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Fantasy दलक्ष

Nevil singh

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खंड २

जिजीविषा



उसके कदम तेज थे, लेकिन वो दौड़ नहीं रहा था ! उसकी धड़कन अभी भी तेज गति से चल रही थी, पता नहीं क्यों वो उस बुड्ढे यात्री की बात मान गया और मुखिया के घर की ओर चल पड़ा !

आज मौसम कुछ ज्यादा ही ठंडा था, हवा के साथ हिमकण भी गिर रहे थे लेकिन केशव को मानो इनका कुछ असर नहीं हो रहा था, वो तो जैसे किसी गुलाम की भांति उस बुड्ढे यात्री के आदेश का पालन कर रहा था उसके दिमाग और मुह में बस एक ही बात चल रही थी ‘कहानी वाले बाबा ने बुलाया है’

केशव, जग्गा का मित्र था ! जो हर शाम को जग्गा की दुकान पर दिन भर की थकान उतारने के लिए आ जाता था, थोड़ी देर तक वो दोनों गाव भर की बाते किया करते थे और अंत में दोनों साथ में अपने अपने घर चले जाते थे !

अचानक केशव के कदम धीरे हो गए, सामने कुछ दुरी पर मुखिया का घर था ! आज इस समय मुखिया के घर में आगे कुछ भीड़ थी, लोग दरवाजे के सामने खड़े हो कर बुदबुदा रहे थे !

केशव के मन में शंका जाग उठी ‘क्या मुखिया के पिता नहीं रहे ?’ वो रुकना तो चाह रहा था लेकिन उसके कदम रुक नहीं रहे थे ! वो दरवाजे के सामने जाकर खड़ा हो गया और दरवाजा खोलकर अन्दर प्रवेश कर गया !

अन्दर का नजारा बहुत ही चिंताग्रस्त था, गाव का मुखिया ‘लायो’ बहुत ही बौखलाया हुआ था ! जैसे ही उसने केशव को देखा बोल पड़ा

“कौन हो तुम ?” आवाज बहुत भारी और गुस्से से भरी थी

अब जैसे केशव की तन्द्रा टूटी, जैसे अब वह किसी मोहपाश से स्वतंत्र हुआ हो, कमजोरी और थकान के कारण अपने घुटनों के बल गिर पड़ा, ऐसा लगा उसको की जैसे उसने अपने अन्दर किसी बड़े युद्ध को जीत लिया हो

कोई जवाब ना पाकर लायो वापस उस वैद्य की ओर घूम जाता है जो उसके बूढ़े बाप का इलाज कर रहा था

“क्या हुआ मकर, कुछ फायदा हुआ” लायो कुछ हडबडाहट में पूछता है

“नहीं, कुछ नहीं” मकर बेरस से बोलता है “अब इनके अन्दर जीने के लिए बिल्कुल भी उर्जा पर्याप्त नहीं है”

इतना सुनते ही लायो गुस्से से फुट पड़ता है ‘सारी जिंदगी मेने इस बुड्ढे के पीछे बर्बाद की और ये बिना बोले ही जा रहा है’ गुस्से से बोलते हुए वह इधर-उधर की वस्तुए तोड़ने लगता है, अंत में थक हार कर वह थोड़े क्षण बाद जमीन पर बैठ जाता है अब लावा शांत हो चूका था, घर में पूरी शांति थी जैसे वहा पर कोई नहीं हो – बस एक ही ध्वनि सुनाई दे रही थी और वो थी उस बुड्ढे की उखड़ी हुए सासों की ! लग रहा था जैसे मानो नदी की पूरा पानी सुख चूका हो और एक छोटी सी धार बड़ी मुश्किल से उस नदी की रेत में अपने लिए रास्ता बना रही हो और जैसे किसी भी क्षण रेत उस धार को अपने अन्दर समां लेगी

अब कुछ शेष ना पा कर मकर उठकर जाने ही वाला था की केशव, जो की अभी तक अपने घुटनों के बल बैठा हुआ था वो अपने ने संयत हुआ और थोड़ी शक्ति झुटाकर धीरे से खड़ा होकर बोलता है

“वो.....वो....क ..कहाS नी वा...ले बाबा”

“वो कहानी वाले बाबा बुला रहे है”

इतना सुनते ही जैसे की नदी में बाढ़ आ गयी हो, उस बुड्ढे ने अचानक से अपनी आखे खोली, ऐसा लगा जैसे की केशव की ध्वनि तरंगो ने बादलो का सीना चीर दिया और उस सूखी हुई नदी में अथाह उर्जा का प्रवाह हो गया हो

वो बुड्ढा तुरंत उठ बैठा हुआ और केशव के पास जाकर बहुत ही अधीरता से पूछता है

“वो बाबा ... कहानी वाले बाबा ने मुझे बुलाया है ?” उत्सुकता और हैरत भरे भाव में वो कहता है “कहा है वो ...कहा पर है वो अभी”

मकर ने तो जैसे भुत देख लिया हो,

अभी उसके सामने क्या हुआ,

वो किसी चमत्कार तो क्या सपने में भी कभी नहीं सोंच सकता था, वो जडवत हो गया था

“वो अभी गाव के किनारे जग्गा के यहाँ..”

इतना सुनते ही वो घर के बाहर दौड़ पड़ता है, और बाहर जाते ही चिल्लाते हुए बोल पड़ता है “अरे, सुनो गाव वालो, वो .. कहानी वाले बाबा लौट आये है...बाबा वापस आये है “ चिल्लाते हुए वो बुड्ढा, जग्गा के दुकान की और दौड़ पड़ता है

बाहर सभी गाव वाले आचर्यचाकित थे की अभी-अभी क्या हुआ, और क्या बोल गए मुखिया के पिता

इतने में मकर, लायो और केशव दौड़ते हुए घर से बाहर आ जाते है और लायो जोर से बोलता है “कहा गया ?, कहा गया मेरा बाप ?”

और वो केशव को दबोच लेता है “बता...बता ..क्या किया तूने मेरे बाप के साथ” और साथ में केशव को मारने लगता है, लायो का इतना भयानक रूप देख कोई भी बीच में आने को तैयार नहीं था, फिर भी हिम्मत कर ३-४ लोग लायो को पकड़ लेते है और बचाव करने की कोशिश करते है !

वो.....

वो.....

जग्गाSS

इतना कहते ही केशव बेहोश हो नीचे गिर पड़ता है

सुनते ही लायो, जग्गा की दुकान की ओर भाग पड़ता है, उसको देख वहा खड़े सभी लोग भी उसी दिशा में भागने लगते है

पीछे सिर्फ दो ही व्यक्ति बचे थे, एक तो था केशव, वो की बेहोश पड़ा था और उसके नाक व मुह से खून निकल रहा था !

