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Adultery पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना

aamirhydkhan

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कहानी "पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना: गौरव कुमार की है

मेरा नाम गौरव कुमार है। मैं, कपूरथला, पंजाब का रहने वाला हूँ। हमारा आड़त का काम है यानी हम किसान और सरकार मे बीच मे फसल का लेंन देंन का काम करते है। अब मे पंजाब से हूँ तो बता दूं के यहा की दो चीजें बहुत मशहूर है, एक पटियाला पेग ओर दुसरी पंजाबन जट्टीयां। हमारा किसानो के साथ आना जाना लगा रहता है तो किसी ना किसी जट्टी के साथ भी बात बन जाती है। आज एसी ही कहानी लेकर आया हूँ। तो कहानी आरंभ करते है।


SARBI
 
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aamirhydkhan

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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–32

मेरा पहला सेक्स अनुभव- स्पर्शं
स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे मैंने अखबार की आड़ में डेजी दीदी के बूब्स छुए और मस्ती की अब आगे ।


फिर डेजी दीदी चुप हो गई और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढ़ने लगी मैं भी चुपचाप अपना हाथ डेजी दीदी के दाहिने बगल के ऊपर नीचे किया और फिर थोड़ा-सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गईं मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।

थोड़ी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से डेजी दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पकड़ ली और दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को एक साथ मसलने लगा दीदी कुछ नहीं बोलीं और वह चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ़ती रही मैं दीदी की टी-शर्ट को पीछे से उठाने लगा दीदी की टी-शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इस लिए वह ऊपर नहीं उठ रही थी ।

मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ डेजी दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका कुरता धीरे से उठा दिया अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ कुर्ते के अंदर कर दिया वह क्या चिकना पीठ था दीदी का।

मैं धीरे-धीरे डेजी दीदी की पीठ पर से उनका कुरता पूरा का पूरा उठा दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपर घूमना शुरू किया जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगीं फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे-सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढ़ा दिया फिर मैं दीदी की दोनों चूचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर जोर से दबाने लगा।

डेजी दीदी की निप्पल इस समय तनी-तनी थी और मुझे उसे अपने उंगलो से दबाने में मज़ा आ रहा था मैं तब आराम से दीदी की दोनों चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी-कभी निप्पल खींचने लगा माँ अभी भी किचन में खाना पका रही थी हम लोगों को माँ साफ़ साफ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी मैं यह सोच-सोच कर खुश हो रहा था कि दीदी कैसे मुझे अपनी चूचियों से खेलने दे रही है और वह भी तब जब डेजी दीदी की माँ घर में मौजूद हैं ।

मैं तब अपना एक हाथ फिर से डेजी दीदी की पीठ पर ब्रा के हुक तक ले आया और धीरे-धीरे दीदी की ब्रा की हुक को खोलने लगा दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इस लिए ब्रा का हुक आसानी से नहीं खुल रहा था लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हुक खोल रहा हूँ ब्रा का हुक खुल गया और ब्रा की स्ट्रेप उनकी बगल तक पहुँच गया।

डेजी दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी कि माँ किचन में से हॉल में आ गई मैंने जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी का कुरता नीचे कर दिया और हाथ से कुर्ते को ठीक कर दिया माँ हॉल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए अपनी माँ से बात कर रही थी । डेजी दीदी की माँ को हमारे कारनामों का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गई।

जब माँ चली गई तो डेजी दीदी ने दबी ज़ुबान से मुझसे बोलीं काके मेरी ब्रा की हुक को लगा दे ।

दीदी मैं यह हुक नहीं लगा पाऊंगा मैं । मैं डेजी दीदी से बोला ।

क्यों तू हुक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? डेजी दीदी मुझे झिड़कते हुए बोलीं।

नहीं यह बात नहीं है दीदी तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है। मैंने फिर दीदी से कहा।

डेजी दीदी अख़बार पढ़ते हुए बोली मुझे कुछ नहीं पता तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे दीदी नाराज होती बोलीं।

लेकिन दीदी ब्रा की हुक को तुम भी तो लगा सकती हो? मैंने डेजी दीदी से पूछा।

बुधु मैं नहीं लगा सकती मुझे हुक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और माँ देख लेंगी तो उन्हें पता चल जाएगा कि हम लोग क्या कर रहे थे, डेजी दीदी मुझसे बोलीं ।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं मैं अपना हाथ डेजी दीदी के कुर्ते के नीचे से दोनों बगल से बढ़ा दिया और ब्रा के स्ट्रेप को खींचने लगा जब स्ट्रेप थोड़ा आगे आया तो मैंने हुक लगाने की कोशिश करने लगा।

लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हुक नहीं लग रहा था मैं बार-बार कोशिश कर रहा था और साथ में बार-बार माँ की तरफ़ देख रहा था। माँ ने रात का खाना करीब-करीब पका लिया था और वह कभी भी किचन से आ सकती थी।

कुछ देर बाद डेजी दीदी मुझसे बोलीं यह अख़बार पकड़ अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रेप को लगाना पड़ेगा । मैंने बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पकड़ लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हुक को लगाने लगीं।

मैं दीदी का पीछे से ब्रा का हुक लगाना देख रहा था ब्रा इतनी टाईट थी कि डेजी दीदी को भी हुक लगाने में दिक्कत हो रहीं थी आख़िरकार दीदी ने अपनी ब्रा की हुक को लगा लिया जैसे ही दीदी ने ब्रा की हुक लगा कर अपने हाथ सामने किए माँ कमरे में फिर से आ गई माँ बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगीं मैं उठ कर टॉयलेट की तरफ़ चल दिया क्योंकि मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था।

दूसरे दिन जब मैं और डेजी दीदी बालकोनी पर खड़े थें तो डेजी दीदी मुझसे बोलीं।

हम कल रात करीब-करीब पकड़ लिए गए थे मुझे बहुत शरम आ रही थी मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ।

दीदी तुम्हारी ब्रा इतनी टाईट थी कि मुझसे उसकी हुक नहीं लगी मैंने दीदी से कहा।

दीदी तब मुझसे बोलीं मुझे भी बहुत दिक्कत हो रहीं थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रेप लगाने में बहुत शरम आ रही थी।

दीदी तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगाती हो? मैंने दीदी से धीरे से पूछा? ।

फिर दीदी समझ गई की मैं दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोलीं तू बाद में अपने आप समझ जाएगा।

फिर मैंने दीदी से धीरे से कहा मैं तुमसे एक बात कहूँ?

