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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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S_Kumar

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Update- 65

सरसों के तेल को नीलम ने अच्छे से अपने हांथों में लगाया और बोली- लो पहनाओ

महेन्द्र ने एक चूड़ी उठायी और पहनाने लगा, सरसौं का तेल लगा होने की वजह से हाँथ काफी फिसलन भरा हो चुका था, थोड़ी कोशिश से ही चूड़ी कलाई में सरक कर चली गई, महेंद्र खुश हो गया- देखा पहना दी न।

नीलम- अरे सारी पहनानी है जी, केवल एक पहना के खुश नही होना, अभी तो 23 चूड़ियां पड़ी हैं 11 इस हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।

महेन्द्र- तो क्या हुआ, सारी पहना दूंगा।

नीलम- हाँ तो पहनाओ फिर, एक में ही क्यों खुश हो गए।

महेन्द्र ने एक एक करके छः चूड़ी तो पहना दी और जैसे ही सातवीं चढ़ाने लगा वो चट्ट से टूट गयी, महेंद्र को काटो तो खून नही, मुँह उतर गया उसका।

नीलम- हार गए न शर्त, मैंने कहा था पहले ही सोच समझ लो, पता है क्यों टूटी चूड़ी?

महेंद्र- क्यों?

नीलम- क्योंकि तुम खुशी के मारे उतावले हुए जा रहे थे औऱ जल्दबाजी कर बैठें, अब जब बाबू आएंगे तो मैं उन्हें बोलूंगी फिर देखना वो कैसे पहनाते हैं चूड़ियां, अब तुम शर्त हार गए, अब जो मैं चाहूंगी वो तुम्हें मानना होगा।

महेन्द्र- हाँ हाँ क्यों नही, बोलो तुम क्या चाहती हो।

(महेंद्र ने दबे मन से कहा)

नीलम- तुम इतने उदास क्यों हो गए, शर्त हार गए इसलिए?

महेन्द्र- नही तो, हार जीत तो होती रहती है इसमें उदास क्या होना।

नीलम- मुझे पता है तुम ये सोच रहे होगे की पता नही अब मुझे मिलेगी या नही...है न

महेन्द्र ये सुनकर चुप सा हो जाता है

नीलम- अरे मेरे पति जी वो तो तुम्हे मिलेगी ही, उसपर तो हक़ है तुम्हारा, पर जो मैं शर्त जीती हूँ तुम्हे उसे पूरा करना ही होगा।

(महेन्द्र ये सुनकर फिर खुश हो जाता है)

महेन्द्र- तो मैंने कब कहा कि मैं तुम्हारी शर्त नही मानूंगा, बोलो तुम क्या चाहती हो, जैसा तुम चाहोगी मैं कर दूंगा, आखिर तुम जीती हो भाई।

नीलम- बिल्कुल

महेन्द्र- तो फिर बोलो मेरी जान क्या चाहिए तुम्हे।

नीलम महेन्द्र का हाँथ पकड़ कर घर के अंदर ले जाती है और दीवार के सहारे खड़ी होकर महेन्द्र के गले में बाहें डाल देती है, महेंद्र उतावला तो हो ही रखा था नीलम को कस के बाहों में भर लेता है और दोनों एक दूसरे को चूमने लगते है, नीलम हल्का हल्का सिसकने लगती है।

महेन्द्र थोड़ा रुककर- आज तो मजा आ गया, कितने दिन हो गए तुम्हे चूमे

नीलम- अभी तो और मजा आएगा लेकिन पहले मेरी शर्त तो पूरी करो।

महेन्द्र- तो बोलो न क्या चाहती हो तुम।

नीलम- पहले एक वचन और दो की ये राज तुम्हारे और मेरे बीच ही रहेगा, और जैसा मैं चाहती हूं तुम मानोगे।

महेन्द्र काम के वेग में डूबा हुआ था, जल्दबाजी की उसकी आदत थी झट से बोल पड़ा- बोलो तो सही मेरी जान, चलो एक वचन और दिया, जो भी होगा मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा।

नीलम- और अगर तुमने मेरी शर्त पूरी नही की और अपने वचन पर नही चले तो मैं पूरी जिंदगी अपने मायके में अपने बाबू के साथ ही रहूँगी.....बोलो मंजूर