और दूसरा था मकर जो की केशव की हालत देख वही रुक कर उसको घर के अन्दर ले गया

Chitaakarshit update mitr
 

Nevil singh

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खंड ३

अतीत

उसकी आखे फटी की फटी रह गयी,

आखो पर जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था,

उस बूढ़े बाबा को देखकर जैसे कमरू की नसों में गर्म खून बह चला हो,

अपने बचपन का चित्र जैसे उसके सामने चल रहा हो

‘वही चेहरा, वही चिलम पीने का अंदाज, वही चेहरे पर तेज और वही हुलिया’

कुछ भी नहीं बदला था उन बूढ़े बाबा में, जैसे अतीत से निकलकर अभी सामने आ गए हो

“आ गया कामरू” चिलम से मुह हटा एक नजरभर उसने कामरू की ओर दौड़ाई और सामने जल रहे अलाव के पास इशारा करते हुए कहा “आ बैठ जा यहाँ पर”

बिना कुछ बोले कामरू वही नीचे जमीन पर उस जल रहे अलाव के पास बैठ जाता है, और उन बूढ़े बाबा को देखता रहता है, उनके चेहरे को देख कर वापस उसकी पुरानी यादे सामने आ रही थी जैसे कल की ही बात हो-



आज पिताजी कुछ परेशान से लग रहे थे,

पर मुझे तो बस आज शाम का ही इंतेजार था,

हो भी क्यों ना ?,

वो बाबा कितनी अच्छी और मजेदार कहानिया सुनाते है,

तभी तो,

गाव का हर बच्चा रात का खाना खाया हो या ना हो,

समय होते ही सभी पहुच जाते है उस झील के पास,

उनकी आवाज कानो में पड़ते ही जैसे वहा का वातावरण गर्म सा होने लगता है,

एक अलग ही आनंद की अनुभूति सी होने लगती है,

झील का पानी जैसे गर्म होकर उस ठन्डे मौसम में भाप छोड़ रहा हो,

पता नहीं कब शाम होगी, कब कहानी सुनने को मिलेगी,

कल तो बाबा कह रहे थे की आज की रात तुम कभी नहीं भूल पाऔगे,

में अपने ही खयालो में खोया हुआ था,

की पता नहीं शायद पिताजी ने कुछ कहा मुझको, लेकिन मेने कोई ध्यान नहीं दिया,

मुझे तो बस रात का ही इन्तेजार था,

आखिरकार,

जैसे-तैसे दिन गुजर गया,

और में दौड़ पड़ा झील की ओर,

सभी बच्चे बेसबरी से कहानी वाले बाबा का इंतेजार कर रहे थे,

मुझे भी बड़ी उत्सुकता थी, जैसे हर दिन रहती है,

लेकिन लगता है आज बाबा को कुछ ज्यादा ही देरी हो रही थी,

बहुत समय हो चूका था,

अभी तक बाबा नहीं आये थे,

हमारे पास इंतेजार करने के अलावा कुछ चारा ही नहीं था, क्योकि किसी को भी नहीं पता था की बाबा का घर किस तरफ था, और किस तरफ से आते थे वो,

आखिरकार बहुत देर होने पर सभी बच्चे धीरे-धीरे वापस जा रहे थे

रात बहुत हो चुकी थी और सारे बच्चे घर जा चुके थे

आख़िरकार थक हार कर कामरू भी अपने घर की ओर चल देता है

आज कामरू बहुत ही गुस्सा था, आज तो घर जाकर बहुत ही गुस्सा करेगा वो, लेकिन जैसे आज उन बाबा की बात जैसे कामरू के लिए सही साबित होने वाली थी की आज की रात कभी नहीं भूल पाओंगे, उसने देखा की उसके घर के सामने बहुत से लोग इकट्टा हुए थे, और बहुत ही शोर हो रहा था, उसको पता चला की उसके पिताजी ने गाव के पुराने मंदिर से सारे अमूल्य सम्पदा को चुरा कर गाव से भाग गए



“अभी तक सब याद है कामरू” वो बुड्ढा थोडा खासते हुए बोलता है ‘इस आवाज ने जैसे कामरू को वापस उसको उसके अतीत से खीच लिया हो’

“आप कहा चले गए थे बाबा ?” कामरू बोल पड़ता है

“और चाय होगी क्या तेरे पास ?” कामरू के सवाल का जवाब देने के बजाय वो जग्गा की ओर मुह करके पूछता है

जग्गा का ध्यान भंग हुआ, जो वो अभी इन दोनों को देख रहा था “जी अभी देता हु”

लेकिन उसको हैरत हुयी, जैसे ही वो उस चाय को वापस गर्म करने के लिए रख ही रहा था की उसने देखा की चाय बिल्कुल गर्म थी, जैसे की अभी-अभी बनी हो, और उसमे से बहुत ही अच्छी सुगंध आ रही थी, उसने एसी चाय कभी नहीं बनायीं थी, इस बार उसने तीन प्याले भरे चाय के, एक उसने कामरू को दिया और दूसरा उसने बुड्ढे बाबा की ओर किया लेकिन उसकी तरफ से कुछ भी प्रतिक्रिया ना पाकर वो बाकि बचे दोनों प्याले लेकर वही अलाव के किनारे नीचे जमीन पर बैठ जाता है

उस बुड्ढे यात्री ने एक लम्बा सा कश खीचा चिलम से और एक बड़ा सा धुएं का गुबार छोड़ दिया ऊपर आसमान की ओर मुह करके !

अचानक जग्गा ने पाया की वहा का वातावरण कुछ गर्म सा हो गया है और आसमान से हिमकण गिरने के बजाये कुछ सुनहरा सा गिर रहा है, जग्गा को समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है लेकिन उसको यह अहसास बहुत ही अच्छा लग रहा था

इस तरह के वातावरण को पहचान गया कामरू, अचानक उसके चेहरे पर ख़ुशी झलक पड़ी और वो सामने उस बुड्ढे बाबा की ओर देख पर हल्का सा मुस्कुरा पड़ा

उस बुड्ढे बाबा के चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कराहट दौड़ पड़ी और एक आकर्षक गर्म आवाज में कहता है

“चलो तुमको में एक कहानी सुनाता हु” कहते हुए वो बुड्ढा जग्गा के हाथ से चाय लेकर एक चुस्की लेता है
Rochak update mitr
 

