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Incest परिवार (दि फैमिली) (Completed)

Rakesh1999

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अपडेट 34




मानिषा अपने बापू के कमरे में आ गयी । अनिल धोती में बेड पर लेटे हुए था, मनीषा सीधा अपने बापू के बेड पर उसके पास जाकर बैठ गयी ।
"अरे बेटी तुम कब आई" अनिल ने अपनी बेटी को देखकर बेड से उठकर बैठते हुए कहा।
"हाँ बापू आपको अपनी बहु की सेवा से फुर्सत मिले तभी तो अपनी बेटी के बारे में सोचेंगे" मनीषा ने अपने बापू पर बनावटी गुस्सा करते हुए कहा ।
"नही बेटी ऐसी कोई बात नहीं । तुम मुझे अपनी बहु से ज्यादा अच्छी लगती हो" अनिल ने अपनी बेटी को जवाब देते हुए कहा।
"छोड़ो बापू सारा दिन अपनी बहु के पल्लु के पीछे छुपे रहते हो और हमारी झूठ मूठ की तारीफ कर रहे हो" मनीषा ने अपने बापू से कहा।

"अरे बेटी तुम तो सब जानती हो हम अपनी बहु को अपने इसके लिए प्यार करते हैं अब इस उम्र में भी यह हमें चैन से रहने नहीं देता" अनिल ने अपनी धोती के ऊपर अपने लंड पर हाथ रखते हुए कहा।
"हाँ लगता है इसे अपनी बहु का माल बुहत पसंद आ गया है। तभी तो हर वक्त आपको तंग करता रहता है" मनीषा ने हँसते हुए अपने बाप से कहा ।
"बेटी यह हमारी बहु ही नहीं बल्कि हर ख़ूबसूरत चीज़ को देखकर उसका स्वाद लेने के लिए उतावला हो जाता है" अनिल ने अपने लंड को अपने हाथ से सहलाते हुए कहा।
"फिर तो बापू आपके पास बैठने में भी खतरा है कहीं यह आपको अपनी बेटी का स्वाद लेने के लिए न भडका दे" मनीषा ने वेसे ही हँसते हुए कहा।

"बेटी मेरा ऐसा नसीब कहाँ की तुम्हारे जैसी ख़ूबसूरत लड़की का रस चख सकूँ, भगवान ने अगर तुम्हें हमारी बेटी न बनाया होता तो मैं एक बार ज़रूर तुम्हारा रस इसे पिलाता" अनिल ने मायूस होते हुए कहा ।
"बापु क्या सच में मैं आपको इतनी सूंदर लगती हूँ।" मनीषा ने हैंरान होते हुए कहा।
"हाँ बेटी तुम मुझे बुहत अच्छी लगती हो" अनिल ने अपनी बेटी को जवाब दिया।
"फिर आपके लिए हम कुछ भी कर सकते हैं हम आपकी बेटी हुई तो क्या हुआ । हम आपके इसकी ही पैदाइश हैं आपका हम पर पूरा हक़ है" मनीषा ने जज़्बाती होते हुए अपने बापू को गले लगाते हुए कहा।

"बेटी सच में तुम बुहत महान हो" अनिल ने अपनी बेटी के माथे पर चुम्बन देते हुए कहा । मनीषा को अपने बापू के बालों वाले सीने में अपनी चुचियों के दबने से बुहत सुकून मिल रहा था । इसीलिए वह अपने बापू को कस कर अपने सीने से लगा रही थी ।
"बेटी इस वक्त यह सब करना खतरनाक होगा हमें रात का इंतज़ार करना होगा, मगर बेटी यह सिर्फ मैं जानता हूँ की मुझसे यह दिन कैसे गुज़रेंगा" अनिल ने अपनी बेटी के पीठ को सहलाते हुए कहा।
 

Rakesh1999

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"हाँ बापू आप सही कह रहे हो हमें रात का इंतज़ार करना होगा" मनीषा ने यह कहते हुए अपने होंठ अपने सगे बाप के होंठो पर रख दिये । अनिल अपनी बेटी के गुलाबी सुलगते होंठो को अपने होंठो पर पड़ते ही पागलोँ की तरह चूमते हुए अपना मूह खोल कर उन्हें चाटने लाग। मनीषा की चूत उत्तेजना के मारे अपने बाप से होंठ चुसवाते हुए गीली होकर रस टपकने लगी ।
अनिल का लंड भी फिर से उठने लगा था, मनीषा को अपने पूरे जिस्म में अजीब किस्म की झूझुरी हो रही थी। उसने अपने हाथ को अपने बापू की धोती में डालकर उसका आधा तना हुआ लंड पकड लिया और अपने कोमल हाथों से उसे सहलाने लगी ।
"आहहहहह बेटी" अपनी बेटी का हाथ अपने लंड पर पड़ते ही अनिल के मूह से सिसकी निकल गई।

