नीमा ने अपनी कजरारी आँखों का जुड़ाव उसकी आँखों से जोड़ा और तत-पश्चात अपने होंठो को फाड़ते हुए स्वयं की थूक और कामरस के लेप से मिश्रित सुपाडा उन होंठो के भीतर प्रवेश करवा लिया. नीमा का दूसरा हाथ निकुंज के बड़े-बड़े टट्टो और उसकी काली घुंघराली झाटों को लगातार सहला भी रहा था.
इंच-इंच नीचे की ओर फिसलते नीमा के कोमल होंठ, सुड़कते हुए उस विकराल लंड को अपने छोटे से मूँह के अंदर समाने का प्रयत्न कर रहे थे. उसने कोशिश की, कि उसके दाँत लंड की मोटाई के आड़े आ कर उसकी मुलायम त्वचा पर रगड़ ना खाएँ और कुच्छ ही क्षण बाद उसे अपना मूँह उस अकडे लौडे से पूरा भरता हुआ महसूस होता है.
अपने सगे पुत्र विक्की का समूर्ण लंड अपने मूँह में समा लेने वाली उसकी पापिन मा नीमा, अभी अपनी दोस्त के बेटे का एक-चौथाई लंड भी बड़ी कठिनाई से अपने मूँह में निगल पाई थी "जाने कम्मो ने इसे कैसे चूसा होगा, वह भी अपनी पहली बार में" नीमा हैरत में भर कर सोचती है.
"ओह्ह्ह्ह आंटी !! चूसो, ज़ोर से चूसो और अंदर लो" निकुंज बुदबुदाता है और नीमा का सर शक्ति-पूर्वक अपने हाथो में जकड लेता है. उसकी इस हरक़त से कमोज्जित वह औरत उसके फड़फड़ा रहे विशाल लंड को बेहद कड़ाई से चूसना आरंभ कर देती है. अपनी खुली आँखो के सम्मोहन से वह निकुंज को अधिक और अधिक आनंद का एहसास करवा रही थी.
"स्लूरप्प्प स्लूरप्प्प" अपने होंठो के बल-स्वरूप नीमा अपना मूँह बड़ी तेज़ी से लंड पर पटक रही थी और जब वह उतनी ही रफ़्तार से वापस अपना मूँह ऊपर लाती तो उसके मूँह से संतुष्टि-पूरक सुड़कने की कामुक आवाज़ें भी उँची हो कर कमरे में गूंजने लगती.
"उफफफ्फ़ !! मैं .. मैं पागल हो जाउन्गा" अकल्पनीय सुख की प्राप्ति होने से निकुंज की आवाज़ में कंपन आने लगा "बस इसी तरह चूसो !! रुकना .. रुकना नही आंटी. आप बहुत अच्छे से लंड चूस्ति हो" वह चीख उठता है.
निकुंज द्वारा अपनी अश्लील, घ्रानित प्रशन्शा सुन कर नीमा की उंगलियाँ चुटकियों में उसके आकड़े लौडे की जड़ पर कस जाती हैं और फिर वह बड़ी प्रचंडता के साथ उसका सुपाडा चूस्ते हुए, लंड को मुठियाने लगती है. नीमा की पारंगत खुरदूरी जीभ भी अपने अनुभव का बखूबी इस्तेमाल कर रही थी और जो उसके मूँह के अंदर सुपाडे की नज़ाक सतह को बुरी तरह खरॉच रही थी, छील रही थी.
"ह्म्म्म !! स्लूरप्प्प .. स्लूरप्प्प !! " नीमा पुरज़ोर शक्ति लगाते हुए उस लंड को चूस रही है, अपने मुख की गति पर वह स्वयं हैरान है, अचंभित है " क्यों उसके मूँह से लंड सुड़कने की मादक आवाज़ें इतनी उँची और तेज़-तेज़ आ रही हैं, क्यों उसके मूँह के अंदर लार बनने की मात्रा में निरंतर वृद्धि होती जा रही है, क्यों वह इतनी तत्परता से लंड चूसने में मगन है. आख़िर क्यों ?" कुच्छ देर सोचने-विचारने के उपरांत उसे निकुंज का पराया होना ही इसका एक मात्रा उत्तर समझ आता है और वह अपने होंठो को और भी ज़यादा सख़्त बनाते हुए उन्हे लंड की अविश्वसनीय मोटाई पर कसने लगती है, तत-पश्चात फॉरन अपना मूँह लंड की जड़ तक पहुचने के असफल प्रयास में जुट जाती है.