विजय ने शीला की गाँड़ में उँगलियाँ अंदर बाहर की और शीला आऽऽऽह्ह्ह कर उठी। फिर वह अपने लंड पर भी क्रीम लगाया और शीला की गाँड़ में अपना लंड धीरे से दबाने लगा। सुपाड़ा उसके गाँड़ के छल्ले को फैलाकर अंदर घुसता चला गया। शीला आऽऽऽऽऽहह करके चिल्लाई और लंड अंदर घुसता चला गया।
शीला:आह भैया बहुत दर्द हो रहा है।लग रहा है मेरी गाँड में कोई गरम डंडा घुस गया है।
विजय:रिलेक्स दीदी।थोड़ी देर में ही आपको मज़ा आने लगेगा।आप बहुत गरम हो दीदी।कुँवारी गांड में लंड लेना सबके बस की बात नहीं है।विजय शीला की गांड मारते हुए कंचन को चिढ़ाया।
कंचन भी बहुत गरम हो चुकी थी और नशे में भी थी।वो बोली।
नरेश भैया आप भी अपना लंड मेरी गांड में पेल दो।कितना भी दर्द होगा।मैं बर्दास्त कर लूँगी।
उसी टाइम नरेश ने भी क्रीम लेकर कंचन की गाँड़ में लगाई और फिर अपने लंड में लगाकर अपना लंड उसकी गाँड़ में एक ही धक्के में आधा पेल दिया और कंचन हाऽऽऽऽऽय्य मरीइइइइइइइ चिल्लाई: आऽऽऽपका बहुत मोओओओटा है भाई इइइइइइइ।
विजय ने धीरे धीरे, रुक रुक कर अपना पूरा लंड शीला की गांड में पेल दिया। शीला दर्द से बेचैन थी, उसका बदन पसीना पसीना हो चूका था, दाँत के दबाव से होंठ लाल हो चुके थे और उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। कुछ देर तक शांत रहने के बाद विजय ने शीला की गांड को धीरे धीरे चोदना शुरू किया। शीला की पतली कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर विजय अपने लंड को उसकी गांड में धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहा था। विजय ने गांड में लंड कभी नहीं पेला था। विजय जब लंड को अंदर घुसाता तब शीला की टाइट गांड उसके लंड के ऊपर की त्वचा को जकड लेती और उसके लंड का सुपाड़ा पूरी तरह से नंगा हो कर तन जाता। फिर शीला की गांड के भीतर के कोमल और चिपचिपी त्वचा से नंगे सुपाडे की रगड विजय को बहुत आनंद दे रहा था।
शीला का दर्द भी अब शांत हो गया था। गाँड में मोटा सा लंड जब अंदर घुसता तो शीला को अपनी चूत पर दबाव महसस होता, ये एहसास बहुत ही मादक था। शीला को अब मजा आने लगा था। वो विजय के लंड के साथ लय मिला कर अपने गांड को हिलाने लगी। जैसे विजय लंड अंदर घुसाता,शीला अपना गांड पीछे कर देती। शीला को मजा लेता देख विजय ने भी चुदाई की गति काफी तेज़ कर दी। चूतड़ के पास दोनों हाथों से शीला की कमर को पकड़ कर विजय पूरे अंदर तक अपना लंड पेल रहा था।उधर कंचन भी मज़े से गांड मरवाने लगी थी।