मानिषा ने अपने बापू के मूह में अपनी जीभ को डाल दिया जिसे अनिल अपने होंठो से चूस्ते हुए अपना एक हाथ अपनी बेटी के कपड़ों के ऊपर उसकी एक चूचि पर रख दिया।
"आह्ह्ह्ह शहहहहः" अपने बाप का हाथ अपनी चुचियों पर पड़ते ही मनीषा को एक करंट का झटका लगा । उसका सारा बदन अपने बाप के हाथ को अपनी चूचि पर लगते ही काम्पने लगा ।

"बापु हम आगे निकल रहे हैं इस वक्त यह सब ठीक नहीं होगा" अचानक मनीषा ने होश में आते हुए अपने बापू के लंड से हाथ हटा लिया और उससे अलग होते कहा । मनीषा यह कहकर अपने बाप के कमरे से निकल कर अपने कमरे में आ गयी ।
मानिषा अपने कमरे में आकर सोचने लगी के उसे क्या हो गया है। पहले वह अपने बेटे के साथ और अब अपने बापू के साथ बुहत गलत कर रही है वह। पर अचानक फिर उसका मन बदल गया और वह सोचने लगी इसे में बुरा ही क्या है । अगर उसका बेटा और उसका बाप उसे पसंद करते हैं तो इसमें उसका क्या क़सूर है ।।।। और वैसे भी उसे अपनी ज़िंदगी को कैसे भी जीने का हक़ है तो वह क्यों न अपनी ज़िंदगी का फुल मज़ा ले।

मानिषा ऐसे ही सोचते हुए सो गयी, रेखा भी अपने कमरे में आकर सुकून की नींद सो चुकि थी । ऐसे ही डेली की तरह टाइम गुज़रता गया और रात हो गई सभी खाना खाने के बाद सोने की तैयारी करने लगे ।
खाना खाने के बाद सभी अपने कमरों में आ गये थे।रेखा दोपहर की दो दफ़ा की चुदाई से बुहत संतुषिट थी इसीलिए वह अपने पति के साथ घोड़े बेचकर सोने लगी। नरेश विजय के सोने का इंतज़ार करने लगा की कब वह सो जाये और वह अपनी माँ के कमरे में जाकर दोपहर को छोड़ा हुआ अधूरा काम कर सके।

कंचन ने शीला से कहा की तुम जाकर जो मैंने कहा था वैसे करो। अगर हमारा आईडिया कामयाब हो गया तो हम दोनों अपने भाइयों के साथ फुल मस्ती कर सकती हैं, शीला कंचन की बात सुनकर वहां से उठकर विजय के कमरे में जाने लगी।
"क्या बात है शीला तुम इस वक्त यहाँ कैसे" नरेश अपनी बहन को अचानक अपने कमरे में देखकर हैंरान होते हुए बोला।
"वो भैया मुझे सर में बुहत दर्द है और कंचन बुहत खराटे मारती है । इसीलिए मुझे वहां पर नींद ही नहीं आ रही है" शीला ने कंचन की बतायी हुयी बात वहां पर कह दी ।
 

Rakesh1999

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शीला फिर तुम मम्मी के साथ सो जाओ" नरेश ने परेशान होते हुए कहा।
"नरेश ऐसा करते हैं मैं कंचन के साथ जाकर लेट जाता हूँ और तुम शीला को यहीं पर लेटने दो" अचानक विजय ने बीच में बोलते हुए कहा ।
"हाँ भैया आईडिया बुरा नहीं है" शीला ने भी विजय की बात को सुनकर कहा।
"बात तो ठीक है मगर किसी को पता चल गया तो वह गलत सोचेंगे" नरेश ने अपने सर को खुजाते हुए कहा।
"अरे किसी को की पता चलेगा, मैं सुबह को सवेरे आकर यहीं पर लेट जाऊँगा और शीला दीदी को अपनी बहन के कमरे में भेज दूंगा" विजय ने फिर से जल्दी से कहा।