(ऐसा कहते हुए नीलम ने खुद ही अपनी बूर को महेन्द्र के लन्ड से रगड़ दिया, महेन्द्र का सारा ध्यान नीलम की इस हरकत पर चला गया, बूर का प्यासा वो काफी दिनों से था सो महत्वपूर्ण वक्त और बात पर उसका ध्यान बट गया, वो बिना सोचे समझे बोल पड़ा)

महेन्द्र- अरे बोल न मेरी जान तेरी सारी शर्त पूरी करूँगा, और अगर न कर सका अपने वचन से मुकरा तो तुम यहीं मायके में रहना, और मैं एक बाप की औलाद नही, बोल मेरी जान बोल।

नीलम- अगर तुमने मेरी शर्त पूरी की तो मैं कभी भी तुम्हे ईलाज कराने के लिए नही कहूंगी, तुमपर गुस्सा भी नही करूँगी।

महेन्द्र- सच

नीलम- हां सच....बिल्कुल सच

नीलम ने महेन्द्र को पूरी तरह काबू में ले लिया।

नीलम ने फिर एक बात और बोली- और अगर तुमने मेरी शर्त मानी और अपना वचन (की ये राज सर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगा) पूरा किया तो मैं भी वचन देती हूं कि तुम्हारी एक इच्छा जो तुम्हारे मन में बचपन से है मैं खुद उसको पूरा करूँगी।

महेन्द्र ये सुनकर चौंक गया, की उसकी पत्नी उसका राज कैसे जानती है

वो एक टक लगा कर भौचक्का सा नीलम को देखता रह गया, नीलम उसकी आँखों में एक कातिल मुस्कान के साथ देखती रही।

नीलम- देखो मैं शर्त जीती हूँ तो तुम्हे मेरी शर्त तो माननी ही पड़ेगी और अब अपना वचन की ये राज सिर्फ हम दोनों के बीच रहेगा भी पूरा करना पड़ेगा, तो इसके बदले में मैं भी तुम्हे एक वचन देती हूं कि मैं भी तुम्हारी बचपन की इच्छा जरूर पूरी करूँगी, जो अभी तक तुम नही कर पाए, और तुमने कभी सोचा भी नही होगा कि तुम्हे इतना सुख मिलेगा।

महेन्द्र कुछ देर नीलम की आंखों में देखता रहा फिर बोला- तुम्हे कैसे पता मेरी इच्छा।

नीलम- हम लड़कियों को ऐसी चीज़ें सब पता होती है।

महेन्द्र- बताओ तो सही।

नीलम- तुम्हारे मित्र की पत्नी है न, उसने ही मुझसे एक बार बताई थी, उसको तुम्हारे मित्र ने बताया होगा। पर ये बात तुम कभी उससे पूछना मत, अगर मेरे अच्छे पति होगे तो।

महेन्द्र- नही पूछूंगा मेरी जान तेरी कसम।

नीलम- कसम खाने की जरूरत नही, मुझे विश्वास है तुमपर।

महेन्द्र ने ये सुनकर नीलम को दुबारा बाहों में भर लिया तो नीलम फिर से सिसकने लगी।

महेन्द्र- अच्छा वो कौन सी इच्छा है मेरी जो तुम्हे पता है।

नीलम ने महेन्द्र के कान में कहा- बताऊं

महेंद्र- बताओ

नीलम ने एक कामुक सिसकारी लेते हुए कहा- तुम अपनी सगी बहन सुनीता की बूर देखना चाहते थे न, गाँड़ तो तुमने एक बार उनकी मूतते हुए पीछे से देख ही रखी है चुपके से.....बोलो

महेन्द्र ये सुनते ही सिरह उठा, शर्म और वासना दोनों के अहसास से भर गया, उसे खुश भी हो रही थी और शर्म भी आ रही थी।

नीलम- और एक बात बताऊं

महेन्द्र शर्माते हुए- हम्म

नीलम- तुम्हारी सगी बहन सुनीता अपने पति से संतुष्ट नही है, प्यासी है वो, मुझसे तो वो कुछ छिपाती नही, बातों बातों में सब बता देती है मुझे, प्यासी है बहन तुम्हारी सोच लो।

