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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Paraoh11

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आपकी बात का समर्थन कर रहा हूं पर ये सब तो मोहरे ही है शतरंज का राजा अभी आया ही नहीं सामने
तो क्या राय साहब से भी हरामी कोई है..?😮

फिर तो महाबीर की तरह कोई ब्रांड न्यू एंट्री होगी!!

कहानी में जान बनी रहेगी!!

अच्छा एक चीज़ समझा दो-
क्या आदमखोर रूप में आने वाले कपड़े नहीं पहनते?
और अगर नहीं पहनते तो boobies की Presence या absence से कम से कम आदमखोर का लिंग तो पहचाना जा सकता था...

मुझे पता है इसे बाल की खाल निकालना कहते हैं पर ये बात दिमाग़ से जा नहीं रही !!
 

rangeen londa

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भाई नाराज न हो यहाँ पर जो 1000 पेज पूर्ण होने की चुनौती चल रही है मैंने सिर्फ उस पर ही कहा है , लगभग सभी रीडर हर अपडेट पर कमेन्ट करते ही है आप भी कमेन्ट कर रहे हैं कोई गलत नहीं कर रहे अगर आपको बुरा लगा हो तो उसके लिए मांफी चाहता हूँ
मेंने कब कहा बुरा लगा
 

rangeen londa

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#24

जिस ज़माने में माँ-बाप ही रिश्ते कर देते थे पिताजी ने पहल की थी की पहले लड़का-लड़की एक दुसरे को देख कर पसंद कर ले तो ही बाकि की बाते आगे बढाई जाएगी. हलवाई के पास बैठे मैं इस इन्सान के बारे सोच रहा था की क्या है इसके मन में. ये वही इन्सान है जिसके लाली वाले मामले में रुडियो की बेडियो में पाँव जकड गए थे . और आज ये नयी रीत चला रहा था. वो राय साहब जिसके एक इशारे पर आस पास के कई गाँवो का जीवन रुक जाता और बढ़ जाता था वो राय साहब उस दिन पंचायत में दो लोगो की जान नहीं बचा सका . मैं बेशक मिठाइयो के पास बैठा था पर मेरे मन में कड़वाहट भर गयी.

पर अभी इस कड़वाहट को मन में ही दबा लेना सही था क्योंकि चंपा की ख़ुशी में कोई रंग में भंग पड़े वो भी मेरी वजह से ये तो बहुत गलत होगा.

“देवर जी , तुम भी तैयार हो जाओ ” भाभी ने मुझे बुलाया

मैं- अपना क्या है भाभी , कपडे ही तो बदलने है

भाभी- मैंने कपडे रख दिए है तुम्हारे जब जी करे पहन लेना.



सबकी निगाहों को बेसब्री से इंतज़ार था मेहमानों का. और जब घोडा गाड़ी दरवाजे पर आकर रुकी तो दिल झूम गया . वो कुल पांच लोग थे . लड़का, उसके माँ बाप और दो उस लड़के के जीजा. सब लोगो का खूब आदर-सत्कार किया गया . नाश्ते पानी के बाद चंपा कोचाची और भाभी लेकर आई. और उस दिन मैंने पहली बार गौर किया की चंपा किस हद तक खूबसूरत थी. क्यों वो कहती थी की गाँव के तमाम लड़के उसके दीवाने थे. गुलाबी साडी में उसका गोरा रंग . दूध में किसी ने जैसे गुलाब घोल दिया हो . उसके हाथो में हरी चुडिया . माथे पर मांग-टीका . कसम से नजर हटी ही नहीं उस मरजानी के चेहरे से.



लड़का जिसका नाम शेखर था वो भी गबरू जवान था . उसके हाथो की सख्ती बता रही थी की कसरत का शौक रहा होगा उसे और फिर अपने गाँव में वो पहला था जिसने सरकारी नौकरी प्राप्त की थी . उस ज़माने में ये एक ख्वाब ही था. चंपा के भाग ही खुल जाने थे . हम सब दिल से खुश थे उसके लिए.

पहली नजर में ही चंपा भा गयी उन लोगो को . लड़के की माँ ने शगुन में कंगन और कुछ आभूषण देकर चंपा के सर पर हाथ रख दिया. रिश्ता पक्का होते ही मंगल गीत शुरू गए.

मैंने इशारे से चंपा से पूछा- लड़का पसंद है .

