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Adultery पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना

aamirhydkhan

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कहानी "पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना: गौरव कुमार की है

मेरा नाम गौरव कुमार है। मैं, कपूरथला, पंजाब का रहने वाला हूँ। हमारा आड़त का काम है यानी हम किसान और सरकार मे बीच मे फसल का लेंन देंन का काम करते है। अब मे पंजाब से हूँ तो बता दूं के यहा की दो चीजें बहुत मशहूर है, एक पटियाला पेग ओर दुसरी पंजाबन जट्टीयां। हमारा किसानो के साथ आना जाना लगा रहता है तो किसी ना किसी जट्टी के साथ भी बात बन जाती है। आज एसी ही कहानी लेकर आया हूँ। तो कहानी आरंभ करते है।


SARBI
 
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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–33

मेरा पहला सेक्स अनुभव-एकांत में स्पर्शं के आनंद का अनुभव ।
स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे डेजी और मैं कसबे में शॉपिंग करने गए और हमने भीड़ भरी बस में मस्ती की अब आगे ।

डेजी दीदी थोड़ी सोच कर बोलीं चल नहर के किनारे चलते है दीदी के राजी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों नहर के किनारे जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था चल दिए।

हमने नहर से पहले एक भेलपुड़ी वाले से भेलपुड़ी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर नहर के किनारे बैठ गए. हम लोग नहर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए इस समय बहुत सुहाना मौसम था हम लोग भेलपुड़ी खा रहे थे और इधर उधर की बातें कर रहे थे।

डेजी दीदी मुझ से सट कर बैठी थीं और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था दीदी आज काले रंग का घाघरी (स्कर्ट) और ग्रे रंग का ढीला-सा टॉप पहनी हुई थी एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुड़ी खा रहीं थी तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की घाघरी उनकी जांघ के ऊपर तक उठ गई और इनकी जांघें नंगी हो गई।

डेजी ने अपने जांघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की उन्होंने पहले भेलपुड़ी खाई और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी घाघरी को जांघों के नीचे किया और पैरों से दबा लिया । धीरे-धीरे दिन ढलने लगा और अँधेरा छाने लगा । वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अँधेरा था फिर भी चांदनी की रोशनी में मुझे डेजी की गोरी-गोरी जांघों का पूरा नजारा मिला उनकी जांघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।

मैंने आस पास देखा पास ही कुछ बड़े-बड़े पत्थर पड़े थे, जब डेजी दीदी ने अपनी भेलपुड़ी खा चुकी तो मैंने दीदी से पूछा दीदी क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?

दीदी ने फौरन मुझसे पूछा क्यों?

मैंने दीदी से कहा वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं ।

डेजी दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?

लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा। मैंने दीदी की आंखों में झांकते हुए धीरे से बोला।

तब डेजी दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोलीं तुझे लोगों की नज़रों से दूर क्यों बैठना है? मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है। दीदी मुस्कुरा कर बोलीं हाँ मालूम तो है लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है और दीदी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।

मैं भी झट से उठ कर पहले अपना बैग संभाला और डेजी के पीछे-पीछे चल पड़ा वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी-सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा, मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया । दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गई दीदी मुझसे करीब एक फुट की दूरी पर बैठी थीं।

मैंने दीदी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा दीदी थोड़ा-सा सरक कर मेरे पास आ गई और अब दीदी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे। मैंने डेजी दीदी के गले में बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया । मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फिर दीदी के कान के पास अपना मुंह ले जाकर धीरे से कहा आप बहुत सुंदर हो।

काके क्या तुम सही बोल रहे हो? डेजी ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं ।

मैंने डेजी दीदी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ । मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।

दीदी धीरे से बोलीं मेरे लिए?

मैंने फिर दीदी से धीरे से पूछा मैं तुम्हें किस कर सकता हूँ?

डेजी दीदी कुछ नहीं बोलीं और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आंखें बंद कर ली ।मैंने दीदी की ठुड्डी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया, तो दीदी ने मेरी आंखों में झांका और फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं। मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख दिए ।ओह भगवान! दीदी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।

जैसे ही मैंने अपने होंठ डेजी दीदी के होंठ पर रखे दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गई. मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि डेजी भी गर्मा गई हैं। डेजी दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी, अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।

मैं थोड़ी देर तक डेजी दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद, मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची दबाने लगा।

मुझे हाथ घुसा कर डेजी की चूची दबाने में थोड़ा अटपटा-सा लग रहा था और इस लिए मैंने अपने हाथों को दीदी की टॉप में से निकाल कर, अपने दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा और धीरे-धीरे दीदी की टॉप को उठाने लगा और फिर अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर पहले धीरे-धीरे फिर ज़ोर जोर से मसलने लगा ।

डेजी दीदी मुझे बिलकुल रोक नहीं रही थीं और मुझे कुछ भी करने का अच्छा मौक़ा था। मैं अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर जोर से मसल रहा था। दीदी बस अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियाँ निकाल रही थी। मैं अपने दोनों हाथों को दीदी के पीछे ले गया और उनकी ब्रा के हुक खोलने लगा, जैसे ही मैंने दीदी की ब्रा का हुक खोला तो ब्रा गिर कर उनके मम्मों पर लटक गई दीदी कुछ नहीं बोली।

मैं फिर से अपने हाथों को सामने लाया और डेजी दीदी की चूचियों पर से ब्रा हटा कर उनकी चूचियों को नंगा कर दिया । मैंने पहली बार दीदी की नंगी चूची पर अपना हाथ रखा, जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूचियों को अपने हाथों से पकड़ा, दीदी कुछ कांप-सी गई और मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। मैं अब तक बहुत गर्मा गया था और मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था। मुझे बहुत ही उत्तेजना चढ़ गई थी।

मैं सोच रहा था झट से अपने पैंट में से अपना लौड़ा निकलूं और डेजी दीदी के सामने ही मुठ मार लूं, लेकिन पता नहीं क्यों मैंने ये नहीं किया। शायद कुछ शर्म बाक़ी थी अभी । मैं अब ज़ोर जोर से दीदी की नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रहा था। मैं दीदी की चूची को दबा रहा था, रगड़-रगड़ कर मसल रहा था और कभी-कभी उनके निप्पलों को अपने उंगलियों में पकड़ कर मसल रहा था ।

डेजी निप्पल इस वक़्त अकड़ कर सख्त हो गए थे। जब-जब मैं निप्पलों को अपने उंगलियों में पकड़ कर दबाता था, तो दीदी छटपटा उठती । मैंने बहुत देर तक चूचियों को पकड़ कर मसलने के बाद अपना मुंह नीचे करके दीदी के एक निप्पल को अपने मुंह में ले लिया ।दीदी ने अभी भी अपनी आंखें बंद कर रखी थीं।

जब डेजी दीदी की चूची पर मेरा मुंह लगा तो दीदी ने अपनी आंखें खोल दीं और देखा कि मैं उनके एक निप्पल को अपने मुंह में भर कर चूस रहा हूँ। वह भी गर्मा गई दीदी की सांसे ज़ोर जोर से चलने लगीं और उनका बदन उत्तेजना से कांपने लगा । दीदी ने मेरे हाथों को कस कर पकड़ लिया। इस वक़्त मैं उनकी दोनों दूधों को बारी-बारी से चूस रहा था।

अब डेजी दीदी के गले से अजीब अजीब-सी आवाजें निकलने लगीं। उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से लिपटा लिया और थोड़ी देर के बाद शांत हो गई. मेरा चेहरा नीचे की तरफ़ था और दीदी की चूचियों को ज़ोर जोर से चूस रहा था ।मुझे पर दीदी के पानी की ख़ुशबू आई ओह माय गॉड मैंने अपनी दीदी की चूत की पानी सिर्फ़ उनकी चूची चूस-चूस कर निकाल दिया था? ।

मैं अपना हाथ डेजी दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।

दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं अब और नीचे मत ले।

मैंने दीदी से पूछा क्यों?

दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोलीं नीचे अपना हाथ मत ले जाओ अभी उधर बहुत गंदा है।

मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गई दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा हाँ मैं झड़ गई हूँ।

मैंने फिर दीदी से पूछा दीदी मेरी वज़ह से तुम झड़ गई हो?

"हाँ काके तुम्हारी वज़ह से ही मैं झड़ गई हूँ । तुम इतने उतावले थे कि मैं भी अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।"

दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा क्या तुम्हें अच्छा लगा?

दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोलीं " मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी और उसके बाद मुझे झड़ाना और भी अच्छा लगा। "

दीदी ने आज पहली बार मुझे ऐसे चूमा था । दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोलीं "काके आज के लिए इतना सब काफ़ी है और हम लोगों को घर भी लौटना है ।"

मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे।


पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 
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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–34

मेरा पहला सेक्स अनुभव-रॉन्ग नबंर-धन् भाग हमारे

स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे डेजी और मैं कसबे में शॉपिंग करने गए और फिर शॉपिंग के बाद मैंने अपनी मुहबोली बहन डेजी के साथ नहर किनार एकांत के मस्ती की अब आगे ।

उस दिन मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और डेजी दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोलीं मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है मैंने फौरन पूछा क्यों?

डेजी दीदी मेरी आंखों में देखती हुई बोलीं नीचे बहुत गीला हो गया है मेरी पैंटी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।

मैंने मुस्कुराते हुए बोला सारी! दीदी मेरी वज़ह से तुम्हें परेशानी हो गई है ना?

