगे पीछे है मेरे पर मेरी भी जिद है चुदना तो उस से ही है वर्ना भाग्य में जो है उसको तो देनी ही हैं.

चाची- वो अनोखा है .

चंपा- सो तो है .

चाची- एक बार पाने को देख आते है फिर तेरी भी आग बुझती हूँ


वो दोनों कपडे पहनने लगी. मैं वहां से हट गया और साइकिल लेकर वापिस मुड गया क्योंकि मैं उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता था पर अब घर जा नहीं सकते , यहाँ रुक नहीं सकते रात बाकी तो जाये तो कहाँ जाये. और तभी मैंने कुछ सोचा और साइकिल को पथरीली सड़क पर मोड़ दिया.... दो मोड़ मुड़ने के बाद मैंने कच्ची सड़क ले ली थोड़ी ही दूर गया था की तभी अचानक से मैंने अपने सामने .........................
Lagta hai Chachi aur Champa jaldi chud me wali hai ab
 

Abhishek Kumar98

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#9

ताड़ी के नशे में मेरे पैर डगमगा रहे थे फिर भी मैं उस आवाज की तरफ भागा. कभी लगता की आवाज पास से आ रही थी कभी लगता की कराहे दूर है. और जब मैं गंतव्य तक पहुंचा तो मेरी रूह तक कांप गयी .जमीन पर एक बुजुर्ग पड़ा था खून से लथपथ जिसका पेट फटा हुआ था उसकी अंतड़िया बाहर को निकली हुई थी .

“किसने, किसने किया बाबा ये ” मैंने उसे सँभालते हुए पूछा

“वो, वो ”.उसने सामने की दिशा में उंगलियों से इशारा किया और उबकाई लेते हुए प्राण त्याग दिए. आँखों में बसा सुरूर एक झटके में गायब हो गया . ये दूसरी बार था जब जंगल में किसी पर हमला हुआ था और दोनों बार मैं वहां पर मोजूद था . ये कैसा इत्तेफाक था .



ये लाश मेरे पल्ले पड़ गयी थी . मैं तो जानता भी नहीं था ये कौन था . मैं कहाँ जाता किस से कहता की भाई, तुम्हारा बुजुर्ग जंगल में मर गया है . मेरा दिल तो नहीं मान रहा था पर हालात देखते हुए मैंने उस लाश को वहीँ पर छोड़ दिया . और वापिस उस तरफ को चल दिया जो मेरे गाँव का रास्ता था .

मैंने पाया की मंगू साइकिल के पास बैठे बैठे ऊंघ रहा था . मैंने उसे जगाया और हम गाँव आ गए. प्रोग्राम देखने का सारा उत्साह ख़ाक हो चूका था . पर मैंने सोच लिया की जंगल में क्या है ये हर हाल में मालूम करके ही रहूँगा.



“कबीर उठ, कितना सोयेगा तू ”

बोझिल आँखों ने खुलते ही देखा की चाची के ब्लाउज से झांकती चुचिया मेरे चेहरे पर लटक रही है . एक पल को लगा की ये सब सपना है . पर तभी चाची ने मुझे हिला कर जगा दिया .

मैं- उठ तो रहा हूँ

चाची-तू यहाँ सोया पड़ा है गाँव में गजब हो गया .

मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ .

मैं- कौन सी आग लग गयी गाँव में . कल तक तो सब ठीक ही था न

चाची- लखेरो की जो औरत भाग गयी थी न उसे वापिस ले आये है जिसके साथ गयी थी उसे भी . परस में पंचायत बैठने वाली है .

मैं- इसमें पंचायत की क्या जरुरत उस औरत की मर्जी जिसके साथ भी रहे .

चाची- मुझे नहीं मालूम पुरे गाँव को वहां पर बुलाया गया है तू भी चल

मैं भी पंचायत में पहुँच गया . मैंने देखा की जो औरत घर से भागी थी उसे और उसके साथी को एक खम्बे से बांधा हुआ था . दोनों की हालत देख कर साफ पता चल रहा था की खूब मार-पिटाई की गयी थी उनके साथ . कुछ देर में गाँव के मोजिजलोग अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए गाँव वाले धरती पर बैठ गए. मैंने पिताजी को देखा जो अपनी सुनहरी ऐनक लगाये इधर उधर देख रहे थे .

