रात में बिजली देर से आने से सभी घर वाले देर तक सो रहे है. गुंज़न भी आज देर से उठी थी. नाहा-धो कर वो एक अच्छी सी साड़ी पहनकर रसोई में काम कर रही है. कल रात शालु ने बाबूजी के बारें में जो उसे बताया था उस बात से उसके दिल में हलचल चल मची हुई है. वो सोच रही है की बाबूजी उसके सामने आयेंगे तो वो क्या करेगी. शालु को बेशर्म बनाने वाली आज खुद ही शर्मा रही थी.
तभी धर्मवीर रसोई में आते है. गुंज़न उन्हें देखते ही झुक के पैर पढ़ने लगती है. धर्मवीर अपना हाथ गुंज़न की पीठ पर रखता है और धीरे से उसके ब्लाउज के खुले हिस्से पर से उसकी नंगी पीठ को सहलाता है. आज पहली बार धर्मवीर ने गुंज़न के सर पर नहीं, उसकी पीठ पर हाथ रखा था. निचे झुकी गुंज़न बाबूजी के हाथ का स्पर्श अपनी नंगी पीठ पर पा कर सिहर उठती है.
धर्मवीर- सदा सुहागन रहो बहु, फूलों फलो...
धर्मवीर- कल रात शालु से कोई बात हुई था क्या बहु?
गुंज़न समझ जाती है की अब बाबूजी के सामने सती सावित्री बनने का कोई फ़ायदा नहीं है. अब खुल के उनसे बातें करने में ही समझदारी है.
गुंज़न-(शर्माते हुए) जी बाबूजी...वो कह रही थी की आप चाहते है की मैं भी उसके साथ छत पर आया करूँ....
धर्मवीर (मुस्कुराते हुए) हाँ बहु.....सही कहा शालु ने. एक साल हो गए, मेरी बहु घर में अकेली-सी रहती है मुझे अच्छा नहीं लगता. राकेश भी कभी-कभार ही घर आता है. मैं समझ सकता हूँ की मेरी बहु अपनी रातें कैसे काटती होगी. रात में बहुत अकेलापन महसूस करती होगी ना बहु?
गुंज़न- (धीरे से) जी बाबूजी....रात में तो मानो घर काटने को दौड़ता है. रह-रह कर प्यास लगती है.
धर्मवीर- अब बहुत हो गया अकेले रहना बहु. अब मैं अपनी बहु को प्यासी नहीं रहने दूंगा. और अब मेरे सामने सर पर आँचल लेने की भी जरुरत नहीं है. (धर्मवीर गुंज़न सर से आँचल गिरा देते है). अपनी बहु को अच्छे से देख तो लूँगा इसी बहाने से...
गुंज़न- जी बाबूजी...अब मैं आपके सामने कभी सर पर आँचल तो क्या, पल्लू भी नहीं लुंगी...
धर्मवीर- हाँ बहु...बिना पल्लू के मेरी बहु कितनी सुन्दर दिखती है....
पल्लू हटने से गुंज़न बड़े-बड़े दूध ब्लाउज में उठ के दिखने लगते है और बीच की गहराई भी दिखने लगती है. धर्मवीर बीच के गहराई में नज़रे गड़ाए हुए कहते है.
धर्मवीर- बहु...शालु ने तो घर में ब्रा पहनना बंद कर दिया है. तुम भी मत पहना करो. इतनी गर्मी में घर की बेटी और बहु ब्रा पहने, ये अच्छी बात नहीं है.
गुंज़न- हाँ बाबूजी...आज से मैं भी ब्रा नहीं पहनूंगी...
धर्मवीर-ठीक है बहु...और जब तुम बिना ब्रा के ब्लाउज पहनो तो एक बार मुझे जरुर दिखा देना. शालु को तो कई बार देखा है. अब एक बार अपनी बहु को भी देख लूँ...
गुंज़न- बाबूजी...दिखा दूंगी...
धर्मवीर-अच्छा बहु...अब मैं चालू...
धर्मवीर के जाने के बाद गुंज़न खुश हो जाती है. शालु की सेटिंग करते करते उसकी भी सेटिंग हो गई. मन में वो शालु को ३-४ चुम्मी दे देती है. छत पर बाबूजी का क्या हाल करना है वो सोचते हुए गुंज़न अपने काम में लग जाती है.