उसने हाँ में सर हिलाया . हम सब बहुत खुश थे . सगाई की रस्म के बाद उनलोगों ने वापिस जाने की बात की क्योंकि अँधेरा घिरने लगा था . तभी भैया ने पिताजी के कान में कुछ कहा

पिताजी- मेरी आप सब से गुजारिश है की आप लोग आज हमारी मेहमाननवाजी का लुत्फ़ ले और सुबह आपके वापिस लौटने की व्यवस्था की जाएगी.

शेखर- राय साहब , कच्ची रिश्तेदारी में ऐसे रुकना थोडा अच्छा नहीं है

पिताजी- हम तुम्हारी बात समझते है शेखर बाबु, बरसों बाद ये ख़ुशी की घड़ी आई है आप हमारी विनती समझे और आज हमारे मेहमान बने.



अब राय साहब की बात को भला कौन मना करे. पर मेरे मन में था की क्यों रोका गया है इन्हें, बाद में मुझे मालूम हुआ की चूँकि इन्हें लौटने में रात हो जाती और जंगल से गुजरना होता . सुरक्षा की दृष्टि से भैया ने ये निर्णय लिया था की इनकी वापसी सुबह ही हो. मैंने भैया की हाँ में हाँ मिलाई . फिर मैं चंपा के पास गया .

चंपा- तेरा पत्ता कट गया कबीर.

मैं- पर मुझे ख़ुशी है और बिश्वास की भी शेखर बाबु तुझे बहुत प्यार करेंगे . ज़माने भर की खुशिया तेरे दामन में भर देंगे . जब तू यहाँ आकर अपनी ससुराल के किस्से सुनाया करेगी तो हमें कितनी ख़ुशी होगी तू नहीं जानती चंपा.

चंपा ने अपना सर मेरे काँधे पर रखा और बोली- तू इतना सरल क्यों है कबीर .

मैं- जो है तेरे सामने ही है . वैसे तू शेखर बाबु के सामने अब मत जाना

चंपा- क्यों भला

मैं- तेरे हुस्न में खो गया है वो मौका लगा तो शादी से पहले ही रगड़ देगा तुझे.

चम्पा हंस पड़ी और बोली- ये मौका तेरे पास भी तो था

मैं- मेरी बात और है

फिर भाभी के आ जाने से हमारी बाते बंद हो गयी . शेखर बाबु के सत्कार में मैंने और मंगू ने कोई कमी नहीं रखी. जब वो लोग सो गए तो मैं और मंगू भी खाना खाने बैठ गए. हमने दबा के बर्फियो पर हाथ साफ किया.

मंगू- कुंवर. बड़े भाई ने बोतल खोल रखी है .अपन भी दो घूँट ले लेटे तो

मैं- पागल हुआ है क्या भैया नाराज होंगे .

मंगू- भुने हुए काजू की तश्तरी तो ले ही सकते है न . याद ही नहीं कब खाए थे .

मैं- हाँ ये सही है चल फिर .

हम लोग भैया के कमरे में गए . भैया ने मेज पर पूरी महफ़िल लगा रखी थी . हम दोनों जाकर कालीन पर बैठ गए .

भैया- अरे उधर क्यों बैठे हो ऊपर आओ . ठंडा है फर्श

मैं- नहीं भैया इधर ही ठीक है .

भाई- तुम्हारी मर्जी

भैया ने गिलास को होंठो से लगाया और कुछ घूँट भरे फिर हमारी तरफ देख कर बोले- क्या

मंगू- भैया, थोड़े काजू मिल जाते

भैया-बस इतनी सी बात, इसमें सकुचाने की क्या बात है . ले लो जितने चाहिए तुम लोग भी न छोटी छोटी बातो के लिए परमिशन लेते रहते हो .

भैया ने तश्तरी हमारी तरफ की तो हमने अपनी अपनी मुट्ठी भर ली . पर हम उठे नहीं वहां से काजू खाते रहे बैठे बैठे. भैया ने खाली गिलास को फिर से भरा और हमारी तरफ देख कर बोले- क्या. चलो अब

मंगू- भैया

भैया- क्या हुआ और काजू चाहिए क्या . एक काम करो तुम तश्तरी ही ले जाओ

मंगू- भैया काजू नहीं चाहिए

भैया- क्या चाहिए फिर

मैं- भैया ठण्ड बहुत है हमें भी दो दो ढक्कन मिल जाते तो थोड़ी गर्मी सी हो जाती .

