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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Abhishek Kumar98

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#25

होश आया तो बदन दर्द से टूट रहा था . छाती पर बैलगाड़ी का पहिया पड़ा हुआ था . उसे हटाया , सर अभी भी घूम रहा था . गाडी के पहियों में लगने वाली लोहे की शाफ्ट का कुछ हिस्सा मेरी जांघ में घुसा हुआ था . दोनों बैलो के विक्षत शव जिन्हें बुरी तरफ से चीर-फाड़ा गया था मेरे पास ही पड़े थे. पहिये को हटाना चाहा तो हाथ से ताकत लगी ही नहीं दर्द हुआ सो अलग पाया की कंधे पर एक गहरा जख्म था मांस उखाड़ा गया था वहां का .

मैंने आँखे बंद कर ली और पड़े पड़े ही रात को क्या हुआ याद करने की कोशिश की पर याद आये ही नहीं . जैसे तैसे मैंने पहिये को हटाया और जांघ से वो लोहे का टुकड़ा निकाला. रक्त की मोटी धारा बह रही थी मिटटी और कपडा लगा कर मैंने खून को बहने से रोकने की कोशिश की .

उसी शाफ़्ट को पकड़ कर मैं खड़ा हुआ . मैंने देखा थोड़ी दूर वो कडाही उलटी पड़ी थी तब मुझे याद आया की कारीगर भी था मेरे साथ और अब वो दूर दूर तक नहीं दिख रहा था .

“कारीगर, कारीगर ” मैंने दो तीन बार आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया. मेरा दिल अनिष्ट की आशंका से घबराने लगा. एक बार फिर परिस्तिथिया ऐसी थी की मैं ही गुनेहगार माना जाता और इस बार तो बचाव में भी कुछ नहीं था . शाफ़्ट का सहारा लिए लिए मैं वैध जी के घर तक बड़ी मुश्किल से पहुँच गया.



“कुंवर क्या हुआ तुम्हे ” वैध ने मुझे घर के अन्दर लिया और पूछा मुझसे

मैं- पता नहीं क्या हुआ है वैध जी , आप मेरे भैया तक सुचना पहुंचा दीजिये

वैध- जरुर पर पहले मैं निरिक्षण कर लू . मरहम पट्टी कर दू.

जांघ पर टाँके लगा दिए थे पर जब वैध काँधे को देख रहा था तो उसकी आँखों में दहशत देखि मैंने.

वैध- किस जानवर से पाला पड़ा था कुंवर शिकार करते समय

मैं- मालूम नहीं वैध जी. पर इतना जरुर है की जानवर नहीं था हमला करने वाला

वैध- यहाँ पर टाँके भी काम नहीं आयेंगे . ऐसे ही भरने देना होगा इस जख्म को मरहम पट्टी के सहारे ही .

पीठ में एक बड़ी कील भी थी उसे भी वैध ने निकाला और बोला- तुम कहते हो याद नहीं है हालत देख कर लगता है की संघर्ष खूब हुआ है .

वैध क्या कह रहा था मुझे सुनाई ही नहीं दे रहा था . मैं इस बात से घबराया था की अगर ये हमलावर वो ही था जिसने हरिया और बाकी लोगो का शिकार किया था तो क्या मेरी हालत भी वैसी ही हो जाएगी. क्या मेरे पास भी अब सिमित समय ही रह गया है .



“कबीर, मेरे भाई ” भैया आन पहुंचे थे .

भैया- कबीर क्या हुआ तुझे . किसने किया ये . नाम बता मुझे उसका . मेरे भाई की तरफ आँख उठाने की किसकी हिम्मत हो गयी मैं आग लगा दूंगा उसको. उन हाथो को उखाड़ दूंगा जिन हाथो ने मेरे भाई को छूने की हिमाकत की है .

जीवन में पहली बार मैंने भैया को क्रोध में देखा था . भैया ने मुझे अपने सीने से लगाया . उनकी आँखों से बहते आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

मैं- कुछ नहीं हुआ है भैया मामूली ज़ख्म है

भैया- मामूली जख्म भी मेरे रहते कैसे लग जायेंगे मेरे भाई को . तू बस इतना बता की क्या हुआ कौन लोग थे वो .

मैं- मुझे कुछ याद नहीं है भैया. जब होश आया तो मैं घायल था बस ये ही याद है .

शाम तक घर घर तक ये खबर पहुंच गयी थी की राय साहब के लड़के पर हमला हुआ है .सब लोग मेरे आगे पीछे फिर गए थे पर तमाम बातो के बीच कोई उस कारीगर की बात नहीं कर रहा था. जैसे की किसी को फ़िक्र ही नहीं थी की वो था या नहीं था . और मैं सब जानते हुए भी उसका जिक्र नहीं कर पा रहा था . इतना बेबस मैंने खुद को कभी नहीं पाया था .

पिताजी की आंखो में मैंने पहली बार नमी देखि थी उस दिन . चाची तो बेहोश ही हो गयी थी ये खबर सुन कर. भाभी मेरे पास ही बैठी रही .



पिताजी- हमारे लाख मना करने के बावजूद भी घर से बाहर जाने की क्या मज़बूरी थी . जिसके लिए तुम अपनी जान की परवाह भी नहीं करते हो

मैं- गलती हो गयी पिताजी

पिताजी- तुम तो गलती कह कर पल्ला झाड लोगे कबीर, अगर तुम्हे कुछ भी हो जाता तो हम पर क्या बीतती एक पल सोच कर देखो. इस बूढ़े आदमी की हिम्मत की परीक्षा मत लो बेटे, इस बूढ़े में इतनी हिम्मत नहीं है की जवान बेटे की अर्थी को कंधा दे सके. अवश्य ही कोई पुन्य था जो आड़े आ गया वर्ना मारने वाले ने कमी थोड़ी न छोड़ी थी.

भाई- पिताजी मैं जल्दी ही पता कर लूँगा की कौन लोग थे इसके पीछे

पिताजी- मेरे बेटे पर हमला करने की गुस्ताखी करने वाले की हिम्मत की दाद देनी होगी पर सवाल ये है की आखिर किस की हमसे दुश्मनी हो सकती है कौन ऐसा सांप पैदा हो गया .

भाई- कुचल देंगे उस सांप को पिताजी .

मैं- आप लोग यु ही बात को बड़ी कर रहे है , कोई जानवर ही रहा होगा.

भाई- तुम चुप रहो फिलहाल

उनके जाने के बाद मैंने वैध से पूछा की घर कब जा सकता हूँ.

वैध- मुझे थोड़ी तस्सली हो जाये उसके बाद

मैं- कैसी तस्सली

वैध- तुम जानते हो

मैं समझ गया वैध देखना चाहता था की मुझमे भी बाकि लोगो जैसे लक्षण आते है या नहीं .

एक पूरी रात वैध की निगरानी में रहने के बाद मैं घर आ गया.

भाभी- जी तो करता है की मैं बहुत मारू तुमको. हमारे लाड-प्यार का आखिर कितना नाजायज फायदा उठाओगे तुम .

मैंने कुछ नहीं बोला

भाभी- अब क्यों गूंगे बने हुए हो देख लिए न मनमर्जी करने का नतीजा . घर में मेहमान आये थे पर बेगैरत को क्या पड़ी थी इनको तो चस्का लगा था उसी लड़की के पास मुह मारने गए थे न

मैं- ऐसा कुछ नहीं था भाभी . मैंने गलती मान तो ली न

भाभी- हर बार का यही नाटक है , बस गलती मान लो.

भैया- बस भी करो अब , इसे आराम करने दो

भाभी- हाँ मैं कौन होती हूँ इन्हें कुछ कहने वाली.

मैं- भाभी माफ़ी दे भी दो

भाभी- तुम्हे कुछ हो जाता तो हमारा क्या होता सोचा तुमने


भाभी ने मुझे सीने से लगाया और रोने लगी . एक मैं था जिसके लिए सारा परिवार इधर उधर भाग रहा था एक बेचारा वो कारीगर था जिसका कोई जिक्र ही नहीं था . उस लम्हे में मुझे खुद से नफरत हो गयी .
Wo toh acha hua ki apna hero sirf Ghayal hi hua hai dekhte hai aage kya hota hai
 

Abhishek Kumar98

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#31

जब हमारी नजरे मिली तो मेरा दिल धक् से रह गया . इतना दर्द हुआ मुझे . खून से लथपथ उस चेहरे पर जो आंखे चमक रही थी एक सर्द लहर मेरे दिल में समां गयी. उन होंठो से टपकता लहू . उसे देख कर मेरे दिल ने बगावत कर दी . आँखों ने कहा ये ही है दिल ने कहा नहीं ये नहीं हो सकता.

“क्यों , ” भर्राए गले से मैंने बस इतना ही पूछा.

हालात देखिये हम दोनों की ये मुलाकात ऐसे समय में हुई थी जब हमारे दरमियान एक लगभग मर गयी औरत थी और उस औरत के खून में सनी थी निशा, वो निशा जिसे दिल ने अपना मान लिया था . ये तो मैं था जिसका दिल अभी भी धडक रहा था वर्ना निशा को ऐसे रक्त तृष्णा से घिरी हुई देख कर अब तक पागल हो चूका होता . तो क्या निशा के इसी रूप को देख कर उन तमाम लोगो की वो हालत हुई थी .

मैं- मैंने तुझसे कहा था निशा की तू मेरा खून पीकर अपनी प्यास बुझा लेना . मैंने तुझसे वादा किया था और तूने भी मुझसे एक वादा किया था की जब भी तुझे रक्त तृष्णा होगी तू मेरा लहू पीने आएगी . पर तूने अपना वादा तोडा निशा.

