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Incest पापी परिवार

Lodon Ka Raja

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"उईईई माँ" स्नेहा ने गहरी सिसकी भरी, नीमा की खुद की चूत में लगी आग के मद्देनज़र उसे मालूम था कि उसकी बेटी को अब क्या चाहिए. पहले तो उसने अपनी जीभ को अपनी पुत्री की मोटी-मोटी जाँघो के अन्द्रूनि हिस्से पर नचाया और फिर थूक से गीली उसकी छोटी-छोटी सुनहरी झान्टो को चूस्ते हुवे बेहद रिस्ति चूत के चिपके चीरे को पूरी लंबाई में एक साथ चाट लिया. "क्या हुआ स्नेहा ?" उसने भोली बनने का नाटक ज़ारी रखा जैसे कुच्छ जानती ही ना हो.


"उफफफ्फ़ !! आप .. आप की जीभ माँ" स्नेहा का संपूर्ण जिस्म काँप उठा, उसकी गान्ड अपने आप उसकी माँ के चेहरे पर ठीक वैसे ही झटके देने लगती है जैसे होटेल में लंड चुसाई के दौरान उसका छोटा भाई अपनी कमर हिला-हिला कर उसके मूँह को चोद रहा था.

"बस तू मज़े ले" नीमा ने महसूस किया कि उसकी पुत्री की कुँवारी चूत के अधखुले होठों ने उसकी जीभ के लिए सामान्य से कुच्छ अधिक जगह बना ली है, उसने स्नेहा की टाँगो को बलपूर्वक फैला जो रखा था ताकि अपनी जिह्वा अपनी बेटी की चूत के भीतर ज़्यादा से ज़्यादा गहराई तक पहुँचा सके. हलाकि चूत चाटने का उस माँ को अत्यधिक अनुभव नही था मगर अपने पुत्र द्वारा पूर्व में मिले हर आनंद के तेहेत उसे पता अवश्य था कि स्नेहा को अकल्पनीय सुख की प्राप्ति कैसे होगी. सोचने के उपरांत उसने अपनी जीभ को सिकोड कर थोड़ा नुकीला बनाया और अपनी पुत्री की चूत के ऊपरी हिस्से पर आहिश्ता से फेरने लगी.

स्नेहा की घुटि हुवी सी चीख दोबारा से निकल पड़ी और खुद ब खुद उसकी नन्ही उंगलियाँ उसकी माँ के सर पर जाकड़ जाती हैं. "ह्म्‍म्म्म उम्म्म !! आराम से" बार-बार अपनी माँ की जिह्वा को अपनी चूत के चिकने मुहाने पर रेंगती महसूस कर वह बरबस अपने होंठ दबा कर सिसकती रही और अपना बदन कठोर कर लिया.

अंजाने में ही सही नीमा का निशाना सटीक बैठा था और फॉरन उसकी पुत्री का अन्छुवा भांगूर फूल कर अपना सर उठाने लगता है. "ढीली हो !! वरना खेल ख़तम" नीमा ने उसके भज्नासे को पूरे मनोयोग से चूस्ते हुवे कहा और उसकी चेतावनी के आगे अत्यंत तुरंत स्नेहा ने हथियार डाल दिए.

उस बेचारी को तो अपनी चूत के साथ-साथ अपने तने निप्पलो में भी आनंदमयी दर्द का एहसास झेलना पड़ रहा था और स्वयं ही वह अपनी चूचियों का मर्दन करना शुरू कर देती है, शायद अपनी माँ के हाथो का इंतज़ार कर पाना उसके लिए मुश्क़िल था.

"रुक !! मैं दबाती हूँ" बोल कर नीमा ने उसकी चूत को चूस्ते हुए उसके स्तन थाम लिए, जहाँ वह अपनी पुत्री की चूत के ऊपर अपनी लप्लपाति जीभ का सुकून दे रही थी वहीं अब अपने हाथो की कठोरता से उसे मस्त कर देने को मचल उठती है. मंन ही मंन लगातार उसके मश्तिस्क में द्वन्द्व भी चल रहा था कि उसे खुद पर काबू कर लेना चाहिए मगर अपने जिस्म की ज़रूरत के हाथो मजबूर हो कर वह बेहद स्वार्थी बन गयी थी.

नीमा ने बिस्तर पर पड़े तकिये को स्नेहा के चूतडो के नीचे व्यवस्थित करना चाहा ताकि उसकी पुत्री की कामरस टपकाती चूत और ज़्यादा खुल जाए, बेटी ने भी अपनी माँ की मंशा को समझ कर उसका पूरा सहयोग करते हुवे अपने चूतड़ ऊपर उठा लिए. जीवन में पहली बार वह किसी औरत द्वारा संभोग रूपी सुख को प्राप्त कर सिहरन से बिलबिला रही थी, रोमांचक विषय था उस औरत का उसकी सग़ी माँ होना. "मुआाह" स्नेहा ने अपनी माँ के होंठ चूमे और नीमा की जिह्वा उसकी बेटी की खुली चूत के भीतर की नयी-नयी गहराइयाँ नापने के साथ हर बार एक नयी सनसनी पैदा करने लगी.

किसी मर्द से चुद्ते वक़्त तो सिर्फ़ चूत की दीवारें ही रगड़ती हैं मगर नीमा की लंबी जीभ तो कहीं गहरे में स्नेहा की बच्चेदानी तक असर कर रही थी. उसके पूरे शरीर में उठती आनंददायक पीड़ा यह सिद्ध करने को काफ़ी थी कि किसी भी औरत के जिस्म को सिर्फ़ एक छोटे से बिंदु से काबू में किया जा सकता है. कुच्छ ही क्षनो में उस माँ को अपनी ज़ुबान पर अपनी पुत्री की जवानी के पानी का स्वाद महसूस हुआ और देखते ही देखते चूत में से झरना सा बह निकला.


