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"उईईई माँ" स्नेहा ने गहरी सिसकी भरी, नीमा की खुद की चूत में लगी आग के मद्देनज़र उसे मालूम था कि उसकी बेटी को अब क्या चाहिए. पहले तो उसने अपनी जीभ को अपनी पुत्री की मोटी-मोटी जाँघो के अन्द्रूनि हिस्से पर नचाया और फिर थूक से गीली उसकी छोटी-छोटी सुनहरी झान्टो को चूस्ते हुवे बेहद रिस्ति चूत के चिपके चीरे को पूरी लंबाई में एक साथ चाट लिया. "क्या हुआ स्नेहा ?" उसने भोली बनने का नाटक ज़ारी रखा जैसे कुच्छ जानती ही ना हो.
"उफफफ्फ़ !! आप .. आप की जीभ माँ" स्नेहा का संपूर्ण जिस्म काँप उठा, उसकी गान्ड अपने आप उसकी माँ के चेहरे पर ठीक वैसे ही झटके देने लगती है जैसे होटेल में लंड चुसाई के दौरान उसका छोटा भाई अपनी कमर हिला-हिला कर उसके मूँह को चोद रहा था.
"बस तू मज़े ले" नीमा ने महसूस किया कि उसकी पुत्री की कुँवारी चूत के अधखुले होठों ने उसकी जीभ के लिए सामान्य से कुच्छ अधिक जगह बना ली है, उसने स्नेहा की टाँगो को बलपूर्वक फैला जो रखा था ताकि अपनी जिह्वा अपनी बेटी की चूत के भीतर ज़्यादा से ज़्यादा गहराई तक पहुँचा सके. हलाकि चूत चाटने का उस माँ को अत्यधिक अनुभव नही था मगर अपने पुत्र द्वारा पूर्व में मिले हर आनंद के तेहेत उसे पता अवश्य था कि स्नेहा को अकल्पनीय सुख की प्राप्ति कैसे होगी. सोचने के उपरांत उसने अपनी जीभ को सिकोड कर थोड़ा नुकीला बनाया और अपनी पुत्री की चूत के ऊपरी हिस्से पर आहिश्ता से फेरने लगी.
स्नेहा की घुटि हुवी सी चीख दोबारा से निकल पड़ी और खुद ब खुद उसकी नन्ही उंगलियाँ उसकी माँ के सर पर जाकड़ जाती हैं. "ह्म्म्म्म उम्म्म !! आराम से" बार-बार अपनी माँ की जिह्वा को अपनी चूत के चिकने मुहाने पर रेंगती महसूस कर वह बरबस अपने होंठ दबा कर सिसकती रही और अपना बदन कठोर कर लिया.
अंजाने में ही सही नीमा का निशाना सटीक बैठा था और फॉरन उसकी पुत्री का अन्छुवा भांगूर फूल कर अपना सर उठाने लगता है. "ढीली हो !! वरना खेल ख़तम" नीमा ने उसके भज्नासे को पूरे मनोयोग से चूस्ते हुवे कहा और उसकी चेतावनी के आगे अत्यंत तुरंत स्नेहा ने हथियार डाल दिए.
उस बेचारी को तो अपनी चूत के साथ-साथ अपने तने निप्पलो में भी आनंदमयी दर्द का एहसास झेलना पड़ रहा था और स्वयं ही वह अपनी चूचियों का मर्दन करना शुरू कर देती है, शायद अपनी माँ के हाथो का इंतज़ार कर पाना उसके लिए मुश्क़िल था.
"रुक !! मैं दबाती हूँ" बोल कर नीमा ने उसकी चूत को चूस्ते हुए उसके स्तन थाम लिए, जहाँ वह अपनी पुत्री की चूत के ऊपर अपनी लप्लपाति जीभ का सुकून दे रही थी वहीं अब अपने हाथो की कठोरता से उसे मस्त कर देने को मचल उठती है. मंन ही मंन लगातार उसके मश्तिस्क में द्वन्द्व भी चल रहा था कि उसे खुद पर काबू कर लेना चाहिए मगर अपने जिस्म की ज़रूरत के हाथो मजबूर हो कर वह बेहद स्वार्थी बन गयी थी.