Nevil singh

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खंड ४

कृतिका



आज से कोई ६०-७० वर्ष पहले की बात रही होगी ये

एक गाव था,

बहुत ही खुबसूरत गाव,

एक पहाड़ी की चोटी पर बसा,

बहुत ही रमणीय स्थान,

वहा का वातावरण,

बहुत ही वनस्पतियों और झीलों से सुसज्जित रहता था,

उस ठन्डे प्रदेश में बहुत ही तालाब थे,

गर्म पानी के तालाब,

इसी कारण,

वह क्षेत्र काफी भरा-भरा रहता था,

सुदूर कोनो से पशु-पक्षी,

वहा की प्राकृतिक सम्पदा का आनंद लेने वहा आते थे,

और समय पूरा होते ही,

अगले वर्ष की प्रतीक्षा करते थे,

गाव में सभी लोग ज्यादातर खेती ही करते थे,

वनस्पतियों से भरपूर,

और प्राकृतिक अनुकूलन के कारण,

वहा केसर बहुत हुआ करती थी,

बहुत ही मशहूर हुआ करती थी वहा की केसर,

दूर-दराज से लोग,

सिर्फ केसर के कारण ही उस दुर्गम चोटी पर आते थे,

और उसी के कारण यहाँ के लोगो का जीवन-यापन चलता था,

अधिकतर लोग वहा किसान ही थे,

और उन में से एक था मनावर,

बहुत ही सरल था वो,

काफी बुड्ढा हो चूका था,

पत्नी को गए बहुत समय हो चूका था,

दो संताने थी उसकी,

एक बेटा और एक बेटी,

बेटा बड़ा था,

इवान

विवाह हो चूका था उसका,

और उसके एक संतान भी थी,

बेटी कोई होगी उस समय वो 19-20 बरस की,

कृतिका नाम था उसका,

बहुत ही चंचल थी वो,

बहुत ही सुन्दर

यौवन उसका काफी मेहरबान था उस पर,

रचयिता ने काफी समय दिया था उसकी देह को अलंकृत करने में,

लेकिन उससे भी सरल था उसका मन,

दिन भर अपनी सहेलियों के साथ हसी-ठिठोली किया करती थी,

काम में अपने पिता और भाई का हाथ बँटाया करती थी,

बहुत ही लाडली थी वो अपने परिवार में,

अब बुड्ढे बाप को बेटी के हाथ पीले करने की अंतिम इच्छा थी,

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था,

काल का ग्रास हो लिया मनावर,

अब परिवार की सारी जिम्मेदारी उसके बेटे इवान पर आ चुकी थी,

इवान बड़ा था,

समझदार था,

मस्तिस्क परिपक्कव था उसका,

जीवन चक्र की समझ थी उसको,

लेकिन उसकी बेटी,

कृतिका,

बहुत प्रेम करती थी अपने पिता से,

अभी छोटी थी वो,

उसका मस्तिस्क अपने पिता की मृत्यु को अपना नहीं सका,

अब,

उदास रहने लगी वो,

समय ढलने लगा,

काम में मन नहीं लगता था उसका,

सहेलिय अब उसको रास नहीं आती थी,

खाना अंग नहीं लगता था उसको,

ये देख अब चिंता हुई उसके बड़े भाई को,

पिता के जाने का दुःख उसको भी था,

लेकिन जिम्मेदारिया थी उस पर,

पुरे परिवार की जिम्मेदारी,

कठोर तो होना ही था उसको,

प्रकृति ने पुरुष को कठोरता शायद इसीलिए दी है,

ताकी विपत्तियों में वो नेतृत्व कर सके सभी का,

इसीलिए नहीं की सभी को रोंदता चला जाये,

अपने स्वार्थ के लिए !

अब बहुत ही व्याकुल रहने लगा उसका बड़ा भाई,

कृतिका के लिए,

एक सलाह दी उसकी पत्नी ने उसे,

की ब्याह करा दिया जाए कृतिका का,

ताकि मन लगा रहे उसका,

ये बात जची उसको,

अब विवाह की बात चलने लगी उसकी,

बहुत से लोग आये,

गए,

लेकिन कृतिका को कुछ नहीं जचता था,

यु ही समय बीतता रहा,

उन दिनों केसर के खिलने का समय हो रहा था,

पूरी चोटी केसर की खुशबु से नहला रही थी,

“इतना कहते ही वो बुड्ढा यात्री कहते हुए रुक जाता है, और आखे बंद कर उस खुशबु का अहसास लेने लगता है, अचानक जग्गा के नथुने खुशबु से भर जाते है, और वो भी उस केसर की खुशबु में मग्न हो जाता है, कामरू की तो आखे बंद थी जैसे मानो वो उस क्षण में खो सा गया था, थोड़ी देर ऐसे ही सब चुप रहे, उस बुड्ढे यात्री की आखे अभी भी बंद थी, तभी जग्गा बोल पड़ता है ‘आगे क्या हुआ बाबा’ अब उसकी बोली में एक अधीरता थी, उस बुड्ढे यात्री ने आखे खोली और मुस्कुराते हुए एक चिलम का कश लिया और कहने लगा”

गाव में एक मंदिर था,

केसर की खेती पकने पर सभी गाव वाले उस मंदिर में भोग चढाते थे,

ये एक त्यौहार जैसा ही था,

पुरे चार दिन चलता था ये उत्सव,

सारे गाव वाले उस उत्सव में शामिल होते,

और पुरे चार दिनों तक उस मंदिर के देवता को प्रसन्न करते,

इन चारो दिनों सामूहिक खाना होता,

नाच-गान होता था,

बड़े ही आनंद से मनता था ये त्यौहार,

इस मंदिर के बारे में,

गाव के कुछ बुड्ढो-बुजुर्गो का यह मानना था की

पहले यहाँ गन्धर्व रहा करते थे,

और उन्ही के कारण,

यहाँ पर अति-उन्नत किस्म की केसर उगा करती थी,

लेकिन धीरे-धीरे यहाँ लोग आते गए,

और गन्धर्व कम होते गए,

और धीरे-धीरे यहाँ गाव बस गया,

लेकिन लोगो के अधिक आवागमन होने के कारण,

गन्धर्वो के अपने आनंद में दखल होने लगी,

और वे इस चोटी को छोड़कर चले गए,

उनके जाने के साथ ही केसर भी कम होता गया,

और लोग दुखी होने लगे,

कुछ मनुष्यो के स्वार्थ और अधिक पाने की लालसा में,

उस परमात्मा का सृजन रुष्ट होने लगता है,

लेकिन उन थोड़ो की खातिर सभी को,

परेशानिया और कष्ट झेलने पड़ते है,

लेकिन,

प्रकृति बहुत ही न्यायपूर्ण और दयावान है,

जिसने एक बूंद भी बिना किसी कारण खोया है,

उसे पूरा सागर से भर देती है,

और,

जिसने एक तिनका भी बिना किसी कारण पाया है,

उसे पूरा रिक्त कर देती है,

हा,

उसके न्याय में थोडा विलम्ब हो सकता है,

लेकिन,

अन्याय कभी नहीं करती है,

और उसके इसी विलम्ब के कारण,

कई लोग बुरे कर्म करते रहते है,

लेकिन अंत में सबको पछताना पड़ता है !

तभी किसी ने सलाह दी की,

क्यों ना गन्धर्वो के लिए एक मंदिर बना लिया जाये,

और उनको प्रसन्न करने के लिए उत्सव मनाया जाये,

लोगो ने ऐसा ही किया,

और देखते ही देखते केसर वापस आने लगी,

और तब से अब तक,

यही परंपरा चली आ रही है,

गाव के सभी लोग इस उत्सव में भाग लेते,

और इन चार दिनों,

गन्धर्वो को प्रसन्न करते,

और उनका धन्यवाद करते !