नीलम ने ये बात बड़े ही कामुक अंदाज में महेन्द्र की पीठ को सहलाते हुए कहा और अपनी ही पत्नी के मुँह से ऐसी वासना भरी व्यभिचारिक बात अपनी सगी बहन के प्रति सुनकर महेन्द्र का लंड इतना सख्त हो गया मानो पैंट फाड़ कर बाहर आ जायेगा, ये नीलम ने भी बखूबी महसूस किया। नीलम महेन्द्र को अब पूरी तरह काबू में ले चुकी थी।
 

Soniya7784

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Update- 65

सरसों के तेल को नीलम ने अच्छे से अपने हांथों में लगाया और बोली- लो पहनाओ

महेन्द्र ने एक चूड़ी उठायी और पहनाने लगा, सरसौं का तेल लगा होने की वजह से हाँथ काफी फिसलन भरा हो चुका था, थोड़ी कोशिश से ही चूड़ी कलाई में सरक कर चली गई, महेंद्र खुश हो गया- देखा पहना दी न।

नीलम- अरे सारी पहनानी है जी, केवल एक पहना के खुश नही होना, अभी तो 23 चूड़ियां पड़ी हैं 11 इस हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।

महेन्द्र- तो क्या हुआ, सारी पहना दूंगा।

नीलम- हाँ तो पहनाओ फिर, एक में ही क्यों खुश हो गए।

महेन्द्र ने एक एक करके छः चूड़ी तो पहना दी और जैसे ही सातवीं चढ़ाने लगा वो चट्ट से टूट गयी, महेंद्र को काटो तो खून नही, मुँह उतर गया उसका।

नीलम- हार गए न शर्त, मैंने कहा था पहले ही सोच समझ लो, पता है क्यों टूटी चूड़ी?

महेंद्र- क्यों?

नीलम- क्योंकि तुम खुशी के मारे उतावले हुए जा रहे थे औऱ जल्दबाजी कर बैठें, अब जब बाबू आएंगे तो मैं उन्हें बोलूंगी फिर देखना वो कैसे पहनाते हैं चूड़ियां, अब तुम शर्त हार गए, अब जो मैं चाहूंगी वो तुम्हें मानना होगा।

महेन्द्र- हाँ हाँ क्यों नही, बोलो तुम क्या चाहती हो।

(महेंद्र ने दबे मन से कहा)

नीलम- तुम इतने उदास क्यों हो गए, शर्त हार गए इसलिए?

महेन्द्र- नही तो, हार जीत तो होती रहती है इसमें उदास क्या होना।

नीलम- मुझे पता है तुम ये सोच रहे होगे की पता नही अब मुझे मिलेगी या नही...है न

महेन्द्र ये सुनकर चुप सा हो जाता है

नीलम- अरे मेरे पति जी वो तो तुम्हे मिलेगी ही, उसपर तो हक़ है तुम्हारा, पर जो मैं शर्त जीती हूँ तुम्हे उसे पूरा करना ही होगा।

(महेन्द्र ये सुनकर फिर खुश हो जाता है)

महेन्द्र- तो मैंने कब कहा कि मैं तुम्हारी शर्त नही मानूंगा, बोलो तुम क्या चाहती हो, जैसा तुम चाहोगी मैं कर दूंगा, आखिर तुम जीती हो भाई।

नीलम- बिल्कुल

महेन्द्र- तो फिर बोलो मेरी जान क्या चाहिए तुम्हे।

नीलम महेन्द्र का हाँथ पकड़ कर घर के अंदर ले जाती है और दीवार के सहारे खड़ी होकर महेन्द्र के गले में बाहें डाल देती है, महेंद्र उतावला तो हो ही रखा था नीलम को कस के बाहों में भर लेता है और दोनों एक दूसरे को चूमने लगते है, नीलम हल्का हल्का सिसकने लगती है।