भैया- नहीं बिलकुल नहीं

मैं- भैया दवाई है , जुकाम ठीक हो जायेगा भैया बस दो ढक्कन

भैया- पिताजी को मालूम होगा न तो तुम्हारे साथ मुझे भी मार पड़ेगी. याद हैं न पिछली बार भी दो ढक्कन बोल कर बोतल ही गायब कर दी थी तुमने .

मंगू- भैया काजू सूखे सूखे कैसे उतरेंगे गले के निचे

भैया- ठीक है पर एक एक पेग ही मिलेगा

हमने हाँ में गर्दन हिलाई और अपने अपने गिलास आगे कर दिए. इच्छा तो हमारी और भी थी पर चूँकि पिताजी घर पर थे तो भैया ने सिर्फ एक पेग ही दिया. बहुत रात तक हम लोग बाते करते रहे हंसी मजाक करते रहे . भैया को हमने बातो में पिघला कर और गिलास भरवा लिए. फिर जब हम दोनों निचे आये तो देखा की हलवाई के कुछ लोग अभी भी सामान जमा कर रहे थे .

मैं- अरे तुम लोग गए नहीं अभी तक.

कारीगर- कुवर. तक़रीबन लोग तो चले गए. मुझे याद आया की कल पडोसी गाँव में हमारा काम है तो ये बड़ी कडाही पहुंचानी है बस ये लेने ही मैं बापिस आया था . तुम इसे लदवा दो

मैं- कोई बात नहीं . तुमने आज बहुत बढ़िया काम किया था मैं इस कडाही को लेकर तुम्हारे साथ चलूँगा.

नशे के मारे मेरा सुरूर बन गया था .

कारीगर- नहीं कुंवर मैं चला जाऊंगा

मैं- अरे नहीं यार. मैं भी चलूँगा तुम्हारे साथ . मैंने कढाई और थोड़े उसके सामान को बैल गाडी में लादा और उसके साथ बैठ गया .एक तो ठण्ड जबर ऊपर से देसी दारू का सुरूर . बैलो को हांकते हुए हम लोग गाँव से बाहर की तरफ निकल गए. कच्चे रस्ते पर बैलो के गले में लटकी घंटिया जब बजती तो क्या ही कहना . हम लोग थोड़ी दूर और आगे पहुंचे ही थे की सड़क के बीचो-बीच कोई खड़ा था .

मैं- अरे भाई , रस्ते से हट जा .

पर वो टस से मस नहीं हुआ .

मैं- ओ भाई , हट न यार. तुझे भी चलना है तो बैठ जा गाड़ी में

पर उसने जैसे मेरी बात सुनी ही नहीं .एक तो मैं नशे में था ऊपर से हवा की वजह से मैं झूम रहा था .

मै गाड़ी से उतरा और उसके पास गया - रे बहनचोद , सुन न रही क्या तुझे. कुंवर कबीर तुझे हटने को कह रहा है तू भोसड़ी के अफसर बन रहा है हट बहन के लंड

मैंने उसे धक्का दिया . वो मेरी तरफ पलटा . जब वो मेरी तरफ पलटा तो .................................
बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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jassi start mein super likeable character that aur aaj tak ki manish bhai ki stories ka sab se memorable character
जस्सी का किरदार यूँ ही लिखा गया दरअसल वो पूरी कहानी कब कैसे लिखी गई पहेली ही है मेरे लिए
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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mangu to maha kamina backstabber type friend nikla

isne or bhi kuch kaand kiye honge

sarla bhi isi ke saath mila hui thi koi badi baat nahi agar champa bhi inke saath mil gayi ho
अक्सर साथ रहने वाले ही धोखा करते है यही सार है इस भाग का
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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चाचा और राय साहब तो थे ही अय्याश महावीर तो इनका भी बाप निकल साला ये भी महाचोदू निकला और इसी अय्याशी की वजह से उसने घर की औरतों को भी नहीं छोड़ा इन बातो से हीअभिमानु और महावीर में दुश्मनी हुई और उस लड़ाई में भाभी को बीमारी मिली और महावीर को मौत । साले महावीर ने तो दोस्ती के नाम पर धोका दिया दोस्त के नाम पर एक कलंक था जिसको अंजू ने मिटा दिया अब तो दवाई की पुड़िया भी खतम हो गई है और वैध भी नहीं रहा
महावीर और अभिमन्यु के बीच जो हुआ इस राज के दबे ढेर मे चिंगारी सुलग रही है
 
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