डेजी दीदी ने मेरा एक हाथ पकड़ कर कहा काके यह गलती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ। हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था कि दीदी की समस्या को कैसे दूर करूं?

मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी मैंने फौरन डेजी दीदी से बोला एक काम करते हैं वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, दीदी तुम वहाँ जाओ और अपने पैंटी को बदल लो अरे तुमने अभी-अभी जो पैंटी खरीदी है।वहाँ जाकर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पैंटी को निकाल दो।

डेजी दीदी मुझे देखते हुए बोलीं-तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है मैं जाती हूँ और अपनी पैंटी बदल कर आती हूँ। ।

हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और डेजी दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पैंटी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी मैंने दीदी से धीरे से बोला तुम अपनी पैंटी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं?

डेजी दीदी मेरी बातों को सुन कर हंस पड़ीं और मुझसे बोलीं बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।

डेजी दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गई करीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आई हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गई और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थीं।

बस करीब-करीब खाली थीं हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए सीट पर बैठने के बाद मैंने डेजी दीदी से पूछा तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली ना?

डेजी दीदी मेरी तरफ़ देख कर हंस पड़ी मैंने फिर दीदी से पूछा बताओ ना दीदी क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?

तब डेजी धीरे से बोलीं हाँ! मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है ।

मैं फिर डेजी दीदी से बोला "मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?"

डेजी दीदी ने मेरी तरफ़ देखा तब "मैं तुम्हें तुम्हारे नयी पैंटी और ब्रा में देखना चाहता हूं" मैंने दीदी से कहा।

डेजी फौरन घबरा कर बोलीं "यहाँ? काके पागल तो नहीं हो गए हो तुम, मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पैंटी में देखना चाहते हो?"

मैंने डेजी दीदी को समझाते हुए बोला "नहीं यहाँ नहीं मैं घर पर तुम्हें घर में नई ब्रा और पैंटी में देखना चाहता हूँ।"

दीदी फिर मुझसे "बोलीं पर घर पर कैसे होगा माँ घर पर होगी, घर पर यह संभव नहीं हैं ।"

"दीदी कोई प्रॉब्लम नहीं होनी हैं माँ घर पर खाना बना रही होंगी और तुमकमरे में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी जैसे तुम रोज़ करती हो लेकिन जब तुम कपड़े बदलो कमरे का पर्दा थोड़ा-सा खुला छोड़ देना मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पैंटी में देख लूंगा।"

दीदी मेरी बातें सुन कर बोलीं-"काके देखते हैं।"

फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए हमने घर पहुँच कर देखा कि दीदी की माँ रसोई में खाना बना रही हैं।

हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर कपड़े

बदलने चली गई । मैं हॉल में ही बैठा रहा।

मैं घर आकर अपने तनी नाम के दोस्त को काल करने लगा। गलती से एक नम्बर की गलती से फ़ोन किसी और जगह जाकर लग गया। जिसे एक लड़की ने उठाया। शुरू में लगा के तनी के घर में से कोई लड़की होगी। उसने कहा, " हलो जी, तनी से बात करवादो?

लड़की– (दिल को छू लेने वाली मीठी-सी आवाज़ में) –हलो, कौन तनी जी, आपने कहाँ फ़ोन मिलाया है? यहाँ कोई तनी नहीं रहता। शायद आपका नम्बर ग़लत लग गया। नम्बर चेक करके लगाया करो जी।

मैंने ने भी सॉरी कह कर बात बन्द करदी और इतना कह कर उस लड़की ने फ़ोन काट दिया। उसकी मीठी-सी आवाज़ दिल को चीर गयी। ना चाहते हुए भी मेरा मन उसकी आवाज़ बार-बार सुनने को कर रहा था।

उसी शाम मैंने कुछ मजेदार बढ़िया चुटकुले उस नंबर के व्हाट्सप में भेज दिए। लड़की ने वह पढ़ लिए और वापिस फ़ोन किया।

लड़की–हलो, आप वह ही हो न, जिनका अभी ग़लत नम्बर लग गया था?

मैं–हांजी, सही पहचाना आपने।

लड़की–फेर भी आप ये चुटकुले भेज रहे हो?

मैं–ओह जी मैंने फेर तनी का नंबर समझ कर भेज दिए। सारी जी

लड़की–सारी किसलिए? आपके चुटकुले बहुत अच्छे हैं। पहले तो उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरी तो पढ़-पढ़ के हंसी ही बन्द नहीं हो रही है। सोचा आपका थैंक्स करदूँ। इतने अच्छी चुटकले भेज मुझे हंसाने के लिए।

मैं–मोस्ट वेलकम जी, धन् भाग हमारे जो हम आपकी हंसी की वज़ह बन सके। मुझे तो लगा था के आप फ़ोन पर झगड़ा करेंगी के जब एक बार बोल दिया फेर बार-बार क्यों तंग कर रहे हो।

लड़की–नही, नहीं जी हर लड़का लड़की बुरी नहीं होती।

मैं–हांजी, ये तो सही बोला आपने, अगर आप बुरा न माने तो मेसज आगे से भी भेज सकता हूँ क्या?

लड़की–हाँ क्यों नही? बस मेसज ऐसा होना चाहिए के अगर घर का कोई सदस्य भी पढ़ ले तो उसे बुरा ना लगे। वैसे तुम्हारा नाम क्या है, मेसज भेजने वाले अजनबी दोस्त?

मैं–जी मेरा नाम गौरव फ़्रॉम सोनगांव कपूरथला, और आप? दोस्त लोग प्यार से मुझे काके कहते है ।

लड़की–जी मेरा नाम जिनिया है और मैं जालंधर से हूँ। प्यार से घर के लोग मुझे "जिन्नि" कहते है।

मैं–अरे क्या चिराग वाली जिन्नि हैं आप? लगता है आज मेरी क़िस्मत खुल गयी?

लड़की-हुकुम मेरे आका वाली नहीं जी, चिराग वाली कहाँ, नाम जिन्नि है बस । पर आप हैं बड़े फन्नी, हर बात पर आप मज़ाक कर लेते है । हुकुम आप फिर भी फरमा सकते है ।

मैं-नाम तो आपका भी बहुत सुंदर है जिन्नि जी। अच्छा जिन्नि जी आप करते क्या हो मतलब पढ़ाई या कोई जॉब वगैरह?

जिन्नि–मैं फ़िलहाल फ्री हूँ। पढ़ाई पूरी हो चुकी है। आप क्या करते हो काके जी और आपकी फेमली में कौन-कौन है?

मैं–मैं नीट की तयारी कर रहा हूँ और मेरा ले दे के बस एक चाचा है और आपकी फॅमिली?

जिन्नि–मेरी फेमली में मैं, मेरे भाई, एक बहन और माता पिता कुल 5 मेंम्बर्स है। आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। अच्छा फेर किसी दिन बात करेंगे। अभी थोडा काम है। फ़ोन काट रही हूँ। बाय, -सी यू सून!

मैं–बाय, अपना ख़्याल रखना जिन्नि जी।

इस तरह से दोनों की पहले दिन की बातचीत ख़त्म हुई।

मैंने उसे 5-10 हल्के फुल्के जोक और भेज दिए और जिन्नि ने भी उनका जवाब दे दिया। एक रॉन्ग नंबर बात इतनी बढ़ गई के फिर गुड़ इवनिंग, सुबह गुड मोर्निंग का मेसज, शाम को गुड नाईट के मेसज और नए-नए जोक दोनों तरफ़ से आने जाने लगे। इस तरह से उस दिन मेरी जिन्नि से दोस्त हो गयी ।

पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
बहुत ही मस्त और मजेदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–35

मेरा पहला सेक्स अनुभव- नई ब्रा पैंटी में नज़ारे और नई दोस्ती



स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि डेजी और मैं कसबे में शॉपिंग करने गए और फिर शॉपिंग के बाद मैंने अपनी मुहबोली बहन डेजी के साथ नहर किनार एकांत के मस्ती की और घर वापिस आ गए फिर एक रॉन्ग नबंर नंबर लगा और मेरी जिन्नि नामक लड़की से दोस्ती हुई । अब आगे।

रसोई में पहुँच कर डेजी दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा-सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दीं और हल्के से आँख मार दीं। मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया।

डेजी दीदी मुझसे सिर्फ़ 5 फीट की दूरी पर खड़ी थीं और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थीं ।मां दीदी से कुछ बातें कर रही थीं दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दीं टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदीं हुई ब्रा दिखने लगी।

वाह क्या ब्रा थीं!