"ठीक है भाई जैसे आपको अच्छा लगे करो" नरेश ने भी हार मानते हुए कहा।
"थैंक्स दीदी" विजय ने जल्दी से उठते हुए शीला को देखते हुए कहा और वहाँ से निकल कर अपनी दीदी के कमरे में आ गया । विजय ने अपनी दीदी के कमरे में आते ही दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया ।
कंचन नाइटी में बेड पर लेटी हुयी थी, अपने भाई के कमरे में दाखिल होते ही उसका दिल ज़ोर से धडकने लगा और उसने नाटक करते हुए अपनी आंखें बंद कर दी।
"दीदी में आ गया हूँ" विजय ने अपनी बहन के क़रीब आते ही बेड पर बैठते हुए कहा।

कंचन ने अपने भाई का कोई जवाब नहीं दिया, वह सीधा लेटी हुयी थी और उसकी सांसों के साथ उसकी चुचियां बुहत ज़ोर से हील रही थी।
"दीदी उठो न क्यों सता रही हो" विजय ने अपना हाथ अपनी बहन के लम्बे बालों में ड़ालकर उसे सहलाते हुए कहा । कंचन फिर भी चुप रही और अपने भाई को कोई जवाब नहीं दिया ।
"वाह हमारी दीदी कितनी सूंदर है । शायद दुनिया की सब से ख़ूबसूरत लडकी, सोते हुए भी कितनी प्यारी लग रही है" विजय समझ गया की उसकी बहन सोने का नाटक कर रही है।उसने अपने हाथ से अपनी बहन के बालों को सहलाते हुए उसकी तारीफ करते हुए कहा।

विजय ने अब अपना हाथ अपनी बहन के बालों से निकालते हुए उसके गोर गालों को सहलाते हुए उसके गुलाबी होंठो पर अपने होंठ रख दिये । अपनी बहन के नरन नरम गुलाबी होंठो पर अपना हाथ पड़ते ही विजय का लंड उसकी पेण्ट को फाड़ने के लिए उतावला होने लगा ।
कंचन वैसे ही सोने का नाटक कर रही थी, विजय अपनी बहन के होंठो पर अपने हाथ फिराने के बाद नीचे होता हुआ अपना हाथ उसके काँधे से नीचे ले जाते हुए अपनी बहन की चुचियों की तरफ बढ़ने लगा।

कंचन अपने छोटे भाई के हाथ से बुहत ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी थी । उसकी साँसें बुहत तेज़ चल रही थी और उसकी चूत उत्तेजना के मारे पानी टपकाने शुरू कर दिया था । विजय अपना हाथ धीरे धीरे नीचे कर रहा था, अब उसका हाथ अपनी बहन की चुचियों के ऊपर बने क्लीवेज तक पुहंच चूका था ।
 

Rakesh1999

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अपडेट 35





"दीदी उठो न क्यों सता रही हो" विजय ने अपनी बहन की चुचियों के उपरी उभार को सहलाते हुए कहा।
"हमम्म सोने दो नींद आ रही है" कंचन ने हल्का मुस्कराते हुए सोने का नाटक करते हुए कहा।
"दीदी उठो वरना जो मुझे दिल में आएगा वह करुंगा" विजय ने अपनी बहन की चुचियों के ऊपर हाथ को ज़ोर से सहलाते हुए कहा ।
कंचन ने अपने भाई की बात का कोई जवाब दिए बगैर वेसे ही सोने का नाटक करने लगी । विजय समझ गया की उसकी बहन ऐसे नहीं उठेगी। उसने अपने हाथ से अपनी बहन की नाइटी को आगे से खोल दिया। कंचन अब विजय के सामने सिर्फ एक छोटी सी ब्रा और पेंटी में लेटी हुयी थी और उसकी साँसें बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी। जिस वजह से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां उसकी ब्रा में आधी नंगी बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी।

अपनी बहन की गोरी गोरी चुचियों को देखकर विजय का लंड उसकी पेण्ट को फाडने के लिए उतावला हो रहा था, विजय ने सीधा होते हुए अपनी शर्ट और पेण्ट को अपने जिस्म से अलग कर दिया। अब वह सिर्फ एक अंडरवियर में था जिस में उसका लंड तनकर तम्बू जैसे उभार बनाये हुए था ।
विजय ने अपने कपडे उतारने के बाद बेड पर बैठते हुए अपनी बहन की आधी नंगी चुचियों को देखते हुए अपने हाथ से उसकी ब्रा को भी अपनी सगी बहन की चुचियों से खींचकर अलग कर दिया । कंचन की ब्रा के हटते ही उसकी चुचियां अपने भाई के सामने बिलकुल नंगी हो गयी।