महेन्द्र थोड़ा रुककर- आज तो मजा आ गया, कितने दिन हो गए तुम्हे चूमे

नीलम- अभी तो और मजा आएगा लेकिन पहले मेरी शर्त तो पूरी करो।

महेन्द्र- तो बोलो न क्या चाहती हो तुम।

नीलम- पहले एक वचन और दो की ये राज तुम्हारे और मेरे बीच ही रहेगा, और जैसा मैं चाहती हूं तुम मानोगे।

महेन्द्र काम के वेग में डूबा हुआ था, जल्दबाजी की उसकी आदत थी झट से बोल पड़ा- बोलो तो सही मेरी जान, चलो एक वचन और दिया, जो भी होगा मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा।

नीलम- और अगर तुमने मेरी शर्त पूरी नही की और अपने वचन पर नही चले तो मैं पूरी जिंदगी अपने मायके में अपने बाबू के साथ ही रहूँगी.....बोलो मंजूर

(ऐसा कहते हुए नीलम ने खुद ही अपनी बूर को महेन्द्र के लन्ड से रगड़ दिया, महेन्द्र का सारा ध्यान नीलम की इस हरकत पर चला गया, बूर का प्यासा वो काफी दिनों से था सो महत्वपूर्ण वक्त और बात पर उसका ध्यान बट गया, वो बिना सोचे समझे बोल पड़ा)

महेन्द्र- अरे बोल न मेरी जान तेरी सारी शर्त पूरी करूँगा, और अगर न कर सका अपने वचन से मुकरा तो तुम यहीं मायके में रहना, और मैं एक बाप की औलाद नही, बोल मेरी जान बोल।

नीलम- अगर तुमने मेरी शर्त पूरी की तो मैं कभी भी तुम्हे ईलाज कराने के लिए नही कहूंगी, तुमपर गुस्सा भी नही करूँगी।

महेन्द्र- सच

नीलम- हां सच....बिल्कुल सच

नीलम ने महेन्द्र को पूरी तरह काबू में ले लिया।

नीलम ने फिर एक बात और बोली- और अगर तुमने मेरी शर्त मानी और अपना वचन (की ये राज सर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगा) पूरा किया तो मैं भी वचन देती हूं कि तुम्हारी एक इच्छा जो तुम्हारे मन में बचपन से है मैं खुद उसको पूरा करूँगी।

महेन्द्र ये सुनकर चौंक गया, की उसकी पत्नी उसका राज कैसे जानती है

वो एक टक लगा कर भौचक्का सा नीलम को देखता रह गया, नीलम उसकी आँखों में एक कातिल मुस्कान के साथ देखती रही।

नीलम- देखो मैं शर्त जीती हूँ तो तुम्हे मेरी शर्त तो माननी ही पड़ेगी और अब अपना वचन की ये राज सिर्फ हम दोनों के बीच रहेगा भी पूरा करना पड़ेगा, तो इसके बदले में मैं भी तुम्हे एक वचन देती हूं कि मैं भी तुम्हारी बचपन की इच्छा जरूर पूरी करूँगी, जो अभी तक तुम नही कर पाए, और तुमने कभी सोचा भी नही होगा कि तुम्हे इतना सुख मिलेगा।

महेन्द्र कुछ देर नीलम की आंखों में देखता रहा फिर बोला- तुम्हे कैसे पता मेरी इच्छा।

नीलम- हम लड़कियों को ऐसी चीज़ें सब पता होती है।

महेन्द्र- बताओ तो सही।

नीलम- तुम्हारे मित्र की पत्नी है न, उसने ही मुझसे एक बार बताई थी, उसको तुम्हारे मित्र ने बताया होगा। पर ये बात तुम कभी उससे पूछना मत, अगर मेरे अच्छे पति होगे तो।

महेन्द्र- नही पूछूंगा मेरी जान तेरी कसम।

नीलम- कसम खाने की जरूरत नही, मुझे विश्वास है तुमपर।

महेन्द्र ने ये सुनकर नीलम को दुबारा बाहों में भर लिया तो नीलम फिर से सिसकने लगी।

महेन्द्र- अच्छा वो कौन सी इच्छा है मेरी जो तुम्हे पता है।

नीलम ने महेन्द्र के कान में कहा- बताऊं

महेंद्र- बताओ

नीलम ने एक कामुक सिसकारी लेते हुए कहा- तुम अपनी सगी बहन सुनीता की बूर देखना चाहते थे न, गाँड़ तो तुमने एक बार उनकी मूतते हुए पीछे से देख ही रखी है चुपके से.....बोलो