हाँ दीदी तपाक से बोलीं ।

दीदीतुम सामने हुक वाली ब्रा क्यों नहीं पहनती मैंने दीदी से पूछा?

दीदी तब मुस्कुरा कर बोलीं सामने हुक वाली ब्रा बहुत महंगी है।

मैं तपाक से दीदी से कहा कोई बात नहीं तुम पैसे के लिए मत घबराओ मैं तुम्हें पैसे दे दूंगा मेरी बातों को सुनकर दीदी मुस्कुराते हुए बोलीं तेरे पास इतने सारे पैसे हैं। चल मुझे एक 100 का नोट दे।

मैं भी अपना पर्स निकाल कर दीदी से बोला तुम मुझसे 100 का नोट ले लो दीदी।

मेरे हाथ में 100 का नोट देख कर बोलीं नहीं मुझे पैसे नहीं चाहिए मैं तो यूंही मज़ाक कर रही थी ।

लेकिन मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ दीदी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले लो ।

मैंने जबरदस्ती दीदी के हाथ में वह 100 का नोट थमा दिया दीदी कुछ देर तक सोचती रहीं और वह नोट ले लिया और बोलीं मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकती और मैं यह रुपये ले रही हूँ लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ।

मैं भी दीदी से बोला सिर्फ़ काले रंग की ब्रा खरीदना मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पैंटी भी खरीदना दीदी ।

ये सुन दीदी शर्मा गई और मुझे मारने के लिए दौड़ीं लेकिन मैं अंदर भाग गया, अगले दिन शाम को मैं दीदी को अपनी किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना ।

मैंने सुना की दीदी अपनी सहेली को शॉपिंग करने के लिए साथ कसबे में चलने के लिए बोल रही हैं।

मैं दीदी को अकेला पाकर बोला मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूँ?

दीदी कुछ सोचती रहीं और फिर बोलीं काके मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वह शाम को घर पर आ रहीं है और फिर मैंने माँ से भी अभी नहीं कहा है कि मैं शॉपिंग के लिए जा रही हूँ।

मैंने दीदी से कहा तुम जाकर माँ से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना माँ तुम्हें जाने देंगी फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोन कर देंगे कि बाज़ार जाने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है ठीक है ना?

हाँ यह बात मुझे भी ठीक लगती है मैं जा कर माँ से बात करती हूँ और यह कह कर दीदी माँ से बात करने अंदर चली गई माँ ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दीं।

उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक दीदी के पीछे खड़ा हुआ था और डेजी दीदी के

चूतड़ मेरे जांघों से टकरा रहे थे मैं दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे हम जब भी कोई फुटपाथ के दुकान में खड़े होकर कपड़े देखते तो दीदी मुझसे चिपक कर खड़ी होतीं और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता ।

अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखतीं तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चूतड़ से भिड़ा देता और कभी-कभी मैं उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता हम दोनों ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों को दीदी कुछ समझ नहीं पा रही थीं क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी ।

मैंने एक जीन्स का पैंट और टी-शर्ट खरीदा और दीदी ने एक गुलाबी रंग की पंजाबी ड्रेस एक गर्मी के लिए स्कर्ट और टॉप और 2-3 टी-शर्ट खरीदीं हम लोग मार्केट में और थोड़ी देर तक घूमते रहे अब करीब 6: 30 बज गए थे ।

दीदी ने मुझे सारे शॉपिंग बैग थमा दिए और बोलीं आगे जा कर मेरा इंतज़ार करो मैं अभी आती हूँ ।

वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गई मैंने दुकान को देखा वह महिलाओं के अंडरगार्मेन्ट की दुकान थी मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया मैं देखा कि डेजी दीदी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है और वह मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगी कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आई दीदी के हाथ में एक बैग था।

मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोलीं अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल हम लोग चुपचाप चल रहे थे मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।

मैंने दीदी से बोला चलो कुछ देर हम लोग रास्ते ने रुक कर नहर के किनारे पर बैठते हैं और कुछ खाते हैं।

नहीं देर हो जाएगी डेजी दीदी मुझसे बोलीं ।

मैंने फिर दीदी से कहा चलो भी दीदी अभी सिर्फ़ 6: 30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं इस लिए वह चिंता भी नहीं करेंगी।

दीदी थोड़ी सोच कर बोलीं चल नहर के किनारे चलते है दीदी के राजी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों नहर के किनारे जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था चल दिए।

हमने नहर से पहले एक भेलपुड़ी वाले से भेलपुड़ी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर नहर के किनारे बैठ गए. हम लोग नहर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए इस समय बहुत सुहाना मौसम था हम लोग भेलपुड़ी खा रहे थे और इधर उधर बातें कर रहे थे।


पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
 
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मेरा पहला सेक्स अनुभव- स्पर्शं


फिर डेजी दीदी चुप हो गई और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढ़ने लगी मैं भी चुपचाप अपना हाथ डेजी दीदी के दाहिने बगल के ऊपर नीचे किया और फिर थोड़ा-सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गईं मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।

थोड़ी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से डेजी दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पकड़ ली और दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को एक साथ मसलने लगा दीदी कुछ नहीं बोलीं और वह चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ़ती रही मैं दीदी की टी-शर्ट को पीछे से उठाने लगा दीदी की टी-शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इस लिए वह ऊपर नहीं उठ रही थी ।

मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ डेजी दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका कुरता धीरे से उठा दिया अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ कुर्ते के अंदर कर दिया वह क्या चिकना पीठ था दीदी का।

मैं धीरे-धीरे डेजी दीदी की पीठ पर से उनका कुरता पूरा का पूरा उठा दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपर घूमना शुरू किया जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगीं फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे-सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढ़ा दिया फिर मैं दीदी की दोनों चूचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर जोर से दबाने लगा।