2 साल हो चुके थे,

कृतिका के पिता की मृत्यु हुए,

समय ने कृतिका के मन के घावो को सुखा दिए थे,

लेकिन भरे नहीं थे,

अब कृतिका ज्यादा किसी से बोलती नहीं थी,

अब वो उसका हसी से बाते करना,

दुसरो से रूठना,

सखियों के साथ घूमना,

सब जैसे काल ने अपने अन्दर पचा लिया हो,

समय बहुत ही बड़ा गुरु होता है,

वह हर किसी को,

वो सब कुछ सिखा देता है,

जो उसको सिखना चाहिए होता है,

समय की शिक्षा से कोई नहीं बच पाया,

और जो उसकी परीक्षा में असफल हुआ,

वो मनुष्यता की कोटि से नीचे गिर गया,

और उसको वापस ऊपर उठने में,

और भी कठिन परीक्षाए देनी पड़ती है !

उत्सव का पहला दिन था,

सभी लोग हसी-उल्ल्हास लिए,

उत्सव में शामिल थे,

सिर्फ

कृतिका को छोड़ कर !
Shaandaar update mitr
 

Nevil singh

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खंड ५

चोमोलुंगमा


कृतिका आज पहाड़ी की दुर्गम चोटी की ओर टहल रही थी,

उत्सव से दूर,

बहुत दूर थी वह |

आजकल उसको एकांत में रहना अच्छा लगता था,

या यु कहो की उसने एकांत को चुन लिया था,

शायद इसीलिए की वह नहीं चाहती थी की वापस उससे कोई दूर हो जाये,

जिसे वो अपना कह सके |

शायद इसीलिए, वो किसी से ज्यादा बोलती नहीं थी, किसी से लगाव नहीं रखती थी, भविष्य से डर लगने लगा था उसको अब | इसी कारण सब छोड़ दिया था उसने, अपने मन को मार लिया था, वापस किसी के दूर होने के भय से, अपने भाई से दूर होने के भय से |

बहुत प्रेम करती थी वो अपने भाई से,

अपने पिता का आयना दिखता था उसके भाई में उसे,

उसके पिता की तरह वह भी उससे दूर ना हो जाये,

इसीलिए,

शायद,

इसीलिए,

वो समय आने से पहले ही अलग होना चाहती थी,

ताकि पीड़ा ना हो,

कुछ कम हो |

अपने ही खयालो में खोई हुई कृतिका आज कुछ ज्यादा ही दूर चली गई थी,

उसे भी भान नहीं था की कितनी देर से चल रही है वो |

थोड़ी दूर आगे एक छोटा सा तालाब दिखा उसको,

गर्म पानी का तालाब,

बैठ गई वो वही पर एक पेड़ से पीठ टिका कर |

बहुत ही शांत था वातावरण वहा का,

बस एक ही ध्वनि गूंज रही थी,

और वो थी,

कंकड़ के एक एक करके पानी में गिरने की,

कृतिका,

जो बैठी थी पेड़ के नीचे,

एक-एक करके कंकड़ फेक रही थी उस तालाब में,

मन बहलाने के लिए |

उस शांत वातावरण में,

कंकड़ के पानी में गिरने की ध्वनि बहुत ही मधुर लग रही थी,

जैसे की गर्भ में किसी नव जीवन का स्फुरण हो रहा हो |

लेकिन,

कोई था,

कोई था वहा,

जिसको ये मधुर ध्वनि दखल दे रही थी,

उस तालाब से,

कुछ ही पाँव की दूरी पर,

कोई बैठा था वहा,

ध्यान लगाये,

आखे खोली उसने,

लाल आखे,

गुस्सा हो लिया वो,

उठा,

वो उठा वहा से,

और चल दिया उस आवाज की तरफ |

लेकिन ये क्या ?,

जैसे ही वो पंहुचा तालाब के निकट,

पैर जम गए उसके,

एक ही पल में पसीना-पसीना हो लिया वो,

भय ने उसकी आत्मा को जकड लिया हो वही पर,

उसके मुह से बस एक ही शब्द निकला उसके,

या यु कहो की,

उस ठन्डे वातावरण में बस हवा ही निकली मुह से - “चोमोलुंगमा”

अचानक,

छुप लिया वो,

छुप लिया,

वही एक झाड़ी में पीछे,

विश्वास नहीं हो रहा था उसको अपनी आखो पर,

कई जन्मो की तपस्या के बाद भी,

यह देखना संभव नहीं था उसके लिए,

कही ये कोई भ्रम तो नहीं उसका,

शंका जन्मी उसके मन में,

मंत्र से पोषित की अपनी आखो को,

और वापस देखा सामने,

नहीं,

कोई भ्रम नहीं,

कोई भ्रम नहीं था ये,

अब सयंत किया उसने अपने आप को,

लेकिन मन में एक प्रश्न अभी थी उस समय उसको,

चोमोलुंगमा यहाँ पर,

और वो भी मनुष्य देह में,

अब चौकन्ना हुआ वो,

आसपास नजर दौड़ाई उसने,

कोई नहीं,

कोई नहीं था उसके आसपास,

कोई रक्षक नहीं था उसके साथ,

लेकिन पूरी तरह से पुष्टि करना चाहता था वो,

इस क्षण,

एक भाग के हजारवे हिस्सा का भी खतरा मोल नहीं लेना चाहता था वो,

अब उसने दशांश मंत्र को जाग्रत किया,

पोषित किया उसको अपनी आखो पर,

अब देख घुमाई उसने सभी दिशाओ में,

नहीं,

कोई रक्षक नहीं था,

और ना कोई अन्य शक्ति थी वहा पर,

उसकी रक्षा के लिए,

अब वो जिज्ञासु हो उठा,

आखिर ये कैसे संभव है ?

कैसे ?

उसने निर्णय लिया ये जानने का,

अब झाँका उसने कृतिका के “भुत” में,

देख लिया उसने,

सब-कुछ,

जिससे अब-तक,

स्वयं कृतिका भी अनजान थी अपने भुत से,

लेकिन उस झाड़ी के पीछे छिपे अमान ने,

देख लिया सब कुछ,

सब कुछ जान लिया था उस “वचन” के बारे में,

अब जो थोड़ी देर पहले अमान के मन में जिज्ञासा जन्मी थी, लालसा का रूप ले लिया उसने,

लालसा,

सब कुछ पाने की लालसा,

समय से पहले ही सब कुछ पाने की लालसा,

मनुष्य बहुत ही अजीब है, हर क्षण उसके मन में अनेको तृषणाये उपन्न होती रहती है और हर पल बदलती रहती है, और इन्ही बेलगाम तृषणाओ के कारण वह निरंतर गर्त में जाता रहता है, काल्पनिक लक्ष्यों की ओर भटकता रहता है, इसी वजह से तृष्णा पर विवेक की लगाम बहुत ही आवश्यक है, वर्ना भटकाव निश्चित है