मैंने कम्बल ओढा हुआ था फिर भी मैं बुरी तरह काँप रहा था कुछ ठण्ड से कुछ डर से . डायन का ऐसा रूप मैंने पहली बार देखा था . मेरी आँखे उस से सवाल कर रही थी पर वो कुछ नहीं बोली .

मैं- बोलती क्यों नहीं तुम . किसकी वजह से जान गयी इस औरत की

निशा- नियति की वजह से जान गयी इस औरत की

मैं- किसकी नियति इसकी या तुम्हारी

निशा ने फिर से चुप्पी ओढ़ ली.

मैं- तू मुझे भी मार दे निशा

निशा- ये क्या कह रहा है तू कबीर मैं तुझे नुकसान पहुंचा सकती हूँ ये सोचा भी कैसे तूने

मैं- क्यों न सोचु मैं, मेरे सामने मेरे गाँव की एक औरत ने दम तोडा है

निशा- जाने वालो को कोई नहीं रोक सकता कबीर न तू न मैं

मै- पर कोई मेरी वजह से ही गया तो मुझे मंजूर नहीं निशा

निशा- तेरा मन आहत है तू समझ नहीं पा रहा

मैं- तू ही बता मैं क्या समझूँ ,

निशा- तू अभी जा यहाँ से कबीर . मैं तुझे तेरी दहलीज तक छोड़ आती हूँ

मैं- जाऊंगा , जाना तो है ही इस लाश को मिटटी भी तो देनी पड़ेगी . यहाँ छोड़ के गया तो कोई और जानवर नोच खायेगा इसे.

निशा- इसे लेकर गया तो तेरे गाँव वाले तुझे ही दोषी समझेंगे . तेरे दुश्मन हो जायेंगे

मैं- क्या ही फर्क पड़ेगा उन लोगो के तानो से दिल तो मेरा तूने तोड़ दिया .

निशा- ऐसा मत कह कबीर

मैं अपने आंसू नहीं रोक पाया.

“दिल तोड़ दिया तूने और मैं भी भला किस से उम्मीद लगा बैठा था ये नहीं समझा की डायन के सीने में कहाँ दिल होता है जा रहा हु मैं निशा पर मैं जाते जताए तुझसे ये ही कहूँगा की अगर इस गाँव की तरफ तेरे कदम फिर बढे तो वो मेरे दर पर आकर रुकने चाहिए . तू जब चाहेगी मेरा लहू तेरे लबो पर बिखरे को तैयार रहेगा पर इन गाँव वालो का कोई दोष नहीं है इन पर मेहर करना ” मैंने कहा

निशा के होंठ कुछ कहने के लिए खुले पर फिर बंद हो गए उसने चुप्पी साध ली. मैंने कविता भाभी के बदन को कम्बल में समेटा और उसे लाद कर गाँव की तरफ चल पड़ा. पैर डगमगा रहे थे , आँखों में सैलाब था दिल जो टुटा था पर करते भी क्या . मुझे घंटा भी परवाह नहीं थी की गाँव वाले मुझे इस हाल में देखेंगे तो क्या होगा. मैंने वैध के दरवाजे पर कविता की लाश को रखा और वापिस से कुवे पर आ गया. जी चाहता था न जाने क्या कर दू पर कुछ नहीं कर सका . लिहाफ में घुस तो गया था पर नींद कोसो दूर थी आँखों से.

बुझे मन से थके कदमो से चलते हुए मैं चाची के साथ वापिस गाँव में पहुंचा और जैसा मुझे अंदेशा था गाँव में रोना-पीटना मचा था . हम लोग भी वैध के घर पे पहुँच गए देखा की भाभी-भैया पहले से ही वहां पर मोजूद थे . जैसे ही भाभी ने मुझे देखा वो मेरे पास आई और बोली- अभी के अभी मेरे साथ चलो

मैं- कहाँ भाभी

भाभी ने जवाब नहीं दिया और मुझे घर ले आई. आते ही भाभी ने दो-तीन थप्पड़ मेरे मुह पर दे मारे और बोली- मैं सिर्फ सच सुनना चाहूंगी . सिर्फ सच कविता के साथ क्या हुआ था .

मैं सन्न रह गया भाभी के इस सवाल को सुन कर

मैं-मुझे क्या मालूम भाभी मैं तो अभी अभी खेतो से आया न

भाभी ने एक थप्पड़ और मारा और बोली- मुझे क्या समझा है तूने.

मैं- भाभी मेरा विश्वास करो

भाभी- मेरे सब्र का इम्तिहान मत लो कुंवर . मैं बस ये जानना चाहती हूँ की कविता के साथ क्या हुआ क्या किया तुमने

मैं- मैंने कुछ नहीं किया भाभी

तडाक एक थप्पड़ और लगा मेरे गाल पर .

भाभी- चुतिया मत समझना मुझे तुम . इन हाथो से पाला है मैंने तुम्हे . मुझे झूठ नहीं बोल पाओगे कविता से तुम्हारा कुछ लेना देना नहीं है तो फिर उसकी लाश तुम्हारे कम्बल में क्यों लिपटी हुई है अब ये मत कहना की तुम कम्बल भूल गए थे कहीं पर .

कितनी बड़ी गलती हुई थी मुझसे , मैं कम्बल भूल गया था . और यही बात भाभी ने पकड़ ली थी .

मैं चुप रहा

भाभी- बोलते क्यों नहीं अब

मैं- मेरे पास कुछ नहीं कहने को भाभी

भाभी- ठीक है फिर चल और बता सारे गाँव को की कविता का कातिल कोई और नहीं बल्कि तुम हो . मुझे नफरत हो रही है तुमसे मैंने अपने घर में एक दरिन्दे को पाल रखा था . घिन आती है मुझे

मैं- भाभी आपको मुझ पर विश्वास नहीं है

भाभी- नहीं है मुझे विश्वास .तुम्हे अभी के अभी अपना गुनाह गाँव के सामने कबूल करना होगा.

मैं- मैं ऐसा नहीं करूँगा क्योंकि कविता को मैंने नहीं मारा

भाभी- ठीक है फिर तुम्हे अभी इसी पल से मैं इस घर से बेदखल करती हूँ . कोई वास्ता नहीं आज से तुम्हारा हमारा इस घर में एक कातिल के साथ मैं नहीं रहूंगी अगर तुम ये घर छोड़ कर नहीं गए तो फिर मैं ही जाउंगी.

भाभी की बात सुनकर मेरा टुटा हुआ दिल और टूट गया .

मैं- क्या कहा भाभी आपने , आप ये घर छोड़ कर जाएँगी क्यों भला . बहुत बड़ी बात कह दी भाभी आपने एक पल में पराया ही कर दिया आपने तो . अरे आपके आंचल तले पला मैं. आपने जीना सिखाया दुनिया को समझना सिखाया आप को ही मुझ पर विश्वास नहीं अब क्या कहे भाभी आपने तो कुछ कहने लायक छोड़ा ही नहीं . आपका कहा हर हुकुम माना है ये इच्छा भी सर माथे पर भाभी


मैंने भाभी के चरणों को हाथ लगाया और उसी पल घर से बाहर निकल गया. बहुत कोशिश की की न रोऊ पर साले आंसू भी दगा दे गए ... वो भी बेवफा निकले.
Bahut hi emotional update hai bhai
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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ये शाम ना जाने कब आयेगी
अभी बस

आजा शाम होने आई

वाला मोड़ है भाई का
 

Abhishek Kumar98

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#33

मैंने दरवाजा खोला तो देखा की वो सियार दरवाजे पर खड़ा था . मेरे बाजु से होते हुए वो अंदर गया और एक कोने में पड़ी सूखी घास पर जाकर बैठ गया.

“तुझे क्या चाहिए अब . जा जाकर कह दे उस से मैं नहीं मिलूँगा उस से ” मैंने उस से कहा पर उसने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं घास पर सो गया वो .

इसे मेरे पास भेजने का भला क्या मकसद हो सकता था निशा का सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी . सुबह चूँकि मुझे सब्जिया लेकर शहर जाना था तो मंगू समय से आ गया . हमने मंगू की बैलगाड़ी में सब्जिया लादी और शहर के लिए निकल गए.

मंगू- मुझे सब मालूम हो गया है भैया ने बता दिया

मैं- मैं क्या करू फिर

मंगू- जो हुआ गलत हुआ न

मैं- थोड़े दिन में सब सही हो जायेगा.

मंगू- पर.

मैं- पर वर कुछ नहीं यार. कोई और बात कर

मंगू- मलिकपुर में नाचने वालो का मजमा लगा है सुना है की उनके जैसा कोई नहीं नाचने वाला बिजली की रफ़्तार से प्रोग्राम होता है उनका पर क्या ही फायदा घर वाले जाने थोड़ी न देंगे कविता की मौत के बाद शाम होते ही घरो के दरवाजे बंद हो जाते है न जाने कब ये मुसीबत दूर होगी.

मैं- आज सब्जियों के ठीक दाम मिल गए तो बढ़िया रहे, दिवाली आने वाली है पैसे रहेंगे तो मजा होगा.

मंगू- क्या ही फायदा , तेरे बिना क्या होली-क्या दीवाली

मैं- ऐसा क्यों कहता है इस बार भी हम साथ ही सब कुछ करेंगे पहले के जैसे

बाते करते हुए हम शहर की सब्जी मंडी पहुँच गए . सब्जियों को बेचा . थोडा नाश्ता पानी किया . एक जानने वाले आढती कए यहाँ बैलो को छोड़ कर हम दोनों शहर में घुमने चले गए. दोपहर बाद हम वापिस चल दिए. चूँकि आज दाम बढ़िया मिले थे तो मैंने मंगू को थोड़े पैसे फालतू दिए . वापिस आकार मैं नहाने धोने लग गया मंगू घर चला गया . अकेले आदमी को खाली समय काटना भी किसी सजा जैसा ही होता है . करे तो क्या करे देखे तो क्या देखे . तभी मुझे मंगू की मलिकपुर वाली बात याद आई तो मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर का रास्ता पकड़ लिया.