डेजी दीदी की निप्पल इस समय तनी-तनी थी और मुझे उसे अपने उंगलो से दबाने में मज़ा आ रहा था मैं तब आराम से दीदी की दोनों चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी-कभी निप्पल खींचने लगा माँ अभी भी किचन में खाना पका रही थी हम लोगों को माँ साफ़ साफ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी मैं यह सोच-सोच कर खुश हो रहा था कि दीदी कैसे मुझे अपनी चूचियों से खेलने दे रही है और वह भी तब जब डेजी दीदी की माँ घर में मौजूद हैं ।

मैं तब अपना एक हाथ फिर से डेजी दीदी की पीठ पर ब्रा के हुक तक ले आया और धीरे-धीरे दीदी की ब्रा की हुक को खोलने लगा दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इस लिए ब्रा का हुक आसानी से नहीं खुल रहा था लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हुक खोल रहा हूँ ब्रा का हुक खुल गया और ब्रा की स्ट्रेप उनकी बगल तक पहुँच गया।

डेजी दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी कि माँ किचन में से हॉल में आ गई मैंने जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी का कुरता नीचे कर दिया और हाथ से कुर्ते को ठीक कर दिया माँ हॉल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए अपनी माँ से बात कर रही थी । डेजी दीदी की माँ को हमारे कारनामों का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गई।

जब माँ चली गई तो डेजी दीदी ने दबी ज़ुबान से मुझसे बोलीं काके मेरी ब्रा की हुक को लगा दे ।

दीदी मैं यह हुक नहीं लगा पाऊंगा मैं । मैं डेजी दीदी से बोला ।

क्यों तू हुक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? डेजी दीदी मुझे झिड़कते हुए बोलीं।

नहीं यह बात नहीं है दीदी तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है। मैंने फिर दीदी से कहा।

डेजी दीदी अख़बार पढ़ते हुए बोली मुझे कुछ नहीं पता तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे दीदी नाराज होती बोलीं।

लेकिन दीदी ब्रा की हुक को तुम भी तो लगा सकती हो? मैंने डेजी दीदी से पूछा।

बुधु मैं नहीं लगा सकती मुझे हुक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और माँ देख लेंगी तो उन्हें पता चल जाएगा कि हम लोग क्या कर रहे थे, डेजी दीदी मुझसे बोलीं ।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं मैं अपना हाथ डेजी दीदी के कुर्ते के नीचे से दोनों बगल से बढ़ा दिया और ब्रा के स्ट्रेप को खींचने लगा जब स्ट्रेप थोड़ा आगे आया तो मैंने हुक लगाने की कोशिश करने लगा।

लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हुक नहीं लग रहा था मैं बार-बार कोशिश कर रहा था और साथ में बार-बार माँ की तरफ़ देख रहा था। माँ ने रात का खाना करीब-करीब पका लिया था और वह कभी भी किचन से आ सकती थी।

कुछ देर बाद डेजी दीदी मुझसे बोलीं यह अख़बार पकड़ अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रेप को लगाना पड़ेगा । मैंने बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पकड़ लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हुक को लगाने लगीं।

मैं दीदी का पीछे से ब्रा का हुक लगाना देख रहा था ब्रा इतनी टाईट थी कि डेजी दीदी को भी हुक लगाने में दिक्कत हो रहीं थी आख़िरकार दीदी ने अपनी ब्रा की हुक को लगा लिया जैसे ही दीदी ने ब्रा की हुक लगा कर अपने हाथ सामने किए माँ कमरे में फिर से आ गई माँ बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगीं मैं उठ कर टॉयलेट की तरफ़ चल दिया क्योंकि मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था।

दूसरे दिन जब मैं और डेजी दीदी बालकोनी पर खड़े थें तो डेजी दीदी मुझसे बोलीं।

हम कल रात करीब-करीब पकड़ लिए गए थे मुझे बहुत शरम आ रही थी मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ।

दीदी तुम्हारी ब्रा इतनी टाईट थी कि मुझसे उसकी हुक नहीं लगी मैंने दीदी से कहा।

दीदी तब मुझसे बोलीं मुझे भी बहुत दिक्कत हो रहीं थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रेप लगाने में बहुत शरम आ रही थी।

दीदी तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगाती हो? मैंने दीदी से धीरे से पूछा? ।

फिर दीदी समझ गई की मैं दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोलीं तू बाद में अपने आप समझ जाएगा।

फिर मैंने दीदी से धीरे से कहा मैं तुमसे एक बात कहूँ?

हाँ दीदी तपाक से बोलीं ।

दीदीतुम सामने हुक वाली ब्रा क्यों नहीं पहनती मैंने दीदी से पूछा?

दीदी तब मुस्कुरा कर बोलीं सामने हुक वाली ब्रा बहुत महंगी है।

मैं तपाक से दीदी से कहा कोई बात नहीं तुम पैसे के लिए मत घबराओ मैं तुम्हें पैसे दे दूंगा मेरी बातों को सुनकर दीदी मुस्कुराते हुए बोलीं तेरे पास इतने सारे पैसे हैं। चल मुझे एक 100 का नोट दे।

मैं भी अपना पर्स निकाल कर दीदी से बोला तुम मुझसे 100 का नोट ले लो दीदी।

मेरे हाथ में 100 का नोट देख कर बोलीं नहीं मुझे पैसे नहीं चाहिए मैं तो यूंही मज़ाक कर रही थी ।

लेकिन मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ दीदी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले लो ।

मैंने जबरदस्ती दीदी के हाथ में वह 100 का नोट थमा दिया दीदी कुछ देर तक सोचती रहीं और वह नोट ले लिया और बोलीं मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकती और मैं यह रुपये ले रही हूँ लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ।

मैं भी दीदी से बोला सिर्फ़ काले रंग की ब्रा खरीदना मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पैंटी भी खरीदना दीदी ।

ये सुन दीदी शर्मा गई और मुझे मारने के लिए दौड़ीं लेकिन मैं अंदर भाग गया, अगले दिन शाम को मैं दीदी को अपनी किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना ।

मैंने सुना की दीदी अपनी सहेली को शॉपिंग करने के लिए साथ कसबे में चलने के लिए बोल रही हैं।

मैं दीदी को अकेला पाकर बोला मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूँ?