सभी नाश्ता-पानी करने के बाद ड्राइंग रूम में बैठे है. हंसी मजाक चल रहा है लेकिन बाबूजी का दिमाग तो कहीं और ही दौड़ रहा है. वो किसी तरह से शालु और बहु को छत पर ले जाना चाहते है. गुंज़न बाबूजी के चहरे पर वो बेचैनी पढ़ लेती है. वो शालु के सर पर हाथ रख कर कहती है.
गुंज़न : .शालु..!! बालों में कब से तेल नहीं लगाया तुने? देख तो कितने रूखे-सूखे हो गए है.
शालु- (समझ नहीं पाती) कल ही तो शैम्पू लगाया था भाभी....
गुंज़न- तो चल...छत पर चलते है...वहां मैं तेरे बालों में तेल लगा दूंगी...
शालु- हाँ चलिए भाभी..
शालु और गुंज़न उठ कर सीढ़ियों से छत पर जाने लगते है. शालु हाथ में तेल की शीशी ले कर है.
शालु बहुत खुश हो रही है. गुंज़न उसे देख के कहती है.
गुंज़न तु खुश तो ऐसे हो रही है जैसे मैं तेरे सर के नहीं, बूर के बालों में तेल लगाने वाली हूँ ताकि तू बाबूजी का मोटा लंड ले सके...
शालु- (मस्ती में) तो लगा दो ना भाभी....
गुंज़न - चुप कर बदमाश...
और दोनों हँसते हुए छत पर जाने लगती है.
दोनों के जाते ही धर्मवीर का लंड भी मचलने लगा है. अब उन से निचे बैठा नहीं जा रहा.
वो भी तेज़ क़दमों से ऊपर छत पर जाने लगता है. ऊपर जाते ही वो देखता है की छत पर दोनों अमरुद की एक बड़ी सी टहनी की छाओं में बैठे है.शालु घुटनों को मोड़ के बैठी गुंज़न ठीक उसके पीछे बैठ कर उसके बालों में तेल लगा रही है.
धर्मवीर चेहरे पर मुस्कान लिए धीरे-धीरे टहलते हुए उसके पास जाते है. बाबूजी को आता देख गुंज़न झट से खड़ी हो जाती है और बाबूजी के पैर पढ़ने लगती है.
धर्मवीर- अरे .आज कितना पैर पढ़ेगी मेरे बेटी...
गुंज़न -(मुस्कुराते हुए खड़ी होती है) पैर पढ़ना तो एक बहाना है बाबूजी, असल में तो आपको कुछ दिखाना है...(कहते हुए
गुंज़न अपने बड़े-बड़े दूध ब्लाउज के अन्दर से उठा देती है)
धर्मवीर- (उसके उभरे हुए दूध देख कर) ये..ये...बहु....तुमने अन्दर ब्रा नहीं पहनी ?
गुंज़न-हाँ बाबूजी...आपने कहा था ना की एक बार दिखा देना...
धर्मवीर- (ख़ुशी से) जुग-जुग जियो बहुरानी....
धर्मवीर गुंज़न बड़े-बड़े दूध आँखे फाड़ फाड़ के देख रहा है. ब्रा ना पहनने पर गुंज़न के निप्प्लेस खड़े हो कर ब्लाउज के ऊपर से साफ़ दिख रहे है. उसकी तेज़ साँसों के साथ उसके दूध ऊपर निचे हो रहे है और ये तमाशा शालु गौर से देख रही है. पापा और भाभी की ये मस्ती उसे बहुत मजा दे रही है.
शालु -भाभी..पापा को अच्छे से दिखा दिया हो तो अब मेरे बालों में तेल भी लगा दो...
शालु की बात पर गुंज़न हँसते हुए उसके पीछे आ कर बैठ जाती है. धर्मवीर भी मुस्कुराते हुए शालु के ठीक सामने कुछ दूरी पर बैठ जाता है. वहां से वो उसकी टांगो के बीच से पैन्टी देखने लगता है. शालु भी समझ जाती है की पापा की नज़र कहाँ है.
धर्मवीर - बिटिया...अराम से बैठो...टाँगे अच्छे से खोल कर..ऐसे सिमट के क्यूँ बैठी है...?
