कुछ देर बाद शालु बहार आती हैं और गुंज़न से पूछती है।
शालु - बहार किया हुआ भाभी।
गुंज़न अपनी साड़ी में हात डाल कर अपनी चुत पर लगा सोनू
के वीर्य को अपनी अगुली पर लगाकर बहार लाकर शालु को
सोनू वीर्य दीखा शालु से बोली
गुंज़न- देखे तेरे भाई का माल उस ने तुझे बाबूजी चुदते देख
सोनू ने मेरी चुत और मुह दोनों भर दिये है।
शालु - क्या भाभी तुम बहार सोनू के साथ मज़ा कर रही थी
गुंज़न - तो क्या हम दोनों तुमे ही दखेते रहते।
शालु - अच्छा किया भाभी आज तुमने भी सोनू का लंड ले लिया तो अब बताओ की किस का लंड अच्छा लगा सोनू का
या फिर पापा का।
गुंज़न - इस में भी की पूछने वाली बात है अंदर बाबूजी ने तुमे आधे घण्टे तक पेल और बाहर सोनू ने इतनी देर मे तीन बार अपना पानी निकाल दिया। अब तुमही बताओ कौन जायदा अच्छा है
शालु - ये बात तो है भाभी पापा चोद चोद कर सार बदन तोड़ देते है
गुंज़न - शालु ये मत बोल की दन तोड़ देते है ये बोल की
बाबूजी अपने लंड से हमारे बदन की सारी गरमी निकाल देते है।
शालु - नही भाभी पापा तो बदन की गरमी और बढ़ा देते हैं।
जब पापा चोदते तो मन करता है की उनका लंड पुरा दिन बुर
को ही खोदता रहे।
गुंज़न - तो जा खुदवा ले एक बार फिर बाबूजी के लंड से अपनी चुत।
शालु - खुदवा तो लु भाभी पर एक ही बार में मेरा शरीर दर्द कर रहा है और अगर एक बार और कर लिया तो में उठने के काबिल भी नही रहूगी।
गुंज़न - तो ठीक है नंद रानी जाकर आराम कर ले।
शालु - ठीक है भाभी पर अब आगे क्या करना है।
गुंज़न - आगे ये करना है तू रात को सोनू के कमरे में जाकर अपने भाई से खूब अपनी चुत की चटनी बनवाना। बाकी
सब में कर लूगी।
वो दोनों बात कर ही रहे होते है की धर्मवीर वहा आ जाता है
धर्मवीर उनके पास आकर बोला
धर्मवीर - शालु राकेश का फोन आया था अभी उसने तुम्हारी नोकरी की बात की है किसी कंपनी मै और तुमे कल ही इंटरयूट के लिये राकेश के पास जाना होगा।
शालु धर्मवीर की बात सुन कर खुश हो जाती है पर
अगले ही पल वो एक दम निरास हो जाती हैं ये सोच कर की
उसे सब को छोड कर जाना पड़ेगा।
शालु को निराश देखे गुंज़न समझ जाती हैं की शालु का मन धर्मवीर और सोनू को छोड़कर जाना नही चाहती। ये बोल कर धर्मवीर वाह से चला जाता हैं
शालु - भाभी मेरा मन नही कर रहा आप सबको छोड़ कर जाने का।
गुंज़न - नंद रानी मन तो मेरा भी नही कर रहा है की तू हम सब को छोड़ कर जाय पर जाना भी तो जरूरी है इसलिय
तुने इतनी पढाई की है।
शालु - ठीक है भाभी।
अगले दिन सुबह सोनू के स्कूल जाने के बाद 10 बजे धर्मवीर भी शालु को छोड़ने के रेलवे स्टेशन चला गया
तभी घर गुंज़न के मोबाइल पे उसके पापा का फ़ोन आता है।
पापा - बेटा।। कैसी हो?
गुंज़न - ठीक हूँ पापा आप कैसे हैं?
