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Incest पापी परिवार

Lodon Ka Raja

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कुल मिला कर तनवी में उसे एक भी ऐसा पॉज़िटिव लक्षण नही दिखाई पड़ा जिससे वह उसे अपने घर की बहू बना सकता था और इन्ही विचारो के निष्कर्ष से दीप ने जीत को रिटर्न कॉल नही किया. मगर कभी ना कभी, कोई ना कोई एक्सक्यूस तो उसे देना ही पड़ेगा, जो बाद की बात थी.


"डॅड !! हम घर कब जाएँगे ?" बाल संवारने के पश्चात निम्मी ने अपने पिता को आवाज़ दी.


"क्यों !! घर पर कोई काम है क्या ?" दीप ने उल्टा उससे सवाल पुछा. नहाने के उपरांत उसकी बेटी की खूबसूरती में काफ़ी इज़ाफा हुआ था, घने काले बालो से अपनी दोनो चूचियाँ छुपाये वह बेहद कामुक नज़र आ रही थी.


"नही !! ऐसा तो कोई ख़ास काम नही" निम्मी ने लो वाय्स में जवाब दिया. इस वक़्त उसका पिता बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था नतिजन, वह खुद भी कपड़े पहनने में झिझक महसूस कर रही थी.


"तो फिर क्या बात है, बता मुझे ?" दीप ने दोबारा सवाल किया और बेटी की आँखों के सामने ही उसके नंगे बदन का चक्षु-चोदन करने लगा.


कामवासना से बिल्कुल मुक्त हो चुकी निम्मी को दीप द्वारा खुद को यूँ बेशर्मी से घूर्ना अत्यधिक लज्जा से भरने लगा. वह अपनी पलकें झुकाए इंतज़ार कर रही थी, कब उसे पिता की आग्या मिले और वह अपनी नंगी काया पर शील धारण कर पाए.


"तू कुच्छ परेशान दिख रही है, कोई दिक्कत है क्या ?" दीप मन ही मन मुस्कुरकर बोला. बेटी की लाज भरी अवस्था देख, उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी.


"ना .. नही तो डॅड" निम्मी के लफ़ज़ो में कंपन हुआ. दीप अब भी उसे देख रहा है या नही, चेक करने हेतु उसने अपनी पलकें ऊपर उठाई तो बुरी तरह शरमा गयी. उसका पिता एक-टक उसकी चूत की सुंदरता को निहार रहा था.


"डॅड !! प्लीज़ ऐसे मत देखो" आख़िर-कार निम्मी की ज़ुबान से निकल ही गया "मुझे शरम आ रही है" वह अपने होंठ चबाते हुए बोली.


माना सेक्स के दौरान वह पिता की नज़रो के सामने घंटो नग्न रही थी मगर इस वक़्त ना तो उनके बीच चुदाई चल रही थी और ना ही वह उत्तेजित थी. ऐसे में निम्मी का शर्मसार होना लाज़मी था.


"कैसी शरम बेटी ? मैं कुच्छ समझा नही" दीप ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया और अपनी आँखें बेटी के चेहरे से हटा कर, वापस उसके योनि प्रदेश पर गढ़ा दी.


निम्मी को काटो तो खून नही, वह प्रदर्शनी में रखे किसी पुल्टे के माफिक निष्प्राण होने की कगार पर थी जिसका मुआयना उसका दर्शक-रूपी पिता कर रहा था.


"बस करो डॅड !! मैं अब सह नही पाउन्गि" चूत में उठती सिरहन के वशीभूत निम्मी सिसक कर बोली "मैं कपड़े पहेन रही हूँ" इतना कह कर फॉरन उसने अपने वस्त्र समेटे और दौड़ती हुई बाथरूम में एंटर हो गयी.


"पागल" दीप के ठहाको से मानो पूरा रेस्टरूम गूँज उठा और साथ ही बाथरूम के दरवाज़े से सटी निम्मी भी खुद को मुस्कुराने से रोक ना पाई.


शाम के 5 बज चुके थे और दोनो बाप-बेटी समय के अंतराल से, अलग-अलग साधनो पर सवार हो कर घर के लिए प्रस्थान कर गये
 

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पापी परिवार--58



निम्मी को टॅक्सी हाइयर करवा कर दीप ने उसे खुद से पहले घर के लिए रवाना कर दिया और अपनी कार शिवानी के गर्ल'स हॉस्टिल की तरफ मोड़ ली, काफ़ी दिन बीत चुके थे होने वाली बड़ी बहू का दीदार किए. हॉस्टिल से कुच्छ 50 मीटर दूर उसने अपनी कार पार्क की और कॉल के ज़रिए शिवानी को बाहर आने का निमंत्रण दिया.


लगभग 10 मिनिट उपरांत शिवानी हॉस्टिल से बाहर निकली और सीधे अपने ससुर की कार में तशरीफ़ रख ली, वह खुद बेचैन थी दीप से मिलने को.


"अब याद आई आप को मेरी" पिता तुल्य ससुर के चेहरे को देखे बिना ही शिवानी ने शिक़ायत की. इस वक़्त उसने नारंगी सलवार-कुरती पहेन रखी थी और दीप के सम्मान हेतु सफेद दुपट्टे से अपना शीश ढँक रखा था.


"शिवानी !! मैं ज़रूरी काम में व्यस्त था, तभी तुमसे मिलने नही नही आ सका" दीप ने नॉर्मल टोन में उत्तर दिया "अभी यहाँ से गुज़र रहा था, सोचा मिलता चलु" कह कर उसने शिवानी के मायूस चेहरे पर अपनी नज़र डाली.


"पिता जी !! बहुत सताते हो आप हमे" फॉरन वा भावुक हो उठी और दीप के गले में बाहें डाल कर उसकी चौड़ी छाती से लिपट गयी.