“गाँव वालो जैसा की आप सब जानते है ये औरत लाली कुछ दिनों पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गयी थी , ये जानते हुए भी की ये शादी-शुदा है इसका मर्द है फिर भी इसने दुसरे आदमी संग रिश्ता किया. गलत काम किया . गाँव-समाज अपने परिवार की बेइज्जती की .बहुत कोशिश करने के बाद आखिर हमने इनको पकड़ लिया और यहाँ ले आये है ताकि इंसाफ किया जा सके. पंचायत ने निर्णय लिया है की इनको इसी नीम के निचे फांसी दी जाये ताकि गाँव में फिर को भी ऐसा करने की सोचे भी न. आप सबको पंचायत का फैसला मंजूर है न , जिसको कुछ कहना है वो अपना हाथ उठाये ” पंच ने कहा.

मैंने सर हिला कर चारो तरफ देखा पुरे गाँव में एक भी आदमी ने अपना हाथ नहीं उठाया जबकि दो लोगो को फांसी देने की बात कही जा रही थी . मुझे न जाने क्या हुआ मैंने अपना हाथ उठाया और पुरे गाँव की नजरे मुझ पर जम गयी .

“मुझे कुछ कहना है ” मैंने कहा की चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और चुपचाप बैठने का इशारा किया पर मैंने उसका हाथ झटक दिया और उठ कर पंचायत के पास गया .

मैं- मुझे आपत्ति है इस निर्णय पर

पंच- तुम अभी छोटे हो , दुनियादारी का ज्ञान नहीं है तुम्हे. ये गंभीर मुद्दे है .

मैं- दो लोगो को मारने की बात हो रही है ये क्या कम गंभीरता की बात है . पंचायत को किसी के प्राण लेने का कोई हक़ नहीं है, जन्म मृत्य इश्वर के हाथ में है . बेशक इस लाली ने घर से भागने की गलती की है पर इसकी सजा मौत नहीं हो सकती.

पंच- और इसके कारण रामू की इतनी बेइज्जती हुई. इसको कितने ताने सुनने पड़े की नामर्द है इसलिए भाग गयी. जब भी ये घर से बाहर निकलता लोग हँसते इसे देख कर . इसका जीना दुश्वार हो गया की लुगाई भाग गयी .

मैं- किस बेइज्जती की बात करते है आप पंच साहब, और कौन कर रहा था ये बेइज्जती . किसके ताने थे वो . आपके मेरे हम सब के , ये तमाम गाँव वाले जो आज चुपचाप बैठे है ये लोग ही तो रहे होंगे न ये सब ताने मारने वाले. इसके दोस्त, इसके पडोसी. हमारा ये समाज. तो फिर इन सब को भी कोई न कोई सजा तो मिलनी ही चाहिए न .



पंच- कबीर. मर्यादा की लकीर के किनारे पर खड़े हो तुम पंचायत का अपमान करने की जुर्रत न करो.

मैं- पंचायत ने इस निर्णय के खिलाफ आपत्ति मांगी थी , अब अप्त्त्ती सुनने में पंचायत को संकोच क्यों हो रहा है. क्या पंचायत में मन में कोई चोर है .

पंच- पंचायत यहाँ समाज के हित में निर्णय लेने को है .

मैं- तो मैं इस पंचायत और गाँव से कहना चाहता हूँ की लाली को इस लिए फांसी नहीं दी जा सकती की उसके भागने पर रामू को नामर्दी और बेइज्जती के ताने सुनने पड़े. असल में रामू नामर्द है .

उन्ह उन्ह पिताजी ने अपना गला खंखारा और ऐनक को उतार लिया ये उनका इशारा था की मैं चुप रहूँ पर अगर उस दिन चुप रहता तो फिर अपनी नजरो से गिर जाता.

