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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Abhishek Kumar98

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#78



पसीने से लथपथ मैं बस दौड़े जा रहा था . सांस ऐसी चढ़ी थी की कलेजा फटा ही फटा. एक जूनून सा चढ़ रहा था बेखुदी में मैंने अपना बदन नोचना शुरू किया. चाँद कुछ देर के लिए बादलो में छिपा और मैं हाँफते हुए खेतो की गीली जमीन पर पसर गया. सीने पर हाथ रखे लम्बी सांसे लेते हुए मैं इस दर्द से राहत पाने की कोशिश कर रहा था . जब दर्द पर काबू नहीं रहा तो मैं चीखने लगा. मेरी चीख सुनसान अंधेरो में गूंजने लगी.

“kabiiiiirrrrrrrrrrr ” मैंने दूर से उस आवाज को सुना .

“निशा ............ ” मैं कराहते हुए बोला

निशा- कबीर आ गयी हूँ मैं.

अधखुली आँखों से मैंने एक साए को पास आकर मुझ पर झुकते हुए देखा.

निशा- आँखे खोल कबीर , मैं आ गयी हूँ आँखे खोल

मैं उसकी आवाज सुन तो पा रहा था पर मेरी हिम्मत टूट गयी थी बदन की जलन हावी हो रही थी मुझ पर.

“निशा , निशा ” मैं बोल नहीं पा रहा था .

निशा- ठीक हो जायेगा बस अभी .

निशा ने मुझे उठाया और अपने साथ कुवे पर बने कमरे में ले आई. मुझे घास पर पटका और देखने लगी . कभी मेरे माथे को सहलाती कभी मेरे सीने को .

“चाँद रात का असर है झेल लेगा तू ” उसने कमजोर लहजे में कहा. मैंने आँख मूँद ली और सब कुछ छोड़ दिया.

“कबीर बोलता क्यों नहीं ” उसने मुझे हिलाते हुए कहा .

मैंने कोई हरकत नहीं की .

उसने फिर से झिंझोड़ा मुझे

निशा- कबीर कुछ तो बोल . देख तू नहीं बोलेगा तो नाराज हो जाउंगी मैं . मेरी खातिर कुछ तो बोल .

मैं बस पड़ा रहा

निशा- तुझे मेरी कसम कुछ तो बोल आँखे खोल अपनी

इस बार रो पड़ी वो . बिना आँखे खोले मैंने उसका हाथ थाम लिया .

“जा रहा हु तुझे छोड़ के ” मैंने मरी सी आवाज में कहा

निशा- ख़बरदार, जो ये बात कही . कहीं नहीं जायेगा तू मुझे छोड़ के. जाने नहीं दूंगी तुझे

मैं- प्यार जो नहीं करती तू मुझे. तेरे बिना क्या जीना मेरा

निशा- तुझसे ही तो प्यार करती हूँ . तुझसे ही तो प्यार किया है

मैंने उसका हाथ छोड़ दिया. बेहोशी मुझ पर चढ़ने लगी. होश आया तो देखा की निशा कुछ पिला रही थी मुझे. कुछ गर्म सा जो गले से निचे जाते ही चेतना लौटने लगी. पैरो के अंगूठो पर उसने कुछ बांधा हुआ था . उसके गालो पर आंसुओ की लकीरे देख कर रहा नहीं गया मुझसे. मैंने बाहे फैला कर उसे अपने पास बुलाया और सीने से लगा लिया.



“मैं तो घबरा ही गयी थी ” उसने हौले से कहा

मैं- मैं भी .

निशा- अब कैसा लग रहा है

मैं- बेहतर

निशा- रात का तीसरा पहर चल रहा है अब आराम रहेगा.

मैं- पर ये कब तक चलेगा

निशा- नहीं जानती पर खत्म हो जायेगा.

मैं- निशा , इस रात मैंने कुछ सोचा है

निशा- क्या

मैं- तुझे कुछ बताना है कुछ कहना है तुझसे

निशा- सुन रही हूँ

मैं- समझ भी मेरी सरकार. मैं बहुत अकेला हूँ टूट कर बिखर रहा हूँ इस से पहले की कुछ न बचे थाम ले मुझे अपनी बाँहों में और मुझे जीने का अहसास दे. अपने आगोश में भर ले . पनाह दे मेरी रूह को निशा मैं तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ , ब्याह करना चाहता हूँ तुझसे

मेरी बात सुन कर निशा दिवार का सहारा लेकर बैठ गयी . पर वो कुछ नहीं बोली . मैंने इन्तजार किया पर वो खामोश रही .

मैं- जानता हूँ तेरा मेरा मेल नहीं . पर तू भी जानती है. इतना हक़ दे मुझे निशा. तू लाख इंकार कर . पर तेरा दिल चीख कर कहता है तुझसे की आगे बढ़ और थाम ले मेरा हाथ.

निशा- नहीं थाम सकती कबीर, नहीं थाम सकती

मैं- तो फिर ठीक है छोड़ दे मुझे मेरे हाल पर आगे कभी ऐसी रात आई तो तुझे कसम है मत आना . और मैं मर गया तो रोने जरुर आना . कम से कम मरने के बाद ही मुझ पर तेरा हक़ होगा.