दीदी कुछ सोचती रहीं और फिर बोलीं काके मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वह शाम को घर पर आ रहीं है और फिर मैंने माँ से भी अभी नहीं कहा है कि मैं शॉपिंग के लिए जा रही हूँ।

मैंने दीदी से कहा तुम जाकर माँ से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना माँ तुम्हें जाने देंगी फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोन कर देंगे कि बाज़ार जाने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है ठीक है ना?

हाँ यह बात मुझे भी ठीक लगती है मैं जा कर माँ से बात करती हूँ और यह कह कर दीदी माँ से बात करने अंदर चली गई माँ ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दीं।

उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक दीदी के पीछे खड़ा हुआ था और डेजी दीदी के

चूतड़ मेरे जांघों से टकरा रहे थे मैं दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे हम जब भी कोई फुटपाथ के दुकान में खड़े होकर कपड़े देखते तो दीदी मुझसे चिपक कर खड़ी होतीं और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता ।

अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखतीं तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चूतड़ से भिड़ा देता और कभी-कभी मैं उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता हम दोनों ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों को दीदी कुछ समझ नहीं पा रही थीं क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी ।

मैंने एक जीन्स का पैंट और टी-शर्ट खरीदा और दीदी ने एक गुलाबी रंग की पंजाबी ड्रेस एक गर्मी के लिए स्कर्ट और टॉप और 2-3 टी-शर्ट खरीदीं हम लोग मार्केट में और थोड़ी देर तक घूमते रहे अब करीब 6: 30 बज गए थे ।

दीदी ने मुझे सारे शॉपिंग बैग थमा दिए और बोलीं आगे जा कर मेरा इंतज़ार करो मैं अभी आती हूँ ।

वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गई मैंने दुकान को देखा वह महिलाओं के अंडरगार्मेन्ट की दुकान थी मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया मैं देखा कि डेजी दीदी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है और वह मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगी कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आई दीदी के हाथ में एक बैग था।

मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोलीं अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल हम लोग चुपचाप चल रहे थे मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।

मैंने दीदी से बोला चलो कुछ देर हम लोग रास्ते ने रुक कर नहर के किनारे पर बैठते हैं और कुछ खाते हैं।

नहीं देर हो जाएगी डेजी दीदी मुझसे बोलीं ।

मैंने फिर दीदी से कहा चलो भी दीदी अभी सिर्फ़ 6: 30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं इस लिए वह चिंता भी नहीं करेंगी।

दीदी थोड़ी सोच कर बोलीं चल नहर के किनारे चलते है दीदी के राजी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों नहर के किनारे जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था चल दिए।

हमने नहर से पहले एक भेलपुड़ी वाले से भेलपुड़ी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर नहर के किनारे बैठ गए. हम लोग नहर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए इस समय बहुत सुहाना मौसम था हम लोग भेलपुड़ी खा रहे थे और इधर उधर बातें कर रहे थे।

पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

urc4me

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Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
 
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aamirhydkhan

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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–33

मेरा पहला सेक्स अनुभव-एकांत में स्पर्शं के आनंद का अनुभव ।
स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे डेजी और मैं कसबे में शॉपिंग करने गए और हमने भीड़ भरी बस में मस्ती की अब आगे ।

डेजी दीदी थोड़ी सोच कर बोलीं चल नहर के किनारे चलते है दीदी के राजी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों नहर के किनारे जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था चल दिए।

हमने नहर से पहले एक भेलपुड़ी वाले से भेलपुड़ी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर नहर के किनारे बैठ गए. हम लोग नहर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए इस समय बहुत सुहाना मौसम था हम लोग भेलपुड़ी खा रहे थे और इधर उधर की बातें कर रहे थे।

डेजी दीदी मुझ से सट कर बैठी थीं और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था दीदी आज काले रंग का घाघरी (स्कर्ट) और ग्रे रंग का ढीला-सा टॉप पहनी हुई थी एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुड़ी खा रहीं थी तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की घाघरी उनकी जांघ के ऊपर तक उठ गई और इनकी जांघें नंगी हो गई।

डेजी ने अपने जांघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की उन्होंने पहले भेलपुड़ी खाई और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी घाघरी को जांघों के नीचे किया और पैरों से दबा लिया । धीरे-धीरे दिन ढलने लगा और अँधेरा छाने लगा । वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अँधेरा था फिर भी चांदनी की रोशनी में मुझे डेजी की गोरी-गोरी जांघों का पूरा नजारा मिला उनकी जांघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।

मैंने आस पास देखा पास ही कुछ बड़े-बड़े पत्थर पड़े थे, जब डेजी दीदी ने अपनी भेलपुड़ी खा चुकी तो मैंने दीदी से पूछा दीदी क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?

दीदी ने फौरन मुझसे पूछा क्यों?

मैंने दीदी से कहा वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं ।

डेजी दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?

लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा। मैंने दीदी की आंखों में झांकते हुए धीरे से बोला।

तब डेजी दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोलीं तुझे लोगों की नज़रों से दूर क्यों बैठना है? मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है। दीदी मुस्कुरा कर बोलीं हाँ मालूम तो है लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है और दीदी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।

मैं भी झट से उठ कर पहले अपना बैग संभाला और डेजी के पीछे-पीछे चल पड़ा वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी-सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा, मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया । दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गई दीदी मुझसे करीब एक फुट की दूरी पर बैठी थीं।

मैंने दीदी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा दीदी थोड़ा-सा सरक कर मेरे पास आ गई और अब दीदी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे। मैंने डेजी दीदी के गले में बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया । मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फिर दीदी के कान के पास अपना मुंह ले जाकर धीरे से कहा आप बहुत सुंदर हो।

काके क्या तुम सही बोल रहे हो? डेजी ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं ।

मैंने डेजी दीदी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ । मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।

दीदी धीरे से बोलीं मेरे लिए?

मैंने फिर दीदी से धीरे से पूछा मैं तुम्हें किस कर सकता हूँ?