शालु- (मुहँ बनाते हुए) नहीं पापा...मैं टाँगे नहीं खोलूंगी....
धर्मवीर- (अचरच के साथ) क्यूँ बेटी? क्या हुआ?
गुंज़न- बाबूजी....शालु का कहना है की खजाने तक पहुंचना है तो आपको मेहनत करनी पड़ेगी....
धर्मवीर- (हँसते हुए) अरे बहु...बेटी के खजाने के लिए तो बाप कुछ भी कर सकता है. बोलो क्या करना होगा...
शालु- पापा...मैं और भाभी आपसे कुछ सवाल करेंगे और आपको उनका सही जवाब देना होगा...अगर आप सभी सवालों के सही जवाब दोगे तो आज आपको मेरे और भाभी के खजाने के दर्शन हो जायेगे.
धर्मवीर इस बात पर अपने ओठों पर जीभ फेरने लगता है. आज बेटी और बहु के बूर देखने को मिलेगी ये सोच कर वो ख़ुशी से पागल हो जाते है.
धर्मवीर- हाँ हाँ ...कोई बात नहीं...जितने सवाल पूछने है पूछ लो...मैं तैयार हूँ.
शालु और गुंज़न एक दुसरे की तरफ देख कर एक बार जोर से हँस देती है. धर्मवीर कुछ समझ नहीं पाता. फिर
गुंज़न धर्मवीर से सवाल पूछती है.
गुंज़न- अच्छा बाबूजी...आपका पहला सवाल... "आजू-बाजू बाल, बीच में दरार...बोलो क्या?"....
गुंज़न की बात सुन कर धर्मवीर के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. वो गुंज़न से कहते है...
धर्मवीर- ये तो बड़ा ही आसान सा सवाल है बहूँ....
गुंज़न पीछे से शालु के घुटनों पर हाथ रख के उसके पैरों को खोल देती है और धर्मवीर के सामने बूर पे कसी हुई पैन्टी दिखाते हुए कहती है.
गुंज़न- तो बोलिए ना बाबूजी...जवाब दीजिये...
धर्मवीर- (मुस्कुराते हुए) जवाब है - "बूर"...
शालु - छी पापा...आप कितने गंदे हो....भाभी के सवाल का जवाब है... सर की "मांग"...
धर्मवीर- (चुप चाप थूक गुटकते हुए) अ..अ...अच्छा...ठीक है...दूसरा सवाल क्या है?
शालु आपका दूसरा सवाल है...."जो आधा जाए तो दर्द होए...पूरा जाए तो मज़ा आये..बोलो क्या ?"
शालु बाबूजी की टांगो के बीच देखने लगती है. बाबूजी भी लंड को एक झटका देते हुए कहते है...
धर्मवीर- जवाब है, - "लंड"
शालु- (हँसते हुए) पापा...कितनी गन्दी सोच है आपकी. सवाल का सही जवाब है... ."कंगन"...
धर्मवीर अब ये सब और नहीं झेल सकता था. वो छत पर जिस काम से आया था वो जल्दी से शुरू करना चाहता था.
धर्मवीर अरे अब बस भी करो. छोड़ो ये सब सवाल-जवाब...
शालु बिटिया...जरा मेरे पास आना...
शालु- नहीं पापा...मैंने पहले ही बता दिया था. जवाब गलत होगे तो कुछ नहीं मिलेगा.
धर्मवीर - मेरी प्यारी बिटिया रानी...ऐसी भी क्या जिद है...आजा...देख पापा तुझे बुला रहे है.
शालु- (नखरे से) नहीं मतलब नहीं......!!
धर्मवीर- अरे बहु...तुम ही इसे समझाओ ना...देखो तो कैसे जिद कर रही है...
गुंज़न- अब बाप-बेटी के बीच मैं क्या बोलूं बाबूजी...वैसे जवाब तो आपने गलत ही दिए है ना....
धर्मवीर का मुहँ उतर जाता है. वो समझ जाता है की अब उनकी दाल नहीं गलेगी. धर्मवीर धीरे से खड़ा होता है और मुड़ के छत के दरवाज़े की तरफ जाने लगता है. तभी
धर्मवीर हंसी सुनाई देती है. वो मुड़ के देखते है. तभी गुंज़न कहती है.
गुंज़न -नहीं नहीं बाबूजी...आपसे से हम कुछ नहीं कह रहे है...
