आज तो नही भाई कल रात तक देंगे....अभी तो लिख हो रहे हैWaiting for next update please
Ok bhaiआज तो नही भाई कल रात तक देंगे....अभी तो लिख हो रहे है
Twist ahead...!!! I think so , but things is not matched for chanda. She had expected God grace with her devotion and at last distanced herself from temple..it only happens when someone broken down. Well let's see what unexpected things will happen ..
Aur bhai..Unexpected rishta banane me aap ne masters kiya hai.![]()
बढ़िया, प्रेम इकलौता समझदार है इस घर में, प्रमोद तो वैसे भी आमोद प्रमोद में रहने वाला इंसान है।शादी के बाद दयानंद चंदा और बाकी लोगो के साथ ही गोरखपुर आ जाता है.....दयानंद ने बेगूसराय वाला घर में ताला लगा देता है क्युकी वो उसे अपनी बेटी चंदा के नाम करने वाला था और ये फैसला उसने बहुत पहले से ले रखा था.....
गोरखपुर आने के बाद दयानंद के पास कोई काम तो रहा नहीं पर अब दामाद के घर रह कर वो उसकी कमाई तो खाने से रहा इसलिए वापिस बेगूसराय जा कर उसने अपनी पुरानी ठेला गाड़ी को बेच कर उसी पैसे से गोरखपुर में एक नई गाड़ी खरीद ली और लग गया काम पे....और नौरंगी जैसे बेगूसराय से आना जाना करता था वैसे ही करने का सोचा पर जब दयानंद यहां रहने वाला था तो दया के लिए उसने अपने बेगूसराय वाले घर को बेचने का फैसला लिया और पैसे प्रेम के नाम डाकघर के एक खाते में डाल दिए जो की प्रेम के लिए बहुत ही अच्छा था क्युकी जब उसकी पढ़ाई खत्म हो जाएगी तो इन पैसों को वो अपने बिजनेस या फिर किसी और काम के लिए इस्तेमाल कर पायेगा....पर प्रमोद को ये बात नागवार गुजरी पर उस वक्त वो कुछ बोला नहीं.....
शादी हुए पंद्रह दिन से ऊपर होने को आए थे और चंदा ने जैसे अपने घर को संभाल रखा था उसने यहां भी अपनी मां के सिखाए गुण और संस्कारो से पलक झपकते प्रमोद के मकान को घर बना दिया था....
एक कुशल गृहणी की तरह वो हर किसी का ध्यान रख रही थी चाहे वो प्रमोद हो या फिर प्रेम और उसके बाबा तो थे ही....
प्रेम को वो बेटे के तरह ही मानती थी वही प्रेम कभी सामने से उसको मां शब्द से संबोधित तो नही करता था पर चंदा के लिए आदर सम्मान अपनी जगह पे थे.....
और इधर प्रमोद अंदर ही अंदर बौखलाया हुआ था चंदा की जवानी का रस पीने को पर उसको मौका हाथ नही लग रहा था शुरू के कुछ दिनों में प्रमोद चाह कर भी चंदा के करीब नही जा पाया क्युकी एक तो उसका ससुर और उसका चाचा उसी घर कुछ ही दूरी पर सो रहे होते थे.....
और दूसरी थी चंदा.....चंदा प्रमोद के साथ शारीरिक रूप से जुड़ने के लिए अभी तैयार नहीं थी....वो थोड़ा समय चाहती थी या ये कहे उसकी अंतरात्मा इस चीज की इजाजत नहीं देती थी....पर चंदा ये बखूबी जानती थी की आज नही तो कल उसको प्रमोद के साथ हमबिस्तर होना ही पड़ेगा.....
शादी के बाद से दोनो साथ ही सोते थे और प्रमोद ने पहली ही रात को जब सब लेट गए थे तो उसने आस पास देख कर चंदा के कमर पे हाथ लगाया था तो चंदा घबरा कर उठ बैठी थी और उसके मुंह से निकला....नही.....और साथ ही साथ उसकी चूड़ियों ने इतना शोर किया की प्रमोद थोड़ा अचकचा गया की साला इसका बाप क्या सोचेगा....
उसके बाद चंदा ने प्रमोद को कुछ बोला तो नही पर चंदा का नही कहना और उसकी घबराहट साफ साफ कह गई की चंदा को अभी समय चाहिए.....और उस दिन के बाद से प्रमोद ने उसको ना तो छुआ था ना ही और कुछ किया...... पर उस दिन के बाद से प्रमोद और ज्यादा बावला हो गया चंदा के किए और उसको जब भी मौका मिलता वो चंदा के हुस्न का दीदार करने से नही चुकता था....चाहे सुबह सुबह वो जब बाल बना रही हो या फिर वो घर में पोछा लगा रही हो......