डेजी दीदी कुछ नहीं बोलीं और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आंखें बंद कर ली ।मैंने दीदी की ठुड्डी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया, तो दीदी ने मेरी आंखों में झांका और फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं। मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख दिए ।ओह भगवान! दीदी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।

जैसे ही मैंने अपने होंठ डेजी दीदी के होंठ पर रखे दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गई. मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि डेजी भी गर्मा गई हैं। डेजी दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी, अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।

मैं थोड़ी देर तक डेजी दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद, मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची दबाने लगा।

मुझे हाथ घुसा कर डेजी की चूची दबाने में थोड़ा अटपटा-सा लग रहा था और इस लिए मैंने अपने हाथों को दीदी की टॉप में से निकाल कर, अपने दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा और धीरे-धीरे दीदी की टॉप को उठाने लगा और फिर अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर पहले धीरे-धीरे फिर ज़ोर जोर से मसलने लगा ।

डेजी दीदी मुझे बिलकुल रोक नहीं रही थीं और मुझे कुछ भी करने का अच्छा मौक़ा था। मैं अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर जोर से मसल रहा था। दीदी बस अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियाँ निकाल रही थी। मैं अपने दोनों हाथों को दीदी के पीछे ले गया और उनकी ब्रा के हुक खोलने लगा, जैसे ही मैंने दीदी की ब्रा का हुक खोला तो ब्रा गिर कर उनके मम्मों पर लटक गई दीदी कुछ नहीं बोली।

मैं फिर से अपने हाथों को सामने लाया और डेजी दीदी की चूचियों पर से ब्रा हटा कर उनकी चूचियों को नंगा कर दिया । मैंने पहली बार दीदी की नंगी चूची पर अपना हाथ रखा, जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूचियों को अपने हाथों से पकड़ा, दीदी कुछ कांप-सी गई और मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। मैं अब तक बहुत गर्मा गया था और मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था। मुझे बहुत ही उत्तेजना चढ़ गई थी।

मैं सोच रहा था झट से अपने पैंट में से अपना लौड़ा निकलूं और डेजी दीदी के सामने ही मुठ मार लूं, लेकिन पता नहीं क्यों मैंने ये नहीं किया। शायद कुछ शर्म बाक़ी थी अभी । मैं अब ज़ोर जोर से दीदी की नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रहा था। मैं दीदी की चूची को दबा रहा था, रगड़-रगड़ कर मसल रहा था और कभी-कभी उनके निप्पलों को अपने उंगलियों में पकड़ कर मसल रहा था ।

डेजी निप्पल इस वक़्त अकड़ कर सख्त हो गए थे। जब-जब मैं निप्पलों को अपने उंगलियों में पकड़ कर दबाता था, तो दीदी छटपटा उठती । मैंने बहुत देर तक चूचियों को पकड़ कर मसलने के बाद अपना मुंह नीचे करके दीदी के एक निप्पल को अपने मुंह में ले लिया ।दीदी ने अभी भी अपनी आंखें बंद कर रखी थीं।

जब डेजी दीदी की चूची पर मेरा मुंह लगा तो दीदी ने अपनी आंखें खोल दीं और देखा कि मैं उनके एक निप्पल को अपने मुंह में भर कर चूस रहा हूँ। वह भी गर्मा गई दीदी की सांसे ज़ोर जोर से चलने लगीं और उनका बदन उत्तेजना से कांपने लगा । दीदी ने मेरे हाथों को कस कर पकड़ लिया। इस वक़्त मैं उनकी दोनों दूधों को बारी-बारी से चूस रहा था।

अब डेजी दीदी के गले से अजीब अजीब-सी आवाजें निकलने लगीं। उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से लिपटा लिया और थोड़ी देर के बाद शांत हो गई. मेरा चेहरा नीचे की तरफ़ था और दीदी की चूचियों को ज़ोर जोर से चूस रहा था ।मुझे पर दीदी के पानी की ख़ुशबू आई ओह माय गॉड मैंने अपनी दीदी की चूत की पानी सिर्फ़ उनकी चूची चूस-चूस कर निकाल दिया था? ।

मैं अपना हाथ डेजी दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।

दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं अब और नीचे मत ले।

मैंने दीदी से पूछा क्यों?

दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोलीं नीचे अपना हाथ मत ले जाओ अभी उधर बहुत गंदा है।

मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गई दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा हाँ मैं झड़ गई हूँ।

मैंने फिर दीदी से पूछा दीदी मेरी वज़ह से तुम झड़ गई हो?

"हाँ काके तुम्हारी वज़ह से ही मैं झड़ गई हूँ । तुम इतने उतावले थे कि मैं भी अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।"

दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा क्या तुम्हें अच्छा लगा?

दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोलीं " मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी और उसके बाद मुझे झड़ाना और भी अच्छा लगा। "

दीदी ने आज पहली बार मुझे ऐसे चूमा था । दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोलीं "काके आज के लिए इतना सब काफ़ी है और हम लोगों को घर भी लौटना है ।"

मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे।


पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–34

मेरा पहला सेक्स अनुभव-रॉन्ग नबंर-धन् भाग हमारे

स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे डेजी और मैं कसबे में शॉपिंग करने गए और फिर शॉपिंग के बाद मैंने अपनी मुहबोली बहन डेजी के साथ नहर किनार एकांत के मस्ती की अब आगे ।

उस दिन मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और डेजी दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोलीं मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है मैंने फौरन पूछा क्यों?

डेजी दीदी मेरी आंखों में देखती हुई बोलीं नीचे बहुत गीला हो गया है मेरी पैंटी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।

मैंने मुस्कुराते हुए बोला सारी! दीदी मेरी वज़ह से तुम्हें परेशानी हो गई है ना?

डेजी दीदी ने मेरा एक हाथ पकड़ कर कहा काके यह गलती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ। हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था कि दीदी की समस्या को कैसे दूर करूं?

मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी मैंने फौरन डेजी दीदी से बोला एक काम करते हैं वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, दीदी तुम वहाँ जाओ और अपने पैंटी को बदल लो अरे तुमने अभी-अभी जो पैंटी खरीदी है।वहाँ जाकर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पैंटी को निकाल दो।

डेजी दीदी मुझे देखते हुए बोलीं-तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है मैं जाती हूँ और अपनी पैंटी बदल कर आती हूँ। ।

हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और डेजी दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पैंटी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी मैंने दीदी से धीरे से बोला तुम अपनी पैंटी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं?