निशा- मरने की बात मत कर

मैं- तू साथ जीना भी तो नहीं चाहती

निशा- मर तो बहुत पहले गयी थी जीना तूने ही सिखाया

मैं- तो फिर जीती क्यों नहीं मेरे साथ क्या रोक रहा है तुझे मेरी होने से

निशा- नसीब .मेरा भाग्य रोक रहा है कबीर.

मैं- तेरा भाग मैं हूँ तू एक बार कह तो सही की तू तैयार है ज़माने को तेरे कदमो में झुका दूंगा मैं मेरी जान .

निशा- तू समझता क्यों नहीं

मैं- मेरी पत्नी बन सारी जिन्दगी मुझे समझाती रहना .

निशा- डाकन का हाथ थाम कर जीवन के सफर पर चलना सजा होगा तेरे लिए

मैं- ये सजा भी मंजूर सरकार मुझे .

निशा ने एक बार आसमान में देखा और फिर उठ कर अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए. दिल को ऐसा करार आया की रात की तमाम तकलीफे फिर याद नहीं रही .तभी निशा की नजर मेरे सीने में लटकी चेन पर पड़ी.

निशा- ये क्या है

मैं- रुडा की बेटी ने दी मुझे

निशा ने उसे हलके से छुआ और बोली- कुंवर साहब , हम अपना आशियाना इसी जगह बनायेंगे

मैं- क्या कहा जरा फिर से कहना

निशा- डाकन ने तुम्हारी होना चुन लिया है

सच बताऊ मेरी आँखों में कितनी ख़ुशी थी . मैंने उसे एक बार फिर से बाँहों में भर लिया और चूम लिया.

मैं- जल्दी से जल्दी तुझे अपनी बनाना चाहता हूँ कल से ही यहाँ घर बनाना शुरू होगा. सपनो का घर तेरा मेरा घर .

निशा- ये पथ परीक्षा लेगा कबीर

मैं- तू मेरा हाथ थामे रखना

निशा- मेरी दो बाते है .

मैं- तू चार बता सरकार

निशा- तेरे मेरे ब्याह में कोई रस्मे नहीं होंगी

मैं- मंजूर

निशा- दूसरी बात तू लेने आएगा मुझे . मैं तब थामुंगी तेरा हाथ और एक बार जो मैंने तेरा हाथ थामा फिर छोड़ नहीं पाउंगी .

मैं- तू जब बुलाएगी मैं दौड़ा आऊंगा.

निशा- कर ले तयारी फिर.................

डाकन ने हाँ कर दी थी . सुबह निशा को छोड़ने के बाद मैं सीधा घर गया . घर वाले बस जागे ही थी की मैंने उनकी नींद उड़ा दी.

मैं- भाभी,मैंने कहा था न की उसके हाँ कहते ही ब्याह कर लूँगा . वो दिन आ गया है.

भाभी के हाथ में पानी का जग था जो छूट का फर्श पर गिर गया जोर की आवाज पुरे घर में गूंजने लगी.
Aisi heart fail wali news bhi kaise khus ho kar de raha apna hero
 

Abhishek Kumar98

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पसीने से लथपथ मैं बस दौड़े जा रहा था . सांस ऐसी चढ़ी थी की कलेजा फटा ही फटा. एक जूनून सा चढ़ रहा था बेखुदी में मैंने अपना बदन नोचना शुरू किया. चाँद कुछ देर के लिए बादलो में छिपा और मैं हाँफते हुए खेतो की गीली जमीन पर पसर गया. सीने पर हाथ रखे लम्बी सांसे लेते हुए मैं इस दर्द से राहत पाने की कोशिश कर रहा था . जब दर्द पर काबू नहीं रहा तो मैं चीखने लगा. मेरी चीख सुनसान अंधेरो में गूंजने लगी.

“kabiiiiirrrrrrrrrrr ” मैंने दूर से उस आवाज को सुना .

“निशा ............ ” मैं कराहते हुए बोला

निशा- कबीर आ गयी हूँ मैं.

अधखुली आँखों से मैंने एक साए को पास आकर मुझ पर झुकते हुए देखा.

निशा- आँखे खोल कबीर , मैं आ गयी हूँ आँखे खोल

मैं उसकी आवाज सुन तो पा रहा था पर मेरी हिम्मत टूट गयी थी बदन की जलन हावी हो रही थी मुझ पर.

“निशा , निशा ” मैं बोल नहीं पा रहा था .

निशा- ठीक हो जायेगा बस अभी .

निशा ने मुझे उठाया और अपने साथ कुवे पर बने कमरे में ले आई. मुझे घास पर पटका और देखने लगी . कभी मेरे माथे को सहलाती कभी मेरे सीने को .

“चाँद रात का असर है झेल लेगा तू ” उसने कमजोर लहजे में कहा. मैंने आँख मूँद ली और सब कुछ छोड़ दिया.

“कबीर बोलता क्यों नहीं ” उसने मुझे हिलाते हुए कहा .

मैंने कोई हरकत नहीं की .

उसने फिर से झिंझोड़ा मुझे

निशा- कबीर कुछ तो बोल . देख तू नहीं बोलेगा तो नाराज हो जाउंगी मैं . मेरी खातिर कुछ तो बोल .