विजय का दिल अपनी बहन की नंगी चुचियों को देखकर बुहत जोर से धडकने लगा, उसने अपनी तेज़ धडकनों के साथ अपने दोनों हाथ बढाकर अपनी बहन की चुचियों पर रख दिये । कंचन की साँसें भी बुहत जोर से चल रही थी। अपने भाई का हाथ अपनी चुचियों पर महसूस करते ही उत्तेजना के मारे उसकी चूत से रस टपकने लगा ।
विजय को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका हाथ किसी फोम के टुकडे पर रख दिया गया हो, उसे अपना हाथ अपनी सगी बहन की नरम नरम चुचियों पर बुहत ज़्यादा मजा दे रहा था।

विजय ने अपने हाथों से अब अपनी बहन की नरम नरम चुचियों को सहलाना शुरू कर दिया । कंचन को अब नाटक करना बुहत भारी पड रहा था, वह अपने भाई के हाथ से अपनी चुचियों को सहलाता हुआ महसूस करके बुहत ज्यादा एक्साइटेडट हो रही थी।
"आह्ह्ह्ह क्या कर रहे हो भैया" कंचन ने अखिरकार हार मानते हुए कह दिया।
"क्यों दीदी मजा नहीं आ रहा क्या" विजय ने अपनी बड़ी बहन की आवाज़ सुनकर उसकी दोनों चुचियों को ज़ोर से पकडकर सहलाते हुए कहा ।
 

Rakesh1999

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"आहहहह हाँ भैया मजा तो आ रहा है" कंचन ने अपने भाई के हाथों से अपनी चुचियों को ज़ोर से मसलने से ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"दीदी जब मजा आ रहा है तो उठकर मजा लो न। क्यों नाटक कर रही हो" विजय ने अपनी बहन की दोनों चुचियों के कडे दानो को अपने उँगलियों के बीच ज़ोर से दबाते हुए कहा।
"ओहहहहहहह ईस्सस्स बदमाश आराम से इतनी ज़ोर से मत मसलो दर्द हो रहा है" कंचन ने अपनी आँखें खोलते हुए अपने भाई से कहा ।
"दीदी आपने ही शीला दीदी को ऐसा करने के लिए कहा था ना" विजय ने अपनी बहन की आँखें खुलने से खुश होते हुए उससे कहा।
"जब तुम जानते हो तो पूछ क्यों रहे हो" कंचन ने अपने भाई को दोनों हाथों से पकडकर अपने ऊपर गिराते हुए कहा।
"आआह्ह्ह्हह ओहहहह दीदी सच में आप दुनिया की सब से अच्छी दीदी हैं । मैं सच में आपसे प्यार करने लगा हूँ" विजय ने अपनी बहन की चुचियों को अपने नंगे सीने में दबने से सिसकते हुए कहा।

"आह्ह्ह्ह भैया में भी तो आपसे प्यार करती हूँ। इसीलिए तो मैंने नाटक करके तुम्हें अपने पास बुलाया ताकी मैं अपने प्यारे भैया के साथ जी भरकर प्यार कर सकुं। कंचन ने अपनी चुचियों को अपने भाई के नंगे सीने में दबता हुआ महसूस करके उसे अपनी बाहों में ज़ोर से दबाते हुए अपनी चुचियों को उसके नंगे सीने में ज़ोर से दबाकर मज़े से सिसकते हुए कहा ।
"दीदी मैं आज आपको इतना प्यार दूंगा के सारी ज़िंदगी आप मुझे याद रखेंगी" विजय ने यह कहते हुए अपने होंठ अपनी बहन के गुलाबी सुलगते हुए होंठो पर रख दिये । कंचन भी अपने भाई के होठ अपने होंठ पर पड़ते ही उसके साथ फ्रेंच किस में खो गयी। दोनों भाई बहन कुछ देर तक दुनिया से बेख़बर मज़े से एक दुसरे के होंठो को चूस्ते और चूमते रहे और जब दोनों की साँसें फूलने लगी तो उन्होने ने अपने होंठ एक दुसरे से अलग कर दिए।