मैं- मर्दानगी ये नहीं होती की औरत को जब दिल किया अपने निचे ले लिया . मर्दानगी होती है औरत का सम्मान करना. औरत जो अपना सब कुछ छोड़ कर आती है ताकि हमारे घर को घर बना सके,क्या नहीं करती वो परिवार के लिए. ये रामू जब देखो दारू पिए पड़ा रहता है . कमाई करता नहीं . घर-गुजारा कैसे होगा. तीसरे दिन ये लाली को पीटता . तब कोई पंचायत का सदस्य लाली के लिए निर्णय करने नहीं आया.

पंच- रामू की लुगाई है वो चाहे जैसे रखे उसका हक़ है .

मैं- लुगाई है गुलाम नहीं . एक सम्मानजनक जीवन जीने का लाली का हक़ भी उतना ही है जितना की आप सब का . मैं मानता हूँ की घर से भागना अनुचित है उसके लिए लाली को सजा दी जाये पर किसीको भी झूठी शान के लिए मार देना अन्याय है .



पंच- पंचायत ने निर्णय कर दिया है समाज के हितो की रक्षा के लिए ये फैसला ऐतिहासिक होगा. आने वाली पीढियों के लिए मिसाल होगी.

मैं-मैं नहीं मानता इस निर्णय को

पंच- राय साहब आपका बेटा पंचायत का अपमान कर रहा है आप समझिए इसे.

पिताजी अपनी कुर्सी से उठे और मुझसे बोले- घर जाओ अभी के अभी

मैं- जब तक मेरी आपत्ति मानी नहीं जाती मैं हिलूंगा भी नहीं यहाँ से .

जिन्दगी में पहली बार ऐसा हुआ था की राय साहब की बात किसी ने काटी हो. पुरे गाँव के सामने खुद राय साहब ने भी नहीं सोचा होगा की उनका खुद का बेटा उनके सामने ऐसे खड़ा होगा. ..........
Dekhte hai kitni buri durgati hoti hai apne Hero ki
 

Abhishek Kumar98

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#10

“इस गाँव का हर घर मेरा है , हर आदमी मेरा भाई-बेटा है . हर औरत मेरी बहन-बेटी है . इस गाँव की खुशहाली के लिए हम सब ने मिलकर कुछ नियम बनाये है ताकि भाई-चारा बना रहे. इस गाँव में बहुत सी जाती के लोग बसे हुए है पर आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे किसी भी गाँव वाले का सर झुका हो. इस प्रेम प्यार का एकमात्र कारण है हमारे उसूल जिन पर हम सब चलते आ रहे है . लाली हम में से एक थी पर उसने पर पुरुष का साथ किया जो की अनुचित है . चूँकि पंचायत के माननीय सदस्यों ने निर्णय कर ही लिया तो हम सब को निर्णय का उच्चित सम्मान करना चाहिए ” पिताजी ने कहा .

पिताजी की बात सुनकर मुझ बहुत गहरा धक्का लगा राय चंद जी एक अनुचित काम को समर्थन दे रहे थे .

“पंचायत के निर्णय को मैं अपनी जुती की नोक पर रखता हूँ , मैं देखता हूँ कौन हाथ लगाता है मेरे होते हुए इन दोनों को ” मैंने गुस्से से कहा .

“तुम अपनी सीमा लांघ रहे हो कबीर ” पिताजी की आवाज में तल्खी थी.

“कुंवर, आपको हमारे लिए इन लोगो से झगडा करने की जरुरत नहीं है . आपने हमें समझा यही बड़ी बात है , ये झूठी शान में जीने वाले लोग कभी प्रेम को नहीं समझ सकते. हमारी नियति में जो है वो हमें मिलेगा.” लाली ने अपने हाथ मेरे सामने जोड़ते हुए कहा .

मैं- जीवन इश्वर का अनमोल तोहफा है और किसी को भी हक़ नहीं उसे नष्ट करने का सिवाय इश्वर के.