मैं बस पड़ा रहा

निशा- तुझे मेरी कसम कुछ तो बोल आँखे खोल अपनी

इस बार रो पड़ी वो . बिना आँखे खोले मैंने उसका हाथ थाम लिया .

“जा रहा हु तुझे छोड़ के ” मैंने मरी सी आवाज में कहा

निशा- ख़बरदार, जो ये बात कही . कहीं नहीं जायेगा तू मुझे छोड़ के. जाने नहीं दूंगी तुझे

मैं- प्यार जो नहीं करती तू मुझे. तेरे बिना क्या जीना मेरा

निशा- तुझसे ही तो प्यार करती हूँ . तुझसे ही तो प्यार किया है

मैंने उसका हाथ छोड़ दिया. बेहोशी मुझ पर चढ़ने लगी. होश आया तो देखा की निशा कुछ पिला रही थी मुझे. कुछ गर्म सा जो गले से निचे जाते ही चेतना लौटने लगी. पैरो के अंगूठो पर उसने कुछ बांधा हुआ था . उसके गालो पर आंसुओ की लकीरे देख कर रहा नहीं गया मुझसे. मैंने बाहे फैला कर उसे अपने पास बुलाया और सीने से लगा लिया.



“मैं तो घबरा ही गयी थी ” उसने हौले से कहा

मैं- मैं भी .

निशा- अब कैसा लग रहा है

मैं- बेहतर

निशा- रात का तीसरा पहर चल रहा है अब आराम रहेगा.

मैं- पर ये कब तक चलेगा

निशा- नहीं जानती पर खत्म हो जायेगा.

मैं- निशा , इस रात मैंने कुछ सोचा है

निशा- क्या

मैं- तुझे कुछ बताना है कुछ कहना है तुझसे

निशा- सुन रही हूँ

मैं- समझ भी मेरी सरकार. मैं बहुत अकेला हूँ टूट कर बिखर रहा हूँ इस से पहले की कुछ न बचे थाम ले मुझे अपनी बाँहों में और मुझे जीने का अहसास दे. अपने आगोश में भर ले . पनाह दे मेरी रूह को निशा मैं तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ , ब्याह करना चाहता हूँ तुझसे

मेरी बात सुन कर निशा दिवार का सहारा लेकर बैठ गयी . पर वो कुछ नहीं बोली . मैंने इन्तजार किया पर वो खामोश रही .

मैं- जानता हूँ तेरा मेरा मेल नहीं . पर तू भी जानती है. इतना हक़ दे मुझे निशा. तू लाख इंकार कर . पर तेरा दिल चीख कर कहता है तुझसे की आगे बढ़ और थाम ले मेरा हाथ.

निशा- नहीं थाम सकती कबीर, नहीं थाम सकती

मैं- तो फिर ठीक है छोड़ दे मुझे मेरे हाल पर आगे कभी ऐसी रात आई तो तुझे कसम है मत आना . और मैं मर गया तो रोने जरुर आना . कम से कम मरने के बाद ही मुझ पर तेरा हक़ होगा.

निशा- मरने की बात मत कर

मैं- तू साथ जीना भी तो नहीं चाहती

निशा- मर तो बहुत पहले गयी थी जीना तूने ही सिखाया

मैं- तो फिर जीती क्यों नहीं मेरे साथ क्या रोक रहा है तुझे मेरी होने से

निशा- नसीब .मेरा भाग्य रोक रहा है कबीर.

मैं- तेरा भाग मैं हूँ तू एक बार कह तो सही की तू तैयार है ज़माने को तेरे कदमो में झुका दूंगा मैं मेरी जान .

निशा- तू समझता क्यों नहीं

मैं- मेरी पत्नी बन सारी जिन्दगी मुझे समझाती रहना .

निशा- डाकन का हाथ थाम कर जीवन के सफर पर चलना सजा होगा तेरे लिए

मैं- ये सजा भी मंजूर सरकार मुझे .

निशा ने एक बार आसमान में देखा और फिर उठ कर अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए. दिल को ऐसा करार आया की रात की तमाम तकलीफे फिर याद नहीं रही .तभी निशा की नजर मेरे सीने में लटकी चेन पर पड़ी.

निशा- ये क्या है

मैं- रुडा की बेटी ने दी मुझे

निशा ने उसे हलके से छुआ और बोली- कुंवर साहब , हम अपना आशियाना इसी जगह बनायेंगे

मैं- क्या कहा जरा फिर से कहना

निशा- डाकन ने तुम्हारी होना चुन लिया है

सच बताऊ मेरी आँखों में कितनी ख़ुशी थी . मैंने उसे एक बार फिर से बाँहों में भर लिया और चूम लिया.

मैं- जल्दी से जल्दी तुझे अपनी बनाना चाहता हूँ कल से ही यहाँ घर बनाना शुरू होगा. सपनो का घर तेरा मेरा घर .

निशा- ये पथ परीक्षा लेगा कबीर

मैं- तू मेरा हाथ थामे रखना

निशा- मेरी दो बाते है .