फिर डेजी दीदी ने फौरन अपने हाथों से अपनी घाघरी के नाड़े को ढीला किया और अपनी घाघरी भी उतार दीं। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पैंटी में थीं। डेजी दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पैंटी खरीदीं है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थीं और उसके साथ पैंटी में भी ख़ूब लेस लगा हुआ था। मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे ।फिर मेरी आंखें दीदी के पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकी।

डेजी दीदी की पैंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़ साफ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे । मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पैंटी में अपनी आंखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। दरअसल मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।

डेजी दीदी को ब्रा पेंटी में देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे सारे वक़्त दीदी मुझसे आंखें चुरा रही थीं शायद दीदी को अपने काके भाई के सामने ब्रा और पैंटी में खड़ी होना कुछ अटपटा-सा लग रहा था। जैसे ही दीदी ने मुझे देखा तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गई लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा ।

मैं डेजी दीदी को अब पीछे से देख रहा था दीदी की पैंटी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूंगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउंगा ।थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गई और अपनी मैक्सी उठा लीं और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ।

मैंने डेजी दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ दीदी बस मुस्कुरा दीं और अपनी मैक्सी पहन लीं। मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया। दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।

मैं दीदी को सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुठ मारना था मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।

मुझे बार-बार यही याद आ रहा था की आज पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए फिर हम लोग नहर के किनारे गए. फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे। फिर मैंने डेजी दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गई. फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पैंटी और ब्रा चेंज की थी। मेरे दिमाग़ में यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पैंटी अभी भी बैग में ही होगी।

मैंने रसोई में झांक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से डेजी दीदी की उतारी हुई पैंटी निकाल कर अपनी जेब में रख ली। मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया फिर मैंने दीदी की गीली पैंटी को खोला और-और उसे उल्टा किया।

मैंने देखा कि जहाँ पर डेजी दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफेद-सफेद गाढ़ा गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है। जब मैंने वह जगह छुई तो मुझे चिपचिपा-सा लगा। मैंने पैंटी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी और मैं पागल हुआ जा रहा था ।

मैं डेजी दीदी की पैंटी की चूत वाली जगह को चाटने लगा वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है मज़ा आ गया मैं दीदी की पैंटी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पैंटी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।

थोड़ी देर के बाद जब डेजी दीदी को अपनी भीगी पैंटी की याद आई तो वह उसको बैग में ढूँढने लगीं, शायद दीदी को उसे साफ़ करना था दीदी को उनकी पैंटी और ब्रा बैग में नहीं मिली थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा मुझे अपनी पुरानी पैंटी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है। मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।

"तू हंस क्यों रहा हैं? इसमें हंसने की क्या बात है" डेजी दीदी ने मुझसे पूछा ।

मैंने डेजी दीदी से पूछा "दीदी तुम्हें अपनी पुरानी पैंटी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पैंटी मिल गई है ।"

तब कुछ-कुछ समझ कर डेजी ने मुझसे पूछा "क्या उनको तुमने लिया है?"

"मैं भी कह दिया हाँ दीदी मैंने लिया है वह दोनों अपने पास रखना है तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर ।"

तब डेजी दीदी बोलीं "काके वह गंदे हैं ।"

मैं मुस्कुरा कर डेजी दीदी से बोला " मैंने उनको साफ़ कर लिया लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा क्यों? मैंने दीदी से कहा मैं बाद में दे दूंगा अब माँ कमरे आ गई थीं इस लिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा ।

मैं अपना मोबाइल देखने लगा और जिन्नि ने भी मेरे चुटकले के जवाब में चुटकला भेजा था फिर रात को गुड नाईट के मेसज दोनों तरफ़ से आने जाने लगे। अगले कुछ दिन में ही मुझे और जिन्नि को-को एक दूसरे से फोम [पर बात करने की लत लग गयी। सारी-सारी रात हम फ़ोन में घुसे रहते।

मुझे एक दिन कुछ किताबे लेने जालंधर जाना था मैंने जिन्नि को बताया मैं कल नीट की कुछ नयी किताबे लेने जालन्धर आ रहा हूँ। यदि तुम चाहो तो मिल सकती हो।

अब जिन्नि भी अपने मुझे आँखों से देखना चाहती थी। दोनों में टाइम और जगह निर्धारित की गयी।

अगले दिन में जालंधर पहुँचा। किताबे ली और बताई जगह पर एक गिफ्ट लेकर पहुँचा। पार्क में बहुत-सी लड़किया घूम रही थी। अब मुश्किल थी के कैसे पहचानु जिन्नि को?

मैंने फेर जिन्नि को कॉल लगाई। जिन्नि ने फ़ोन उठाया और पूछा, " कहाँ रह गए हो मैं वेट कर रही हूँ, पार्क में आपका।

मैं–न मैं भी पार्क में ही हूँ। आप पार्क में कहाँ हो?

जिन्नि–मैं पार्क में गेट के लेफ्ट साइड के पास पिंक जिन्नि वाली ड्रेस में हूँ। गेट के पास आ जाओ।

मैंने फॉरेन फ़ोन काटा और गेट की तरफ़ चला गया। गेट के पास बने पत्थर पर एक माध्यम कद वाली लड़की किसी और दोस्त से बात कर रही थी। पिंक जिन्नि ड्रेस की पहचान से ये जाहिर था के वह जिन्नि ही थी। मैंने व्हाट्सप पर उसकी फोट भी देखि थी, मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखकर उसे बुलाया, हलो जिन्नि।

उसकी उम्र 18 वर्ष के करीब थी। उसके फिगर की बात करे तो न ज़्यादा मोटी, न ज़्यादा पतली बस गदराया-सा बदन, मध्यम कद, बड़े बूब्स वाली गोरी सुंदर पंजाबी लड़की थी।

जिन्नि ने पीछे मुड़कर देखा तो एक 6 फ़ीट कद का गोरा लड़का उसे बुला रहा था। उसने उस लड़के को कहा, "काके।"

मैं–हांजी, बिलकुल सही पहचाना ना मैंने?

जिन्नि ने बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया। फेर हम नज़दीक के एक रेस्टोरेंट में गए। अब दोनों 2 कुर्सियो वाले टेबल पर एक दूसरे के सामने बैठे थे। इतने में वेटर ने आर्डर लिया और 5 मिनट में आर्डर किया हुआ सामान सर्व कर दिया।

थोड़ी देर बाद मैंने उसे गिफ्ट उसे दिया। जिसे देखकर उसे बहुत अच्छा लगा। जिन्नि वहीँ गिफ्ट खोलने लगी तो मैंने उसे रोक दिया और घर पर जाकर खोलने के लिए विनती की।

माहौल एक दम खुशनुमा था। इतने में जिन्नि थोडा उदास-सी हो गयी और बोली, " काके जी एक बात बोलने को मन कर रहा है। लेकिन समझ नहीं आ रहा कैसे बोलू? डर लग रहा है के कही आप बुरा न मान जाओ।

मैं–नही, नहीं जिन्नि जी, आपका बुरा क्यों मानना। जो भी दिल में है बोलदो। जिससे आपका भी मन हल्का हो जायेगा। बताओ क्या है दिल में आपके?

जिन्नि–मैं ये कहना चाहती हूँ के। के मैं शादीशुदा हूँ।

मुझे ये सुनकर काफ़ी अजीब लगा क्योंके मैं तो यही समझ रहा था के मेरी दोस्त कुंवारी है।

जिन्नि–मैं हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी मांगती हूँ के मैंने आपसे ये बात छुपाई। लेक़िन मुझसे रहा नहीं गया बात बताने बिना। क्योंके यदि यही बात तुम्हे किसी और से और से पता चलती शायद आपको बहुत ही बुरा लगता। एक बात तो पक्की है। आपको चाहे बुरा लगा या नही। परन्तु मेरे दिल से हज़ारो क्विंटल वज़न उत्तर गया है। अब मैं ख़ुद को रिलैक्स महसूस कर रही हूँ।

एक बात और एक महीने में पता ही नहीं चला के कब तुम मेरे दिल में समा गए हो। इतना मोह मुझे मेरे पति का नहीं है। जितना तुम पर प्यार आ गया है। मुझे चाहे अच्छी समझो या बुरी लेकिन इन रियली आई लव यू सो मच। आई होप तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करने लगे हो और मेरी शादीशुदा वाली बात को माइंड नहीं करोगे।

मैं-और (झूठी-सी मुस्कान लिए) –जिन्नि जी, मुझे आपकी बात का बुरा नहीं लगा। जिन्नि जी आप कह रही थी आपके परिवार में आप 5 लोग ही हो, आप, भाई बहन और मम्मी पापा, आपने इतनी बड़ी बात छुपा ली क्यों? हाँ आज ये जानकार बस थोडा अजीब ज़रूर लगा के यदि पहले पता चल जाता तो शायद हम इतना नज़दीक न होते। अब मुझे भी आपसे दूरी बनाकर रखनी पड़ेगी। क्योंके मेरे ऐसा ना करने से आपकी शादीशुदा लाइफ प्रभावित होगी। सो आप भी प्लीज आगे से मुझसे कम से कम बात करने की कोशिश करनाl

जिन्नि–ना... ना... ऐसा-सा कहिए काके जी। अब अपने से दूर न करो मुझे। मेरा पति काम काज में ज्यादातर उलझा ही रहता है। सो मुझे समय नहीं दे पाता। इस लिए मैं ज्यादातर फ़ोन पर बिजी रहती हूँ। उससे मेरा झगड़ा हुआ था और मैं उससे लड़ कर उदास-सी पड़ी रहती थी, जब आपके जोक पहली बार मिले, उस दिन से मेरा मु बदला है और बाकि आप समझ ही सकते हो। मुझे आपका साथ पसन्द है। यदि मैं शादीशुदा न होती पक्का आपसे शादी करके आपकी सेवा करती।

अजय–अब कुछ नहीं हो सकता जिन्नि जी, अब तो आप अपने पति के साथ ठीक से ज़िन्दगी बसर कीजिए। इसी में आपका भला है और उठने लगा ।

जिन्नि–अरे रुको काके जी मेरा घर यही पास में ही है। हम कुछ देर गप्पे तो मार ही सकते है, प्लीज मुझे ब्लॉक मत करना और प्लीज जोक भेजते रहना और मुझसे बात करते रहना

मैं-"ठीक है जिन्नि जी, फेर कभी मिलते है। आज के लिए इतना ही काफ़ी है।"