पापा- मैं ठीक हूँ बेटी मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ तुमसे मिलने, अभी १ घंटे में पहुच जाऊँगा।
गुंज़न - ओके पापा मैं वेट कर रही हूँ आपका।
तभी धर्मवीर घर आ जाता है गुंज़न धर्मवीर को अपने पापा के आने की बात बताती हैं
गुंज़न - ओह बाबूजी कुछ देर में पापा आ जायेंगे क्या पहनू मैं। उनकी बेटी अच्छी दिखनी चाहिए न।
धर्मवीर - बहु।। कुछ भी पहन लो जो भी तुम्हे अच्छा लगे।
गुंज़न - बाबूजी मैं शूट सलवार पहन लूँ? या फिर साड़ी?
धर्मवीर - बहु साड़ी ही पहन लो।
गुंज़न - आप एक मिनट यहाँ बिस्तर पे बैठिये न प्लीज कहीं मत जाइये मैं एक साडी पहन के आती हूं।। बताइये की कैसी है।।
गुंज़न कमरे से अटैच बाथरूम में चेंज करने चलि गई। थोड़ी देर में वो एक ग्रीन साडी पहन के बहार आयी। ब्लाउस में गुंज़न की चूचियां कसी हुई बड़ी सी दिख रही थी और गुंज़न की नाभि बहुत सुंदर लग रही थी
धर्मवीर - बहु।। एक बात कहूं बुरा तो नहीं मनोगी।।?
गुंज़न - नहीं मानूँगी बोलिये।।
धर्मवीर - बहु अगर तुम ये साडी पहन के अपने पापा के सामने गई और पापा ने तुम्हारी ऐसे खुली नाभि देख ली, तो सच बोलता हूं।। तुम्हारी नाभि देख कर उनका मुट्ठ उनके पैंट में ही निकल जाएगा।
गुंज़न - छि: बाबूजी।। आप कैसे गन्दी बातें कर रहे है। नहीं मैं नहीं मानती मेरे पापा मेरे बारे में सोच कर।। ये सब?
धर्मवीर - क्या तुमने कभी उनका खड़ा लंड देखा था?
गुंज़न - हाँ देखा था।
धर्मवीर- कब?
गुंज़न - वो एक बार बाथरूम में मैंने उन्हें देखा था, वो अपनी अंडरवियर उतार अपना लंड हाथ में लिए खड़े थे सामने एक बड़ा सा मिरर था जिसके रेफ्लेक्शन में मैंने उनका बड़ा सा लंड साफ़ साफ़ देखा। वो अपने लंड के स्किन को नीचे किये हुये थे मैंने देखा तो मेरी धड़कन तेज़ हो गई और मैं भाग कर किचन में आ गई।
गुंज़न बिना शर्म अपने मुह से अपने पापा के लंड के बारे में बोल रही थी। गुंज़न के मुह से ये सब सुन कर धर्मवीर का लंड खड़ा हो गया
धर्मवीर - तो इसका मतलब तुमने सबसे पहले लंड अपने पापा का देखा?
गुंज़न - (शर्माते हुए।।) हाँ।
धर्मवीर - वो।। अपने पापा का लंड देख क्या तुम्हारे बुर में पानी आया था?
गुंज़न - छी: बाबूजी ये आप क्या कह रहे हैं वो मेरे पापा है।
धर्मवीर - मैं नहीं मानता, सच सच बताओ बहु अपने पापा के बारे में जानकार क्या अभी तुम्हारे बुर में पानी नहीं आ रहा?
गुंज़न - बाबूजी ये आप क्या कह रहे हैं?