महेन्द्र ये सुनते ही सिरह उठा, शर्म और वासना दोनों के अहसास से भर गया, उसे खुश भी हो रही थी और शर्म भी आ रही थी।

नीलम- और एक बात बताऊं

महेन्द्र शर्माते हुए- हम्म

नीलम- तुम्हारी सगी बहन सुनीता अपने पति से संतुष्ट नही है, प्यासी है वो, मुझसे तो वो कुछ छिपाती नही, बातों बातों में सब बता देती है मुझे, प्यासी है बहन तुम्हारी सोच लो।

नीलम ने ये बात बड़े ही कामुक अंदाज में महेन्द्र की पीठ को सहलाते हुए कहा और अपनी ही पत्नी के मुँह से ऐसी वासना भरी व्यभिचारिक बात अपनी सगी बहन के प्रति सुनकर महेन्द्र का लंड इतना सख्त हो गया मानो पैंट फाड़ कर बाहर आ जायेगा, ये नीलम ने भी बखूबी महसूस किया। नीलम महेन्द्र को अब पूरी तरह काबू में ले चुकी थी।

Superb Update Ji.... Ab Mahender Ki Behan Ko Bhi La Rahe Ho....adbhoot
 
Last edited:

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
26,612
54,792
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बहुत ही शानदार कहानी है आपकी।
गांव के परिवेश में परिवार में incest कैसे हो सकता है। इसका वर्णन आपने बखूबी किया है।

इसके साथ ही देवनागरी लिपि में भी आपकी अच्छी पकड़ है। बहुत अच्छा लगा।

कहानी वाकई बाह्य शानदार है। इसी तरह लिखते रहिये और पाठकों का मनोरंजन करते रहिए।
 

S_Kumar

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Update- 66

नीलम के मुँह से बहुत ही बेबाक तरीके से निकली ऐसी बात सुनकर महेन्द्र सन्न रह गया, उसकी स्थिति सांप छछून्दर जैसी हो चली थी, नीलम ने उसे ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया था कि न तो उससे निगला जा रहा था न उगला।

वो ये जान गया था कि अगर उसने नीलम की शर्त नही मानी और अपना वचन पूरा नही किया तो नीलम यहीं मायके में रहेगी, क्योंकि वो जानता था कि नीलम जिद्दी है, और तो और नीलम कभी उसको यौनसुख भी नही देगी।

दूसरी तरफ वो नीलम की इस बात से भी हैरान था कि नीलम को ये बात लंबे समय से पता है कि उसने छुपकर अपनी सगी बहन की चौड़ी मदमस्त गाँड़ कई बार देख रखी है और शादी से पहले से ही उसके मन में अपनी बहन की बूर देखने की इच्छा है और देखना ही क्या सच तो ये था कि वो चोदना चाहता है अपनी बहन को, ये बात नीलम को पता होने के बाद भी नीलम ने कभी उससे ये सब पूछा नही और न ही कभी किसी तरह का झगड़ा इस बात को लेकर किया कि वो अपनी ही सगी बहन को लेकर ऐसी व्यभिचारिक भावनायें रखता है और आज खुद उसकी पत्नी नीलम उसे उसकी बहन चखाने का वचन दे रही है, अगर वो नीलम की बात नही मानता है तो नीलम तो उससे नाराज़ हो ही जाएगी ऊपर से बहन की बूर का मिलने वाला मजा जिसके सपने वो कब से देखता आ रहा है वो भी हाँथ से चला जायेगा और ये कितना सुरक्षित भी होगा की उसकी पत्नी को पता होने के बाबजूद भी वो अपनी सगी बहन के हुस्न में गोते लगाएगा।

एक बार तो उसने खुद को ठगा सा महसूस किया, उसे एक पल के लिए लगा कि नीलम उसकी पत्नी कितनी चालबाज़ है, ऐसा रूप उसने नीलम का कभी देखा नही था, परंतु सच ये था कि नीलम ऐसी नही थी।