"आहह सीईइ" स्नेहा की चूत ने उसकी माँ की चूत से अपेक्षाकृत ज़्यादा पानी उगला. नीमा को भी अपनी चूत के भीतर आता खालीपन्न सता रहा था परंतु अभी उसकी बेटी का पूरी तरह से तृप्त होना ज़रूरी था ताकि नीमा उसके संतुष्ट हो जाने के बाद विक्की से जी भर कर अपनी चूत का सूनापन मिटवा सके और ऐसा सोच कर उसने फॉरन अपनी दो उंगलियों को आपस में जोड़ कर अपनी पुत्री की भभक्ति चूत के अत्यंत संकीरणा मार्ग में पैवस्त कर दिया, सच है मित्रो एक औरत ही दूसरी औरत की ज़रूरत को समझ सकती है.


"ओह्ह्ह माँ !! म .. मर गयी" अपनी माँ के इस कारनामे से स्नेहा सातवे आसमान पर पहुँच गयी, उसके मूँह से घुटि-घुटि आवाज़ें निकलने लगी और उसकी चूत उसकी माँ की उंगलियों को कस कर जाकड़ लेती है.

"ले और मज़ा ले" बोल कर नीमा को शरारत सूझी, अत्यंत तुरंत उसने चूत के भीतर अपनी एक उंगली को हल्का सा मोड़ लिया और अब अपनी उसी टेढ़ी उंगली के नाख़ून से अपनी पुत्री की बेहद कसी चूत की चिकनी दीवार को कुरेदने लगती है. हलाकी वह स्नेहा को दर्द का अनुभव नही करवाना चाहती थी मगर उसकी उस मन्त्रमुग्ध क्रिया के प्रभाव से वाकई उसकी बेटी ने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना आरंभ कर दिया और अचानक से झाड़ पड़ती है.


"मेरा प .. पानी छूट गया माँ !! रुकना मत, प्यार करो मुझे और प्यार करो" उत्तेजना के इतने ऊँचे शिखर तक पहुँचने के उपरांत स्नेहा का जिस्म उसके काबू से बाहर हो गया और रीरियाती हुवी वह अपनी माँ के सर को ज़बरदस्ती अपनी चूत के मुख पर दबाने लगी. रह-रह कर अपने आप उसके चूतड़ ऊपर की दिशा में उच्छल रहे थे मानो किसी काल्पनिक लंड को चोद रहे हों.

नीमा ने पूरे जतन से अपनी पुत्री की कामरस उगलती चूत पर अपने मूँह की कठोर पकड़ बनाए रखी
 

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मगर स्नेहा तो जैसे उस वक़्त पागल हो चुकी थी, हंस रही थी और रो भी रही थी. "हां माँ !! यहीं बस यहीं .. चाटो और ज़ोर से चाटो .. उफफफ्फ़ .. आइ लव यू माँ" अपनी माँ के छर्हरे बदन पर अपना हाथ फिराते हुवे स्नेहा कुच्छ भी बकने लगती है, यह एक साथ आए कयि ओर्गास्मो का नतीजा था. "म .. मुझे इतना मज़ा कभी नही आया !! आहह सीईइ .. बस" उसने अपनी माँ को अपने ऊपर खींचा और उसके चेहरे को प्रेमपूर्वक निहारा, नीमा के गालो और होंठो पर उसकी खुद की चूत का गाढ़ा रस चुपडा हुआ था मगर इस सब से जैसे उसे कोई मतलब नही था. यह समय तो उसकी माँ को धन्यवाद देने का था, नीमा के प्रभावशाली मुखड़े को ज़ोर से भीच कर उसने अपने कोमल होंठ उसके अत्यंत चिपचिपे होंठो से जोड़ दिए.

नीमा भी अपनी पुत्री के पहलू में समा गयी, स्नेहा के नंगे स्तन उसके भारी स्तनो के नीचे दबे पड़े उसे अनंत गुदगुदी का एहसास करवा रहे थे. "कैसा लगा स्नेहा ?" उसने अपनी बेटी की पनियाई आँखों में झाँक कर अशीलतापूर्वक पुछा जो उस ज़ोरदार अंतिम स्खलन के पश्चात हल्की सी लालमी धारण कर चुके थे.

"बहुत .. बहुत .. बहुत अच्छा माँ" मंद-मंद मुस्कुराते हुवे स्नेहा बोली. उसके सुंदर चेहरे की कांति में उसकी माँ को बेहद इज़ाफ़ा नज़र आता है जिसमें स्पष्टरूप से स्नेहा की संतुष्टि और नीमा की मेहनत का परिणाम शामिल था.

"मैं और विक्की एक दूसरे के साथ यही करते हैं मगर तुझे इन सब से दूर रहना होगा" नीमा ने शब्दो का जाल बुना, उसका अनुमान था कि उसकी बेटी अपनी माँ का कहा बिल्कुल नही टालेगी "चल अब तू अपने कमरे में जा और मैं तेरे भाई के पास जाउन्गि"

"आप बड़ी चुड़क्कड़ हो माँ" स्नेहा अपने हाथो को उसकी नंगी कमर पर घुमाते हुए बोली, जब उसकी माँ ही शरम ओ हया का पाठ भूल गयी तो वह क्यों पिछे रहती "क्या सच में आज अपनी गांद का उद्घाटन कर्वओगि ?" पुछ्ने के साथ ही उसने अपनी माँ के संवेदनशील गुदा-द्वार के खुरदुरे मुहाने पर अपनी उंगली के नाख़ून को रगड़ दिया.

"ओह्ह्ह स्नेहा !! मैने विक्की को नाराज़ किया है अब उसे मनाना तो पड़ेगा ना" नीमा ने दोबारा निर्लज्जता से अपने जबड़े भींच कर कहा लेकिन अपनी बेटी की उंगली को अपनी गान्ड के छेद से हटवाने का कोई प्रयास नही करती.