धर्मवीर- सच कह रहा हूँ बहु, क्या तुम अभी गरम नहीं हो? अपनी ऊँगली डाल के देखो।
धर्मवीर - नहीं मैं गरम नहीं हू।
धर्मवीर अपनी दो ऊँगली गुंज़न की बुर में डाल देता ह उसकी उँगलियाँ बुर के पानी से पूरी तरह गिली हो जाती हैं
धर्मवीर- देखा बहु तुम्हारे बुर से कितना पानी निकल रहा है (
गुंज़न - प्लीज बाबूजी ये मत करिये प्लीज प्लीज प्लीज।।
धर्मवीर- बहु।।। बहु।। मेरा पानी निकाल दो बहु।।
गुंज़न - शह्ह्हह्ह्।।। बाबूजी। आप प्लीज रुक जाइये पापा आने ही वाले है
धर्मवीर - नहीं बहु मैं नहीं रुक सकता।
गुंज़न - तो फिर जल्दी निकाल दिजिये बाबूजी।।जलदी।।
पापा आ गए तो।।
धर्मवीर - बहु।। अगर जल्दी निकालना है तो तुम मेरा लंड अपने मुह में ले कर चूसो और मैं तुम्हारे मुह में मूठ निकाल देता हूँ।
गुंज़न - ठीक है बाबूजी।। लाईये मैं आपका लंड चुस्ती हूँ
गुंज़न ने होठ खोल धर्मवीर क लंड अपने मुह में ले लिया और कस के चूसने लगी।
धर्मवीर- आह बहु।। बहुत मजा आ रहा है
तभी डोर बेल्ल बजी गुंज़न ने जाकर दरवाजा खोला तो उसके पापा रामलाल थे और गुंज़न सीधा अपने पापा से लिपट गई।
गुंज़न अपने पापा से ढेर सारी बातें कर रही थी, उनकी बातें तो जैसे ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। धर्मवीर गुंज़न और उसके पापा को कमरे में अकेला छोड़ हॉल में बैठकर टीवी देखने लगा। धर्मवीर का मन टीवी देखने में बिलकुल नहीं लग रहा था।
धर्मवीर - । (गुंज़न के पापा का नाम रामलालहै) मिल लिए अपनी बिटिया से? अच्छे से प्यार करिये उसको आपको बहुत मिस करती है। वैसे क्या कर रही है अभी?
रामलाल - हाँ मिस तो मैं भी बहुत करता हूँ उसको।। शादी से पहले वो मुझे छोड़ के वो कहीं नहीं जाती थी दिन भर मेरे साथ रहती थे और रात में भी मेरे पास सोने की जिद्द करती थी। अभी तो बेटी कपडे चेंज कर रही है।। मैं उसके कपडे ले आया हूँ।उसे ही वो ट्राई कर रही है।
धर्मवीर - हाँ बिलकुल ठीक किया आपने।।।
गुंज़न के कपडे चेंज करने वाली बात सुनकर धर्मवीर तुरंत वहां से उठा और रामलाल से छुपते हुए गुंज़न के कमरे की तरफ हो लिया
गुंज़न के कमरे का दरवाजा खुला था, धर्मवीर हलके से पुश किया तो देखा गुंज़न अपने कपडे उतार रही थी। रेड पेटिकोट और खुली हुई रेड ब्लाउज में उसके पीठ गोरी चिकनी चमक रही थी वो अपनी ब्लाउज लगभग उतार चुकी थी और उसकी वाइट थिन ब्रा नज़र आ रही थी।
गुंज़न की कमर तक नंगी पीठ देख धर्मवीर से रहा नहीं गया। और धर्मवीर ने गुंज़न को पीछे से पकड़ लिया और उसकी नंगी पीठ और कमर पे किस करने लगा। गुंज़न चौंक गई।।
गुंज़न - बाबूजी ये क्या कर रहे हैं ?
