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कुल मिला कर तनवी में उसे एक भी ऐसा पॉज़िटिव लक्षण नही दिखाई पड़ा जिससे वह उसे अपने घर की बहू बना सकता था और इन्ही विचारो के निष्कर्ष से दीप ने जीत को रिटर्न कॉल नही किया. मगर कभी ना कभी, कोई ना कोई एक्सक्यूस तो उसे देना ही पड़ेगा, जो बाद की बात थी.
"डॅड !! हम घर कब जाएँगे ?" बाल संवारने के पश्चात निम्मी ने अपने पिता को आवाज़ दी.
"क्यों !! घर पर कोई काम है क्या ?" दीप ने उल्टा उससे सवाल पुछा. नहाने के उपरांत उसकी बेटी की खूबसूरती में काफ़ी इज़ाफा हुआ था, घने काले बालो से अपनी दोनो चूचियाँ छुपाये वह बेहद कामुक नज़र आ रही थी.
"नही !! ऐसा तो कोई ख़ास काम नही" निम्मी ने लो वाय्स में जवाब दिया. इस वक़्त उसका पिता बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था नतिजन, वह खुद भी कपड़े पहनने में झिझक महसूस कर रही थी.
"तो फिर क्या बात है, बता मुझे ?" दीप ने दोबारा सवाल किया और बेटी की आँखों के सामने ही उसके नंगे बदन का चक्षु-चोदन करने लगा.
कामवासना से बिल्कुल मुक्त हो चुकी निम्मी को दीप द्वारा खुद को यूँ बेशर्मी से घूर्ना अत्यधिक लज्जा से भरने लगा. वह अपनी पलकें झुकाए इंतज़ार कर रही थी, कब उसे पिता की आग्या मिले और वह अपनी नंगी काया पर शील धारण कर पाए.
"तू कुच्छ परेशान दिख रही है, कोई दिक्कत है क्या ?" दीप मन ही मन मुस्कुरकर बोला. बेटी की लाज भरी अवस्था देख, उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी.
"ना .. नही तो डॅड" निम्मी के लफ़ज़ो में कंपन हुआ. दीप अब भी उसे देख रहा है या नही, चेक करने हेतु उसने अपनी पलकें ऊपर उठाई तो बुरी तरह शरमा गयी. उसका पिता एक-टक उसकी चूत की सुंदरता को निहार रहा था.
"डॅड !! प्लीज़ ऐसे मत देखो" आख़िर-कार निम्मी की ज़ुबान से निकल ही गया "मुझे शरम आ रही है" वह अपने होंठ चबाते हुए बोली.
माना सेक्स के दौरान वह पिता की नज़रो के सामने घंटो नग्न रही थी मगर इस वक़्त ना तो उनके बीच चुदाई चल रही थी और ना ही वह उत्तेजित थी. ऐसे में निम्मी का शर्मसार होना लाज़मी था.
"कैसी शरम बेटी ? मैं कुच्छ समझा नही" दीप ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया और अपनी आँखें बेटी के चेहरे से हटा कर, वापस उसके योनि प्रदेश पर गढ़ा दी.
निम्मी को काटो तो खून नही, वह प्रदर्शनी में रखे किसी पुल्टे के माफिक निष्प्राण होने की कगार पर थी जिसका मुआयना उसका दर्शक-रूपी पिता कर रहा था.
"बस करो डॅड !! मैं अब सह नही पाउन्गि" चूत में उठती सिरहन के वशीभूत निम्मी सिसक कर बोली "मैं कपड़े पहेन रही हूँ" इतना कह कर फॉरन उसने अपने वस्त्र समेटे और दौड़ती हुई बाथरूम में एंटर हो गयी.
"पागल" दीप के ठहाको से मानो पूरा रेस्टरूम गूँज उठा और साथ ही बाथरूम के दरवाज़े से सटी निम्मी भी खुद को मुस्कुराने से रोक ना पाई.