विजय ने देखा की उसकी बहन उसके होंठो से अलग होते ही बुहत ज़ोर से साँसें ले रही है तो उसने अपने होंठ अपनी बहन के काँधे पर रख दिये और वह अपनी बहन के काँधे को चारो तरफ बड़े तेज़ी के साथ चूमने लगा । विजय का लंड अंडरवियर में क़ैद ही कंचन की पेंटी के ऊपर ज़ोर से रगड खा रहा था। जिस वजह से कंचन की चूत एक्साइटमेंट में बुहत ज़्यादा पानी बहा रही थी।
"आहहहहह भैया मुझे अपनी बाहों में ज़ोर से दबाओ मेरा सारा बदन टूट रहा है मुझे निचोड दो" कंचन ने उत्तेजना में सिसकते हुए कहा और अपने भाई को बालों से पकडते हुए अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिये । कंचन ने अपने भाई के होंठो को चूमते हुए अपनी जीभ को निकालकर अपने भाई के मूह में डाल दिया और अपने चुतडो को अपने भाई के अंडरवियर में खडे लंड पर रगड़ने लगी।
 

Rakesh1999

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विजय अपनी बहन की जीभ को कुछ देर तक अपने होंठो से चाटने के बाद उसके होंठो से अपने होंठो को अलग करते हुए नीचे होते हुए अपनी बहन की एक चूचि के गुलाबी कडे दाने को अपने मुँह में भर लिया।विजय अपनी बहन की चूचि के निप्पल को बुहत ज़ोर से चूस्ते हुए अपने हाथ से उसकी दूसरी चुचि को सहलाने लगा ।
विजय के मूह में अपनी चूचि का दाना जाते ही कंचन को अपने पूरे शरीर में अजीब किस्म की सनसनाहट होने लगी उसका पूरा बदन उत्तेजना के मारे सिहरने लगा।
"आजहहह भैया मुझे बुहत मजा आ रहा है । मुझे अपने पूरे शरीर में कुछ हो रहा है । ऐसे ही ज़ोर से मेरी दोनों चुचियों का रस पियो" कंचन मज़े को बर्दाशत न करते हुए जोर से सिसकते हुए अपने भाई से कहने लगी।

विजय भी अपनी बहन की बाते सुनकर बुहत ज़्यादा एक्साइटेडट हो गया और अपनी बहन की दोनों चुचियों को बारी बारी अपने मूह में भरकर चाटने लगा।
"आह्ह्ह्हह्ह भैया मुझे नीचे कुछ हो रहा है । प्लीज कुछ करो ओह्ह्ह्हह में मर जाऊँगी" कंचन अब अपने होश में नहीं थी। अपनी भाई के प्यार से वह उत्तेजित होकर जाने क्या क्या कह रही थी। जो उस वक्त उसे भी नहीं पता था की उसके मूह से यह सब क्या निकल रहा है ।
"दीदी आपको क्या हो रहा है और नीचे कहाँ?" विजय ने अपनी बहन की चुचियों से अपने होंठो को हटाते हुए अन्जान बनने का नाटक करते हुए कहा।
"यहाँ भैया" कंचन ने जल्दी से विजय का हाथ पकड कर अपनी पेंटी पर रखते हुए कहा।

"यहाँ पर यह तो आपकी पेंटी है और यह इतनी गीली क्यों हो गयी" विजय ने वैसे ही नाटक करते हुए कहा।
"हाँ भैया इसी के अंदर कुछ हो रहा है। आप इसे उतारकर देखो न की यह गीली क्यों है" कंचन ने फिर से अपने भाई से कहा ।
"ओह देखता हूँ" यह कहते हुए विजय ने अपनी बहन के टांगों के बीच आते हुए अपनी बहन की पेंटी में हाथ डालकर उसे अपनी बहन के जिस्म से अलग कर दिया।
"वाह दीदी आपकी चूत तो बुहत ख़ूबसूरत है" विजय ने अपनी बहन की पेंटी के उतारते ही उसकी हलके भूरे बालों वाली गुलाबी चूत को देखकर अपनी जीभ को अपने होठो पर फिराते हुए कहा।

"भइया यहीं तो मुझे कुछ हो रहा है । जल्दी से कुछ करो वरना मैं मर जाऊँगी" कंचन ने अपनी पेंटी के उतरने के बाद अपनी टांगों को फ़ैलाकर अपने भाई को अपनी ख़ूबसूरत कुँवारी चूत को दिखाते हुए कहा।
"ओह तो ऐसा कहो न की आपको अपनी प्यारी चूत में कुछ हो रहा है" विजय ने अपनी बहन की चूत को गौर से देखते हुए कहा ।
"हाँ भैया मुझे अपनी चूत में कुछ हो रहा है" कंचन ने उत्तेजना में अपने भाई से कहा।
"मरे तुम्हारे दुश्मन अभी तक तुम्हारा भाई ज़िंदा है । अभी कुछ करता हूँ" विजय यह कहता हुआ नीचे होते हुए अपना मुँह अपनी बहन की चूत की तरफ ले जाने लगा।
 

