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Adultery पापी परिवार की बेटी बहन और बहू बेशर्म रंडियां

prasha_tam

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Awesome
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Fantastic and Superb update 👌
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Please continue 👍
Waiting for next update
 

Rakesh1999

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Shalu ki kunwari gaand uske papa ke mote land se khulana......

Nice story...👌👌👌👌👌
 
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Sumit1990

सपनों का देवता
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BRo Sonu character se badiya to dharamveer ka character hai to please dharmveer ko continue rakho naa ki Sonu ko warna story ko incest karodo
 

Hkgg

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इधर भाई-बहन का प्यार खुल के एक नया रूप ले रहा है और वहां गुंज़न अपने कमरे में अपना काम कर रही है. तभी उसकी नंगी कमर को एक हाथ छुता है. वो डर कर मुडती है तो सामने धर्मवीर खड़े है. गुंज़न मुस्कुराते हुए....

गुंज़न- अरे बाबूजी आप? मैं तो डर ही गई थी.

और जैसा ही धर्मवीर हल्का आगे बढ़ा ।गुंज़न की भारी-भरकम गांड उसके लंड से टच हो गयी।धर्मवीर का स्पर्श को पाते ही गुंज़न थोड़ी आगे हो गयी।

गुंज़न के इस तरह के स्वभाव को देखकर धर्मवीर सोचने लगा। कि आज तेरे अंदर की रंडी ना जगाई तो मैं भी धर्मवीर नहीं ।

धर्मवीर ने अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लंबे किए और गुंज़न की दोनों बाजुओं को पकड़कर धर्मवीर ने अपनी तरफ इतनी तेज खींचा । इस तरह झटका मारा कि जिसकी उम्मीद गुंज़न को भी नहीं थी ।

गुंज़न की गांड एकदम धर्मवीर के लंड से टकरा गई और धर्मवीर ने अपना चेहरा उसकी गर्दन के साइड में कंधे पर रख दिया धर्मवीर गुंज़न के गर्दन पर चूमते हुए दोनों हांथों से ब्लॉउज के ऊपर से ही गुंज़न की मोटी मोटी चूचीयों को अपने हथेली में भर भरके बेसब्रों की तरह दोनों मदमस्त चूची को मसलने लगा और अंगूठे और तर्जनी उंगली से फूलकर सख्त हो चुके निप्पल को भी मसलने लगा। फिर गुंज़न को अपनी तरफ घुमा कर धर्मवीर ने गले से लगाया और उसकी कमर पर अपने हाथ फेरने लगा ।

धर्मवीर- बहु....अपने ओठों का रस पिला दे बहु.....

गुंज़न- (आँखे बंद करते हुए) ओह ....बाबूजी....!! (और अपना मुहँ खोल देती है)।

फिर धर्मवीर ने अपने होठों को उसके होठों से लगा दिया जैसे ही दोनों के होठों का मिलन हुआ गुंज़न के अंदर सुरसुरी दौड़ गई ।धर्मवीर ने अपना पूरा मुंह खोल कर उसके दोनों होठों को मुंह में भर लिया ।गुंज़न तो मानो पूरी गरमा गई ।धर्मवीर ने उसके ऊपर वाले हॉट को मुंह में भर लिया और चूसने लगा अब धर्मवीर का नीचे वाला हॉट गुंज़न के मुंह में था ।

गुंज़न ने सोचा की शुरुआत तो ससुर जी ने कर ही दी है तो मुझे भी थोड़ा उनका साथ देना चाहिए । ऐसा सोचते हुए उसने अपनी जीभ बाहर निकाल कर नुकीली बना ली।
धर्मवीर ने भी अपनी जीभ नुकीली बनाई और अपनी जीभ के नोक को गुंज़न की जीभ के नोक से छुआने लगा गुंज़न ने अपनी जीभ और कस के बाहर निकाल ली, धर्मवीर अपनी जीभ को गुंज़न की जीभ के किनारे गोल गोल घुमाने लगा,
गुंज़न का पूरा बदन मस्ती में झनझना जा रहा था, वो भी अपनी जीभ को अपने बाबूजी की जीभ से लड़ाने लगी, काफी देर ऐसे ही जीभ मिलन का खेल खेलने के बाद एकाएक धर्मवीर ने अपनी पूरी जीभ गुंज़न के मुँह में डाल दी और पूरे मुँह में हर तरफ गुमाते हुए गुंज़न के मुँह का चप्पा चप्पा जीभ से छूकर चूमने से लगा, गुंज़न का बदन गनगना गया धर्मवीर गुंज़न की जीब को मुँह में भरकर चूसने लगता और फिर अपनी जीभ निकाल लेता और फिर गुंज़न भी धर्मवीर की जीभ को मुँह में भरकर चूसती, कभी दोनों जीभ लड़ाने लगते, माहौल बहुत गर्म होता जा रहा था,
गुंज़न वासना से सराबोर होकर मस्ती में बहते हुए बेकाबू होती जा रही थी, उसका बदन बार बार गुदगुदा जाता, जीभ लड़ाने से बार बार उठने वाली गुदगुदी से पूरा बदन सनसना जाता, सिसकियां और कामुक सिसकारियां काफी तेज हो चुकी थी।
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धर्मवीर पीछे अपने हाथ नीचे गुंज़न की गांड पर ले गया और उसके चूतड़ों को अपने हाथों से हल्का सा दबाया ।और फिर धर्मवीर ने गुंज़न की चूतड़ों पर दोनों हाथों से बारी-बारी 4, 5 थप्पड़ मारे और यह थप्पड़ इतनी तेज थी कि पटपट की आवाज पूरे कमरे में गूंज गई।फिर धर्मवीर ने उसको घुमाया और उसकी गांड के पीछे खड़ा होकर उसकी छातियों पर अपने हाथ ले गया।धर्मवीर ने जैसे ही गुंज़न की चुचियों को अपने हाथों में भरा तो वह हैरान रह गया क्योंकि उसकी चूचियां उसके हाथों में आ ही नहीं रही थी ।

धर्मवीर कहने लगा की बहू, मेरी संस्कारी बहु तुझे तो मेरे जैसे लंड की ही जरूरत है ।

धर्मवीर ने पीछे से गुंज़न की गर्दन पर चूमते हुए उसके ब्लॉउज के बटन खोलने शुरू किए,पहले तो ब्लाउज के बटन खोलने लगा फिर अचानक रुककर दोनों हांथों से ब्लॉउज के ऊपर से ही गुंज़न की मोटी मोटी चूचीयों अपनी पूरी ताकत लगा कर भींचा । उपासना के मुंह से जोरदार चीख निकली

धर्मवीर ने गुंज़न की ब्रा का हुक खोलने की कोशिश की पर उससे जल्दी खुला नही तो गुंज़न ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया, ब्रा ढीला होकर धर्मवीर के हांथों में आ गया, धर्मवीर ने ब्रा को एक साइड में ब्लॉउज के साथ रख दिया और अब गुंज़न ऊपर से बिल्कुल निवस्त्र हो गयी, गुंज़न की नंगी पीठ धर्मवीर के सीने से सट गयी, गुंज़न की जवान गोरी पीठ अपने सीने से सटते ही
धर्मवीर ने मस्ती में आंखें बंद करते हुए अपने दोनों हाथों से
गुंज़न की नंगी गोरी गोरी नरम स्पॉन्ज जैसी फूली फूली चूचीयों को अपने हाथों में भर जोर से दबाने लगा, गुंज़न धर्मवीर के हाथ की ताकत अपनी चूचीयों पर अच्छे से महसूस कर हाय हाय करने लगी-

गुंज़न -ओओओओहहहहहह ... बाबूजी...हाँ.... ऐसे ही दबाओ.......आआआआहहहह....और मीजो चूची को।


फिर धर्मवीर ने गुंज़न को अपनी तरफ घुमाया तो वह देखता ही रह गया चूचियां तन कर खड़ी थी। और पागल हो गया, निप्पल तो कब से फूलकर खड़े थे गुंज़न की चूची के, दोनों चूचीयों को देखकर धर्मवीर उनपर टूट पड़ा और मुँह में भर भरकर पीने लगा, दोनों हांथों से कस कस के दबाने लगा, कभी धीरे धीरे सहलाता कभी तेज तेज सहलाता, लगातार दोनों चूचीयों को पिये भी जा रहा था, निप्पल को बड़े प्यार से चूसे जा रहा था

गुंज़न सिसकने लगी- आह....सी......आह.... सी......ओह बाबू....ऐसे ही.....और चूसो......दबाओ इन्हें जोर से.........हाँ मेरे बाबू......पियो मेरी चूची को.........आह,


धर्मवीर मुँह भर भर के गुंज़न की मखमली गुदाज खरबूजे के समान गोल गोल चूची को पिये जा रहा था, दूसरे हाँथ से वो दूसरी चूची को भी मसलने लगा, कभी जीभ को निप्पल पे घुमाता, कभी बच्चे की तरह चूसने लगता, फिर कभी निप्पल के किनारे किनारे जीभ घूमता, कभी जीभ को निप्पल के किनारे किनारे घुमाते हुए गोले को बड़ा करता जाता और जब जीभ एक बड़ा गोल बना कर चूची पर घूमने लगती तो गप्प से पूरी चूची को मुँह में भरकर चूसने लगता, ऐसे ही वो कुछ देर गुंज़न की चूचीयों से खेलता रहा।

गुंज़न - पियो अपनी बहु की चूची ऐसे ही.....मैं बहुत तरस गयी थी आपको पिलाने को... सारा दूध पी लो बाबूजी।

एकाएक गुंज़न ने सिसकते हुए धर्मवीर के कान में कहा- बाबूजी औरत के लिए तरस गए थे न आप।

धर्मवीर - हाँ मेरी बेटी।

गुंज़न प्यार से दुलारते हुए धर्मवीर के बालों को सहलाने लगी, फिर धर्मवीर बोला- तू भी तो एक मर्द के लिए तरसती थी न।