मैं- तू चार बता सरकार

निशा- तेरे मेरे ब्याह में कोई रस्मे नहीं होंगी

मैं- मंजूर

निशा- दूसरी बात तू लेने आएगा मुझे . मैं तब थामुंगी तेरा हाथ और एक बार जो मैंने तेरा हाथ थामा फिर छोड़ नहीं पाउंगी .

मैं- तू जब बुलाएगी मैं दौड़ा आऊंगा.

निशा- कर ले तयारी फिर.................

डाकन ने हाँ कर दी थी . सुबह निशा को छोड़ने के बाद मैं सीधा घर गया . घर वाले बस जागे ही थी की मैंने उनकी नींद उड़ा दी.

मैं- भाभी,मैंने कहा था न की उसके हाँ कहते ही ब्याह कर लूँगा . वो दिन आ गया है.

भाभी के हाथ में पानी का जग था जो छूट का फर्श पर गिर गया जोर की आवाज पुरे घर में गूंजने लगी.
Aisi heartfail karne wali news hero kitna khush ho kar bata raha hai
 

Abhishek Kumar98

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188
#84



वैध और रमा बिस्तर पर एक दुसरे संग लिपटे पड़े थे. मेरी आँखे ये देख कर हैरान थी की एक बुजुर्ग रमा जैसी औरत की ले रहा था . रमा और वैध के ऐसे सम्बन्ध होगने कोई सोच भी नहीं सकता था . वैध मुझे शुरू से ही कुछ अजीब तो लगता था पर इतना घाघ होगा ये सोचा नहीं था. खैर, मुझे इतंजार करना था . कुछ देर बाद चुदाई ख़त्म हुई और दोनों बिस्तर पर बैठ गए.

रमा- वैध, तुमने वादा किया था मुझसे

वैध- तेरे काम में ही लगा हूँ

रमा- कितने साल बीत गए ये सुनते सुनते तुमने बदले में मेरा जिस्म माँगा था मैंने तुमको वो भी दिया आज तक देती आ रही हूँ और कितना इंतज़ार करना होगा

वैध- जिस्म देकर कोई अहसान नहीं किया तूने , अपनी लाज बचाने का सौदा था वो . ठाकुर से चुद रही थी थोडा मैंने चोद लिया तो क्या हुआ .

रमा- तूने सौदा किया था मुझसे

वैध- रंडिया कब से सौदा करने लगी. तू और वो साली तेरी दोस्त कविता रंडिया ही तो थी .ठाकुर की रंडिया , उसको घर में रखा था जब बाहर चुद रही थी तो घर वालो से क्यों नहीं , मैंने भी चोद लिया तो क्या गुनाह किया .

तो वैध भी चोदता था कविता को. साला हद ठरकी निकला ये साला. हिकारत से मैंने थूका.

रमा- गरीब की आह में आवाज नहीं होती वैध पर जब लगती है न तो बड़ी जोर से लगती है .

वैध- धमकी दे रही है तू मुझे

रमा- मैं सिर्फ इतना चाहती हूँ की तू अपना वादा निभा

वैध- तो समझ ले की मैंने वादा तोड़ दिया.

रमा- तू ऐसा नहीं कर सकता , तुजे अंजाम भुगतना होगा इसका.

वैध- जानती नहीं तू मेरे ऊपर किसका हाथ है

रमा- जानती हूँ ”

वैध- जानती है तो जब भी बुलाऊ आया कर और चुद कर चुपचाप चली जाया कर

रमा इस से पहले कुछ कहती अन्दर से निकल कर मैं उन दोनों के सामने आकर खड़ा हो गया. दोनों की गांड फट गयी मुझे अचानक से देख कर.

मैं- किसका हाथ है तेरे सर पर वैध

“कुंवर आप यहाँ ” वैध की आँखे बाहर आने को हो गयी .

मैं- ये मत पूछ मैं यहाँ क्यों ये बता की तेरे सर पर किसका हाथ है जो तू रमा से किया अपना वादा नहीं निभा रहा . औरत की चूत इतनी भी सस्ती नहीं की तू चोद ले और बदले में उसे कुछ न दे.

वैध मिमियाने लगा.

मैं- रमा से क्या वादा किया था तूने , मैं सुनना चाहता हूँ और अगर तेरी जुबान तुरुन्त शुरू नहीं हुई तो ये रात बहुत भारी पड़ेगी तुझ पर .

वैध- मैं अभिमानु ठाकुर से कहूँगा की तुम चोरी से मेरे घर में घुसे और मुझे पीटा

मैं- ये कर ले तू पहले, चल भैया के पास अभी चल रमा को तूने चोदा मैं गवाह हूँ वो ही करेंगे तेरा फैसला .

वैध के बदन में बर्फ जम गयी .

मैं- तो बता फिर क्या वादा था वो.

वैध की शकल ऐसी थी की रो ही पड़ेगा . मैंने एक थप्पड़ मारा उसके गाल पर और उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी .

वैध- मैंने रमा से वादा किया था की वो अगर मेरे साथ सोएगी तो मैं उसे बता दूंगा की इसकी बेटी को किसने मारा था

वैध की बात ने मुझे भी हिला कर रख दिया था . जिस सवाल को मैं बाहर तलाश रहा था उसे इस चुतिया ने अपने सीने में दफ़न कर रखा था . रमा की आँखों से आंसू बहने लगे , मैं समझ सकता था एक माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी. औरत चाहे जैसी भी हो पर उसका माँ का स्वरूप , उसका दर्जा बहुत बड़ा होता है .

मैं- वादा निभाने की घडी आ गयी है वैध, मैंने भी रमा से एक वादा किया है तू बता मुझे कौन था वो हैवान

वैध ने थूक गटका और बोला- ठाकुर जरनैल सिंह, छोटे ठाकुर ने मारा था रमा की बेटी को .

वैध की आवाज बेशक कमजोर थी पर उसके शब्दों का भार बहुत जायदा था .

मैं- होश में है न तू

वैध- झूठ बोलने का साहस नहीं है मुझमे

चाचा ने अपनी ही प्रेयसी की बेटी का क़त्ल कर दिया था . रमा तो ये सुनकर जैसे पत्थर की ही हो गयी थी .

मैं-रमा तुझसे वादा किया है मैं चाचा को तलाश कर लूँगा तेरी आँखों के सामने ही उसे सजा दूंगा.

रमा की आँखों से झरते आंसुओ के आगे मेरे शब्द कमजोर थे मैं जानता था . दर्द आंसू बन कर बह रहा था . रमा कुछ नहीं बोली , दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल गयी .रह गए हम दोनों

मैं- बड़ा नीच निकला तू वैध. दिल करता है की अभी के अभी तुझे मार दू पर अभी तुझसे कुछ और सवाल करने है जिनके सही सही जवाब चाहिए मुझे, बता भैया के साथ कहाँ जाता है तू .

वैध- कही नहीं जाता मैं

मैं- सुना नहीं तूने

मैंने फिर से एक थप्पड़ मारा.

मैं- बेशक तेरी वफ़ादारी रही होगी भैया से पर आज की रात यदि मुझे तेरा कत्ल करके तेरी रूह से भी अपने जवाब मांगने पड़े न तो भी मैं गुरेज नहीं करूँगा. अब तू सोच ले.

वैध-उनको तलाश है

मैं- किस चीज की तलाश

वैध- ऐसी दवा की जो प्यास को काबू कर सके.

मैं- कैसी प्यास

वैध- रक्त तृष्णा को काबू करना चाहते है वो .

ये रात साली कयामत ही हो गयी थी . भैया को रक्त की प्यास थी . मेरा तो सर ही चकरा गया .

मैं- भैया को रक्त की प्यास , तो क्या भैया ही वो आदमखोर है

वैध- नहीं वो नहीं है .

मैं- तो फिर कौन है किसके लिए भैया को दवा की तलाश है

वैध- नहीं जानता न उन्होंने कभी बताया. अभिमानु को दवाओ का ज्ञान मुझसे भी जायदा है जंगल में अजीब बूटियों की तलाश रहती है उनको वो मुझे सहयोग के लिए ले जाते है .

मैं- क्या कभी भैया ने उस आदमखोर का जिक्र किया तुमसे

वैध- नहीं कभी नहीं .

मैं- कब से जारी है ये तलाश ,

वैध- ठीक तो याद नहीं पर करीब ५-७ साल से वो लगातार इसी प्रयास में लगे है .

मैं- क्या कभी किसी पुरे चाँद की रात को तू भैया के साथ रहा है



वैध- नहीं , कभी नहीं .

मैं- और कोई ऐसी बात जो तुझे लगता है की मुझे बतानी चाहिए

वैध- बस इतना ही

मैं- आज के बाद रमा की तरफ आँख भी उठा कर नहीं देखेगा तू . मुझे मालूम हुआ की इस कमरे में हुई कोई भी बात हमारे सिवा किसी को भी मालूम हुई तो तेरा अंतिम दिन होगा वो.

वैध के घर से निकल तो आया था पर कदमो में जान नहीं बची थी , या तो मेरा भाई ही वो आदमखोर था और वो नहीं था तो फिर किसकी रक्त तृष्णा का इलाज तलाश रहा था वो . आने वाले कल का सोच कर मेरी आत्मा कांप गयी.
Shayad chacha hi wo aadamkhor hai
 

Abhishek Kumar98

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#137

दिलो में जज्बात लिए, हाथो में हाथ लिए हम दोनों जंगल में चले जा रहे थे . ये जंगल , ये जंगल बस जंगल नहीं था ये गवाह था उस दास्ताँ का जिसे इसने जवान होते हुए थे. ये गवाह था उन रातो का जब मैंने निशा के साथ जी थी . ये जंगल आज गवाह था अंधियारों की रानी को उजालो में लाने का. पानी की खेली पर निशा रुकी और अपने होंठो को पानी से लगा दिया. . होंठो से टपकती पानी की बूंदे, इस से खूबसूरत दोपहर मैंने नहीं देखि थी . उसकी साँस बड़ी तेज चल रही थी . एक नजर उसने मुझे देखा और फिर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गयी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- तुझे और मुझे सोच रही हूँ. डाकन से बगावत करवा दी तूने .