Rakesh1999

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"वाह दीदी आपकी चूत की ख़ुश्बू तो बुहत अच्छी है ज़रा इसका ज़ायक़ा भी चखा कर देखों । यह कहते हुए विजय ने अपनी जीभ निकालकर अपनी बहन की चूत के छेद पर रख दी और उसकी चूत से निकलता हुआ रस चाटने लगा।

"आह्ह्ह्हह ह्ह्ह्हह्ह भैया हाँ अपनी बहन की चूत का सारा रस चाट लो। ओह्ह्ह्ह हमारी चूत को ज़ोर से चाटो। हमें बुहत मज़ा आ रहा है" कंचन जो इतनी देर से उत्तेजना के मारे तडप रही थी। अपने भाई की जीभ अपनी चूत पर लगते ही बुहत ज़ोर से सिसकते हुए बोली ।
विजय अपनी बहन की बात सुनकर अपनी बहन की चूत को अपनी जीभ से चाटते हुए उसकी चूत के होंटों को अपना मूह खोलकर पूरा अपने मूह में लेकर चाटने लगा।
"आह्ह्ह्हह्ह ओहहहहहह भैया" विजय की इस हरकत से कंचन का पूरा जिस्म काम्पने लगा।

कंचन झरने के बिलकुल क़रीब आ चुकी थी,विजय ने वैसे ही अपनी बहन की चूत को चूसते हुए अपने हाथ से उसकी चूत के दाने को सहलाने लगा।


"आह्ह्ह्ह शह्ह्ह्हह्ह भैया ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह में झर रही हूँ" कंचन अपने भाई का हाथ अपनी चूत के दाने पर लगते ही अपना कण्ट्रोल खो बैठी और बुहत ज़ोर से चिल्लाते हुए अपनी आँखें बंद करके झरने लगी ।
कंचन ने झरते वक्त अपने दोनों हाथों से अपने भाई के बालों को पकडकर अपनी चूत पर दबा दिया । कंचन की चूत से जाने कितनी देर तक पानी निकलता रहा। विजय जितना हो सकता था । अपनी कुंवारी सगी बहन का पानी चाट लिया और बाकी का उसके मुँह पर लग गया।

कंचन का झरना जब ख़तम हुआ तो उसने अपने भाई के बालों को छोड दिया । विजय हाँफता हुआ अपनी बहन की चूत से अलग हुआ । उसका पूरा मुँह अपनी बहन की चूत के पानी से गीला हो चुका था।
"भइया आपका मुँह तो हम ने गन्दा कर दिया" कंचन ने जब झरने के बाद अपनी आँखें खोली तो अपने भाई की तरफ देखकर हँसते हुए कहा ।
"दीदी कोई बात नहीं बस आप अपनी जीभ से इसे साफ़ कर दो" विजय ने अपनी बहन की साइड में सोते हुए कहा । कंचन ने अपने भाई की बात सुनकर अपनी जीभ निकाल कर अपने भाई के पूरे चेहरे पर लगे हुए अपनी चूत के पानी को चाटकर साफ़ कर दिया।
 

Rakesh1999

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"दीदी आपको अपनी चूत से निकले हुए पानी का ज़ायक़ा कैसा लगा" । विजय ने अपनी बहन की जीभ से अपना पूरा मुँह चाटकर साफ़ करने के बाद उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"भइया मुझे नहीं पता था के मेरी चूत का पानी इतना नमकीन और टेस्टी होगा" कंचन ने अपनी जीभ को अपने होंठो पर फिराते हुए कहा ।
"हाँ दीदी आपकी चूत का पानी सच में बुहत टेस्टी है। पर अब ज़रा हमारे मुन्ने का भी थोडा जायका चख लो" विजय ने अपनी बहन को अपने ऊपर गिराते हुए कहा और उसके गुलाबी होठो को चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसके मूह में डाल दिया । कंचन अपने भाई की जीभ को अपने नरम नरम होंठो के बीच लेकर चूसने लगी। कुछ देर तक कंचन ने अपनी भाई की जीभ को चाटने के बाद उसकी जीभ को अपने मूह से निकालकर नीचे होते हुए अपने भाई के सीने को चूमने लगी।