गुंज़न- मैं बस आपके लिए, अपने बाबूजी के लिए तरसती थी, एक मजबूत मर्द के लिए।

गुंज़न की सांसे चलने लगी लगी थी उधर धर्मवीर की सांसे भी तेज हो गई थी । और उसने गुंज़न की गांड के पीछे बैठकर उसकी सलवार को पूरी फाड़ दिया अब उपासना मादरजात नंगी खड़ी थी धर्मवीर के आगे।

भरी हुई जांघों के बीच चूत ऐसी लग रही थी जैसे ये मोटी जांघे उसकी चूत की रक्षा करती हो ।उसकी मोटी मोटी जांघों के बीच रसीली चूत इस तरह शोभा दे रही थी जैसे कि गुलदस्ते में कोई फूल ।उसकी गांड पर हाथ ले जाकर धर्मवीर ने उसे अपनी तरफ दबाया अपना चेहरा उसकी चूत के करीब ले गया।गुंज़न को उसकी सांसे अपनी चूत पर महसूस हुई तो उसकी चूत और गर्म हो गई ।धर्मवीर ने उसकी चुत को गौर से देखा ।चूत के दाने पर अपनी नाक लगाई और एक तेज सांस खींची गुंज़न के मुंह से सिसकारी निकल गई और धर्मवीर तो मानो दूसरी दुनिया में चला गया हो ।गुंज़न की चूत की भीनी भीनी खुशबू उसे पागल कर गई ।धर्मवीर ने अपनी जीभ निकालकर उसकी चूत पर जैसे ही लगाई गुंज़न की जान ही निकल गई ।और धर्मवीर ने अपना पूरा मुंह खोला पूरी चूत को मुंह में भर कर अपनी जीभ से उसके दाने को सहलाने लगा ।गुंज़न इस बर्दाश्त नहीं कर पायी और एक ग़दरायी हुए जिस्म की रंडी की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी ।
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धर्मवीर गुंज़न की जाँघों को फाड़कर प्यासी बूर को मुँह में भरकर चाटने लगा।

गुंज़न=हाहाह..बाबूजी...करने लगी,
गुंज़न सिसियाते हुए धर्मवीर के सर को अपनी बूर पर दबाने लगी, गुंज़न के दोनों पैर हवा में दोनों तरफ फैले हुए थे,
धर्मवीर अपने दोनों हांथों से कभी गुंज़न की चुचियों और निप्पल को मसलता तो कभी भारी चूतड़ को हथेली में उठाकर थोड़ा और ऊपर कर देता। वो अपनी पूरी जीभ को गांड के छेद पर ले जाता और फिर बूर की फैली हुई दरार में अपनी जीभ को नीचे से ऊपर तक सरसराता हुआ लाता और ऊपर आ के भग्नासे को चूस लेता, गुंज़न का पूरा बदन वासना में अब कांप रहा था जोर से सिसकने लगी, कराहने लगी, धर्मवीर के सर को कस कस के अपनी रसभरी बूर पर दबाने लगी, अपनी गांड को उछाल उछाल के अपनी बूर चटवाने लगी,

गुंज़न- .हाय मेरी बूर.कितना अच्छा लग रहा है हाय आपकी जीभ... चाटो ऐसे ही बाबूजी.मेरी बरसों की प्यास बुझा दो..आआआआआआहहहहह.मेरी बूर की प्यास सिर्फ आपसे बुझेगी..सर्फ आपसे...ऐसे ही बूर को खोल खोल के चाटो बूर को चाट चाट के मुझे मस्त कर दो.कितना मजा आ रहा है....


धर्मवीर गुंज़न की चूत पर ऐसे टूट पड़ा कि जैसे कुत्ता धर्मवीर ने अपना थूक निकाल निकाल कर उसकी चूत के पानी के साथ मिलाया और उसकी चूत को लप-लप चाटने लगा ।
उसके दाने को चूसने लगा। गुंज़न की बर्दाश्त से बाहर हुआ तो

गुंज़न - चाट लो बाबुजी मीठा पानी। इस पानी को चाटने के लिए तो कितने लोग पागल हुए फिरते हैं। और आपकी बहू अपनी चूत फैलाकर आपसे भीख मांग रही है कि इसे चाटो, इसे इतना प्यार करो कि निगोड़ी चूत इतनी निखर जाए कि हर लंड को इससे प्यार हो जाये ।

धर्मवीर का पूरा चेहरा गुंज़न की चूत के पानी से और थूक से सन गया था ।

धर्मवीर - इस चूत को आज इतना प्यार करूंगा की ये चूत, चूत ना रहकर भोसड़ा बन जाएगी ।

गुंज़न की आंखों में धर्मवीर ने देखा तो गुंज़न की आंखें कह रही थी कि मैं लंड मांग रही हूं मैं मुझे दे दो अपना तगड़ा हल्ल्बी लोड़ा।

धर्मवीर अपना हाथ गुंज़न की चूत पर ले जाकर उसकी चूत की दरार के बीच में उंगली से सहलाने लगा ।यह उपासना के लिए हाल बेहाल वाली हालत थी ।उसने अपनी दोनों जांघों को आपस में भींच लिया अब धर्मवीर के लिए हाथ को चलाना थोड़ा मुश्किल हो रहा था।लेकिन उसने मशक्कत करके अपनी एक ऊंगली गुंज़न की चूत के छेद पर रख कर अंदर की तरफ दबाई ।जैसे ही आधी उंगली चूत में गई गुंज़न एक साथ सिसक उठी आआआआआआईईईईईईई ।

धर्मवीर गुंज़न से बोला चुदने के लिए तैयार हो रही है तुम्हारी ये चूत ।

गुंज़न भी अब शर्म छोड़ देना चाहती थी।

गुंज़न - आज आपकी ये रांड आपके बिस्तर पर आपसे चुदने के लिए फैली पड़ी है ।अपनी इन मजबूत बाजू में जकड़ कर इस रांड की चूत को चोदिये बाबुजी ।आपकी संस्कारी बहु की चूत आपके सामने है।जब धर्मवीर ने ऐसा सुना तो उसके लंड में इतना कड़कपन आगया कि उसने अपनी पूरी उंगली
गुंज़न की चूत में उतार दी ।गुंज़न इसके लिए तैयार नहीं थी और उंगली चूत में घुसते ही ऊपर की तरफ सरकने लगी ।

धर्मवीर - मेरी जान अभी तो उंगली ही गई है लोड़ा भी ऐसी चूत में उतरेगा आज ।

यह सुनकर गुंज़न से बर्दाश्त नहीं हुआ और बोली - बाबूजी देखिए आपकी बहू कितनी बड़ी चुडक्कड़ रंडी है , आज यह आपको मैं दिखा ही देती हूं ।

धर्मवीर - तुम्हारा खजाना भी मेरी धोती में है निकाल लो ।मैं भी तो देखूं कि मैंने अपने घर में किस तरह की रंडी रखी हुई है
कहकर धर्मवीर लेट गया

ऐसा सुनकर गुंज़न कहने लगी अगर मैंने शर्म छोड़ दी तो आप बर्दाश्त नहीं कर पाओगे बाबूजी ।

यह सुनकर धर्मवीर बोला कि दिखा तो अपना बेशर्म पना ।

एक मजबूत सांड को बिस्तर पर इंतजार करते देख गुंज़न किसी घोड़ी की तरह बेड पर चढ़कर धर्मवीर के पास आई
और उसकी धोती को खोलने लगी ।और एक झटके में धोती खोल डाली, फनफनाता हुआ मूसल जैसा दहाड़ता लंड उछलकर गुंज़न की आंखों के सामने आ गया,काले काले झांटों के बीच 9 इंच लंबा और करीब 4 इंच मोटा दहाड़ता लंड देखकर गुंज़न की आंखें चमक गई, गुंज़न धर्मवीर की बालो भारी जाँघों को छूते हुए लन्ड के ऊपर के घने बालों में हाँथ फेरा और फिर लंड को पकड़कर कराहते हुए सहलाने लगी, गुंज़न लंड को मुट्ठी में पकड़कर पूरा पूरा सहलाने लगी, सिसकते हुए सहलाते सहलाते वो नीचे के दोनों बड़े बड़े आंड को भी हथेली में भरकर बड़े प्यार से दुलारने लगी और सहलाने लगी,जाँघों पर इधर उधर चूमते हुए वो विकराल लन्ड के करीब पहुँची और बड़े बड़े आंड को मुँह में भर लिया और लोलोपोप की तरह मदहोश होकर चूसने और चाटने लगी, अंडकोषों पर हल्के हल्के बाल थे जिसकी वजह से गुंज़न और कामातुर हो रही थी, काफी देर तक आंड को चूसने, सहलाने मसलने के बाद उसने लंड पर हाँथ फेरा और पूरे लंड को सहलाते हुए मुठिया दिया।
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गुंज़न धर्मवीर के अड को सहलाते हुए अपने मुँह के सामने सीधा किया और अपने होंठों को गोल करके लंड के सुपाड़े के ऊपर रखकर अपने होंठों से ही लंड की चमड़ी को नीचे सरकाते हुए सुपाड़ा खोलकर मुँह में भर लिया और लबालब चूसने लगी, धर्मवीर गुंज़न के नरम होंठ आने लंड पर पड़ते ही जोर से कराह उठा और सिसकने लगा-
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धर्मवीर-.......ऐसे ही चूस......कितना अच्छा लग रहा है...... .... तेरे नरम नरम होंठ मेरे लंड पर .चूस मेरी बच्ची.........चाट चाट के इसकी बरसों की प्यास बुझा दे तू कितना अच्छा चूस रही है .बुझा दे मेरी प्यास मेरी बच्ची....और मुंह में भर भर के चूस मेरी रानी...चूस.....मेरे लंड की खुशबू अच्छी लगी न......ऐसे ही चूस.....आआ।

गुंज़न वासना से अब जल उठी और कस कस के धर्मवीर का ज्यादा से ज्यादा लंड अपने मुँह में भर भरकर चूसने चाटने लगी, धर्मवीर मस्ती में आंखें मूंदे गुंज़न का सर पकड़कर अपने लंड पर दबाता रहा और ज्यादा से ज्यादा उसके मुंह में डालता रहा कोशिश करने के बाद भी गुंज़न धर्मवीर का आधे से थोड़ा ज्यादा ही लंड अपने मुँह में ले पाई थी। लंड चूसने की चप्प चप्प आवाज सिसकियों के साथ वातावरण में गूंजने लगी, गुंज़न ने काफी देर मुँह में भर भर के धर्मवीर का दहकता लंड चूसा और फिर पक्क़ से लंड को बाहर निकाला, अपनी जीभ निकालकर लंड के मूत्र छेद पर बड़ी मादकता से रगड़ने लगी फिर जीभ से लन्ड को ऊपर से नीचे तक icecream की तरह चाटने लगी, गुंज़न के नरम नरम मुँह में अपना लंड भरकर और जीभ से लन्ड चटवाकर धर्मवीर त्राहि त्राहि कर उठा।
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गुंज़न भी सिसकते हुए -आआआआहहहह बाबूजी.डालो अपना लंड मेरे मुंह मे.....आज आपकी सारी प्यास बुझा दूंगी... आपको तड़पता हुआ नही देख सकती आपकी ये
बहु ..क्या लंड है आपका.......कितना लंबा और मोटा है अपने सुपाड़े को मेरे होंठों पर रगड़ो बाबूजी...........अपने लंड से मेरे मुँह को चोदो.