मैं- मैंने बस प्यार किया है इस डाकन से . इजहार किया है अपनी जान से . तूने कभी कहा था की अंधियारों से वास्ता है तेरा देख मेरी जान तेरे उजाले ले आया हूँ मैं .तुझे ले आया हु मैं

निशा- कैसी ये तेरी बारात सजना , न घोड़ी कोई भी संग न

मैं- क्या करते घोड़े हाथी, तू मेरी मैं तेरा साथी.

निशा- प्रेम समंदर दिल के अन्दर ओ मेरे साजन मुझ को ले चल मंदिर .

मैं- जब मन से मैंने तुझे , तूने मुझे अपना मान लिया तो क्या मंदिर जाना , रातो को इस जंगल में तुझे देखा था इसी जंगल में उजालो में तुझे अपनी बनाऊंगा

निशा- चल छोड़ बहाना, तू कैसा दीवाना सुन मेरी सुन, मुझे ले चल मंदिर.

मैं- जहाँ मेरी मोहब्बत वो ही मेरा मंदिर फिर उस मंदिर क्यों जाना

निशा- ये रीत पुराणी, ये प्रीत पुराणी

मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.



मैं निशा को कुवे पर ले आया.

निशा- यहाँ क्यों लाया

मैं उसे कमरे में ले गया और उसे वो दिया जिसके लिए मैं कबसे बेक़रार था .

निशा की आँखों में आंसू भर आये .

मैं- कबसे तम्मना थी मेरी जान तुझे इस पहनावे में देखने की , कितनी राते ये सोच कर बीत गयी की जब तुझे इस रूप में देखूंगा तो तू कैसी लगेगी . अब और इंतज़ार नहीं करना मुझे.

निशा - दिल धडकने की क्या बात करू मेरे साजन , ये सपना ही लग रहा है मुझे .

मैं- प्रीत की रीत सदा चली आई , मेरे सपने भी अब हो गए तेरे.

निशा- दिन लगते थे काली रैना जैसे, सोच राते कैसे बीती होंगी

मैं- अंधियारों में तेरा मन था जोगन और मेरा दिल था रमता जोगी. मन में तेरे प्यार के दीप जलाकर अब कर दे दूर अँधेरे.

जोड़ा पहनने के बाद उसने लाल चुडिया पहनी .

मैं- अब चल मंदिर.

दिल में हजारो अरमान लिए मैं निशा को थामे गाँव मे ले आया था . धड़कने कुछ बढ़ी सी थी पर किसे परवाह थी गाँव के लोग कोतुहल से हमें ही देख रहे थे. उनकी नजरो का उपहास उड़ाते हुए मैंने निशा के हाथ को कस कर थाम लिया. मंदिर के रस्ते में हम चौपाल के चबूतरे के पास से गुजरे , वो पेड़ ख़ामोशी से हमें ही देख रहा था .



“अब कोई लाली नहीं लटकेगी इस पेड़ पर मैं रीत बदल दूंगा.” मैंने खुद से कहा . निशा का हाथ थामे मैं मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था .

“पुजारी, कहाँ हु पुजारी . देखो मैं अपनी दुल्हन ले आया हूँ , आकर हमारे फेरे करवाओ ” मैंने कहा

मैंने देखा पुजारी हमारी तरफ आया उसकी आँखों में मैंने क्रोध देखा,असमंस देखा.

पुजारी- कुंवर, बहुत गलत कर रहे हो तुम इसे प्रांगन में ले आये सब अपवित्र कर दिया.

मैं- जुबान पर लगाम रखो पुजारी . मैंने तुझसे कहा था न की मेरे फेरे तू ही करवाएगा

पुजारी- ये पाप है एक डाकन से ब्याह कहाँ जगह मिलेगी तुमको कुंवर.

मैं- मैं तुझसे पूछता हूँ पुजारी इसे डाकन किसने बनाया, उस माँ ने तो नहीं बनाया न जो सामने बैठी तुझे भी और मुझे भी देख रही है . उसने तो इसे तेरे मेरे जैसा ही बनाया था न . नियति ने दुःख दिया तो इसमें इसका क्या दोष, इसको भी हक़ है ख़ुशी से जीने का . कब तक ये दकियानूसी चलेगी, कोई न कोई तो इस रीत को बदलेगा न . इस गाँव में ये बदलाव मैं लाऊंगा. तू फेरो की तयारी कर

पुजारी- हरगिज नहीं , ये पाप मैं तो जीते जी नहीं करूँगा. मेरा इश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा.

मैं- किस इश्वर की बात करता है पुजारी , ये तो माँ हैं न ये मेरी माँ है तो निशा की भी माँ हुई न. और माँ अपने बच्चो में कब से भेदभाव करने लगी. और अगर बात माँ और उसकी औलादों की है तो तेरी फिर क्या जरूरत हुई भला.