वहां पहुंचा तो अँधेरा खूब हो चूका था . मैंने मालूम किया की प्रोग्राम वालो का तम्बू किधर लगा है और उधर पहुँच गया. ठण्ड बहुत थी तो मैंने चने और ताड़ी का गिलास ले लिया और पंडाल में बैठ गया . एक दो किस्से कहानियो के बाद जब लडकियों के नाचने का नम्बर आया तो मैंने महसूस किया की मंगू को गलत सुचना थी ये तो वो ही थी जिनका प्रोग्राम हमने थोड़े दिन पहले देखा था .

कुछ दारू का सुरूर , कुछ हुस्न के जलवे उनमे से एक लड़की ने मुझे पहचान लिया और ऊपर मंच पर खींच लिया मैं भी उनके साथ नाचने लगा. जेब में पैसे तो थे ही मैंने उन पर लुटाना शुरू कर दिया. मजा आ ही रहा था की तभी किसी ने मेरी जैकेट का कालर पकड़ कर खींच लिया , जिस से मेरी जैकेट फट गयी .

“क्यों बे , क्या ग़दर मचा रखा है तूने मंच पर ” जिस लड़के ने मेरी जैकेट खींची थी उसने मुझे धक्का देते हुए कहा.

मैं- तुझे क्या तकलीफ है , तू भी नाच ले किसके रोका है तुझे और ये जाकेट फट गयी इसकी भरपाई कौन करेगा.

लड़का- भरपाई तो तेरी गांड तोड़ कर कर दूंगा साले मेरे गाँव में आकार नेता बन रहा है तू

मैंने गौर से उस लड़के को देखा और बोला- गाँव तेरा है तो मैं क्या करू . तम्बू के बाहर तख्ती लगा देता की तेरे गाँव वाले ही प्रोग्राम देखेंगे .चल ठीक है तेरी बात मानी पर जो जाकेट फाड़ी तूने उसका क्या नयी जाकेट दे या फिर पैसे दे .

लड़का- दाद देनी होगी तेरी हिम्मत की सूरजभान से इस तरह अकड़ के बात कर रहा है तू. क्या तुझे डर नहीं मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूँ

मैं- अबे चमन चूतिये. मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता की तू किस खेत की मूली है . मुझे फर्क पड़ता है तेरी घटिया हरकत से जो तूने की है . जाकेट के पैसे दे और निकल यहाँ से मेरा दिमाग फिर गया न तो मारूंगा तीन गिनूंगा एक समझा चोमू

“बहनचोद तेरी ये मजाल तू मुझे गाली देगा ” सूरजभान गुस्से में भर गया और उसने मुझे जोर का धक्का दिया. मैं मंच से निचे जाकर गिरा. चूँकि मेरे कंधे में पहले ही चोट लगी हुई थी दर्द हुआ तो मेरा सब्र भी जवाब दे गया . मैं वापिस मंच पर गया .

“गलती कर दी तूने भोसड़ी के ” मैंने सूरजभान को धर लिया और उसकी मरम्मत करनी शुरू कर दी. इसबार मैंने उसे उठा कर जनता के बीच फेका तो मजमा देखने वालो में अफरा तरफी मच गयी. उसके दो चार चमचे बीच में आये पर मैंने अपना काम चालू रखा . मैंने सूरजभान को उठा कर मजमे वालो की जीप के बोनट पर पटक दिया.

मैं- जाकेट के पैसे तो तेरी खाल उतार कर वसूल कर लूँगा चूतिये.

तभी उसने एक लोहे की लाइट उठा कर मेरे सर में मारी और मुझे निचे गिरा दिया जीप से

सूरजभान- अच्छा हुआ जो आज तेरा सामना मेरे साथ हुआ इतनी मार मारूंगा तुझे की हड्डिया तक कापेंगी मेरे नाम से तेरी

मैं- आजा फिर देखते है किसकी बाजुओ में कितना जोर है

मैंने पास में रखी कुर्सी उठा कर उसके पैरो पर मारी उसके गिरते ही मैंने उसके सीने पर लात रख दी . उसने फुर्ती से मुझे धकिया दिया. पीछे से उसके एक चमचे ने पीठ में लात मारी तो मैंने उसकी बाहं मोड़ दी और उसे झका दिया.

मैं- कुत्ते कभी शेर का शिकार नहीं करते आज तुम्हारा भी वहम दूर हो जायेगा.

सूरजभान- कोई बीच में नहीं आयेगा . इसके लिए मैं अकेला ही काफी हूँ

मैंने मंच के तख्तो में से एक फट्टा उखाड़ लिया और सूरजभान के सर पर देमारा. सर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. आसपास के लोगो में चीख पुकार मच गयी . खून देखते ही मुझ पर न जाने क्या हुआ मैंने फिर रहम नहीं किया

“मैंने कहा था तेरा गाँव है इस बात की धोंस मत दिखा मुझे , मैंने किसी को तंग तो नहीं किया था न प्रोग्राम देख कर चला जाता पर तेरी गांड में कीड़ा कुलबुला रहा था . पूछ कर तो देखता मेरे बारेमे , ये गुस्ताखी करने से पहले ” मैंने अपनी दोनों हाथो की उंगलिया उसके मुह में डाली और उसके गालों को फाड़ ही देता अगर वो गोली न चलती .

मैंने देखा सामने एक आदमी कुरता-पगड़ी पहने खड़ा था हाथ में बन्दूक लिया .

आदमी- अगली गोली तेरे सीने के पार होगी छोरे ,चौधरी रुडा के बेटे पर हाथ उठाने की हिमाकत की कैसे तूने .

मैं- चौधरी , ये बात अपने इस गधे बेटे से पूछ, अपनी औकात भूल कर इसने शेर का गिरेबान पकड़ा . सजा तो मिलेगी ही इसे.

रुडा- इतना अहंकार नादान तू जानता भी है यहाँ से तू जिन्दा नहीं लौट पायेगा.

रुडा ने बन्दूक मेरी तरफ तान दी .

मैं- चौधरी, इस लोहे के खिलोने से तू शेर का शिकार करने की सोच रहा है हंसी आती है तेरी मुर्खता पर मेरा जोर आजमाने की तमन्ना है तेरी तो तू भी कोशिश कर ले . गलती तेरे बेटे की थी इसने मेरी जाकेट फाड़ी . नुकसान की भरपाई तो करनी पड़ेगी .

चौधरी- मामूली से जाकेट के लिए तूने मेरे बेटे का खून बहाया

मैं- नहीं वो तो मैंने मजे के लिए बहाया . पर निराशा ही हुई तेरा खून ख़तम है चौधरी लेजा इसे जा बक्श दिया तू भी क्या यद् करेगा. खिला पिला इसे और अगर कभी तुझे फिर लगे की ये कुछ कर पायेगा तो मेरा नाम कबीर है , राज पूरा के राय साहब का बेटा हु मैं मुझे संदेसा भेज देना

मैंने सूरजभान को साइड में पटका और चौधरी रुडा के पास चल कर गया .

मैं- चौधरी तेरा गाँव है तेरी जनता है . मैं समझता हूँ मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुरा और जाने दे मुझे . तू भी जानता है तेरा बेटा कमजोर है

रुडा- तुझे यहाँ मारा तो तू कहेगा की अपनी गली में कुत्मैंता भी शेर होता है तुझे तेरे गाँव में तेरे घर में ही मारूंगा

मैं- इइश्वर करे वो दिन जल्दी ही आये जब तेरी ये इच्छा पूरी हो.


मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर से बाहर जाने वाले रस्ते पर चल दिया.
Bahut jabardast action tha dil khus ho gya
 

Abhishek Kumar98

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#44

मुझे शिद्दत से मंगू का इंतज़ार था और जब वो आया तो उसके कपडे सने हुए थे कीचड़ से . हालत पस्त थी उसकी.

मैं- कहाँ गायब था बे

मंगू- भाई , खेतो की परली तरफ नहर का एक किनारा टूट गया काफी पानी भर गया है बहुत नुक्सान हो गया . किनारे की मरम्मत करने में देर हो गयी .

मैं- तू अकेला गया , मुझे बता तो सकता था न

मंगू- अकेला नहीं था उस तरफ जिनके भी खेत है सब लोग थे. तुझे इसलिए नहीं बताया की पहले ही चोट लगी है. पानी का बहाव फ़िलहाल के लिए तो रोक दिया है पर मुझे लगता नहीं की ज्यादा देर ये कोशिश कामयाब होगी , अभिमानु भाई ही मदद करेंगे अभी . मैं नहा लेता हु फिर भैया को बुलाने जाऊंगा.

मंगू के रात भर गायब होने की वजह ये थी . मैंने तस्दीक कर ली थी मंगू गाँव के और लोगो के साथ नहर के किनारे को ठीक करने में ही जुटा था . एक बार फिर से मैं घूम कर वहीँ पर आ गया था जहां से चला था . दोपहर में भाभी ने मुझसे कहा की डायन अगर मिलने को तैयार हो जाये तो वो गाँव के मंदिर में मिलना चाहेगी उस से. भाभी ने अपना दांव खेल दिया था उसने जान बुझ कर ऐसी जगह चुनी थी . पहली बार मुझे लगा की भाभी कितनी कुटिल है .