धर्मवीर गुंज़न के आग्रह पर अपना लंड उसके मुँह में जितना भी आ सकता था डालकर अंदर बाहर करके मुँह को हल्का हल्का चोदने लगा, गुंज़न के सर और बालों को पकड़कर वह सहलाने लगा, गुंज़न भी आंखें बंद किये पूरा पूरा मुँह खोलकर गपा गप्प लंड मुँह में लेने लगी, मस्ती में धर्मवीर की आंखें बंद हो गयी, उसके विकराल लंड का खुला हुआ सुपाड़ा गुंज़न के मुँह में हर जगह ऊपर नीचे अगल बगल टकराने लगा और गुंज़न मदहोश होती चली जा रही थी, धर्मवीर का पूरा लंड गुंज़न के थूक से चमक रहा था, उसने अपने लंड को पकड़कर फिर पक्क़ से मुँह से बाहर निकल और गुंज़न के गालों, माथे और ठोढ़ी तथा होंठों पर खूब रगड़ा, गुंज़न सिसकते हुए आंखें बंद किये अपने बाबू के गरम थूक से सने लंड को अपने चेहरे के हर हिस्से पर महसूस करती रही और जब लंड होंठो पर आता तो जीभ निकाल के उसे चाट लेती।

फिर धर्मवी ने गुंज़न को सीधा लिटाया और उसके पैरों को खोलकर मोटी मोटी जाँघों के बीच आकर अपने लंड को चूत से रगड़ दिया।

जैसे ही लंड का स्पर्श चूत पर हुआ गुंज़न पागल हो गयी । उस गरम लंड के के स्पर्श से ।

फिर उसकी टांगों को उसकी छातियों से लगाकर धर्मवीर उसकी चूत के आगे बैठा और अपना लंड उसकी चूत पर ऐसे मरने लगा जैसे हल्के हल्के थप्पड़ मार रहा हो

गुंज़न- बाबुजी बहुत मन कर रहा है मेरा,लंड के आगे का चिकना चिकना सा भाग खोलकर बूर पर रगडिये न बाबूजी

धर्मवीर उसके ऊपर झुका और झुक कर उसके चेहरे को चाटते हुए लंड रगड़ने लगा चूत से। लंड की रगड़ से उसकी चूत पानी पानी हो गई।

गुंज़न ने कराहते हुए लंड को पकड़ लिया और मस्ती में आंखें बंद कर अपनी बूर की फांकों को फैला कर उस पे रगड़ने लगी।

धर्मवीर ने गुंज़न की बायीं टांग को उठाकर अपने कंधे पर रखा और दायीं टांग को फैलाकर अपने कमर से लपेट दिया और गुंज़न ने एक हाँथ से धर्मवीर के विशाल दहकते लंड को पकड़ा, उसका सुपाड़ा खोलकर चमड़ी को पीछे किया और धीरे से अपनी खुली हुई बूर के छेद पर सेट किया और
बोली- बाबजी अब मुझे चोदिये, बर्दाश्त नही होता अब, वर्षों से आपके लंड की प्यासी है।

इतना सुनते ही धर्मवीर ने उसके होठों को चूसते हुए उसके जोरदार धक्का गच्च से मारा, धर्मवीर का 9 इंच लंबा और 4 इंच मोटा लंड पूरा का पूरा गुंज़न की रस बहाती मखमली दीवारों को फाड़ता हुआ सीधा बच्चेदानी तक समा गया, गुंज़न की दर्द के मारे चीख निकल गयी पर उसने अपना मुँह धर्मवीर के कंधों में लगाते हुए दर्द के मारे उनके कंधों पर दांत गड़ा दिए और उसके नाखून भी धर्मवीर की पीठ पर गड़ गए, धर्मवीर वासना में कराह उठा,
गुंज़न की बूर का प्यार सा छेद एकदम किसी रबड़ के छल्ले की तरह फैलकर लंड के चारों तरफ जकड़े हुए थी।
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धर्मवीर उसकी चूत को अपने लंड से भर कर चुचों से खेलने लगा , कान के नीचे और कान पर, गर्दन पर काफी देर चूमता रहा, काफी देर गर्दन पर अपनी जीभ फिराता रहा, चूमता रहा फिर उसने होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमना और पीना शुरू कर दिया, गुंज़न को इससे बहुत राहत मिलती गयी, उसकी जोर जोर से निकलती चीख और दर्द भरी सीत्कार धीरे धीरे वसनात्मय सिसकियों और कराह में बदलने लगी फिर उसकी आंखें धीरे धीरे असीम आनंद के नशे में बंद होने लगी।
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गुंज़न की चूत का दाना बिल्कुल लंड पर रगड़ खा रहा था इतना चौड़ा हो गया था गुंज़न की चूत का छेद फिर धीरे-धीरे
गुंज़न नीचे से गांड हिलाने लगी।उसके मुँह से अब हल्की हल्की सिसकारियां निकलने लगी,

गुंज़न-आआआआहहहह...बाबूजी....हाहाहाहाहायययय...मेरी बूर....कितना लंबा है आपका लंड.... बाबू.....कितना मोटा है आपका लंड... ...हाहाहाहाययययययय ....मेरी बूर...फाड़ डाली इसने........कितने अंदर तक घुसा हुआ है.
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धर्मवीर अब पूरी तरह गुंज़न से लिपटते हुए लंड को बूर से बाहर निकाल निकाल के गच्च गच्च धक्के मारने लगा, उसने के होंठ अपने होंठों में भर लिए और चूसते हुए थोड़े तेज तेज गुंज़न चोदने लगा।

गुंज़न - आआआआआआहहहहह.......हाय बाबू.....चोदो मुझे........चोदो अपनी रंडी को.........कितना मजा आ रहा है, कितना प्यारा है आपका लंड........कितना मोटा और लम्बा है हाय बाबूजी.....ऐसे ही चोदते रहो

एकाएक धर्मवीर ने जोर से कराहते हुए अपना पूरा पूरा लंड बूर से निकालकर गुंज़न की बूर में जड़ तक पुरा पूरा पेलना शुरू कर दिया,

गुंज़न बड़ी तेज से सिसकने लग- .फाड़ो.....बाबूजी ऐसे ही चोदो कितना.....मजा.....आ रहा है........कितना मजा है चुदाई में।

दोस्तों जैसे ही धर्मवीर के लंड के झटके गुंज़न की चूत पर पड़ते हैं तो उसकी चूड़ियों की खनखन पूरे कमरे में गूंज जाती हर झटके पर उसके पैरों में बंधे घुंघरू छन छन छन की आवाज कर रहे थे ।

इतना मधुर संगीत पहली बार गुंज़न ने सुना था कि चूत की चुदाई का संगीत साथ में उसकी चूड़ियां और घुंघरुओं की खनखन उसे डबल मजा दे रही थी। झटके इतने ताबड़तोड़ तरीके से मारे गए थे कि गुंज़न की गांड धर्मवीर के लंड के साथ ही उठ जाती और धर्मवीर के पूरे वजन के साथ उसकी गांड बैड के गद्दे में धंस जाती ।गुंज़न की इतने बुरे तरीके से चूत फाड़ी जाएगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था ।
उसकी चूत पर वह तगड़ा लंड बार-बार झटके दे रहा था।
और गुंज़न की चूत का पानी उस लंड पर ऐसे चमक रहा था कि मानो कोई चुडक्कड़ रांड की चूत में अंदर बाहर हो रहा हो।

धर्मवीर- रानी तेरी भी दाद देनी पड़ेगी । मेरे लंड को पूरा ले गई चूत में वरना इतना आसान नहीं होता हर किसी के लिए अपनी चूत में मेरा यह लंड लेना ।

गुंज़न - बहू भी तो आपकी ही हूं कर लीजिए अपने मन की पूरी । यह पड़ी आपके रंडी आपके नीचे अपनी टांगों को फैलाकर ।

धर्मवीर ने उसके कंधे को पकड़कर उसकी चूत में इतने तगड़े तगड़े झटके मारे की गुंज़न दोहरी हो गई ।और मजे से सातवें आसमान में पहुंच गई ।चूत का बाजा तो इस तरह बज चुका था कि कोई कह नहीं सकता था वह चूत है अब तो वह भोसड़ा बनने की कगार पर थी ।

चुदते वक्त जब गुंज़न के पैरों में बंधे घुंगरू इतनी तेज आवाज कर रहे थे छनछन की लग रहा था कोई ढोल बैंड वाले मजीरा बजा रहे हैं।उसकी चूड़ियों की खनखन धर्मवीर के पीठ पर खनक रही थी ।

गुंज़न की चूत में इस तरह गदर मचाता हुआ लंड जब अंदर बाहर होने लगा तो चूत से पानी रिसने लगा । और वह पानी उसकी गांड तक पहुंच गया।गुंज़न की चुदाई इस तरीके से हो रही थी जैसे कोई किसान हल से अपना खेत जोत रहा हो ।भयंकर और धमाकेदार चुदाई से गुंज़न निहाल होती जा रही थी।उसे चोदते चोदते धर्मवीर ने उसके मुंह पर थूक दिया। गुंज़न के गालों पर पड़ा हुआ थूक इस बात की गवाही था कि वह एक संस्कारी बहु से बेशर्म रंडी बन गई है।