"माँ" किसी याचक की भाँति स्नेहा उसे पुकारती है "मैं भी चालू आप के साथ, बस दूर से देखती रहूंगी" बेहद नरम स्वर में उसने पुछा.

"नही .. नही !! विक्की पहले से ही बहुत घबरा चुका है, तुझे मेरे साथ देखेगा तो और ज़्यादा डर जाएगा" नीमा ने सॉफ इनकार किया.

"मैं ज़िद नही करना चाहती माँ !! मुझे अगर छुप-छुप के ही मज़े लेने होते तो क्या मैं आप दोनो के बीच आती. मैं चाहु तो विक्की को बहला-फुसला कर खुद भी अपनी चूत उसके विशाल लंड से चुदवा सकती हूँ मगर यह आप के साथ धोखा कहलाएगा"
 

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स्नेहा की बात सुन नीमा दंग रह जाती है, उसके विश्वास की धज्जियाँ उड़ाती उसकी बेटी यक़ीनन अब उसके ऊपर अपना मानसिक दबाव बनाती नज़र आ रही थी. "सुन स्नेहा !! मैं यह नही कहती कि जिस पाप की शुरूवात स्वयं मैने की है तू भी उसकी भागीदार बन लेकिन यदि तुझे मेरी बात नही माननी तो तू जो मर्ज़ी चाहे कर, मैं तुझे चाह कर भी नही रोक पाउन्गि" नीमा के कथन में गेहन मायूसी व्याप्त थी, स्त्री गुण की प्रमुख विशेषता 'ईर्ष्या' के भाव उसके खुशनुमे चेहरे की छवि को बिगाड़ देते हैं. उसे सब कुच्छ मंज़ूर होता मगर अपने बेटे को अपनी बेटी के साथ बाटने का सोचने मात्र से वह तडप उठी थी. स्नेहा के उसके बेडरूम से बाहर जाने के उपरांत नीमा को विक्की से पुनर्मिलन की क्षीण सी आस थी और दुर्भाग्य-पूर्ण जिसका अंत बेहद जल्दी हो गया था.


"तो फिर देर ना करो माँ !! अब चलते हैं" स्नेहा ने अपनी माँ को लगभग धक्का दे कर कहा और फॉरन बिस्तर पर उठ कर बैठ गयी "पता नही बेचारे का क्या हाल होगा, उसका लंड कितना तना हुआ था जब आप ने उसे कमरे से बाहर भेजा था"


अपनी बेटी के चंचल कदम तीव्रता से बेडरूम के दरवाज़े की तरफ बढ़ते देख नीमा समझ गयी कि उसकी हार हो चुकी है, अब उसके पास कोई चारा नही बचा था सिवाए अपनी बेटी की नीच इक्षा को मान लेने के और तत्पश्चात वह स्वयं उसके पिछे चल पड़ी. "ऐसी नंगी ही चलेगी क्या ?" खुद की नग्नता को भुला कर नीमा ने अपनी बेटी से पुछा.


"आप भी तो नंगी हो" उत्साहित स्नेहा ने फॉरन पलटवार किया.


"अरे मैं तो ...." नीमा आगे के लफ्ज़ नही बोल पाई की उसके पास तो अपने बेटे से चुदने का लाइसेन्स मौजूद है, बस पलट कर बिस्तर की चादर ओढ़ ली. अपनी माँ द्वारा ज़्यादा विवश किए जाने पर स्नेहा ने अपना टॉप तो पहेन लिया मगर पाजामा पहेन्ने से सॉफ इनकार कर देती है और इसके उपरांत ही वे दोनो कामुक औरतें दर्ज़नो लालसाओ के साथ बेडरूम से बाहर निकल जाती हैं.



अपनी माँ द्वारा ज़्यादा विवश किए जाने पर स्नेहा ने अपना टॉप तो पहेन लिया मगर पाजामा पहेन्ने से सॉफ इनकार कर देती है और इसके पश्चात वे दोनो कामुक औरतें दर्ज़नो लालसाओ के साथ बेडरूम से बाहर निकल जाती हैं. नीमा की आँखें थकान और नींद से बोझिल हो चली थी मगर मश्तिश्क अब भी बीते पिच्छले 2-4 महीनो के घटनाक्रम पर विचार कर रहा था. अचानक कितना कुच्छ बदल गया था उसके सेक्स जीवन में. पहले उसने अपने जवान होते पुत्र को आकस्मात ही मूठ मारते देखा, फिर कामोउत्तेजित अपनी भावनाओ पर काबू नही रख सकी और उसके साथ अवैध संभोग संबंध स्थापित करने की भूल कर बैठी, आज अपनी बेटी द्वारा पकड़े जाने पर आपस में सम्लेंगिक सेक्स. हलाकी मादा जिस्म से मिला अनुभव नितांत अनूठा था मगर बिस्तर पर किसी बलिष्ठ पुरुष के भारी व कठोर शरीर के नीचे दब कर चुदने का आनंददाई सुख उसे अपनी बेटी से नही मिल पाया था.


"विक्की अभी किशोरावस्था से बाहर नही निकाला है और स्नेहा भी जवानी के उस पड़ाव पर पहुँच चुकी है जिसमें वह बड़ी आसानी से अपने भाई को प्रलोभन देकर अपनी स्वाभाविक काम्पिपासा के रोग का निवारण कर सकती है" शायद यही वजह थी जो नीमा का दिल अपने पुत्र को अपनी पुत्री के साथ बाटने से झीजक रहा था, वह खुद तो पाप की गर्त में निरंतर धँसती जा रही थी परंतु ममतास्वरूप स्नेहा को उस ग़लत राह पर पाँव भी नही धरने देना चाहती थी. "बेटा !! ज़रा किचन से डाबर हनी की डब्बी तो उठा ला" हॉल में आते ही उसने कहा.


"शहद" हैरानी-पूर्वक स्नेहा बोली "मगर उसकी क्या ज़रूरत माँ ?" वह पूछती है.