खैर उस रात को ये सुनिश्चित करने के बाद की कोई भी मेरा पीछा नहीं कर रहा मैं काले मंदिर के तालाब के पास पहुँच गया. पानी एकदम शांत था इतना शांत की जैसे तालाब था ही नहीं . सीली दिवार का सहारा लेते हुए मैं काली मंदिर की सीढिया चढ़ कर ऊपर पहुँच गया .



“माना के मेरे मुक्कद्दर में लिखे है ये अँधेरे , पर तुम क्यों अपनी राते काली करते हो ” निशा ने बिना मेरी तरफ देखे कहा. वो आज भी वैसे ही पीठ किये बैठी थी जैसा हमारी पहली मुलाकात में .

मैं- अंधियारों में तू एक जोगन और मेरा मन रमता जोगी.

निशा- जोग का रोग जो लगा बैठे न तो फिर सब से बेगाने हो जाओगे.

मैं- तू ही जाने क्या अपना क्या पराया

निशा- तू सबका तेरा कोई नहीं

मैं- तू तो है मेरी

निशा- मैं हूँ तेरी

वो हंसने लगी .

“मैं हूँ तेरी , क्या हूँ मैं तेरी मैं कुछ भी तो नहीं राख के एक ढेर के सिवा जिसे तू चिंगारी दे रहा है ” बोली वो

मैं- बस इतना जानता हूँ ये अंधियारे जितने तेरे है उतने मेरे

निशा- मत कह ऐसा . मेरी तो नियति है तू अपने उजालो से दगा मत कर

वो उठ कर मेरे पास आई . अँधेरी रात में उसकी मर्ग्नय्नी आँखे मेरे मन को टटोलने लगी.

निशा- बता क्या है मन में

मैं- बहुत कुछ , कुछ कहना है है कुछ छिपाना है .

निशा- आ बैठ पास मेरे .

निशा ने अपना सर मेरे काँधे पर रखा

मैं- आहिस्ता से, दर्द होता है .

निशा- कैसा दर्द

मैं- घाव लगा है

निशा- देखू जरा

मैं- तेरी मर्जी

निशा ने मेरा कम्बल एक तरफ किया और पट्टियों को तार तार कर दिया . उसकी सर्द सांसो ने घाव के रस्ते होते हुए दिल पर दस्तक दे दी.

निशा- कब हुआ ये

मैं- थोड़े दिन बीते

निशा- दो मिनट रुक

वो उस तरफ गयी जहाँ वो बैठी थी वापसी में एक झोला लेकर आई . उसमे से कुछ निकाला और बोली- दर्द होगा सह पायेगा .

मैं- मर्द को दर्द नहीं होता जाना

निशा- ठीक है फिर

उसने मेरे कंधे में कुछ नुकीली छुरी सा घुसा दिया और मैं लगभग चीख ही पड़ा था की उसने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- मर्द जी , ये तो शुरुआत है .

मुझे लगा की वो मेरे मांस को काट रही है . दर्द बहुत हो रहा था पर मैं कमजोर नहीं पड़ा . उसने झोले से एक शीशी निकाली और मेरे घाव के छेद में उड़ेलने लगी. मैंने महसूस किया की मेरे तन में आग लग गई हो.

पर ये तो शुरुआत थी . उसने आग जलाई और एक चाक़ू को गर्म करने लगी.

निशा- शोर मत करना . मुझे पसंद नहीं है .

मैं- क्या करने वाली है तू

निशा- जान जायेगा उसने अपनी चुनर उतारी और बोली- मुह में दबा ले .

मेरे वैसा करते ही उसने सुलगते चाकू को मेरे काँधे में धंसा दिया . उफफ्फ्फ्फ़ कसम से मर ही गया था मैं तो . निशा ने जख्म को दाग दिया था.

“बस हो गया ” उसने बेताक्लुफ्फी से कहा और कम्बल वापिस ओढा दिया मुझे .

मैं- जान लेनी थी तो वैसे ही ले लेती .

निशा- क्या करुँगी मैं इतनी सस्ती जान का

मैं- ये तेरी कमी हुई जो तूने सस्ती जान का सौदा किया

निशा- छोड़ इन बातो को मुझे मालूम हुआ कुछ परेशानी है तुझे

मैं- परेशानी तो जिन्दगी भर रहनी ही हैं .तुझे तो मालूम है की मेरी भाभी ने मेरा जीना मुश्किल किया हुआ है . उसे लगता है की गाँव में जो भी ये हो रहा है मैं कातिल हूँ

निशा- सच कहती है तेरी भाभी कातिल तो तू है

मैं- मैं कातिल हूँ ये तू समझती है वो नहीं

निशा- तो समझा उसे

मैं- मैंने उसे बताया सब कुछ बताया अब उसकी जिद है की वो तुझसे मिलेगी .

निशा-डाकन से मिल कर क्या करेगी वो

मैं- मैंने भी यही कहा उसे पर वो जिद किये हुई है

निशा- ठीक है फिर तेरी भाभी की जिद पूरी कर देती हूँ उस से कहना की तेरे कुवे पर मिलूंगी मैं उस से पर वो अकेली आयेगी.

मैं- तुझे कोई जरुरत नहीं है उसके सामने आने की

निशा- तू साथी है मेरा इन अधियारो में जब कोई नहीं था तू ही तो था . मेरी वजह से तुझे परेशानी हो . तू तकलीफ में होगा तो मैं चैन कैसे पाऊँगी . और फिर एक मुलाकात की ही तो बात है

मैं- तू समझ नहीं रही है

निशा- समझा फिर

मैं- भाभी तुझसे गाँव के मंदिर में मिलना चाहती है

मेरी बात सुन कर निशा थोड़ी देर के लिए खामोश हो गयी मैं उसके चेहरे की तरफ देखता रहा .

निशा- बस इतनी सी बात , चलो ये भी सही . भाभी से कहना की मैं उसकी हसरत जरुर पूरी करुँगी पर मेरी भी एक शर्त है की मैं उस से निखट दुपहरी में मिलने आउंगी और जब ये मुलाकात होगी तो मंदिर में उसके और मेरे सिवा कोई तीसरा नहीं होगा. यदि उस समय किसी और की आमद हुई तो फिर ठीक नहीं रहेगा

मैं- तुझे ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, मेरी वजह से तू मंदिर में कदम नहीं रखेगी .

निशा- ये तो शुरआत है दोस्त . रास्ता बड़ा लम्बा है ......

निशा ने मेरे कंधे पर सर रखा थोडा कम्बल खुद ओढा और आँखों को बंद कर लिया .........
Dekhte hai first meeting bhabhi aur Daayan madam ki
 

Abhishek Kumar98

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#45

आँख खुली तो मैंने खुद को काली मंदिर में पड़े हुए पाया. भोर हो चुकी थी पर धुंध पसरी हुई थी . मैं घर आया आते ही मैंने भाभी को सारी बात बता दी की दोपहर में निशा उस से मिलेगी तय स्थान पर . मैं कुछ खाने के लिए चाची के घर में घुसा ही था की चंपा मिल गयी मुझे

चंपा- कहाँ गायब था तू

मैं- तू तो पूछ ही मत,

चंपा- मैं नहीं तो और कौन पूछेगी .

मैं- मैं पूछने का हक़ खो दिया है तूने , तूने मुझसे झूठ बोला .

चंपा- भला मैं क्यों झूठ बोलने लगी तुझसे

मैं- तो फिर बता उस रात तू घर से बाहर क्या कर रही थी .

चंपा- बताया तो सही

मैं- मुझे सच जानना है , हर बात का दोष मंगू पर नहीं डाल सकती तू

मेरी बात सुन कर चंपा खामोश हो गयी .

मैं- दरअसल दोष तेरा नहीं है दोष मेरा है जो मैं इस काबिल नहीं बन पाया की तू अपना मन खोल सके मेरे आगे. कोई नहीं मैं नहीं पूछता

मैंने कहा और रसोई की तरफ चल दिया. चंपा की ख़ामोशी मेरा दिल तोड़ रही थी . इस सवाल का जवाब मुझे ही तलाशना था .

खैर, अब इंतज़ार दोपहर का था मैंने व्यवस्था कर ली थी की छिप कर दोनों में क्या बात हुई सुन सकू. भाभी चूँकि, राय साब के परिवार की बहु थी मंदिर खाली करवाना उसके लिए कोई बड़ी बात थोड़ी न थी . तय समय पर भाभी मंदिर में पहुँच गयी . थोड़ी देर बीती, फिर और देर हुई और देर होती गयी . भाभी को भी अब खीज होने लगी थी . और मैं भी निशा के न आने से परेशां हो गया था .



“मैं जानती थी कोई नहीं आने वाला ” भाभी ने खुद से कहा .



तभी मंदिर के बाहर लगा घंटा जोर से गूँज उठा . अचानक से ही मेरी धडकने बढ़ सी गयी .मैंने देखा निशा सीढिय चढ़ कर उस तरफ आ रही थी जहा भाभी खड़ी थी . सफ़ेद घाघरा-चोली में निशा सर्दियों की खिली धुप सी जगमगा रही थी . माथे से होते हुए गालो को चूमती उसकी लटे अंधेरो में मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था . उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था . ना सुख की शान न दुःख की फ़िक्र.

कोई और लम्हा होता तो मैं थाम लेता उसके हाथ को अपनेहाथ में . निशा किसी बिजली सी भाभी के नजदीक से निकली और माता की प्रतिमा के पास जाकर बैठ गयी .

“ ए लड़की किसी ने तुझे बताया नहीं की मंदिर में प्रवेश को हमने मना किया है थोड़े समय बाद आना तू ” भाभी ने कहा



“मैंने सुना है ये इश्वर का घर है और इश्वर के घर में कोई कभी भी आ जा सकता है ” निशा ने बिना भाभी की तरफ देखे कहा

भाभी- कोई और दिन होता तो मैं सहमत होती तुझसे पर आज मेरा कोई काम है तू बाद में आना

निशा- हमारे ही दीदार को तरफ रही थी आँखे तुम्हारी और हम ही से पर्दा करने को कह रही हो तुम

जैसे ही निशा ने ये कहा भाभी की आँखे हैरत से फ़ैल गयी .