लेकिन उस समय,

अमान के विवेक रूपी लगाम को लालसा ने अपने पैरो तले कुचल दिया था,

लालसा ने उसके सामने काल्पनिक सपने रख दिए थे,

पथ-भ्रष्ट हुआ अब वो,

चल पड़ा वो उस “वचन” की बाधा बनने में,

भाग चला वो अब वापस पीछे की ओर,

और ढूंढने लगा कुछ,

बहुत जल्दी थी उसको अब,

समय नहीं गवाना चाहता था वो,

मिल गया उसको,

एक काष्ठ दंड,

तोड़ लिया उसने एक पेड़ से,

और अभिमंत्रित किया,

प्रवंग मंत्र से पोषित कर,

कर दिया पाश को तैयार,

अब बस जाल के फैकने की ही देर थी,

हो लिया वापस,

उस तालाब की ओर,

सभी बात से अनजान,

कृतिका अभी-भी वही बैठी थी,

उसको कुछ सुनाई दिया,

तालाब के उस ओर,

देखा उसने उस तरफ,

दुबला-पतला,

सूखे हाड-मॉस सा व्यक्ति निकला झाड़ियो के पीछे से,

अब थोड़ी डरी वो,

स्वाभाविक भी था उसका डरना उस समय,

खडी हुई वो,

जैसे ही वो कुछ सोंच पाती,

फेक दिया अमान ने काष्ठ दंड उसके तरफ,

एक चीख पुरे उस सुनसान वातावरण में फ़ैल गयी,

जैसे उस काष्ठ-दंड ने पूरी प्राण-उर्जा सोख ली हो उसकी,

कुछ क्षण बाद,

सब शांत,

अब शांत हुआ सब-कुछ,

बस अब निर्जीव काया पड़ी थी उस तालाब के किनारे,

अब सुनसान हुआ वापस |


Bahut badhiya update mitr
 

Nevil singh

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धुरिक्ष

संध्या का समय था, पूरी पहाड़ी पर उत्सव का माहौल हो रखा था, सभी लोग मंदिर के बाहर उस छोटे से मैदान में इक्कट्ठा हो रहे थे, मंदिर को बहुत ही अच्छी तरह से सजाया गया था, मैदान में रात्रि के भोग की तैयारी चल रही रही थी, कई लोग रोशनी कर रहे थे, तो कई अलाव जलाने की तैयारी कर रहे थे, तो कई लोग अभी-अभी आ ही रहे थे, बड़े-बुजुर्ग अपने भावी पीढ़ी को दिशा-निर्देश दे रहे थे, चारो तरफ वाद्ययंत्रो की हल्की-हल्की ध्वनि गूंज रही थी, और बच्चे की मस्ती और खेल-कूद की भरी आवाजो से मानो जैसे की पुरा जश्न जीवंत हो रहा हो

उत्सव की तैयारी लगभग-लगभग पूरी हो ही चुकी थी, अब बस मुखिया के आने की ही देर थी, जो की उस मंदिर के देवता को प्रथम भोग चढाते और उत्सव की शुरुआत करते ! लेकिन ऐसा लग रहा था की इस बार मुखिया को आने में कुछ ज्यादा ही देर हो रही थी

कुछ समय बाद इवान आ गया,

मुखिया आ गया !

हा,

इवान ही गाव का मुखिया था !

इवान के आते ही नगाड़ो की आवाजो ने पूरी पहाड़ी को गूंजा दिया,

अलाव जला दिए गए,

पूरा माहौल ख़ुशी से झूम गया,

बस एक को छोड़ कर,

इवान को छोड़ कर !

सुबह से उसे अपनी बहन की फिक्र हो रही थी,

हर रोज तो संध्या होते ही आ जाती थी,

लेकिन,

आज नहीं लौटी वो !

उसी की चिंता हो रही थी इवान को !

आज उसका मन,

कुछ ज्यादा ही बैचैन हो रहा था,

लेकिन,

मुखिया होने की जिम्मेदारी ने बांध दिया था आज उसको !

नगाड़ो की आवाज कुछ ज्यादा ही तेज हो चुकी थी,

भोग लगाने का समय हो चूका था,

सभी बढ़ चले मंदिर की तरफ,

और सबसे आगे था इवान !

आ गए सभी मंदिर के सम्मुख,

लेकिन,

जैसे ही मंदिर के अन्दर कदम रखने ही वाला था इवान,

तभी,

एक आवाज गूंजी,

बहुत थी भयानक,

पूरा पहाड़ हिल पड़ा,

जैसे भूकंप आ पड़ा हो,

दियो को रोशनी और अलाव,

सभी बुझ गए एक ही पल में,

अँधेरा हो गया पूरी पहाड़ी पर,

अब,

आशंका उठी इवान के मन में,

घोर आशंका,

किसी अनिष्ट की,

अब,

मन नहीं रहा उसका,

भाग चला वो,

उस मंदिर से दूर,

उस उत्सव से दूर,

उन घने जंगलो की तरफ,

जिस तरफ से कृतिका आया करती थी,

हलचल हुई गाव के लोगो में,

अँधेरे की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था,

कुछ समय बाद लोग शांत हुए,

वापस रोशनी की गयी,

लेकिन अब गाव वालो को चिंता हुई,

मुखिया वहा से गायब था,

और उस से भी बड़ी चिंता का विषय था उनके लिया वो मंदिर,

उस मंदिर के देवता के आभूषण,

सब गायब थे वहा से,

सब कुछ,

मंदिर सुना हो चूका था

सब कुछ

मै....

इतना कहते ही वो बुड्ढा यात्री छुप गया, जैसे कही शुन्य में खो सा गया वो ! थोड़ी देर बाद कुछ ना बोलने पर जग्गा ने आवाज दी उनको “बाबा ओ बाबा” लेकिन जैसे की बाबा ने कुछ सुना ही ना हो, थोडा समय बीता, लेकिन बाबा तो जैसे बोलने का नाम भी नहीं ले रहे थे जैसे किसी समयपाश में बंध गए हो !

अब कामरू अधीर हो उठा,

बैचेन हो उठा,

आगे क्या हुआ,

कुछ प्रश्न उठे उसके मन में,

क्या बाबा इसी गाव की बात कर रहे है,

क्या बाबा मेरे ही बचपन की बात कर रहे है,

क्या मेरे पिता की,

की क्या हुआ था उस दिन,

क्या हुआ था उन आभूषणों के साथ,

जिनकी चौरी का आरोप लगा था उन पर,

ये सारे प्रश्न अब उसके चित में घुमने लगे,

अब भारी हुआ उसका सीना,

उठा वो अपनी जगह से,

हिलाया उसने उन बुड्ढे बाबा को

“बाबा, क्या हुआ था उस दिन ?, क्या हुआ था मेने पिता के साथ, उन आभूषणों के साथ ?”

उस बुड्ढे यात्री ने देखा उसकी तरफ अब,

देखा उसकी अधीरता को,

और वापस एक लम्बा सा कश लेकर बोल पड़ता है

.

.