धर्मवीर फिर से उदास मुहँ से जाने लगते है. वो मन में सोचते है, "आज का दिन तो बर्बाद हो गया. सोच था मेरी बेटी और बहु आज कुछ मज़ा देगी. सब बेकार हो गया". तभी
धर्मवीर को पीछे से धीमी आवाज़ आती है...
गुंज़न- बाबूजी....!!
धर्मवीर पीछे मुड़ के देखते है तो उनकी आँखे बड़ी हो जाती है. सामने अमरुद की डाल की छाओं में बैठी गुंज़न ने शालु की टॉप उठा के उसके बड़े-बड़े दूध दिखा रही है. शालु भाभी की गोद में बैठी मुस्कुरा रही है और गुंज़न उसके दूध दबा कर बाबूजी को दिखा रही है. धर्मवीर एक नज़र पड़ोस की छतों पर डालता है और फिर दौड़ा कर शालु के पास बैठ जाते है.
धर्मवीर- ऐसे तड़पाएगी अपने पापा को
शालु- नहीं पापा...हम तो बस आपके साथ मज़ाक कर रहे थे.
गुंज़न -बाबूजी...आप शालु से इस बात का बदला अच्छे से लीजिये....
धर्मवीर- हाँ बहु....अब तो बदला लेना ही पड़ेगा...
ये कहते हुए धर्मवीर झुक के शालु के दूध को जोर से चूसने लगते है. शालु मस्ती में दोनों हाथो को पीछे कर के गुंज़न को पकड़ लेती है और उसकी आँखे बंद हो जाती है. मुहँ से सिसकियाँ निकलने लगती है.
शालु - सीईईईइ.....पापा....ओह...!!
धर्मवीर शालु के दूध को दबा दबा के चूसने लगते है. कभी दायाँ दूध तो कभी बायाँ. बारी-बारी दोनों दूध धर्मवीर के मुहँ में फिसल के घुस जाते है और धर्मवीर उन्हें दबा दबा के पीने लगते है.गुंज़न शालु के सर पर हाथ फेरते हुए उसे मस्ती में पापा से अपने दूध चुसवाते हुए देख रही है.
गुंज़न- हाँ बाबूजी...अच्छे से चूसिये...शालु कह रही थी की जब उसका दूध आने लगेगा तो वो सबसे पहले अपने पापा को ही पिलाएगी...
गुंज़न बात सुन के धर्मवीर दूध चुसना बंद कर के शालु को देखने लगते है. वो शालु की आँखों में देखते हुए कहते है...
धर्मवीर - बहु सच कह रही है शालु ?
शालु पापा की आँखों में देखते हुए अपने ओठ काट लेती है और धीरे से सर हिला कर हामी भर देती है. शालु की हाँ समझते ही धर्मवीर के अन्दर जोश भर जाता है. वो एक बार
शालु के दूध को गौर से देखते है और फिर किसी भूके भेड़िये की तरह उन पर टूट पड़ते है. इस बार धर्मवीर पूरे जोश में शालु के दूध दबा-दबा के पीने लगते है. शालु की हालत खराब हो जाती है.वो पूरी मस्ती में आ चुकी है. पापा को पूरे जोश में देख शालु कहती है
शालु- पापा...देखिये ना, भाभी के भी कितने बड़े है...
शालु की बात सुन कर धर्मवीर गुंज़न के दूध को घुर के देखने लगते है. धर्मवीर की ऐसी नज़र देख कर गुंज़न के पसीने छूट जाते है. शालु जब ये देखती है तो वो गुंज़न क ब्लाउज के हुक खोलने लगती है. कुछ ही पल में गुंज़न के बड़े-बड़े चुचे उच्छल के धर्मवीर के सामने आ जाते है.
धर्मवीर सच में ...तेरी भाभी के तो बहुत बड़े है. बहु...जब मैंने तेरी सुहागरात में दरवाज़े पर से तेरी चिल्लाने की आवाज़े सुनी थी तब मैंने बाथरूम में जा कर ३ बार अपने लंड को मुठिया के पानी निकाला था. उस रात मैंने धोती में हाथ डाले रात भर तुझे याद किया था.
गुंज़न- (तेज़ साँसों के साथ) तो एक बार बोल देते ना बाबूजी...मैं खुद ही अपनी साड़ी उठा के आपके पास आ जाती...