"मेरी बहू की आँखों में आँसू अच्छे नही लगते" दीप ने उसकी पीठ पर सांत्वना की थपकी देते हुए कहा. शिवानी की पलकों से झड़े मोती निरंतर उसके ससुर का कंधा भिगो रहे थे और हिचकियाँ धड़कन की रफ़्तार को गति प्रदान कर रही थी.


"चुप हो जाओ शिवानी, कैसे बच्चो जैसे रोती हो" दीप ने उसे अपनी बाहों से प्रथक किया और उसके सुर्ख लाल गालो को अपने हाथो के दरमियाँ रख कर उसे प्यार से पुच्कारा.


"मुझे लगा !! आप मुझे भूल गये" शिवानी सिसकी "शरम-वश आप को कॉल भी नही पाई" अपनी कर्ज़रारी आँखों के जाम पिलाते हुए उसने दीप को मंत्रमुग्ध कर दिया था.


वह तनवी से ज़्यादा सुंदर व गौर-वरण नही थी मगर उसकी सादगी, उसका निर्मल स्वाभाव, हृदयस्पर्शी भोलापन इत्यादि ऐसे अन्य दर्ज़नो गुण थे जो उसे तनवी से बिल्कुल जुदा करते और तभी दीप ने उसे अपने बेटे रघु के लिए चुना था.


"ह्म्‍म्म !! शायद मैं तुम्हे भूल गया था" दीप ने अचानक वज्रपात किया और शिवानी का मूँह हैरत से खुला रह गया. उसे आशा ना थी, दीप इस तरह के वाक्य का प्रयोग भी कभी करेगा.


"मुझे याद थी तो सिर्फ़ मेरी प्रेमिका और होने वाली बहू, बाकी मैं किसी और शिवानी को नही जानता" वह मुस्कुराया. यह तो सिर्फ़ एक ज़रिया मात्र था अपनी प्रेयसी के चेहरे को और भी ज़्यादा खूबसूरत बनाने का.


शिवानी के होंठ फड़फड़ा उठे और अत्यधिक प्रसन्नता से अभिभूत उसने दीप के होंठो का हल्का सा, एहसास से भरपूर चुंबन ले लिया और फिर फॉरन अपने उतावलेपन पर लजा गयी.


"मन नही भरा हो तो मेरे ऑफीस चले, वहाँ जी भर कर प्यार कर लेना" दीप ने उसे छेड़ा और डराने के उद्देश्य से कार का सेल्फ़ स्टार्ट कर दिया
 

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"आप के लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूँ पिता जी, फिर मेरा यह शरीर तो पहले से ही आप का गुलाम है. चलिए !! आप जहाँ ले जाना चाहें, मैं वहाँ चलने को तैयार हूँ" शिवानी के समर्पण को देख दीप गद-गद हो उठा, मन की आंतरिक खुशी ने उसे रघु के भविश्य की चिंता से मुक्त कर दिया था.


"गुलाम तुम मेरी नही बहू बल्कि मैं तुम्हारा हो गया हूँ. हमारा सौभाग्य है जो तुम जैसी मर्मस्पर्शी लड़की अपने सारे सुख छोड़, मेरे बीमार बेटे के दुख में शरीक होने उसकी पत्नी बन कर हमारे घर आ रही है" दीप के हर शब्द ने उसका दर्द बयान किया, हलाकि अब भी वह संतुष्ट नही था कि शिवानी रघु से शादी कर अपना भावी जीवन नष्ट कर ले, मगर कोई चारा भी तो नही था.


कुच्छ देर तक कार में सन्नाटे का आलम रहा और फिर शिवानी ने चुप्पी तोड़ी.


"नामिता से आप ने मेरे विषय में चर्चा की ?" शिवानी ने प्रश्न किया "और क्या मा जी लौट आई पुणे से ?" उसने पुछा.


"तुम्हारी सासू मा रघु को साथ ले कर कल ही लौटी हैं मगर नामिता से मैने तुम्हारे विषय में कोई बात नही की, पता नही उसे कैसे समझा पाउन्गा ?" मुद्दा अति-गंभीर था और दीप सोचने पर विवश, हलाकी वह कयि बार विचार-मग्न हुआ था किंतु अब तक किसी भी समाधान से पूर्ण वंचित.


"फिर कैसे होगा पिता जी ? मुझे भी कोई राह नज़र नही आ रही" शिवानी चिंतित लहजे में बोली "वह मेरी दोस्त है तो मुझे ऑर ज़्यादा घबराहट होती है" उसका धैर्य जवाब दे रहा था.


"नामिता के साथ मुझे तुम्हारे माता-पिता की फिकर भी सताती है बहू, बिना उनकी मर्ज़ी के शादी जैसा बड़ा फ़ैसला तुम अकेले कैसे ले सकती हो ?" दीप का मश्तिश्क उलझता जा रहा था.


"मेरे माता-पिता मुझसे नाराज़ हैं क्यों कि मैं उनसे लड़-झगड़ कर मुंबई आई थी और घर की दहलीज़ लाँघने से पूर्व उन्होने मुझे सूचित भी किया कि मेरा वापस वहाँ लौटना वर्जित होगा. अब तो उनसे बात हुए भी लंबा असरा बीत गया, शायद वे मुझे भूल चुके हैं" अतीत की यादें ताज़ा करते हुए शिवानी ने दीप की एक मुश्क़िल तो हल कर दी लेकिन उससे भी कहीं बड़ी समस्या निम्मी के रूप में उनके सामने डट कर खड़ी थी और जिसके पार निकलना वाकाई आसान नही था.
 

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"परेशान ना हो बहू !! मैं जल्द ही कोई ना कोई रास्ता निकाल लूँगा, बस तुम अपना ख़याल रखना" आश्वासन दे कर दीप ने उसके माथे का गहरा चुंबन लिया और विदाई स्वरूप 10 हज़ार उसके हाथ में रख कर वहाँ से चला गया.