और गुंज़न ने उस थूक को अपने गाल पर मल लिया।

कम से कम 40 45 मिनट इसी पोजीशन में चोदने के बाद गुंज़न की टांगे भी दुखने लगी और गुंज़न थक गई थी।

धर्मवीर ने उसकी चूत से लंड निकाला और चूत को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह वही चूत है ।गुंज़न अपना हाथ चूत पर लेकर गई तो जैसे ही उसकी चूत के छेद पर उसकी उंगलियां गई उसे पता ही नहीं चला कि उसका छेद है उसकी तीन उंगलियां एक साथ उसकी चूत में घुस गई ।।

गुंज़न मुंह से निकला हे भगवान बाबूजी आप ने क्या कर दिया अब मैं आपके बेटे के सामने इस चूत को कैसे लेकर जाऊंगी ।धर्मवीर कहने लगा कि आज की चुदाई अभी तक पूरी नहीं हुई है ।उसके बारे में बाद में सोचेंगे और ऐसा कहते हुए धर्मवीर लेट गया और गुंज़न उसके ऊपर आकर अपनी थोड़ी सी गांड को फैला कर अपनी चूत के छेद पर उसका लंड सेट करके और एक साथ चीखती हुई बैठी आआआआआआईईईईईईई बचाओ कोई मुझे हाय ।बाबुजी आपकी रंडी आपका सारा लौड़ा ले गयी मैं।
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धर्मवीर के हाथ उसके चूतड़ों पर चले गए और धर्मवीर उसके चूतड़ों पर थप्पड़ मारते हुए नीचे से झटके देने लगा।और गुंज़न झुक कर अपने ससुर के होठों को चूसने लगी ।
धर्मवीर ने जैसे ही झटकों की रफ्तार बढ़ाई गुंज़न किसी रंडी की तरह चिल्लाने लगी कमरे में ।

गुंज़न की चुदाई का शोर कुछ इस कदर था जैसे कोई तीन चार रंडियां एक साथ मिलकर चुद रही हों।

गुंज़न सस्ती रांड की तरह गुर्राते हुए कहने लगी और तेज और तेज ससुर जी ।ओह मेरे राजा....चोदो ऐसे ही.....आआह....मेरी बूर.ओओह..कस कस के ऐसे ही चोदो मुझे.बहुत प्यासी हूँ.आपके लंड के लिए मेरी बूर तड़प रही थी..फाड़ो मेरी बूर.और तेज तेज चोदो बाबूजी..क्या लंड है आपकाकितना मोटा है कितना मजा आ रहा है.चोद डालो आज.फाड़ डालो बूर को.अपनी बहू की चूत को आपने ही मुझे पसंद किया था ना अपने बेटे के लिए तो लीजिये आज संभालिये इस चूत की गर्मी ।डाल दीजिए मेरी चूत में अपना बच्चा ।

धर्मवीर - मेरी जान तुझे तो अपने लंड पर इस तरह नचाऊंगा कि दीवानी हो उठेगी ।दिन में भी खुली आंखों से सपने देखेगी मेरे लंड के ।

गुंज़न - आपकी कुत्तिया देखो तो आपके ऊपर किस तरह से आपके लंड को निगले हुए बैठी है। देख क्या रहे हो दिखाओ इसे अपने लंड का दम इस निगोड़ी चूत में अपना लंड उतारो गुंज़न की चूत मारते हुए धर्मवीर उसे चोदता रहा और कहने लगा -मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरी बहू इतनी गरम कुतिया होगी।

गुंज़न - आपके जैसा लंड अगर चूत में उतरेगा तो संस्कारी बहु भी कुतिया बनेगी पापाजी।जिससे कहोगे आप उससे चुद जाऊंगी इस लंड के लिए।आपके मुंह पर अपनी चूत रख कर बैठा करूंगी सुबह को और तब आपको गुड मॉर्निंग बोला करूंगी।आपकी रंडी इस घर में अब सिर्फ चुदने के लिए रहेगी।

धर्मवीर यह सुनकर- मेरी रानी बहू अब तुझे कहीं जाने की जरूरत नहीं है बस तू अपनी गांड और चूत को सजाकर मेरे लोड़े के लिए मेरे बिस्तर पर इंतजार किया करना इस तरह झटके मारते हुए उसकी चूत की ताबड़तोड़ चुदाई चालू थी

धर्मवीर-तुझे चोदने में कितना मजा आ रहा है.........कितनी मक्ख़न जैसी बूर है तेरी..........कितनी....नरम और कितनी गहरी बूर..तेरी.....मेरी...जान......मेरी....रानी......कैसे गच्च गच्च मेरा लंड तेरी बूर में जा रहा है....
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गुंज़न- .हाय ऐसे ही चोदो मुझे.फाड़ डालो बूर मेरी बाबू..............अच्छे से फाड़ो अपने लंड से मेरी बूर को बाबूजी ये सिर्फ आपके मोटे लंड से ही फटेगी बाबू.सिर्फ आपके लंड से.. और तेज तेज चोदो अपनी बेटी को...हाय मजा आ रहा है।

फिर धर्मवीर ने गुंज़न दोबारा से नीचे लिटाया और उसकी गांड के नीचे एक तकिया रख दिया और ऊपर आकर उसकी चूत का हाल देखा ।

धर्मवीर मन ही मन अपने ऊपर गर्व महसूस करने लगा क्योंकि गुंज़न की चूत ऐसी हो गई थी जैसे कोई दो तीन अफ्रीकन नीग्रो से उसका गैंगबैंग हुआ हो।

फिर पूरी ताकत से झटका मारा धर्मवीर ने।दोस्तों गांड के नीचे तकिया रखा होने की वजह से धर्मवीर का लंड जड़ तक उसकी चूत में उतर गया।और उसकी बच्चेदानी से जा टकराया गुंज़न मजे से दोहरी होकर गुर्रा पड़ी पापाजी फाड़ दीजिए प्लीज रंडी की चूत । मत कीजिए कोई रहम।

धर्मवीर- हाँ बहु....और वो शालु भी खूब चुदेगी एक दिन मुझसे....अपने बड़े-बड़े दूध लिए घर में जो "पापा-पापा" करते हुए घुमती है ना....एक दिन पापा पकड़ के उसकी बूर चोद लेंगे...

धर्मवीर अपने होश खो कर अनाप-शनाप बोले जा रहा था जिसका मजा गुंज़न पूरा उठा रही थी.

गुंज़न -बाबुजी...एक दम कसी हुई बूर है शालु की....लंड डालोगे तो कसावट के साथ धीरे-धीरे जायेगा अन्दर....

धर्मवीर- अरे...मेरी शालु की बूर....आह्ह्ह...कितनी भी...आह...कसी हुई...हो..! पापा का मोटा...लंड...पूरी फैला देगा...आह्ह्ह्ह..

गुंज़न- लाज और शर्म में बहुत दिन रहली शालु अब वह तुम्हारे लंड की दीवानी बन के अपनी चूत को दिन-रात आपके लंड से सजाएगी ।

गुंज़न बात ने धर्मवीर के लंड में जोश भर दिया. वो अब पूरे जोश में गुंज़न को चोदने लगता है.ने कसकस के उसकी चूत में घस्से मारे जिस वजह से गुंज़न का पानी निकलने को तैयार हो गया ।और गुंज़न रंडियों की तरह चिल्लाते हुए कहने लगी बाबूजी आपकी कुतिया गयी ।
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धर्मवीर सोचने लगा कि गुंज़न झड़ने वाली है तो उसे भी झड़ना होगा उसने अपने धक्कों की रफ़्तार और तेज कर दी पिस्टन की तरह अंदर बाहर करना स्टार्ट कर दिया लंड।

किसी मशीन की तरह धर्मवीर की कमर ऊपर नीचे इतनी स्पीड से हो रही थी कि बिल्कुल गुंज़न की चूत के छेद में उसका लंड पूरा बाहर आता उतनी ही स्पीड से अंदर जाता ।

गुंज़न चिल्लाते हुए झड़ गयी डाल दीजिए अपना बच्चा मेरी चूत में ।आपके बच्चे को जन्म देना चाहती हूं मैं ।

आपका पानी मेरी चूत में छोड़ दीजिए बना दीजिए मुझे मां एक नहीं दो दो बच्चों की मां बना दीजिए इस घोड़ी को ।
यह घोड़ी अभी तक कुंवारी थी आज मैंने जाना है चूत फाड़ना किसे कहते हैं ।सच में आपने वह कर दिखाया जो आपने कहा था।बना दिया बाबूजी आपने आपने मेरी चूत का भोसड़ा।अभी फटी हुई चूत को लेकर मैं घर में घुमा करूंगी ।

और धर्मवीर इन बातों से इतना गरम हुआ कि उसने अपनी सांसो को खींचकर झटके इतने जबरदस्त धक्का गुंज़न की बूर में मारते हुए झड़ने लगा, धक्का इतना तेज था कि
गुंज़न जोर से चिहुँक पड़ी आह........ बाबू जी........ हाय
एक तेज मोटे गाढ़े वीर्य की गरम गरम पिचकारी उसके लंड से निकलकर गुंज़न की बूर की गहराई में जाकर बच्चेदानी
के मुह पर तेज तेज पड़ने लगी तो गुंज़न की बूर धर्मवीर के गर्म वीर्य से लबालब भर गई और वीर्य बाहर निकलकर गुंज़न की बूर के नीचे से बहता हुआ गांड की दरार में जाता हुआ गुंज़न को बखूबी महसूस होता गया, वीर्य इतना गाढ़ा और गर्म था कि गुंज़न गनगना के हाय हाय करके झड़ने लगी

धर्मवीर कुछ देर तक उसके ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा ।

फिर लंड उसकी चूत से जैसे ही बाहर निकाला तो चूत का छेद उसके लंड की आकार का हो गया और उसकी चूत के छेद में से वीर्य बाहर निकलने लगा । वीर्य बहकर उसकी गांड तक जाने लगा।

दोनों एक जोरदार चुदाई का आनंद लेकर चरम सुख की प्राप्ति के आनंद को आंखें बंद किये एक दूसरे की बाहों में पड़े महसूस करने लगे।
 
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Nasn

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इधर भाई-बहन का प्यार खुल के एक नया रूप ले रहा है और वहां गुंज़न अपने कमरे में अपना काम कर रही है. तभी उसकी नंगी कमर को एक हाथ छुता है. वो डर कर मुडती है तो सामने धर्मवीर खड़े है. गुंज़न मुस्कुराते हुए....