उसके बाद मैं अपने घर आ गया और अपनी पढ़ाई में लग गया और कुछ दिन में बहुत बोर हो गया और कुछ ख़ास नहीं हुआ, बस डेजी को देखना और ताड़ना और कभी-कभी छू देना, कभी अकेले में मौका मिलने पर बूब्स दबा देना, किश कर देना चलता रहा ।

पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

aamirhydkhan

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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–36

मेरा पहला सेक्स अनुभव-गांडू से मुलाक़ात

स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि शॉपिंग के बाद मैंने अपनी मुहबोली बहन डेजी के साथ नहर किनारे मस्ती की और घर वापिस आ गए, फिर मैं जिन्नि से मिला और मुझे पता चला की जिन्नि शादी शुदा है और मेरा मूड बिलकुल खराब हो गया । अब आगे।

फिर एक दिन घर में डेजी दीदी के शरीर में एक दिन बहुत दर्द होने लगा और सारा दिन बिस्तर पर पड़ी रही, मैंने पूछा तब उसने बताया लड़कियों वाली प्रॉब्लम है। मैं बायॉलजी का छात्र हूँ इसलिए समझ गया दीदी का महीना आ गया है । अब दीदी मुझ से दूर रहने लगी और मुझे छूने भी नहीं दे रही थी । सब छेड़छाड़ बंद हो गयी । मैं उन दिनों टाइम पास के लिए फिर से मोबाइल पर पॉर्न देखने लगा क्योंकि मेरा मन जिन्नि से बात करने का भी नहीं कर रहा था ।

शाम का समय था और मैं अपने गाँव के तालाब के पास खड़ा होकर सेक्सी पॉर्न वीडियो देख रहा था। तभी जिस गांडू लड़के ने मुझसे पहले गांड मरवाने की ज़िद की थी और मैंने उसे भगा दिया था। वही लड़का तालाब में भैसों को लेकर आया और फिर से बार-बार मेरे पास आकर फिर से मुझे तंग करने लगा। पॉर्न देख मेरा लंड खड़ा हो गया था ।

मैं परेशान हो गया और मैंने उसे टालने की बहुत कोशिश की। लेकिन पहले जैसे उसने एक दिन किया था वैसे ही वह मेरे पास आकर मेरे खड़े लंड को छूने लगा, उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा ।

मैं उससे छुटकारा पाना चाहता था लेकिन वह नहीं मान रहा था और जब मैं उस लड़के को डांटने लगा तो वह माना नहीं और उल्टा एक बार फिर से मेरे से अपनी गांड मरवाने के लिए मिन्नतें करने लगा और अपना लोवर नीचे कर डोगी स्टाईल में खड़ा हो गया और अपनने चूतड़ों पर और बदन पर हाथ फेरने लगा। एक दम चिकनी गांड थी उसकी और गांड मरवाने की उसके अंदर आग नज़र आ रही थी। मैंने उसे किसी तरह धमका कर भगाया ।

कुछ देर बाद मुझे पेशाब आया और मैं एक पेड़ के पास पेशाब करने लगा तभी एक और लड़का आया। जिसने मुँह ढका हुआ था और मेरा लंड देख अटक-अटक कर कहने लगा हाय... क्या... मस्त लण्ड है। कितना बड़ा ...और मुझसे कहने लगा मेरी गांड मार ले तुझे बहुत मज़ा आएगा ।

मैंने बोला-भाग यहाँ से, साले गाँव ने सब गांडू भर गए है क्या? बड़ी मुश्किल से एक को भगाया है अब दुसरा आ गया, भाग गांडू यहाँ से और गाँव ने इतनी सुंदर कुडियो के होते मेरा क्या दिमाग़ खराब हुआ है जो मैं किसी लौण्डे की गांड मारूंगा ।

उसने कहा यारा बस एक बार मार दे । मेरी गांड मार कर तुझे उनकी चूत मारने से भी ज़्यादा मज़ा आएग बस एक बार मेरी गांड मार कर देख ले । फिर अपनी पेण्ट उतार कर अपनी गांड मुझे दिखा कर कहने लगा देख मेरी गांड कितनी चिकनी और टाइट है । कुंवारी चूत भी एक बार मार लो, कितनी ही टाइट क्यों ना हो, चुदाई के बाद ढीली हो जाती है पर गांड टाइट रहती है और हर बार चुदाई का पूरा मज़ा देती है यारा, जैसे मुझे गांड मराने का चस्का हैं वैसे ही तुझे गांड मारने का नशा' और चस्का लग जाएगा ...!

मैंने उसे भगाने की बहुत कोशिश की पर वह गांडू बड़ा दीठ था, आख़िर में मैंने उसे कहा अच्छा पहले ये बता तुम्हे ये नशा कैसे हुआ?

उसने कहा-मैं नासमझ था, मुझे पटाया और मेरी पेण्ट उतारी मैं नासमझ चिकना लड़का बार-बार गिड़गिड़ाता रहा, रिक्वेस्ट करता रहा । पर गांड मारने वाला नहीं माना, उसने मुझे पटाया और कहा 'यार जल्दी से औंधे हो जाओ!'

यह कहते हुए उसने मेरी टांगें चौड़ी की । और तो और हरामी अपने साथ तेल की शीशी भी लाया था, लंड पर तेल को चुपड़ा, गांड में भी तेल लगा फिर गांड में लंड डालने में मुझे मक्खन लगाया 'मेरे यार मेरे प्यारे, ढीली करो, ढीली करो ...' । फिर लंड डाल कर बार-बार पूछने लगा, 'लग तो नहीं रही?'

फिर और वह अन्दर-डाल बाहर कर अन्दर-बाहर करने में लग जाता है। बस ऐसे मेरे एक यार ने मेरी मारी और फिर बार-बार कई बार मारी और मुझे चस्का लग गया । बदमाश यार ने ऐसा चस्का लगा दिया । इन्हे लड़की मिलती नहीं है। ये बदमाश यार मेरे जैसे नासमझ लड़कों की गांड मार-मार कर लंड का चस्का लगा देते हैं।

मैंने कहा फिर मेरे पास किस लिए आया है अपने बदमाश यार के पास क्यों नहीं जाता?

उसका एक दिन मेरे से मन भर गया और उसे कोई नया चिकना मिल गया और ऐसे ही जब मेरे जैसे लौंडे से मन भर जाता है तो यार कोई नया लौंडा ढूँढ लेते हैं और ऐसे ही उनकी लगाई यह आदत मेरे जैसे लौंडे को लग जाती हैं। वे दूसरा नया माल पकड़ लेते ही, उस बेचारे पुराने लौण्डे से कन्नी काटने लगते हैं। अब मैं भी इनका मारा हुआ बाक़ी माशूक चिकना लौंडो की तरह अपनी गांड के लिए लंड तलाशता फिर रहा हूँ और हम नए यार को पटाने के लिए कई बार हम ख़ुद अपनी पैंट खोल देते हैं, अपनी बेल्ट खोल पैंट को खोल कर उतार देते हैं।

कोई की जब पट जाता है तब गांड मारने वाला अपने गांडू यार की पेण्ट उतार अंडरवियर नीचे खिसकाता है। फिर मेरे जैसे गांडू को कुछ करना ही नहीं होता है। फिर चोदने वाला ही बिस्तर को ज़मीन पर बिछा कर मेरे जैसे चिकने लौंडे को लिटा देता है।

कुछ देर बाद सच में गांड में लंड का मज़ा आने लगता है और बस चैन से अपनी गांड चौड़ी किए हुए लेटे रहते हैं, मस्ती से लंड डलवाए मजे लेते रहो ।

खेल हो जाने के बाद में वह नाश्ता पानी भी कराता है और अगली बार के लिए भी पटाने लगता है। इससे मजेदार और कौन-सा काम है?

गांड मरा कर मस्ती छा जाती है, जिन्होंने मराई हो ... सच दसा (बताउन) बड़ा मज़ा आता है?

मैं तेरी गांड नहीं मारने वाला, तू जा यहाँ से नहीं तो तेरी ऐसी पिटाई करूंगा की गांड मुँह सब सूज जाएगा, पर लड़का ढीठ था पीछे लगा रहा। उसने कहा मैं आपका लंड चूस सकता है। वह बड़ी तेजी से मेरा लोवर नीचे करने की कोशिश करने लगा। मैंने उसे बुरी तरह से लताड़ा और लात मार कर और पीटने की धमकी दी तबी वहा कुछ लोग आते हुए दिखाई दिए तब वह वहा से चला गया और तब जाकर मुझे उससे छुटकारा मिला पर जाते-जाते वह गांडू कह गया "मैं फिर मिलता हूँ"।

फिर एक शाम जब दीदी थोड़ा ठीक हुई उस दिन मैंने डेजी दीदी से पूछा क्या वह मेरे साथ कल दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी? दीदी ने हंसते हुए पूछा कौन दिखायेगा? मैं भी हंस के बोला मैं ।

डेजी दीदी बोलीं मुझे क्या पता तेरे को कौन-सा सिनेमा देखने जाना है।

मैंने डेजी दीदी से बोला "एक नया थिएटर खुला है, हम लोग नए थियेटर में चलें? वह सिनेमा हॉल थोड़ा-सा शहर से बाहर है।"

ठीक है चल चलें दीदी मुझसे बोलीं, असल में डेजी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था।