"तू बेकार के सवाल मत किया कर !! जल्दी जा, दाएँ से चौथे सेल्फ़ के अंदर रखी है. जब तक मैं विक्की के कमरे का हुलिया पता करती हूँ, क्या पता वह सो गया हो" बोलने के उपरांत जहाँ नीमा अपने बेटे के कमरे के भीतर घुसने लगी वहीं मजबूरन स्नेहा को किचन में प्रवेश करना पड़ता है.
 

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"अब यह डाबर हनी कहाँ रखी है ?" लगभग 10 मिनिट तक किचन का चप्पा-चप्पा छान लेने के पश्चात स्नेहा झुंझला उठी. "उफफफ्फ़ !! माँ ने भी मुझे कैसे फालतू काम में उलझा दिया और खुद ...." आगे के लफ्ज़ जैसे उसके मूँह के भीतर ही दफ़न होकर रह गये और क्रोधावश उसकी आँखों से अंगार बरसने लगे. छल-कपट की आशंका से तिलमिलाते हुवे वह फॉरन किचन से बाहर निकली और विक्की के कमरे के दरवाज़े से अंदर झाँक कर देखा, वहाँ उसे उसकी माँ उसके भाई के नंगे शरीर पर तीव्रता से उच्छल-कूद करती नज़र आती है.


"अच्छा !! तो यह बात है" उसका अनुमान बिल्कुल सही साबित हुवा था. उसकी गैर-हाज़री में उसकी माँ योजना-बद्ध तरीके से अपने पुत्र के लंड को अपनी चूत के भीतर समाए स्वयं उसे चोद रही थी, उसके उछ्ल्ते स्तन और मूँह से निकलती धीमी कराहो से स्नेहा के लिए अपनी माँ की मनोस्थिति का आंकलन करना ज़्यादा मुश्क़िल नही होता, उसके खुद के बदन में उत्तेजना की आग बरकरार थी और मंन अपनी धोखेबाज़ माँ के प्रति जलन से भर उठा था. "आप ने अच्छा नही किया मा" उसने नीमा को घूर कर देखा जो पूरे जोश-ख़रोश के साथ विक्की से चुदने में लगी हुवी थी. रह-रह कर उसके हाथ की चूड़ियाँ खनक जाती, गले में पहना मंगलसूत्र भी दोनो स्तनो के भीच उच्छल कर थप-थप की उत्तेजक ध्वनि पैदा कर रहा था और यह सब स्नेहा की कुँवारी चूत में फिर से पानी बहाने हेतु पर्याप्त था.


"उम्म्म" अपनी टाँगो की जड़ पर हाथ लगा कर उसे महसूस हुआ कि पहले से नम उसकी चूत की चिपकी दीवारों ने रिसना चालू कर दिया है और छोटे भाई विक्की की कमर पर सवार लगातार उच्छलती उसकी माँ उसे कामदेवी समान नज़र आने लगती है. अब कमरे के दरवाज़े पर खड़े रह कर माँ-बेटे की काम-क्रीड़ा को देखने भर से उसका काम नही चलने वाला था, उसे भी अपने भाई के विशाल लंड से खेलना था और ऐसा सोच कर वह मजबूत कदमो के साथ अपनी माँ की दिशा में आगे बढ़ी, पिछे से उसका नंगा कंधा थाम कर उसे अपनी ओर खींचा और उसकी नरंतर हिलती दोनो चूचियों को अपने हाथ के पंजो से बड़ी निर्दयता के साथ भींचना शुरू कर देती है.


"सीईईई अह्ह्ह्ह" सित्कार्ते हुवे नीमा का जिस्म काँप उठा, कोई सामान्य समय होता तो वह सहेन कर जाती मगर उस क्षण वह एक ज़ोरदार स्खलन से गुज़र रही थी. विक्की नीचे से अपनी आँखें बंद किए धक्के पर धक्के लगा रहा था और अपनी माँ के दुख़्ते मम्मो का उसे कोई गुमान नही होता. नीमा को झटका अवश्य लगा था परंतु उस वक़्त उसकी चूचियों को दबाते, सहलाते स्नेहा के हाथ उसे तुरंत भा जाते हैं और अपनी पुत्री के हाथो के ऊपर अपने हाथ रख कर वह अपने पुत्र के लंड पर कुच्छ ज़्यादा ही जोश से कूदना आरंभ कर देती है. "उफफफ्फ़ स्नेहा !! ताक़त से दबा बेटी .. ज़ोर से उंघह" स्खलन्पूर्व की आनंदमयी लहरो के एहसास मात्र से नीमा चीख पड़ी. स्नेहा के साथ सम्लेंगिक क्रिया का उसे कोई विशेष लाभ नही मिल पाया था और अभी वह अपनी चूत की खुजाल मिटाने के उद्देश्य से ही चुदाई कर रही थी. उसने सोते हुवे अपने पुत्र के ऊपर चढ़ कर स्वयं उसके लंड को अपनी चूत के भीतर प्रविष्ठ करवाया था


और जब विक्की की नींद खुली तो उसने अपनी माँ को बेदर्दी से उसके अत्यंत फूले लंड पर उठक-बैठक लगाते देखा. वह नीमा की इस हिंसक करतूत को ठीक से पचा तक नही पाता कि कमरे के अंदर मौजूद अपनी बहेन के बारे में जानकर हैरानी से भर उठता है. "आख़िर तू नही मानी और यहाँ चली ही आई" नीमा के स्वर फूटे, स्नेहा के गदराए बदन को अपनी बाहों में समेट कर उसकी हथेलियों का दबाव वह अपनी दुखती चूचियों पर महसूस करते हुवे अत्यधिक सिहरन से काँपने लगती है.


विक्की का लंड तो अपनी बहेन का नाम सुनते ही अपनी माँ की चूत की गहराई में और ज़्यादा कठोर हो गया था, कुच्छ क्षनों बाद ही वह स्नेहा को बिस्तर पर ठीक अपने सामने बैठा पाता है.