धर्मवीर- ओह बहु...मुझे पहले पता होता की मेरी बहु भी अपनी साड़ी उठाये तैयार है तो मैं कब का बोल देता...
गुंज़न- अब जब आपका दिल करे बोल दीजियेगा बाबूजी... मैं अपनी साड़ी उठाये दौड़ी चली आउंगी...
धर्मवीर -ओह बहु... ( ये कह कर गुंज़न के दूध पर टूट पड़ता है)
धर्मवीर गुंज़न की चुचिया को दोनों हाथों से दबा-दबा कर चूसने लगता है. गुंज़न अपना सीना उठा के बाबूजी के मुहँ में अपनेी चुचिया ठूसने लगती है. बीच बीच में गुंज़न अपनी चुचिया पकड़ के बाबूजी के मुहँ से निकाल लेती है और अपने खड़े निप्पल उनके ओठों पर रगड़ के फिर से मुहँ में ठूसन देती है. बहु के गदराये बड़े-बड़े दूध को चूस कर धर्मवीर के लंड में खून भरने लगता हैं
तभी धर्मवीर को अपने लंड पर गर्माहट महसूस होती है. वो दूध पीते हुए देखते है तो दांग रह जाते है. सामने शालु धर्मवीर के लंड का मोटा टोपा अपने मुहँ में लिए हुए है. निचे हाथ को लंड पर लपेट कर को धीरे-धीरे ऊपर निचे कर रही है और भीमकाय लंड को अपने मुहँ में भर लेने की कोशिश कर रही है. अपनी बेटी को जोश में लंड मुहँ में भरता देख धर्मवीर का जोश मानो छप्पर फाड़ देता है. वो गुंज़न के दूध चुसता हुआ अपनी कमर धीरे से उठा के लंड को गुंज़न के मुहँ में ठूसने लगता है. शालु पूरा मुह खोलते हुए पापा के मोटे टोपे को मुहँ में भरने की कोशिश कर रही है. टोपे पर जीभ घुमाती हुई वो उसे पागलों की तरह चूस रही है. गुंज़न जब ये नज़ारा देखती है तो वो शालु से कहती है.
गुंज़न -आह....शालु....अपने दूध आपस में दबा कर बाबूजी का लंड गहराई में ले ले...आह....!!
शालु दोनों हाथो से अपने दूध आपस में दबा देती है. धर्मवीर अपने लट्ठ जैसे लंड को दूध के निचे से गहराई में ठूँस देता है. धर्मवीर को किसी बूर में लंड ठूसने जैसा अनुभव देता है. धर्मवीर जोश में अपनी कमर ऊपर-निचे करता हुआ शालु के दूध के बीच लंड को अन्दर बाहर करने लगता है. जब भी धर्मवीर का लंड ऊपर से बाहर आता है तो शालु टोपे को मुहँ में डाल कर चूस लेती है
धर्मवीर का मज़ा दुगना हो जाता है. धर्मवीर गुंज़न दूध चूसता हुआ उसकी आँखों में देखता है. दोनों की नज़रे मिलती है. धर्मवीर दूध से मुहँ हटा कर एक बार गुंज़न की आँखों में देखता है और अपने मोटे ओंठ उसके ओठों पर रख देता है. धर्मवीर अब गुंज़न के रसीले ओठों को चूसने लगता है. ससुर-बहु मानो एक दुसरे के ओठों का रस पूरा पी जाना चाहते है. कुछ ही समय में दोनों एक दुसरे से अलग होते है और उनकी नज़रे फिर से मिलती है. आँखों ही आँखों में कुछ बातें होती है और