नीलम महेन्द्र की मनोदशा को तुरंत भांप गयी और उसकी आँखों में देखते हुए बोली- क्या सोच रहे हो? मुझे पता है तुम मुझे गलत समझ रहे होगे, तुम्हे लग रहा होगा कि मैं कितनी शातिर और चालबाज़ हूँ, जो मैंने शर्त और वचन तुम्हारे सामने रख दिये।

महेन्द्र- नही नही मैं ऐसा कुछ भी नही सोच रहा, और मुझे पता है तुम ऐसी नही हो।

नीलम- एक बात बोलूं, मैं थोड़ी चंचल और नटखट भले ही हूँ पर दिल की साफ हूँ, मैं चालबाज़ नही हूँ और न ही कभी तुम्हारा दिल दुखाउंगी, मैं जानती हूं कि इस वक्त तुम्हारी स्थिति बहुत असमंजस भरी है। पर जरा ये तो सोचो कि किसी औरत को अगर ये पता चले कि उसका पति अपनी ही सगी बहन को भोगना चाहता है तो क्या वो बर्दाश्त करेगी, पर जब मैंने पहली बार ये बात जानी तो मुझे बस तुम्हारी खुशी का ही ख्याल था, इसलिए मेरे मन में गुस्सा नही आया मैंने इसे सहजता से लिया जानते हो क्यों?

महेन्द्र एक टक लगाए नीलम को बाहों में भरे उसकी आँखों में देखते हुए बोला- क्यों

नीलम- क्योंकि संभोग की भूख ठीक वैसे ही होती है जैसे पेट की भूख, मान लो तुम अपनी थाली में खाना खा रहे हो और बगल वाली थाली में कुछ ऐसा रखा है जो तुम्हे खाने का मन किया तो तुम उसे उठाओगे न

महेन्द्र- हाँ बिल्कुल

नीलम- तो क्या मैं तुम्हे रोकूंगी, अगर मैं वहीं बगल में बैठी हूँ तो?

महेन्द्र- नही बिल्कुल नही

नीलम- पर क्यों?

महेन्द्र ये सुनकर चुप हो गया, नीलम ने एक चपत उसके सर पे लगाया और बोला- अरे बुद्धू क्यों कि मैं तुमसे प्यार करती हूं, और प्यार करने का सबसे सही अर्थ ही यही होता है कि जिससे तुम प्यार करते हो वो भले ही तुम्हे कुछ दे या न दे पर उसे देने में तुम्हारी तरफ से कोई भी कसर न रहे, देने का अर्थ उसकी इच्छा पूरी करने से है, प्यार का अर्थ देना होता है लेना नही। तभी मुझे तुम्हारी वो इच्छा जानकर गुस्सा नही आया और मैंने मन ही मन सोच लिया था कि वक्त आने पर मैं ये बात सामने लाऊंगी और तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगी, अब सोचो मैंने तो कब से ही बिना किसी शर्त के तुम्हारी इच्छा पूरी करने की ठान ली थी।

महेन्द्र- तुम इतनी समझदार होगी ये मैंने कभी सोचा नही था, सही में मैं कितना खुशकिस्मत हूँ जो मुझे इतना समझने वाली पत्नी मिली, आज से जो तुम बोलोगी मैं वही करूँगा, गुलाम हो गया मैं तुम्हारा।

नीलम- वो तो तुम हो ही, बच के कहाँ जाओगे।

नीलम ने आंख नाचते हुए कहा, महेन्द्र धीरे धीरे नीलम की पीठ को सहलाते हुए बोला- अच्छा तुमने बोला कि प्यार का सही अर्थ देना होता है लेना नही तो तुम भी तो मुझसे इसके बदले में कुछ न कुछ लोगी ही.....बोलो

नीलम- अरे वो तो मैं शर्त जीती हूँ न....तो अपनी शर्त का जीता हुआ इनाम नही लूं......और ये तो मेरी अच्छाई हुई पर तुम्हारी अच्छाई फिर क्या होगी......बोलो

(नीलम ने बड़ी शातिराना अंदाज़ से महेन्द्र को फिर दबा दिया)