“तो.... तो...... तो तुम हो वो ” भाभी बस इतना बोल पायी

निशा- तुम्हे क्या लगा , और किस्मे इतनी हिम्मत होगी की राय साहब की बहु के फरमान के बाद भी यहाँ पैर रखेगा.

भाभी ने ऊपर से निचे तक निशा का अवलोकन किया

निशा- अच्छी तरह से देख लो. मैं ही हूँ

भाभी- पर तुम ऐसी कैसे हो सकती हो

निशा- तुम ही बताओ फिर मैं कैसी हो सकती हूँ

भाभी के पास कोई जवाब नहीं था निशा की बात का .

निशा- तुमने कभी इसे भी साक्षात् नहीं देखा फिर भी इस पत्थर की मूर्त को तू पूजती है न मानती है न जब तू इसके रूप पर कोई सवाल नहीं करती तो मेरे रूप पर आपति कैसी . खैर मुद्दा ये नहीं है मुद्दा ये है की तुम क्यों मिलना चाहती थी मुझसे. आखिर ऐसी क्या वजह थी जो मुझे इन उजालो में आना पड़ा

भाभी- वजह थी , वजह है. वजह है कबीर. तुम ने न जाने क्या कर दिया है कबीर पर . वो पहले जैसा नहीं रहा .

निशा- वक्त सब को बदल देता है इसमें दोष समय का है मेरा क्या कसूर

भाभी- जब से कबीर तुझ से मिला है, वो पहले जैसा नहीं रहा . उसे तलब लगी है रक्त की , कितनी ही बार उसे पकड़ा गया है उन हालातो में जहाँ उसे बिलकुल भी नहीं होना चाहिए . ये उस पर तेरा सुरूर नहीं तो और क्या है.

निशा के चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गयी .

निशा- तो फिर रोक लो न उसे, मुझसे तो वो कुछ समय पहले मिला है तेरे साथ तो वो बचपन से रहा है . क्या तेरा हक़ इतना कमजोर हो गया ठकुराइन .

निशा की बात भाभी को बड़ी जोर से चुभी .

भाभी- दाद देती हूँ इस गुस्ताखी की ये जानते हुए भी की तू कहाँ खड़ी है

निशा- समझना तो तुम्हे चाहिए . जब तुमने यहाँ मिलने की शर्त राखी थी मैं तभी तुम्हारे मन के खोट को जान गयी थी पर देख लो मैं यहाँ खड़ी हु.

भाभी- यही तो एक डाकन का यहाँ होना अनोखा है

निशा- मुझे हमेशा से इंसानों की बुद्धिमता पर शक रहा है . तुम्हे देख कर और पुख्ता हो गया .

निशा ने जैसे भाभी का मजाक ही उड़ाया

निशा- जानती है तेरा देवर क्यों साथ है मेरे. क्योंकि उसका मन पवित्र है उसने मेरी हकीकत जानने के बाद भी मुझसे घृणा नहीं की. उसे मुझसे कोई डर नहीं है जैसा वो तेरे साथ है वैसे ही मेरे साथ . वो उस पहली मुलाकात से जानता था की मैं डाकन हु. न जाने वो मुझमे क्या देखता है पर मैं उसमे एक सच्चा इन्सान देखती हूँ . तुझे तो अभिमान होना चाहिए तेरी परवरिश पर , पर तू न जाने किस भाव से ग्रसित है

भाभी- मैं अपनी परवरिश को संभाल लुंगी . तुझसे मैं इतना चाहती हूँ तू कबीर को अपने चंगुल से आजाद कर . कुछ ऐसा कर की वो भूल जाये की कभी तुझसे मिला भी था वो . बदले में तुझे जो चाहिए वो दूंगी मैं तू चाहे जो मांग ले .

भाभी की बात सुन कर निशा जोर जोर से हंसने लगी. उसकी हंसी मंदिर में गूंजने लगी .

निशा- क्या ही देगी तू मुझे . हैं ही क्या तेरे पास देने को. ठकुराइन , मै अच्छी तरह से जानती हूँ एक डाकन और इन्सान का कोई मेल नहीं . मैं अपनी सीमाए समझती हूँ और तेरा देवर अपनी हदे जानता है . तू उसकी नेकी पर शक मत कर . ये दुनिया इस पत्थर की मूर्त को पुजती है वो तुझे पूजता है . इसके बराबर का दर्जा है उसके मन में तेरा .



भाभी- फिर भी मैं चाहती हूँ की तू उसकी जिन्दगी से निकल जा. दूर हो जा उस से.

निशा- इस पर मेरा कोई जोर नहीं ये नियति के हाथ में है

भाभी- कबीर की नियति मैं लिखूंगी

निशा- कर ले कोशिश कौन रोक रहा है तुझे.

भाभी- तू देखेगी, मैं देखूंगी और ये सारी दुनिया देखेगी .

निशा- फ़िलहाल तो मुझे तेरी झुंझलाहट दिख रही है ठकुराइन

भाभी- मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले डाकन

निशा- मुद्दत हुई मेरा सब्र टूटे तेरी अगर यही जिद है तो तू भी कर ले अपने मन की , मुझे चुनोती देने का अंजाम भी समझ लेना . डायन एक घर छोडती है वो घर कबीर का था ........... सुन रही है न तू वो घर कबीर का था .

भाभी- मुझे चाहे को करना पड़े. एक से एक तांत्रिक, ओझा बुला लाऊंगी . पर इस गाँव और मेरे देवर पर आये संकट को जड से उखाड़ फेंकुंगी मैं


निशा- मैं इंतज़ार करुँगी .और तुम दुआ करना की दुबारा मुझे अंधेरो से इन उजालो की राह न देखनी पड़े................
Ye toh bahut jabardast update hai bhai aisa lag raha hai do ledies ek ladke ke liye lad rahi hai
 

Abhishek Kumar98

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#46

मैं जानता था की दोनों के बीच जो भी हुआ है मंदिर में वो आने वाले वक्त में मेरे लिए मुश्किलें पैदा करेगा. वहां से मैं सीधा नहर पर पहुंचा जहाँ भैया पहले से मोजूद थे और टूटे हिस्से की पक्की मरम्मत करवा रहे थे. मैंने पाया की मेरी सब्जियों में पानी भर गया था . सरसों भी नुक्सान में थी . मेरी आँखों में आंसू भर आये. किसान की मेहनत उसकी फसल होती है जो उसके सपने पूरी करती है . और हमारी फसल फिलहाल तो बर्बाद ही समझो .

गुस्सा था पर किस पर जोर चलाते . मैं खड़ा खड़ा सोच रहा था की अब क्या करेंगे की भैया को देखा मेरी तरफ आते हुए .

भैया- क्या सोच रहा है छोटे

मैं- अपनी बर्बादी देख रहा हूँ

भैया- दिल छोटा मत. सब ठीक होगा

मैं- उम्मीद कर सकता हूँ पर एक बात समझ नहीं आई की अचानक से नहर टूटी कैसे.

भैया- मैं भी यही सोच रहा हूँ . फिलहाल पानी सूखने का इंतज़ार करते है . सुबह से काम करते करते अकड़ हो गयी है पीठ में तू चल रहा है या रुकेगा .

मैं- यही रहूँगा

भैया के जाने के बाद मैंने चारपाई निकाली और उस पर लेट गया. मन में अजीब ख्याल आ रहे थे . आँख खुली तो आसमान में काला अँधेरा छाया हुआ था .झींगुरो की आवाजे आ रही थी . मैंने ठण्ड महसूस की देखा की मैं बिना किसी कम्बल, रजाई के ही सोया हुआ था . उठ कर मैंने मुह धोया . और वहां से चल दिया.

चलते चलते मैं दोराहे पर पहुंचा जहाँ से एक रास्ता निशा की तरफ जाता था और एक गाँव की तरफ . कायदे से मुझे गाँव जाना चाहिए था पर मेरे पैर काले मंदिर की तरफ बढ़ गए. घने पेड़ो- झाड़ियो के बीच उस ठिकाने को पहली नजर में देखना अपने आप में अनोखा ही था . ऊपर से आज अँधेरा भी कुछ ज्यादा ही था .

खैर, जब मैं वहां पहुंचा तो देखा की आंच जल रही थी निशा मांस के टुकड़े भून रही थी . मुझे देख कर उसने पास आने का इशारा किया

निशा- सही समय पर आया तू, ताजा खरगोश का मजा ले

मैं- रहने दे .

निशा- बैठ तो सही .

निशा ने कुछ टुकड़े मुझे दिए मैंने एक दो मुह में भर लिए

निशा- कच्चे कलेजे का तो मजा ही अलग है

मैं- क्या बात हुई आज भाभी से

मैंने निशा के मन को टटोला

निशा- कुछ नहीं .तेरी भाभी चाहती है की मैं तेरा साथ छोड़ दू.

मैं- तूने क्या कहा फिर

निशा- मैं क्या कहती , मैंने कभी किया ही नहीं तेरा साथ .

मैं- अच्छा जी . तो तेरे मेरे बीच कुछ नहीं है

निशा- एक डाकन और मानस के बीच क्या कुछ हो सकता है कबीर

मैं- कम से कम हम दोस्त तो है

निशा- दोस्त.... मैं बहुत सोचती हूँ इस बारे में .

मैं- और तेरी सोच क्या कहती है

निशा- कबीर. वैसे तेरी भाभी सच ही तो कहती है तेरी मेरी दोस्ती कैसे हो .