सड़क पर मूक खड़ी शिवानी कभी उसकी कार को देखती तो कभी हाथ में पकड़ी रकम को.



अपने कमरे के बिस्तर पर लेटी निक्की आज बहुत खुश है, एक हाथ से भाई द्वारा तोहफे में मिली कर्ध्नी पकड़े और दूसरे से अपनी कुँवारी चूत सहलाती वह किसी सपने को सच होने जैसा महसूस करती है.


अत्यधिक प्रसन्नता में उसने दोपहर का खाना तक नही खाया था और सही मायने में उसकी भूक पेट से नीचे खिसक कर, उसकी चूत के अंदर समा चुकी थी.


"भाई का पेनिस कितना बड़ा है ?" पिच्छले 3 घंटे से वह इसके अलावा कुच्छ और सोच सकने में असमर्थ थी और जब-जब उसकी आँखों के सामने मास्टरबेट करते निकुंज की छवि उभरती, उसकी कुँवारी चूत से रति-रस का अखंड सैलाब उमड़ कर बाहर छलकने लगता.


अपने भाई के गाढ़े वीर्य का स्वाद और उसके लंड की मर्दानी मादक सुगंध को भुला पाना अब उसके बस में नही था और शायद वह भूलना भी नही चाहती थी.


"बेटी निक्की !! आजा चाइ पी ले" अचानक से उसके उत्साह में खलल करती उसकी मा की आवाज़, उसके कानो में गूँजी और घबरा कर, जैसे उसकी चोरी पड़की गयी हो. वह फॉरन बिस्तर पर उठ कर बैठ गयी.


"आ .. आई मॉम" उसने लड़खड़ाते स्वर में जवाब दिया और इसे निक्की के दिल ओ दिमाग़ में उसके माता-पिता का ख़ौफ़ ही माना जाएगा, जो बंद कमरे में भी उसने झटके से अपने लोवर को, शीघ्रता से अपनी कमर पर चढ़ा लिया था.


"मोम कब आई ?" अपनी साँसों की बढ़ी रफ़्तार को संहालते हुए उसने खुद से सवाल पुछा और दीवार घड़ी पर नज़र पड़ते ही वह दोबारा चौंक गयी "ओ तेरी !! 6 बज गये. यानी मैं 1 बजे से अब तक ..." इसके आगे का कथन उसे अधूरा ही छोड़ना पड़ा और लाज से उसका चेहरा लाल हो उठा.


"निक्की !! चाइ ठंडी हो रही है बेटी ?" कम्मो ने इस बार पुकारने के साथ ही, उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक भी दी "बस मोम 2 मिनिट" संक्षेप में उत्तर देने के पश्चात निक्की बिजली की गति से बेड से नीचे उतरी और कर्ध्नी छुपाने के लिए उसने वॉर्डरोब खोला.


"कपड़े बदलू या नही ?" सुबह की ड्रेस उसने अब तक चेंज नही की थी और अब वक़्त भी नही था, जो वो चेंज कर पाती मगर गीली कच्छि का कपड़ा बिल्कुल उसकी चूत के मुख से चिपका हुआ था और इससे उसे अजीब सी फीलिंग महसूस हो रही थी "चाइ पी कर चेंज कर लूँगी" वह दौड़ती हुई कमरे से बाहर निकल गयी.


हॉल में उसकी मा और भाई निकुंज पहले से मौजूद थे, निक्की ने बिना कोई बात-चीत किए टेबल से अपनी चाइ का कप उठाया और वहीं खड़ी हो कर पीने लगी.


सुबह की वेशभूषा, बिखरे बाल, कपड़ो की सिलवटें, चेहरे पर बेचैनी अन्य ऐसे काई बदलाव थे जो रोज़ की अपेक्षा उसकी मा को उसमें नज़र आ रहे थे और तभी निक्की की आँखें अपनी मा की आँखों से जा टकराई.
 

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"ये क्या है निक्की ?" कम्मो ने पुछा. हलाकी उसकी टोन एक दम नॉर्मल थी मगर अंजाने डर से जैसे निक्की को साँप सूंघ गया था.


"जब इंसान के दिल में चोर हो तो घूर्ने वाला हर शक्स उसे पोलीस वाला नज़र आता है" डरपोक निक्की की हालत पहले से पतली थी, तो फॉरन दिमाग़ ने भी उट-पटांग कयास लगाने शुरू कर दिए.


"कहीं गीली पैंटी का असर मेरे लोवर पर तो नही हुआ, जो मोम ने देख लिया हो ?" इतना सोचते ही निम्मी की गान्ड फॅट गयी. उस वक़्त चेक करने के लिए वह नीचे तो नही झुक सकती थी मगर धड़कते दिल के साथ उसने अपनी मा को ज़रूर देखा.


"बोल ना" कम्मो ने दोबारा वही सवाल दोहराया तो निम्मी श्योर हो गयी, उसकी मा ने उसे रंगे हाथो पकड़ लिया है.


निकुंज जो खुद भी वहीं मौजूद था. निक्की के सबसे क्लोज़ होने के नाते वह समझ गया, उसकी बहेन बे-फालतू में हड़बड़ा रही है और कहीं बेवकूफी में कम्मो के सामने कुच्छ उल्टा-सीधा ना बक दे "बेटा !! अभी तू सो कर उठी है ना ?" वह बीच में बोल पड़ा.


"ह .. हां भाई !! जस्ट अभी" निम्मी बुदबुदाई "तो पागल !! मोम भी तो वही पुच्छ रही हैं, जवाब क्यों नही देती ?" भाई ने मुस्कुरा कर कहा तो बेहन को भी आत्मबल मिला.


