#23
चाची - कहने को है ही क्या भला
मैं- और करने को , करने को तो है न बहुत कुछ
चाची- आज क्या हुआ है तुझे
मैं- मैं तुम्हे वैसे ही देखना चाहता हूँ जैसे की उस दिन देखा था कुवे वाले कमरे में
चाची- मुझे विश्वास है वैसी हालत में तू पहले भी देख चूका होगा मुझे
मैं- नहीं. बस उस दिन ही देखा था और देखता ही रह गया था
चाची- ऐसा क्या देखा था
मैंने अपने हाथ चाची की नितम्बो पर रखे और कहा- इनकी गोलाई और भारी पन को महसूस किया था मैंने. खिड़की से तुम्हारे झूलते उभारो को देखा था . जब चंपा अपने होंठ तुम्हारी चूत से लगाये थी तो मुझे भी प्यास थी उस काम रस को पीने की
चाची- बेशर्म ऐसे सीधे सीधे ही नाम लेता है
मैं- चूत को चूत नहीं कहते तो फिर क्या कहते है तुम ही बताओ न
चाची- मुझे लगता है ब्याह करना पड़ेगा तेरा जल्दी ही
मैं- ब्याह तो आज नहीं कल हो ही जायेगा पर जब तुम कुछ बताओगी ही नहीं तो मैं क्या कर पाउँगा दुनिया कल तुम्हे ही कहेगी की फलानी का भतीजा कुछ कर नहीं पाता
चाची बड़े आराम से मेरे लंड को सहला रही थी .
चाची- भतीजा घाघ है दुनिया जानती है
मैं- थोडा तुम भी जान लो न
मैंने चाची के लहंगे को कमर तक उठा दिया और चाची के चूतडो को सहलाते हुए गांड के छेद तक अपनी उंगलिया पहुंचा दी. चाची मेरी उंगलियों के अहसास से पिघलने लगी.
चाची- कबीर,इस रस्ते पर चलने का अंजाम क्या होगा.
मैं- जब अंजाम पर पहुंचेगे तब फ़िक्र करेंगे मंजिल की अभी तो सफ़र है सामने
मैं खुद इतना उत्तेजित हो चूका था की क्या बताऊ चाची की गांड का छेद का स्पर्श मेरे तन में इतनी मस्ती भर रहा था की मैं पागल ही हो गया था .
“कच्छे से अन्दर हाथ डाल लो चाची ” कांपते होंठो से बड़ी मुश्किल से मैंने कहा.
“एक बार फिर सोच ले कबीर, रुकना है तो अभी रुक बाद में अफ़सोस के सिवा कुछ नहीं रहेगा. ” इस बार चाची की आवाज लडखडा रही थी .
मैं- अपनी चाची से प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं उसे वो सुख देना जिसके लिए वो तरस रही है . मैं अपनी चाची का ख्याल नहीं रखूँगा तो फिर कौन रखेगा .
“बात सिर्फ इतनी नहीं है की मुझे इस जिस्म को पाना है . उस रात जब मैंने तुमको चंपा के साथ देखा तो उन सिस्कारियो में मैंने उस दुःख को भी महसूस किया चाची जो तुम अपने मन में छिपाए हुए हो. चाचा के जाने का गम जिस को दिन में तो तुम हम सब के साथ रह कर भूल जाती हो पर हर रात , न जाने कितनी रात तुमने अकेले काटी है . उस रात मेरे मन ने महसूस किया तेरे दर्द को चाची. मैं आज इस पल में जानता हूँ मैं आने वाले कल में भी जानूंगा .हर पल. हर घडी. हर दफा ये गलत ही रहेगा चाची -बेटे के बीच जो जिस्मानी रिश्ता होगा पर तेरी मेरी नजर में गलत नहीं होगा. क्योंकि मेरे होते हुए तू दुखी नहीं रहेगी. तू इस घर की रौनक है, मालकिन है . तेरे आँचल की छाया में हम पले है .बचपन में कितनी राते तू जागी ताकि हम आराम से सोये. तेरे अहसानों को तो मैं कभी उतार ही नहीं सकता मंदिर में उस मूर्त के बाद हमारे लिए ममता की मूर्त रही तू. उस रात मैंने तमाम बातो पर गौर किया चाची फिर मैंने ये निर्णय लिया ” मैंने चाची से कहा
चाची ने मुझसे कुछ नहीं कहा बस वो मुझसे लिपट गयी . चाची ने अपने होंठो को मेरे होंठो पर लगा दिया और मुझे चूमने लगी. उसके नैनों से गिरते आंसुओ की गर्मी मैंने अपने गालो पर महसूस की. मैंने चाची को अपने ऊपर खींच लिया . और चाची के चूतडो को अपने हाथो में थाम लिया. मैं सच कहता हूँ चाची की गांड बेहद नर्म और गदराई हुई थी बिलकुल रुई के गद्दों जैसी.
जितना उन्हें मसलो और मस्ता जाए ऐसी मस्त गांड . मैंने चाची को पलटा और अपने निचे ले लिया. और उसके चेहरे को बेस्ब्रो की तरह चूमने लगा. चूमते चूमते मैंने चोली को खोल दिया उपर से वो निर्वस्त्र हो चुकी थी मैंने लहंगे को भी हटा दिया. बिस्तर पर एक गदराई घोड़ी आज मचल रही थी मैने चाची की जांघो को फैलाया और चाची की चूत मेरे सामने थी . काले घने बालो के बीच गुलाबी चूत क्या ही कहना चाची की चूत की पंखुड़िया गहरे काले रंग की थी जिन्हें देखते ही दीवाना हो जाये.
मैंने अपनी हथेली चूत पर रखी और मुट्ठी में भर के उसे दबाने लगा.