मैं निशा को लेकर माता की मूर्त के सामने आया . मैंने थाली में रखा सिंदूर उठाया और निशा की मांग में भर दिया.निशा ने अपनी आँखे बंद कर ली. मैंने अपने गले से वो लाकेट उतारा और निशा के गले में पहना दिया . निशा मेरे गले से लग गयी मैंने उसके माथे को चूमा और बोला- देख पुजारी , माँ ने तो कोई ऐतराज नहीं किया. वो भी जानती है की उसके बच्चो की ख़ुशी किस्मे है . और हाँ अब ये मेरी पत्नी है , अब तेरा मंदिर पवित्र हो गया न . मोहब्बत ने पुराणी परम्परा की नींव हिला दी है पुजारी. आने वाले वक्त में तू जिया तो न जाने क्या क्या देखेगा. चल मेरी जान घर चल. अपने घर चल.

गाँव का सीना चीरते हुए मैं अपनी सरकार को अपने घर ले आया. मैंने देखा दरवाजे पर भाभी खड़ी थी ,हमें देख कर उसकी आँखों में चमक होंठो पर मुस्कान आ गयी थी . शायद हमारे आने की खबर हवाए हमसे पहले घर ले आई थी .

“तो ” भाभी ने बस इतना कहा और निशा को अपनी बाँहों में भर लिया.


“स्वागत है “ भाभी ने कहा और निशा को घर में ले लिया पीछे पीछे मैं भी आया. मैंने देखा अंजू दौड़ कर आई और निशा के गले लग गयी . अंजू की आँखों में आंसू थे. मैंने चाची को आरती की थाली लेकर आते हुए देखा. .................ये ख़ुशी , ये ख़ुशी जो मैं महसूस कर रहा था इसके पीछे आते तूफान को मैं महसूस नहीं कर पा रहा था .
Surajbhan ki sagi behen hai kya Nisha
 

Abhishek Kumar98

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#156

कुछ देर तहखाने में ख़ामोशी छाई रही और मैं समझने की कोशिश करने लगा की आत्मा के टुकड़े को कोई कैसे गिरवी रख सकता है.

मैं- क्या ये मुमकिन है

रमा-निर्भर करता है की तुम इसे कैसे समझते हो

मैं- तुम इसे कैसे समझती हो रमा और यदि आत्मा का टुकड़ा गिरवी था तो फिर टूटी आत्मा से सुनैना ने शरीर कैसे त्याग दिया.

रमा- मैं इसे कैसे समझती हूँ . मैं नहीं समझ पायी. राय साहब नहीं समझ पाए रुडा नहीं समझ पाया. अगर हम में से कोई भी इसे समझ पाता तो आज वो सोना यूँ नहीं पड़ा होता लावारिस हालत में

मैं- लालच , क्या मिला तुम सब को ये लालच करके रमा . तुमने अपनी ही बहन से धोखा दिया . मैं हमेशा सोचता था की तुम , तुम इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो इस पूरी कहानी में . ऐसा क्या छिपा था जो सामने होकर भी नहीं दिख रहा था , वो तुम थी रमा. वो तुम्हारा रिश्ता था सुनैना से. वो जानती थी तुम सब के मन के लालच को . तुम सबकी ये हवस पूरी न हो जाये इसलिए उसने अपनी आत्मा के टुकड़े को गिरवी रखा या फिर मैं कहूँ उसने उसे कहीं छुपा दिया .

तुम , तुम कभी भी उस जैसी नहीं बन पायी क्योंकि तुम्हारे मन में द्वेष था , घृणा थी . तुम हमेशा सुनैना बनना चाहती थी .

रमा- तुमको सच में ऐसा लगता है . मैं बहुत बेहतर थी उस से .

मैं- पर तुम उस चीज को नहीं समझ पायी . तुमने पूरी उम्र लगा दी ये खोजने में की इस सोने को कैसे हासिल किया जाये. पर तुम कामयाब नहीं रही जानती हो क्यों .

रमा के चेहरे पर अस्मंस्ज देख कर न जाने क्यों मुझे बड़ी ख़ुशी हुई.

मैं- जिस दिन मैंने राय साहब के बाद मंगू को तुझ पर चढ़ते देखा था न मैं उसी दिन जान गया था की तू, तू इस जिस्म का उपयोग किस हद तक कर सकती है . चूत , चूत का नशा इन्सान की सबसे बड़ी कमजोरी जो काम कोई नहीं कर पाए इस छोटे से छेद में वो ताकत होती है . तुम लोगो ने हमेशा मुझे झूठी कहानी सुनाई, मुझे हर बार भटकाया की मैं अतीत की उस डोर को ना तलाश कर सकू. पर तुम्हारी ये बात ही की तुम्हे कोई नहीं पकड़ पायेगा तुम पर भारी पड़ गयी . तुमने सोचा होगा की हम इस चूतिये को भटका रहे थे पर तुम नहीं जानती थी की मैं क्या तलाश कर रहा था .

रमा की आँखों को मैंने फैलते हुए देखा .

मैं- रमा मैं उस कड़ी को तलाश रहा था जो मुझे इस कहानी से जोडती है . जानती है तु कभी भी सुनैना की आत्मा के टुकड़े को क्यों नहीं ढूंढ पायी . क्योंकि तू जानती ही नहीं थी वो क्या है .



