उस शाम घर से दुकान जाते वक्त प्रमोद ने सोचा की आखिर क्यू चन्दा उसके पास आने से हिचकती है और इस बात को गुस्से से ना सोच कर ठीक इसके उलट उसने शांत मन से सोच और एक फैसला लिया की वो चन्दा के मन मे अपनी जगह बना कर ही रहेगा भले ही उन दोनों की उम्र मे बहुत बड़ा फासला था पर जब किसी रिश्ते को पूरे मन से निभाओ तो प्यार के फूल खुद ब खुद खिल जाते है........
समय अपनी रफ्तार से चलता रहा और चंदा ने भी अपने बेचैन मन को संतावना देते हुए प्रमोद के घर गृहस्थी में रमने लगी थी.....हालांकि एक आम पति पत्नी के तरह दोनो में नजदीकिया नही आई थी........पर प्रमोद इन नजदीकियों को अपने और चन्दा के बीच पनपाने के लिए रोज दोपहर मे घर आता और जिद कर के चन्दा के साथ ही खाना खाता और इसी बहाने वो चन्दा को अपने करीब लाने की कोशिश करता पर उसने अभी भी चंदा को अपने हाथों से खाना खिलाने और उसका हाथ पकड़ने से आगे नहीं बढ़ा था क्युकी ताली एक हाथ से तो बजती नही है और चन्दा प्रमोद से वैसे ही छिटकी छिटकी रहती थी........जब कभी प्रमोद को मौका हाथ लगता वो चन्दा को छेड़ने के बजाय उससे बातें करता और बातों बातों मे ही उसको छेड़ देता था जिसका मतलब चन्दा बखूबी समझती थी पर उसे अब इन सब बातों की आदत हो चुकी थी........
उनकी शादी हुए ग्यारह महीने हो चुके थे और घर में सब की जिंदगी अपने अपने तरीके से चल रही थी सिवाय चंदा के क्युकी उसकी जिंदगी एक दायरे में सिमट कर रह गई थी पर उसको इसका कोई दुख नही था क्युकी इन सब में एक अच्छी बात थी जो उसको सुकून देती थी वो थी उसके बाबा की मुस्कान उसके बाबा का चिंता मुक्त चेहरा......
दयानंद ने जब चंदा की शादी प्रमोद से करवाई थी तो उसके जेहन में एक डर था कि कही उसका ये फैसला उसकी बेटी का जीवन ना बर्बाद कर दे पर आज वो चंदा को अपने घर गृहस्थी में व्यस्त देख के सारी चिंताओं से मुक्त हो कर अपने जीवन के बचे समय को अच्छे से जी रहा था पर उसे नही मालूम था कि हो न हो उसके इस कदम ने चंदा के जीवन को एकदम सलीके से बर्बाद किया था.....
पर कहते है ना की बुरे के बाद अच्छा होता है......काली अंधेरी रात के बाद एक सवेरा होता है जिसके उजाले से काली रात का साया ऐसे भागता है जैसे उसका अस्तित्व ही नहीं था.....और जब चंदा ने अपने आराध्य भोले बाबा से मुंह फेरा था तो भगवान ने भी उसके लिए कुछ अच्छा सोच रखा था........
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इधर प्रमोद के अथक प्रयासों के बाद भी चंदा से जिस चीज की जिस प्यार की जिस सम्बन्ध की अपेक्षा रख रहा था वो नहीं मिलने की स्तिथि में एक बार फिर से नशे की तरफ बढ़ रहा था वो अब रोज रात को थोड़ी थोड़ी के नाम पर शराब पिने लगा था हालाँकि पहले के मुकाबले वो पिने के बाद किसी से झगडा लड़ाई नहीं करता था घर आने के बाद चंदा उसके सामने जो भी परोसती वो खा कर सोने चला जाता........नौरंगी भी सारी स्तिथि जान रहा था इसलिए उसने प्रमोद के इस व्यवहार पे कोई आपति नहीं जातई वही दयानंद को भी उसने इस मामले को ले कर कुछ ना बोलने को कहा......