अब मुझे और कुछ चाहिए था और इसी लिए मैं डेजी दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था मुझे दीदी को छूने का अच्छा मौका सिनेमा हॉल में मिल सकता था जब दीदी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगी तो मैं धीरे से दीदी से कहा आज तुने उस दिन जो स्कर्ट ली थी वही पहन कर चलो दीदी बस थोड़ा-सा मुस्कुरा दीं और स्कर्ट पहनने के लिए राजी हो गई ।

ठीक ठाक मौसम था इस लिए मैं और दीदी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था। मैंने आज यह सिनेमा हॉल जान बूझ कर चुना था क्योंकि यह हॉल शहर से थोड़ा-सा बाहर था और वहाँ जो फ़िल्म चल रही थी वह दो हफ्ते पुरानी हो गई थी। मुझे मालूम था कि अब हॉल में ज़्यादा भीड़ भाड़ नहीं होगी। हमने वहाँ पहुँच कर टिकट ले ली और हॉल में जब घुसे तो किसी और फ़िल्म का ट्रेलर चल रहा था इस लिए हॉल के अंदर अँधेरा था।


पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
 
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"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना:-1


पंजाब के गांव सोन्गांव, कपूरथला, मे मलकीत रेह्ता था। उसकी उमर 70साल थी। मलकीत की बीवी का नाम अमरजीत है उमर 65साल। मलकीत और अमरजीत दोनो बुढे होने के कारण ज्यादा काम न्ही कार पाते थे इसलिये घर ओर खेत के काम की जिमेवारी उन्के बेटे और बहू पर है। इनके बेटे का नाम सुखा है जिसकी उमर27 साल है। सुखे की पत्नी का नाम सरब्जीत उमर 24 साल है। सब उसे सरबी कहते है। सरबी का फिगर 34-30-36था। कहानी के बाकी पात्र एक एक करके सामने आएगे। सरबी और सुखे के वियाह को 2साल हो ग्ये थे लेकिन कोई औलाद न्ही थी इसलिये सरबी सुखे से लडती रह्ती थी। सुखा खेती के काम मे जित्ना ताकतवर था हिसाब मे उत्ना कमजोर। इसलिये फसल और घर का सारा हिसाब उसकी पत्नी ही करती थी। सुखा अपनी फसल कपूरथला, सहर के सेठ बनवारी लाल के पस बेच्ता है। बनवारी लाल की उमर 45साल है और गठीला बदन जवाँ लड़को को मात देता है। फसल का हिसाब करने सुखा ओर सरबी दोंनो आते है। पिछ्ले एक साल से बनवारी सरबी को देखता आ रहा है ओर उसके गोरे रन्ग ओर उबरे मुम्मो ओर चुत्डो का दीवाना है। वह बातो बातो मे सरबी को छेड़ता रेह्ता था। बनवारी लाल ने सुखे से पांच लाख रुपए लेंने थे जिन पर हर साल ब्याज लग जाता था। एस बार सुखा गेहूंकी फसल का हिसाब करने लाला जी के पास आया था। “”ले बई सुखे तेरी पूरी फसल का हिसाब काट के मेरे पांच लाख रुपए बढ ग्ये तुमपर”। लाले ने अपना बही खाता देखकर बोला।

सुखा-“लेकिन लाला जी धान की फसल के वक़्त भी तो अपने यही कहा था, क्या अब भी उसमे से कुछ कम न्ही हुआ”। “अरे ब्याज भी तो लगता है सुखे और फिर ड़ेढ़ लाख तू और ले गया था मुज्से धान की फसल के बाद”। लाले ने कहा। “हा सेठ जी मगर कुछ तो कम होता होगा ना 2साल से पांचलाख ही खडा है”। सुल्हे ने जवाब दिया। “देख भाई सुखे मेरा दिमाग मत चाट, हिसाब करना तो तूमे आता न्ही, एसा कर अपनी बीवी को ले आईओ कल उसे सम्जा दुगा मे”। लाले ने दो टुक सुना दी। सुखा निराश होकर घर लौटा।

सुखे को आता देख सरबी मे पानी का गिलास देते हुए पुछा, “कित्ना रह ज्ञा सेठ जी का”। “अरे कित्ना क्या, पांच का पांच ही खडा है अबी भी”। सुखे ने निराश होकर बोला। “लेकिन कुछ तो कम होगा ना आखिर धान की फसल मे से भी कटवाया था कुछ करज”। सरबी बोली। “हमारी तो कुछ समझ मे न्ही आया, सेठ जी ने बोले के तुमे साथ ले के आओ तो वो हिसाब करे”। सुखे ने बोला। “हा तो हम चले जयेगे कल”। सरबी ने जवाब दिया। “अरे न्ही तुमे अकेली ही जाना पड़ेगा कल, हमे चारे को पानी लगाना है और जमीन भी तैयार करना है”। सुखे ने कहा। “कोई बात नही हम चले जायेगे”। सरबी ने जवाब दिया और खाना बनने चली गयी। दुसरे दिन सुखा रोटी खाकर खेत चला गया ओर सरबी तैयार होकर शहर चली गयी।



Z2
बनवारी लाल की दुकान पर जाकर सरबी ने लालाजी को राम राम बुलाई। अवाज सुनकर जेसे ही सेठ ने आंखे उपर उठाई तो साम्ने सरबी खडी थी। जट्टी को देखकर लाला के मुह से लार टपकने लगी। “अरे राम राम सरबी, व्हा क्यो खडी हो य्हा आकर बेठो”। सरबी के जिस्म पर नज़र घुमाते हुए लाला बोला। सरबी अन्दर जाकर चटाई पर बेठगयी। “और बताओ सरबी सब ठीक, केसे आना हुआ आज”। लाला जट्टी के चुचो को देख्ते हुए बोला। “सेठ जी आप्ने कल सुखे को बोला था ना हिसाब के लिये तो आयी हू मे”। सरबी ने जवाब दिया। “अरे हा मे तो भुल ही गया था, “। सेठ ने अपना बही खाता निकल्ते हुए जवाब दिया। “हा तो सरबी पांच लाख रुपए बाकी है अबी इस फसल के बाद भी”।

सरबी-“लेकिन सेठ जी धान की फसल के बाद भी आपने यही बोला था, कुच कम न्ही हुआ क्या”।

“तो ब्याज भी तो लगा ना, अब देखो पांच लाख तो एक के हिसाब से सांठ हज़ार का तो ब्याज बन ग्य और ड़ेढ़लाख फिर लिया तुमने, तो कुल 2लाख10हज़ार हुए, और फसल हुई 2लाख, अब 10हज़ार तो फर भी लिहाज से छोड रहा हू”। लाले ने सरबी को देल्ह्ते हुए कहा। सरबी थोडा निराश हो कर बोली-“एसे तो हम पूरी जिन्दगी कर्जे मे र्हेगे सेठ जी”।


SARBI
“मेने तुमे कहा था सर्बी के सुखे को मेरे पास कम पे लगा दो, कुच कर्जा तो मे उसके वेतन से थोदा थोडा करके काट लेता”। लाले ने जवाब दिया। “लेकिन फिर खेतो का क्या होगा सेठ जी उसके इलावा हमरे पास कुछ है भी तो नही”। सरबी निराश होकर बोली।

“है तो तुमरे पास बहुत कुछ सरबी”। लाला सरबी की जवानी को निहारते हुए बोला। “कुछ कहा सेठ जी आपने”। सरबी बोली। “अह्ह अरे मे तो कह रहा था के अब भी सोच लो ओर सुखे को य्हा कम पे लगा दो और साथ तुमे भी मे कोई कम दिलवा देता हूँ, रही बात खेतो की तो उन्हे आगे ठेके पर देदो”। बनवारी लाला बोला।

‘”बात तो आपकी सही है सेठ जी, मै सोचुगी सेठ जी इस बारे मे”। सरबी ने जवाब दिया।

“हा जरुर सोचो सरबी, अरे बई दोनो मिलकर 20हज़ार तो महिने का कमा ही लोगे उसमे से थोडे थोड़े कटवाते रहना”। सेठ बोला। “हा सेठ जी मे इस बारे मे सुखे से बात करूगी, अच्छा सेठ जी मे चलती हू”। सरबी इत्ना कह कर जाने लगी। सेठ बनवारी लाल सरबी को जाते हुए देख रहा था और जट्टी के चुतड़ देख अपना लण्ड मस्लने लगा।

"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
Good start Sarbi ki to le Helga LALA.
 