"ओह्ह्ह माँ !! वाकाई आप रंडी बन चुकी हो" स्नेहा ज़ोर से ठहाका मार कर हसी और उसकी निर्लज्ज बात सुन नीमा का रहा-सहा विरोध वहीं समाप्त हो गया. तत-पश्चात वह माँ अपने बेटे के लंड को छोड़ते हुवे अपनी बेटी से कस कर लिपट जाती है, नीचे विक्की अपनी माँ की बेहद गीली चूत को अपने विशाल लंड से पेलम-पेल ठोक रहा था और ऊपर उसकी बहेन अपना दाँया हाथ आगे बढ़ा कर अपनी हथेली को संभोग्रत माँ-बेटे के मिलन स्थल के बिल्कुल बीचो-बीच पहुँचा देती है.
 

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कुच्छ ही पॅलो में उसने अपनी माँ की चूत के सूजे भांगूर को ढूँढ निकाला और अपने अंगूठे व प्रथम उंगली के दरमियाँ उसे भींच कर मसल्ने लगी. अपने लंड पर अपनी बहेन के कोमल हाथ का चिर-परिचित स्पर्श पा कर विक्की मज़े से कराह उठता है. "आह इष्ह !! दीदी" प्रत्युत्तर में स्नेहा भी उसके चेहरे को देख कर हुन्कार्ति है. नीमा की चूत अपने बेटे के लंड की मोटाई के कारण चौड़ी हुवी पड़ी थी मगर उसकी बेटी ने जान-बुझ कर उसे नही बक्शा. रह-रह कर बार-बार वह उसकी चूत के दाने को सहला रही थी, बेरेहमी से उसे छेड़ती जा रही थी.


"उंघह उंघह" अचानक नीमा अपने पुत्र की जाँघो पर अपनी कमर को गोल-गोल घुमा कर और ज़्यादा उत्तेजना पैदा करने की कोशिश करती है और क्षणिक देर के उपरांत स्नेहा के मंन में डर बैठने लगा कि कहीं उसकी माँ अपनी कामुक क्रियाओं के प्रभाव से उसके भाई को झाड़वा ना दे. ऐसा सोच कर उसने तीव्रता से अपना दूसरा हाथ अपनी माँ के कंधे से हटाया और पुनः उसकी बाहो के नीचे फसा कर बलपूर्वक उसे विक्की के ऊपर से उठा दिया. लंड के बाहर सरकते ही चूत के अंदर ख़ालीपन आ गया और जिसे महसूस कर नीमा छटपटाते हुवे अपनी पुत्री के साथ हाथा-पाई करने पर उतारू हो जाती है


मगर बेटी की जवान ताक़त के आगे उसकी एक ना चली और दिमाग़ दौड़ा कर आती-शीघ्र स्नेहा ने अपनी चारो उंगलियाँ एक साथ अपनी माँ की मचलती, रिस्ति चूत के भीतर घुसेड दी ताकि चूत में आए सुनेपन को भरा जा सके. उसकी उंगलियाँ उतनी चिकनी नही थी जितना कि विक्की का लंड था, अतः गहेन पीड़ा की लहर नीमा के क्रोधित चेहरे पर फैल गयी, विक्की भी घुर्राने लगा. वे दोनो ही झड़ने की कगार पर थे जिसे स्नेहा ने पूर्णरूप से विफल कर दिया था.


"हराम-ज़ादी !! यह .. यह क्या किया तूने ?" गुस्से से बिलबिला कर नीमा ने स्नेहा की गर्दन जाकड़ ली. उसकी बेटी भी कहाँ पिछे हटने वाली थी, अपना गला छुड़वाने का प्रयत्न करते हुवे उसने अपनी माँ के हाथ को झटक दिया और बिस्तर पर उसे धकेल कर फॉरन उसके नंगे बदन पर चढ़ बैठी. औरतों के बीच पनपते मदन-युद्ध को देख कर तो जैसे विक्की भौचक्का रह गया, दोनो ही उसे प्यारी थी और अपने खुद के आनंद के लिए वह उनमें से किसी एक को भी छोड़ने तैयार ना था. उसकी माँ के जिस्म के ऊपर सवार उसकी बहेन की कुँवारी चूत और हृष्ट-पुष्ट चूतडो की खुली दरार के मध्य चमचमाते उसके गूदा-द्वार को वह स्पष्टरूप से बेहद करीब से निहार पा रहा था, उसकी माँ भी हमेशा उसे स्त्री सुख प्रदान करती थी.


दोनो औरतो से उपेक्षित उसने अत्यंत बेबसी से अपने खड़े लंड को अपनी मुट्ठी में कसा और सामने चलते उस महा-संग्राम को देखते हुवे अपना लंड मुठियाना शुरू कर देता है. अपने छोटे भाई के समक्ष ही स्नेहा अपनी माँ को अपने नीचे दबा कर अपने एक हाथ की चारो उंगलियाँ उसकी चूत के भीतर बेदर्दी से घुसाए जा रही थी और दूसरे से उसकी चूचियों को निचोड़ रही थी. उसके होंठ नीमा के होंठो से चिपके हुवे थे और जीभ मूँह की अनंत गहराई में गोते खा रही थी. आँख के कोने से उसने अपनी भाई को अपना लंड हिलाते देखा तो झटके से अपनी माँ की चूत छोड़ कर विक्की की कलाई थाम लेती है. "देखो माँ !! यह कमीना खुद क्या कर रहा है और आप मुझे गाली दे रही थीं" अपने भाई का हाथ उसके लंड के ऊपर से खींच कर वह अपनी माँ के कानो में फुसफुसाई और इसके साथ ही उन दोनो माँ-बेटी के बीच का विवाद जैसे पल भर में निपट गया जो यक़ीनन कुच्छ वक़्त पूर्व चले उनके दरमियाँ सम्लेंगिक संभोग का आधार था.
 