डेजी दीदी मेरी बातों को सुन कर हंस पड़ीं और मुझसे बोलीं बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।

डेजी दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गई करीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आई हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गई और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थीं।

बस करीब-करीब खाली थीं हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए सीट पर बैठने के बाद मैंने डेजी दीदी से पूछा तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली ना?

डेजी दीदी मेरी तरफ़ देख कर हंस पड़ी मैंने फिर दीदी से पूछा बताओ ना दीदी क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?

तब डेजी धीरे से बोलीं हाँ! मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है ।

मैं फिर डेजी दीदी से बोला "मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?"

डेजी दीदी ने मेरी तरफ़ देखा तब "मैं तुम्हें तुम्हारे नयी पैंटी और ब्रा में देखना चाहता हूं" मैंने दीदी से कहा।

डेजी फौरन घबरा कर बोलीं "यहाँ? काके पागल तो नहीं हो गए हो तुम, मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पैंटी में देखना चाहते हो?"

मैंने डेजी दीदी को समझाते हुए बोला "नहीं यहाँ नहीं मैं घर पर तुम्हें घर में नई ब्रा और पैंटी में देखना चाहता हूँ।"

दीदी फिर मुझसे "बोलीं पर घर पर कैसे होगा माँ घर पर होगी, घर पर यह संभव नहीं हैं ।"

"दीदी कोई प्रॉब्लम नहीं होनी हैं माँ घर पर खाना बना रही होंगी और तुमकमरे में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी जैसे तुम रोज़ करती हो लेकिन जब तुम कपड़े बदलो कमरे का पर्दा थोड़ा-सा खुला छोड़ देना मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पैंटी में देख लूंगा।"

दीदी मेरी बातें सुन कर बोलीं-"काके देखते हैं।"

फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए हमने घर पहुँच कर देखा कि दीदी की माँ रसोई में खाना बना रही हैं।

हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर कपड़े

बदलने चली गई । मैं हॉल में ही बैठा रहा।

मैं घर आकर अपने तनी नाम के दोस्त को काल करने लगा। गलती से एक नम्बर की गलती से फ़ोन किसी और जगह जाकर लग गया। जिसे एक लड़की ने उठाया। शुरू में लगा के तनी के घर में से कोई लड़की होगी। उसने कहा, " हलो जी, तनी से बात करवादो?

लड़की– (दिल को छू लेने वाली मीठी-सी आवाज़ में) –हलो, कौन तनी जी, आपने कहाँ फ़ोन मिलाया है? यहाँ कोई तनी नहीं रहता। शायद आपका नम्बर ग़लत लग गया। नम्बर चेक करके लगाया करो जी।

मैंने ने भी सॉरी कह कर बात बन्द करदी और इतना कह कर उस लड़की ने फ़ोन काट दिया। उसकी मीठी-सी आवाज़ दिल को चीर गयी। ना चाहते हुए भी मेरा मन उसकी आवाज़ बार-बार सुनने को कर रहा था।

उसी शाम मैंने कुछ मजेदार बढ़िया चुटकुले उस नंबर के व्हाट्सप में भेज दिए। लड़की ने वह पढ़ लिए और वापिस फ़ोन किया।

लड़की–हलो, आप वह ही हो न, जिनका अभी ग़लत नम्बर लग गया था?

मैं–हांजी, सही पहचाना आपने।

लड़की–फेर भी आप ये चुटकुले भेज रहे हो?

मैं–ओह जी मैंने फेर तनी का नंबर समझ कर भेज दिए। सारी जी

लड़की–सारी किसलिए? आपके चुटकुले बहुत अच्छे हैं। पहले तो उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरी तो पढ़-पढ़ के हंसी ही बन्द नहीं हो रही है। सोचा आपका थैंक्स करदूँ। इतने अच्छी चुटकले भेज मुझे हंसाने के लिए।

मैं–मोस्ट वेलकम जी, धन् भाग हमारे जो हम आपकी हंसी की वज़ह बन सके। मुझे तो लगा था के आप फ़ोन पर झगड़ा करेंगी के जब एक बार बोल दिया फेर बार-बार क्यों तंग कर रहे हो।

लड़की–नही, नहीं जी हर लड़का लड़की बुरी नहीं होती।

मैं–हांजी, ये तो सही बोला आपने, अगर आप बुरा न माने तो मेसज आगे से भी भेज सकता हूँ क्या?

लड़की–हाँ क्यों नही? बस मेसज ऐसा होना चाहिए के अगर घर का कोई सदस्य भी पढ़ ले तो उसे बुरा ना लगे। वैसे तुम्हारा नाम क्या है, मेसज भेजने वाले अजनबी दोस्त?

मैं–जी मेरा नाम गौरव फ़्रॉम सोनगांव कपूरथला, और आप? दोस्त लोग प्यार से मुझे काके कहते है ।

लड़की–जी मेरा नाम जिनिया है और मैं जालंधर से हूँ। प्यार से घर के लोग मुझे "जिन्नि" कहते है।

मैं–अरे क्या चिराग वाली जिन्नि हैं आप? लगता है आज मेरी क़िस्मत खुल गयी?

लड़की-हुकुम मेरे आका वाली नहीं जी, चिराग वाली कहाँ, नाम जिन्नि है बस । पर आप हैं बड़े फन्नी, हर बात पर आप मज़ाक कर लेते है । हुकुम आप फिर भी फरमा सकते है ।

मैं-नाम तो आपका भी बहुत सुंदर है जिन्नि जी। अच्छा जिन्नि जी आप करते क्या हो मतलब पढ़ाई या कोई जॉब वगैरह?

जिन्नि–मैं फ़िलहाल फ्री हूँ। पढ़ाई पूरी हो चुकी है। आप क्या करते हो काके जी और आपकी फेमली में कौन-कौन है?

मैं–मैं नीट की तयारी कर रहा हूँ और मेरा ले दे के बस एक चाचा है और आपकी फॅमिली?

जिन्नि–मेरी फेमली में मैं, मेरे भाई, एक बहन और माता पिता कुल 5 मेंम्बर्स है। आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। अच्छा फेर किसी दिन बात करेंगे। अभी थोडा काम है। फ़ोन काट रही हूँ। बाय, -सी यू सून!