कंचन अपने भाई के नंगे सीने को चूमते हुए अपनी जीभ निकलकर उसकी दोनों बूब्स के बीच फिराने लगी।
"आजहहहहह दीदी" विजय अपनी बहन की जीभ को अपने सीने पर महसूस करके ज़ोर से सिसकने लगा। कंचन अपनी जीभ को अपने भाई के दोनों बूब्स पर फिराते हुए अचानक उसका एक बूब अपने मूह में लेकर ज़ोर से चूसने लगी ।
"ओहहहहहहह दीदी क्या कर रही हो" विजय अपने एक बूब को अपनी दीदी के मूह में जाते ही ज़ोर से सिसकते हुए बोला । अपने बूब्स के चूसने से विजय को अपने पूरे शरीर में अजीब किस्म की गुदगुदी हो रही थी और उत्तेजना के मारे उसका लंड ज़ोर के झटके खाने लगा।

कंचन अपने भाई की कोई बात सुने बगैर उसके बूब्स को अपने मूह से निकालते हुए अपनी जीभ से उसके सीने को चूमते हुए नीचे होते हुए अपने भाई के अंडरवियर में तने हुए लंड तक आ गयी । कंचन ने अपने भाई के अंडरवियर के उभार को घूरते हुए अपनी जीभ अंडरवियर के ऊपर ही अपने भाई के लंड पर रख दी ।
"ओहहहहह हहहहह दीदी" अपनी बहन की जीभ अपने अंडरवियर के ऊपर से ही अपने लंड पर लगते ही विजय का पूरा जिस्म काम्पने लगा । कंचन ने कुछ देर तक अपने भाई के लंड को उसके अंडरवियर के ऊपर से चूमने के बाद अपने दोनों हाथों से उसके अंडरवियर को खींचकर उसके जिस्म से अलग कर दिया, विजय ने भी अपने चूतड़ ऊपर करते हुए अपनी बहन के हाथों अपने अंडरवियर को उतारने में उसकी मदद की।
 

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विजय का अंडरवियर उतरते ही उसका लंड उछल उछल कर अपनी बहन की आँखों के सामने नाचने लगा । कंचन अपने भाई के तने हुए लंड को झटके खाता हुआ गोर से देखने लगी।
"क्या देख रही हो दीदी" विजय ने अपनी बहन को यो अपने लंड की तरफ गौर से घूरता हुआ देखकर कहा।
"भइया आपका लंड कितना सूंदर है । मेरा दिल तो कर रहा है के सारी ज़िंदगी इसे अपने होंठो से चूमती रहूं" कंचन ने अपने भाई के लंड की तरफ यों ही गौर से देखते हुए कहा।
"तो फिर चूमो न इसे सिर्फ देख क्यों रही हो" विजय ने उत्तेजित होते हुए कहा।

"हाँ भैया मगर पहले मुझे अपने भाई के प्यारे लंड को गोर से देखने तो दो" कंचन ने अपने भाई की बात का जवाब देते हुए कहा।
"दीदी प्लीज मेरा भी कुछ करो। मैं कितने दिनों से तडप रहा हू" विजय ने अपनी बहन की तरफ तडपति नज़रों से देखते हुए कहा।
"हा भैया अभी कुछ करती हूँ मेरे होते हुए मेरा प्यारे भाई को कोई तकलीफ कैसे होने दूँगी" कंचन ने अपने भाई की बात सुनते ही उसके लंड को अपने हाथ में पकरते हुए कहा।
कंचन अपने भाई के मोटे लंड को अपने दोनों हाथों से पकडकर आगे पीछे करने लगी । कंचन की साँसें अपने भाई के गरम लंड को छूते ही बुहत ज़ोर से चल रही थी और वह ज़ोर से हाँफते हुए अपने भाई के लंड को ऊपर नीचे करते हुए सहलाने लगी।

कंचन ने कुछ देर तक अपने भाई के लंड को ऊपर नीचे करने के बाद नीचे झुकते हुए अपने भाई के लंड के गुलाबी सुपाडे को चूम लिया।
"आआह्ह्ह्ह दीदी" विजय अपनी बहन के होंठ अपने लंड के सुपाडे पर पड़ते ही ज़ोर से सिसकने लगा । कंचन अपने भाई के पूरे लंड को पागलो की तरह ऊपर से नीचे तक चूमने लगी ।
कंचन अपने भाई के लंड को चूमते हुए बुहत ज़ोर से हांफ भी रही थी । विजय की हालत भी बिगडती जा रही थी। उसके लंड से उत्तेजना के मारे वीर्य की कुछ बूँदे निकलने लगी, कंचन ने अपने भाई के लंड से पानी की बूँदों को निकलता हुआ देखकर अपनी जीभ निकालकर उसके लंड के छेद पर रख दी और अपने भाई के लंड से निकलता हुए वीर्य की बूँदों को चाट लिया।