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"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना – पार्ट – 2


दोस्तो मे गौरव कहानी का दुसरा पार्ट लेकर आपके सामने हाज़िर हू, उम्मीद करता हू के पहला पार्ट अपको पसंद आया होगा। तो चलिये कहानी को आगे बढ़ाता हू, यहा सरबी लाले की दुकान से चली जाती है।

सरबी के जाने के बाद लाला फिर से बही खाते मे फसलो का जोड तोड करने लगा। अभी पांच मिनट ही हुए थे लाले को फिर से राम राम की अवाज सुनाई दी। लाले ने नज़र उठा कर देखा तो सामने रितु खडी थी। रितू लाले के पास काम करने वाले बाबू की बीवी थी। वह जात के बौरिये थे। रितु 34 की थी और फिगर 38-36-40था जो लाले ने ही किया था। बाबू क्योके सराब पीके टुन्न रेह्ता था तो रितु अक्सर लाले के बिस्तर पर आ जाती थी। रितु को देखते लाले की आंखो मे चमक आ गयी।

“अरे आ रितु केसे आना हुआ”। लाले ने लण्ड मसल्ते हुए पुछा जो सरबी के ख्यालो मे खडा था।

“सेठ जी कुच पेसे चाहिये थे घर का राशन लेने के लिये”। रितु ने जवाब दिया।

“अरे तो अन्दर आजा ना बहर क़्यो खडी है”। लाला ने उठते हुए बोला और बहर देखने लगा के कोई है तो न्ही। जेसे ही रितु अन्दर ज्ञी लाले ने दुकान का दरवाजा ल्गा दिया और रियु को पकड लिया

“क्या रितु इत्ने दिन कहा थी दिखायी न्ही दी”। लाले के हाथ रितु के मम्मे मसल ररहे थे।

“अह्ह्ह्ह सेठ जी घर मे थी अपको तो उस सराबी का पता है”। रितु ने जवाब दिया। “लेकिन आप आज इत्ने उतावले क्यो हो रहे है, पहले तो कभी एसा नही किया आपने”। रितु लाले की एस हरकत से चौंक गयी थी क्योके पहले कभी भी लाला रितु पर एकदम एसे न्ही टूटा था।

लाला को रितु को दुकान के निचे बने सुरंग टाइप कमरे मे ले गया और लाईट जला दी। “अरे मत पुछ रितु अभी अभी सरबी ज्ञी है य्हा से”। लाले ने बोला।

रितु सरबी को जानती है और दोनो अच्छी सहेलिया है। “हा तो उसने एसा क्या कर दिया”। रितु ने बैड प्र बेठ्ते हुए पुछा।

लाला भी रितु के पस बैड पर बेठ गया “क्या नही किया, मस्त जिस्म है साली जट्टी का बडे मुम्मे और उबरे हुए चुतड़, दिल तो किया था के उसे वही पकड के पेल दू”। लाले ने सरबी को याद करते हुए कहा।

“बस इत्नी सी बात, और मे पता न्ही क्या क्या सोच रही थी मन मे”। रितु बोली।

“इत्नी सी बात मतलब तू कर सकती मेर काम, लेके आयेगी जट्टी को लाले के इस बिस्तर पे”। लाले की आखोंमे चाम्क आ गयी और उसे सरबी अपने सामने बैड पर लेटी हुई दिखने लगी।

“क्यो न्ही सेठ जी आप तो जानते है के सरबी के साथ मेरि कित्नी बनती है, हा लेकिन उसकी फीस लगेगी”। रितु ने लाले की तरफ देख्ते हुए बोला।

“अरे मुंह मांगी फीस दे दुगा जो कहोगी मिलेगा जान, कहो तो अबी दे सक्ता हू जो मांगोगी। , बस एक बार जट्टी को मेरे बिस्तर पे ले आ, “। लाले ने रितु की बोला।

“अरे ज्यदा कुछ नही चहिये सेठ जी बस मुझे अपना खाता साफ चाहिये”। रितु ने भी गरम लोहे पर हथौड़ा मार दिया।

“जिस दिन जट्टी को लाले के बिस्तर पे ले आयेगी उस दिन तेरा खता साफ कर दूगा, तब तक नही”। लाले ने जवाब दिया।

“तो बस समझो ले सरबी आपकी हो गयी”। रितु ने लाले को विस्वास दिलाते हुए कहा।

“आये हाये मेरि रानी बडे पुणय का काम करेगी तू उसे यहा लाके”। लाले ने रितु की चुन्नी उतारते हुए कहा।

“आपकी गुलाम जो ठहरी”। रितु ने लाले को देखते हुए बोला। लाला अप्ने अपके उतर कर अंडरवेअर मे था। उसने रितु की करती उतर फेन्की और उसके मुम्मे चुस्ने लगा। रितु भी सिस्किया लेते हुए लाले के गठीले बदन को सहलाए जा रही थी। लाले ने रितु को निचे बेठ्ने को कहा। रितु ने निचे बेठ लाले का अंडरवेअरउतर दिया और उसका मूसल जेसे लण्ड को सहलाने लगी। लाले ने लुन्द पकड रीति के होंठो पर टोपा मसल्ने लगा।

रितु ने जेसे ही अपना मुंह खोल लाले के लण्ड को मुंह मे लिया तो लाले की सिसकी निकल गयी “ओह रितु जान चुस जान लाले का लण्ड”।


RITU



रितु भी मजे से लुन्द चूसे जा रही थी तो कभी निचे लाले के टट्टौ पा भी जीभ फेर रही थी। करीब 20 मिंट लण्ड चुसाने के बैड लाले ने रितु को खडी कर बैड पे लेटा उसकी सलवार भी उतार दी।

लाला खुद निचे खडा था, उस्ने रितु की टांगो को फैलाया और बीच मे चुत पे लण्ड रगड़ने लगा। “सांप को उसकी गुफा तो दिखा रानी”। लाले ने रितु को आंख मारते हुए कहा।

रितु भी लाले की बात समझ गयी और उस्ने अपने हाथ से चुत को खोल दिया। जेसे ही रितु ने चुत को खोला लाले ने जोर से एक घस्सा मारा और एक ही बर मे अपना पुरा लण्ड रितु की चुत की गहरायी मे उतर दिया।

“स्स्स्स्स्स्स आअह्ह्ह्ह्ह सेठ जी”रितु ने हल्की सी सिस्कारी निकली। रितु भी अब लाले के 12 इन्च लण्ड लेने की आदी हो चुकी थी। लण्ड को पुर चुत मे उतर लाले ने रितु के मम्मे पकड लिये और जोर जोर से झटके मारने लगा। रितु भी आह्ह्ह्ह स्सिस्स्सी ह्हये लाला जी कहती हुई लाले के लण्ड का मजा लेने लगी।

लाला दनादन रितु को पेले जा रहा था ओर झुक कर उसके मम्मे चुस्स लेता करीब घंटेभर बाद लाला ने अपने गरम माल की पिचकारी रितु की चुत मे ही छोड़ दी। “ओह रितु जान” कहते हुए लाला रितु के बगल मे लेट गया।

थोडे टाईम बैड रितु ने अपने कपडे पहने”लाला जी रुपए दो मुझे जाना है अब बहुत देर गयी है”। रितु ने बोला।

लाला भी अब अपने कपडे पहनने लगा, “बता तो सही कित्ने चाहिये”।

“पांच हज़ार दे दो लाला जी” रितु बोली।

“अरे थोडे ले जा पहले ही बहुत चले ग्ये है तेरी तरफ” लाला रितु को देखते हुए बोला।

“देदो लाला जी वेसे भी अब खाता तो साफ होने ही वाला है” रितु ने मुस्कुराते हुए कहा। “

”बहुत चालाक है साली तू, ठीक है लेजा लेकिन वादा मत भुलियो अपना” लाले ने 5हज़ार रुपए रितु को देते हुए कहा।

“नही भुलुगी लाला जी ” रितु ने रुपे पकडे और चली गयी।

लाला फिर से सरबी की यादो मे खो गया।

""पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना" जारी रहेगी
Lala to maje le raha hai sabhi kudiyon se.
 

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"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना"– पार्ट – 3


हेलो दोस्तो मे गौरव कुमार फिर से हाज़िर हूँ कहानी का अगला पार्ट लेकर। दुसरे पार्ट मे आपने पढ़ा के केसे रितु लाला के साथ सरबी को उसके बिस्तर पर लाने का वादा करती है। तो चलिये कहानी को आगे बढ़ातेहै।

शाम होते सरबी घर पहुंच चुकी थी ओर सुखा भी उस्के इन्तज़ार मे बेठा था। जेसे ही सुखे ने सरबी को आते देखा एक दमसे सवाल पूछनेलगा “क्या हुआ, क्या कहा लाला जी ने, हिसाब सही था क्या”। सरबी चारपाई पर बेठ गयी, “हा हिसाब तो सही है लाला जी का”। सुखा सरबी का जवाब सुनकर निराश हो गया, “तो फिर अब हम क्या करे, जीतोड मेहनत करते है लेकिन कर्ज वेसा का वेसा ही खडा है”।

सरबी सुखे को देखती हुई बोली'”सुनो ना सेठ जी ने आज हमसे काम के बारे मे बात की थी”।

“कोन्सा काम ” सुखे ने सरबी को देख्ते हुए कहा।

“सेठ जी कह रहे थे के तुम उन्के यहा काम पर लग जाओ, 8हज़ार महिना देगे और कहे मुजे भी वहा कोई काम दिलवा देगे, फिर हम वेतन मे से हर महिने थोड़े थोड़े रुपए लौटाते रहेगे”। सरबी ने सुखे को देखते हुए कहा। सुखा सरबी की बात सुनकर बोला, “लेकिन फिर खेतो का क्या होगा वहा फसल कों देखेगा”।

“खेतो को हम आगे किसी को ठेके पर दे देगे, और फिर महिने की जो कमाई होगी उस से घर का खर्चा भी निकल लेगे”। सरबी ने जवाब दिया। “वो तो ठीक है लेकिन शहर आने जाने पर भी खर्च होगा रोज का, उसका क्या”। सुखे ने सरबी को देख बोला।


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“ओहो तुम तो बिल्कुल बुद्धू हो, हम सेठ जी को बोलके कोई सस्ता मकान किरये पे ले लेगे और इस मकान यहा किसी को किराये पर दे देगे, सम्झे के नही कुछ”। सरबी ने कहा। “अब मेरा तो हिसाब तुम जानती हो, तुम कह रही हो तो सही ही होगा”। सुखे ने भी हामी भर दी।