गुंज़न- अरे बाबूजी आप? मैं तो डर ही गई थी.

और जैसा ही धर्मवीर हल्का आगे बढ़ा ।गुंज़न की भारी-भरकम गांड उसके लंड से टच हो गयी।धर्मवीर का स्पर्श को पाते ही गुंज़न थोड़ी आगे हो गयी।

गुंज़न के इस तरह के स्वभाव को देखकर धर्मवीर सोचने लगा। कि आज तेरे अंदर की रंडी ना जगाई तो मैं भी धर्मवीर नहीं ।

धर्मवीर ने अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लंबे किए और गुंज़न की दोनों बाजुओं को पकड़कर धर्मवीर ने अपनी तरफ इतनी तेज खींचा । इस तरह झटका मारा कि जिसकी उम्मीद गुंज़न को भी नहीं थी ।

गुंज़न की गांड एकदम धर्मवीर के लंड से टकरा गई और धर्मवीर ने अपना चेहरा उसकी गर्दन के साइड में कंधे पर रख दिया धर्मवीर गुंज़न के गर्दन पर चूमते हुए दोनों हांथों से ब्लॉउज के ऊपर से ही गुंज़न की मोटी मोटी चूचीयों को अपने हथेली में भर भरके बेसब्रों की तरह दोनों मदमस्त चूची को मसलने लगा और अंगूठे और तर्जनी उंगली से फूलकर सख्त हो चुके निप्पल को भी मसलने लगा। फिर गुंज़न को अपनी तरफ घुमा कर धर्मवीर ने गले से लगाया और उसकी कमर पर अपने हाथ फेरने लगा ।

धर्मवीर- बहु....अपने ओठों का रस पिला दे बहु.....

गुंज़न- (आँखे बंद करते हुए) ओह ....बाबूजी....!! (और अपना मुहँ खोल देती है)।

फिर धर्मवीर ने अपने होठों को उसके होठों से लगा दिया जैसे ही दोनों के होठों का मिलन हुआ गुंज़न के अंदर सुरसुरी दौड़ गई ।धर्मवीर ने अपना पूरा मुंह खोल कर उसके दोनों होठों को मुंह में भर लिया ।गुंज़न तो मानो पूरी गरमा गई ।धर्मवीर ने उसके ऊपर वाले हॉट को मुंह में भर लिया और चूसने लगा अब धर्मवीर का नीचे वाला हॉट गुंज़न के मुंह में था ।

गुंज़न ने सोचा की शुरुआत तो ससुर जी ने कर ही दी है तो मुझे भी थोड़ा उनका साथ देना चाहिए । ऐसा सोचते हुए उसने अपनी जीभ बाहर निकाल कर नुकीली बना ली।
धर्मवीर ने भी अपनी जीभ नुकीली बनाई और अपनी जीभ के नोक को गुंज़न की जीभ के नोक से छुआने लगा गुंज़न ने अपनी जीभ और कस के बाहर निकाल ली, धर्मवीर अपनी जीभ को गुंज़न की जीभ के किनारे गोल गोल घुमाने लगा,
गुंज़न का पूरा बदन मस्ती में झनझना जा रहा था, वो भी अपनी जीभ को अपने बाबूजी की जीभ से लड़ाने लगी, काफी देर ऐसे ही जीभ मिलन का खेल खेलने के बाद एकाएक धर्मवीर ने अपनी पूरी जीभ गुंज़न के मुँह में डाल दी और पूरे मुँह में हर तरफ गुमाते हुए गुंज़न के मुँह का चप्पा चप्पा जीभ से छूकर चूमने से लगा, गुंज़न का बदन गनगना गया धर्मवीर गुंज़न की जीब को मुँह में भरकर चूसने लगता और फिर अपनी जीभ निकाल लेता और फिर गुंज़न भी धर्मवीर की जीभ को मुँह में भरकर चूसती, कभी दोनों जीभ लड़ाने लगते, माहौल बहुत गर्म होता जा रहा था,
गुंज़न वासना से सराबोर होकर मस्ती में बहते हुए बेकाबू होती जा रही थी, उसका बदन बार बार गुदगुदा जाता, जीभ लड़ाने से बार बार उठने वाली गुदगुदी से पूरा बदन सनसना जाता, सिसकियां और कामुक सिसकारियां काफी तेज हो चुकी थी।
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धर्मवीर पीछे अपने हाथ नीचे गुंज़न की गांड पर ले गया और उसके चूतड़ों को अपने हाथों से हल्का सा दबाया ।और फिर धर्मवीर ने गुंज़न की चूतड़ों पर दोनों हाथों से बारी-बारी 4, 5 थप्पड़ मारे और यह थप्पड़ इतनी तेज थी कि पटपट की आवाज पूरे कमरे में गूंज गई।फिर धर्मवीर ने उसको घुमाया और उसकी गांड के पीछे खड़ा होकर उसकी छातियों पर अपने हाथ ले गया।धर्मवीर ने जैसे ही गुंज़न की चुचियों को अपने हाथों में भरा तो वह हैरान रह गया क्योंकि उसकी चूचियां उसके हाथों में आ ही नहीं रही थी ।

धर्मवीर कहने लगा की बहू, मेरी संस्कारी बहु तुझे तो मेरे जैसे लंड की ही जरूरत है ।

धर्मवीर ने पीछे से गुंज़न की गर्दन पर चूमते हुए उसके ब्लॉउज के बटन खोलने शुरू किए,पहले तो ब्लाउज के बटन खोलने लगा फिर अचानक रुककर दोनों हांथों से ब्लॉउज के ऊपर से ही गुंज़न की मोटी मोटी चूचीयों अपनी पूरी ताकत लगा कर भींचा । उपासना के मुंह से जोरदार चीख निकली

धर्मवीर ने गुंज़न की ब्रा का हुक खोलने की कोशिश की पर उससे जल्दी खुला नही तो गुंज़न ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया, ब्रा ढीला होकर धर्मवीर के हांथों में आ गया, धर्मवीर ने ब्रा को एक साइड में ब्लॉउज के साथ रख दिया और अब गुंज़न ऊपर से बिल्कुल निवस्त्र हो गयी, गुंज़न की नंगी पीठ धर्मवीर के सीने से सट गयी, गुंज़न की जवान गोरी पीठ अपने सीने से सटते ही
धर्मवीर ने मस्ती में आंखें बंद करते हुए अपने दोनों हाथों से
गुंज़न की नंगी गोरी गोरी नरम स्पॉन्ज जैसी फूली फूली चूचीयों को अपने हाथों में भर जोर से दबाने लगा, गुंज़न धर्मवीर के हाथ की ताकत अपनी चूचीयों पर अच्छे से महसूस कर हाय हाय करने लगी-

गुंज़न -ओओओओहहहहहह ... बाबूजी...हाँ.... ऐसे ही दबाओ.......आआआआहहहह....और मीजो चूची को।


फिर धर्मवीर ने गुंज़न को अपनी तरफ घुमाया तो वह देखता ही रह गया चूचियां तन कर खड़ी थी। और पागल हो गया, निप्पल तो कब से फूलकर खड़े थे गुंज़न की चूची के, दोनों चूचीयों को देखकर धर्मवीर उनपर टूट पड़ा और मुँह में भर भरकर पीने लगा, दोनों हांथों से कस कस के दबाने लगा, कभी धीरे धीरे सहलाता कभी तेज तेज सहलाता, लगातार दोनों चूचीयों को पिये भी जा रहा था, निप्पल को बड़े प्यार से चूसे जा रहा था

गुंज़न सिसकने लगी- आह....सी......आह.... सी......ओह बाबू....ऐसे ही.....और चूसो......दबाओ इन्हें जोर से.........हाँ मेरे बाबू......पियो मेरी चूची को.........आह,


धर्मवीर मुँह भर भर के गुंज़न की मखमली गुदाज खरबूजे के समान गोल गोल चूची को पिये जा रहा था, दूसरे हाँथ से वो दूसरी चूची को भी मसलने लगा, कभी जीभ को निप्पल पे घुमाता, कभी बच्चे की तरह चूसने लगता, फिर कभी निप्पल के किनारे किनारे जीभ घूमता, कभी जीभ को निप्पल के किनारे किनारे घुमाते हुए गोले को बड़ा करता जाता और जब जीभ एक बड़ा गोल बना कर चूची पर घूमने लगती तो गप्प से पूरी चूची को मुँह में भरकर चूसने लगता, ऐसे ही वो कुछ देर गुंज़न की चूचीयों से खेलता रहा।

गुंज़न - पियो अपनी बहु की चूची ऐसे ही.....मैं बहुत तरस गयी थी आपको पिलाने को... सारा दूध पी लो बाबूजी।

एकाएक गुंज़न ने सिसकते हुए धर्मवीर के कान में कहा- बाबूजी औरत के लिए तरस गए थे न आप।

धर्मवीर - हाँ मेरी बेटी।

गुंज़न प्यार से दुलारते हुए धर्मवीर के बालों को सहलाने लगी, फिर धर्मवीर बोला- तू भी तो एक मर्द के लिए तरसती थी न।

गुंज़न- मैं बस आपके लिए, अपने बाबूजी के लिए तरसती थी, एक मजबूत मर्द के लिए।

गुंज़न की सांसे चलने लगी लगी थी उधर धर्मवीर की सांसे भी तेज हो गई थी । और उसने गुंज़न की गांड के पीछे बैठकर उसकी सलवार को पूरी फाड़ दिया अब उपासना मादरजात नंगी खड़ी थी धर्मवीर के आगे।