उस दिन मै वही था,

सब कुछ मेरे आखो में सामने ही हुआ था,

गवाह था मै उस निर्मम कृत्य का,

उस दुराचारी के पाप का,

लेकिन,

कर भी क्या सकता था मै,

बंधा था मै,

उस वचन से बंधा था मै,

जिसको चोलोमूंगमा ने दिया था सबको,

उसके वचन के पूर्ण होने में अब कुछ ही समय बचा था,

लेकिन जैसे की होनी को कुछ और ही मंजूर था,

लगता है उसके प्रेमी को विधाता की परीक्षा में पास होना अभी शेष था,

जैसे विधाता भी उसके सब्र के साथ खेल रहा हो,

आ गया उसका प्रेमी वहा पर,

एक भी पल की देरी किये बिना,

जैसे की शुन्य से प्रकट हुआ वो,

गान्धर्व कुमार,

“धुरिक्ष”,

सुनहरा वर्ण,

अलौकिक देहधारी,

बलशाली,

लेकिन,

बहुत देर हो चुकी थी अब,

देखा उसने अपने प्रेमीका को,

निष्प्राण,

देह पड़ी थी उस तालाब के किनारे,

यह देख धुरिक्ष का सीना जैसे फट पड़ा,

दहाडा वो,

हुंकार भरी उसने,

जैसे पूरा पर्वत कांप गया उस हुंकार से,

वहा का ठंडा वातावरण उसके क्रोध से गर्म होने लगा,

अब उसका क्रोध उसके सीमा से बाहर हो गया,

जैसे की अब पुरे पर्वत को ही भस्म कर देगा वो,

पहली बार,

जीवन में पहली बार भय लगा मुझे,

कितनो ही यक्षो और ब्रह्मराक्षसो को धुल चटाई थी मेने,

कितने ही गन्धर्वो को नचाया था मेने,

लेकिन,

उस दिन,

उस गान्धर्वकुमार का विशुद्ध प्रेम देख डर गया में भी,

उस दिन लगा मुझको,

अनुभव किया मैंने,

प्रेम की अथाह शक्ति को,

प्रेम के स्वरुप को स्वीकारा मेने,

अब,

चिंता हुई मुझको,

उस पहाड़ी पर बसे लोगो की,

पहाड़ी के नष्ट होते ही,

वे भी,

बिना किसी अपराध के,

इस पहाड़ी के साथ,

काल का ग्रास बनते,

अब उतरा में उस प्रेमी के क्रोध के बीच,

याद दिलाया मेने उस वचन को उसको,

ललकारा उसके प्रेमिका की आन को,

उसके प्रेम की आन की खातिर,

शांत होना पड़ा,

उसके प्रेम की पूर्णता की प्राप्ति के खातिर,

शांत होना पड़ा उसको,

धन्यवाद दिया उसके इस बलिदान को,

क्योकि वो सक्षम था सब कुछ भस्म करने में,

सब कुछ तबाह करने में,

अब कुछ करना था मुझे,

उस वचन की काट करनी जरुरी थी,

क्योकि शक्ति अब गलत हाथो में लग चुकी थी,

किसी नश्वर के हाथो में अनश्वर शक्ति थी,

उस अमान के हाथो में,

मै निकाल पड़ा वहा से,

उस वचन का हल खोजने में,

.

.

अब शांत हुआ वो बुड्ढा यात्री,

कह दिया उसने सब कुछ, जो कहना था

“क्या रास्ता निकाल लिया आपने ?” पूछा जग्गा ने

“हा, मिल गया, जो खोजने निकला था मै” कामरू की तरफ देखते हुए “पूछ कामरू, अब पूछ, क्या प्रश्न है तुम्हारे मन में ?”

“क्या हुआ मेरे पिता का ?, कहा गए वो ?” आखो में आसू लिए वो वृद्ध कामरू बोलता है

“उस दिन इवान आखिर आ पंहुचा, कृतिका को खोजते खोजते उस तालाब के किनारे, वह सब देख बहुत रोया वो, आखिर कर भी क्या सकता था वो, जो होनी थी वो हो चुकी थी, लेकिन उस दिन एक काम सौपा उस गान्धर्व कुमार ने उसे, कृतिका की काया को सुरक्षित रखने का, उस पार्थिव काया को सबसे दूर रखने का, वचन के पूर्ण होने में आवश्यकता थी उसकी, कुछ भेद बताये उस गन्धर्व ने उसको, समय की सीमा को रोकने के और चल पड़े वो दोनों, सब कुछ मेरे भरोसे छोड़ कर”

“और उन मंदिर के आभुषणों का ?”

“वो तो उस गान्धर्व कुमार की अमानत थी, जिसके फलस्वरूप ही इस पहाड़ी पर केसर हुआ करती थी, बहुत ही प्रिय थी केसर चोलोमूंगमा को, उसके जाते ही सब कुछ चला गया यहाँ से, सब कुछ”

अब मन हल्का हुआ वृद्ध कामरू का, जीवन भर के प्रश्नों का उत्तर अब मिला उसको, लेकिन इस प्रश्नों के उत्तर के साथ अब कुछ जिज्ञासा हुई उसको, की कौन थी चोलोमूंगमा, और क्या है वो वचन, जिसकी खातिर वो गन्धर्व कुमार भी कुछ ना कर सका, और सबसे अहम् बात की अब ये बाबा वापस क्यों आये है यहाँ पर ?

“सुन कामरू” वो बुड्ढा यात्री बोल पड़ता है

“हा बाबा” अपने मन के खयालो से बाहर आते ही अचानक से बोलता है

“अब वो उत्तर जिसकी तलाश में मै यहाँ पर आया हु” वो बुड्ढा यात्री अपनी जगह से उठते हुए बोलता है

“वो क्या है बाबा ?”

“कहा पर है इवान, तुम्हारे पिता”

इतना सुनते ही जग्गा चौक जाता हैं और कामरू की तरफ देखने लगता है




क्रमशः
Rahsyemayi update mitr
 

Naik

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खंड ३

अतीत

उसकी आखे फटी की फटी रह गयी,

आखो पर जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था,

उस बूढ़े बाबा को देखकर जैसे कमरू की नसों में गर्म खून बह चला हो,

अपने बचपन का चित्र जैसे उसके सामने चल रहा हो

‘वही चेहरा, वही चिलम पीने का अंदाज, वही चेहरे पर तेज और वही हुलिया’

कुछ भी नहीं बदला था उन बूढ़े बाबा में, जैसे अतीत से निकलकर अभी सामने आ गए हो

“आ गया कामरू” चिलम से मुह हटा एक नजरभर उसने कामरू की ओर दौड़ाई और सामने जल रहे अलाव के पास इशारा करते हुए कहा “आ बैठ जा यहाँ पर”

बिना कुछ बोले कामरू वही नीचे जमीन पर उस जल रहे अलाव के पास बैठ जाता है, और उन बूढ़े बाबा को देखता रहता है, उनके चेहरे को देख कर वापस उसकी पुरानी यादे सामने आ रही थी जैसे कल की ही बात हो-