मैं–बाय, अपना ख़्याल रखना जिन्नि जी।

इस तरह से दोनों की पहले दिन की बातचीत ख़त्म हुई।

मैंने उसे 5-10 हल्के फुल्के जोक और भेज दिए और जिन्नि ने भी उनका जवाब दे दिया। एक रॉन्ग नंबर बात इतनी बढ़ गई के फिर गुड़ इवनिंग, सुबह गुड मोर्निंग का मेसज, शाम को गुड नाईट के मेसज और नए-नए जोक दोनों तरफ़ से आने जाने लगे। इस तरह से उस दिन मेरी जिन्नि से दोस्त हो गयी ।

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Yashu7979

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aamirhydkhan

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पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–35

मेरा पहला सेक्स अनुभव- नई ब्रा पैंटी में नज़ारे और नई दोस्ती



स्टोरी का नेक्स्ट पार्ट। पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि डेजी और मैं कसबे में शॉपिंग करने गए और फिर शॉपिंग के बाद मैंने अपनी मुहबोली बहन डेजी के साथ नहर किनार एकांत के मस्ती की और घर वापिस आ गए फिर एक रॉन्ग नबंर नंबर लगा और मेरी जिन्नि नामक लड़की से दोस्ती हुई । अब आगे।

रसोई में पहुँच कर डेजी दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा-सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दीं और हल्के से आँख मार दीं। मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया।

डेजी दीदी मुझसे सिर्फ़ 5 फीट की दूरी पर खड़ी थीं और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थीं ।मां दीदी से कुछ बातें कर रही थीं दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दीं टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदीं हुई ब्रा दिखने लगी।

वाह क्या ब्रा थीं!

फिर डेजी दीदी ने फौरन अपने हाथों से अपनी घाघरी के नाड़े को ढीला किया और अपनी घाघरी भी उतार दीं। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पैंटी में थीं। डेजी दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पैंटी खरीदीं है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थीं और उसके साथ पैंटी में भी ख़ूब लेस लगा हुआ था। मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे ।फिर मेरी आंखें दीदी के पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकी।

डेजी दीदी की पैंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़ साफ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे । मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पैंटी में अपनी आंखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। दरअसल मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।

डेजी दीदी को ब्रा पेंटी में देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे सारे वक़्त दीदी मुझसे आंखें चुरा रही थीं शायद दीदी को अपने काके भाई के सामने ब्रा और पैंटी में खड़ी होना कुछ अटपटा-सा लग रहा था। जैसे ही दीदी ने मुझे देखा तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गई लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा ।

मैं डेजी दीदी को अब पीछे से देख रहा था दीदी की पैंटी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूंगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउंगा ।थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गई और अपनी मैक्सी उठा लीं और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ।

मैंने डेजी दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ दीदी बस मुस्कुरा दीं और अपनी मैक्सी पहन लीं। मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया। दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।

मैं दीदी को सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुठ मारना था मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।

मुझे बार-बार यही याद आ रहा था की आज पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए फिर हम लोग नहर के किनारे गए. फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे। फिर मैंने डेजी दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गई. फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पैंटी और ब्रा चेंज की थी। मेरे दिमाग़ में यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पैंटी अभी भी बैग में ही होगी।

मैंने रसोई में झांक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से डेजी दीदी की उतारी हुई पैंटी निकाल कर अपनी जेब में रख ली। मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया फिर मैंने दीदी की गीली पैंटी को खोला और-और उसे उल्टा किया।

मैंने देखा कि जहाँ पर डेजी दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफेद-सफेद गाढ़ा गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है। जब मैंने वह जगह छुई तो मुझे चिपचिपा-सा लगा। मैंने पैंटी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी और मैं पागल हुआ जा रहा था ।

मैं डेजी दीदी की पैंटी की चूत वाली जगह को चाटने लगा वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है मज़ा आ गया मैं दीदी की पैंटी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पैंटी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।

थोड़ी देर के बाद जब डेजी दीदी को अपनी भीगी पैंटी की याद आई तो वह उसको बैग में ढूँढने लगीं, शायद दीदी को उसे साफ़ करना था दीदी को उनकी पैंटी और ब्रा बैग में नहीं मिली थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा मुझे अपनी पुरानी पैंटी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है। मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।

"तू हंस क्यों रहा हैं? इसमें हंसने की क्या बात है" डेजी दीदी ने मुझसे पूछा ।

मैंने डेजी दीदी से पूछा "दीदी तुम्हें अपनी पुरानी पैंटी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पैंटी मिल गई है ।"

तब कुछ-कुछ समझ कर डेजी ने मुझसे पूछा "क्या उनको तुमने लिया है?"

"मैं भी कह दिया हाँ दीदी मैंने लिया है वह दोनों अपने पास रखना है तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर ।"

तब डेजी दीदी बोलीं "काके वह गंदे हैं ।"

मैं मुस्कुरा कर डेजी दीदी से बोला " मैंने उनको साफ़ कर लिया लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा क्यों? मैंने दीदी से कहा मैं बाद में दे दूंगा अब माँ कमरे आ गई थीं इस लिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा ।

मैं अपना मोबाइल देखने लगा और जिन्नि ने भी मेरे चुटकले के जवाब में चुटकला भेजा था फिर रात को गुड नाईट के मेसज दोनों तरफ़ से आने जाने लगे। अगले कुछ दिन में ही मुझे और जिन्नि को-को एक दूसरे से फोम [पर बात करने की लत लग गयी। सारी-सारी रात हम फ़ोन में घुसे रहते।

मुझे एक दिन कुछ किताबे लेने जालंधर जाना था मैंने जिन्नि को बताया मैं कल नीट की कुछ नयी किताबे लेने जालन्धर आ रहा हूँ। यदि तुम चाहो तो मिल सकती हो।

अब जिन्नि भी अपने मुझे आँखों से देखना चाहती थी। दोनों में टाइम और जगह निर्धारित की गयी।

अगले दिन में जालंधर पहुँचा। किताबे ली और बताई जगह पर एक गिफ्ट लेकर पहुँचा। पार्क में बहुत-सी लड़किया घूम रही थी। अब मुश्किल थी के कैसे पहचानु जिन्नि को?