चंदा भी जानती थी की प्रमोद उसे घूर रहा है पर उसकी घूरती नजरो से खुद को बचाने के लिए कोई और जगह तो थी नहीं क्युकी प्रमोद का घर ही वैसा था.......
उसका घर एक मंजिला था और मुख्य दरवाजे से घर में घुसते के साथ एक बरामदा था और उसके बाएं हाथ पे एक चापाकल लगा हुआ था जहां वो लोग नहाने, कपड़े धोने और बर्तन धोने का काम करते थे और इसको पार करने के बाद एक हॉल नुमा पक्के फर्श का कमरा था और उसी में एक दूसरा कमरा जिसको रसोई कहना ज्यादा उचित होगा....और रसोई के बगल से एक बांस की सीढ़ी लगी थी जो सीधे छत पे जाती थी और छत पूरा खुला हुआ जिसपे या तो कपड़े सूखते या तो रात में प्रेम सोता था....और चंदा के आने के बाद से प्रेम का बिस्तर ऊपर ही लगता था....
पर दयानंद और नौरंगी का नीचे ही लगता था जो प्रमोद और चंदा के बीच अड़ंगा डाल देते थे कारण साफ था उनकी उम्र का तकाजा....
शादी के बाद से चंदा पहले के मुकाबले खामोश रहने लगी थी पर उसने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और छोड़ती भी क्यू आखिर उसने दयानंद से वादा किया था की वो सब कुछ संभाल लेगी पर दयानंद को पूरा एहसास था की चंदा कितनी खुश है कितनी दुखी......पर अब दयानंद के हाथो से रेत फिसल चुकी थी और दूसरी तरफ नौरंगी चंदा के तरीफो के पुल बांधता नही थकता था.....और दयानंद की चिंता से ग्रसित आंखो को देख कर नौरंगी कहता की दया तू अब परेशान मत हो अपनी चंदा ने सब कुछ अच्छे से संभाल लिया है....
तो दयानंद बोलता की हा संभाल तो लिया है पर मेरी चंदा कही गुम हो गई है.....और नौरंगी के पास उसका इस बात का को जवाब नही होता....खैर देखा जाए तो सब कुछ सही हो चला था सिवाय चंदा के जीवन के.....अभी उसके जीवन में और क्या क्या खुराफात लिखी हुई थी ये तो बस उसके भोले बाबा ही जाने.....
नौरंगी अब प्रमोद के साथ ही दुकान पर बैठने लगा और इसी बात का फायदा उठा कर प्रमोद एक दोपहर घर पहुंच गया.....और आज वो कुछ सोच कर आया था पर शुरुवात कैसे करे ये समझ नही आ रहा था क्युकी जोर जबरदस्ती से मामला बिगड़ सकता था.....
वही चंदा प्रमोद को देख कर चौंक गई पर प्रमोद ने घर में घुसते हुए कहा आज तबियत थोड़ी ठीक नही लग रही थी सर दर्द कर रहा था इसलिए थोड़ा आराम करने चला आया थोड़ा सर में तेल लगा कर दबा दोगी क्या.....
अब चंदा फसी उसने प्रमोद को बोला पहले आप मुंह हाथ धो कर कुछ खा लीजिए फिर हम तेल मालिश कर देंगे.....
पर प्रमोद को तो आज कुछ और ही भूख लगी थी पर फिर भी उसने जल्दबाजी के बजाय संयम से काम लिया और चंदा के कहे अनुसार मुंह हाथ धो कर बैठ गया खाने को....खाने के बाद प्रमोद फटाक से खेंदरा (चटाई) बिछा कर लेट गया और चंदा उसके सिरहाने आ कर उसके बालो में तेल डाल कर धीरे धीरे मालिश करने लगी....
इधर चंदा के हाथो का स्पर्श पाते ही प्रमोद के तन बदन में आग लग गई और कुछ देर बर्दाश्त करने के बाद उसने चंदा का हाथ पकड़ लिया तो चंदा फिर से हड़बड़ा गई और दूर हटना चाही....
फिर प्रमोद उससे बोला क्या हुआ हमसे डरने क्यू लगती हो हम कोई प्रेत आत्मा है क्या....
चंदा का घबराहट के मारे कोई जवाब देते ना बन रहा था....फिर प्रमोद ने उसे हिलाया और पूछा की बोलती क्यू नही है....
चंदा के मुंह से शब्द फूटे मुझे ये नही पसंद....तो प्रमोद बोला फिर शादी क्यू की....