मैं- ये तो नसीब जाने अपना . तू मिली मैं मिला सिलसिला हुआ मुलाकातों का

निशा- यही तो सोचती हूँ की तुझे अब दूर कैसे करू

मैं- दूर करने की जरूरत नहीं

निशा- पास भी तो नहीं आ सकती

मैं-शायद तक़दीर ने हमारे भाग में यही लिखा हो. उसका शायद यही इशारा हो .

निशा- हम दोनों की सीमाए है . और फिर ये जो नज्दिकिया बढ़ रही है न ये हानिकारक साबित होंगी हम दोनों के लिए . मन बड़ा चंचल होता है कबीर, मन तमाम दुखो का कारण है . मैं मेरी तनहइयो में तुझे सोचती हूँ . तू मेरा ख्याल करता होगा. जिस तरह से हम एक दुसरे की परवाह करने लगे है मुझे डर है कबीर.

मैं- कैसा डर

निशा- यही की एक दिन तू मेरे सामने आकर खड़ा हो जायेगा कहेगा की तू इस डाकन से प्रेम करने लगा है .

निशा ने जब ये कहा तो मेरा दिल किया की आज अभी मैं उसे बता दू की मैं करने लगा हूँ प्रेम उस से

मैं- तब की तब देखेंगे निशा

निशा- ये वक्त अपनी स्याही से न जाने क्या लिख रहा है पर इतना जानती हूँ की आने वाले तूफान को रोकना होगा.

मैं- तू खुद को मुझसे जुदा नहीं कर सकती मैं करने ही नहीं दूंगा

निशा- तू समझ तो सही

मैं- तू समझ निशा, ये आंच जो तेरे मेरे दरमियान जल रही है . कहते है अग्नि से पवित्र कुछ नहीं मैं इसे ही साक्षी मान कर कहता हूँ कोई भी , ये दुनिया ये नियम मुझे तुझसे जुदा नहीं कर पायेंगे. जब तक तू मेरा हाथ थामे रहेगी मैं लड़ जाऊंगा इस ज़माने से . कितने ही पहरे लगे तेरा मेरा रिश्ता और गहरा होता जायेगा.

निशा- तू समझता क्यों नहीं तेरा मेरा साथ असंभव है

मैं- तू वो ही निशा है न जो भाभी के सामने इतनी बड़ी बड़ी बाते कर रही थी मेरे लिए तो फिर मेरे सामने इस सच को क्यों नहीं मानती

निशा- क्योंकि मैं उस पथ पर नहीं चल पाउंगी जिसकी मंजिल के तू सपने संजो रहा है .

मैं- तो मत सोच इस बारे में . दोस्त है दोस्ती का हक़ तो दे मुझे कभी तेरा दिल मोहब्बत के लिए धडके तो बताना वर्ना नसीब के सहारे तो है ही

मेरी बात सुन कर निशा मुस्कुरा पड़ी.

निशा- एक डाकन से मोहब्बत करने की सोच रहा है तू .

मैंने निशा की कमर में हाथ डाला और उसको अपने सीने से लगा लिया.

“मोहब्बत करने लगा हूँ तुझसे ” मैंने कहा और अपने होंठ निशा के लबो पर रख दिए.

“छोड़, छोड़ मुझे ” पहली बार मैंने निशा की आवाज को लरजते हुए महसूस किया .

निशा- मत दिखा मुझे ये सपने . रहने दे मुझे इन अंधियारों में . इस डाकन , इस जोगन के लिए कोई मायने नहीं है इन सपनो के

मैं- मैं कोई सपना नहीं हूँ जाना, मैं वो हकीकत हूँ जो तू देख रही है .

निशा- मैं आज के बाद नहीं आउंगी यहाँ पर छोड़ जाउंगी इस जगह को

मैं- बिलकुल ऐसा कर सकती है तू , पर जहाँ भी जायेगी मेरे दिल का एक हिस्सा अपने साथ ले जाएगी . तू मुझे अपनी नजरो से दूर कर सकती है पर मेरे ख्याल को कैसे निकालेगी अपने दिल से . मैं हर पल तुझे याद आऊंगा.

निशा- यही तो मैं नहीं चाहती. तू मुझसे वादा कर की बस दोस्ती ही रहेगी मोहब्बत नहीं होगी .

मैं- मोहब्बत हो चुकी है जाना, तुझसे मोहब्बत हो चुकी है .

निशा- मैं इस लायक नहीं हूँ . मैं नहीं चल पाऊँगी तेरे साथ इस सफ़र पर .

निशा ने मेरे माथे को चूमा . उसकी आँखों से कुछ आंसू मेरे चेहरे पर गिरे.

निशा ने मेरे जख्म को देखा और बोली- आज अमावस की रात है , कल से चांदनी शुरू होगी . कुछ दिन बड़े मुश्किल होंगे और पूनम के चाँद को तू यहाँ आ जाना पूरी रात यही रहना रात मुश्किल होगी पर बीत जायेगी. जब जोर न चले तो इस तालाब का आसरा लेना . पर इस हद में ही रहना . एक खूबसूरत ख्वाब समझ कर भुला देना मुझे.

निशा ने आंच बुझाई और बोली- मुझे जाना होगा कबीर.

मैं- तू छोड़ कर जा रही है मुझे

निशा- जाना पड़ेगा मेरे दोस्त

मैंने दौड़ कर निशा को गले लगा लिया. मैं रोने लगा . वो आहिस्ता से मेरे आगोश से निकल गयी .

निशा- ये ठिकाना तेरे हवाले छोड़ कर जा रही हूँ . देख करना इसकी

मैं- मत जा

वो मुड़ी , मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और अंधेरो की तरफ बढ़ गयी . बहुत देर तक मैं वही बैठे रहा और जब मैं वापिस गाँव के लिए चला तो दिल का एक टुकड़ा कम सा लगा मुझे.
Bhai es update ne toh rula Diya sach me bahut emotional update hai
 
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Abhishek Kumar98

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जब भाभी का दिल भर गया तो उन्होंने बेल्ट फेक दी और मुझे अपने सीने से लगा कर रोने लगी. रोती ही रही. जिन्दगी में पहली बार मैंने भाभी की आँखों में आंसू देखे.

भाभी- किस मिटटी का बना है तू

मैं- तुम जानो तुम्हारी ही परवरिश है

भाभी- इसलिए तो मैं डरती हूँ . तेरी नेकी ही तेरे जी का जंजाल बनेगी

मैं- जब जानती हो तो फिर क्यों करती हो ये सब

भाभी- क्योंकि तू झूठ पे झूठ बोलता है . तू ही कहता है न की मैं भाभी नहीं माँ हु तेरी और तू उसी माँ से झूठ बोलता है . तू नहीं जानता तू किस चक्रव्यूह में उलझता जा रहा है . तू सोचता है की तू जो कर रहा है भाभी को क्या ही खबर होगी. मैं तुझे समझाते हुए थक गयी की नेकी अपनी जगह होती है और चुतियापा अपनी जगह .

मैं-काश आप मुझे समझ सकती

भाभी- मैं तुझसे समझ सकती . अरे गधे , होश कर . खुली आँखों से देख दुनिया को. तुझे क्या लगता है भाभी पागल है जो तेरे पीछे पड़ी है . तू जो भी कर रहा है सब कुछ जानती हूँ मैं . सब कुछ . जो राह तूने चुनी है उस पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा धोखे के सिवाय. जो भी रिस्तो के दामन तू थाम रहा है सब झूठे है . मक्कारी का चोला है सब के चेहरे पर यही तो तुझे समझाने की कोशिश कर रही हु मैं.

मैं- मैं बस अपनी दोस्ती का फर्ज निभा रहा हूँ

भाभी- फर्ज निभाने का मतलब ये नहीं की आँखों पर पट्टी बाँध ली जाये.

मैं- मतलब

भाभी- जिसके लिए तूने इतना बड़ा कदम उठा लिया. मुझसे तक तू झूठ बोला जिसके पाप का बोझ अपने सर पर तूने उठा लिया उस से जाकर एक बार ये तो पूछ की किसका है वो .

मैं- मुझे जरूरत नहीं मैं उसे और शर्मिंदा नहीं करना चाहता

भाभी- य क्यों नहीं कहता की तुझमे हिम्मत नहीं है तू उस सच का हिस्सा तो बनना चाहता है पर जानना नहीं चाहता उस सच को .

मैं- तुम जानती हो न सब कुछ बता दो फिर.

भाभी- जानता है पीठ पीछे ये दुनिया मुझे बाँझ कहती है . पर मैंने कभी बुरा नहीं माना क्योंकि अभिमानु कहता है कबीर इस आँगन में है तो हमें औलाद की क्या जरूरत . तू कभी नहीं समझ पायेगा मुझे कितनी फ़िक्र है तेरी. पराई लाली के लिए जब तुझे गाँव से लड़ते देखा तो तेरे मन के बिद्रोह को मैंने पहचान लिया था . उसी पल से मैं हर रोज डरती हूँ , मैं जानती हूँ तुझे . तुझ पर बंदिशे इसलिए ही लगाई क्योंकि मुझे डर है की तू किसी का हाथ अगर थाम लेगा तो छोड़ेगा नहीं और फिर वो घडी आएगी जो मैंने उस दिन देखि थी . अपने बच्चे को उस हाल में कौन देख पायेगी तू ही बता.

मैं खामोश रहा

भाभी- तूने एक बार भी चंपा से नहीं पूछा की उसके बच्चे का बाप कौन है . ये तेरी महानता है पर तुझे मालूम होना चाहिए . तू हिम्मत नहीं करेगा उस से पूछने की , उसे रुसवा करने की पर इतना तो समझ की दोस्ती का मान तभी होता है जब वो दोनों तरफ से निभाई जाए.