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जिस्मों की उत्तेजना में कुच्छ भी स्वीकार कर लेना काफ़ी आसान होता है, अपने बेटे के सामने नीमा पूर्णरूप से चरित्रहीन साबित हो चुकी थी और जब उसने स्नेहा के हाथ को विक्की के विशाल लंड को सहलाते हुवे देखा तो अपनी बेटी में उसे अपनी प्रतिद्वंदी नही बल्कि उसके बेटे को उसके समान ही प्यार करने वाली एक दूसरी औरत दिखाई देने लगती है. विक्की रोज़ाना दिन में काई बार अपनी माँ को चोद्ता था. उसके होंठ उसकी बड़ी बहेन की कुँवारी चूत के ऊपर भी अपना कहेर ढा चुके थे और दोनो ही औरतो ने अपने सुंदर मुख से उसके लंड की जी भर कर सेवा भी की थी. वह स्वयं उन दोनो के इस कृत्य का बदला चुकाने को उत्सुक था मगर किससे कहे, वे दोनो उससे उमर में बड़ी होने के साथ-साथ भारतिया पारिवारिक परंपरा के अनुसार सम्माननीय थी. दोनो ही के साथ उसका शारीरिक संबंध पूरी तरह से अवैध माना जाता, बस अपने दिल के जज़्बातो को दबाए रखने के अलावा उसके पास कोई अन्य उपाय नही बचा था.


"सीईइ दीदी" अपनी बहेन की नाज़ुक उंगलियाँ अपने तने हुवे लंड के इर्द-गिर्द कसी महसूस कर वह चाह कर भी सिसकने से खुद को रोक नही पाता और उसकी सीत्कार ध्वनि सुन कर नीमा को एहसास होने लगा कि उसके भरपूर प्रेम उडेलने के बावजूद विक्की अपनी बड़ी बहेन के प्रति आकर्षित हो चुका है. उसके पुत्र की आँखें स्नेहा के अध-नंगे शरीर पर जम सी गयी थी, ख़ास कर अपनी बहेन की कुँवारी चूत को तो वह पागलो की भाँति घूरता नज़र आ रहा था.


"माँ !! आप के बाद यह हरामी अब मेरी चूत के पिछे पड़ गया. लगता है अपनी आँखो से ही चोद डालेगा" मचल कर स्नेहा लंड को तीव्रता से ऊपर-नीचे करते हुवे बोली, किसी कुशल राज्नीतिग्य की तरह उसका हर शब्द बेहद नपा-तुला था. अपनी माँ को बिना जतलाए उसे अपनी भाई को पाना था, विक्की को बाटना अब उन दोनो औरतो की मजबूरी बन गयी थी और इसके लिए वह नीमा की झिझक पूर्णरूप से मिटा देने को प्रयासरत थी.


"ह्म्‍म्म !! मुझे तो गर्मी लग रही है" अपना टॉप उतार कर बिस्तर से दूर फैंक ने के उपरांत उसने दोबारा अपने भाई के लंड को पकड़ लिया, नीमा के गले से तो मानो आवाज़ ही नकलनी बंद हो गयी थी. उसकी बेटी उसकी ओर पलटी और दोनो के होंठ जुड़ जाते हैं, साथ ही स्नेहा अपने भाई का लंड मुठियाते हुवे नज़ाकत से उसके फूले सुपाडे पर अपना अंगूठा फिराने लगती है.


"आहह दीदी !! मान जा" विक्की बुद्बुदाया, अंगूठे के दबाव से लंड में खून का दौड़ना तेज़ हो गया था.


"माँ" नीमा के होंठो पर अपनी जीभ की नोक घुमाते हुवे स्नेहा ने उसे पुकारा. "अपने इन कोमल होंठो से अपने बेटे का लंड चूसो ना, मेरी सबसे बड़ी ख्वाशीष है" कह चूकने के उपरांत उसने नीमा को बिदकने नही दिया और फॉरन उसका सर मजबूती से पकड़ कर विक्की के फड़फड़ाते लंड के रस उगलते सुपाडे के काफ़ी करीब ला कर रुक जाती है, हलाकी चाहती तो अपनी माँ के साथ ज़बरदस्ती भी कर सकती थी मगर सुनहरे भविष्य हेतु वर्तमान में सावधानी बरतना ज़्यादा ज़रूरी था. अपनी माँ का चेहरा अपने लंड के इतने करीब देख विक्की की कमर अपने आप झटके खाने लगी और तब तक स्नेहा ने भी अपनी मुट्ठी खोल कर सहारा देने के उद्देश्य से उसके लंड को सिर्फ़ अपनी दो उंगलियों के बीच पकड़ लिया था. नीमा स्वयं कुच्छ बोलना चाहती थी लेकिन ज़ुबान उसका साथ देने से कब की इनकार कर चुकी थी, दिमाग़ पूरी तरह दिल से हारा और अपने बच्चो के हाथो की कठपुतली सा बन गया था.

इसी बीच भाई-बहेन के दरमियाँ कुच्छ इशारेबाज़ी हुवी और जहाँ स्नेहा ने अपनी माँ के सर को नीचे की ओर दबाया वहीं विक्की ने अपनी कमर को ऊपर उछाल कर एक ही बार में अपना आधे से ज़्यादा लंड अपनी माँ के मूँह के भीतर पहुँचा दिया और फॉरन बलपूर्वक धक्के लगाने लगा. उसका लंड नीमा के कंठ तक उतर गया था और उस पीड़ादायक स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए उसे बिस्तर पर अपने पेट के बल लेटना पड़ जाता है. उसकी चूत अब जी भर कर बहना चाहती थी और हाथ स्नेहा की उंगलियों को तलाश रहे थे ताकि मूँह के साथ ही वह अपनी छूट का भी भराव कर सके परंतु उसकी बेटी तो उससे कहीं ज़्यादा व्यस्त निकली, एक हाथ की उंगलियों से अपने भाई का लंड थामे और दूसरे से अपनी माँ की नंगे चूतड़ थप-थपा कर उसे उकसाए जा रही थी.
 