चंदा फिर से चुप और उसको ऐसे चुप देख कर प्रमोद को चिढ़ होने लगी....वो उठ कर बैठा और चंदा के हाथ को छोड़ कर उसके चेहरे को ठोड़ी के पास से पकड़ कर थोड़ी देर यूंही देखता रहा और चंदा दूसरी तरफ देखती रही....
प्रमोद ने उसे धीरे से एक तरफ धक्का सा दे दिया और उठ खड़ा हुआ और अपने कपड़े पहन कर घर से बाहर निकल गया.....
इधर प्रेम ने नौरंगी को दुकान पे अकेला देख कर टोका कितना चैन का जिंदगी हो गया आप लोग का है ना....उनका जीवन में जहर घोल के हमको तो ये समझ नही आता की आपके गले से रोटी उतरता कैसे है अरे ये सब करने के लिए एक नौकरानी रख लेते हम तब भी बोले थे और आज भी बोलेंगे दादा आप बहुत गलत किए और साथ साथ दया दादा का भी दिमाग खराब कर दिए आप....जानते है शादी को एक महीना होने को आया है पर हम शायद ही उनके मुंह पे हसी देखे हो....
और आपको लगता है की घर संभाल ली कपड़े बर्तन खाना पकाना कर रही है तो लड़की खुश है....
नौरंगी बोला अरे बेटा थोड़ा अपने बाप के बारे में भी सोच अभी उसकी उमर ही क्या हुई है....प्रेम बोला मेरा उमर उन्नीस साल होने को आ रहा है और पापा चालीस के पार है और उनका उमर मुश्किल से तीस या उनतीस होगा बारह तेरह साल का फरक है दादा....
नौरंगी बोला अरे बेटा पंद्रह पंद्रह साल से भी ज्यादा फासला होता है मर्द और औरत में और उनकी शादियां चलती है बेटा और आज तक चलती आई है....प्रेम बोला अच्छा तो फिर आपका क्यू नही चला....
नौरंगी प्रेम के मुंह से खुद के लिए ऐसा तिरस्कार सुन कर सर झुका लिया और उसके आंखो से आंसू बह निकले....
आज शायद उसको प्रेम की कही गई बातो का मतलब समझ आया की शादी तो किसी से भी हो जाती है पर मुश्किल होता है सामंजस्य बिठाना और उस शादी के रिश्ते को निभाना....
प्रेम को भी अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने तुरत अपने दादा को पकड़ कर घुमाया और माफी मांगते हुए बोला दादा हमको माफ कर दीजिए मेरा मतलब वो नही था....
तो नौरंगी उसको रोकते हुए बोला अरे नही बेटा तेरी बात का मतलब अभी तो समझ में आया पर अब थोड़ा देर हो चुका है हम चाह कर भी इसको पलट नही सकते....
तो प्रेम बोला पलट नही सकते पर कुछ अच्छा तो कर ही सकते है और फिर दादा पोते ने आपस में बात कर के चंदा की उदासी दूर करने के लिए एक फैसला लिया की घर में एक टीवी लाया जाए जिसपे कम से कम दूरदर्शन के गाने और अन्य नाटक देख कर उसका मन बहलेगा....और इस बात की खबर जब प्रमोद को हुई तो उसने भी कोई आपत्ति नहीं जताई क्युकी उसको तो बस अब अपना रास्ता साफ चाहिए था तो वो सोचा की क्यू ना पहले थोड़ा प्यार से काम लिया जाए.....
शाम को घर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी आ गया और चंदा के लिए ये नया नया खिलौना जैसा था उसने इसको अपनी एक दो सहेलियों के घर में देखा था पर खुद के घर में एक रेडियो तक नहीं था.....
टीवी लगने से घर का माहोल थोड़ा बदला और नौरंगी को भी लगने लगा था की समय धीरे धीरे बदल रहा है और उसकी बेटी भी इस माहोल में ढल जायेगी जो की कुछ हद तक सही भी था.....आखिर चंदा सब कुछ तो कर ही रही थी सिवाय प्रमोद के साथ हमबिस्तर होने के आज ना तो कल वो भी हो ही जाना था.....
खैर उस शाम टीवी का एंटीना और डिश जोड़ने में ही समय निकला और देर रात टीवी चालू होने के बाद सब ने खाना खाया और सोने को चले गए....
बिस्तर पे आते ही चंदा के मन में दोपहर वाला दृश्य घूम गया पर प्रमोद ने आज रात कुछ नही किया क्युकी अभी और लोग भी थे उसके हिसाब से उसके इस काम के लिए दोपहर ही सही समय था जब कली घर पे नही होता था....और उसने तो मन बना लिया था की अब रोज घर आएगा और देर सवेर चंदा का भोग वो लगा ही लेगा....