"थकान के कारण नींद आ गयी थी मोम" यह जवाब निक्की ने अपनी मा की ओर देखते हुए दिया और फिर जहाँ पुष्टि खुद निकुंज ने कर दी हो, तो कम्मो के लिए उसे मान जाना ही सर्वोपरि था.


"जा !! चाइ पी कर नहा लेना. देख कैसी गंदी हालत बना रखी है" कम्मो ने अपनी फिकर जाहिर की, माना पहले उसे भाई-बहेन पर अनुमानित शक़ था मगर निकुंज के प्रेम में पड़ कर वह बीते सभी हादसे भूक चुकी थी.


तीनो शाम की चाइ का लुफ्ट उठा रहे थे और तभी निम्मी का आगमन हुआ. आते ही वह सोफे पर, अपनी मा के बगल में ढेर हो गयी.


लगातार दो बार पिता से चुदने के पश्चात उसकी चूत पूरी तरह खुल चुकी थी और चलने में भी उसे हल्की-हल्की पीड़ा का अनुभव हो रहा था मगर चेहरे पर वह ऐसे भाव ला रही थी जैसे आज कॉलेज में उसने बहुत पढ़ाई की हो, बेहद थक़ गयी हो.


"मोम" बाहें कम्मो के गले में डाल, उसने मा के गाल का रसीला चुंबन लिया "मेरी चाइ कहाँ है ?" कह कर उसके आँचल में ही सुस्ताने लगी.


"तू इतना कब से पढ़ने लगी, जो इस कदर थक़ गयी ?" मा का हृदय था, तो कैसे उसे अपनी पुत्री पर प्यार ना आता. बेटी के बालो को सहलाते हुए उसने पुछा.


"नही मोम !! अब से मन लगा कर पढ़ूंगी और जो सब्जेक्ट मैने आज से स्टार्ट किया है, श्योर हूँ उसमे तो मुझे 100 आउट ऑफ 100 ही मिलेंगे" निम्मी मन ही मन मुस्कुराने लगी.


शाम बीती, रात आई और दीप को छोड़ कर घर के सारे सदस्य अपने-अपने कामो में व्यस्त हो चुके थे.
 

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"चावला निवास" के समानांतर "रॉय विला" वह दूसरा घर है, जहाँ बाप-बेटी मनमर्ज़ी से अपने पवित्र रिश्ते को दाग-दार करने से नही चूकते और अभी दोपहर के 1 बजे वहाँ ऐसा ही आलम था.


महज एक छोटी सी पैंटी पहने तनवी, किचन में आटा गूँथ रही थी और उसके ठीक पिछे खड़ा उसका नग्न पिता जीत, अपनी पुत्री के स्तनो का बुरी तरह मर्दन कर रहा था.


"आहह डॅडी" तनवी अपने मम्मे निचोड़े जाने की तकलीफ़ से त्रस्त हो कर सिसकी "क्या इस तरह सीखोगे आटा गूंदना ?" पिता के विशाल लंड को अपने चूतडो की दरार में रगड़ता महसूस कर उसने भी अपनी गान्ड पिछे धकेलते हुए पुछा.


"और नही तो क्या !! कल को तू ससुराल चली जाएगी, फिर तो मुझे खुद ही आता गूंदना पड़ेगा ना. इस लिए अभी से प्रेक्टिस कर रहा हूँ" जीत ने बेटी की गोल मटोल चूचियों पर अपने हाथ की ग्रिप कसते हुए कहा और साथ ही तनवी की सुराही-दार गर्दन पर स्माल-स्माल एरॉटिक किस्सेस करने लगा.


"मेरे बूब्स को आटे का नाम देते हुए आप को शरम नही आ रही डॅडी ?" अपना चेहरा पिछे घुमा कर पिता के होंठो को चूमते हुए तनवी ने सवाल किया. काफ़ी देर से चल रही इस छेड़-छाड़ के नतीजन वह अति-कामुत्तेजित चुकी थी.


"अपनी बीवी से कैसी शरम ? मैं तो अभी उसकी गान्ड मारने वाला हूँ" जीत ज़ोरो से हंसते हुए बोला. उसका सख़्त लंड पैंटी के ऊपर से निरंतर ठोकर देते हुए बेटी के चूतडो की गहरी दरार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था. जैसे कच्छि उतारने से पूर्व ही उसे फाड़ कर, गान्ड के छेद में घुस जाएगा.


"अच्छा जी !! तो जाओ अपनी बीवी की गान्ड मारो, हम आप की बीवी थोड़े ही हैं ?" तनवी ने भी शरारत से कहा, गान्ड के अंदर लंड का स्वाद चखे उसे काफ़ी दिन बीत चुके थे और अपने पिता के मूँह से यह खुश-खबरी सुनते ही उसके गुदा-द्वार में सनसनी मचना शुरू हो चुकी थी.


"बीवी नही तो क्या हुआ, बीवी की सौतन तो है और यह सौतन मुझे मेरी बीवी से कहीं ज़्यादा मज़े देती है. सौतन मेडम !! बोलो मरवाओगी अपनी गान्ड ?" बेटी के मम्मो की तने निपल उखाड़ देने वाले अंदाज़ में खीचते हुए जीत ने पुछा.


"आई डॅडी" तनवी चीख उठी. पिता के इसी निर्दयी स्वाभाव की वह कायल थी और बेटी की पीड़ा को उसकी अनुमति मान लेना जीत की पुरानी आदत.


"मगर आपकी सौतन की एक शर्त है और वादे के पश्चात ही वह आप को अपनी गान्ड मारने देगी, वरना लंड हिला कर काम चला लो" तनवी ने माँग रखी और जीत ने फॉरन हां में अपनी स्वीकृति दे दी "बोल क्या शर्त है ?" अक्सर बेटी की शर्तें पिता को सेक्स का अनोखा मज़ा प्रदान किया करती थी और तभी वह इनकार नही कर पाया.