इस से पहले की मेरी बात ख़तम होती पिताजी का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ चूका था . जिस पिता ने कभी ऊँगली तक मेरी तरफ नहीं की थी उसने पुरे गाँव के सामने मुझे थप्पड़ मारा था .

“हमने कहा था न की अपनी सीमा मत लाँघो कबीर. इस दुनिया में किसी की भी हिम्मत नहीं की हमारी बात काट सके.पंचायत की निर्णय की तुरंत तामिल की जाए ” पिताजी की गरजती आवाज चौपाल में गूँज रही थी .

तुंरत ही कुछ लोग लाली की तरफ लपके .

मैं- खबरदार जो इन दोनों को किसी ने भी हाथ लगाया जो हाथ लाली की तरफ बढेगा उस हाथ को उखाड़ दूंगा मैं.

पिताजी- निर्णय की पालना में यदि कोई भी अडचन डालता है तो खुली छूट है उसे सबक सिखाने की .

पिताजी का निर्णय गाँव वालो के लिए पत्थर की लकीर थी पर मेरी रगों में भी राय साहब का खून था. जिन गाँव वालो के साथ मैं बचपन से खेलता आ रहा था जिनके साथ हंसी खुशी में मैं शामिल था उनसे भीड़ गया था मैं. दो चार को तो धर लिया था मैंने पर मैं कोई बलशाली भीम नहीं था भीड़ मुझ पर हावी होने वाली थी . मेरी पूरी कोशिश थी की लाली को कोई हाथ भी नहीं लगा पाए.

मैंने एक पंच की कुर्सी उठा ली और उसे अपना हथियार बना लिया. जो भी जहाँ भी जिसे भी लगे मुझे परवाह नहीं थी . पंचायत की जिद थी तो मेरी भी जिद थी मेरे रहते वो लोग लाली को फांसी नहीं दे सकते थे . पर तभी अचानक से सब कुछ बदल गया . मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया . पीछे से किसी ने मेरे सर पर मारा था . वार जोरदार था . मैंने खुद को गिरते हुए देखा और फिर मुझे कुछ याद नहीं रहा.

आँख खुली तो मैंने खुद को अपने चौबारे में पाया . चाची, भाभी, मंगू, चंपा सब लोग आस पास बैठे हुए थे . मैं तुरंत बिस्तर से उठ बैठा .

“लाली , ” मैंने बस इतना कहा

भाभी- शांत हो जाओ देवर जी, चोट लगी है तुम्हे

भाभी ने एक गिलास पानी का मुझे दिया कुछ घूँट भरे मैंने पाया की सर पर पट्टी बंधी थी और दर्द बेशुमार था .

“लाली के साथ क्या किया उन्होंने ” मैंने कहा

चंपा- भाड़ में गयी लाली, हमारे लिए तुम महत्वपूर्ण हो कबीर. क्या जरुरत थी तुम्हे फसाद करने की मालूम है कितनी चोट लगी है तुम्हे.

चाची की आँखों में आंसू थे पर मेरा दिल जोर से धडक रहा था .मैं बिस्तर से उतरा और एक शाल लपेट पर चोबारे से बाहर निकल गया .

“कहाँ जा रहे हो भाई ” मंगू ने कहा पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया. साइकिल उठा कर मैं चौपाल पर पहुंचा जहाँ पर पेड़ से दो लाशे लटक रही थी . मेरी आँखों से झर झर आंसू गिरने लगे. बेशक लाली और उसका प्रेमी मेरे कुछ नहीं लगते थे पर मुझे दुःख था .

“माफ़ करना मुझे , मैं तुम्हे बचा नहीं पाया ” मैंने लाली के पांवो को हाथ लगा कर माफ़ी मांगी. मेरा दिल बहुत दुखी था . . मन कच्चा हो गया था मेरा. बहुत देर तक मैं उधर ही बैठा रहा .सोचता रहा की कैसा सितमगर जमाना है ये . क्या दस्तूर है इसके.