भरी हुई जांघों के बीच चूत ऐसी लग रही थी जैसे ये मोटी जांघे उसकी चूत की रक्षा करती हो ।उसकी मोटी मोटी जांघों के बीच रसीली चूत इस तरह शोभा दे रही थी जैसे कि गुलदस्ते में कोई फूल ।उसकी गांड पर हाथ ले जाकर धर्मवीर ने उसे अपनी तरफ दबाया अपना चेहरा उसकी चूत के करीब ले गया।गुंज़न को उसकी सांसे अपनी चूत पर महसूस हुई तो उसकी चूत और गर्म हो गई ।धर्मवीर ने उसकी चुत को गौर से देखा ।चूत के दाने पर अपनी नाक लगाई और एक तेज सांस खींची गुंज़न के मुंह से सिसकारी निकल गई और धर्मवीर तो मानो दूसरी दुनिया में चला गया हो ।गुंज़न की चूत की भीनी भीनी खुशबू उसे पागल कर गई ।धर्मवीर ने अपनी जीभ निकालकर उसकी चूत पर जैसे ही लगाई गुंज़न की जान ही निकल गई ।और धर्मवीर ने अपना पूरा मुंह खोला पूरी चूत को मुंह में भर कर अपनी जीभ से उसके दाने को सहलाने लगा ।गुंज़न इस बर्दाश्त नहीं कर पायी और एक ग़दरायी हुए जिस्म की रंडी की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी ।
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धर्मवीर गुंज़न की जाँघों को फाड़कर प्यासी बूर को मुँह में भरकर चाटने लगा।

गुंज़न=हाहाह..बाबूजी...करने लगी,
गुंज़न सिसियाते हुए धर्मवीर के सर को अपनी बूर पर दबाने लगी, गुंज़न के दोनों पैर हवा में दोनों तरफ फैले हुए थे,
धर्मवीर अपने दोनों हांथों से कभी गुंज़न की चुचियों और निप्पल को मसलता तो कभी भारी चूतड़ को हथेली में उठाकर थोड़ा और ऊपर कर देता। वो अपनी पूरी जीभ को गांड के छेद पर ले जाता और फिर बूर की फैली हुई दरार में अपनी जीभ को नीचे से ऊपर तक सरसराता हुआ लाता और ऊपर आ के भग्नासे को चूस लेता, गुंज़न का पूरा बदन वासना में अब कांप रहा था जोर से सिसकने लगी, कराहने लगी, धर्मवीर के सर को कस कस के अपनी रसभरी बूर पर दबाने लगी, अपनी गांड को उछाल उछाल के अपनी बूर चटवाने लगी,

गुंज़न- .हाय मेरी बूर.कितना अच्छा लग रहा है हाय आपकी जीभ... चाटो ऐसे ही बाबूजी.मेरी बरसों की प्यास बुझा दो..आआआआआआहहहहह.मेरी बूर की प्यास सिर्फ आपसे बुझेगी..सर्फ आपसे...ऐसे ही बूर को खोल खोल के चाटो बूर को चाट चाट के मुझे मस्त कर दो.कितना मजा आ रहा है....


धर्मवीर गुंज़न की चूत पर ऐसे टूट पड़ा कि जैसे कुत्ता धर्मवीर ने अपना थूक निकाल निकाल कर उसकी चूत के पानी के साथ मिलाया और उसकी चूत को लप-लप चाटने लगा ।
उसके दाने को चूसने लगा। गुंज़न की बर्दाश्त से बाहर हुआ तो

गुंज़न - चाट लो बाबुजी मीठा पानी। इस पानी को चाटने के लिए तो कितने लोग पागल हुए फिरते हैं। और आपकी बहू अपनी चूत फैलाकर आपसे भीख मांग रही है कि इसे चाटो, इसे इतना प्यार करो कि निगोड़ी चूत इतनी निखर जाए कि हर लंड को इससे प्यार हो जाये ।

धर्मवीर का पूरा चेहरा गुंज़न की चूत के पानी से और थूक से सन गया था ।

धर्मवीर - इस चूत को आज इतना प्यार करूंगा की ये चूत, चूत ना रहकर भोसड़ा बन जाएगी ।

गुंज़न की आंखों में धर्मवीर ने देखा तो गुंज़न की आंखें कह रही थी कि मैं लंड मांग रही हूं मैं मुझे दे दो अपना तगड़ा हल्ल्बी लोड़ा।

धर्मवीर अपना हाथ गुंज़न की चूत पर ले जाकर उसकी चूत की दरार के बीच में उंगली से सहलाने लगा ।यह उपासना के लिए हाल बेहाल वाली हालत थी ।उसने अपनी दोनों जांघों को आपस में भींच लिया अब धर्मवीर के लिए हाथ को चलाना थोड़ा मुश्किल हो रहा था।लेकिन उसने मशक्कत करके अपनी एक ऊंगली गुंज़न की चूत के छेद पर रख कर अंदर की तरफ दबाई ।जैसे ही आधी उंगली चूत में गई गुंज़न एक साथ सिसक उठी आआआआआआईईईईईईई ।

धर्मवीर गुंज़न से बोला चुदने के लिए तैयार हो रही है तुम्हारी ये चूत ।

गुंज़न भी अब शर्म छोड़ देना चाहती थी।

गुंज़न - आज आपकी ये रांड आपके बिस्तर पर आपसे चुदने के लिए फैली पड़ी है ।अपनी इन मजबूत बाजू में जकड़ कर इस रांड की चूत को चोदिये बाबुजी ।आपकी संस्कारी बहु की चूत आपके सामने है।जब धर्मवीर ने ऐसा सुना तो उसके लंड में इतना कड़कपन आगया कि उसने अपनी पूरी उंगली
गुंज़न की चूत में उतार दी ।गुंज़न इसके लिए तैयार नहीं थी और उंगली चूत में घुसते ही ऊपर की तरफ सरकने लगी ।

धर्मवीर - मेरी जान अभी तो उंगली ही गई है लोड़ा भी ऐसी चूत में उतरेगा आज ।

यह सुनकर गुंज़न से बर्दाश्त नहीं हुआ और बोली - बाबूजी देखिए आपकी बहू कितनी बड़ी चुडक्कड़ रंडी है , आज यह आपको मैं दिखा ही देती हूं ।

धर्मवीर - तुम्हारा खजाना भी मेरी धोती में है निकाल लो ।मैं भी तो देखूं कि मैंने अपने घर में किस तरह की रंडी रखी हुई है
कहकर धर्मवीर लेट गया

ऐसा सुनकर गुंज़न कहने लगी अगर मैंने शर्म छोड़ दी तो आप बर्दाश्त नहीं कर पाओगे बाबूजी ।

यह सुनकर धर्मवीर बोला कि दिखा तो अपना बेशर्म पना ।

एक मजबूत सांड को बिस्तर पर इंतजार करते देख गुंज़न किसी घोड़ी की तरह बेड पर चढ़कर धर्मवीर के पास आई
और उसकी धोती को खोलने लगी ।और एक झटके में धोती खोल डाली, फनफनाता हुआ मूसल जैसा दहाड़ता लंड उछलकर गुंज़न की आंखों के सामने आ गया,काले काले झांटों के बीच 9 इंच लंबा और करीब 4 इंच मोटा दहाड़ता लंड देखकर गुंज़न की आंखें चमक गई, गुंज़न धर्मवीर की बालो भारी जाँघों को छूते हुए लन्ड के ऊपर के घने बालों में हाँथ फेरा और फिर लंड को पकड़कर कराहते हुए सहलाने लगी, गुंज़न लंड को मुट्ठी में पकड़कर पूरा पूरा सहलाने लगी, सिसकते हुए सहलाते सहलाते वो नीचे के दोनों बड़े बड़े आंड को भी हथेली में भरकर बड़े प्यार से दुलारने लगी और सहलाने लगी,जाँघों पर इधर उधर चूमते हुए वो विकराल लन्ड के करीब पहुँची और बड़े बड़े आंड को मुँह में भर लिया और लोलोपोप की तरह मदहोश होकर चूसने और चाटने लगी, अंडकोषों पर हल्के हल्के बाल थे जिसकी वजह से गुंज़न और कामातुर हो रही थी, काफी देर तक आंड को चूसने, सहलाने मसलने के बाद उसने लंड पर हाँथ फेरा और पूरे लंड को सहलाते हुए मुठिया दिया।
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गुंज़न धर्मवीर के अड को सहलाते हुए अपने मुँह के सामने सीधा किया और अपने होंठों को गोल करके लंड के सुपाड़े के ऊपर रखकर अपने होंठों से ही लंड की चमड़ी को नीचे सरकाते हुए सुपाड़ा खोलकर मुँह में भर लिया और लबालब चूसने लगी, धर्मवीर गुंज़न के नरम होंठ आने लंड पर पड़ते ही जोर से कराह उठा और सिसकने लगा-
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धर्मवीर-.......ऐसे ही चूस......कितना अच्छा लग रहा है...... .... तेरे नरम नरम होंठ मेरे लंड पर .चूस मेरी बच्ची.........चाट चाट के इसकी बरसों की प्यास बुझा दे तू कितना अच्छा चूस रही है .बुझा दे मेरी प्यास मेरी बच्ची....और मुंह में भर भर के चूस मेरी रानी...चूस.....मेरे लंड की खुशबू अच्छी लगी न......ऐसे ही चूस.....आआ।

गुंज़न वासना से अब जल उठी और कस कस के धर्मवीर का ज्यादा से ज्यादा लंड अपने मुँह में भर भरकर चूसने चाटने लगी, धर्मवीर मस्ती में आंखें मूंदे गुंज़न का सर पकड़कर अपने लंड पर दबाता रहा और ज्यादा से ज्यादा उसके मुंह में डालता रहा कोशिश करने के बाद भी गुंज़न धर्मवीर का आधे से थोड़ा ज्यादा ही लंड अपने मुँह में ले पाई थी। लंड चूसने की चप्प चप्प आवाज सिसकियों के साथ वातावरण में गूंजने लगी, गुंज़न ने काफी देर मुँह में भर भर के धर्मवीर का दहकता लंड चूसा और फिर पक्क़ से लंड को बाहर निकाला, अपनी जीभ निकालकर लंड के मूत्र छेद पर बड़ी मादकता से रगड़ने लगी फिर जीभ से लन्ड को ऊपर से नीचे तक icecream की तरह चाटने लगी, गुंज़न के नरम नरम मुँह में अपना लंड भरकर और जीभ से लन्ड चटवाकर धर्मवीर त्राहि त्राहि कर उठा।
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गुंज़न भी सिसकते हुए -आआआआहहहह बाबूजी.डालो अपना लंड मेरे मुंह मे.....आज आपकी सारी प्यास बुझा दूंगी... आपको तड़पता हुआ नही देख सकती आपकी ये
बहु ..क्या लंड है आपका.......कितना लंबा और मोटा है अपने सुपाड़े को मेरे होंठों पर रगड़ो बाबूजी...........अपने लंड से मेरे मुँह को चोदो.