धर्मवीर - अपनी माल सी बहु के पीठ चूम रहा हूं।। करने दे बहु तुम आज बहुत हॉट लग रही हो।
धर्मवीर किस करता हुआ गुंज़न के नवेल को अपने जीभ से चाट्ने लगा उसकी गहरी नाभि के छेद में अपनी पूरी जीभ दाल दी और अपने दांतो से उसके नर्म मुलायम पेट् को काटने लगा। गुंज़न काँप रही थी और उसकी उँगलियाँ अनायास ही
धर्मवीर के बालों में आ कर रुक गई।
गुंज़न - बाबूजी।। रुक जाइये न पापा घर पे हैं ये आप क्या कर रहे है।
धर्मवीर - (धर्मवीर साड़ी के ऊपर से गुंज़न के बुर दबाने लगा) अपनी पेंटी उतार दे बहु, मुझे अपनी बुर का जूस पी लेने दे।
गुंज़न - प्लीज बाबूजी ऐसे मत बोलिये (दौड के बाथरूम की तरफ भाग गई)
धर्मवीर की वासना शांत नहीं हुई थी धर्मवीर गुंज़न को चोदने के लिए बेताब था लेकिन कोई रास्ता न निकलता देख कर वापस डाइनिंग हॉल में लौट आया। कुछ देर बाद गुंज़न भी डाइनिंग हॉल में खाना ले कर आ गई। सब बैठ वहीँ अपना लंच करने लगे। हमेशा की तरह आज भी गुंज़न धर्मवीर के बगल में बैठी थे और एक साइड टीवी पे इंडिया पाकिस्तान का मैच आ रहा था। धर्मवीर ने टेबल के नीचे अपना लंड धोती से बाहर निकाल कर सहलाने लगा, गुंज़न ये सारा नज़ारा अपनी आँखों से देख रही थी।
कई बार धर्मवीर ने गुंज़न का हाथ पकड़ कर अपने लंड पे रखा मगर वो कुछ देर लंड हिलाने के बाद हाथ हटा लेती थी उसे डर था की कहीं उसके पापा को पता न चल जाए।
रामलाल मैच देखने में बिजी थे, धर्मवीर ने धीरे से अपना हाथ बढा कर गुंज़न की साडी में डाल दिया। धर्मवीर के हाथ की थोड़ी सी हरकत पे गुंज़न ने अपना पैर फैला दिया वो धर्मवीर को अपनी चूत का रास्ता बता रही हो। धर्मवीर ने जैसे ही गुंज़न की बुर को हाथ लगाये उसके बुर से चिपचिपी पानी की धार निकल पडी। गुंज़न को मस्ती चढ़ने लगी, उसके मुह से उम्म्म उम् की आवाज़ आ रही थी और वो मज़े लेते हुए अपनी होठ को बार बार जीभ से गिला कर रही थी।
गुंज़न ऐसा करता देख बोले ।
रामलाल- क्या हुआ बेटी तबियत तो ठीक है?
गुंज़न - उम्म्म आआह्ह जी पापा ठीक है
गुंज़न भी धर्मवीर के लंड के स्किन को ऊपर नीचे कर मुट्ठ मरती रही। धर्मवीर भी उसकी बुर में लगतार उँगलियाँ पेल रहा था। गुंज़न एक हाथ ऊपर टेबल पे रखी थी, एक साल्ट की डिबिया से खेल रही थी। खेलते-खेलते डिबिया टेबल के नीचे चलि गई।
गुंज़न- ओह बाबूजी डिबिया नीचे गिर गई। आपकी तरफ चलि गई क्या? एक मिनट देखति हू।
अगले ही पल गुंज़न चेयर से उतर कर जमीन पे बैठि, इससे पहले की धर्मवीर कुछ समझ पाता गुंज़न ने धर्मवीर का लंड अपने हाथ में पकड़ा उसका स्किन खीच के नीचे किया और मेरे लंड को सीधा अपने मुह में ले लिया।
गुंज़न के गरम - गरम मुह में अपना लंड डाल धर्मवीर को तो जैसे जन्नत मिल गई। गुंज़न तेज़ी से धर्मवीर के लंड को चूस रही थी। धर्मवीर को एक पल के लिए यकीन ही नहीं हुआ की उसकी बहु बिना किस्सी डर के एक रंडी की तरह अपने पिता के मौज़ूदगी में उसका लंड चूस रही थी। गुंज़न के थूक और लार से धर्मवीर का लंड गिला हो गया ।गुंज़न के मुह की गर्मी पाकर धर्मवीर फच्च-फच्च की आवाज़ के साथ गुंज़न के मुह में ही स्खलित हो गया। गुंज़न धर्मवीर सारा वीर्य पी गई और वापस आ कर चेयर पे बैठ गई, दूसरी और महेंद्र इस बात से अन्जान मैच में ध्यान लगाए बैठे थे।गुंज़न के मुह में गिरा कर धर्मवीर को बहुत सन्तुष्टि मिली। लंच करने के बाद गुंज़न अपने कमरे में जा चुकी थी और बाकि सब वहीँ मैच देख रहे थे।