"मेरी गान्ड मारने के दौरान आप मेरे होने वाले ससुर को कॉल करोगे और यह शादी जल्दी हो सके ऐसा प्रयास भी" तनवी ने आँख मारी तो जीत भी मुस्कुराने लगा.


"मतलब तू अपनी आहें ससुर साहेब को सुनवाना चाहती है ?" जीत को ज़्यादा हैरत नही हुई, बेटी तनवी और दोस्त दीप के बीच चले ब्लोवजोब का व्रतांत वह सुन चुका था "और अपनी दर्द भरी चीखें भी डॅडी" वह जवाब में बोली.


जीत बेडरूम से सेल लेकर वापस लौटा तो देखा तनवी अपनी कच्छि उतार चुकी है और पिता की खातिर अपने चूतड़ कुच्छ ज़्यादा ही उभार रखें हैं.


पिता ने एक पल का समय नष्ट नही होने दिया और बेटी के ठीक पीछे फर्श पर बैठ कर उसके गुदाज़ चूतड़ चाटने लगा "डॅडी !! छेद को चाटो, ज़ोर-ज़ोर से" तनवी की बेशर्म माँगे बढ़ती जा रही थी.


हाथो के ज़ोर से चूतड़ के पाट विपरीत दिशा में फैलाते ही जीत गुदा-द्वार के घेरे पर अपनी लंबी जीभ, गोल-गोल आकृति में घुमाने लगा और इस अदभुत आनंद के प्रभाव से मचल कर, कामलूलोप तनवी के आटे से सने हाथ भी स्वतः उसकी चूत के होंठ मरोड़ने नीचे पहुच गये.


"उम्म्म" बेटी ने कामुक अंगड़ाई ली "डॅडी !! होंठो से चूसो वहाँ, दांतो से हौले-हौले काटो ना" अपनी चूत का सूजा भंगूर मसलती तनवी बिन पानी की मछली की तरह तड़प रही थी.


जीत ने कोई 10 मिनिट तक बेटी के गुदा-द्वार को अपने मूँह की मदद से मुलायम बनाया और इसी दौरान तनवी एक बार झाड़ चुकी थी.


"काफ़ी चिकना है. रहने दे मत चूस " तनवी की चूत का झड़ना ठीक जीत के लंड पर हुआ था तो बेटी द्वारा लंड चूसने की अश्लील गुज़ारिश जीत ने ठुकरा दी.
 

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तत-पश्चात उसे फर्श पर घोड़ी बना कर जीत ने अपने दोस्त दीप को कॉल मिलाया और जैसे ही कॉल कनेक्ट हुआ "अहह" तनवी की चीख किचन में गूँज उठी. वजह, पिता ने पुरजोर ताक़त से एक ही झटके में अपना संपूर्ण लंड बेटी के गुदा-द्वार के अंदर पेल दिया था.


"उफ़फ्फ़ !! रुकना मत डॅडी, बस चोदो और सिर्फ़ चोदो" अत्यधिक पीड़ा महसूस करने के बावजूद तनवी ने ऐसा निवेदन किया और जीत ने ताबड़तोड़ झटको की झड़ी लगा दी.


यह चौथा कॉल था जो उसके दोस्त ने पिक नही किया और ऐसे ही सातवे ट्राइ के बाद जीत ने सेल छोड़ कर बेटी की गान्ड पर अपना ध्यान केंद्रित करने का फ़ैसला किया.


"ज़रूर तेरा ससुर भी कहीं चुदाई में व्यस्त होगा, फिकर ना कर मैं उससे बात कर लूँगा" हँसते हुए जीत ने बेटी के झूलते मम्मे पकड़ लिए और धक्को की रफ़्तार के साथ उन्हे दबाने लगा.


लंड की मोटाई सामान्य से अधिक होने के कारण तनवी की गान्ड का अन्द्रूनि माँस, बुरी तरह रगड़ खा रहा था और जिसके प्रभाव से कुच्छ ही क्षानो में जीत गुदा-द्वार के अंतिम छोर पर ही ढेर हो गया.




देर रात दीप घर पहुचने की जगह, वापस अपने ऑफीस लौट आया. प्रतिदिन की भाँति नशे में धुत्त परंतु आज तो उसके पाव कुच्छ ज़्यादा ही लड़खड़ा रहे हैं.


शायद तनवी रूपी टेन्षन से निजात पाने के लिए उसने जी भर कर शराब पी थी.


पूरे "चावला निवास" में अंधकार फैला हुआ है मगर कमरो में मौजूद हर शक्स नींद से कोसो दूर.


जहाँ कम्मो और निक्की, अपने बेटे व भाई के समक्ष जाने को मचल रहे थे वहीं बाथरूम में स्टूल पर बैठी निम्मी, अपनी फटी चूत के उपचार हेतु उसे गरम पानी से सेंक रही थी.


निकुंज ने शाम की चाइ के दौरान हुए तमाशे के मद्देनज़र, निक्की को फाइनल वॉर्निंग दी थी "अब से वह भूल कर भी उसके आस-पास नही मंडराएगी. घर में उन्हे खुद पर सैयम रखना होगा भले बाहर वे कुच्छ भी करें, कोई रोक-टोक नही रहेगी"


कम्मो अपने छोटे बेटे से मिलने को बहुत बेचैन थी लेकिन दीप अब तक घर लौट कर नही आया था. रिस्क लेना बेवकूफी होगी, यह सोच कर उसने अपनी इक्षा का त्याग किया और सोने की व्यर्थ कोशिशो में जुट गयी.


हलाकी वह रघु के बिल्कुल समीप लेटी थी मगर आत्म-ग्लानि के चलते उसने अपनी काम-अग्नि पर काबू कर रखा था.