मैं- तुम तो सब जानती हो तो फिर तुम ही बता दो न कौन है वो सक्श

भाभी ने एक गहरी साँस ली और बोली- राय साहब

भाभी ने जब ये कहा तो हम दोनों के बीच गहरी ख़ामोशी छा गयी . ये एक ऐसा नाम था जिस पर इतना बड़ा इल्जाम लगाने के लिए लोहे का कलेजा चाहिए था .और इल्जाम भी ऐसा था की कोई और सुन ले तो कहने वाले का मुह नोच ले.

मैं- होश में तो हो न भाभी

भाभी- समय आ गया है की तू होश में आ कबीर और आँखे खोल कर देख इस दुनिया को. जानती हु परम पूजनीय पिताजी पर इस आरोप को सुन कर तुझे गुस्सा आएगा पर मैं तुझे वो काला सच बता रही हूँ जो इस घर के उजालो में दबा पड़ा है .

मैं- मैं नहीं मानता . तुम झूठ कह रही हो .

भाभी- ठीक है फिर तुम्हारे और चाची के बीच जो रिश्ता आगे बढ़ गया है कहो की वो भी झूठ है .

भाभी ने एक पल में मुझे नंगा कर दिया . भाभी मेरे और चाची के अवैध संबंधो के बारे में जानती थी .

मै चुप रहा . कुछ कहने का फायदा नहीं था .

भाभी- कहो की जो मैं कह रही हूँ झूठ है .

मैं सामने खिड़की से बाहर देखने लगा.

भाभी- मैंने तुमसे इस बारे में कोई सवाल नहीं किया क्योंकि चाची की परवाह है तुम्हे पर वकत है की तुम्हे अब फर्क करना सीखना होगा.

मैं- राय साहब बेटी समझते है चंपा को

भाभी- तू जाकर पूछ चंपा से तेरी दोस्ती की कसम दे उसे . तुझे जवाब मिल जायेगा

मैं- क्या चाची के भी पिताजी से ऐसे सम्बन्ध है

भाभी- ये चाची से क्यों नहीं पूछते तुम

मैं- मेरे सर पर हाथ रख कर कहो ये बात तुम भाभी

भाभी मेरे पास आई और बोली- तू रातो के अंधेरो में भटकता है एक बार इस घर के अंधेरो में देख तुझे उजालो से नफरत हो जाएगी.

मैं- और निशा, उसका क्या तुम्हारी वजह से वो छोड़ गयी मुझे

भाभी- उसे जाना था . वो जानती है एक डाकन और तेरा कोई मेल नहीं

मैं- जी नहीं पाऊंगा उसके बिना

भाभी- तो फिर मरने की आदत डाल ले.

मैं- मोहब्बत की है मैंने निशा से उसे भूल जाऊ ये हो नहीं सकता .

भाभी- दुनिया में कितनी हसीना है . एक से बढ़ कर एक तू किसी पर भी ऊँगली रख मैं सुबह से पहले तेरे फेरे करवा दूंगी.

मैं- तुम समझ नहीं रही हो भाभी . तुम समझ सकती ही नहीं भाभी

भाभी- मैं समझना चाहती ही नहीं क्योंकि मुझमे इतनी शक्ति नहीं है की अपने बच्चे को ज़माने से लड़ते देखू.

भाभी उठ कर चली गयी मेरे मन में ऐसा तूफान छोड़ गयी जो आने वाले समय में सब कुछ बर्बाद करने वाला था . सारी दुनिया के लिए पूजनीय, सम्मानीय मेरा बाप अपनी बेटी की उम्र की लड़की को पेल रहा था . पर सवाल ये था की अगर चंपा को राय साहब ने गर्भवती किया था तो फिर वो पिताजी से मदद क्यों नहीं मांगी .....................कुछ तो गड़बड़ थी .
Mujhe laga hi tha ki Champa ke bachhe ka baap ya toh Abhimanyu hai ya Ray Saahaw
 

Abhishek Kumar98

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#74

सामने भैया खड़े थे .

मैं- आप यहाँ कैसे

भैया- हमारे ही कमरे में हमसे ही ये सवाल. अजीब बदतमीजी है छोटे

मैं- मेरा वो मतलब नहीं था भैया . मैं बस ........

भैया- कोई बात नहीं , वैसे भी यहाँ कुछ खास नहीं पुराना कबाड़ ही पड़ा है . रात बहुत हुई चाहो तो दिन में आराम से देख सकते हो इसे.

मैंने हां में सर हिलाया और बाहर आ गया. चाची के पास गया तो देखा की चंपा सोयी पड़ी थी वहां . मैंने कम्बल ओढा और कुवे पर जाने का सोचा. बाहर गली में आते ही देखा की भाभी छजे पर खड़ी थी बल्ब की रौशनी में उनकी नजर मुझ पर पड़ी. दोनों ने एक दुसरे को देखा और मैं अपने रस्ते बढ़ गया ये सोचते हुए की इतनी रात को भी जागती रहती है ये. कोचवान के घर के सामने से गुजरते हुए मैंने देखा की सरला का दरवाजा खुला है . इतनी रात को दरवाजा क्यों खुला है मैंने सोचा और मेरे कदम उसके घर की तरफ हो लिए.

मैंने अन्दर जाकर देखा सरला जागी हुई थी .

मैं- इधर से गुजर रहा था देखा दरवाजा खुला है तो चिंता हुई

सरला- तुम्हारे लिए ही खुला छोड़ा था कुंवर.

मैं- मेरे लिए पर क्यों

सरला- जानती थी तुम जरुर आओगे.

मैं- कैसे जानती थी .

सरला- औरत हूँ . औरत की नजरे सब पहचान लेती है . वो अधूरी बात जो होंठो तक आकर रुक गयी थी पढ़ ली थी मैंने.

मैं- तुम गलत सोच रही हो भाभी दरवाजा खुला देख कर चिंता हुई तो आ गया.

सरला- इतनी रात को एक अकेली औरत की चिंता करना बड़ा साहसिक काम है कुंवर.

मैं क्या ही कहता उसे .

मैं- तुम कुछ भी कह सकती हो भाभी . पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था

सरला मेरे पास आई और बोली- इरादा नहीं था तो फिर इन पर नजरे क्यों टिकी है तुम्हारी

उसने अपनी छातियो पर हाथ रखते हुए कहा.

मैं- अन्दर से कुण्डी लगा लो . मैं चलता हूँ

तभी सरला ने मेरा हाथ पकड़ लिया.

मैं- जाने दे मुझे , बहक गया तो फिर रोक नहीं पाऊंगा खुद को . ये रात का अँधेरा तो बीत जायेगा उजालो में तेरा गुनेहगार होना अच्छा नहीं लगेगा मुझे. तूने कहा था न की ठाकुरों को कौन मना करे. तू मना कर मुझे.

सरला- तो फिर रुक जाओ यही ये भी तो तुम्हारा ही घर है

मैं- घर तो है पर ..............

सरला- पर क्या....

इस से पहले की वो और कुछ कहती मैंने आगे बढ़ कर अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए और उसने चूमने लगा. उसने खुद को मेरे हवाले कर दिया और हम दोनों एक दुसरे के होंठ खाने लगे. मेरे हाथ उसके ठोस नितम्बो पर कस गए. मैंने महसूस किया की सरला की गांड चाची से बड़ी थी . सरला के होंठ थोडा सा खुले और हमारी जीभ एक दुसरे से रगड़ खाने लगी. उत्तेजना का ऐसा अहसास की तन जल उठा मेरा.

धक्का देकर मैंने उसे बिस्तर पर गिराया और दरवाजे की कुण्डी लगा दी. कमरे में हम दोनों थे और मचलते अरमान हमारे.

मैंने उसके लहंगे को ऊपर उठाया और पेट तक कर दिया. गोरी जांघो के बीच काले बालो से ढकी हुई सरला की चूत जिसकी फांके एक दुसरे से चिपकी हुई थी . मेरा जी ललचा गया उसकी चूत देख कर . मैंने उसकी टांगो को विपरीत दिशाओ में फैलाया और अपने होंठ उसकी चूत पर लगा दिए.

मैंने अपने होंठो को इस कद्र जलता महसूस किया की किसी ने दहकते हुए अंगारे रख दिए हो.

“सीईई ” चूत को चुमते ही सरला मचल उठी. मैंने देखा उसने अपनी चोली उतार कर फेंक दी और अपने हाथो से मेरे सर को थाम लिया. मैं उसकी चूत को चूसने लगा. बस दो मिनट में ही सरला के चुतड खुद ऊपर उठ गये . उसके होंठ आहों को रोकने में नाकाम होने लगे थे.



चाची के बाद जीवन में ये दूसरी औरत थी जो इतनी हद गदराई हुई थी .

“आह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ” चंपा ने अपनी छातियो को भींचते हुए आह भरी. मैंने अपने कपडे उतारे और अपने लंड को उसकी थूक से सनी चूत पर लगाते हुए धक्का मारा. सरला की आँखे गुलाबी डोरों के बोझ से बंद होने लगी. दो धक्के और मारे मैंने और पूरा लंड अन्दर सरका दिया. सरला ने अपने पैर उठा कर मेरी कमर पर लपेट दिए और चुदाई का मजा लेने लगी.

सरला को पेलने में मजा बहुत आ रहा था , सरला को चुदाई का ज्ञान बहुत था मैं महसूस कर रहा था . जिस तरीके से वो सम्भोग का लुत्फ़ उठा रही थी मैं कायल हो गया था उसकी कला का.