धर्मवीर गुंज़न के आग्रह पर अपना लंड उसके मुँह में जितना भी आ सकता था डालकर अंदर बाहर करके मुँह को हल्का हल्का चोदने लगा, गुंज़न के सर और बालों को पकड़कर वह सहलाने लगा, गुंज़न भी आंखें बंद किये पूरा पूरा मुँह खोलकर गपा गप्प लंड मुँह में लेने लगी, मस्ती में धर्मवीर की आंखें बंद हो गयी, उसके विकराल लंड का खुला हुआ सुपाड़ा गुंज़न के मुँह में हर जगह ऊपर नीचे अगल बगल टकराने लगा और गुंज़न मदहोश होती चली जा रही थी, धर्मवीर का पूरा लंड गुंज़न के थूक से चमक रहा था, उसने अपने लंड को पकड़कर फिर पक्क़ से मुँह से बाहर निकल और गुंज़न के गालों, माथे और ठोढ़ी तथा होंठों पर खूब रगड़ा, गुंज़न सिसकते हुए आंखें बंद किये अपने बाबू के गरम थूक से सने लंड को अपने चेहरे के हर हिस्से पर महसूस करती रही और जब लंड होंठो पर आता तो जीभ निकाल के उसे चाट लेती।

फिर धर्मवी ने गुंज़न को सीधा लिटाया और उसके पैरों को खोलकर मोटी मोटी जाँघों के बीच आकर अपने लंड को चूत से रगड़ दिया।

जैसे ही लंड का स्पर्श चूत पर हुआ गुंज़न पागल हो गयी । उस गरम लंड के के स्पर्श से ।

फिर उसकी टांगों को उसकी छातियों से लगाकर धर्मवीर उसकी चूत के आगे बैठा और अपना लंड उसकी चूत पर ऐसे मरने लगा जैसे हल्के हल्के थप्पड़ मार रहा हो

गुंज़न- बाबुजी बहुत मन कर रहा है मेरा,लंड के आगे का चिकना चिकना सा भाग खोलकर बूर पर रगडिये न बाबूजी

धर्मवीर उसके ऊपर झुका और झुक कर उसके चेहरे को चाटते हुए लंड रगड़ने लगा चूत से। लंड की रगड़ से उसकी चूत पानी पानी हो गई।

गुंज़न ने कराहते हुए लंड को पकड़ लिया और मस्ती में आंखें बंद कर अपनी बूर की फांकों को फैला कर उस पे रगड़ने लगी।

धर्मवीर ने गुंज़न की बायीं टांग को उठाकर अपने कंधे पर रखा और दायीं टांग को फैलाकर अपने कमर से लपेट दिया और गुंज़न ने एक हाँथ से धर्मवीर के विशाल दहकते लंड को पकड़ा, उसका सुपाड़ा खोलकर चमड़ी को पीछे किया और धीरे से अपनी खुली हुई बूर के छेद पर सेट किया और
बोली- बाबजी अब मुझे चोदिये, बर्दाश्त नही होता अब, वर्षों से आपके लंड की प्यासी है।

इतना सुनते ही धर्मवीर ने उसके होठों को चूसते हुए उसके जोरदार धक्का गच्च से मारा, धर्मवीर का 9 इंच लंबा और 4 इंच मोटा लंड पूरा का पूरा गुंज़न की रस बहाती मखमली दीवारों को फाड़ता हुआ सीधा बच्चेदानी तक समा गया, गुंज़न की दर्द के मारे चीख निकल गयी पर उसने अपना मुँह धर्मवीर के कंधों में लगाते हुए दर्द के मारे उनके कंधों पर दांत गड़ा दिए और उसके नाखून भी धर्मवीर की पीठ पर गड़ गए, धर्मवीर वासना में कराह उठा,
गुंज़न की बूर का प्यार सा छेद एकदम किसी रबड़ के छल्ले की तरह फैलकर लंड के चारों तरफ जकड़े हुए थी।
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धर्मवीर उसकी चूत को अपने लंड से भर कर चुचों से खेलने लगा , कान के नीचे और कान पर, गर्दन पर काफी देर चूमता रहा, काफी देर गर्दन पर अपनी जीभ फिराता रहा, चूमता रहा फिर उसने होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमना और पीना शुरू कर दिया, गुंज़न को इससे बहुत राहत मिलती गयी, उसकी जोर जोर से निकलती चीख और दर्द भरी सीत्कार धीरे धीरे वसनात्मय सिसकियों और कराह में बदलने लगी फिर उसकी आंखें धीरे धीरे असीम आनंद के नशे में बंद होने लगी।
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गुंज़न की चूत का दाना बिल्कुल लंड पर रगड़ खा रहा था इतना चौड़ा हो गया था गुंज़न की चूत का छेद फिर धीरे-धीरे
गुंज़न नीचे से गांड हिलाने लगी।उसके मुँह से अब हल्की हल्की सिसकारियां निकलने लगी,

गुंज़न-आआआआहहहह...बाबूजी....हाहाहाहाहायययय...मेरी बूर....कितना लंबा है आपका लंड.... बाबू.....कितना मोटा है आपका लंड... ...हाहाहाहाययययययय ....मेरी बूर...फाड़ डाली इसने........कितने अंदर तक घुसा हुआ है.
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धर्मवीर अब पूरी तरह गुंज़न से लिपटते हुए लंड को बूर से बाहर निकाल निकाल के गच्च गच्च धक्के मारने लगा, उसने के होंठ अपने होंठों में भर लिए और चूसते हुए थोड़े तेज तेज गुंज़न चोदने लगा।

गुंज़न - आआआआआआहहहहह.......हाय बाबू.....चोदो मुझे........चोदो अपनी रंडी को.........कितना मजा आ रहा है, कितना प्यारा है आपका लंड........कितना मोटा और लम्बा है हाय बाबूजी.....ऐसे ही चोदते रहो

एकाएक धर्मवीर ने जोर से कराहते हुए अपना पूरा पूरा लंड बूर से निकालकर गुंज़न की बूर में जड़ तक पुरा पूरा पेलना शुरू कर दिया,

गुंज़न बड़ी तेज से सिसकने लग- .फाड़ो.....बाबूजी ऐसे ही चोदो कितना.....मजा.....आ रहा है........कितना मजा है चुदाई में।

दोस्तों जैसे ही धर्मवीर के लंड के झटके गुंज़न की चूत पर पड़ते हैं तो उसकी चूड़ियों की खनखन पूरे कमरे में गूंज जाती हर झटके पर उसके पैरों में बंधे घुंघरू छन छन छन की आवाज कर रहे थे ।

इतना मधुर संगीत पहली बार गुंज़न ने सुना था कि चूत की चुदाई का संगीत साथ में उसकी चूड़ियां और घुंघरुओं की खनखन उसे डबल मजा दे रही थी। झटके इतने ताबड़तोड़ तरीके से मारे गए थे कि गुंज़न की गांड धर्मवीर के लंड के साथ ही उठ जाती और धर्मवीर के पूरे वजन के साथ उसकी गांड बैड के गद्दे में धंस जाती ।गुंज़न की इतने बुरे तरीके से चूत फाड़ी जाएगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था ।
उसकी चूत पर वह तगड़ा लंड बार-बार झटके दे रहा था।
और गुंज़न की चूत का पानी उस लंड पर ऐसे चमक रहा था कि मानो कोई चुडक्कड़ रांड की चूत में अंदर बाहर हो रहा हो।

धर्मवीर- रानी तेरी भी दाद देनी पड़ेगी । मेरे लंड को पूरा ले गई चूत में वरना इतना आसान नहीं होता हर किसी के लिए अपनी चूत में मेरा यह लंड लेना ।

गुंज़न - बहू भी तो आपकी ही हूं कर लीजिए अपने मन की पूरी । यह पड़ी आपके रंडी आपके नीचे अपनी टांगों को फैलाकर ।

धर्मवीर ने उसके कंधे को पकड़कर उसकी चूत में इतने तगड़े तगड़े झटके मारे की गुंज़न दोहरी हो गई ।और मजे से सातवें आसमान में पहुंच गई ।चूत का बाजा तो इस तरह बज चुका था कि कोई कह नहीं सकता था वह चूत है अब तो वह भोसड़ा बनने की कगार पर थी ।

चुदते वक्त जब गुंज़न के पैरों में बंधे घुंगरू इतनी तेज आवाज कर रहे थे छनछन की लग रहा था कोई ढोल बैंड वाले मजीरा बजा रहे हैं।उसकी चूड़ियों की खनखन धर्मवीर के पीठ पर खनक रही थी ।

गुंज़न की चूत में इस तरह गदर मचाता हुआ लंड जब अंदर बाहर होने लगा तो चूत से पानी रिसने लगा । और वह पानी उसकी गांड तक पहुंच गया।गुंज़न की चुदाई इस तरीके से हो रही थी जैसे कोई किसान हल से अपना खेत जोत रहा हो ।भयंकर और धमाकेदार चुदाई से गुंज़न निहाल होती जा रही थी।उसे चोदते चोदते धर्मवीर ने उसके मुंह पर थूक दिया। गुंज़न के गालों पर पड़ा हुआ थूक इस बात की गवाही था कि वह एक संस्कारी बहु से बेशर्म रंडी बन गई है।

और गुंज़न ने उस थूक को अपने गाल पर मल लिया।

कम से कम 40 45 मिनट इसी पोजीशन में चोदने के बाद गुंज़न की टांगे भी दुखने लगी और गुंज़न थक गई थी।