नीमा ने बिस्तर पर पड़े तकिये को स्नेहा के चूतडो के नीचे व्यवस्थित करना चाहा ताकि उसकी पुत्री की कामरस टपकाती चूत और ज़्यादा खुल जाए, बेटी ने भी अपनी माँ की मंशा को समझ कर उसका पूरा सहयोग करते हुवे अपने चूतड़ ऊपर उठा लिए. जीवन में पहली बार वह किसी औरत द्वारा संभोग रूपी सुख को प्राप्त कर सिहरन से बिलबिला रही थी, रोमांचक विषय था उस औरत का उसकी सग़ी माँ होना. "मुआाह" स्नेहा ने अपनी माँ के होंठ चूमे और नीमा की जिह्वा उसकी बेटी की खुली चूत के भीतर की नयी-नयी गहराइयाँ नापने के साथ हर बार एक नयी सनसनी पैदा करने लगी.
किसी मर्द से चुद्ते वक़्त तो सिर्फ़ चूत की दीवारें ही रगड़ती हैं मगर नीमा की लंबी जीभ तो कहीं गहरे में स्नेहा की बच्चेदानी तक असर कर रही थी. उसके पूरे शरीर में उठती आनंददायक पीड़ा यह सिद्ध करने को काफ़ी थी कि किसी भी औरत के जिस्म को सिर्फ़ एक छोटे से बिंदु से काबू में किया जा सकता है. कुच्छ ही क्षनो में उस माँ को अपनी ज़ुबान पर अपनी पुत्री की जवानी के पानी का स्वाद महसूस हुआ और देखते ही देखते चूत में से झरना सा बह निकला.
"आहह सीईइ" स्नेहा की चूत ने उसकी माँ की चूत से अपेक्षाकृत ज़्यादा पानी उगला. नीमा को भी अपनी चूत के भीतर आता खालीपन्न सता रहा था परंतु अभी उसकी बेटी का पूरी तरह से तृप्त होना ज़रूरी था ताकि नीमा उसके संतुष्ट हो जाने के बाद विक्की से जी भर कर अपनी चूत का सूनापन मिटवा सके और ऐसा सोच कर उसने फॉरन अपनी दो उंगलियों को आपस में जोड़ कर अपनी पुत्री की भभक्ति चूत के अत्यंत संकीरणा मार्ग में पैवस्त कर दिया, सच है मित्रो एक औरत ही दूसरी औरत की ज़रूरत को समझ सकती है.
"ओह्ह्ह माँ !! म .. मर गयी" अपनी माँ के इस कारनामे से स्नेहा सातवे आसमान पर पहुँच गयी, उसके मूँह से घुटि-घुटि आवाज़ें निकलने लगी और उसकी चूत उसकी माँ की उंगलियों को कस कर जाकड़ लेती है.
"ले और मज़ा ले" बोल कर नीमा को शरारत सूझी, अत्यंत तुरंत उसने चूत के भीतर अपनी एक उंगली को हल्का सा मोड़ लिया और अब अपनी उसी टेढ़ी उंगली के नाख़ून से अपनी पुत्री की बेहद कसी चूत की चिकनी दीवार को कुरेदने लगती है. हलाकी वह स्नेहा को दर्द का अनुभव नही करवाना चाहती थी मगर उसकी उस मन्त्रमुग्ध क्रिया के प्रभाव से वाकई उसकी बेटी ने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना आरंभ कर दिया और अचानक से झाड़ पड़ती है.
"मेरा प .. पानी छूट गया माँ !! रुकना मत, प्यार करो मुझे और प्यार करो" उत्तेजना के इतने ऊँचे शिखर तक पहुँचने के उपरांत स्नेहा का जिस्म उसके काबू से बाहर हो गया और रीरियाती हुवी वह अपनी माँ के सर को ज़बरदस्ती अपनी चूत के मुख पर दबाने लगी. रह-रह कर अपने आप उसके चूतड़ ऊपर की दिशा में उच्छल रहे थे मानो किसी काल्पनिक लंड को चोद रहे हों.