आज पिताजी कुछ परेशान से लग रहे थे,

पर मुझे तो बस आज शाम का ही इंतेजार था,

हो भी क्यों ना ?,

वो बाबा कितनी अच्छी और मजेदार कहानिया सुनाते है,

तभी तो,

गाव का हर बच्चा रात का खाना खाया हो या ना हो,

समय होते ही सभी पहुच जाते है उस झील के पास,

उनकी आवाज कानो में पड़ते ही जैसे वहा का वातावरण गर्म सा होने लगता है,

एक अलग ही आनंद की अनुभूति सी होने लगती है,

झील का पानी जैसे गर्म होकर उस ठन्डे मौसम में भाप छोड़ रहा हो,

पता नहीं कब शाम होगी, कब कहानी सुनने को मिलेगी,

कल तो बाबा कह रहे थे की आज की रात तुम कभी नहीं भूल पाऔगे,

में अपने ही खयालो में खोया हुआ था,

की पता नहीं शायद पिताजी ने कुछ कहा मुझको, लेकिन मेने कोई ध्यान नहीं दिया,

मुझे तो बस रात का ही इन्तेजार था,

आखिरकार,

जैसे-तैसे दिन गुजर गया,

और में दौड़ पड़ा झील की ओर,

सभी बच्चे बेसबरी से कहानी वाले बाबा का इंतेजार कर रहे थे,

मुझे भी बड़ी उत्सुकता थी, जैसे हर दिन रहती है,

लेकिन लगता है आज बाबा को कुछ ज्यादा ही देरी हो रही थी,

बहुत समय हो चूका था,

अभी तक बाबा नहीं आये थे,

हमारे पास इंतेजार करने के अलावा कुछ चारा ही नहीं था, क्योकि किसी को भी नहीं पता था की बाबा का घर किस तरफ था, और किस तरफ से आते थे वो,

आखिरकार बहुत देर होने पर सभी बच्चे धीरे-धीरे वापस जा रहे थे

रात बहुत हो चुकी थी और सारे बच्चे घर जा चुके थे

आख़िरकार थक हार कर कामरू भी अपने घर की ओर चल देता है

आज कामरू बहुत ही गुस्सा था, आज तो घर जाकर बहुत ही गुस्सा करेगा वो, लेकिन जैसे आज उन बाबा की बात जैसे कामरू के लिए सही साबित होने वाली थी की आज की रात कभी नहीं भूल पाओंगे, उसने देखा की उसके घर के सामने बहुत से लोग इकट्टा हुए थे, और बहुत ही शोर हो रहा था, उसको पता चला की उसके पिताजी ने गाव के पुराने मंदिर से सारे अमूल्य सम्पदा को चुरा कर गाव से भाग गए



“अभी तक सब याद है कामरू” वो बुड्ढा थोडा खासते हुए बोलता है ‘इस आवाज ने जैसे कामरू को वापस उसको उसके अतीत से खीच लिया हो’

“आप कहा चले गए थे बाबा ?” कामरू बोल पड़ता है

“और चाय होगी क्या तेरे पास ?” कामरू के सवाल का जवाब देने के बजाय वो जग्गा की ओर मुह करके पूछता है

जग्गा का ध्यान भंग हुआ, जो वो अभी इन दोनों को देख रहा था “जी अभी देता हु”

लेकिन उसको हैरत हुयी, जैसे ही वो उस चाय को वापस गर्म करने के लिए रख ही रहा था की उसने देखा की चाय बिल्कुल गर्म थी, जैसे की अभी-अभी बनी हो, और उसमे से बहुत ही अच्छी सुगंध आ रही थी, उसने एसी चाय कभी नहीं बनायीं थी, इस बार उसने तीन प्याले भरे चाय के, एक उसने कामरू को दिया और दूसरा उसने बुड्ढे बाबा की ओर किया लेकिन उसकी तरफ से कुछ भी प्रतिक्रिया ना पाकर वो बाकि बचे दोनों प्याले लेकर वही अलाव के किनारे नीचे जमीन पर बैठ जाता है

उस बुड्ढे यात्री ने एक लम्बा सा कश खीचा चिलम से और एक बड़ा सा धुएं का गुबार छोड़ दिया ऊपर आसमान की ओर मुह करके !

अचानक जग्गा ने पाया की वहा का वातावरण कुछ गर्म सा हो गया है और आसमान से हिमकण गिरने के बजाये कुछ सुनहरा सा गिर रहा है, जग्गा को समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है लेकिन उसको यह अहसास बहुत ही अच्छा लग रहा था

इस तरह के वातावरण को पहचान गया कामरू, अचानक उसके चेहरे पर ख़ुशी झलक पड़ी और वो सामने उस बुड्ढे बाबा की ओर देख पर हल्का सा मुस्कुरा पड़ा

उस बुड्ढे बाबा के चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कराहट दौड़ पड़ी और एक आकर्षक गर्म आवाज में कहता है

“चलो तुमको में एक कहानी सुनाता हु” कहते हुए वो बुड्ढा जग्गा के हाथ से चाय लेकर एक चुस्की लेता है
Behtareen update bhai
Bahot khoob shaandaar
 