कुछ देर बाद धर्मवीर रामलाल को हॉल में अकेला छोड़ के गुंज़न के कमरे में चला गया। गुंज़न कमरे में लेटी थी उसकी कुर्ती एक तरफ से उठि हुई थी उसकी मांसल गांड और जांघ देख कर धर्मवीर लंड खड़ा होने लगा।
धर्मवीर चुपके से गुंज़न के क़रीब लेट गया और अपना हाथ आगे बढा गुंज़न की चूचि दबाने लगा।।
गुंज़न - आह बाबू जी ये क्या कर रहे हैं? आप मेरे कमरे में?
धर्मवीर - तुम बहुत सेक्सी हो बहु तुम्हारे बूब्स कितने सॉफ्ट है।
गुंज़न - बाबूजी।। पापा हैं घर में आप प्लीज जाइये यहाँ से।
धर्मवीर एक हाथ से गुंज़न की सलवार खोल, उसकी नंगी जांघों को सहलाने लगालगा
धर्मवीर- नहीं बहु समधी जी तो मैच देख रहे हैं
गुंज़न - प्लीज बाबूजी आप बहुत एक्साईटेड थे इसलिए मैंने लंच टेबल पे आपका लंड मुह में लेकर आपका पानी निकाल दिया था ताकि आप शांत हो जाएँ और मुझे तंग ना करे।
धर्मवीर एक झटके में गुंज़न की ब्रा उतार कर बेड के नीचे फेंक दिया, उसकी नंगी बड़ी-बड़ी चूचियों को अपने हाथ से मसल कर बोला।
धर्मवीर - झूठ मत बोलो बहु लंच टेबल पे मैंने जब तुम्हारी सलवार खोल अंदर हाथ डाला था तो तुम्हारी चूत पहले से ही गिली थी।।
गुंज़न - बाबू जी वो तो।।। ऐसे ही।।।।
धर्मवीर - ऐसे ही कैसे गिली थी बहु?? कहीं अपने पापा से लिपटने से गिली तो नहीं हो गई थी?
गुंज़न- छी: बाबूजी कैसी बात कर रहे है। वो मेरे पापा है।
धर्मवीर - तो क्या हुआ उनका भी लंड तो अपनी बेटी के बुर के लिए तरसता होगा।
धर्मवीर - देख बहु अभी भी तेरी बुर पनियाई हुई है
गुंज़न - ओह बाबू जी छोड़िये न। (बहु के होठ और शरीर के जुबान दो अलग अलग इशारे कर रहे थे।।)
एक तरफ गुंज़न धर्मवीर को मन कर रही थी और दूसरी तरफ वो अपने बुर को फैला धर्मवीर उँगलियों केो अंदर जाने का रास्ता दे रही थी।। मस्ती में उसकी आँखें बंद हो जा रही थी।
धर्मवीर अपने सारे कपडे उतार दिए। गुंज़न को भी अब तक
धर्मवीर पूरा नंगा कर चूका था। धर्मवीर गुंज़न की नंगी चूचियों को चूसते चाटते हुए कमर तक नीचे उसकी नाभि पे जाकर रुक गया।गुंज़न ने धर्मवीर के बाल पकड़ लिए और अपनी जाँघे खोल धर्मवीर को नीचे की ओर पुश करने लगी।धर्मवीर उसकी इस हरकत से समझ आ गया की बहु मुझे अपनी बुर पिलाना चाहती है मगर धर्मवीर जानबूझ कर अपने जीभ को उसकी नाभि पे फेरता रहा। गुंज़न धीरे धीरे मदहोश हो रही थी। उसकी बुर पूरी तरह गिली हो चुकी थी।
गुंज़न - आह बाबूजी...जाइये नीचे चाटिये न...आह मेरी बुर चाटिये न।
धर्मवीर - नहीं बहु तुम्हारे पापा आ गए तो।
गुंज़न - नहीं आएँगे। (गुंज़न अपनाी बुर ऊपर उचका के बोली)
धर्मवीर - पहले बता बहु जब उन्होंने तुम्हे गले लगाया तब उनका लंड तुम्हारी बुर को छुआ था न? और तभी तुम गिली हो गई थी?
