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"क्या हुआ दीदी मजा आया" नरेश ने कंचन को हाँफता हुआ देखकर मुस्कराते हुए कहा।
"बदमाश तुम्हें तो मैं देख लूंग़ी" कंचन ने गुस्से से नरेश की तरफ देखा और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए बाहर निकल गयी ।
कंचन ने बाहर आकर पहले कोमल और पिंकी को उठाया और फिर अपनी माँ के पास किचन में चली गई।
"आ गयी बेटी क्या बात है आज तो बुहत ज्यादा सूंदर लग रही हो" रेखा ने कंचन को देखकर उसकी तारीफ करते हुए कहा । कंचन अपनी माँ के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर शरमा गयी और अपना कन्धा नीचे झुका लिया ।
"बेटी जाओ पहले तुम अपने पिता को चाय देकर आओ" रेखा ने चाय का एक कप और कुछ बिसकुटस ट्रे में रखकर कंचन को देते हुए कहा । कंचन ट्रे को उठाकर अपने पिता के कमरे में जाने लगी और अपने पिता के कमरे के पास पुहंच कर दरवाज़े को नॉक करने लगी।
"दरवाज़ा खुला है आ जाओ" मुकेश ने दरवाज़े के खटकाने से वहीँ पर बैठे हुए कहा ।
कंचन अपने पिता की आवज़ सुनकर अंदर दाखिल हो गई और अपने पिता के पास जाकर चाय की ट्रे को टेबल पर रखने लगी । मुकेश ने जैसे ही अपनी बेटी को देखा उसके होश ही उड़ गए क्योंकी कंचन के बाल खुले हुए थे और वह ताज़ा फ्रेश होकर आई थी इसीलिए वह बुहत ज्यादा सूंदर लग रही थी। कंचन जैसे ही ट्रे को नीचे रखने के लिए झुकी उसके गले से पल्लु खिसककर नीचे गिर गया और उसकी दो जवान गोल गोल गोरी चुचियां आधी नंगी होकर मुकेश के आँखों के सामने आ गयी ।
मुकेश का लंड अपनी बेटी की जवान चुचियों को देखकर उसकी पेण्ट में बुहत ज़ोर के झटके खाने लगा।
"पिताजी चाय" कंचन ने ट्रे के रखने के बाद वैसे झुके हुए ही उनकी तरफ देखते हुए कहा । कंचन ने जैसे ही देखा की उसका पिता उसकी चुचियों को घूर रहा है वह जल्दी से सीधा हो गई और अपने पल्लु को वापस अपनी चुचियों पर रख दिया ।
"बेटी आज तो तुम बुहत सूंदर लग रही हो" मुकेश ने चाय का कप उठाकर अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा।
"पिताजी मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही है क्या मैं जाऊँ?" कंचन ने अपने पिता की बात सुनकर शर्म से अपना कन्धा झुकाते हुए कहा ।
"अरे बेटी छोड़ो मम्मी को आओ मेरे पास आकर बैठो। आज कितने दिनों के बाद तो तुमसे बात करने का मौका मिला है" मुकेश ने चाय के कप में से एक चुसकी लेते हुए कहा । अपने पिता की बात सुनकर कंचन की साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी और वह धीरे धीरे चलते हुए अपने पिता के साथ सोफ़े पर आकर बैठ गयी ।
"बदमाश तुम्हें तो मैं देख लूंग़ी" कंचन ने गुस्से से नरेश की तरफ देखा और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए बाहर निकल गयी ।
कंचन ने बाहर आकर पहले कोमल और पिंकी को उठाया और फिर अपनी माँ के पास किचन में चली गई।
"आ गयी बेटी क्या बात है आज तो बुहत ज्यादा सूंदर लग रही हो" रेखा ने कंचन को देखकर उसकी तारीफ करते हुए कहा । कंचन अपनी माँ के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर शरमा गयी और अपना कन्धा नीचे झुका लिया ।
"बेटी जाओ पहले तुम अपने पिता को चाय देकर आओ" रेखा ने चाय का एक कप और कुछ बिसकुटस ट्रे में रखकर कंचन को देते हुए कहा । कंचन ट्रे को उठाकर अपने पिता के कमरे में जाने लगी और अपने पिता के कमरे के पास पुहंच कर दरवाज़े को नॉक करने लगी।
"दरवाज़ा खुला है आ जाओ" मुकेश ने दरवाज़े के खटकाने से वहीँ पर बैठे हुए कहा ।
कंचन अपने पिता की आवज़ सुनकर अंदर दाखिल हो गई और अपने पिता के पास जाकर चाय की ट्रे को टेबल पर रखने लगी । मुकेश ने जैसे ही अपनी बेटी को देखा उसके होश ही उड़ गए क्योंकी कंचन के बाल खुले हुए थे और वह ताज़ा फ्रेश होकर आई थी इसीलिए वह बुहत ज्यादा सूंदर लग रही थी। कंचन जैसे ही ट्रे को नीचे रखने के लिए झुकी उसके गले से पल्लु खिसककर नीचे गिर गया और उसकी दो जवान गोल गोल गोरी चुचियां आधी नंगी होकर मुकेश के आँखों के सामने आ गयी ।
मुकेश का लंड अपनी बेटी की जवान चुचियों को देखकर उसकी पेण्ट में बुहत ज़ोर के झटके खाने लगा।
"पिताजी चाय" कंचन ने ट्रे के रखने के बाद वैसे झुके हुए ही उनकी तरफ देखते हुए कहा । कंचन ने जैसे ही देखा की उसका पिता उसकी चुचियों को घूर रहा है वह जल्दी से सीधा हो गई और अपने पल्लु को वापस अपनी चुचियों पर रख दिया ।
"बेटी आज तो तुम बुहत सूंदर लग रही हो" मुकेश ने चाय का कप उठाकर अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा।
"पिताजी मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही है क्या मैं जाऊँ?" कंचन ने अपने पिता की बात सुनकर शर्म से अपना कन्धा झुकाते हुए कहा ।
"अरे बेटी छोड़ो मम्मी को आओ मेरे पास आकर बैठो। आज कितने दिनों के बाद तो तुमसे बात करने का मौका मिला है" मुकेश ने चाय के कप में से एक चुसकी लेते हुए कहा । अपने पिता की बात सुनकर कंचन की साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी और वह धीरे धीरे चलते हुए अपने पिता के साथ सोफ़े पर आकर बैठ गयी ।