Naik

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खंड ४

कृतिका



आज से कोई ६०-७० वर्ष पहले की बात रही होगी ये

एक गाव था,

बहुत ही खुबसूरत गाव,

एक पहाड़ी की चोटी पर बसा,

बहुत ही रमणीय स्थान,

वहा का वातावरण,

बहुत ही वनस्पतियों और झीलों से सुसज्जित रहता था,

उस ठन्डे प्रदेश में बहुत ही तालाब थे,

गर्म पानी के तालाब,

इसी कारण,

वह क्षेत्र काफी भरा-भरा रहता था,

सुदूर कोनो से पशु-पक्षी,

वहा की प्राकृतिक सम्पदा का आनंद लेने वहा आते थे,

और समय पूरा होते ही,

अगले वर्ष की प्रतीक्षा करते थे,

गाव में सभी लोग ज्यादातर खेती ही करते थे,

वनस्पतियों से भरपूर,

और प्राकृतिक अनुकूलन के कारण,

वहा केसर बहुत हुआ करती थी,

बहुत ही मशहूर हुआ करती थी वहा की केसर,

दूर-दराज से लोग,

सिर्फ केसर के कारण ही उस दुर्गम चोटी पर आते थे,

और उसी के कारण यहाँ के लोगो का जीवन-यापन चलता था,

अधिकतर लोग वहा किसान ही थे,

और उन में से एक था मनावर,

बहुत ही सरल था वो,

काफी बुड्ढा हो चूका था,

पत्नी को गए बहुत समय हो चूका था,

दो संताने थी उसकी,

एक बेटा और एक बेटी,

बेटा बड़ा था,

इवान

विवाह हो चूका था उसका,

और उसके एक संतान भी थी,

बेटी कोई होगी उस समय वो 19-20 बरस की,

कृतिका नाम था उसका,

बहुत ही चंचल थी वो,

बहुत ही सुन्दर

यौवन उसका काफी मेहरबान था उस पर,

रचयिता ने काफी समय दिया था उसकी देह को अलंकृत करने में,

लेकिन उससे भी सरल था उसका मन,

दिन भर अपनी सहेलियों के साथ हसी-ठिठोली किया करती थी,

काम में अपने पिता और भाई का हाथ बँटाया करती थी,

बहुत ही लाडली थी वो अपने परिवार में,

अब बुड्ढे बाप को बेटी के हाथ पीले करने की अंतिम इच्छा थी,

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था,

काल का ग्रास हो लिया मनावर,

अब परिवार की सारी जिम्मेदारी उसके बेटे इवान पर आ चुकी थी,

इवान बड़ा था,

समझदार था,

मस्तिस्क परिपक्कव था उसका,

जीवन चक्र की समझ थी उसको,

लेकिन उसकी बेटी,

कृतिका,

बहुत प्रेम करती थी अपने पिता से,

अभी छोटी थी वो,

उसका मस्तिस्क अपने पिता की मृत्यु को अपना नहीं सका,

अब,

उदास रहने लगी वो,

समय ढलने लगा,

काम में मन नहीं लगता था उसका,

सहेलिय अब उसको रास नहीं आती थी,

खाना अंग नहीं लगता था उसको,

ये देख अब चिंता हुई उसके बड़े भाई को,

पिता के जाने का दुःख उसको भी था,

लेकिन जिम्मेदारिया थी उस पर,

पुरे परिवार की जिम्मेदारी,

कठोर तो होना ही था उसको,

प्रकृति ने पुरुष को कठोरता शायद इसीलिए दी है,

ताकी विपत्तियों में वो नेतृत्व कर सके सभी का,

इसीलिए नहीं की सभी को रोंदता चला जाये,

अपने स्वार्थ के लिए !

अब बहुत ही व्याकुल रहने लगा उसका बड़ा भाई,

कृतिका के लिए,

एक सलाह दी उसकी पत्नी ने उसे,

की ब्याह करा दिया जाए कृतिका का,

ताकि मन लगा रहे उसका,

ये बात जची उसको,

अब विवाह की बात चलने लगी उसकी,

बहुत से लोग आये,

गए,

लेकिन कृतिका को कुछ नहीं जचता था,

यु ही समय बीतता रहा,

उन दिनों केसर के खिलने का समय हो रहा था,

पूरी चोटी केसर की खुशबु से नहला रही थी,

“इतना कहते ही वो बुड्ढा यात्री कहते हुए रुक जाता है, और आखे बंद कर उस खुशबु का अहसास लेने लगता है, अचानक जग्गा के नथुने खुशबु से भर जाते है, और वो भी उस केसर की खुशबु में मग्न हो जाता है, कामरू की तो आखे बंद थी जैसे मानो वो उस क्षण में खो सा गया था, थोड़ी देर ऐसे ही सब चुप रहे, उस बुड्ढे यात्री की आखे अभी भी बंद थी, तभी जग्गा बोल पड़ता है ‘आगे क्या हुआ बाबा’ अब उसकी बोली में एक अधीरता थी, उस बुड्ढे यात्री ने आखे खोली और मुस्कुराते हुए एक चिलम का कश लिया और कहने लगा”

गाव में एक मंदिर था,

केसर की खेती पकने पर सभी गाव वाले उस मंदिर में भोग चढाते थे,

ये एक त्यौहार जैसा ही था,

पुरे चार दिन चलता था ये उत्सव,

सारे गाव वाले उस उत्सव में शामिल होते,

और पुरे चार दिनों तक उस मंदिर के देवता को प्रसन्न करते,

इन चारो दिनों सामूहिक खाना होता,

नाच-गान होता था,

बड़े ही आनंद से मनता था ये त्यौहार,

इस मंदिर के बारे में,

गाव के कुछ बुड्ढो-बुजुर्गो का यह मानना था की

पहले यहाँ गन्धर्व रहा करते थे,

और उन्ही के कारण,

यहाँ पर अति-उन्नत किस्म की केसर उगा करती थी,

लेकिन धीरे-धीरे यहाँ लोग आते गए,

और गन्धर्व कम होते गए,

और धीरे-धीरे यहाँ गाव बस गया,

लेकिन लोगो के अधिक आवागमन होने के कारण,

गन्धर्वो के अपने आनंद में दखल होने लगी,

और वे इस चोटी को छोड़कर चले गए,

उनके जाने के साथ ही केसर भी कम होता गया,

और लोग दुखी होने लगे,

कुछ मनुष्यो के स्वार्थ और अधिक पाने की लालसा में,

उस परमात्मा का सृजन रुष्ट होने लगता है,

लेकिन उन थोड़ो की खातिर सभी को,

परेशानिया और कष्ट झेलने पड़ते है,

लेकिन,

प्रकृति बहुत ही न्यायपूर्ण और दयावान है,

जिसने एक बूंद भी बिना किसी कारण खोया है,

उसे पूरा सागर से भर देती है,

और,

जिसने एक तिनका भी बिना किसी कारण पाया है,

उसे पूरा रिक्त कर देती है,

हा,

उसके न्याय में थोडा विलम्ब हो सकता है,

लेकिन,

अन्याय कभी नहीं करती है,

और उसके इसी विलम्ब के कारण,

कई लोग बुरे कर्म करते रहते है,

लेकिन अंत में सबको पछताना पड़ता है !

तभी किसी ने सलाह दी की,

क्यों ना गन्धर्वो के लिए एक मंदिर बना लिया जाये,

और उनको प्रसन्न करने के लिए उत्सव मनाया जाये,

लोगो ने ऐसा ही किया,

और देखते ही देखते केसर वापस आने लगी,

और तब से अब तक,

यही परंपरा चली आ रही है,

गाव के सभी लोग इस उत्सव में भाग लेते,

और इन चार दिनों,

गन्धर्वो को प्रसन्न करते,

और उनका धन्यवाद करते !



2 साल हो चुके थे,

कृतिका के पिता की मृत्यु हुए,

समय ने कृतिका के मन के घावो को सुखा दिए थे,

लेकिन भरे नहीं थे,

अब कृतिका ज्यादा किसी से बोलती नहीं थी,

अब वो उसका हसी से बाते करना,

दुसरो से रूठना,

सखियों के साथ घूमना,

सब जैसे काल ने अपने अन्दर पचा लिया हो,

समय बहुत ही बड़ा गुरु होता है,

वह हर किसी को,

वो सब कुछ सिखा देता है,

जो उसको सिखना चाहिए होता है,

समय की शिक्षा से कोई नहीं बच पाया,

और जो उसकी परीक्षा में असफल हुआ,

वो मनुष्यता की कोटि से नीचे गिर गया,

और उसको वापस ऊपर उठने में,

और भी कठिन परीक्षाए देनी पड़ती है !

उत्सव का पहला दिन था,

सभी लोग हसी-उल्ल्हास लिए,

उत्सव में शामिल थे,

सिर्फ

कृतिका को छोड़ कर !
Bahot shaandaar update bhai
 
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