निम्मी आज मस्त है, उसे ना तो अपने कमरे से बाहर जाना था ना ही किसी बात कर गम. वा अच्छे से जानती है, उसका चोदु पिता उस पर पूर्ण-रूप से लट्टू हो चुका है. देर-सवेर कैसे ना कैसे वा उसके विशाल लौडे का स्वाद चख़्ती ही रहेगी और फिर वर्तमान का कोटा तो पूरा हो ही चुका था.


.


अगले दिन सुबह 5:30 बजे निकुंज के कमरे का गेट खुला और हाथ में एक पोलिबॅग थामे वह चुपके से घर के बाहर निकल गया.


उस वक़्त ना तो निक्की की आँख खुल पाई थी और ना ही कम्मो की.
 

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बीती रात डिन्नर के दौरान उसकी मा ने एलान किया था "कल सुबह से मैं भी तुम दोनो के साथ घूमने जाया करूँगी" मा की मौजूदगी में निकुंज अपनी बहेन के साथ ना तो प्यार भरी बातें कर पाता और ना कोई विशेष छेड़-छाड़, इस लिए वह अकेला ही निकल पड़ा था.


कार का सेल्फ़ स्टार्ट करते वक़्त वह विचार-मग्न था और जैसे ही उसने अपनी गहेन सोच पर विराम पाया, अपने आप उसके होंठो पर कुटिल मुस्कान तैरने लगी. तत-पश्चात गियर डालने के उपरांत उसकी कार तेज़ी से मंज़िल की ओर प्रस्थान कर गयी.


"बोरीवली का सेक्टर-19 तो यही है" कोई 30 मिनिट से वह ड्राइव कर रहा था "यहा से कहाँ लेना है ?" खुद से प्रश्न कर उसने अपनी आँखें मूंदी और जल्द ही उसे उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया "दाएँ से तीसरी बिल्डिंग होनी चाहिए" वह उसी दिशा की ओर मूड गया.


"ह्म्म !! कुच्छ भी तो नही बदला यहाँ" कार से बाहर निकल कर उसने अतीत की बीती यादों पर गौर फ़रमाया और इसके फॉरन बाद उस मुल्टिस्टोरी बिल्डिंग के 5थ फ्लोर पर अपनी नज़र गढ़ा दी.


"नीमा आंटी !! आख़िर-कार आप का दीवाना आप से मिलने आ ही गया" कहते हुए वह लिफ्ट के ज़रिए फ्लॅट न. 503 के सामने पहुचा और बेल बजा दी.


नीमा के घर जाने का प्लान निकुंज ने बीती रात बनाया था. सुबह के वक़्त घूमने का बहाना उस पर किसी प्रकार का कोई भी शक़ पैदा नही करता.


आज-कल के बच्चों की दिन-चर्या के क्या कहने, खुद अपनी छोटी बहें निम्मी के बिगड़े शेड्यूल से वह पूरी तरह वाकिफ़ था. आंटी की चुदाई ना सही कम से कम उनकी नज़र में अच्छा बच्चा तो बना ही जा सकता है.


ऐसा प्लान कर वह सुबह की पहली किरण के साथ, नीमा के फ्लॅट के सामने खड़ा था.


"लगता है आंटी का शेड्यूल भी खराब है या कहीं मैं ज़्यादा जल्दी तो नही आ गया ?" घंटी बजाने के काफ़ी देर बाद जब गेट नही खुला तो निकुंज ने अपने सेल में टाइम देखा.


"यार !! 6:30 होने वाले हैं" उसके मूँह से यह शब्द फूटे ही थे और तभी नीमा ने अपनी उनीदी आँखों से गेट खोल दिया.


"नमस्ते आंटी" फ्लॅट की मालकिन को चौंकाते हुए वह मुस्कुराया और नीमा हैरानी से उसे वहाँ खड़ा देख, अपने अध खुले नयन ज़ोर-ज़ोर से मलने लगी.


"मैने कहा जी !! नमस्ते" अपनी उपस्थिति का प्रमाण देते हुए निकुंज ने दोबारा उसे आवाज़ दी.


"ओह निकुंज !! आओ-आओ, अंदर आओ" कहती हुई वह दरवाज़े से पिछे हटी और निकुंज उसके फ्लॅट में प्रवेश कर गया.


"माफी चाहूँगा आंटी जी !! मैने खमोखा आप की और बच्चो की नींद खराब कर दी" फ्लॅट के अंदर अंधेरा कायम देख निकुंज बोला.


"नही-नही बेटा !! ऐसी कोई बात नही. मैं बस उठने ही वाली थी" आस पड़ोस के लोगो की नज़र निकुंज पर ना पड़ जाए इस लिए फॉरन नीमा ने मैन गेट की कड़ी लगा दी.


घर पर अकेली होने के कारण बीती रात वा नंगी सोई थी और जब घंटी की तेज़ ध्वनि ने उसे, उसकी नग्नता से परिचित करवाया तो जल्द बाज़ी में व/ओ अंडरगार्मेंट्स, एक नी लेंग्थ महरूण नाइटी पहेन कर वह दरवाज़ा खोलने चली आई थी.


प्रथम मुलाक़ात के अगले ही दिन निकुंज उसके घर पहुच जाएगा, यह नीमा की कल्पना से बिल्कुल परे था "कुच्छ तो गड़बड़ है" मन में ऐसे काई विचारों से उलझती वह निकुंज के समीप आ गयी.


"अरे बेटा खड़े क्यों हो, बैठो ना. मैं लाइट ऑन करती हूँ" वह सोफे की ओर इशारा कर बोली. हलाकी सूर्या-देव का आगमन काफ़ी देर पहले हो चुका था मगर खिड़कियों पर चढ़े, मोटे पर्दों की वजह से घर में पूर्ण अंधकार था.


"ओ भेन्चो" लाइट ऑन होते ही निकुंज के मूँह से निकलते-निकते बचा "कितना गदराया माल हैं, मेरी नीमा आंटी" महरूण नी लेंग्थ नाइटी पहने खड़ी नीमा का लुक बेहद एरॉटिक था.
 