गुंज़न - ओह बाबूजी मुझे नहीं पता।
धर्मवीर- बताओ मुझे सच है न?
गुंज़न - हाँ बाबूजी सच है अब चाटिये न।।
धर्मवीर बिना देरी किये अपना मुह गुंज़न की गरम गिली बुर पे रख दिया।। गुंज़न केीेेीे बुर के बाल उसकी बुर के बहते चिपचिपे पानी से सन्न चुके थे उसकी बुर में से अजीब सी स्मेल आ रही थी। जो धर्मवीर और पागल कर रही थी। और
धर्मवीर अपनी जीभ निकाल गुंज़न की चूत चाट्ने लगा।
गुंज़न अपने ससुर के सर को हाथों में दबाए हुए बिस्तर पर अपने जिश्म को रगड़ रही थी। उसका खूबसूरत जवान नंगा जिश्म उस वक्त धर्मवीरके कब्जे में था।
गुंज़न - आह बाबू जी...ओह्ह और चाटीए।
धर्मवीर- बहु....तुम्हारी बुर कितनी अच्छी स्मेल कर रही है।। उम्मम्मम्म काश तुम्हारे पापा भी तुम्हारी बुर चाट पाते।।
गुंज़न - छी: बाबूजी।। चुप रहिये
धर्मवीर - अरे बहु गन्दी बातें करने से सेक्स में और मजा आता है।।। बस मजे के लिए तुम भी गन्दी बात करो तुम्हे मजा आएगा। अब बोलो अपने पापा से बुर चटवाओगी।।??
गुंज़न - हाँ बाबूजी..चटवाऊंगी अपने पापा से अपना बुर
जैसे शालु आप से चटवाती है।
धर्मवीर - और गन्दा बोलो बहु।
गुंज़न- आआह बाबूजी मेरा बुर तबसे गिला है जबसे मैंने पापा के आने की खबर सुनी है।आपकी बहु रंडी बहु है और आपसे और अपने पापा से चुदवाने के लिए बेताब है।।
धर्मवीर -और गन्दा बोल साली रंडी
गुंज़न -मैं आपसे और अपने पापा दोनों से एकसाथ चुदवाउंगी।और दोनों का लंड बारी बारी से चूसूंगी।
धर्मवीर बैठ गया और गुंज़न इतनी उत्तेजित हो चुकी थी की
वो धर्मवीर को बेड पर लेटकर उस के लंड मुह में लेकर चूसने लगी।
बहार रामलाल पैसाब करने के लिए बाथरूम गया जब रामलाल पैसाब कर वापस मैच देख के लिए जाने लगा तो वो अचानक गुंज़न के कमरे की तरफ़ चला गया पर कमरा अंदर से बंद था। कमरा बंद देखकर रामलाल वापस जाने लगा तभी उसे कमरे की एक खड़की खुली नज़र आई जाते जाते रामलाल खड़की से अंदर की तरफ़ देख तो उस के पैर वही जाम हो गये उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं, जो नजारा उसकी आँखों ने अंदर देखा। गुंज़न, उसकी बेटी बिल्कुल नंगी थी, अपने ससुर के पास , उसके कपड़े बेड पर लटके हुई थी और गुंज़न अपने ससुर का लण्ड चूस रही थी, जबकी ससुर पीठ पर लेटा हुआ था, और वो भी नंगा था। गुंज़न अपने हाथ में ससुर के मोटे लण्ड को थामे जमके चूस रही थी और एकाध बार अपनी जीभ से चाट रही थी, फिर चूसती जा रही थी। धर्मवीर अपनी कमर को ऊपर-नीचे करते हए हौले-हौले गुंज़न के मुँह में लंड अंदर-बाहर कर रहा था।