“ठीक है फिर मे सेठ जी को बोल दुगी, तुम मा बाबू जी को शहर जाने के लिये मनाओ”। सरबी ने सुखे से कहा। सुखा भी सरबी की बात मान कर अप्ने मा बाबू जी के साथ बात करने चला गया ओर उनसे बात की। सरबी के सास ससुर ने सरबी से भी बात की तो सरबी ने उन्हे अच्छेसे समझाया तो वो शहर जाने के लिये राजी हो ग्ये।

सरबी ने शहर सेठ जी के पास जाने की बजाये उन्हे फोन लगाया। “ट्रिंग ट्रिंग” “हेल्लो हा जी कोन” सेठ बनवारी लाल ने फोन उठातेहुए पुछा। “हा सेठ जी मे सरबी बोल रही हूं”। सरबी ने आगे से जवाब दिया।

नाम सुन्ते ही सेठ उछल पडा “अरे सरबी, बोलो केसे याद किया”। सेठ ने पुछा। “सेठ जी आप उस दिन बोले थे ना के सुखे को अपने पास काम पे रखोगे और मजे ब कोई काम दिलवा दोगे”। सरबी ने सेठ को जवाब दिया।

“हा बई बोला तो था, तो क्या राय बनायी फिर तुमने”। सेठ ने उत्सुकता से पुछा। “जी हम तैयार है काम करने के लिये, और सेठ जी एक सस्ता मकान भी किराये पर दिलवा दीजियेगा, आने जाने का खर्चा नही होगा फिर”।

सरबी ने सेठ को बोला।

सेठ सरबी का जवाब सुनकर उछल पड़ा, “अरे हा बई क्यो नही, काम मेने ढूंड रखा है और मकान भी एक आध दिन मे देख लगा, तुम बताओ कब आ रहे हो तुम लोग”। सेठ ने पुछा। “बस सेठ जी जमीन ठेके पर दे दी है, और मकान भी हम्ने किराये के लिये बात करली है तो हफ्ते भर मे आ जायेगे हम”। “हा तो कोई बात नही फिर तब तक मे य्हा तुम लोगो के लिये मकान देख लेता हू”। सेठ ने जवाब दिया। “ठीक है सेठ जी”। सरबी ने फोने काट दिया।

सरबी से उसके आने की खबर सुन सेठ खुशी से पागल हो रहा था, उस्ने उसी वक़्त रितु को फोन लगाया,।

“हेलो राम राम सेठ जी” रितु ने फ़ोन उठाते हुए कहा। “राम राम मेरि जान, क्या कर रही थी”। सेठ ने पुछा। “किच नही सेठ जी बस घर का निपटा रही थी”। रितु ने जवाब दिया।

बनवारी लाल -“सुन जान, तेरी सहेली आ रही है शहर ओर उसे मकान चाहिये किराये पर”।



रितु -“कौन सेठ जी, किसकी बात कर रहे हो आप”।

बनवारी लाल -“अरे साली, वो सरबी है ना, वो आ रही है, मेने उसे और उसके घरवाले को यहा काम करने के लिया कहा था”।

रितु -“अच्छा सेठ जी, कब आ रहे है वो यहा”।

बनवारी लाल -“एक हफ्ते मे आने का बोल रही थी, एसा कर तेरे बगल मे वो मकान है हरिया का”।

रितु-“हा सेठ जी लेकिन हरिया तो मकान बेच रहा है”।

बनवारी लाल -“उसे बोल मुझे वो मकान चाहिये 2 लाख दूंगा, मेरे पास भेज देना हरिया को”।

रितु -“ठीक है सेठ जी मे हरिया को आअप्के पास भेज दूंगी”।

बनवारी लाल -“और तू कब आयेगी जान, अकेली मत आना एस बार”।



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रितु -“हा सेठ जी समझ रही हू आप क्या बोल रहे हो”। रितु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और फ़ोन काट दिया। बनवारी लाल ने हरिया से मकान खरीदा और उसकी मरम्मत करवा दी।
सोमवार के दिन सरबी और सुखा सेठ बनवारी लालके पाआ आये, “राम राम सेठ जी”। सुखे ने बनवारी लाल की नमस्कार की।

सेठ ने उपर सुखे और सरबी को देखा, “अरे आओ सुखे आ जाओ अन्दर”। सुखा और सरबी अन्दर जाकर चटाई प्र बेठ ग्ये। “सेठ जी वो आपने सरबी को कामके लिये कहा था ना”। सुखा बोला।

“हा मुझे याद है सुखे, देख तू मेरे यहा काम करले, महिने का 8हज़ार दे दूगा लेकिन काम म्ज्दूरो वाला है”,। बनवारी लाल ने कहा।

“कोई बात नही सेठ जी खेतो मे भी तो काम करते ही है, य्हा आपके पास भी कर लेगे”। सुखे ने जवाब दिया। “और सरबी के लिये कोई काम है क्या सेठ जी”।

“अरे है ना बई, सरबी मेरा एक हस्पताल है, जिसमे मजे सफाई करने और चाय पानी के लिये लेडी चाहिये, 10हज़ार म्हीने का दूंगा अगर तमे मंजूर हो तो”। बनवारी लाल सरबी को देख्ते हुए बोला। “ठीक है सेठ जी मे कर लुंगी, आप अस्पताल का पता बता दीजियेगा मुझे”। सरबी ने जवाब दिया।

“अरे बई पता क्या बताना, वो साम्ने रहा अस्पताल “। सेठ ने इशारा कर्ते हुए कहा। दरअसल सेठ सरबी को अपनी आंखो के सामने ही रख्ना चाह्ता था इसलिये उस्ने सरबी को अपने अस्पताल मे ही काम पर रख लिया। “और सेठ जी वो मेने आपसे किराये के लिये मकानं का भी बोला था तो कोई बन्दोबसत हुआ”। सरबी ने पुछा। “हा मकान भी है रितु को जानती हो ना तुम, उसके घर के बगल मे मेरा मकान खाली पड़ा है, तुम उसमे रह लेना और जो किराया बनेगा देते रहना”। सेठ ने बोला।

“रितु, हा सेठ जी उसे तो मे अच्छे से जानती हू, अप उसे बुला दो, हम आज मकान देख लेते है और कल तक अप्ना समान ले आएगे”। सरबी ने जवाब दिया, वो खुश थी के उसे उसकी सहेली के साथ मे ही मकान मिल गया।

“हा मे बुलाता हू उसे” सेठ ने कहा और रितु को फोन मिलाकर उसे आने के लिये बोला। 5मिंट तक रितु वहा आ गयी “सेठ जी बुलाया अपने”।

“हा रितु ये सरबी को अपने साथ ले जाओ ओर मकान दिखा दो”। सेठ बोला।

सरबी को देख रितु खुश होते हुए थोडा अनजान बन्ते हुए बोली, “अरे सरबी तुम कब आयी फ़ोन करके बताया भी नही, और मकान क्यो चाहिये”।

“वो सेठ जी ने हमे यहा काम दिला दिया है तो अब हम यही रहेगे”। सरबी ने जवाब दिया।

“अरे ये तो और भी अच्छा किया, गांव मे रखा ही क्या है, चलो मे तुमे मकान दिखा देती हू”। रितु बोली।

सरबी और सुखा सेठ बनवारी लाल को रामराम बुला रितु के साथ चल दिये। रितु ने उन्हे आपने साथ वाले मकान दिखाया जो सेठ ने हरिया से खरीदा था।

“ले सरबी ये है तुमरा मकान, केसा लगा तुमे”। समान रख्ते हुए रितु बोली।

सरबी मकान को देखकर बोली, “अच्छा है रितु मकान तो सेठ जी का है ना”।

“हा उन्ही का है सरबी बडे दिलवाले है सेठ जी, अपनापन देखे है हर किसी मे”। रितु बोली। “और ये साथ मे मेरा घर है, कोई जरुरत हो तो बताना”।

“हा जरुर रितु, मे तो तुमे ही जानती हू इस शहर मे तो तुमे ही बुलओगी”। सर्बी बोली।

हा क्यो नही सरबी जब भी जरुरत हो तो अवाज लगा देना, अच्छा अब मे चलती हू”। रितु बोली और घर चली गयी।

सुखा और सरबी मकान देखने ल्गे और अपना समान रखने लगे। दुसरे दिन गांव जाकर वो मा बाबू जी को भी ले आये ओर शहर मे रहने लगे।

""पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना" जारी रहेगी
Godd start. Lala is ready to fuck Sarbi.
 