नीमा ने पूरे जतन से अपनी पुत्री की कामरस उगलती चूत पर अपने मूँह की कठोर पकड़ बनाए रखी
"उफफफ्फ़ !! आप .. आप की जीभ माँ" स्नेहा का संपूर्ण जिस्म काँप उठा, उसकी गान्ड अपने आप उसकी माँ के चेहरे पर ठीक वैसे ही झटके देने लगती है जैसे होटेल में लंड चुसाई के दौरान उसका छोटा भाई अपनी कमर हिला-हिला कर उसके मूँह को चोद रहा था.
"बस तू मज़े ले" नीमा ने महसूस किया कि उसकी पुत्री की कुँवारी चूत के अधखुले होठों ने उसकी जीभ के लिए सामान्य से कुच्छ अधिक जगह बना ली है, उसने स्नेहा की टाँगो को बलपूर्वक फैला जो रखा था ताकि अपनी जिह्वा अपनी बेटी की चूत के भीतर ज़्यादा से ज़्यादा गहराई तक पहुँचा सके. हलाकि चूत चाटने का उस माँ को अत्यधिक अनुभव नही था मगर अपने पुत्र द्वारा पूर्व में मिले हर आनंद के तेहेत उसे पता अवश्य था कि स्नेहा को अकल्पनीय सुख की प्राप्ति कैसे होगी. सोचने के उपरांत उसने अपनी जीभ को सिकोड कर थोड़ा नुकीला बनाया और अपनी पुत्री की चूत के ऊपरी हिस्से पर आहिश्ता से फेरने लगी.
स्नेहा की घुटि हुवी सी चीख दोबारा से निकल पड़ी और खुद ब खुद उसकी नन्ही उंगलियाँ उसकी माँ के सर पर जाकड़ जाती हैं. "ह्म्म्म्म उम्म्म !! आराम से" बार-बार अपनी माँ की जिह्वा को अपनी चूत के चिकने मुहाने पर रेंगती महसूस कर वह बरबस अपने होंठ दबा कर सिसकती रही और अपना बदन कठोर कर लिया.
अंजाने में ही सही नीमा का निशाना सटीक बैठा था और फॉरन उसकी पुत्री का अन्छुवा भांगूर फूल कर अपना सर उठाने लगता है. "ढीली हो !! वरना खेल ख़तम" नीमा ने उसके भज्नासे को पूरे मनोयोग से चूस्ते हुवे कहा और उसकी चेतावनी के आगे अत्यंत तुरंत स्नेहा ने हथियार डाल दिए.
उस बेचारी को तो अपनी चूत के साथ-साथ अपने तने निप्पलो में भी आनंदमयी दर्द का एहसास झेलना पड़ रहा था और स्वयं ही वह अपनी चूचियों का मर्दन करना शुरू कर देती है, शायद अपनी माँ के हाथो का इंतज़ार कर पाना उसके लिए मुश्क़िल था.
"रुक !! मैं दबाती हूँ" बोल कर नीमा ने उसकी चूत को चूस्ते हुए उसके स्तन थाम लिए, जहाँ वह अपनी पुत्री की चूत के ऊपर अपनी लप्लपाति जीभ का सुकून दे रही थी वहीं अब अपने हाथो की कठोरता से उसे मस्त कर देने को मचल उठती है. मंन ही मंन लगातार उसके मश्तिस्क में द्वन्द्व भी चल रहा था कि उसे खुद पर काबू कर लेना चाहिए मगर अपने जिस्म की ज़रूरत के हाथो मजबूर हो कर वह बेहद स्वार्थी बन गयी थी.