रामलाल ने सोचा।'यह सब कबसे चल रहा है? पहली बार कब हुआ था? धर्मवीर को कैसे गुंज़न मिल गई? गुंज़न ने कैसे इतना बड़ा रिस्क ले लिया? इतनी हिम्मत कैसे हुई उसे? यह सब सोचते हुए रामलाल का सर चकराने लगा।
महेंद्र को बहुत बहुत गुस्सा आया, उसको मन किया की तुरंत कमरे के दरवाजे पर जोर से लात मारकर अंदर घुसे और तमाशा खड़ा करे। उस वक्त उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। सोच रहा था की वो वोही करे जो सोच रहा है या वैसा करना गलत होगा? उसका दिमाग कुछ देर के लिए जैसे सुन्न हो गया।
गुंज़न -बाबूजी प्लीज़ करिए ना ! अब रहा नही जाता ! डाल दीजिए अपना मूसल हमारे अंदर और हमे चोद डालिए जी भर के ।
फिर एक पल बाद धर्मवीर ने गुंज़न को अपनी गोद में बिठाया, और अपने लण्ड को उसकी चूत में डाला। और
गुंज़न को लण्ड के ऊपर उठक बैठक करने लगी। धर्मवीर ने गुंज़न की कमर को पकड़ा और उसकी चूचियों को चूसने के लिए उसकी चूचियों पर अपना मुँह डाला लिया।
धर्मवीर गुंज़न की चूचियों को चाटता चूसता गया, उसका लण्ड गुंज़न की चूत के अंदर था, गुंज़न ऊपर-नीचे उछाल रही थी और धर्मवीर उसकी चूचियों को चूसे जा रहा था। फिर फिर धर्मवीर अपने पंजे पर जोर देते हुए कमर को थोड़ा उठाकार धक्का देने लगा। गुंज़न के ऊपर-नीचे होने के साथ-साथ उसके धक्के, लण्ड को रफ़्तार से अंदर-बाहर किए जा रहे थे। जिससे गुंज़न हाँफने लगी थी और उसकी सिसकारियां कमरे में गूंजने लगी थीं। गुंज़न को बाहों में जाने की जरूरत महसूस हुई तो उसने झट से अपनी दोनों बाहों को धर्मवीर के कंधों पर लपेटा और धर्मवीर के मुँह को अपने मुँह में लेकर उसको जबरदस्त गरमा गरम किस करने लगी, चूत में लण्ड को बराबर अंदर-बाहर लेते हुए। नीचे चूत और लण्ड के रस बह रहे थे और ऊपर दोनों एक दूसरे के मुँह के रस पी रहे थे।
ये देखकर रामलाल का लण्ड बिल्कुल खड़ा हो गया और उसने अपने हाथ को अपने लण्ड पर रखा अंदर का खेल देखते हुए।
गुंज़न- बाबूजी ऐसे ही चोदिये ! बहुत अच्छा लग रहा है ! आप तो एक नंबर के चोदू हो फिर क्यों हमे तंग करते हो ! आह आह्ह्ह्ह्ह ! बाबूजी और ज़ोर से करिए हमारा होने वाला है ! डाल दीजिए अपना बीज़ हमारे अंदर ! आह माँ मर गई !