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निकुंज की कमीनी आँखें चन्द सेकेंड्स का वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाते हुए अपनी आंटी की छर्हरि काया का काफ़ी हद्द तक अनुमान लगा लेती हैं "इतमीनान रख, फ्यूचर में बहुत कुच्छ देखने मिलेगा" और अपने उतावले मन को सबर रखने की सलाह दे कर वह फॉरन दीवार पर चिपकी पैंटिंग निहारने लगता है.


लाइट ऑन करने के उपरांत नीमा भी अपनी तिर्छि निगाहो से निकुंज की ओर देखती है लेकिन वह उसकी नजरो को कमरे की सुंदरता में खोया पाती है "कम्मो ने ठीक कहा था, ये तो वाकाई बहुत सीधा है. वरना पराई औरत को ऐसे कपड़े में देख कर तो किसी भी मर्द का बुरा हाल हो जाए"


"बेटा !! मम्मी कैसी हैं ?" निकुंज का ध्यान अपनी ओर खीचने के उद्देश्य से नीमा ने सवाल किया और बड़ी मस्तानी चाल चलती हुई ठीक उसके सामने आ कर खड़ी हो जाती है.


"बस ऊपरवाले की कृपा है" निकुंज कम स्याना नही था, वह ऐसे रिक्ट करता है, जैसे नीमा के रूप-स्वरूप का तनिक भी जादू उस पर ना चल पाया हो.


"बच्चे सो रहे हैं क्या आंटी ?" निकुंज ने नॉर्मल टोन में पुछा. यह जानते हुए भी कि नीमा उसके बेहद समीप खड़ी है, उसकी आँखों ने ऊपर उठने की कोई कोशिश नही की.


काफ़ी दीनो से घटित हो रही घटनाओ के प्रभाव से निकुंज ने खुद पर सैयम की मजबूत पकड़ बना ली थी और अभी वह उसी का भरपूर उपयोग, नीमा जैसी सुंदरी को इग्नोर करने में कर रहा था.


"मैं भी कितनी पागल हूँ !! एक अरसे बाद घर आए हो और मैने पानी तक नही पुछा" बच्चो वाले सवाल को पेंडिंग रख नीमा फ्रिड्ज की दिशा में जाती हुई बोली.


"ऐसी कोई बात नही आंटी !! अकटुल्ली सेक्टर-16 में एक दोस्त के घर मिलने गया था और लौट-ते वक़्त याद आया सेक्टर-19 में आप रहती हो. बस आ गया सुबह-सुबह परेशान करने" अपने आगमन का झूठा व्रतांत सुनाते हुए वह नीमा के ह्रष्ट-पुष्ट चूतडो का लुफ्त उठाता है, जो इस वक़्त काफ़ी झुक कर फ्रिड्ज से बोतल निकाल रही थी.


"निकुंज !! ठंडा पानी नुकसान तो नही करेगा ना ?" बीते रोज जिस तरह नीमा की अचूक चाल का शिकार कम्मो हुई थी ठीक उसी प्रकार आज निकुंज भी हो गया.


जैसे ही नीमा अपनी गर्दन पिछे घुमा कर निकुंज से सवाल करती है, वह उसे, उसके चूतडो को घूरता नज़र आता है और यह देख फॉरन नीमा के होंठो पर मुस्कान फैल जाती है.


"न .. नही तो आंटी, ठंडा पानी चलेगा" पकड़े जाने के डर से निकुंज की आवाज़ हक़लाने लगी और उसे अपने चुतियापे पर अफ़सोस होता है. सीधेपन का जो खेल अब तक वह अपनी आंटी के साथ खेल रहा था, एक पल में उसकी कमान नीमा के हाथो में जा चुकी थी.


"लो बेटा पानी पियो" नीमा ने ग्लास उसकी की ओर बढ़ा कर कहा, निकुंज का शर्मसार चेहरा देखने में उसे बहुत मज़ा आ रहा था.


"निकुंज !! मैं फ्रेश हो कर आती हूँ, तुम चाहो तब तक फ्लॅट देख सकते हो, या जो तुम्हारा मन करे मगर प्लीज़ बाल्कनी की ओर मत जाना" इतना कह कर नीमा स्माइल देती हुई अपने बेडरूम की तरफ मूड जाती है.


"यह मैने क्या कर दिया" क्रोध में भर कर निकुंज अपने गाल पर चपत लगता है और यह नीमा बेडरूम के दरवाज़े के पिछे से छुप कर देख रही थी.


"बड़ा अक़ल्मंद बन रहा था. बच्चू !! आज मैं तुझे बताउन्गि, नीमा कितनी कुत्ति चीज़ है" मन में ऐसा प्रण कर वह बाथरूम के अंदर एंटर हो जाती है.


कुच्छ देर दिमागी घोड़े दौड़ाने के उपरांत निकुंज को राह नज़र आई "यदि बच्चे उठ जाएँ तो आंटी का सामना ज़्यादा ना करना पड़े" ऐसा संकेत प्राप्त होते ही वह तीव्र गति से कमरो की तलाशी लेने लगता है मगर हाए रे फूटी किस्मत, हर कमरा खाली था.


"कहीं आंटी के बेडरूम में तो नही सो रहे ?" निकुंज ने सोचा ज़रूर लेकिन उस कमरे की ओर जाने में उसके पाव काँप रहे थे.


दूर से देखने पर भी पता चल रहा था, बेडरूम का दरवाज़ा बोल्ट नही है "हिम्मत रख निकुंज, हिम्मत रख" खुद को दिलासा देते हुए वह हौले-हौले अपने कदम आगे बढ़ाने लगा और दरवाज़े के एक-दम करीब पहुच कर वह, झिरी से कमरे के अंदर का भूगोल देखने की कोशिश करता है.


