Update- 65
सरसों के तेल को नीलम ने अच्छे से अपने हांथों में लगाया और बोली- लो पहनाओ
महेन्द्र ने एक चूड़ी उठायी और पहनाने लगा, सरसौं का तेल लगा होने की वजह से हाँथ काफी फिसलन भरा हो चुका था, थोड़ी कोशिश से ही चूड़ी कलाई में सरक कर चली गई, महेंद्र खुश हो गया- देखा पहना दी न।
नीलम- अरे सारी पहनानी है जी, केवल एक पहना के खुश नही होना, अभी तो 23 चूड़ियां पड़ी हैं 11 इस हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।
महेन्द्र- तो क्या हुआ, सारी पहना दूंगा।
नीलम- हाँ तो पहनाओ फिर, एक में ही क्यों खुश हो गए।
महेन्द्र ने एक एक करके छः चूड़ी तो पहना दी और जैसे ही सातवीं चढ़ाने लगा वो चट्ट से टूट गयी, महेंद्र को काटो तो खून नही, मुँह उतर गया उसका।
नीलम- हार गए न शर्त, मैंने कहा था पहले ही सोच समझ लो, पता है क्यों टूटी चूड़ी?
महेंद्र- क्यों?
नीलम- क्योंकि तुम खुशी के मारे उतावले हुए जा रहे थे औऱ जल्दबाजी कर बैठें, अब जब बाबू आएंगे तो मैं उन्हें बोलूंगी फिर देखना वो कैसे पहनाते हैं चूड़ियां, अब तुम शर्त हार गए, अब जो मैं चाहूंगी वो तुम्हें मानना होगा।
महेन्द्र- हाँ हाँ क्यों नही, बोलो तुम क्या चाहती हो।
(महेंद्र ने दबे मन से कहा)
नीलम- तुम इतने उदास क्यों हो गए, शर्त हार गए इसलिए?
महेन्द्र- नही तो, हार जीत तो होती रहती है इसमें उदास क्या होना।
नीलम- मुझे पता है तुम ये सोच रहे होगे की पता नही अब मुझे मिलेगी या नही...है न
महेन्द्र ये सुनकर चुप सा हो जाता है
नीलम- अरे मेरे पति जी वो तो तुम्हे मिलेगी ही, उसपर तो हक़ है तुम्हारा, पर जो मैं शर्त जीती हूँ तुम्हे उसे पूरा करना ही होगा।
(महेन्द्र ये सुनकर फिर खुश हो जाता है)
महेन्द्र- तो मैंने कब कहा कि मैं तुम्हारी शर्त नही मानूंगा, बोलो तुम क्या चाहती हो, जैसा तुम चाहोगी मैं कर दूंगा, आखिर तुम जीती हो भाई।
नीलम- बिल्कुल
महेन्द्र- तो फिर बोलो मेरी जान क्या चाहिए तुम्हे।
नीलम महेन्द्र का हाँथ पकड़ कर घर के अंदर ले जाती है और दीवार के सहारे खड़ी होकर महेन्द्र के गले में बाहें डाल देती है, महेंद्र उतावला तो हो ही रखा था नीलम को कस के बाहों में भर लेता है और दोनों एक दूसरे को चूमने लगते है, नीलम हल्का हल्का सिसकने लगती है।
महेन्द्र थोड़ा रुककर- आज तो मजा आ गया, कितने दिन हो गए तुम्हे चूमे
नीलम- अभी तो और मजा आएगा लेकिन पहले मेरी शर्त तो पूरी करो।
महेन्द्र- तो बोलो न क्या चाहती हो तुम।
नीलम- पहले एक वचन और दो की ये राज तुम्हारे और मेरे बीच ही रहेगा, और जैसा मैं चाहती हूं तुम मानोगे।
महेन्द्र काम के वेग में डूबा हुआ था, जल्दबाजी की उसकी आदत थी झट से बोल पड़ा- बोलो तो सही मेरी जान, चलो एक वचन और दिया, जो भी होगा मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा।
नीलम- और अगर तुमने मेरी शर्त पूरी नही की और अपने वचन पर नही चले तो मैं पूरी जिंदगी अपने मायके में अपने बाबू के साथ ही रहूँगी.....बोलो मंजूर
(ऐसा कहते हुए नीलम ने खुद ही अपनी बूर को महेन्द्र के लन्ड से रगड़ दिया, महेन्द्र का सारा ध्यान नीलम की इस हरकत पर चला गया, बूर का प्यासा वो काफी दिनों से था सो महत्वपूर्ण वक्त और बात पर उसका ध्यान बट गया, वो बिना सोचे समझे बोल पड़ा)