Premkumar65

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"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना" – पार्ट – 4


हेल्लो दोस्तो मे गौरव कुमार स्टोरी का अगला पार्ट लेके हाज़िर हूँ। पिछले पार्ट मे आपने पढ़ा के सुखा और सरबी शहर आकर रहने लग जाते है और बनवारी लाला उन्हे अपने यहा नौकरी पर रख लेता है। तो चलिये स्टोरी को अब आगे बढ़ाते है।

सुखा और सरबी शहर मे आ ग्ये थे, उन्होने अपना गांव का मकान किराये पर दे दिया और व्हा से अपना जरूरी समान ले अए। दिन मे जब सुखा और सरबी काम पर होते तो घर मे उन्के मा बाबू जी रह जाते। सरबी और रोतू का मकान साथ साथ था तो जब भी मौका मिलता दोनो मिलकर बाते करने लगती। जिस मोहल्ले मे इनके मकान थे व्हा सिर्फ धान्का जात के लोग रह्ते थे, बस अकेली रितु बौरनी और सरबी जट्टी रह्ती थी। धान्के मर्द पहले तो रितु पर डोरे डालते थे लेकिन जब से उन्होने सरबी को देखा था तो वह उसके पीछे पैड ग्ये थे। इन धान्को मे भूरा नाम का एक आदमी था जिसकी उमर 30 साल और रन्ग का काला था। भूरा से सब डरते थे, चारो तरफ उसकी बदमाशी मशहूर थी, पुलिस ठाणे मे भी उसके खिलाफ कई रिपोर्ट दर्ज थी। जब से उसने सरबी को देखा था वह भी सरबी का दीवाना हो गया। भूरा की रितु के पति के साथ अच्छी दोसती थी वह अक्सर उसके पास आया जाया करता था, वही पर से भूरा सरबी को देखता और कबी कबी सुखे को बुला लेता। भूरा सुखे के साथ दोस्ती करना चाह्ता था।

एक दिन जब सुखा कामसे आ रहा था भूरा ने उसे देख लिया और अवाज लगा दी, “ओए सुखे, यहा आ”।

सुखे ने अवाज सुनी भूरा के पास चला गया। “क्या बात है भूरा”, सुखे ने पास जाकर पुछा। “अरे बेठ तो जा फिर बात करते है”, भूरा ने कुर्सी देते हुए कहा।

“और सुना केसा चल रहा है काम, घर मे सब केसे है”।

“काम अच्छा चल रहा है भूरा, और घर मे सब ठीक ठाक”। सुखे ने बेठ्ते हुए जवाब दिया। “रह्ता कहा है तू आजकल दिखायी ही नही देता”। भूरा ने शराब की बोतल निकलते हुए कहा। “दिखायी केसे दू भूरा पुरा दिन काम पर ही निकल जाता है, टाईम का पता ही नही चलता”। सुखे ने कहा।

भूरा ने दो गिलासो मे शराब डाली और सुखे को बोला, “चल फिर उठा सुखे आज तेरी सारी थकान निकल्ता हू”।

“अरे नही भूरा मे पीता नही हू”। सुखा बोला।

“अरे पी ले एक घूंट से कुच नही होने वाला पी ले”। भूरा ने दबाव देते हुए कहा। सुखे ने गिलास उठाया और शराब पी गया। सुखा शराब कम पीता था। “और डालू” भूरा बोला।

“अरे नही, बस बई यही बहुत है”। सुखा बोला। “किसी चीज की जरूरत हो ते बेजिजक मांग लेना सुखे अज से हम दोस्त है”। भूरे ने सुखे से कहा। “हा बिल्कुल भूरा”। सुखा इत्ना कहता हुआ चला गया।

सुखा घर आया तो सरबी खाना बनए बेठी थी, सुखे को आते उसने पानी का ग्लास्स दिया और पुछा, “खाना दू या अभी रुकोगे”।

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“अरे नही सरबी मे आज सेठ जी के यहा से खा के आया हू, मे सोने जा रहा हू”। सुखे ने कहा।

“अच्छा ठीक है तो मे रितु के यहा जा रही हू सोने, वो अकेली है आज घर मे”। सरबी बोली।

“हा जाओ” सुखे ने जवाब दिया। सरबी ने बर्तन रखे और रितु के घर चली गयी। रितु अज अकेली थी क्यो के उसका पति ट्रक पर चला गया थ। सरबी ने अन्दर आते हुए दरवाजा लगा दिया, “रितु कहा है तू”। “हा इस तरफ आ जा सरबी”, रितु ने अन्दर से अवाज लगायी। सरबी आगे चली गयी, वह एक कमरे के दरवाजे से होते हुए आगे दुसरे कमरे मे चली गयी। सरबी कई बार रितु के घर आ चुकी थी लेकिन उसने यह कमर अज पहली बार देखा था। सरबी अन्दर ज्ञी तो रितु बैड पर बेठी थी।

“ये कोनसा कमरा है रितु, बाहर से तो बिल्कुल पता नही चलता, कोई खजाना छुपाती हो क्या यहा” सरबी ने अन्दर आते पुछा।

“क्यो, तुमे क्या लगता है क्या करती हूँ मे इस कमरे मे” रितु सरबी को देख बोली।

“मुझे क्या पता, कमरा तेरा है तू बता”। सरबी ने बेठ्ते हुए कहा।

“कोई ना टाईम आने पे बता दूंगी, वेसे तू बता अज कुछ किया के नही” रितु ने सरबी को छेड़ते हुए पुछा।

“मतलब, क्या करना था अज मुझे”, सरबी ने हैरानी से पुछा।

“अरे बाबा मेरा मतलब सैयां जी के साथ किया के नही” रितु ने सरबी की तरफ हस्कर बोला।

सरबी निराश होते हुए बोली, “उसके साथ क्या करना है मुझे”।

“मतलब तेरा वाला भी मेरे वाले जेसा ही है” रितु ने पुछा।

“तेरे वाले जेसा केसे” सरबी को फिर कुछ समझ नही आया। “अरे यार मतलब नामर्द है, कुछ होता नही क्या उससे” रितु ने पुछा।

“कुच कया होगा अन्दर भी नही जा पाता” सरबी ने सर झुका लिया। रितु समझ गयी के सरबी अब भी कुंवारी ही है। “ओह, माफ करना सरबी, क्या है मे बड़बोली हू तो कुछभी पुछ लेती हू” रितु बोली।

“तुम क्यो माफी मांग रही हो रितु, अब सिक्का तो अपना ही खोटा है” सरबी नार्मल होते हुए बोली।

“अच्छा एक बात पूछू अगर गुस्सा ना करे तो” रितु बोली। “तेरा क्यो गुस्सा करूगी, एक की दो पूँछ”।

सरबी ने कहा। “तेरा दिल नही करता कभी करने का” रितु ने लोहा गरम देख कर हथौड़ा मार दिया।

“क्या करने का, एक तो तू पहेलिया बहुत बुझाती है, खुल कर बोल ना” सरबी बोली।

“अरे मेरा मतलब किसी पराये मर्द को अपने उपर चड़ाया के नही कभी” रितु सरबी को देखकर बोली।

“धत्त, पागल है क्या” सरबी मुस्कुराते हुए बोली।

“अरे बता ना सरबी इत्ना भी क्या शर्मा रही है” रितु बोली।

“हम्म तुम क्या करती हो पहले तुम बताओ” सरबी ने रितु को देखते हुए पूछा।

“मै हम्म, मेरा तो जब दिल करता है तो पराया मर्द चढा लेती हू, वेसे अब जाना पहचाना है पराया भी नही रहा” रितु बेशर्मी से बोली।

सरबी ये सुनकर सुन्न रह गयी, “हाय तुझे शरम नही आती रितु” सरबी चौन्क्ती हुई बोली।

“पहली बार शरम आयी थी लेकिन जब उसके लण्ड ने मजा दिया तो सारी शरम उतर गयी” रितु ने जवाब दिया।

“हाय रितु मे तुमे कितनी शरीफ समझती थी और तू कितनी बेशरम है, ” सरबी अब भी हैरां थी के रितु केसे अपने पति को छोड पराये मर्द की तारीफ किया जा रही थी। लेकिन मन ही मन मे सरबी को भी रितु को बाते सुनकर मजा आ रहा था।

“शरम केसी यार सरबी अब पति से कुछनही होता तो मेरि कया गलती है इसमे, मुझे तो लण्ड का मजा चाहिये ना, तू बता तुझे चाहिये क्या” रितु ने सरबी को कन्धा मारते हुए कहा।

सरबी रितु की बात सुनकर थोडा शर्मा गयी “नही नही रितु मुझे नही चाहिये एसा मजा” सरबी सर झुकाती हुई बोली। “जरा सर तो उठाना सरबी” रितु बोली। “कया हुआ” सरबी रितु को देखते हुए बोली।



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“अरे अरे ये क्या तेरी आंखे तो कुच और ही बोल रही है सरबी” रितु ने सरबी की आंखो मे देखे हुए कहा।

“क्या हुआ, क्या है मेरि आंखो मे” सरबी रितु को देखकर बोली। “अरे होना कया है, तेरी आंखे तो बता रही है उन्हे पराया मरद चाहिये जो इसकी गहराई को नाप सके” रितु ने सरबी को देख सलवार के उपर से उसकी चुत को छूते हुए बोली।

जेसे ही रितु का हाथ सरबी की चुत पर गया सरबी की सिसकी निकल गयी “आह्ह रितु हत ना कया कर रही है”। सरबी रितु की बातो से पुरी गरम हो चुकी थी।

“एक बार हा तो बोल सरबी जेसा कहेगी वेसा मर्द लाके दूंगी” रितु ने सरबी को देखते हुए कहा। सरबी रितु को देख रही थ, “लेकिन किसी को पता चल गया तो”।

“किसी को कानो कान खबर नही होगी, मे भी तो करती ही हूँ, कितनो को पता है मेरे बारे मे”। रितु सरबी को देख बोली। सरबी कुछ नही बोली सिर्फ सर हिला कर रितु को हा मे जवाब दिया।

रितु भी सरबी का जवाब समझ गयी। “हम्म ये हुई ना बात, मे सुबह ही तेरे लिये कोई मर्द देखती हू, तू फ़िकर मत कर तेरी इस दुलारी को कोई कमी नही आने दूंगी”। रितु सरबी की चुत को हाथ लगते हुए बोली।

सरबी भी रितु की बात सुन कर हंस पडी और फिर दोनो सो गयी।


"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना" जारी रहेगी

Ritu Sarbi ko tayyar kar rahi hai Lala se chudwane ke liye>
 
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