“स्सीई ” चाची के मुख से मादक आवाजे निकलने लगी थी .चूत से बहते पानी ने मेरी हथेली को भिगो दिया था मैंने बीच वाली ऊँगली को अन्दर सरकाया . कसम से मेरे लंड ने ऐसा झटका खाया जैसे चूत को सलामी ही दी हो . धीरे धीरे मैं ऊँगली को अन्दर बाहर करने लगा.
कुछ देर मैं ऐसा ही करता रहा फिर मैंने अपने होंठ वहां लगा दिए और एक चुम्बन लिया. चाची के चूतडो में कम्पन महसूस किया मैंने. अब मैंने मुह खोला और अपनी जीभ से चूत को रगडा .
“आह, कबीर मत कर ” चाची ने अपने दोनों हाथो से मेरे सर को थाम लिया मैंने एक बार फिर वैसा ही किया मेरी थोड़ी के बाल चाची की नाजुक चूत से रगड़ खाए तो चाची का रोम रोम कांप गया . अपनी बलिष्ठ भुजाओ का प्रयोग करते हुए मैंने चाची की जांघो को विपरीत दिशा में फैला दिया और चूत को चूसने लगा. पर मैं ये सब थोड़ी देर ही कर पाया क्योंकि चाची ने तभी मुझे अपने ऊपर खींच लिया और मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी. उफ्फ्फ्फ़ मेरा क्या हाल कर रही थी वो . और फिर वो बोली- अन्दर घुसा इसे.
चाची ने मेरे सुपाडे की खाल को पीछे किया और मैंने थोडा जोर लगाया जैसे ही लंड का अगला हिस्सा चाची की चूत में गया मैं तो जन्नत को ही पा गया . मैंने और जोर लगाया और आधा लंड अन्दर कर दिया .
चाची- कीड़े की वजह से ज्यादा मोटा हो गया है फट गयी मेरी तो .
मैं- कीड़े की वजह से ही तो आज चुद रही हो तुम
मैंने एक धक्का और लगाया और चाची में पूरी तरफ से समा गया . चाची ने मुझे अपनी बाँहों में कैद कर लिया और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . गुलाबी होंठो का रस पीते हुए मैंने चाची को वो सुख देने का प्रयास किया जिस पर उका हक़ बनता था . बहुत मजे से मैंने उन होंठो का रस पिया . अपने चूतडो को ऊपर निचे उठाते हुए चाची चुदाई में मेरा भरपूर सुख दे रही थी .
जब वो झड़ी तो ऐसे झड़ी की रेगिस्तान की मिटटी पर किसी ने जी भर के मेघ बरसा दिए हो. चादर ऐसी गीली हुई की मूत ही दिया हो . चाची की चूत से टपकते काम रस ने मेरी जांघो तक को भिगो दिया. आसमान में उड़ना क्या होता है मैंने चाची पर चढ़ कर जाना था उस रात को .
काम वासना की तरंग ने जब गरम जिस्मो को ताल दी तो चुदाई महक ही जानी थी . ऐसा नहीं था की मैंने हस्तमैथुन नहीं किया था पर चुदाई का मजा क्या होता है ये मैंने आज ही जाना था . चरम पर पहुँच कर मैंने अपना लंड बाहर खींचा और चाची के पेट पर वीर्य की पिचकारियो को गिरा दिया.
उस रात दो बार हम एक हुए .सुबह जब आँख खुली तो देखा की मैं नंगा ही बिस्तर पर पड़ा था . मैंने कपडे पहने और बाहर आ गया. घडी में सात बज रहे थे . बाहर आकर मैंने हाथ मुह धोया और घुमने निकल गया. करीब डेढ़-दो बजे मैं वापिस आया तो मंगू और उसका बाप पिताजी से कुछ बात कर रहे थे तो मैं भी शामिल हो गया .
मैं- क्या बात चल रही है मुझे भी बताओ जरा.
मंगू- चंपा के रिश्ते के लिए आज वो लोग आ रहे है
मैं- और तू अब बता रहा है ये मुझे.
मंगू- मूझे भी अभी अभी ही मालूम हुआ.
तभी बाहर से कुछ आवाजे आये गाँव का हलवाई अपना साजो सामान लेकर आ गया था .
पिताजी ने सब परिवार को इकट्ठा किया और बोले- चंपा केवल राम सिंह की ही नहीं बल्कि इस घर की भी बेटी है . राम सिंह के घर से जायदा तो उसने यहाँ इस घर में समय बिताया है . इस घर में हमेशा से चार बच्चे थे . अभिमानु, कबीर, मंगू और चंपा. हमने अपनी बेटी के लिए एक योग्य लड़का देखा है जो आज अपने परिवार संग यहाँ आ रहे है सब ठीक रहा तो बात आगे बढाई जाएगी.
रामसिंह काका ने पिताजी के आगे हाथ जोड़ दिए और बोला- राय साहब हम मामूली किसान है , आपने जो भी फैसला किया है चंपा के लिए बढ़िया ही होगा पर जैसा आपने बताया लड़का बैंक में चपरासी है . हम कहाँ उसकी हसियत को पकड़ पाएंगे.
पिताजी- रामसिंह तुमने सुना नहीं शायद चंपा हमारी भी बेटी ही है . मेहमानों के स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. हलवाई जल्दी से अपना जांचा जनचाओ और मिठाई बनानी शुरू करो. लडको तुम भी काम में हाथ बंटाओ. दोपहर बाद का समय निर्धारित किया है मेहमानों के आने का .
मैं और मंगू तुरंत बैठक की सफाई करने लगे. सारे परदे नए लगाये. तकिये लिहाफ बिस्तर सब सलीके से किये गए. बस इंतज़ार था तो आने वालो का ......................