महेन्द्र- हम्म ये तो है, मेरा भी तो फ़र्ज़ बनता है तुम्हारी इच्छा पूरी करने का।

नीलम- पहले मेरी इच्छा तो जान लो

महेन्द्र- हाँ बोलो, अब बोलो मेरे मन की सारी दुविधा दूर हो गयी, वचन देता हूँ मैं तुम्हे की ये राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच रहेगा और मैं तुम्हरी शर्त पूरी करूँगा।

नीलम ने धीरे से कान में कह दिया- मैं भी वचन देती हूं कि तुम्हे तुम्हारी सगी बहन सुनीता की लज़्ज़त भरी बूर का मजा दिलवाऊंगी।

नीलम ने ये कहकर महेन्द्र की आंखों में देखा और चिढ़ाते हुए बोली- देखो कैसे आंखों में कितनी चमक आ गयी......गंदे.....बहन के साथ करोगे.....ह्म्म्म.......बहुत पसंद करते हो न सुनीता को।

महेन्द्र अब थोड़ा खुल गया था, उसने जान लिया था कि राज तो अब खुल ही गया है और नीलम खुद ही उसका रास्ता बना देगी तो दिक्कत क्या है पर फिर भी शर्म तो आ ही रही थी आखिर भाई बहन का रिश्ता पवित्र जो होता है।

महेन्द्र- हाँ करता तो हूँ, क्या करूँ मन नही मानता।

नीलम ने जानबूझ के महेन्द्र को और बेकाबू करने के लिए धीरे से उनके कान में कामुक अंदाज़ में सिसकते हुए बोला- भैया

महेंद्र नीलम को देखता रह गया उसे अजीब सी गुदगुदी हुई, अपनी पत्नी के मुँह से उसके लिए भैया शब्द सुनकर बदन में उसके मदमस्त झनझनाहट हुई।

महेंद्र- ये क्या बोल रही हो, पति को भैया बोलोगी, भैया हूँ मैं तुम्हारा?

नीलम- अरे मेरे पति जी थोड़ी देर सुनीता को महसूस कर लो, मान लो कि मैं तुम्हारी सगी बहन हूँ, मैं भी तो देखूं मेरे पति को कितना जोश चढ़ता है अपनी बहन को सोचकर।

नीलम ने इतना कहकर एक बार फिर महेन्द्र के कान में धीरे से कहा- भैया.....मेरे भैया.......मेरे महेन्द्र भैया......आआआआआहहहहहह......और महेन्द्र के गर्दन को चूम लिया।

महेन्द्र ने कस के नीलम को अपने से चिपका लिया और उसके कान में बोला- दीदी......मेरी बहना.........ओओओओहहहहह......उउउउफ़फ़फ़फ़

नीलम अब जोर से सिसक उठी।

महेन्द्र ने पीछे से हाँथ ले जाकर नीलम की नीली साड़ी को उठाना शुरू कर दिया तो नीलम बोली- गाँड़ छुओगे भैया मेरी

महेन्द्र- हाँ दीदी बहुत मन कर रहा है, छूने दोगी?

नीलम- भैया का तो हक़ होता ही है बहना पर, छू लो न भैया, मैं भी......

नीलम के इस तरीके से महेन्द्र के बदन में तेज सनसनी होने लगी, चेहरा लाल हो गया उसका जोश के मारे, जोश नीलम को भी बहुत चढ़ गया था, महेंद्र बोला- मैं भी.... क्या बहना?

नीलम- भैया मैं भी तरस गयी हूँ आपके लिए।

दरअसल नीलम महेंद्र को खोलना चाहती थी। महेंद्र के लिए ये दोहरा मजा था, उसने कभी सोचा भी नही था कि उसकी पत्नी ही उसे बहन का मजा देगी।
 

S_Kumar

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बहुत ही शानदार कहानी है आपकी।
गांव के परिवेश में परिवार में incest कैसे हो सकता है। इसका वर्णन आपने बखूबी किया है।

इसके साथ ही देवनागरी लिपि में भी आपकी अच्छी पकड़ है। बहुत अच्छा लगा।

कहानी वाकई बाह्य शानदार है। इसी तरह लिखते रहिये और पाठकों का मनोरंजन करते रहिए।
Thank you so much जी
 
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