धर्मवीर - ये ले बहु।। तेरी चूत इतनी गिली हो गई है की मेरा लंड अंदर फिसल रहा है।और गन्दी बात करो बहु
धर्मवीर गुंज़न के बुर में अपना लंड डाले उसे तेजी से चोदने लगा।।और दोनों हाथो से उसकी चूचियों को भी मसलने लगा।
बाहर रामलाल से ये सब देखकर रहा नहीं गया, वो भी मूठ मारने लगा, गुंज़न को अपने ससुर से चुदवाते हुए देखकर।
गुंज़न और जोरों से उछलती गई, लण्ड को अपने अंदर महसूस करते हुए और सिसकारी और हाँफने से उसके साँसें भी फूलने लगीं, दिल की धड़कनें बढ़ने लगी और जिश्म पशीना-पशीना हो गया था दोनों के।
गुंज़न - और चोदीये बाबूजी।। अपनी रंडी बहु को।। मैं आपसे चुदवाने के बाद।। रात को अपने पापा से भी चुदवाऊंगी।
धर्मवीर- हाँ मेरी रंडी बहु।। सबसे चुदवा ले।। तुझे सोच कर तो मोहल्ले में हज़ारो लड़के रोज़ना बिस्तर पे अपना मूठ गिराते है।
गुंज़न - मैं इस मोहल्ले की रंडी भाभी बन जाऊँगी।।। आपके सामने दूसरे लड़कों से चुदवाऊँगी और चोदीये।। बाबूजी।। मेरा पानी निकलने वाला है।।
गुंज़न- हाँ बहु मैं भी और नहीं रुक सकता मेरा भी पानी छुट्ने वाला है।।
धर्मवीर - हाँ बहु मैं भी और नहीं रुक सकता मेरा भी पानी छुट्ने वाला है।।
गुंज़न- आह बाबू जी अंदर मत गिराइए आज आप अपनी बहु के मुँह को अपने मुठ से भर दिजिये।।
धर्मवीर - ठीक है बहु।
गुंज़न - चोदीये बाबू जी।। अपनी रंडी बहु को और चोदीये.
धर्मवीर - तेरे पापा हॉल में अकेले बैठे हैं वो भी अपनी रंडी बेटी के बारे में सोच के मुट्ठ मार रहे होगे।।
गुंज़न - हाँ बाबूजी आप सच कह रहे हैं उनका लंड तो वैसे भी खड़ा था अभी अपने आप को अकेला पा के मुट्ठ मार रहे होंगे।। उनको बोलिये न क्यों अपना मुट्ठ जमीन पे गिरा रहे है इधर कमरे में आकर मेरे मुह पे गिरा दे।
गुंज़न के इस बात को सुनकर धर्मवीर अपने आप को रोक नहीं पाया और अपना लंड बहार निकाल कर गुंज़न के मुह के पास ले गया।।पने हाथ में लंड पकड़ जोर से मुट्ठ मारने लग।और अगले ही पल धर्मवीर का सारा मुठ उसके मुह और चेहरे बूब्स पेट् सब पर गिरा और गुंज़न धर्मवीर के वीर्य से नहा गई।गुंज़न ने जल्दी से धर्मवीर के लण्ड को हाथ में थमा, बाकी के पानी निचिड़ते हुए। एक-एक कतरा निकला तो गुंज़न ने खुद-बा-खुद अपनी जीभ को लण्ड के छेद पर हल्के से फेरा और नजरों को ऊपर उठाकर मुश्कुराते हुए धर्मवीर के चेहरे में देखा, और एक लंबी सांस लेते हुए कहा- “लो अब मुरझाने लगा आपका जबरदस्त औजार बाबूजी हीहीहीही..
रामलाल सब कुछ देखने के बाद मैच देखने चला गया और धर्मवीर भी गुंज़न को छोड़कर चला गया, क्योंकी उसने तो अपना काम पूरा कर लिया था।