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अपनी पनियाई आँखों को मीच-मीच कर वह अपनी पीड़ा को सहने का प्रयत्न अवश्य करती मगर उसके बेटे की लगातार उच्छलती कमर के तीव्र झटके उसका दम घोंटे में कोई कसर बाकी नही छोड़ रहे थे. आखिकार क्षणिक पॅलो के उपरांत ही उसके मश्तिश्क ने उसे यह चेतावनी दे डाली कि यदि उसने अपने बेवकूफी भरे प्रयास को कुच्छ देर और ज़ारी रखा तो यक़ीनन उसके प्राणो पर संकट आ जाएगा, अंत-तह उसने समझदारी से काम लिया और लंड को फॉरन अपने मूँह से बाहर उगल देती है. सर ऊपर उठाने के पश्चात उसकी नज़र स्नेहा के मुस्कुराते चेहरे से जा टकराई और क्षण मात्र में उसकी वासना और तन्मयता का वहीं अंत हो गया.


एक ही बिस्तर पर दो कामुक औरतों में से किसी एक का चुनाव करना बेहद कठिन काम होता है, माँ-बेटी ने काफ़ी देर तक एक-दूसरे की आँखों में झाँका. स्नेहा अपनी माँ के चेहरे पर अपने प्रति ईर्ष्या स्पष्ट रूप से देख सकती थी लेकिन खुद की शारीरिक ज़रूरत अब इस हद्द तक बढ़ चुकी थी कि कमरे के भीतर बनाया उसका का संतुलन स्वयं उसके बस से बाहर हो चला था. विक्क निरंतर अपने कड़क होंठो से अपनी बहेन की कुँवारी चूत की भरकस मालिश कर रहा था और इसी वजह से रह-रह कर स्नेहा की चूत में बुलबुले उठने लगे थे, बस अपने प्लान की अंतिम कामयाबी हेतु उसे आगे बढ़ते जाना था और जिसकी कोशिश में वह जी जान से जुटी हुवी थी. स्नेहा ने दोबारा अपनी माँ के होंठो को अपने होंठो की गिरफ़्त में कस लिया, दोनो औरतें फिर से एक-दूसरे में तल्लीन हो गयी.


इसी बीच विक्की ने अपनी कमर को झटका दिया मगर उसका लंड तो उसकी माँ के मूँह से कब का बाहर आ चुका था. उसने अपनी बहेन की चूत को चूसना छोड़ कर अपना सर ऊपर उठा कर देखा तो उसकी माँ और बहेन उसे किसी दूसरे ही संसार में विचरण करती नज़र आती हैं, लगा जैसे आज कि रात तीनो ही प्राणी एककार हो गये थे. एक बार फिर स्नेहा ने विक्की के उपेक्षित लंड को अपनी माँ के चेहरे की ओर मोड़ दिया, साझेदारी में उसे चखने के लिए उन्होने ज़रूर कोई युक्ति ढूँढ निकाली थी. खड़े मुश्टंडे लौडे के एक तरफ नीमा के होंठ जम हो गये और दूसरी तरफ से स्नेहा ने अपना पूरा मूँह खोल कर उस गरमा-गरम रोड को जाकड़ लिया. इस तरीके से वे दोनो एक-दूसरे को चूम भी सकती थीं और उनके चेहरे के बीचो-बीच तन्नाया विक्की का पुरुषांग उनके चार होंठो के दरमियाँ बड़े आराम से फिसल सकता था.


विक्की ने जब यह कामुक दृश्य देखा तो मारे जोश के उसने स्नेहा के चूतड़ो के दोनो पाट अपने ताक़तवर हाथो के पंजो में भींच लिए और तत-पश्चात वापस अपनी बहेन की कुँवारी चूत को बहरामी से चूसने लगता है. नीमा पूरी तन्मयता से अपने पुत्र के लंड के ऊपर लार टपकाते हुवे स्वयं अपने होंठो से अपनी लार को उस पर चुपड भी रही थी और जल्द ही स्नेहा ने भी यह अधभूत कला सीख ली.


दोनो औरते उस कड़कड़ाते औज़ार को आइस-क्रीम की भाँति दोनो तरफ से एक साथ चूस रही थीं, बीच-बीच में दोनो के होंठ यदि आपस में टकराते तो फॉरन एक-दूसरे को चूमना शुरू कर देती और एका-यक लंड पर दबाव भी दूना हो जाता. इतनी मेहनत करने के बाद तो जैसे विक्की के लंड में कोई नया सा स्वाद पैदा हो गया था या तो वह उन दोनो माँ-बेटी में से किसी एक की खुशबूदार लार थी या फिर नीमा की चूत से रिसने वाले कामरस की मादक महेक जो कुच्छ वक़्त पिछे लंड पर उच्छलने के दौरान बाहर बह कर यहाँ-वहाँ फैल गया था या फिर यह स्नेहा के होंठो पर उसके भाई की लार का स्वाद था. "हां" पक्के तौर पर लंड की चमडी के ऊपर का नमकीन स्वाद विक्की के खुद के पसीने या सुपाडे द्वारा निरंतर उगले जाने वाले चिकने पानी का ही कमाल था


. "काश विक्की फॉरन झाड़ जाए तो हम दोनो को ही मानसिक त्रप्ति मिल जाएगी" नीमा सोच रही थी और तभी उसके पुत्र ने अपनी कमर उचकानी बंद कर दी, स्नेहा के भी जबड़े भींच जाते हैं. कमरे में उसके दोनो बच्चो की चीखो व सिसकियों के अलावा कहीं से कोई अन्य आवाज़ सुनाई नही पड़ रही थी, खुद नीमा तो मानो गूंगी ही हो चुकी थी. उसने बड़े गौर से विक्की और स्नेहा के दरमियाँ पनपे कामुत्तेजक क्रिया-कलाप को देखा और अपनी उपेक्षा से उसकी आँखों में आँसू उमड़ पड़ते हैं.