धर्मवीर ने उसकी चूत से लंड निकाला और चूत को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह वही चूत है ।गुंज़न अपना हाथ चूत पर लेकर गई तो जैसे ही उसकी चूत के छेद पर उसकी उंगलियां गई उसे पता ही नहीं चला कि उसका छेद है उसकी तीन उंगलियां एक साथ उसकी चूत में घुस गई ।।

गुंज़न मुंह से निकला हे भगवान बाबूजी आप ने क्या कर दिया अब मैं आपके बेटे के सामने इस चूत को कैसे लेकर जाऊंगी ।धर्मवीर कहने लगा कि आज की चुदाई अभी तक पूरी नहीं हुई है ।उसके बारे में बाद में सोचेंगे और ऐसा कहते हुए धर्मवीर लेट गया और गुंज़न उसके ऊपर आकर अपनी थोड़ी सी गांड को फैला कर अपनी चूत के छेद पर उसका लंड सेट करके और एक साथ चीखती हुई बैठी आआआआआआईईईईईईई बचाओ कोई मुझे हाय ।बाबुजी आपकी रंडी आपका सारा लौड़ा ले गयी मैं।
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धर्मवीर के हाथ उसके चूतड़ों पर चले गए और धर्मवीर उसके चूतड़ों पर थप्पड़ मारते हुए नीचे से झटके देने लगा।और गुंज़न झुक कर अपने ससुर के होठों को चूसने लगी ।
धर्मवीर ने जैसे ही झटकों की रफ्तार बढ़ाई गुंज़न किसी रंडी की तरह चिल्लाने लगी कमरे में ।

गुंज़न की चुदाई का शोर कुछ इस कदर था जैसे कोई तीन चार रंडियां एक साथ मिलकर चुद रही हों।

गुंज़न सस्ती रांड की तरह गुर्राते हुए कहने लगी और तेज और तेज ससुर जी ।ओह मेरे राजा....चोदो ऐसे ही.....आआह....मेरी बूर.ओओह..कस कस के ऐसे ही चोदो मुझे.बहुत प्यासी हूँ.आपके लंड के लिए मेरी बूर तड़प रही थी..फाड़ो मेरी बूर.और तेज तेज चोदो बाबूजी..क्या लंड है आपकाकितना मोटा है कितना मजा आ रहा है.चोद डालो आज.फाड़ डालो बूर को.अपनी बहू की चूत को आपने ही मुझे पसंद किया था ना अपने बेटे के लिए तो लीजिये आज संभालिये इस चूत की गर्मी ।डाल दीजिए मेरी चूत में अपना बच्चा ।

धर्मवीर - मेरी जान तुझे तो अपने लंड पर इस तरह नचाऊंगा कि दीवानी हो उठेगी ।दिन में भी खुली आंखों से सपने देखेगी मेरे लंड के ।

गुंज़न - आपकी कुत्तिया देखो तो आपके ऊपर किस तरह से आपके लंड को निगले हुए बैठी है। देख क्या रहे हो दिखाओ इसे अपने लंड का दम इस निगोड़ी चूत में अपना लंड उतारो गुंज़न की चूत मारते हुए धर्मवीर उसे चोदता रहा और कहने लगा -मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरी बहू इतनी गरम कुतिया होगी।

गुंज़न - आपके जैसा लंड अगर चूत में उतरेगा तो संस्कारी बहु भी कुतिया बनेगी पापाजी।जिससे कहोगे आप उससे चुद जाऊंगी इस लंड के लिए।आपके मुंह पर अपनी चूत रख कर बैठा करूंगी सुबह को और तब आपको गुड मॉर्निंग बोला करूंगी।आपकी रंडी इस घर में अब सिर्फ चुदने के लिए रहेगी।

धर्मवीर यह सुनकर- मेरी रानी बहू अब तुझे कहीं जाने की जरूरत नहीं है बस तू अपनी गांड और चूत को सजाकर मेरे लोड़े के लिए मेरे बिस्तर पर इंतजार किया करना इस तरह झटके मारते हुए उसकी चूत की ताबड़तोड़ चुदाई चालू थी

धर्मवीर-तुझे चोदने में कितना मजा आ रहा है.........कितनी मक्ख़न जैसी बूर है तेरी..........कितनी....नरम और कितनी गहरी बूर..तेरी.....मेरी...जान......मेरी....रानी......कैसे गच्च गच्च मेरा लंड तेरी बूर में जा रहा है....
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गुंज़न- .हाय ऐसे ही चोदो मुझे.फाड़ डालो बूर मेरी बाबू..............अच्छे से फाड़ो अपने लंड से मेरी बूर को बाबूजी ये सिर्फ आपके मोटे लंड से ही फटेगी बाबू.सिर्फ आपके लंड से.. और तेज तेज चोदो अपनी बेटी को...हाय मजा आ रहा है।

फिर धर्मवीर ने गुंज़न दोबारा से नीचे लिटाया और उसकी गांड के नीचे एक तकिया रख दिया और ऊपर आकर उसकी चूत का हाल देखा ।

धर्मवीर मन ही मन अपने ऊपर गर्व महसूस करने लगा क्योंकि गुंज़न की चूत ऐसी हो गई थी जैसे कोई दो तीन अफ्रीकन नीग्रो से उसका गैंगबैंग हुआ हो।

फिर पूरी ताकत से झटका मारा धर्मवीर ने।दोस्तों गांड के नीचे तकिया रखा होने की वजह से धर्मवीर का लंड जड़ तक उसकी चूत में उतर गया।और उसकी बच्चेदानी से जा टकराया गुंज़न मजे से दोहरी होकर गुर्रा पड़ी पापाजी फाड़ दीजिए प्लीज रंडी की चूत । मत कीजिए कोई रहम।

धर्मवीर- हाँ बहु....और वो शालु भी खूब चुदेगी एक दिन मुझसे....अपने बड़े-बड़े दूध लिए घर में जो "पापा-पापा" करते हुए घुमती है ना....एक दिन पापा पकड़ के उसकी बूर चोद लेंगे...

धर्मवीर अपने होश खो कर अनाप-शनाप बोले जा रहा था जिसका मजा गुंज़न पूरा उठा रही थी.

गुंज़न -बाबुजी...एक दम कसी हुई बूर है शालु की....लंड डालोगे तो कसावट के साथ धीरे-धीरे जायेगा अन्दर....

धर्मवीर- अरे...मेरी शालु की बूर....आह्ह्ह...कितनी भी...आह...कसी हुई...हो..! पापा का मोटा...लंड...पूरी फैला देगा...आह्ह्ह्ह..

गुंज़न- लाज और शर्म में बहुत दिन रहली शालु अब वह तुम्हारे लंड की दीवानी बन के अपनी चूत को दिन-रात आपके लंड से सजाएगी ।

गुंज़न बात ने धर्मवीर के लंड में जोश भर दिया. वो अब पूरे जोश में गुंज़न को चोदने लगता है.ने कसकस के उसकी चूत में घस्से मारे जिस वजह से गुंज़न का पानी निकलने को तैयार हो गया ।और गुंज़न रंडियों की तरह चिल्लाते हुए कहने लगी बाबूजी आपकी कुतिया गयी ।
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धर्मवीर सोचने लगा कि गुंज़न झड़ने वाली है तो उसे भी झड़ना होगा उसने अपने धक्कों की रफ़्तार और तेज कर दी पिस्टन की तरह अंदर बाहर करना स्टार्ट कर दिया लंड।

किसी मशीन की तरह धर्मवीर की कमर ऊपर नीचे इतनी स्पीड से हो रही थी कि बिल्कुल गुंज़न की चूत के छेद में उसका लंड पूरा बाहर आता उतनी ही स्पीड से अंदर जाता ।

गुंज़न चिल्लाते हुए झड़ गयी डाल दीजिए अपना बच्चा मेरी चूत में ।आपके बच्चे को जन्म देना चाहती हूं मैं ।

आपका पानी मेरी चूत में छोड़ दीजिए बना दीजिए मुझे मां एक नहीं दो दो बच्चों की मां बना दीजिए इस घोड़ी को ।
यह घोड़ी अभी तक कुंवारी थी आज मैंने जाना है चूत फाड़ना किसे कहते हैं ।सच में आपने वह कर दिखाया जो आपने कहा था।बना दिया बाबूजी आपने आपने मेरी चूत का भोसड़ा।अभी फटी हुई चूत को लेकर मैं घर में घुमा करूंगी ।

और धर्मवीर इन बातों से इतना गरम हुआ कि उसने अपनी सांसो को खींचकर झटके इतने जबरदस्त धक्का गुंज़न की बूर में मारते हुए झड़ने लगा, धक्का इतना तेज था कि
गुंज़न जोर से चिहुँक पड़ी आह........ बाबू जी........ हाय
एक तेज मोटे गाढ़े वीर्य की गरम गरम पिचकारी उसके लंड से निकलकर गुंज़न की बूर की गहराई में जाकर बच्चेदानी
के मुह पर तेज तेज पड़ने लगी तो गुंज़न की बूर धर्मवीर के गर्म वीर्य से लबालब भर गई और वीर्य बाहर निकलकर गुंज़न की बूर के नीचे से बहता हुआ गांड की दरार में जाता हुआ गुंज़न को बखूबी महसूस होता गया, वीर्य इतना गाढ़ा और गर्म था कि गुंज़न गनगना के हाय हाय करके झड़ने लगी

धर्मवीर कुछ देर तक उसके ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा ।

फिर लंड उसकी चूत से जैसे ही बाहर निकाला तो चूत का छेद उसके लंड की आकार का हो गया और उसकी चूत के छेद में से वीर्य बाहर निकलने लगा । वीर्य बहकर उसकी गांड तक जाने लगा।

दोनों एक जोरदार चुदाई का आनंद लेकर चरम सुख की प्राप्ति के आनंद को आंखें बंद किये एक दूसरे की बाहों में पड़े महसूस करने लगे।
मज़ा आ गया
धर्मवीर का कैरक्टर वास्तव में
सबसे ज्यादा पावरफुल है

और अच्छे rewie को रहना चाहिए
 
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