इधर प्रेम अपने दूकान को पुरे तरह से अपने नियंत्रण में ले कर चला रहा था जबकि प्रमोद को केवल अपने खर्चे भर के पैसो से मतलब होता था और कुछ नहीं और प्रेम ने भी अब उसको टोकना बोलना छोड़ दिया था क्युकी उसका बाप कुत्ते की वो दूम था जो कभी सीधा नहीं हो सकती........उसे शुरू से बस अपनी खुशी और अय्याशी से मतलब था और आज भी वही है पर नौरंगी के दिए हुए धमकी के कारण वो पहले की तरह तमाशा नहीं करता था........
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एक दिन नौरंगी और दयानंद सुबह अपने काम पर निकलने को थे तभी दयानंद ने चन्दा से कहा की वो उन दोनों का एक कुरता और पायजामा थैली में डाल कर दे दे क्युकी शाम में उन्हें और नौरंगी को एक परिचित के बेटे के विवाह के कार्यक्रम में जाना है और लौटने में देर होगी......ये बात सुनते ही प्रमोद के मन में महीनो से सोये हुए अरमान जाग गए इसलिए तुरंत उसने अपना दाव खेला और बोला की जब लौटने में देर होगी तो प्रेम को भी आप उस जगह का पता दे दीजिये दुकान बंद करने के बाद ये भी आपलोगों के साथ हो आएगा......प्रेम बोला कोई जरूरत नहीं है तो नौरंगी बोला की अरे कोई बात नही तू पीछे से आ जाना सिर्फ खाना ही तो खा कर लौटना है और बाकी लोगों से मिलने मिलाने के लिए हम लोग पहले से वहा रहेंगे ही तो प्रेम बोल चलिए ठीक है पर मेरा कुछ पक्का नहीं है और ऐसा कह कर वो प्रमोद के साथ निकल गया जबकि दोनों बूढ़े भी अपने काम के लिए निकल गए और इधर चन्दा का मन अभी से ही व्याकुल हो चला था रात का समय और नशे मे चूर प्रमोद उसके साथ कुछ न कुछ हरकत जरूर करेगा........लेकिन बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी.......
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दुकान जाने के दौरान प्रमोद ने सोचा आज मौका अच्छा है और इतने दिनों तक मैंने अपनी रानी के साथ कोई भी ओछी हरकत नहीं की है तो हो सकता है आज मेरी रानी मुझपे अपने प्यार की बारिश कर ही दे और आज घर लौटते समय पउआ को हाथ भी नहीं लगाऊँगा.......
आज दोपहर मे प्रमोद दुकान से घर ना जा कर सैलून चला गया जहा उसने अच्छे से अपनी दाढ़ी और बाल बनाए क्युकी उसके मुताबिक आज उसकी दूसरी सुहागरात हो सकती थी........
प्रमोद जब वापिस दुकान पर आया तो प्रेम उसके बदले और संवरे हुए मिजाज और ढंग को देख कर बोल शादी मे आपका जाने का मन है क्या????
तो प्रमोद बोला नहीं नहीं वो तो दाढ़ी बनाने गया था तो लगे हाथ बाल भी बना लिया क्यू अच्छा नहीं लग रहा क्या........तो प्रेम हस कर बोल अरे नहीं हम ऐसा थोड़े ही बोले........उम्ममम हम भी सोच रहे है की रात के प्रोग्राम मे दादा जी के साथ हो आता हु पर आज आप पी के घर मत चले आना रोज की तरह........तो प्रमोद चिढ़ कर बोला अरे तू घूम फिर कर मेरे खाने पीने की बातों को ले कर ही क्यू बैठ जाता है........तो प्रेम बस मुह बनाते हुए अपने काम मे लग गया........वही प्रमोद ने भी बात आगे बढ़ाना सही नहीं समझा और वो भी चुप कर के एक तरफ बैठ गया........
दूसरी तरफ चन्दा ने जब ये देखा की प्रमोद रोज की तरह दोपहर मे नहीं आया तो एक अजीब सा खलीपान उसको महसूस होने लगा क्युकी हर दोपहर मे प्रमोद का आना एक आदत बन चुका था जिसका एहसास चंदा को आज हो रहा था......चंदा खुद से ही मन ही मन सवाल करने लगी की प्रमोद के आने ना आने से उसको फर्क क्यों पड़ रहा है....खैर प्रमोद के जगह दोपहर बाद आज प्रेम घर आया और खाना खाने के बाद शादी में जाने के लिए तैयार हो कर निकल गया......देर शाम प्रेम प्रमोद को दुकान समय से बंद कर घर जाने को बोल कर शादी में जाने को निकल गया....