इसके बाद उस चंचल मा ने बड़ी ही सहजता के साथ अपने बेटे के विशाल लंड पर पानी से लबालब भरे कयि सारे मग उडेल कर लगभग उसका संपूर्ण निचला धड़ भिगो दिया और तत-पश्चात वह अपना कांपता हाथ उसके अत्यधिक फूल चुके टट्टो पर रखते हुए उन्हे हौले-हौले सहलाने लगती है.
"उफ़फ्फ़ मोम" निकुंज पर तो जैसे वज्रपात हो गया. उसकी आह को सुन कम्मो भी फॉरन अपनी चूत की संकीर्ण मास-पेशियों में बेहद खिचाव आता महसूस करती है और खुद ब खुद उस मा के छर्हरे शरीर का पूरा भार उसकी एडियों से हट कर उसके पैरो के पंजो पर एकत्रित हो जाता है.
"मैं कितनी चरित्रहीन मा हूँ जिसने अपने जवान बेटे को दो बार अपनी मर्ज़ी से नंगा कर दिया और जाने कितनी ओछि-ओच्चि हरक़तें भी उसके साथ कर रही हूँ. क्यों निकुंज !! है ना तेरी मा सच में बेशरम ?" कम्मो ने अपनी उंगलियों को उसकी घुँगराली झान्टो के घुछो में उलझाते हुए पुछा तो निकुंज का मूँह फॅट पड़ता है. उसे लगता है जैसे उसकी मा के वे शब्द नुकीला खंजर बन कर उसके दिल को बुरी तरह से भेद गये हों.
"मोम" उसकी टीस भरी चीख कम्मो के कानो से जा टकराई और स्वतः ही वह लंड से अपनी दृष्टि हटा कर निकुंज की आँखों में झाँकने लगती है.
"अगर दोबारा कभी आप ने ऐसी बात कही ना मोम तो याद रखना आप मुझे हमेशा के लिए खो दोगि. मेरी मा दुनिया की सबसे अच्छी मा है और अपने बेटे से बहुत प्यार करती है. बस इसके अलावा मैं कुच्छ नही जानता और ना जानना भी नही चाहता" निकुंज ने अपने हाथ को अपनी मा के मुलायम गाल पर फेरते हुए कहा तो कम्मो का मन खुशी से झूम उठता है.
"पगले !! तो क्या तेरी मा तुझे अपने से दूर कभी जाने देगी. कभी नही निकुंज, कभी नही" आंटी-सेपटिक वॉश को अपने हाथ के पंजे में इकट्ठा कर कम्मो जवाब देती है. अब वह आनंदित थी, उसे कोई भय ना था और जल्द ही वह मा अपनी सुंयोजित अधूरी पापी लालसा को शिखर पर ले जाने हेतु बड़ी तेज़ गति से अपने पुत्र के लंड को मसल्ने, रगड़ने, दबाने, मुठियाने इत्यादि सभी कार्य एक के बाद एक क्रमांक से करना शुरू कर देती है.
"आह मोम !! थोड़ा धीरे करो" कम्मो के अनुभवी हाथो की तत्परता और उसे उसके पुत्र के लंड की सेवा में यूँ खोया देख निकुंज अपनी कामुक सिसकियों को अपने भर्राये गले से बाहर आने से कतयि नही रोक पा रहा था और जब उसे लगा कि अब वह किसी भी पल झाड़ सकता है तो वह अपनी मा को टोक देता है.
"मोम क्या सोचेंगी" निकुंज ने खुद से कहा "यदि मैं काबू नही कर पाया तो यक़ीनन मेरे वीर्य के सारे छींटे मा के चेहरे और उनके जिस्म पर गीरेंगे" वह सोचता है.
"क्या हुआ निकुंज !! दर्द हो रहा है क्या बेटे ?" कम्मो ने लंड की अखंड फड़फड़ाहट को पहचान कर भी अंजान बनते हुए पुछा. उसका अधीर चेहरा निकुंज की टाँगो की जड़ के बेहद करीब था और उसके गुलाबी होंठो से बाहर निकलती उसकी गरम साँसे उसके पुत्र के फूले सुपाडे से निरंतर टकरा रही थी. आंटी-सेपटिक वॉश के कारण बना झाग और बेहतरीन चिकनाई की मदद से कम्मो के दोनो हाथ कोमलता-पूर्वक निकुंज के लंड की गोरी सतह पर बेहद आसानी से फिसलते जा रहे थे और यही वो मुख्य वजह थी जो उसका बेटा अब अपने चरम को महसूस करने लगा था.
"ओह्ह !! नही .. नही मोम दर्द तो नही हो रहा मगर ...." निकुंज ने अपने जबड़ो को ताक़त से भींचा परंतु अपना कथन पूरा नही कर पाया.