गुंज़न अपनी जीभ निकाल के धर्मवीर में मुहँ में घुसा देती है. धर्मवीर उसकी जीभ को चूसने लगता है. कुछ ही क्षण में दोनों के मुहँ आपस में मानो चिपक से जाते है और जीभ मुहँ के अन्दर आपस में कुश्ती करने लगती है. धर्मवीर अब अपने एक हाथ गुंज़न की साड़ी के निचे से घुसा कर उसकी पैन्टी ढूंडने लगता है. पैन्टी के साइड पर हाथ जाते ही धर्मवीर की दो उंगलिया अन्दर चली जाती है और गुंज़न की बालोंवाली गीली बूर से टकरा जाती है. चिकनाहट से दोनों उँगलियाँ फिसलते हुए गुंज़न की बूर में घुस जाती है. २-३ धक्के लगते ही दोनों उँगलियाँ गुंज़न की बूर में पूरी घुस जाती है. धर्मवीर अब अपनी दोनों उँगलियों को तेज़ी से गुंज़न की बूर में अन्दर-बाहर करने लगता है. गुंज़न जोश में आ कर बाबूजी के मुहँ में अपनी जीभ अन्दर तक घुसा देती है जिसे बाबूजी प्यार से चूसने लगते है. धर्मवीर और गुंज़न एक दुसरे के मुहँ में मुहँ डाले पड़े है, निचे धर्मवीर गुंज़न की चुत में दो उँगलियाँ ठूस रहे है और उधर बेटी शालु अपने बड़े-बड़े दूध के बीच पापा का लंड ठूँसवाते हुए चूस रही है. बाबूजी के साथ घर की बहु और बेटी का ये अनोखा संगम कामवासना की हदों को पार करता हुआ हवस तक पहुँच गया था. तीनो को जो परम आनंद की प्राप्ति हो रही थी वो मात्र शरीर की नहीं थी. ये उनके बीच बाप-बेटी और ससुर-बहु के रिश्ते थे जो उन्हें उस परम आनंद तक पंहुचा रहे थे.
कुछ ही देर में धर्मवीर का बदन अकड़ने लगता है और वो अपनी कमर को उठा के लंड मुठियात हू शालु के मुहँ पे पिचकारी छोड़ने लगते है
गाड़े सफ़ेद पानी की ६-७ पिचकारियाँ शालु के मुहँ पे छोड़ते हुए धर्मवीर आँखे बंद कर के झट बैठ जाते है
धर्मवीर शालु को प्यार से देखते है. शालु भी पापा को देख कर मुस्कुरा देती है. धर्मवीर शालु की एक चुम्मी लेते है और लंड को पकडे गुंज़न की तरफ घूम जाते है. गुंज़न भी एक आज्ञाकारी बहु की तरह बाबूजी का इशारा समझ के अपना मुहँ खोल देती है. धर्मवीर अपने लंड के टोपे को गुंज़न के खुले मुहँ में डाल देते है. लंड को पकडे हुए धर्मवीर 7-80बार अन्दर बाहर करते है फिर लंड को बाहर निकाल कर
गुंज़न के सर पर ले जाते है. अपने लंड से निकलते हुए सफ़ेद गाड़े पानी को वो गुंज़न की मांग में भरने लगते है. 2-3 बार ऊपर से निचे लंड घुमाते हुए धर्मवीर गुंज़न की मांग अपने लंड के पानी से भर देते है. गुंज़न आँखे बंद किये ख़ुशी से बाबूजी के लंड के पानी से अपनी मांग भरवाती है. शालु ये नज़ारा देख रही है.
शालु- (खुश होते हुए) पापा...आपने तो अपने लंड के पानी से भाभी की मांग ही भर दी...
धर्मवीर-हाँ शालु..अब तेरी भाभी को प्यासा नहीं रहना पड़ेगा. अब मेरा लंड और तेरी भाभी एक पवित्र बंधन में बंध गए है. गुंज़न को हमेशा खुश रखना अब मेरे लंड की जिम्मेदारी है....
धर्मवीर की बात सुन कर गुंज़न की आँखे भर आती है. वो बैठे हुए ही बाबूजी की कमर से लिपट जाती है.
गुंज़न - ओह बाबूजी...आज आपने मुझे धन्य कर दिया...मैं आपके लंड के साथ हर वचन को निभाने के लिए तैयार हूँ...
धर्मवीर अपना हाथ गुंज़न के सर पर रख देते है और शालु को इशारे से पास आने कहते है. शालु भी पास आ कर पापा की कमर से लिपट जाती है. धर्मवीर की एक जांघ पर गुंज़न लिपटी हुई है और दूसरी जांघ पर शालु. दोनों की नज़रों के सामने बाबूजी का मोटा लंड झूल रहा है. गुंज़न और शालु एक दुसरे को देख कर मुस्कुरा देती है और दोनों तरफ से एक साथ लंड को चूम लेती है.