"शिट मॅन" अचानक से उसका गला सूख गया और लोवर के अंदर क़ैद उसके सोए लौडे ने पल भर में दर्ज़नो ठुमके मार दिए. बेडरूम के अंदर का नज़ारा ही कुच्छ ऐसा था जो इतना भयभीत होने के बावजूद निकुंज वहाँ मक्खी की भाँति चिपक कर रह जाता है.


बिस्तर के ठीक बगल से अपनी एक टाँग पर खड़ी उसकी आंटी नीमा, बिल्कुल नंगी, हवा में विचरण करती अपनी दूसरी टाँग के अंतिम छोर से कोई कच्छि नुमा गुलाबी कपड़ा, ऊपर को चढ़ने के प्रयास में जुटी थी.


"उफ़फ्फ़ !! कितनी गोल मटोल गान्ड है" निकुंज ने दबे स्वर में आह ली "इसका मतलब बच्चे घर पर मौजूद नही है, वरना एक मा नंगी हो कर कमरे में यूँ बेशर्मी से ना घूमती" उसने तर्क दिया.


गुलाबी कपड़ा अपनी एक टाँग की मांसल जाँघ तक चढ़ने में सफल होते ही नीमा ने उसे दूसरी टाँग के छोर से अंदर डाला और जब कपड़ा उसकी दोनो जाँघो के समानांतर आ गया तब जा कर निकुंज को अंदाज़ा हुआ कि वह छोटा सा कपड़ा गुलाबी स्ट्रिचबल कॅप्री है.


"ऐसा लग रहा है जैसे अभी भी नंगी हो" स्किन टाइट कॅप्री चूतडो से बुरी तरह चिपक कर उनका क्लियर &; पर्फेक्ट शेप शो कर रही थी.


सॉफ्ट, कलर मॅचिंग टाइट टॉप पहेन कर नीमा अब फुल्ली रेडी थी.


थोड़ी देर पहले निकुंज की जिन आँखों में डर था अब उनमें उत्तेजना की ज्वाला जल रही थी
 

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नीमा के आगमन से पूर्व निकुंज वापस ग्वेस्टर्म के सोफे पर आ कर बैठ गया, इस वक़्त उसके दिल ओ दिमाग़ में सिर्फ़ उसकी आंटी की नंगी काया भ्रमण कर रही है और जिसके प्रभाव से उसके पाजामे में क़ैद उसका लंड किसी चट्टान समान कड़क हो चुका था.


अंतिम क्षणो में नीमा ने मिरर में खुद को निहारा, वह हॉट से कहीं ज़्यादा हॉट दिख रही थी "मगर क्या यह सही रहेगा ?" उसने सोचा "वह मेरी दोस्त का बेटा है, कोई गड़बड़ हो गयी तो ?"


"ऐसे मौके दोबारा नही मिलते नीमा, जो होगा सो देखा जाएगा" उसने सहसा अपने ख़यालों से बाहर आते हुए, खुद से कहा "फिर निकुंज भी तो गुनेहगार बनेगा" और इस पक्के इरादे के साथ, कि आज वह अपनी सबसे अच्छी दोस्त के जवान बेटे संग मस्ती करने वाली है. सेक्स की प्यासी, उस दूसरी कुंठित मा ने अपनी चूत में सनसनी महसूस की.


"बेटा !! बोर हो गये होगे, है ना ?" नीमा ने अथितिकक्ष में अपने आने की उपस्थति दर्ज़ करवाते हुए पुछा.


"नही आंटी !! मैं तो ज़रा भी बोर नही हुआ" निकुंज जवाब देता है. अपनी आंटी के नंगे बदन का चक्षु-चोदन कर वह धन्य जो हो गया था.


"अच्छा तो तुमने फ्लॅट देखा ?" आख़िर वो क्षण भी आ गया, जब वह निकुंज के सोफे के विपरीत रखे सोफे पर निश्चिंत-ता पूर्वक बैठ जाती है और उसके प्रथम दीदार के उपरांत ही निकुंज के आकड़े लौडे का सूजा सुपाडा, गाढ़े रस की बूंदे उगलने लगता है.


अति-उत्तेजित अवस्था में भी निकुंज खुद पर सैयम बनाए रखने को पूरा प्रयास-रत था और फॉरन अपनी आँखों का जुड़ाव नीमा के कामुक यौवन से हटा कर, कमरे में स्थापित अन्य वस्तुओ से जोड़ देता है.


"पूरा फ्लॅट देख लिया ?" नीमा ने आश्चर्यचकित होने का भ्रम पैदा किया. निकुंज की नजरो से विमुख होने के परिणाम-स्वरूप वह खुल कर उसके पाजामे के ऊपर उभरे तंबू का अवलोकन करने में खो सी जाती है.


"हां बिल्कुल !! इस तरफ बच्चो का कमरा, उस तरफ स्टोर रूम, यहाँ किचन और वहाँ बाल्कनी की गॅलरी" निकुंज उसकी हैरानी को मिटाने का प्रयत्न करता है "वहाँ आप का बेडरूम, कुच्छ चेंजस ज़रूर हुए हैं मगर मुझे सब याद है आंटी" कहते हुए वह मुस्कुराता है.


"ओह निकुंज !! यह तुमने क्या किया. मेरे बेडरूम के अंदर तो मैं चेंज कर रही थी और तुमने" अचानक से नीमा ने विस्फोट किया और झुटि लज्जा का सच्चा प्रदर्शन करते हुए, अपने खुले मुख पर हाथ रख वह निकुंज का चेहरा घूर्ने लगती है.


"न .. नही आंटी !! ऐसा कुच्छ भी नही हुआ" वह घबराया. नीमा के काल्पनिक तुक्के द्वारा उसकी चोरी पकड़े जाने के भय से, उसकी ज़ुबान लड़खड़ा उठती है.
 
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