“आह छोटे ठाकुर , aaahhhhhhhhh ”सरला के होंठो से जब ये आह फूटी तो मेरा ध्यान चुदाई से हट गया क्या मैंने ठीक ठीक सुना था . विचारो में बस एक पल ही खोया था की सरला ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए और झड़ने लगी. उसने मुझे ऐसे कस लिया की मैं भी खुदको रोक नहीं पाया और उसके कामरस में मेरा वीर्य मिलने लगा.

चुदाई के बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं लेटे लेटे सोचने लगा उस आह के बारे में .

बाहर से आते ही वो एक बार फिर मुझसे लिपट गयी और मैंने रजाई हम दोनों के ऊपर डाल ली. सरला का हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया . उस से खेलने लगी वो . मैंने उसे टेढ़ा किया और उसके मजबूत नितम्बो को सहलाने लगा.

मैं- बहुत जबरदस्त गांड है तेरी

सरला- तुम भी कम नहीं हो

मैं- ये ठीक नहीं हुआ

सरला- ये मेरी इच्छा थी कुंवर. जब से तुम को मूतते देखा मैंने मैं तभी से इसे अपने अन्दर लेना चाहती थी

मैं- पर इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा

सरला- ये तो निभाने वाले की नियत पर निर्भर करता है .दोनों तरफ से वफा रहेगी तो चलता रहेगा वर्ना डोर टूट जाएगी.

“सो तो है ” मैंने सरला की गांड के छेद को सहलाते हुए कहा

मैं उस से पूछना चाहता था पर मेरे तने हुए लंड ने गुस्ताखी कर दी और एक बार फिर मैं सरला के साथ चुदाई के सागर में गोते लगाने लगा.

सुबह जब मैं उसके घर से निकला तो मुझे पक्का यकीन था की रमा-कविता की चुदाई में तीसरी हिस्सेदार सरला थी ...... रमा के पति का मरना फिर सरला के पति का मरना कोई तो गहरी बात जरुर थी ......................
Bahut jabardast chudayi kari maja aa gaya
 

Abhishek Kumar98

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#75

फिर मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की आसमान बादलो से भरा था . हवाए जोरो से चल रही थी. एक रात में मौसम का अचानक बदलना ठीक नहीं था फिर ख्याल आया की मेरी तो फसल वैसे ही बर्बाद हो गयी थी इस बारी. बाहर आकर मैंने नज़ारे का आनंद लिया. काली घटाओ से आसमान गुलजार था . लगता था की बस अब बारिश पड़ी. दिन को जैसे रात ने घेर लिया था .

“क्या देख रहे हो ” भाभी ने मेरी तरफ चाय का प्याला बढाते हुए कहा.

मैं- ऐसा लगता है की जैसे वो मुझसे मिलने आ रही हो. ये हवाए कह रही है की आज मुलाकात होगी .

मैंने भाभी को छेड़ा

भाभी- तुम्हे बर्बाद होना है तुम होकर रहोगे.

मैं- वो मेरी नियति देख लेगी. फ़िलहाल तो मुझे इस नजारे को देखना है

भाभी- कल रात कहा गए थे तुम

मैं- उसी के पास . मेरी हर रात अब उसके साथ ही गुजरेगी

भाभी- तुम तो नादान हो कम से कम उसे तो समझना चाहिए

मैं- नादाँ तो कभी आप भी रही होंगे . आपने अपनी मोहब्बत के लिए सब कुछ सहा और फिर मैं तो आपकी परवरिश हूँ मैं न जाने क्या कर जाऊंगा वैसे भी दीवानों को कहाँ ये बाते समझ आती है आप तो जानती है न

भाभी- जानती हूँ इसलिए तो कह रही हूँ. बारूद के ढेर पर बैठ कर चिनगारियो को हवा नहीं देते.

मैं- जानती होती तो कहती देवर उसे ले आ इस घर की छोटी बहु बना कर

भाभी- जो हो नहीं पायेगा उसका ख्याल भी क्या करना.

मैं -जाने दो फिर. मुझे जीने दो मेरे ख्यालो में जब तक उसका साथ है इस खूबसूरत दौर को जी भर कर जीना चाहता हूँ मैं .

भाभी- पर मैं तुझे मरते हुए नहीं देख पाउंगी

मैं- नियति का लिखा कौन बदल सकता है

भाभी ने गुस्से से देखा और पैर पटकते हुए चल पड़ी. नासाज मौसम की वजह से मैंने नहाने का विचार किया ही नहीं और खाना खाने के बाद फिर से उसी कमरे में पहुँच गया . पर निराशा ही हाथ लगी भैया ने वो तस्वीर हटा दी थी वहां से. कुछ तो जरुर था उस तस्वीर में . वो तस्वीर भैया के अतीत को जानने की चाबी लगी मुझे.



साइकिल उठाई और मैं निकल गया खेतो की तरफ. ऐसे गदराये मौसम में घुमने का अपना ही सुख था. घूमते घूमते मैं मोड़ पर पहुंचा जहा से एक रास्ता कुवे पर दूजा जंगल की तरफ जाता था . मन किया की रमा से मिल लिया जाये आधी दुरी तय की थी की मैंने कच्ची सडक के बीचो बिच एक गाड़ी खड़ी देखि , जिसके दरवाजे खुले हुए थे. ऐसे कौन खुली गाड़ी छोड़ कर जायेगा. मैंने साइकिल खड़ी की और गाड़ी को देखने लगा.



“कुछ नहीं मिलेगा तुम्हे चुराने को ” आवाज की तरफ मैंने पलट कर देखा . थोड़ी दुरी पर एक औरत थी जो हाथो में किताब लिए हुए थी. चेहरे पर झूलती लटे. आँखों पर चश्मा बहुत ही खूबसूरत थी वो .

मैं- चोर समझा है क्या .

औरत- दुसरो के सामान की बिना परमिशन कौन जांच करता है फिर.

उसकी भाषा से मैं समझ गया की ये शहरी मेंम है . क्या यही रुडा की बेटी है मैंने खुद से सवाल किया .

वो- ऐसे क्या देख रहे हो .

मैं- आप रुडा की बेटी है न

मैंने पक्का करने के लिए सवाल किया .

उसने किताब निचे रखी और बोली- बदकिस्मती से.

मैं- बड़ी शिद्दत से मैं आपसे मिलना चाहता था .

उसने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोली- मुझसे पर क्यों मैं तो तुमको जानती भी नहीं.

मैं- अभिमानु ठाकुर को तो जानती हो उनका छोटा भाई हूँ मैं

उसने फिर से देखा मुझे और बोली- क्यों मिलना चाहते थे मुझसे

मैं- बस ये पूछना था की भैया और आप एक दुसरे से प्यार करते थे क्या .

उसने अपना चस्मा उतारा और बोली- पहले मुझे बताओ की तुम प्यार को कैसे समझते हो .

मैं- नहीं जानता

वो- तो फिर प्रश्न मत पूछो

मैं- मेरी दुविधा ही ऐसी है . मैं अतीत को तलाश रहा हूँ क्योंकि मेरा वर्तमान उलझ रहा है उसकी वजह से .

वो- मैं अभिमानु से कभी प्यार नहीं करती थी . पर जब तुम इस सवाल तक पहुँच गए हो तो यकीनन बहुत कुछ मालूम कर ही लिया होगा.

मैं- आप से मदद की बड़ी उम्मीद है मुझे.

वो- मैं बरसों पहले घर छोड़ चुकी हूँ , कभी कभी जब मन नहीं मानता तो यहाँ आ जाती हूँ . यही इसी जंगल में सकूं की तलाश में

मैं- इस जंगल में सकून उसी को मिलता है जिसकी कोई कहानी रही हो यहाँ से .

वो- तो तुम्हे क्या लगता है मैं अनजानी हूँ यहाँ से . अरे बचपन बीता है हमारा यहाँ.

मैं- तो फिर बताओ इस जंगल में क्या छिपा है

वो- जिन्दगी छिपी है यहाँ , दोस्ती छिपी है दुश्मनी छिपी है . जिद छुपी है .अरमान छुपे है , हताशा छुपी है दिल मिले है दर्द मिला है .

मैं- सूरजभान को क्या तलाश है इस जंगल में

वो- सच की तलाश उस सच की जो यही कहीं छुपा है

मैं- कैसा सच

वो- वही सच जिसके लिए तुम भटक रहे हो . वो ही सच की कौन है वो आदमखोर .

वो उठ कर मेरे पास आई और अपने गले से एक चांदी की चेन उतार कर मेरे हाथ दे देते हुए बोली- मेरी तरफ से एक छोटा सा तोहफा. जाने का समय हो गया हम फिर कभी नहीं मिलेंगे.

वो दो चार कदम आगे बढ़ी थी की मैंने उसे आवाज दी- आप प्यार करती है न भैया से .

वो मुड कर मेरे पास आई और बोली- अभिमानु भाई है मेरा , राखी बांधती हूँ मैं उसे. मैंने तुमसे पहले ही कहा था की ये तुम पर निर्भर है की तुम प्यार को कैसे समझते हो.

मैं- आपने घर क्यों छोड़ा

वो- मेरे बाप को मेरी गुस्ताखी पसंद नहीं आई. मैं आसमान देखना चाहती थी वो मेरे पांव बांधना चाहता था . अभिमानु न होता तो मैं अपनी जिन्दगी जी नहीं पाती.

मैं- बस एक सवाल और , भैया ने एक तस्वीर छुपाई हुई है जिसमे तीन लोग है

वो- त्रिदेव, तीन दोस्तों की कहानी ढूंढो . फिर किसी से कोई सवाल नहीं करना पड़ेगा.

जाते जाते उसने मुझे गले लगाया और बोली- मेरे भाई पर कभी शक मत करना
Bahut hi achha update
 
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