नीमा ने बिस्तर पर पड़े तकिये को स्नेहा के चूतडो के नीचे व्यवस्थित करना चाहा ताकि उसकी पुत्री की कामरस टपकाती चूत और ज़्यादा खुल जाए, बेटी ने भी अपनी माँ की मंशा को समझ कर उसका पूरा सहयोग करते हुवे अपने चूतड़ ऊपर उठा लिए. जीवन में पहली बार वह किसी औरत द्वारा संभोग रूपी सुख को प्राप्त कर सिहरन से बिलबिला रही थी, रोमांचक विषय था उस औरत का उसकी सग़ी माँ होना. "मुआाह" स्नेहा ने अपनी माँ के होंठ चूमे और नीमा की जिह्वा उसकी बेटी की खुली चूत के भीतर की नयी-नयी गहराइयाँ नापने के साथ हर बार एक नयी सनसनी पैदा करने लगी.
किसी मर्द से चुद्ते वक़्त तो सिर्फ़ चूत की दीवारें ही रगड़ती हैं मगर नीमा की लंबी जीभ तो कहीं गहरे में स्नेहा की बच्चेदानी तक असर कर रही थी. उसके पूरे शरीर में उठती आनंददायक पीड़ा यह सिद्ध करने को काफ़ी थी कि किसी भी औरत के जिस्म को सिर्फ़ एक छोटे से बिंदु से काबू में किया जा सकता है. कुच्छ ही क्षनो में उस माँ को अपनी ज़ुबान पर अपनी पुत्री की जवानी के पानी का स्वाद महसूस हुआ और देखते ही देखते चूत में से झरना सा बह निकला.
"आहह सीईइ" स्नेहा की चूत ने उसकी माँ की चूत से अपेक्षाकृत ज़्यादा पानी उगला. नीमा को भी अपनी चूत के भीतर आता खालीपन्न सता रहा था परंतु अभी उसकी बेटी का पूरी तरह से तृप्त होना ज़रूरी था ताकि नीमा उसके संतुष्ट हो जाने के बाद विक्की से जी भर कर अपनी चूत का सूनापन मिटवा सके और ऐसा सोच कर उसने फॉरन अपनी दो उंगलियों को आपस में जोड़ कर अपनी पुत्री की भभक्ति चूत के अत्यंत संकीरणा मार्ग में पैवस्त कर दिया, सच है मित्रो एक औरत ही दूसरी औरत की ज़रूरत को समझ सकती है.
"ओह्ह्ह माँ !! म .. मर गयी" अपनी माँ के इस कारनामे से स्नेहा सातवे आसमान पर पहुँच गयी, उसके मूँह से घुटि-घुटि आवाज़ें निकलने लगी और उसकी चूत उसकी माँ की उंगलियों को कस कर जाकड़ लेती है.
"ले और मज़ा ले" बोल कर नीमा को शरारत सूझी, अत्यंत तुरंत उसने चूत के भीतर अपनी एक उंगली को हल्का सा मोड़ लिया और अब अपनी उसी टेढ़ी उंगली के नाख़ून से अपनी पुत्री की बेहद कसी चूत की चिकनी दीवार को कुरेदने लगती है. हलाकी वह स्नेहा को दर्द का अनुभव नही करवाना चाहती थी मगर उसकी उस मन्त्रमुग्ध क्रिया के प्रभाव से वाकई उसकी बेटी ने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना आरंभ कर दिया और अचानक से झाड़ पड़ती है.
"मेरा प .. पानी छूट गया माँ !! रुकना मत, प्यार करो मुझे और प्यार करो" उत्तेजना के इतने ऊँचे शिखर तक पहुँचने के उपरांत स्नेहा का जिस्म उसके काबू से बाहर हो गया और रीरियाती हुवी वह अपनी माँ के सर को ज़बरदस्ती अपनी चूत के मुख पर दबाने लगी. रह-रह कर अपने आप उसके चूतड़ ऊपर की दिशा में उच्छल रहे थे मानो किसी काल्पनिक लंड को चोद रहे हों.
नीमा ने पूरे जतन से अपनी पुत्री की कामरस उगलती चूत पर अपने मूँह की कठोर पकड़ बनाए रखी