जब सहन नहीं हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल गया . ब्यथित मन में बहुत कुछ था कहने को. बेखुदी में भटकते हुए न जाने कब मैं जंगल में उधर ही पहुच गया जहाँ दो बार मैं इत्तेफाक से था. दुखी मन थोडा और विद्रोही हो गया . मैंने साइकिल उधर ही पटकी और पैदल ही भटकने लगा जंगल में.

वन देव की मूर्ति के पास बैठे बैठे कब मेरा सर भारी हो गया मालूम ही नहीं हुआ. पर जब तन्द्रा टूटी तो मैंने खुद को अन्धकार में पाया. गहरी धुंध मेरे चारो तरफ छाई हुई थी और मैं ठण्ड से कांप रहा था . रात न जाने कितनी बीती कितनी बाकि थी. सर के दर्द के बीच थोडा समय जरुर लगा समझने में की मैं कहाँ पर हूँ. आँखों के सामने बार बार लाली, हरिया और वो बुजुर्ग जिसे मैं नहीं जानता था के चेहरे आ रहे थे .मैंने उसी पल जंगल में अन्दर जाने का निर्णय लिया.

दूर कहीं झींगुरो की आवाज आ रही थी . कभी सियारों और जंगली कुत्तो की आवाजे आती पर मैं चले जा रहा था . कंटीली झाडिया उलझी कभी कांटे चुभे पर फिर मैंने एक ऐसी जगह देखि जो यहाँ थी कम से कम मैं तो नहीं जानता था .

वो एक तालाब था . जंगल की न जाने किस हिस्से में वो तालाब जिसमे लहरे हिलोरे मार रही थी . वो पक्का तालाब जिसकी एक दिवार मेरे सामने खड़ी थी किसी हदबंदी की तरह और तालाब के पार वो काली ईमारत जिसका वहां अपने आप में अजूबा था . चाँद की रौशनी में तालाब का पानी बहुत काला लग रहा था .

तालाब के पास से होते हुए मैं उस ईमारत की तरफ लगभग आधी दुरी तय कर चूका था की पानी में जोर से छापक की आवाज हुई . मैंने मुड कर देखा पानी में कोई नहीं था बस लहरे उठ रही थी . शायद मछलिय होंगी इसमें मैंने खुद को तसल्ली दी और इमारत की सीढिया चढ़ते हुए ऊपर चला गया .

प्रांगन में जाते ही मैं समझ गया की ये कोई प्राचीन मंदिर रहा होगा जिसे वक्त ने और हम जैसो ने भुला दिया . हर तरफ जाले ही जाले लगे थे . सिल के पत्थरों की नक्काशी चांदनी में चमक रही थी . खम्बो से चुना झड़ रहा था . मैं थोडा और आगे बढ़ा . मैंने देखा की चार छोटे खम्बो पर टिकी छत के निचे कोई मेरी तरफ पीठ किये बैठा था . मेरी आँखे जो देख रही थी वो यकीन करना मुश्किल था . कड़कती ठण्ड की रात में जब धुंध ने हर किसी को अपने आगोश में लिए हुए था. इस सुनसान जगह पर कोई शांति से बैठा था . पर किसलिए. मेरे दिल में हजारो सवाल एक साथ उठ गए थे .

“रातो को यूँ भटकना ठीक नहीं होता ” उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा. न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

उसकी आवाज इतनी सर्द थी की ठण्ड मेरी रीढ़ की हड्डी में उतर गयी .

“कौन हो तुम ” मैंने पूछा

वो साया उठा और मेरी तरफ. मेरे पास आया. मैंने देखा की वो एक लड़की थी .काली साडी में माथे पर गोल बिंदी लगाये. कुलहो तक आते उसके काले बाल. चांदनी रात किसी आबनूस सी चमकती वो लड़की एक पल को मैं उसमे खो सा गया पर फिर मैंने पूछा- कौन हो तुम

वो मेरे पास आई और बोली- डायन ............................
Lo bhai heroine bhi mil gayi apni
 
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