महेन्द्र- अरे बोल न मेरी जान तेरी सारी शर्त पूरी करूँगा, और अगर न कर सका अपने वचन से मुकरा तो तुम यहीं मायके में रहना, और मैं एक बाप की औलाद नही, बोल मेरी जान बोल।
नीलम- अगर तुमने मेरी शर्त पूरी की तो मैं कभी भी तुम्हे ईलाज कराने के लिए नही कहूंगी, तुमपर गुस्सा भी नही करूँगी।
महेन्द्र- सच
नीलम- हां सच....बिल्कुल सच
नीलम ने महेन्द्र को पूरी तरह काबू में ले लिया।
नीलम ने फिर एक बात और बोली- और अगर तुमने मेरी शर्त मानी और अपना वचन (की ये राज सर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगा) पूरा किया तो मैं भी वचन देती हूं कि तुम्हारी एक इच्छा जो तुम्हारे मन में बचपन से है मैं खुद उसको पूरा करूँगी।
महेन्द्र ये सुनकर चौंक गया, की उसकी पत्नी उसका राज कैसे जानती है
वो एक टक लगा कर भौचक्का सा नीलम को देखता रह गया, नीलम उसकी आँखों में एक कातिल मुस्कान के साथ देखती रही।
नीलम- देखो मैं शर्त जीती हूँ तो तुम्हे मेरी शर्त तो माननी ही पड़ेगी और अब अपना वचन की ये राज सिर्फ हम दोनों के बीच रहेगा भी पूरा करना पड़ेगा, तो इसके बदले में मैं भी तुम्हे एक वचन देती हूं कि मैं भी तुम्हारी बचपन की इच्छा जरूर पूरी करूँगी, जो अभी तक तुम नही कर पाए, और तुमने कभी सोचा भी नही होगा कि तुम्हे इतना सुख मिलेगा।
महेन्द्र कुछ देर नीलम की आंखों में देखता रहा फिर बोला- तुम्हे कैसे पता मेरी इच्छा।
नीलम- हम लड़कियों को ऐसी चीज़ें सब पता होती है।
महेन्द्र- बताओ तो सही।
नीलम- तुम्हारे मित्र की पत्नी है न, उसने ही मुझसे एक बार बताई थी, उसको तुम्हारे मित्र ने बताया होगा। पर ये बात तुम कभी उससे पूछना मत, अगर मेरे अच्छे पति होगे तो।
महेन्द्र- नही पूछूंगा मेरी जान तेरी कसम।
नीलम- कसम खाने की जरूरत नही, मुझे विश्वास है तुमपर।
महेन्द्र ने ये सुनकर नीलम को दुबारा बाहों में भर लिया तो नीलम फिर से सिसकने लगी।
महेन्द्र- अच्छा वो कौन सी इच्छा है मेरी जो तुम्हे पता है।
नीलम ने महेन्द्र के कान में कहा- बताऊं
महेंद्र- बताओ
नीलम ने एक कामुक सिसकारी लेते हुए कहा- तुम अपनी सगी बहन सुनीता की बूर देखना चाहते थे न, गाँड़ तो तुमने एक बार उनकी मूतते हुए पीछे से देख ही रखी है चुपके से.....बोलो
महेन्द्र ये सुनते ही सिरह उठा, शर्म और वासना दोनों के अहसास से भर गया, उसे खुश भी हो रही थी और शर्म भी आ रही थी।
नीलम- और एक बात बताऊं
महेन्द्र शर्माते हुए- हम्म
नीलम- तुम्हारी सगी बहन सुनीता अपने पति से संतुष्ट नही है, प्यासी है वो, मुझसे तो वो कुछ छिपाती नही, बातों बातों में सब बता देती है मुझे, प्यासी है बहन तुम्हारी सोच लो।
नीलम ने ये बात बड़े ही कामुक अंदाज में महेन्द्र की पीठ को सहलाते हुए कहा और अपनी ही पत्नी के मुँह से ऐसी वासना भरी व्यभिचारिक बात अपनी सगी बहन के प्रति सुनकर महेन्द्र का लंड इतना सख्त हो गया मानो पैंट फाड़ कर बाहर आ जायेगा, ये नीलम ने भी बखूबी महसूस किया। नीलम महेन्द्र को अब पूरी तरह काबू में ले चुकी थी।