मैंने फेर जिन्नि को कॉल लगाई। जिन्नि ने फ़ोन उठाया और पूछा, " कहाँ रह गए हो मैं वेट कर रही हूँ, पार्क में आपका।

मैं–न मैं भी पार्क में ही हूँ। आप पार्क में कहाँ हो?

जिन्नि–मैं पार्क में गेट के लेफ्ट साइड के पास पिंक जिन्नि वाली ड्रेस में हूँ। गेट के पास आ जाओ।

मैंने फॉरेन फ़ोन काटा और गेट की तरफ़ चला गया। गेट के पास बने पत्थर पर एक माध्यम कद वाली लड़की किसी और दोस्त से बात कर रही थी। पिंक जिन्नि ड्रेस की पहचान से ये जाहिर था के वह जिन्नि ही थी। मैंने व्हाट्सप पर उसकी फोट भी देखि थी, मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखकर उसे बुलाया, हलो जिन्नि।

उसकी उम्र 18 वर्ष के करीब थी। उसके फिगर की बात करे तो न ज़्यादा मोटी, न ज़्यादा पतली बस गदराया-सा बदन, मध्यम कद, बड़े बूब्स वाली गोरी सुंदर पंजाबी लड़की थी।

जिन्नि ने पीछे मुड़कर देखा तो एक 6 फ़ीट कद का गोरा लड़का उसे बुला रहा था। उसने उस लड़के को कहा, "काके।"

मैं–हांजी, बिलकुल सही पहचाना ना मैंने?

जिन्नि ने बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया। फेर हम नज़दीक के एक रेस्टोरेंट में गए। अब दोनों 2 कुर्सियो वाले टेबल पर एक दूसरे के सामने बैठे थे। इतने में वेटर ने आर्डर लिया और 5 मिनट में आर्डर किया हुआ सामान सर्व कर दिया।

थोड़ी देर बाद मैंने उसे गिफ्ट उसे दिया। जिसे देखकर उसे बहुत अच्छा लगा। जिन्नि वहीँ गिफ्ट खोलने लगी तो मैंने उसे रोक दिया और घर पर जाकर खोलने के लिए विनती की।

माहौल एक दम खुशनुमा था। इतने में जिन्नि थोडा उदास-सी हो गयी और बोली, " काके जी एक बात बोलने को मन कर रहा है। लेकिन समझ नहीं आ रहा कैसे बोलू? डर लग रहा है के कही आप बुरा न मान जाओ।

मैं–नही, नहीं जिन्नि जी, आपका बुरा क्यों मानना। जो भी दिल में है बोलदो। जिससे आपका भी मन हल्का हो जायेगा। बताओ क्या है दिल में आपके?

जिन्नि–मैं ये कहना चाहती हूँ के। के मैं शादीशुदा हूँ।

मुझे ये सुनकर काफ़ी अजीब लगा क्योंके मैं तो यही समझ रहा था के मेरी दोस्त कुंवारी है।

जिन्नि–मैं हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी मांगती हूँ के मैंने आपसे ये बात छुपाई। लेक़िन मुझसे रहा नहीं गया बात बताने बिना। क्योंके यदि यही बात तुम्हे किसी और से और से पता चलती शायद आपको बहुत ही बुरा लगता। एक बात तो पक्की है। आपको चाहे बुरा लगा या नही। परन्तु मेरे दिल से हज़ारो क्विंटल वज़न उत्तर गया है। अब मैं ख़ुद को रिलैक्स महसूस कर रही हूँ।

एक बात और एक महीने में पता ही नहीं चला के कब तुम मेरे दिल में समा गए हो। इतना मोह मुझे मेरे पति का नहीं है। जितना तुम पर प्यार आ गया है। मुझे चाहे अच्छी समझो या बुरी लेकिन इन रियली आई लव यू सो मच। आई होप तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करने लगे हो और मेरी शादीशुदा वाली बात को माइंड नहीं करोगे।

मैं-और (झूठी-सी मुस्कान लिए) –जिन्नि जी, मुझे आपकी बात का बुरा नहीं लगा। जिन्नि जी आप कह रही थी आपके परिवार में आप 5 लोग ही हो, आप, भाई बहन और मम्मी पापा, आपने इतनी बड़ी बात छुपा ली क्यों? हाँ आज ये जानकार बस थोडा अजीब ज़रूर लगा के यदि पहले पता चल जाता तो शायद हम इतना नज़दीक न होते। अब मुझे भी आपसे दूरी बनाकर रखनी पड़ेगी। क्योंके मेरे ऐसा ना करने से आपकी शादीशुदा लाइफ प्रभावित होगी। सो आप भी प्लीज आगे से मुझसे कम से कम बात करने की कोशिश करनाl

जिन्नि–ना... ना... ऐसा-सा कहिए काके जी। अब अपने से दूर न करो मुझे। मेरा पति काम काज में ज्यादातर उलझा ही रहता है। सो मुझे समय नहीं दे पाता। इस लिए मैं ज्यादातर फ़ोन पर बिजी रहती हूँ। उससे मेरा झगड़ा हुआ था और मैं उससे लड़ कर उदास-सी पड़ी रहती थी, जब आपके जोक पहली बार मिले, उस दिन से मेरा मु बदला है और बाकि आप समझ ही सकते हो। मुझे आपका साथ पसन्द है। यदि मैं शादीशुदा न होती पक्का आपसे शादी करके आपकी सेवा करती।

मैं–अब कुछ नहीं हो सकता जिन्नि जी, अब तो आप अपने पति के साथ ठीक से ज़िन्दगी बसर कीजिए। इसी में आपका भला है और उठने लगा ।

जिन्नि–अरे रुको काके जी मेरा घर यही पास में ही है। हम कुछ देर गप्पे तो मार ही सकते है, प्लीज मुझे ब्लॉक मत करना और प्लीज जोक भेजते रहना और मुझसे बात करते रहना

मैं-"ठीक है जिन्नि जी, फेर कभी मिलते है। आज के लिए इतना ही काफ़ी है।"

उसके बाद मैं अपने घर आ गया और अपनी पढ़ाई में लग गया और कुछ दिन में बहुत बोर हो गया और कुछ ख़ास नहीं हुआ, बस डेजी को देखना और ताड़ना और कभी-कभी छू देना, कभी अकेले में मौका मिलने पर बूब्स दबा देना, किश कर देना चलता रहा ।

पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
 
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