अपनी बहेन की चूत की चिपकी फाकों को अपनी उंगलियों की मदद से चौड़ाने के पश्चात विक्की चूत के अंदरूनी संकरे मार्ग पर अपनी लंबी जीभ लपलपा रहा था और साथ ही अपने होंठो की कठोरता से चूस्ते हुवे चूत की अनंत गहराई में छुपे कामरस के खजाने को बाहर खींच लाने को आतुर हो चला था.


स्नेहा तो जैसे उन्मुक्त गगन में उड़ना आरंभ कर दिया था और अपने चूतडो को स्वयं ऊपर-नीचे करते हुवे अपने सूजे भांगूर को निरंतर तीव्रता के साथ अपने भाई की खुर्धुरी जीभ के ऊपर रगड़ने को प्रयासरत थी. "ह्म्म .. आह्ह्ह्ह्ह .. आह्ह्ह्ह्ह .. हां" उसने अपने भाई को इशारा करने के उद्देश्य से आवाज़ निकाली और जब विक्की की जीभ उसके भांगूर के ऊपर से हटी तो वह बिल्कुल शांत हो गयी. दोबारा उसके भाई की जीभ ने उसके भांगूर को छेड़ा, फिर से उसी ध्वनि के साथ स्नेहा अपने नाख़ून भी अपने भाई के पेट पर गढ़ा देती है.


कुच्छ "हां हां" और थोड़े बहुत धक्को के बाद विक्की को समझ आ गया कि उसकी बहेन उससे क्या चाहती है. स्नेहा की इक्षा को सर्वोपरि मान कर वह पूरे मनोयोग से उसके भज्नासे को चूमने, चाटने में खो सा जाता है. अपने लंड और अपनी माँ को तो वह काफ़ी पहले ही भूल चुका था, बस याद था तो महज अपनी बहेन का नंगा पिच्छवाड़ा. उसकी तो मानो पूरी दुनिया ही स्नेहा की चूत के दाने पर सिमट कर रह गयी थी, बहेन के काँपते बंदन की थरथराहत और असन्ख्य चीखें उसका हौसला बुलंद करने को काफ़ी थी.


"मैं कहती हूँ रुक जाओ" अचानक से नीमा चिल्लाई और दोनो भाई-बहेन के जिस्म उसकी घुर्राहट को सुन कर बिल्कुल स्थिर हो गये. "विक्की !! जब हम दोनो एक साथ तेरा लंड चूस सकती हैं तो क्या तेरा फ़र्ज़ नही कि तू भी हमारी चूतो को एक साथ ही चूसे. आख़िर मैने ऐसी क्या ग़लती कर दी जो तुम दोनो ने मुझे यूँ अकेला छोड़ दिया" उसने ऋुनासे स्वर में कहा, यक़ीनन वह स्वीकार कर चुकी थी कि अब उसकी और ज़्यादा नाराज़गी स्वयं उसके लिए ही हानिकारक सिद्ध होगी.


"अरे माँ !! आप रो क्यों रही हो, चल विक्की फटाफट तू मा की चूत को चूसना शुरू कर और मैं तेरे लंड से खेलूँगी" स्नेहा खुद अपनी माँ की मदद के लिए आगे आई और उसे ऊपर की दिशा में खींच कर ठीक बिस्तर के सिराहने ले आती है. तत-पश्चात जहाँ नीमा को पलटा कर उसे विक्की के मूँह के ऊपर बिठा दिया गया वहीं स्नेहा फॉरन अपने भाई के लंड पर टूट पड़ी.
 

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नीमा बिस्तर की पुष्ट को पकड़े अपने बेटे के सम्पूर्न चेहरे के ऊपर अपनी चूत रगड़ने लगी, उसकी लावा बहाती चूत वाकाई बहुत ज़ोरो से भभक रही थी. स्नेहा की तरफ उसकी पीठ थी, कुच्छ पल अपने भाई के लंड को बलपूर्वक चूसने उपरांत ही उसके मन में एक विचार आया और जिसे पूरा करने हेतु आती-शीघ्र उसने विक्की की कमर पर सवार हो कर उसके लंड के सुपाडे को अपनी कुँवारी चूत की फांको के चिपके चीरे पर घिसना शुरू कर दिया.


"ऊन्नह ऊन्नह" नीमा के सुडोल चूतडो के नीचे दबे हुवे अपने मूँह से विक्की चाह कर भी कुच्छ नही कह पाता, बस अपनी बहेन के जल्दबाज़ी में उठाए गये कदम को रोकने के लिए बिस्तर के ऊपर मचलने लगता है मगर स्नेहा के मश्तिश्क में तो केवल उत्तेजना ही उत्तेजना छा चुकी थी और अपने भाई के फूले सुपाडे को अपनी चूत के चिकने मुहाने पर सटा कर वह बिना कुच्छ सोचे-समझे अपने जिस्म का सारा भार अपने भाई की कमर पर डाल देती है.


"खचह !! आईईईई" कमरे के भीतर एक साथ दो आवाज़ें गूँज उठी, जिसमे से एक स्नेहा की कुँवारी चूत के फटने की थी और दूसरी उसकी दर्द भरी चीख जो खुद उसकी ही बेवकूफी का परिणाम थी
 

kamdev99008

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ये भी मेरी ही कहानी है ❤
Xossip पर मेरी यह पहली रचना थी, दूसरी "मां का मेडिकल एक्सामिनेशन"
bhonpu bhai.............yahan ek aur bhi id hai bhonpu ke nam se Bhonpuxossip

ab ap donon mein se wo bhonpu kaun hai...jinki stories meine xossip par padhi thi...............

aur xossip par ye story PAAP meine Miss. XB ki thread mein hi padhi thi...........
ab dixa ap hain aur yahan bhonpu bangayin to baat alag hai
 
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