"ओहहहहस्स्सस्स्स्स दीदी कुछ करो प्लीसस्सस्सीी" विजय अपनी बहन की जीभ अपने लंड के सुपाडे के छेद से निकलती हुयी वीर्य की बूँदों पर पड़ते ही ज़ोर से सिसकते हुए बोला । कंचन को अपने भाई के लंड से निकलता हुआ वीर्य बुहत अच्छा लगा। इसीलिए वह अपनी जीभ से अपने भाई के लंड के छेद को ज़ोर से कुरेदने लगी, ऐसा करने से विजय का पूरा जिस्म झटके खाने लगा ।
 

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कंचन ने कुछ देर तक ऐसा करने एक बाद अपना पूरा मुँह खोलते हुए अपने भाई के लंड का मोटा सुपाडा अपने मूह में ले लीया और अपने भाई के लंड के सुपाडे पर अपने होंठ को ज़ोर से दबाते हुए उसपर अपने होंठो को आगे पीछे करने चूसने लगी।

"आह्ह्ह्ह दीदीईई ओह्ह्ह्हह्हह ऐसे ही ज़ोर से मेरे लंड को चाटो बुहत मजा आ रहा है" विजय अपनी बहन के नरम होंठो के बीच अपने लंड को दबोचने से मज़े के मारे बुहत ज़ोर से सिसकते हुए बोली । कंचन अपने भाई की बात सुनकर अपने होंठो से अपने भाई के लंड को ज़ोर से चूसने लगी।
"ओहहहहह इस्स्स्सह्ह्ह्हह्ह दीदी सच में आप बुहत अच्छी हो । हाँ ऐसे हो चाटती रहो मुझे बुहत मजा आ रहा है" विजय अपनी बाहन के लबों से अपना लंड चुसवाते हुए जन्नत जैसे मजा लेते हुए बोला।

कंचन को पहले तो अपने भाई के लंड अपने मुँह में बुहत अजीब महसूस हो रहा था मगर अब उसके लंड से उत्तेजना के मारे वीर्य की बूँदे निकलने से कंचन को अपने भाई का लंड चूस्ते हुए बुहत ज़्यादा मजा आ रहा था। इसीलिए वह अपने भाई के लंड को जितना हो सकता था उतना ज़ोर से उसका लंड चूस रही थी ।
विजय अब ज़ोर से सिसकते अपने हाथों को अपनी बहन के सर में डालकर अपने लंड पर दबाने लगा ।

कंचन के मूह में अपने भाई के हाथ के दबाव की वजह से विजय का लंड आधा उसके मूह में चला गया, कंचन का मूह अपने भाई का आधा लंड अपने मूह में जाते ही पूरा भर गया और उसे अपने भाई का लंड चूसने में बुहत तकलीफ हो रही थी।

विजय तो जैसे पागल हो चुका था वह अपने हाथों से अपनी बहन को बुहत ज़ोर से अपने लंड पर ऊपर नीचे कर रहा था और उत्तेजना के मारे उसका पूरा जिस्म कांप रहा था। वह झरने के बिलकुल क़रीब था । कंचन के मुँह में अपने भाई का लंड इतनी ज़ोर से अंदर बाहर हो रहा था की उसके मूह से सिर्फ गो गो की आवाज़ें निकल रही थी, ऐसा लग रहा था की उसे बुहत ज़्यादा तक़लीफ हो रही थी ।।

विजय का जिस्म अचानक झटके खाने लगा और वह अपनी बहन के सर को ज़ोर से पकडते हुए अपने लंड पर दबाते हुए ज़ोर से सिसकते हुए झरने लगा।
"आह्ह्ह्हह ओहहहह दीदीईई इसशहहहहहह में गया" विजय झरते हुए बुहत ज़ोर से काँपते हुए सिसक रहा था । विजय के लंड का वीर्य सीधा कंचन के मुँह में गिरने लगा और विजय का आधा लंड अपने मूह में घुसा होने के कारण विजय के लंड का वीर्य उसकी बहन के मूह से सीधा उसके गले में उतरने लगा ।
 
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