रमा - क्या था वो

मैं- बताऊंगा पर उस से पहले और थोड़ी बाते करनी है . वैसे कुंवे पर तूने चाल सही चली थी पर तोड़ करके बैठा था मैं. तेरा दांव इस लिए फेल हुआ रमा क्योंकि तू ये तो जानती थी की चाचा की कहानी क्या है पर तू इस कहानी का एक माहत्वपूर्ण भाग नहीं जानती थी . तू ये नहीं जानती थी उस रात चाचा पर किसी ने हमला करके लगभग उसकी जान ही ले ली थी . उसने चाचा को मरा समझ कर दफना दिया था पर जीने की लालसा बहुत जिद्दी होती है रमा. वो बेचारा कच्ची मिटटी को हटा कर बाहर निकल आया पर उसे क्या मालुम था की काश उस रात वो मर जाता तो कितना सही रहता . कल जब मैंने चाचा को संक्रमित रूप में देखा तो मैं सोचने पर मजबूर हो गया की अगर ये यहाँ था तो किसने किसने वहां पर कंकाल छुपाया होगा. किस्मत बहुत कुत्ती चीज होती है रमा. देख तूने कंकाल को ठीक उसी गड्ढे में छिपाया जहाँ पर कोई तुझसे पहले चाचा को दफना गया .

चूत के जोर के दम पर तूने दुनिया ही झुका ली थी . पर तू समझ नहीं पायी की हवस के परे इस शक्ति और होती है . तूने चढ़ती जवानी की दहलीज को पार करते तीन दोस्तों को अपने हुस्न के जाल में फंसा लिया .तूने तीनो को वो ही कहानी सुनाई जो मुझे सुनाई थी वो तेरे जाल में फंस भी गए पर महावीर के पास एक चीज थी जिसने मुझे वो सच दिखाया जो वक्त की धुल में ढका हुआ था . महावीर के पास एक कैमरा था रमा जिस से वो चोरी छिपे तस्वीरे खींचता था . मुझे वो तस्वीरे मिली जो छिपा दी गयी थी उन्ही तस्वीरों में मुझे वो मिला जिसकी तलाश थी मुझे. मुझे सच मिला वो सच जो महावीर ने ढूंढा था .

रमा- तेरे जैसा था वो , उसको भी इतनी ही चुल थी अतीत को तलाश करने की एक वो ही था जिसने वो तरीका तलाश लिया था जिस से की सोने के मालिक को काबू कर सकते थे . उसने ही सबसे पहले जाना था की वो कौन था . और यही बात उसके मरने की वजह बन गयी .

मैं- पर तू उसके बारे में एक चीज नहीं जानती थी रमा की वो आदमखोर था . और अगर वो आदमखोर बना तो ये रास्ता उसने खुद ही चुना होगा क्योंकि वो भी मेरी तरह इस कहानी के मूल की तलाश में था . वो सोना नहीं चाहता था . महावीर को जहाँ तक मैंने समझा है वो खुद को सुनैना की आत्मा का टुकड़ा समझता था .

मेरी बात सुन कर रमा की आँखे हैरत से भर गयी .

मैं- पर नहीं , वो नहीं था . वो कभी भी नहीं था

रमा- तो फिर कौन था .


मैं- तूने कभी समझा ही नहीं रमा ,की हवस के आगे एक शक्ति और होती है और वो होती है प्रेम . बेशक सुनैना के गर्भ में पल रही संतान को अपनाने की हिम्मत रुडा में नहीं थी पर सुनैना ने प्रेम के उस रूप को चुना जिसे मात्रत्व कहते है . माँ, दुनिया की सबसे शक्तिशाली योद्धा होती है . मैं हमेशा सोचता था की इस जंगल से मुझे इतना लगाव क्यों है . क्यों, क्योंकि मैं इस जंगल का अंश हूँ . मैं हूँ सुनैना की आत्मा का वो टुकड़ा . मैं हूँ वो सच जिसे कोई नहीं जानता .
Wonderful I have no words to describe this update kitni awesome update hai ye
 

Mking

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Happy New Year Bhai.
 

Jannat1972

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Bhtgi umda aur behtreen kAhani hai fauji bhai jawaab nahi shuru se ant tak utsukta bani rehti hai ....2 din me lasi ye kahani ...one of the best ..aur aapki lekhni ka mai bhi bht bada fan hu....aapse request hai k hi story adhuri padi hui hai .. guzarish plz uska bhi kuch karo ...use bhi puri kar so wo b ek bht acchi story h aapki..
 

Jannat1972

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Bhai kuch baate clear nahi hui pehli ye jab Neesha asli Dayan nahi thi toh wo dhaga kaha se laayi ho usne kabeer ko diya jo pa datji k aage chamakne laga tha aur kahi bhi ye ullekh nahi aaya k dhage ki wajah se kahi pr bhi raksha Hui uski...dusra Kabir n bola wo sunaina ki aatma ka ansh hai ye bhi clear nahi hua k Kabir sunaina ka beta hai aur kaise hai jabki uske judwa bacche hue the mahavir aur anju ...kripya ho sake toh prakaash daale is pr..
 

Ranchojaiker

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HalfbludPrince Bhai Ek din me story poori padh gya. Suspense bahot tagda hai. My favourite story of yours is Dil Apna Preet Parayi. Dilwale me aapne sex scenes bade jabardast rakhe the try to do it in other stories as well.
 
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