शाम के 5 बज चुके थे और दोनो बाप-बेटी समय के अंतराल से, अलग-अलग साधनो पर सवार हो कर घर के लिए प्रस्थान कर गये
"डॅड !! हम घर कब जाएँगे ?" बाल संवारने के पश्चात निम्मी ने अपने पिता को आवाज़ दी.
"क्यों !! घर पर कोई काम है क्या ?" दीप ने उल्टा उससे सवाल पुछा. नहाने के उपरांत उसकी बेटी की खूबसूरती में काफ़ी इज़ाफा हुआ था, घने काले बालो से अपनी दोनो चूचियाँ छुपाये वह बेहद कामुक नज़र आ रही थी.
"नही !! ऐसा तो कोई ख़ास काम नही" निम्मी ने लो वाय्स में जवाब दिया. इस वक़्त उसका पिता बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था नतिजन, वह खुद भी कपड़े पहनने में झिझक महसूस कर रही थी.
"तो फिर क्या बात है, बता मुझे ?" दीप ने दोबारा सवाल किया और बेटी की आँखों के सामने ही उसके नंगे बदन का चक्षु-चोदन करने लगा.
कामवासना से बिल्कुल मुक्त हो चुकी निम्मी को दीप द्वारा खुद को यूँ बेशर्मी से घूर्ना अत्यधिक लज्जा से भरने लगा. वह अपनी पलकें झुकाए इंतज़ार कर रही थी, कब उसे पिता की आग्या मिले और वह अपनी नंगी काया पर शील धारण कर पाए.
"तू कुच्छ परेशान दिख रही है, कोई दिक्कत है क्या ?" दीप मन ही मन मुस्कुरकर बोला. बेटी की लाज भरी अवस्था देख, उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी.
"ना .. नही तो डॅड" निम्मी के लफ़ज़ो में कंपन हुआ. दीप अब भी उसे देख रहा है या नही, चेक करने हेतु उसने अपनी पलकें ऊपर उठाई तो बुरी तरह शरमा गयी. उसका पिता एक-टक उसकी चूत की सुंदरता को निहार रहा था.
"डॅड !! प्लीज़ ऐसे मत देखो" आख़िर-कार निम्मी की ज़ुबान से निकल ही गया "मुझे शरम आ रही है" वह अपने होंठ चबाते हुए बोली.
माना सेक्स के दौरान वह पिता की नज़रो के सामने घंटो नग्न रही थी मगर इस वक़्त ना तो उनके बीच चुदाई चल रही थी और ना ही वह उत्तेजित थी. ऐसे में निम्मी का शर्मसार होना लाज़मी था.
"कैसी शरम बेटी ? मैं कुच्छ समझा नही" दीप ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया और अपनी आँखें बेटी के चेहरे से हटा कर, वापस उसके योनि प्रदेश पर गढ़ा दी.
निम्मी को काटो तो खून नही, वह प्रदर्शनी में रखे किसी पुल्टे के माफिक निष्प्राण होने की कगार पर थी जिसका मुआयना उसका दर्शक-रूपी पिता कर रहा था.
"बस करो डॅड !! मैं अब सह नही पाउन्गि" चूत में उठती सिरहन के वशीभूत निम्मी सिसक कर बोली "मैं कपड़े पहेन रही हूँ" इतना कह कर फॉरन उसने अपने वस्त्र समेटे और दौड़ती हुई बाथरूम में एंटर हो गयी.
"पागल" दीप के ठहाको से मानो पूरा रेस्टरूम गूँज उठा और साथ ही बाथरूम के दरवाज़े से सटी निम्मी भी खुद को मुस्कुराने से रोक ना पाई.
शाम के 5 बज चुके थे और दोनो बाप-बेटी समय के अंतराल से, अलग-अलग साधनो पर सवार हो कर घर के लिए प्रस्थान कर गये